Wednesday, December 24, 2014

CHITTOR DESTRUCTION BY AKBAR AND ROLE OF UDAI AND MAN SINGH

स्वामी दयानंद अपने चित्तोड़ भ्रमण के समय चित्तोड़ के प्रसिद्द किले को देखने गए। किले की हालत एवं राजपूत क्षत्राणियों के जौहर के स्थान को देखकर उनके मुख से निकला की अगर ब्रह्मचर्य की मर्यादा का मान होता तो चित्तोड़ का यह हश्र नहीं होता। काश चित्तोड़ में गुरुकुल की स्थापना हो जिससे ब्रह्मचर्य धर्म का प्रचार हो सके।

स्वामी दयानंद के चित्तोड़ सम्बंधित चिंतन में ब्रह्मचर्य पालन से क्या सम्बन्ध था यह इतिहास के गर्भ में छिपा सत्य हैं। जिस समय चित्तोड़ का अकबर के हाथों विध्वंश हुआ उस समय चित्तोड़ पर वीर बप्पा रावल के वंशज, राणा सांगा के पुत्र उदय सिंह का राज था। समस्त राजपुताना में चित्तोड़ एक मात्र रियासत थी जिसने अपनी बेटी का डोलना मुगलों के हरम में नहीं भेजा था। अकबर के लिए यह असहनीय था की जब तक चित्तोड़ स्वतंत्र हैं तब तक भारत विजय का अकबर का स्वपन अधूरा हैं। राणा उदय सिंह वैसे तो वीर था मगर अपने पूर्वजों से महानता एवं दूरदृष्टि से विमुख था। उसमें भोग विलास की मात्र अधिक थी इसीलिए उसका जीवन उसकी दर्जनों रानियाँ और उनके अनेकों बच्चों में उलझा रहता था। यही कारण था की महाराणा प्रताप ने एक बार कहा था कि अगर दादा राणा सांगा जी के पश्चात मेवाड़ की गद्दी पर वह बैठते तो मुगलों को कभी इतना शक्तिशाली न होने देते। राजपुताना के बाकि राजपूतों की दशा भी कोई भिन्न न थी।
जब अकबर ने चित्तोड़ पर आक्रमण किया तब उदय सिंह ने उसकी रक्षा करने के स्थान पर भाग जाना बेहतर समझा। अभागा हैं वह देश जिसमें आपत्ति काल में उसका मुखिया साथ छोड़ दे। बारूद से शून्य किला बच सकता हैं मगर किलेदार से शून्य किला नहीं बच सकता। यहाँ तक कि चित्तोड़ के घेराव के समय भी उदय सिंह ने बाहर बैठकर कुछ नहीं किया। मगर चित्तोड़ राजपूताने मस्तक था, मान था। जयमल जैसे वीर सरदार अभी जीवित थे। एक ओर अकबर कि 25 हजार सेना, 3000 हाथी एवं 3 बड़े तोपखाने थे वही दूसरी ओर संसाधन रहित स्वाधीनता से प्रेम करने वाले 5000 वीर राजपूत थे। राजपूत एक ओर मुग़ल सेना से लड़ते जाते दूसरी ओर तोपों कि मार से दह रही दीवारों का निर्माण करते जाते। युद्ध 6 मास से अधिक हो चला था। एक दिन किले की दीवार के सुराख़ के छेद में से अकबर ने अपनी बन्दुक से एक तेजस्वी पुरुष को निशाना साधा। उस गोली से जयमल का स्वर्गवास हो गया। राजपूतों ने एक युवा पत्ता को अपना सरदार नियुक्त किया। पत्ता की मूछें भी ठीक से नहीं उगी थी मगर मातृभूमि पर प्राण न्यौछावर करने के लिए सभी राजपूत तैयार थे। आज अलग दिन था। सभी राजपूतों ने केसरिया बाना पहना, कमर पर तलवार बाँधी और युद्ध के लिए रवाना हो गए। राजपूतों ने जब देखा कि किले की रक्षा अब असंभव हैं तो उन्होंने अंतिम संग्राम का मन बनाया। किले के दरवाजे खोल दिए गए। मुग़ल सेना अंदर घुसते ही राजपूतों की फौलादी छाती से टकराई। उस अभेद्य दिवार को तोड़ने के अकबर ने मदमस्त हाथी राजपूतों पर छोड़ दिए। अनेक हाथियों को राजपूतों ने काट डाला, अनेक राजपूत स्वर्ग सिधार गए। अंत में पत्ता लड़ते लड़ते थक का बेहोश हो गया। एक हाथी ने उसे अपनी सूंड में उठा कर अकबर के सामने पेश किया। बहादुर पत्ता के प्राण थोड़ी देर में निकल गए मगर अकबर उसकी बहादुरी और देशभक्ति का प्रशंसक बन गया। इस युद्ध में 30000 आदमी काम आये, जिनमें लड़ाकू राजपूतों के अतिरिक्त चित्तोड़ की आम जनता भी थी। युद्ध के पश्चात मृत बहादुरों के शरीर से उतरे जनेऊ का तोल साढ़े सतावन मन था। उस दिन से राजपूताने में साढ़े सतावन का अंक अनिष्ट माना जाता हैं। किले के अंदर राजपूत क्षत्राणियों ने जौहर कर आत्मदाह कर लिया। अकबर ने यह युद्ध हाथियों कि दिवार के पीछे खड़े होकर जीता था। राजपूत चाहते तो आत्मसमर्पण कर देते मगर उनका लक्ष्य शहिद होकर सदा के लिए अमर होना था। युद्ध के इस परिणाम से महान आर्य रक्त की बड़ी हानि हुई।
यह हानि होने से बच सकती थी अगर राजपूतों की भोगवादी प्रवृति न होती। राजपूतों में न एकता थी और न ही दूरदृष्टी थी। अगर होती तो मान सिंह जैसे राजपूत अपनी सेनाओं के साथ अपने ही भाइयों से न लड़ते और अकबर के साम्राज्य की नीवों को मजबूत करने में जीवन भर प्रयत्न न करते। अगर होती तो उदय सिंह अपना ही राज्य छोड़कर जाने से अधिक लड़ते लड़ते मर जाना अधिक श्रेयकर समझता। शराब, अफीम एवं अनेक स्त्रियों के संग ने राजपूतों के गर्म लहू को यहाँ तक जमा दिया था कि बात बात पर मूछों को तांव देने वाले राजपूत अपनी बहन और बेटियों को मुग़लों के हरम में भेजने में भी परहेज नहीं कर रहे थे।

स्वामी दयानंद का चिंतन इसी दुर्दशा का ईशारा कर रहा था कि जहाँ पर भोग होगा, प्राचीन धार्मिक सिद्धांतों का अपमान होगा, ब्रह्मचर्य का अभाव होगा वहां पर नाश निश्चित हैं। इसीलिए चित्तोड़ के दुर्ग को देखकर सन 1567 में हुए विनाश का कारण स्वामी जी के मुख से निकला।आज हिन्दू समाज को अगर अपनी रक्षा करनी हैं तो उसे वेद विदित आर्य सिद्धातों का अपने जीवन में पालन अनिवार्य बनाना होगा अन्यता इतिहास अपने आपको दोहराने से पीछे नहीं हटेगा।
SOURCE-
डॉ विवेक आर्य

CHRISTIAN TERRORISM IN GOA

WOMAN WARRIORS QUEEN PRAMILA

 WOMAN WARRIORS QUEEN PRAMILA!!!
STATUS OF WOMEN IN ANCIENT BHARATVARSH
In Hindu Vedic society : The women occupied a very important position, in the ancient Bharat Varse,In fact far superior position to the men of the that time. "Shakti" a feminine term means "power" and "strength".
APPROX 3100BCE .... It is said that Goddess Parvati had cursed the land to be such that the women folk remain devoid of male partners, which was then decreed to be freed of the curse only when Arjun would arrive in pursuit of the sacred horse of the Aswamedha yagya /
STORY OF PRAMEELA : Prameela, a woman-queen of unparalleled beauty, valour, wisdom and spirituality, a misogamist who ultimately weds Arjuna (Pandava hero). She is said to have ruled the region that is now Kerala (then Seemanthini Nagara) which sort of explains the matrilineal society still prevalent in Kerala.
The story begins where Dharmaraja (post-Mahabharata victory) is advised to hold ‘Ashwamedha Yagna’ (horse sacrifice) to re-establish the Pandava sovereignity. A white handsome horse is let loose across all the kingdoms and whoever holds the horse captive is considered to question the supremacy of the Pandava king and would therefore have to battle the king or his representative who is accompanying the horse.
Queen Prameela does exactly this. Meanwhile, Arjuna’s ego, which had taken a beating at the Mahabharata war front with Krishna’s Gitopadesha (sermon), re-surfaces, questioning the need for Krishna’s presence in accompanying a mere horse! Kamala Kumari was able to explicitly bring out the human tendency to bloat with self-conceit at victory and challenge the Divine (Krishna) due to one’s own egoistic blindness. The ban on entry of any male into Prameela’s kingdom confounds Arjuna who is forced to humble himself and seek Krsishna’s intervention time and again till he wins the queen’s hand.
This echoes Devi-Mahatmiyam prayer:
By you this universe is borne, by you this world is created; By you it is protected, By you it is consumed at the end, O Devi! You are the Supreme Knowledge, as well as intellect and contemplation...
Women were held in higher respect in India than in other ancient countries, and the Epics and old literature of India assign a higher position to them than the epics and literature of other religions. Hindu women enjoyed rights of property from the Vedic Age, took a share in social and religious rites, and were sometimes distinguished by their learning. There was no seclusion of women in India in ancient times.
SOURCE-INDIAN HISTORY REAL TRUTH

AGARSEN KI BAOLI IN DELHI

AGARSEN KI BAOLI IN DELHI
Agrasen ki Baoli (also known as Agar Sain ki Baoli or Ugrasen ki Baoli), is a 60-meter long and 15-meter wide historical step well on Hailey Road near Connaught Place, a short walk from Jantar Mantar in New Delhi, India.Although there are no known historical records to prove who built Agrasen ki Baoli, it is believed that it was originally built by the legendary king Agrasen during the Mahabharat epic era and rebuilt in the 14th century by the Agrawal community which traces its origin to Maharaja Agrasen.
Baoli or bawdi, also referred to as baori or bauri, is a Hindi word (from Sanskrit wapi or vapi, vapika).In Rajasthan and Gujarat the words for step well include baoli, bavadi, vav, vavdi and vavadi.
Water temples and temple step wells were built in ancient India and the earliest forms of step well and reservoir were also built in India in places like Dholavira as far back as the Indus Valley Civilisation.
Regarding the name Agrasen Ki Baoli it should be stated that in 1132 AD an Agrawal poet named Vibudh Shridhar mentions, in his work Pasanahacariu, a wealthy and influential Agrawal merchant of Dhilli named Nattal Sahu who was also a minister in the court of King Anang Pal III. Rebuilding the old Agrasen Ki Baoli would have been within the means of a well established and wealthy Agrawal community during the 14th century
SOURCE- INDIAN HISTORY- REAL TRUTH

AKBAR AND ITS COWARDNESS OF RAPE AND CONVERSION OF HINDUS

मुगल- अकबर की महानता के लक्षण --------------!
आधुनिक भारत के बामपंथी इतिहासकार यह लिखते नहीं थकते कि अकबर महान था जबकि उसकी महानता का कोई लक्षण उसमे दिखाई नहीं देता, अकबर भारतीय शासक न होकर बिदेशी आक्रमणकारी था वह मुग़ल था उसने भारत की सबसे ताकतवर जाती जो भारत की सुरक्षा, सत्ता जिस कुल में चक्रवर्तियों का समूह रहा हो उस क्षत्रिय जाती की लड़कियों को बेगम बनाकर क्षत्रियों का अपमान यानी भारत का अपमान ही किया वह राजपूत राजाओं को मनसबदारी दे अपने दरबार में दरबारी बनाना उनकी लड़कियों को अपने हरम में रख उन्हें बार- बार अपमानित करना सभी का इस्लामी करण कर निकाह करना सभी हिन्दू नारियों का घुट- घुट कर मरने के अतिरिक्त कोई रास्ता नहीं था क्या यही उसकी महानता का लक्षण था -?
बामपंथी इतिहासकारों की दुनिया १५० वर्ष या १३०० वर्ष से अधिक २००० वर्ष तक ही जाती है उन्हें हिन्दू वांगमय, वैदिक वांगमय अथवा महाभारत, रामायण इतिहास दिखाई नहीं देता वे हमारी मान्यताओं की धज्जी उड़ाकर इसे इतिहास मानने को तैयार नहीं ''जैसे यदि मुर्गा वाग नहीं दे तो सुबह नहीं होगी'' ! इनके लिखने से कुछ नहीं होता उन्हें पता नहीं कि श्रुती यानी वेद लाखों वर्ष श्रुती के आधार पर सुरक्षित रहा भारत में उनकी कोई जगह नहीं, मुग़ल आक्रमणकारी थे यह सिद्ध हो चुका है भारतीय राजाओं ने लगातार संघर्ष कर मुगल (परकीय) सत्ता समाप्त करने का संकल्प लिया था, केवल कुछ चापलूस ही अकबर को शहंशाहे हिन्द कहते थे क्योंकि अकबर की सत्ता तो स्थिर थी नहीं, राजपूताना ने मुगलों को कभी स्वीकार नहीं किया यहाँ तककि राजा मान सिंह को अपना आवास आगरा में बनाना पड़ा वे राजस्थान में मुह दिखाने के लायक नहीं थे वे उसी प्रकार थे कि जैसे एक नककटे ब्यक्ति ने संप्रदाय चला पूरे राज्य के लोगो की नाक कटवा दी उसी प्रकार मानसिंह ने अपनी बेटी तो दी ही साथ में जागीर की लालच में बहुत से राजपूतों की राज कुमारियों को भी तुर्क हरम में पहुचायीं सभी एक से हो गए इस कारण कोई भी राणाप्रताप के सामने ठहर नहीं सकता था, गुजरात, मालवा, मराठा, बिहार, बंगाल असम तथा दक्षिण का कोई प्रदेश मुगलों के कब्जे में नहीं रहा फिर काहेका शहंशाहे हिन्द ! महाराणा प्रताप के स्वदेश, स्वधर्म संघर्ष ने उन्हे महान बना दिया प्रत्येक भारतीय उनके चित्र अपने घर मे लगा अपने को धन्य मानता है क्या कोई अकबर का भी चित्र लगता है! महान तो एक ही हो सकता है महाराणा अथवा अकबर---!

अकबर के पास कोई महानता का लक्षण नहीं था अकबर के हरम मे 500 बीवियाँ थीं इस्लाम मे कौन कितना वीवी रखता है उसी मे मुक़ाबला होता है अकबर की यही महानता थी, चित्तौण हमले के समय महारानी जयमल मेतावड़िया के साथ १२ हज़ार क्षत्राणियों का जौहर हुआ था क्या यही थी मु. जलालुद्दीन अकबर की महानता-? वह मीना बाज़ार लगवाता था जिसमे स्वयं महिला वेश मे जाता था जिसमे हिन्दू लडिकियाँ बेची-खरीदी जाती थी, उसने सभी क्षत्रिय राजकुमारियों से ही विवाह किया न कि किसी मुगल शाहजादी का विवाह किसी क्षत्रिय कुमार के साथ किया, मंत्रिमंडल के सभी सदस्यों राजा टोडरमल, पं तानसेन, बीरबल सभी को इस्लाम स्वीकार करवाया केवल मानसिंह ही बचा था, मुगल दरबार तुर्की, ईरानी शक्ल ले चुका था भारतीयता का कहीं नाम नहीं था, वह भारत मे लुटेरा था हमलावर था जोधाबाई तड़पती रहती थी, मुगलों की हुकूमत है उसका ईमान इस्लाम है जोधाबाई ने अपनी कोख से सलीम को पैदा किया लेकिन सलीम ने कभी भी जोधा को अपनी माँ नहीं स्वीकार किया उसकी शिक्षा -दीक्षा भारतीयता बिरोधी हुई उसी जोधाबाई की कोख द्वारा गुरु अर्जुनदेव का बधिक पैदा हुआ।
मेवाड़ के हजारों निहत्थे किसानों की हत्या यही उसकी महानता ! मेवाड़ के बिरोध मे आमेर, बीकानेर इत्यादि को राजा की उपाधि देकर राणा के समानान्तर खड़ा करने का असफल प्रयास किया क्योंकि ये कोई राजा नहीं थे ये तो मेवाण राणा सांगा के रिआया यानी जागीरदार थे, राजपूतों को मांसाहार और ऐयासी की आदत डाली, मानसिंह जब मेवाण पर हमला किया तो अकबर ने कहा की कोई भी मारे दोनों तरफ हिन्दू ही हैं मानसिंह के पराजय के पश्चात कभी भी उसने महाराणा पर हमला के लिए नहीं भेजा हमेसा मुस्लिम सेनापतियों को ही भेजा, अकबर हिन्दू संतों का अपमान करने हेतु अपने दरबार मे बुलाता कुम्हन दास और संत तुलसीदास इसके प्रत्यक्ष उदाहरण हैं विनय पत्रिका मे प्रकारांतर से वर्णन किया है, उसका मानसिंह के संत तुलसीदास से मिलने के पश्चात मान सिंह से विस्वास उठ गया था उसने मानसिंह को दूध मे जहर दिया लेकिन गिलाश बदल गया और जहर अकबर पी गया उसी से उसकी मृत्यु हो गयी।
अकबर न तो महान था न ही शहंसाहे हिन्द वह भारत के छोटे से हिस्से मे ही संघर्ष करता हुआ आत्म हत्या को मजबूर हुआ----!

RAPIST AND BLOOD THIRSTY AJMER'S MOINUDDIN CHISTI

महमूद ग़ज़नवी ने वर्ष १००१-१०१८ लगभग २० लाख हिन्दुओ का क़त्ल इस्लाम नहीं कबूल करने पर किया था।
१००१ में हिन्दुओ के महान राजा जयपाल के हारने के वाद उनकी वहु वेटिओ का वलात्कार उन्ही के सामने सरे आम किया था।
थानेसर के युद्ध में हिन्दुओ का रक्त ऐसे प्रवाहित हो रहा था जैसे वरसात का पानी।
सोमनाथ अकेले ५०००० हिन्दुओ का क़त्ल करते हुए शिवलिंग को टुकड़े टुकड़े करते हुए अफगानिस्तान के मस्जिद के पायदान पर लगा दिया था।
मथुरा में वर्ष १०१७ में सभी के सभी कृश्ण भगवन राधा आदि की मुर्तिओ को भट्टी में गलाते हुए लगभग २० टन सोना अपने देश ले गया था. चंगेज खान , मोहमद गोरी ,अकबर , ओरंगजेब जैसे लूटेरे और वालात्करिओ के किस्से  
REF- OJASWI HINDUSTAN

Tuesday, December 23, 2014

sengar rajput clan/dynasty सेंगर राजपूत वंश

सेंगर राजपूत वंश(sengar rajput clan/dynasty)-----
सेंगर राजपूत वंश को 36 कुली सिंगार या क्षत्रियों के 36 कुल का आभूषण भी कहा जाता है, यह बंश न कवल
वीरता एवं जुझारूपन के लिए बल्कि सभ्यता और सुसंस्कार के लिए भी विख्यात है.

सेंगर राजपूतो का गोत्र,कुलदेवी इत्यादि------------
गोत्र-गौतम,प्रवर तीन-गौतम ,वशिष्ठ,ब्रहास्पतय
वेद-यजुर्वेद ,शाखा वाजसनेयी, सूत्र पारस्कर
कुलदेवी -विंध्यवासिनी देवी
नदी-सेंगर नदी
गुरु-विश्वामित्र
ऋषि-श्रृंगी
ध्वजा -लाल
सेंगर राजपूत विजयादशमी को कटार पूजन करते हैं.
सेंगर राजपूत वंश की उत्पत्ति(origin of sengar rajput)
इस क्षत्रिय वंश की उत्पत्ति के विषय में कई मत
प्रचलित हैं,

1- ठाकुर ईश्वर सिंह मडाड द्वारा रचित राजपूत वंशावली के प्रष्ठ संख्या 168,169 के अनुसार"इस वंश की उत्पत्ति के विषय में ब्रह्म पुराण में वर्णन आता है.चन्द्रवंशी राजा महामना के दुसरे पुत्र तितुक्षू ने पूर्वी भारत में अपना राज्य स्थापित किय,इस्नके वंशज प्रतापी राजा बलि हुए,इनके अंग,बंग,कलिंग आदि 5 पुत्र हुए जो बालेय कहलाते थे, राजा अंग ने अपने नाम से अंग देश बसाया,इनके वंशज दधिवाहन, दिविरथ,धर्मरथ, दशरथ(लोमपाद),कर्ण विकर्ण आदि हुए. विकर्ण के सौ पुत्र हुए जिन्होंने अपने राज्य का विस्तार गंगा यमुना के दक्षिण से लेकर चम्बल नदी तक किया.अंग देश के बाद इस वंश के नरेशो नेचेदी प्रदेश(डाहल प्रदेश), राढ़(कर्ण सुवर्ण),आंध्र प्रदेश (आंध्र नाम के शातकर्णी राजा ने स्थापित किया,इस
वंश के प्रतापी राजा गौतमी पुत्र शातकर्णी थे),सौराष्ट्र,मालवा,आदि राज्य स्थापित किए, राड प्रदेश(वर्दमान)के सेंगर वंशी राजा सिंह के पुत्र सिंहबाहु हुए,उनके पुत्र विजय ने सन 543 ईस्वी में समुद्र मार्ग से जाकर लंका विजय की और अपने पिता के
नाम पर वहां सिंहल राज्य स्थापित किया.सिंहल ही बाद में सीलोन कहा जाने लगा. विकर्ण के सौ पुत्र होने के कारण ही ये
शातकर्णी कहलाते थे,शातकर्णी से ही धीरे धीरे ये सेंगरी,सिंगर,सेंगर कहलाने लगे.इस मत के अनुसार सेंगर चन्द्रवंशी क्षत्रिय हैं.यह बहुत ठोस तर्क है इस वंश की उत्पत्ति का,अब बाकि मत पर नजर डालते हैं, 
2-एक अन्य मत के अनुसार भगवान श्रीराम के पिता राजा दशरथ ने अपनी पुत्री शांता का विवाह श्रृंगी ऋषि से किया,प्राचीन काल में क्षत्रिय राजा के साथ साथ ज्ञानी ऋषि भी हुआ करते थे,श्रृंगी ऋषि की संतान से ही सेंगर वंश चला.इस मत के
अनुसार यह ऋषि वंश है. 
3-एक अन्य मत के अनुसार श्रृंगी ऋषि का विवाह कन्नौज के गहरवार राजा की पुत्री से हुआ,उसके दो पुत्र हुए,एक ने अर्गल के गौतम वंश की नीव रखी और दुसरे पदम से सेंगर वंश चला,इस मत के अविष्कारक ने लिखा कि 135 पीढ़ियों तक सेंगर वंश पहले सीलोन (लंका) फिर मालवा होते हुए ग्यारहवी सदी में जालौन में कनार में स्थापित हुए. किन्तु यह मत बिलकुल गलत है,क्योंकि पहले तो अर्गल का गौतम वंश,सूर्यवंशी क्षत्रिय गौतम बुध का वंशज है और दूसरी बात कि कन्नौज में गहरवार वंश का शासन ही दसवी सदी के बाद शुरू हुआ तो उससे 135 पीढ़ी पहले वहां के गहरवार राजा की पुत्री से श्रृंगी ऋषि का विवाह होना असम्भव है.
4-एक मत के अनुसार यह वंश 36 कुल सिंगर या क्षत्रियों के 36 कुल का श्रृंगार(आभुषण )भी कहलाता है,इसी से इस वंश का नाम बिगड़कर सेंगर हो गया.5-उपरोक्त सभी मतों को देखते हुए एवं कुछ स्वतंत्र अध्यन्न करने के बाद हमारा स्वयं का अनुमान----------
मत संख्या 1 के अनुसार इस वंश के पुरखों ने पूर्वी भारत में अंग,बंग(बंगाल) आदि राज्यों की स्थापना की थी,इन्ही की शाखा ने आंध्र कर्नाटका क्षेत्र में आन्ध्र शातकर्णी वंश की स्थापना की,इसी वंश में गौतमी पुत्र शातकर्णी जैसा विजेता हुआ,जिसने अपने राज्य की सीमाएं दक्षिण भारत से लेकर उत्तर,पश्चिम भारत,पूर्वी भारत तक फैलाई.उसके बारे में लिखा है कि उसके घोड़ो ने तीन समुद्रों का पानी पिया, गौतमी पुत्र की बंगाल विजय के बाद उसके कुछ वंशगण यहीं रह गये,जो सेन वंशी क्षत्रिय कहलाते थे,सेन वंशी क्षत्रिय को ब्रह्मक्षत्रिय(ऋषिवंश) या कर्नाट क्षत्रिय(दक्षिण आन्ध्र कर्नाटक से आने के कारण) भी कहा जाता था.पश्चिम बंगाल का एक नाम गौर (गौड़)क्षत्रियों के नाम पर गौड़ देश भी था,पाल वंश के बाद बंगाल में सेन वंश का शासन स्थापित हुआ,गौर देश (बंगाल) पर शासन करने के कारण सेन वंशी क्षत्रिय सेनगौर या सेनगर या सेंगर कहलाने लगे.
(बंगाल में आज भी सिंगूर नाम की प्रसिद्ध जगह है).कालान्तर में इस वंश के जो शासक चेदी प्रदेश,मालवा,जालौन,कनार आदि स्थानों पर शासन कर रहे थे वो भी सेंगर वंश के नाम से विख्यात हुए, इस प्रकार हमारे मत के अनुसार यह वंश चंद्रवंशी है और इस वंश के शासको के विद्वान और ब्रह्मज्ञानी होने के कारण इसे ब्रह्म क्षत्रिय(ऋषि वंशी) भी कहा जाता है,
श्रीलंका में सिंहल वंश की स्थापना भी सन 543 ईस्वी में सेंगर वंशी क्षत्रियों ने की थी,चित्तौड के राणा रत्न सिंह की प्रसिद्ध रानी पदमिनी सिंहल दीप की राजकुमारी थी जो संभवत इसी वंश की थी, आंध्र सातवाहन शातकर्णी वंश के गौतमी पुत्र
शातकर्णी भी इसी वंश के थे जिन्होने पुरे भारत पर अपना आधिपत्य जमाया.
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सेंगर वंशी क्षत्रियों के राज्य(states established and ruled by sengar rajputs)
प्राचीन काल में सेंगर क्षत्रियों का शासन अंग, बंग,आंध्र,राढ़, सिंहल दीप आदि पर रहा है,अब हम मध्य काल में सेंगर क्षत्रियों के राज्यों पर जानकारी देंगे.
1-चेदी अथवा डाहल प्रदेश--------
सेंगर क्षत्रियों का सबसे स्थाई और बड़ा शासन चेदी प्रदेश पर रहा है,यहाँ का सेंगर वंशी राजा डाहल देव था जो महात्मा बुद्ध के समकालीन थे,इन्ही डहरिया या डाहलिया कहलाते हैं जो सेंगर वंश की शाखा हैं,बाद में इनके प्रदेश पर चंदेल व
कलचुरी वंशो ने अधिकार कर लिया,
2--कर्णवती--------------
जब सेंगर राज्य बहुत छोटा रह गया तो राजा कर्णदेव सेंगर ने यह राज्य अपने पुत्र वनमाली देव को देकर यमुना और  र्मन्व्ती के संगम पर कर्णवती राज्य स्थापित किया आजकल यह क्षेत्र रीवा राज्य के अंतर्गत आता है. 
3-कनार राज्य ----------
जालौन में राजा विसुख देव ने कनार राज्य स्थापित किया,उनका विवाह कन्नौज के गहरवार राजा की पुत्री देवकाली से हुआ.जिसके नाम पर उन्होंने देवकली नगर बसाया,उन्होंने बसीन्द नदी का नाम बदलकर अपने वंश के नाम पर सेंगर नदी रख दियाजो आज भी मैनपुरी,इटावा,कानपुर जिले से हो कर बह रही है.बिसुख देव के वंशधर जगमनशाह ने बाबर का सामना किया था,कनार राज्य नष्ट होने पर जगमनशाह ने जालौन में ही जगमनपुर राज्य की नीव रखी,आज भी इस वंश के राजपूत
जगमनपुर,कनार के आस पास 57 गाँवो में रहते हैं और कनारधनी कहलाते हैं,
सेंगर राजपूतो के अन्य राज्य --------
सेंगर वंश का शासन मालवा की सिरोज राज्य पर भी रहा है,सेंगर वंश के रेलिचंद्र्देव ने इटावा में भरेह राज्य स्थापित किया,
13 वी सदी में इस वंश के फफूंद के कुछ सेंगर राजपूतो ने बलिया जिले के लाखेनसर में राज्य स्थापित किया जो 18 वी सदी तक चला,लाखेनसर के सेंगर राजपूतो ने बनारस के भूमिहार राजा बलवंत सिंह और अंग्रेजो का डटकर सामना किया,
इस वंश की रियासते एवं ठिकानो में जगमनपुर (जालौन),भरेह(इटावा),रुरु और भीखरा के राजा,नकौता के राव एवं कुर्सी के रावत प्रसिद्ध हैं.
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सेंगर वंश की शाखाएँ एवं वर्तमान निवास स्थान
(branches of sengar rajputs)
सेंगर राजपूतो की प्रमुख शाखाएँ चुटू,कदम्ब,बरहि या(बिहार,बंगाल,असम आदि में),डाहलिया,दाहारिया आदि हैं.
सेंगर राजपूत आज बड़ी संख्या में मध्य प्रदेश,यूपी के जालौन, अलीगढ, फतेहपुर,कानपूर वाराणसी,बलिया,इ
टावा,मैनपुरी,बिहार के छपरा,पूर्णिया आदि जिलो में मिलते हैं.तथा राजनीति,शिक्षा,नौकरी,कृषि,व्यापार के
मामले में इनका अपने इलाको में बहुत वर्चस्व है.
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sources--------
1-ब्रह्मपुराण
2-राजपूत वंशावली ठाकुर ईश्वर सिंह मडाड प्रष्ठ
संख्या 168 से 170
3-annals and antiques of rajputana by col james
tod
4- https://www.google.co.in/url …
5- https://www.google.co.in/url …
6- https://www.google.co.in/url …
note-प्रस्तुत पोस्ट में सेंगर राजपूत वंश की उत्पत्ति पर विभिन्न मत के परिक्षण के उपरांत हमने अपना अलग से
मत दिया है,किन्तु यह बाध्यकारी नहीं है,हो सकता