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Sunday, March 4, 2018


कुतुबुद्दीन ऐबक और क़ुतुबमीनार---

किसी भी देश पर शासन करना है तो उस देश के लोगों का ऐसा ब्रेनवाश कर दो कि वो अपने देश, अपनी संस्कृति और अपने पूर्वजों पर गर्व करना छोड़ दें. इस्लामी हमलावरों और उनके बाद अंग्रेजों ने भी भारत में यही किया. हम अपने पूर्वजों पर गर्व करना भूलकर उन अत्याचारियों को महान समझने लगे जिन्होंने भारत पर बेहिसाब जुल्म किये थे।

अगर आप दिल्ली घुमने गए है तो आपने कभी विष्णू स्तम्भ (क़ुतुबमीनार) को भी अवश्य देखा होगा. जिसके बारे में बताया जाता है कि उसे कुतुबुद्दीन ऐबक ने बनबाया था. हम कभी जानने की कोशिश भी नहीं करते हैं कि कुतुबुद्दीन कौन था, उसने कितने बर्ष दिल्ली पर शासन किया, उसने कब विष्णू स्तम्भ (क़ुतुबमीनार) को बनवाया या विष्णू स्तम्भ (कुतूबमीनार) से पहले वो और क्या क्या बनवा चुका था ?

कुतुबुद्दीन ऐबक, मोहम्मद गौरी का खरीदा हुआ गुलाम था. मोहम्मद गौरी भारत पर कई हमले कर चुका था मगर हर बार उसे हारकर वापस जाना पडा था. ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती की जासूसी और कुतुबुद्दीन की रणनीति के कारण मोहम्मद गौरी, तराइन की लड़ाई में पृथ्वीराज चौहान को हराने में कामयाबी रहा और अजमेर / दिल्ली पर उसका कब्जा हो गया।

अजमेर पर कब्जा होने के बाद मोहम्मद गौरी ने चिश्ती से इनाम मांगने को कहा. तब चिश्ती ने अपनी जासूसी का इनाम मांगते हुए, एक भव्य मंदिर की तरफ इशारा करके गौरी से कहा कि तीन दिन में इस मंदिर को तोड़कर मस्जिद बना कर दो. तब कुतुबुद्दीन ने कहा आप तीन दिन कह रहे हैं मैं यह काम ढाई दिन में कर के आपको दूंगा।

कुतुबुद्दीन ने ढाई दिन में उस मंदिर को तोड़कर मस्जिद में बदल दिया. आज भी यह जगह "अढाई दिन का झोपड़ा" के नाम से जानी जाती है. जीत के बाद मोहम्मद गौरी, पश्चिमी भारत की जिम्मेदारी "कुतुबुद्दीन" को और पूर्वी भारत की जिम्मेदारी अपने दुसरे सेनापति "बख्तियार खिलजी" (जिसने नालंदा को जलाया था) को सौंप कर वापस चला गय था।

कुतुबुद्दीन कुल चार साल (१२०६ से १२१० तक) दिल्ली का शासक रहा. इन चार साल में वो अपने राज्य का विस्तार, इस्लाम के प्रचार और बुतपरस्ती का खात्मा करने में लगा रहा. हांसी, कन्नौज, बदायूं, मेरठ, अलीगढ़, कालिंजर, महोबा, आदि को उसने जीता. अजमेर के विद्रोह को दबाने के साथ राजस्थान के भी कई इलाकों में उसने काफी आतंक मचाया।

जिसे क़ुतुबमीनार कहते हैं वो महाराजा वीर विक्रमादित्य की वेदशाला थी. जहा बैठकर खगोलशास्त्री वराहमिहर ने ग्रहों, नक्षत्रों, तारों का अध्ययन कर, भारतीय कैलेण्डर "विक्रम संवत" का आविष्कार किया था. यहाँ पर २७ छोटे छोटे भवन (मंदिर) थे जो २७ नक्षत्रों के प्रतीक थे और मध्य में विष्णू स्तम्भ था, जिसको ध्रुव स्तम्भ भी कहा जाता था।

दिल्ली पर कब्जा करने के बाद उसने उन २७ मंदिरों को तोड दिया।विशाल विष्णु स्तम्भ को तोड़ने का तरीका समझ न आने पर उसने उसको तोड़ने के बजाय अपना नाम दे दिया। तब से उसे क़ुतुबमीनार कहा जाने लगा. कालान्तर में यह यह झूठ प्रचारित किया गया कि क़ुतुब मीनार को कुतुबुद्दीन ने बनबाया था. जबकि वो एक विध्वंशक था न कि कोई निर्माता।

अब बात करते हैं कुतुबुद्दीन की मौत की।इतिहास की किताबो में लिखा है कि उसकी मौत पोलो खेलते समय घोड़े से गिरने पर से हुई. ये अफगान / तुर्क लोग "पोलो" नहीं खेलते थे, पोलो खेल अंग्रेजों ने शुरू किया. अफगान / तुर्क लोग बुजकशी खेलते हैं जिसमे एक बकरे को मारकर उसे लेकर घोड़े पर भागते है, जो उसे लेकर मंजिल तक पहुंचता है, वो जीतता है।

कुतबुद्दीन ने अजमेर के विद्रोह को कुचलने के बाद राजस्थान के अनेकों इलाकों में कहर बरपाया था. उसका सबसे कडा विरोध उदयपुर के राजा ने किया, परन्तु कुतुबद्दीन उसको हराने में कामयाब रहा. उसने धोखे से राजकुंवर कर्णसिंह को बंदी बनाकर और उनको जान से मारने की धमकी देकर, राजकुंवर और उनके घोड़े शुभ्रक को पकड कर लाहौर ले आया।

एक दिन राजकुंवर ने कैद से भागने की कोशिश की, लेकिन पकड़ा गया. इस पर क्रोधित होकर कुतुबुद्दीन ने उसका सर काटने का हुकुम दिया. दरिंदगी दिखाने के लिए उसने कहा कि बुजकशी खेला जाएगा लेकिन इसमें बकरे की जगह राजकुंवर का कटा हुआ सर इस्तेमाल होगा. कुतुबुद्दीन ने इस काम के लिए, अपने लिए घोड़ा भी राजकुंवर का "शुभ्रक" चुना।

कुतुबुद्दीन "शुभ्रक" घोडे पर सवार होकर अपनी टोली के साथ जन्नत बाग में पहुंचा. राजकुंवर को भी जंजीरों में बांधकर वहां लाया गया. राजकुंवर का सर काटने के लिए जैसे ही उनकी जंजीरों को खोला गया, शुभ्रक घोडे ने उछलकर कुतुबुद्दीन को अपनी पीठ से नीचे गिरा दिया और अपने पैरों से उसकी छाती पर क् बार किये, जिससे कुतुबुद्दीन वहीं पर मर गया।

इससे पहले कि सिपाही कुछ समझ पाते राजकुवर शुभ्रक घोडे पर सवार होकर वहां से निकल गए. कुतुबुदीन के सैनिको ने उनका पीछा किया मगर वो उनको पकड न सके. शुभ्रक कई दिन और कई रात दौड़ता रहा और अपने स्वामी को लेकर उदयपुर के महल के सामने आ कर रुका. वहां पहुंचकर जब राजकुंवर ने उतर कर पुचकारा तो वो मूर्ति की तरह शांत खडा रहा।

वो मर चुका था, सर पर हाथ फेरते ही उसका निष्प्राण शरीर लुढ़क गया. कुतुबुद्दीन की मौत और शुभ्रक की स्वामिभक्ति की इस घटना के बारे में हमारे स्कूलों में नहीं पढ़ाया जाता है लेकिन इस घटना के बारे में फारसी के प्राचीन लेखकों ने काफी लिखा है. *धन्य है भारत की भूमि जहाँ इंसान तो क्या जानवर भी अपनी स्वामी भक्ति के लिए प्राण दांव पर लगा देते हैं।

।।साभार।।

Saturday, March 26, 2016

हमारे पूर्वजो पर हुए इस्लाम अत्याचार

हमारे पूर्वजो पर हुए अत्याचार

1- मैं नहीं भूला उस कामपिपासु अलाउद्दिन खिलजी को, जिससे अपने सतीतव को बचाने के लिये रानी पद्ममिनी 14000 महिलाओं के साथ जलते हुए अग्निकुंड में कूद गयी थीं।
2- मैं नहीं भूला उस जालिम औरंगजेब को, जिसने संभाजी महाराज को इस्लाम स्वीकारने से मना करने पर तडपा तडपा कर मारा था।
3- मैं नहीं भूला उस जिहादी टीपु सुल्तान को, जिसने एक एक दिन में लाखों हिंदुओ का नरसंहार किया था।
4- मैं नहीं भूला उस जल्लाद शाहजहाँ को, जिसने 14 बर्ष की एक ब्राह्मण बालिका के साथ अपने महल में जबरन बलात्कार किया
5- मैं नहीं भूला उस बर्बर बाबर को, जिसने मेरे श्री राम प्रभु का मंदिर तोड़ा और लाखों निर्दोष हिंदुओ का कत्ल किया था।
6- मैं नहीं भूला उस शैतान सिकन्दर लोदी को, जिसने नगरकोट के ज्वालामुखी मंदिर की माँ दुर्गा की मूर्ति के टुकड़े कर उन्हें कसाइयों को मांस तोलने के लिये दे दिया था।
7- मैं नहीं भूला उस धूर्त ख्वाजा मोइन्निद्दिन चिस्ती को, जिसने संयोगीता को इस्लाम कबूल ना करने पर नग्न कर मुगल सैनिको के सामने फेंक दिया था।
8- मैं नहीं भूला उस निर्दयी बजीर खान को, जिसने गुरूगोविंद सिंह के दोनों मासूम बच्चों फतेहसिंह और जोरावार को मात्र 7 साल और 5 बर्ष की उम्र में इस्लाम ना मानने पर दीवार में जिन्दा चुनवा दिया था।
9- मैं नहीं भूला उस जिहादी बजीर खान को, जिसने बन्दा बैरागी की चमडी को गर्म लोहे की सलाखों से तब तक जलाया जब तक उसकी हड्डियां ना दिखने लगी मगर उस बन्दा वैरागी ने इस्लाम स्वीकार नहीं किया
10- मैं नहीं भूला उस कसाई औरंगजेब को, जिसने पहले संभाजी महाराज की आँखों मे गरम लोहे के सलिए घुसाए, बाद में उन्हीं गरम सलियों से पुरे शरीर की चमडी उधेडी, फिर भी संभाजी ने हिंदू धर्म नही छोड़ा था।
11- मैं नहीं भूला उस नापाक अकबर को, जिसने हेमू के 72 वर्षीय स्वाभिमानी बुजुर्ग पिता के इस्लाम कबूल ना करने पर उसके सिर को धड़ से अलग करवा दिया था।
12- मैं नहीं भूला उस वहशी दरिंदे औरंगजेब को, जिने धर्मवीर भाई मतिदास के इस्लाम कबूल न करने पर बीच चौराहे पर आरे से चिरवा दिया था।

Wednesday, December 24, 2014

RAPIST AND BLOOD THIRSTY AJMER'S MOINUDDIN CHISTI

महमूद ग़ज़नवी ने वर्ष १००१-१०१८ लगभग २० लाख हिन्दुओ का क़त्ल इस्लाम नहीं कबूल करने पर किया था।
१००१ में हिन्दुओ के महान राजा जयपाल के हारने के वाद उनकी वहु वेटिओ का वलात्कार उन्ही के सामने सरे आम किया था।
थानेसर के युद्ध में हिन्दुओ का रक्त ऐसे प्रवाहित हो रहा था जैसे वरसात का पानी।
सोमनाथ अकेले ५०००० हिन्दुओ का क़त्ल करते हुए शिवलिंग को टुकड़े टुकड़े करते हुए अफगानिस्तान के मस्जिद के पायदान पर लगा दिया था।
मथुरा में वर्ष १०१७ में सभी के सभी कृश्ण भगवन राधा आदि की मुर्तिओ को भट्टी में गलाते हुए लगभग २० टन सोना अपने देश ले गया था. चंगेज खान , मोहमद गोरी ,अकबर , ओरंगजेब जैसे लूटेरे और वालात्करिओ के किस्से  
REF- OJASWI HINDUSTAN