Sunday, December 28, 2014

MATHURA - VRNDAVANA THE DESECRATED TEMPLE OF KRISHNA

MATHURA - VRNDAVANA THE DESECRATED TEMPLE OF KRISHNA
The original holy well – Gyanvapi in between temple and mosque.
Aurangzeb's reign is more cited—or more controversial—than the numerous desecration and even the destruction of Hindu temples. During his reign, tens of thousands of temples were desecrated: their facades and interiors were defaced and their murtis (divine images) looted.In many cases, temples were destroyed entirely; in numerous instances mosques were built on their foundations, sometimes using the same stones. Among the temples Aurangzeb destroyed were two that are most sacred to Hindus, in Varanasi and Mathura.In both cases, he had large mosques built on the sites.
The Kesava Deo temple in Mathura, marked the place that Hindus believe was the birthplace of Shri Krishna.In 1661 Aurangzeb ordered the demolition of the temple, and constructed the Katra Masjid mosque. Traces of the ancient Hindu temple can be seen from the back of the mosque. Aurangzeb also destroyed what was the most famous temple in Varanasi – the Vishwanath Temple

Bhojeswar temple at bhopal.

Bhojeswar temple at bhopal, Madhya Pradesh-
It was destroyed twice by muslims and rebult. 
यहाँ है एक ही पत्थर से निर्मित विशव का सबसे बड़ा शिवलिंग (World's tallest shivlinga made by one rock)

भोजपुर (Bhojpur), मध्य प्रदेश कि राजधानी भोपाल से 32 किलो मीटर दूर स्तिथ है। भोजपुर से लगती हुई पहाड़ी प
र एक विशाल, अधूरा शिव मंदिर हैं। यह भोजपुर शिव मंदिर (Bhojpur Shiv Temple) या भोजेश्वर मंदिर (Bhojeshwar Temple) के नाम से प्रसिद्ध हैं। भोजपुर तथा इस शिव मंदिर का निर्माण परमार वंश के प्रसिद्ध राजा भोज (1010 ई - 1055 ई ) द्वारा किया गया था। इस मंदिर कि अपनी कई विशेषताएं हैं।

इस मंदिर कि पहली विशेषता इसका विशाल शिवलिंग हैं जो कि विशव का एक ही पत्थर से निर्मित सबसे बड़ा शिवलिंग (World's Tallest Shiv Linga) हैं। सम्पूर्ण शिवलिंग कि लम्बाई 5.5 मीटर (18 फीट ), व्यास 2.3 मीटर (7.5 फीट ), तथा केवल लिंग कि लम्बाई 3.85 मीटर (12 फीट ) है।


1,300-year-old fortress-like structure on Siberian lake

1,300-year-old fortress-like structure on Siberian lake

1,300-year-old fortress-like structure on Siberian lake -

The archaeological site is known as Por Bajin (also spelt Por-Bazhyn), meaning ‘clay house’. It is located on an island in the middle of Tere-Khol Lake in Tuva, Siberia, just 20 miles (32 km) from the Mongolian border.  First explored in 1891, the site was not excavated until 1957-1963. However, it was not until 2007-2008 that the first large-scale research was undertaken, carried out by the Por Bajin Cultural Foundation.'DETAIL HERE- CLICK



Mount Popa Monastery

Mount Popa Monastery

Mount Popa Monastery and the Mythology of the Thirty-Seven Spirit GuardiansBurma possesses a colorful past and a rich heritage.  One of the most awe-inspiring examples of this is the spectacular Buddhist monastery of Taung Kalat.
A Buddhist monastery is built right on top of Taung Kalat, and offers a panoramic view of the surrounding area to travellers who brave the flight of 777 steps to the summit of the volcano. Far from being merely a tourist attraction, the monastery is also a pilgrimage site. It is believed that the nearby Taung Ma-gyi is inhabited by the Great Nats.
http://www.ancient-origins.net/ancient-places-asia/mount-popa-monastery-and-mythology-thirty-seven-spirit-guardians-002350

Celebrities with Strange Deformities


KESHA WAS BORN WITH 2 INCHES VESTIGIAL TAIL, WAS CHOPPED OFF LATER.

Keha-Copy






















MILA KUNIS ,BOMBSHELL WAS BORN WITH TWO DIFF COLOR EYES-

Mila-Kunis-Copy

ASKTON KUTCHER WAS BORN WITH WEBBED TOES.
Ashton-Kutcher-Copy

KAROLINA KURKOVA- WITHOUT BELLY BUTTON AFTER SURGERY WHEN SHE WAS BORN-
karolina-kurkova

ANDY GARCIA ,OCEAN 12 STAR, WAS BORN WITH UNFORMED FETUS ATTACHED TO HIS SHOULDER, REMOVED LATER IN  ADOLESCENCE.
Andy-Garcia-Copy

LILLY ALLEN BORN WITH THREE NIPPLES-

1.-Lily-Allen



SANATAN VEDIC SCIENCE OF DHARMA &BHARAT

बुद्ध से पहल कोई बुद्धिस्ट नहीं था ।
जीसस से पहले कोई ईसाई नहीं था ।
मुहम्मद से पहले कोई मुसलमान नहीं था ।
महावीर से पहले कोई जैनी नहीं था ।
नानक से पहले कोई सिक्ख नहीं था ।
लेकिन
कृष्ण से पहले ,
राम से पहले ,
हरिशचन्द्र से पहले,
वशिष्ट से पहले,
गौतम, कपिल, कणाद,भरद्वाज, विश्वामित्र,अत्री, द्रोण आदि से भी पहले
सब सनातन वैदिक धर्मी थे |
क्योंकि धर्म किसी व्यक्ति विशेष के द्वारा आरम्भ नहीं होता वो तो ईश्वर के द्वारा सीधा ही वेद के द्वारा मानव मात्र को समान रूप से संविधान दिया गया है ।
व्यक्ति विशेष के द्वारा तो केवल मत, पंथ,सम्प्रदाय, मज़हब,रिलिजन आदि चला करते हैं ।
इसलिये अपने सनातनी हिन्दू होने पर गर्व करें.


Thursday, December 25, 2014

THE VINCI CODE

 The Vinci code को भारत में क्यों बैन कर दिया गया?
क्या कोई बता सकता है की ओशो रजनीश ने ऐसा क्या कह दिया था जिससे उदारवादी कहे जाने वाले और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को ढिंढोरा पीटने वाला अमेरिका रातों-रात उनका दुश्मन हो गया था और उनको जेल में डालकर यातनायें दी गयी और जेल में उनको थैलियम नामक धीमा जहर दिया गया जिससे उनकी बाद में मृत्यु हो गयी?
क्यों वैटिकन का पोप बेनेडिक्ट उनका दुश्मन हो गया और पोप ने उनको जेल में प्रताड़ित किया??
दरअसल इस सब के पीछे ईसाइयत का वो बड़ा झूठ है जिसके खुलते ही पूरी ईसाईयत भरभरा के गिर जायेगी। और वो झूठ है प्रभु इसा मसीह के 13 वर्ष से 30 वर्ष के बीच के गायब 17 वर्षों का
आखिर क्यों इसा मसीह की कथित रचना बाइबिल में उनके जीवन के इन 17 वर्षों का कोई ब्यौरा नहीं है?
ईसाई मान्यता के अनुसार सूली पर लटका कर मार दिए जाने के बाद इसा मसीह फिर जिन्दा हो गया था। तो अगर जिन्दा हो गए थे तो वो फिर कहाँ गए इसका भी कोई अता-पता बाइबिल में नहीं है। ओशो ने अपने प्रवचन में ईसा के इसी अज्ञात जीवनकाल के बारे में विस्तार से बताया था। जिसके बाद उनको ना सिर्फ अमेरिका से प्रताड़ित करके निकाला गया बल्कि पोप ने अपने प्रभाव का इस्तेमाल करके उनको 21 अन्य ईसाई देशों में शरण देने से मना कर दिया गया।
असल में ईसाईयत/Christianity की ईसा से कोई लेना देना नहीं है।
अविवाहित माँ की औलाद होने के कारण बालक ईसा समाज में अपमानित और प्रताडित करे गए जिसके कारण वे 13 वर्ष की उम्र में ही भारत आ गए थे। यहाँ उन्होंने हिन्दू, बौद्ध और जैन धर्म के प्रभाव में शिक्षा दीक्षा ली। एक गाल पर थप्पड़ मारने पर दूसरा गाल आगे करने का सिद्धान्त सिर्फ भारतीय धर्मो में ही है, ईसा के मूल धर्म यहूदी धर्म में तो आँख के बदले आँख और हाथ के बदले हाथ का सिद्धान्त था।
भारत से धर्म और योग की शिक्षा दीक्षा लेकर ईसा प्रेम और भाईचारे के सन्देश के साथ वापिस जूडिया पहुँचे। इस बीच रास्ते में उनके प्रवचन सुनकर उनके अनुयायी भी बहुत हो चुके थे। इस बीच प्रभु ईसा के 2 निकटतम अनुयायी Peter और Christopher थे। इनमें Peter उनका सच्चा अनुयायी था जबकि Christopher धूर्त और लालची था।जब ईसा ने जूडिया पहुंचकर अधिसंख्य यहूदियों के बीच अपने अहिंसा और भाईचारे के सिद्धान्त दिए तो अधिकाधिक यहूदी लोग उनके अनुयायी बनने लगे। जिससे यहूदियों को अपने धर्म पर खतरा मंडराता हुआ नजर आया तो उन्होंने रोम के राजा Pontius Pilatus पर दबाव बनाकर उसको ईसा को सूली पर चढाने के लिए विवश किया गया। इसमें Christopher ने यहूदियों के साथ मिलकर ईसा को मरवाने का पूरा षड़यंत्र रचा। हालाँकि राजा Pontius को ईसा से कोई बैर नहीं था और वो मूर्तिपूजक Pagan धर्म जो ईसाईयत और यहूदी धर्म से पहले उस क्षेत्र में काफी प्रचलित था और हिन्दू धर्म से अत्यधिक समानता वाला धर्म है का अनुयायी था।
राजा अगर ईसा को सूली पर न चढाता तो अधिसंख्य यहूदी उसके विरोधी हो जाते और सूली पर चढाने पर वो एक निर्दोष व्यक्ति की हत्या के दोष में ग्लानि अनुभव् करता तो उसने Peter और ईसा के कुछ अन्य विश्वस्त भक्तों के साथ मिलकर एक गुप्त योजना बनाई। अब पहले मैं आपको यहूदियों की सूली के बारे में बता दूँ। ये विश्व का सजा देने का सबसे क्रूरतम और जघन्यतम तरीका है। इसमें व्यक्ति के शरीर में अनेक कीले ठोंक दी जाती हैं जिनके कारण व्यक्ति धीरे धीरे मरता है। एक स्वस्थ व्यक्ति को सूली पर लटकाने के बाद मरने में 48 घंटे तक का समय लग जाता है और कुछ मामलो में तो 6 दिन तक भी लगे हैं। तो गुप्त योजना के अनुसार ईसा को सूली पर चढाने में जानबूझकर देरी की गयी और उनको शुक्रवार को दोपहर में सूली पर चढ़ाया गया। और शनिवार का दिन यहूदियों के लिए शब्बत का दिन होता हैं इस दिन वे कोई काम नहीं करते। शाम होते ही ईसा को सूली से उतारकर गुफा में रखा गया ताकि शब्बत के बाद उनको दोबारा सूली पर चढ़ाया जा सके। उनके शरीर को जिस गुफा में रखा गया था उसके पहरेदार भी Pagan ही रखे गए थे। रात को राजा के गुप्त आदेश के अनुसार पहरेदारों ने Peter और उसके सथियों को घायल ईसा को चोरी करके ले जाने दिया गया और बात फैलाई गयी की इसा का शरीर गायब हो गया और जब वो गायब हुआ तो पहरेदारों को अपने आप नींद आ गयी थी। इसके बाद कुछ लोगों ने पुनर्जन्म लिये हुए ईसा को भागते हुए भी देखा।
असल में तब जीसस अपनी माँ Marry Magladin और अपने खास अनुयायियों के साथ भागकर वापिस भारत आ गए थे। इसके बाद जब ईसा के पुनर्जन्म और चमत्कारों के सच्चे झूठे किस्से जनता में लोकप्रिय होने लगे और यहदियों को अपने द्वारा उस चमत्कारी पुरुष/ देव पुरुष को सूली पर चढाने के ऊपर ग्लानि होने लगी और एक बड़े वर्ग का अपने यहूदी धर्म से मोह भंग होने लगा तो इस बढ़ते असंतोष को नियंत्रित करने का कार्य इसा के ही शिष्य Christopher को सौंपा गया क्योंकि Christopher ने ईसा के सब प्रवचन सुन रखे थे। तो यहूदी धर्म गुरुओं और christopher ने मिलकर यहूदी धर्म ग्रन्थ Old Testament और ईसा के प्रवचनों को मिलकर एक नए ग्रन्थ New Testament अर्थात Bible की रचना की और उसी के अधार पर एक ऐसे नए धर्म ईसाईयत अथवा Christianity की रचना करी गयी जो यहूदियों के नियंत्रण में था। इसका नामकरण भी ईसा की बजाये Christopher के नाम पर किया गया।
ईसा के इसके बाद के जीवन के ऊपर खुलासा जर्मन विद्वान् Holger Christen ने अपनी पुस्तक Jesus Lived In India में किया है। Christen ने अपनी पुस्तक में रुसी विद्वान Nicolai Notovich की भारत यात्रा का वर्णन करते हुए बताया है कि निकोलाई 1887 में भारत भ्रमण पर आये थे। जब वे जोजिला दर्र्रा पर घुमने गए तो वहां वो एक बोद्ध मोनास्ट्री में रुके, जहाँ पर उनको Issa नमक बोधिसत्तव संत के बारे में बताया गया। जब निकोलाई ने Issa की शिक्षाओं, जीवन और अन्य जानकारियों के बारे में सुना तो वे हैरान रह गए क्योंकि उनकी सब बातें जीसस/ईसा से मिलती थी। इसके बाद निकोलाई ने इस सम्बन्ध में और गहन शोध करने का निर्णय लिया और वो कश्मीर पहुंचे जहाँ जीसस की कब्र होने की बातें सामने आती रही थी। निकोलाई की शोध के अनुसार सूली पर से बचकर भागने के बाद जीसस Turkey, Persia(Iran) और पश्चिमी यूरोप, संभवतया इंग्लैंड से होते हुए 16 वर्ष में भारत पहुंचे। जहाँ पहुँचने के बाद उनकी माँ marry का निधन हो गया था। जीसस यहाँ अपने शिष्यों के साथ चरवाहे का जीवन व्यतीत करते हुए 112 वर्ष की उम्र तक जिए और फिर मृत्यु के पश्चात् उनको कश्मीर के पहलगाम में दफना दिया गया। पहलगाम का अर्थ ही गड़रियों का गाँव हैं। और ये अद्भुत संयोग ही है कि यहूदियों के महानतम पैगम्बर हजरत मूसा ने भी अपना जीवन त्यागने के लिए भारत को ही चुना था और उनकी कब्र भी पहलगाम में जीसस की कब्र के साथ ही है। संभवतया जीसस ने ये स्थान इसीलिए चुना होगा क्योंकि वे हजरत मूसा की कब्र के पास दफ़न होना चाहते थे। हालाँकि इन कब्रों पर मुस्लिम भी अपना दावा ठोंकते हैं और कश्मीर सरकार ने इन कब्रों को मुस्लिम कब्रें घोषित कर दिया है और किसी भी गैरमुस्लिम को वहां जाने की इजाजत अब नहीं है। लेकिन इन कब्रों की देखभाल पीढ़ियों दर पीढ़ियों से एक यहूदी परिवार ही करता आ रहा है। इन कब्रों के मुस्लिम कब्रें न होने के पुख्ता प्रमाण हैं। सभी मुस्लिम कब्रें मक्का और मदीना की तरफ सर करके बनायीं जाती हैं जबकि इन कब्रों के साथ ऐसा नहीं है। इन कब्रों पर हिब्रू भाषा में Moses और Joshua भी लिखा हुआ है जो कि हिब्रू भाषा में क्रमश मूसा और जीसस के नाम हैं और हिब्रू भाषा यहूदियों की भाषा थी। अगर ये मुस्लिम कब्र होती तो इन पर उर्दू या अरबी या फारसी भाषा में नाम लिखे होते।
सूली पर से भागने के बाद ईसा का प्रथम वर्णन तुर्की में मिलता है। पारसी विद्वान् F Muhammad ने अपनी पुस्तक Jami- Ut- Tuwarik में लिखा है कि Nisibi(Todays Nusaybin in Turky) के राजा ने जीसस को शाही आमंत्रण पर अपने राज्य में बुलाया था। इसके आलावा तुर्की और पर्शिया की प्राचीन कहानियों में Yuj Asaf नाम के एक संत का जिक्र मिलता है। जिसकी शिक्षाएं और जीवन की कहनियाँ ईसा से मिलती हैं। यहाँ आप सब को एक बात का ध्यान दिला दू की इस्लामिक नाम और देशों के नाम पढ़कर भ्रमित न हो क्योंकि ये बात इस्लाम के अस्तित्व में आने से लगभग 600 साल पहले की हैं। यहाँ आपको ये बताना भी महत्वपूर्ण है कि कुछ विद्वानों के अनुसार ईसाइयत से पहले Alexendria तक सनातन और बौध धर्म का प्रसार था। इसके आलावा कुछ प्रमाण ईसाई ग्रंथ Apocrypha से भी मिलते हैं। ये Apostles के लिखे हुए ग्रंथ हैं लेकिन चर्च ने इनको अधिकारिक तौर पर कभी स्वीकार नहीं किया और इन्हें सुने सुनाये मानता है। Apocryphal (Act of Thomas) के अनुसार सूली पर लटकाने के बाद कई बार जीसस sant Thomus से मिले भी और इस बात का वर्णन फतेहपुर सिकरी के पत्थर के शिलालेखो पर भी मिलता है। इनमे Agrapha शामिल है जिसमे जीसस की कही हुई बातें लिखी हैं जिनको जान बुझकर बाइबिल में जगह नहीं दी गयी और जो जीसस के जीवन के अज्ञातकाल के बारे में जानकारी देती हैं। इसके अलावा उनकी वे शिक्षाएं भी बाइबिल में शामिल नहीं की गयी जिनमे कर्म और पुनर्जन्म की बात की गयी है जो पूरी तरह पूर्व के धर्मो से ली गयी है और पश्चिम के लिए एकदम नयी चीज थी। लेखक Christen का कहना है की इस बात के 21 से भी ज्यादा प्रमाण हैं कि जीसस Issa नाम से कश्मीर में रहा और पर्शिया व तुर्की का मशहूर संत Yuj Asaf जीसस ही था। जीसस का जिक्र कुर्द लोगों की प्राचीन कहानियों में भी है। Kristen हिन्दू धर्म ग्रंथ भविष्य पुराण का हवाला देते हुए कहता है कि जीसस कुषाण क्षेत्र पर 39 से 50 AD में राज करने वाले राजा शालिवाहन के दरबार में Issa Nath नाम से कुछ समय अतिथि बनकर रहा। इसके अलावा कल्हण की राजतरंगिणी में भी Issana नाम के एक संत का जिक्र है जो डल झील के किनारे रहा। इसके अलावा ऋषिकेश की एक गुफा में भी Issa Nath की तपस्या करने के प्रमाण हैं। जहाँ वो शैव उपासना पद्धति के नाथ संप्रदाय के साधुओं के साथ तपस्या करते थे। स्वामी रामतीर्थ जी और स्वामी रामदास जी को भी ऋषिकेश में तप करते हुए उनके दृष्टान्त होने का वर्णन है।
विवादित हॉलीवुड फ़िल्म The Vinci Code में भी यही दिखाया गया है कि ईसा एक साधारण मानव थे और उनके बच्चे भी थे। इसा को सूली पर टांगने के बाद यहूदियों ने ही उसे अपने फायदे के लिए भगवान बनाया। वास्तव में इसा का Christianity और Bible से कोई लेना देना नहीं था। आज भी वैटिकन पर Illuminati अर्थात यहूदियों का ही नियंत्रण है और उन्होंने इसा के जीवन की सच्चाई और उनकी असली शिक्षाओं कोको छुपा के रखा है।
वैटिकन की लाइब्रेरी में बहार के लोगों को इसी भय से प्रवेश नहीं करने दिया जाता। क्योंकि अगर ईसा की भारत से ली गयी शिक्षाओं, उनके भारत में बिताये गए समय और उनके बारे में बोले गए झूठ का अगर पर्दाफाश हो गया तो ये ईसाईयत का अंत होगा और Illuminati की ताकत एकदम कम हो जायेगी। भारत में धर्मान्तरण का कार्य कर रहे वैटिकन/Illuminati के एजेंट ईसाई मिशनरी भी इसी कारण से ईसाईयत के रहस्य से पर्दा उठाने वाली हर चीज का पुरजोर विरोध करते हैं। प्रभु जीसस जहाँ खुद हिन्दू धर्मं/भारतीय धर्मों को मानते थे, वहीँ उनके नाम पर वैटिकन के ये एजेंट भोले-भाले गरीब लोगों को वापिस उसी पैशाचिकता की तरफ लेकर जा रहे हैं जिन्होंने प्रभु Issa Nath को तड़पा तड़पाकर मारने का प्रयास किया था। जिस सनातन धर्म को प्रभु Issa ने इतने कष्ट सहकर खुद आत्मसात किया था उसी धर्म के भोले भाले गरीब लोगों को Issa का ही नाम लेकर वापिस उसी पैशाचिकता की तरफ ले जाया जा रहा है।