Friday, September 2, 2022

सूर्यवंशी क्षत्रियों (इक्ष्वाकु कुल) की शाखा वर्तमान गौड राजपूतों का वंश परिचय एंव इतिहास।

 

सूर्यवंशी क्षत्रियों (इक्ष्वाकु कुल) की शाखा वर्तमान गौड राजपूतों का वंश परिचय एंव इतिहास।। 🙏🚩

ब्रह्मा के पुत्र मरीचि द्वारा चलित सूर्यवंशी क्षत्रिय कुल मे जन्मे परम प्रतापी, शौर्यवान और प्रजा प्रमी अतः अज के पुत्र महात्मा दशरथ। दशरथ जी के चार पुत्रों श्री राम, भरत, लक्ष्मण और शत्रुघ्न मे से श्री राम के अनुज भरत के वंशज द्वारा ही गौड राजपूत राजवंश की नींव रखी गई थी।।


गौङ वंश की सामान्य जानकारी :- 


कुल :  सूर्यवंशी क्षत्रिय (वर्तमान गौड राजपूत)

गौत्र : भारद्वाज

प्रवर : भारद्वाज, बाईस्पत्य, अंगिरस

वेद : यजुर्वेद

शाखा :  वाजसनेयी

सूत्र : पारस्कर

कुलदेवी : महाकाली

इष्ट देव : रूद्रदेव

वृक्ष : केला

गृहदेवी : नारायणी माता

भैरव : गया-सुर

नदी :  गिलखा

तालाब :  गया-सागर

गढ़ :  पहला बंगाल, दुसरा गढ़ अजमेर

गुरू : वशिष्ठ

किले की देवी :  महादुर्गा

ढाल : आशावरी

तलवार :  रंगरूप

बन्दुक :  संदाण

तोप :  कट्कबिजली

कटार :  रणवीर

छुरी :  अस्पात

ढोल : जीतपाल

नंगारा : रणजीत

घाट :  हरीद्वार

तीर्थ :  द्वारिका

भाट :  करणोत

चारण :  मेहसन

ढोली : डोगव


गौड़ राजवंश भारत में राजपूतों का एक कुल है, जोकि सूर्यवंशी क्षत्रियों के इक्ष्वाकु वंश में जन्मे श्रीराम के अनुज भरत जी के वंशज हैं ।


गौड़ राजवंश परिचय


गौड़ क्षत्रिय भगवान श्रीराम के छोटे भाई भरत के वंशज हैं। ये सूर्यवंशी क्षत्रिय कुल के हैं। जब श्रीराम अयोध्या के सम्राट बने तब महाराज भरत को गंधार प्रदेश का स्वामी बनाया गया। महाराज भरत के दो बेटे हुये तक्ष एवं पुष्कल जिन्होंने क्रमशः प्रसिद्द नगरी तक्षशिला (सुप्रसिद्ध विश्वविधालय) एवं पुष्कलावती बसाई (जो अब पेशावर है)। एक किंवदंती के अनुसार गंधार का अपभ्रंश गौर हो गया जो आगे चलकर राजस्थान में स्थानीय भाषा के प्रभाव में आकर गौड़ हो गया। महाभारत काल में इस वंश का राजा जयद्रथ था। कालांतर में सिंहद्वित्य तथा लक्ष्मनाद्वित्य दो प्रतापी राजा हुये जिन्होंने अपना राज्य गंधार से राजस्थान तथा कुरुक्षेत्र तक विस्तृत कर लिया था। पूज्य गोपीचंद जो सम्राट विक्रमादित्य तथा भृतहरि के भांजे थे इसी वंश के थे। बाद में इस वंश के क्षत्रिय बंगाल चले गए जिसे गौड़ बंगाल कहा जाने लगा। आज भी गौड़ राजपूतों की कुल देवी महाकाली का प्राचीनतम मंदिर बंगाल में है जो अब बंगलादेश में चला गया है।


बंगाल में गौड राजपूत वंश :-


बंगाल में गौड़ राजपूतों का लम्बे समय तक शासन रहा। चीनी यात्री ह्वेन्शांग के अनुसार शशांक गौड़ की राजधानी कर्ण-सुवर्ण थी जो वर्तमान में झारखण्ड के सिंहभूमि के अंतर्गत आता है। इससे पता चलता है कि गौड़ साम्राज्य बंगाल (वर्तमान बंगलादेश समेत) कामरूप (असाम) झारखण्ड सहित मगध तक विस्तृत था। गौड़ वंश के प्रभाव के कारण ही इस क्षेत्र को गौड़ बंगाल कहा जाने लगा । शशांक गौड़ इस वंश का सबसे प्रतापी राजा था जो सम्राट हर्षवर्धन का समकालीन था तथा सम्पूर्ण भारत वर्ष पर शासन करने की तीव्र महत्वकांक्षा रखता था। शशांक गौड़ ने हर्षवर्धन के भाई प्रभाकरवर्धन का वध किया था। इसके बाद एक युद्ध में हर्षवर्धन ने शशांक गौड़ को पराजित किया और उसकी महत्वकांक्षाओं को बंगाल तक ही सीमित कर दिया। शशांक गौड़ के बाद इस वंश का पतन हो गया। बाद में इसी वंश के किसी क्षत्रिय ने गौड़ बंगाल में समृद्ध एवं शक्तिशाली पालवंश की नींव रखी। पाल वंश के अनेक शिलालेखों तथा अन्य दस्तावेजों से प्रमाणित होता है कि ये विशुद्ध सूर्यवंशी थे। लेकिन बोद्ध धर्म को प्रश्रय देने के कारण ब्राह्मणवादियों ने चन्द्रगुप्त तथा अशोक महान की तरह इन्हें भी शुद्र घोषित करने का प्रयास किया है। सम्राट हर्षवर्धन की मृत्यु के बाद भारत कई राज्यों में बंट गया और अगले 100 वर्षों तक कन्नौज पर अधिपत्य के विभिन्न क्षत्रिय राजाओं के बीच संघर्ष होता रहा क्यूंकि मगध के पतन के बाद भारतवर्ष का नया सत्ता शीर्ष कन्नौज बन चूका था तथा कन्नौज अधिपति ही देश का सम्राट कहलाता था। कन्नौज के लिए हुये इस संघर्ष में शामिल तत्कालीन भारत के प्रमुख तीन राजवंशों में क्षत्रीय प्रतिहार, राष्ट्रकूट के अलावा बंगाल का पाल वंश(गौड़) था। उस समय चोथी शक्ति के रूप में बादामी के चालुक्य (सोलंकी) तेजी से उभर रहे थे। पाल वंश के पतन के बाद पर्शियन आक्रान्ता बख्तियार खिलजी ने जब बंगाल पर हमले किये और उसे तहस नहस कर दिया तब गौड़ राजपूतों का बड़ी संख्या में बंगाल से राजस्थान की तरफ पलायन हुआ।


राजस्थान में गौड राजपूत वंश :- 


राजस्थान में गौड़ प्राचीन काल से ही रहते आये है, मारवाड़ क्षेत्र में एक क्षेत्र आज भी गौड़वाड़ व गौड़ाटी कहलाता है, जो कभी गौड़ राजपूतों के अधिकार क्षेत्र में रहा और वहां वे निवास करते थे। राजपूत वंशावली के अनुसार सबसे पहले सीताराम गौड़ बंगाल से राजस्थान के मारवाड़ क्षेत्र में आये। यही से बाहरदेव व नाहरदेव दो गौड़ कन्नौज सम्राट नागभट्ट द्वितीय के पास पहुंचे। जिनको नागभट्ट ने कालपी व नार (कानपुर) क्षेत्र जागीर में दिया। इन्हीं के वंशज आज उत्तर प्रदेश के इटावा बदायूं, कन्नौज, मोरादाबाद अलीगढ में निवास करते हैं। नार क्षेत्र में आगे की पीढ़ियों में हुये वत्सराज, वामन व सूरसेन नामक गौड़ वि.स. 1206 में पुष्कर तीर्थ स्नान हेतु राजस्थान आये। उस समय दहिया राजपूत अजमेर में चैहानों के सामंत थे। जिन्होंने चैहानों से विद्रोह कर रखा था.। तत्कालीन चैहान शासक विग्रहराज तृतीय ने विद्रोह दबाने गौड़ों को भेजा। गौड़ों ने दहियाओं का विद्रोह दबा दिया तब प्रसन्न होकर चैहान शासक ने इनको केकड़ी, जूनियां, देवलिया और सरवाड़ के परगने जागीर में दिये। वत्सराज के अधिकार में केकड़ी, जूनियां, सरवाड़ व देवलिया के परगने रहे वहीं वामन के अधिकार में मोठड़ी, मारोठ परगना रहा। महान राजपूत सम्राट पृथ्वीराज चैहान के कई प्रसिद्ध गौड़ सामंत थे। जिनमें रण सिंह गौड़ तथा बुलंदशहर का राजा रणवीर सिंह गौड़ प्रमुख थे। पृथ्वीराज रासो में और भी कई गौड़ सामंतों का जिक्र आता है। चंदरबरदाई ने गौडों की प्रशंसा में लिखा है -‘‘बलहट बांका देवड़ा, करतब बांका गौड़ हाडा बांका गाढ़ में, रण बांका राठौड़।’’


गौड वंश की उप-शाखाएं :- 


गौड़ राजपूत वंश की कई उपशाखाएँ (खापें) है जैसे- अमेठिया गौड़,अजमेरा गौड़, मारोठिया (लाखणोत) गौड़,सांगावत गौड़, बलभद्रोत गौड़, ब्रह्म गौड़, चॅवर गौर, भट्ट गौड़, गौड़हर, वैद्य गौड़, सुकेत गौड़, पिपारिया गौड़, अभेराजोत, किशनावत, चतुर्भुजोत, पथुमनोत, विबलोत, भाकरसिंहोत, भातसिंहोत, मनहरद सोत, मुरारीदासोत, लवणावत, विनयरावोत, उटाहिर, उनाय, कथेरिया, केलवाणा, खगसेनी, जरैया, तूर, दूसेना, घोराणा, उदयदासोत, नागमली, अजीतमली, बोदाना, सिलहाला आदि खापें है जो उनके निकास स्थल व पूर्वजों के नाम से प्रचलित है।


उत्तर प्रदेश में गौड़ क्षत्रिय : राजस्थान के मारवाड़ क्षेत्र से बाहरदेव व नाहरदेव दो गौड़ भाई कन्नौज सम्राट नागभट्ट द्वितीय के पास पहुंचे। जिनको नागभट्ट ने कालपी व नार (कानपुर) क्षेत्र जागीर में दिया। इन्हीं के ही वंशज आज उत्तर प्रदेश के कानपुर, एटा, इटावा, गोरखपुर बदायूं, मोरादाबाद तथा अलीगढ में निवास करते हैं।


नार के राजा पृथ्वीदेव गौड़ का विवाह महाराज गोपीचंद राठौड़ की बहिन से हुआ था। जब पृथ्वीदेव एक युद्ध में वीरगति को प्राप्त हुआ तो गोपीचंद राठौड़ ने अपने भांजों को बुला कर उन्हें अमेठी (कानपूर) का शासक बना दिया। राजा कान्ह्देव के ये वंशज अमेठिया गौड़ कहलाये। ये अमेठी लखनऊ, सीतापुर, पंचगछिया सहरसा ,राजधाम खगड़िया ,सीवान जिलों में बसते हैं। बंगाल से ही एक शाखा मथुरा आयी। दिल्ली सम्राट अनंगपाल तंवर के सेनापति दो गौड़ सगे भाई सूर और घोट थे। इन्होंने वर्तमान बिलराम (मथुरा) को जीता।


पवायन रियासत 1705 में राजा उदयसिंह गौड़ ने रूहिल्ला पठानों को पराजित कर रोहिलखंड उत्तरप्रदेश (महाभारतकालीन पंचाल प्रदेश) में सबसे बड़ी राजपूत रियासत पवायन (जिला शाहजहांपुर) की स्थापना की। जिसका शासन 1947 तक कायम रहा। यहाँ के शासक को राजा की उपाधि धारण करने का अधिकार रहा है।


बुलंदशहर में बसने वाले गौडों के पूर्वज राजस्थान से आये दो भाई थे जिला बिजनोर में भी गौड़ राजपूत बसते हैं। यहाँ मुकुटसिंह शेखावत के नेतृत्व में सोमवती अमावस्य पर गंगा स्नान करने राजस्थान से आये 12 राजाओं ने जिनमें बलभद्रसिंह गौड़ और बुद्धसिंह गौड़ भी शामिल थे, हिन्दु साधुओं की रक्षा आततायी मुस्लिम नवाब फतह उल्ला खान का वध करके की। इसके बाद इन 12 राजाओं ने 84-84 गाँव आपस में बाँट लिए और वहीं पर ही शासन करने लगे।


कानपुर से गौड़ राजपूतों का एक खानदान इलाहाबाद आ गया जो ओरछा के बुंदेलों की सेवा में था। इनके एक सामंत बिहारीसिंह गौड़ ने ओरंगजेब से बगावत की और एक युद्ध में मारे गए। इलाहबाद के डॉक्टर नरेंद्रसिंह गौर उत्तर प्रदेश सरकार में शिक्षा एवं गन्ना मंत्री भी रहे।


मध्य प्रदेश में गौड़ क्षत्रिय : मध्यप्रदेश में शेओपुर (जिला जबलपुर) गौड़ राजपूतों का एक प्रमुख ठिकाना रहा है। 1301 में अल्लाउद्दीन खिलजी ने शेओपुर पर कब्जा किया जो तब तक हमीर देव चैहान के पास था। बाद में मालवा के सुलतान का तथा शेरशाह सूरी का भी यहाँ कब्जा रहा। उसके बाद बूंदी के शासक सुरजन सिंह हाडा ने भी शेओपुर पर कब्जा किया। बाद में अकबर ने इसे मुगल साम्राज्य में मिला लिया। स्वतंत्र रूप से इस राज्य की स्थापना विट्ठलदास गौड़ के पुत्र अनिरुद्ध सिंह गौड़ ने की थी। इनके आमेर का कछवाहा राजपूतों से काफी निकट के और घनिष्ट सम्बन्ध रहे। अनिरुद्ध सिंह गौड़ की पुत्री का विवाह आमेर नरेश मिर्जा राजा रामसिंह से हुआ था। सवाई राजा जयसिंह का विवाह उदयसिंह गौड़ की पुत्री आनंदकंवर से हुआ था। जिससे ज्येष्ठ पुत्र शिवसिंह पैदा हुआ।


सन 1722 में जब जयपुर नरेश सवाई राजा जयसिंह जाटों का दमन करने थुड गए थे, उस समय तत्कालीन शेओपुर नरेश इन्दरसिंह गौड़ अपनी सेना सहित उनकी मदद में उपस्थित रहे। बाद में मैराथन के विरुद्ध भी इन्द्रसिंह गौड़ जय सिंह के साथ रहे। इसके अलावा भोपाल में पेशवाओं के विरुद्ध युद्ध और जोधपुर के विरुद्ध युद्ध में भी इन्दरसिंह गौड़ सवाई राजा की मदद में रहे। इस प्रकार इन्दरसिंह गौड़ ने पूरे जीवन सवाई राजा जयसिंह का साथ दिया। बाद में सिंधियों ने गौड़ों से शेओपुर को जीत लिया।


शेओपुर का 225 साल का इतिहास गवाही है, शानदार गौड़ राजपूत वास्तुकला की। नरसिंह गौड़ का महल हो, राणी महल हो या किशोरदास गौड़ की छतरियां हों, सब अपने आप में बेमिसाल हैं। आज ये शहर मध्यप्रदेश के पर्यटन का एक प्रमुख हिस्सा है।


खांडवा के गौड़ क्षत्रिय : शेओपुर के अलावा खांडवा भी मध्यप्रदेश में गौडों का एक प्रमुख ठिकाना रहा है। अजमेर साम्राज्य के सामंत राजा वत्सराज (बच्छराज) गौड़ (केकड़ी-जूनियां) के वंशज गजसिंह गौड़ और उनके भाइयों ने राजस्थान से हटकर 1485 में पूर्व निमाड़ (खांडवा) में घाटाखेड़ी नमक राज्य स्थापित किया। यह गौड़ राजपूतों का एक मजबूत ठिकाना रहा। वर्तमान में खांडवा के मोहनपुर, गोरड़िया पोखर राजपुरा प्लासी आदि गाँवों में उपरोक्त ठिकाने के वंशज बसे हुये हैं।


किंवदंती है एक गौड़ राजा के प्रताप और तप के कारण ही मध्यप्रदेश की नर्मदा नदी उलटी बहती है लेखक : सचिन सिंह गौड़, संपादक, सिंह गर्जना।।


गौड़ क्षत्रिय वंश से जुड़ी रोचक और इतिहास की बातें इस प्रकार हे :- 


(1). गौड़ क्षत्रिय भगवान श्रीराम के छोटे भाई भरत के वंशज हैं। ये विशुद्ध सूर्यवंशी कुल के हैं। जब श्रीराम अयोध्या के सम्राट बने तब महाराज भरत को गंधार प्रदेश का स्वामी बनाया गया। महाराज भरत के दो बेटे हुये तक्ष एवं पुष्कल जिन्होंने क्रमशः प्रसिद्द नगरी तक्षशिला (सुप्रसिद्ध विश्वविधालय) एवं पुष्कलावती बसाई (जो अब पेशावर है)। एक किंवदंती के अनुसार गंधार का अपभ्रंश गौर हो गया जो आगे चलकर राजस्थान में स्थानीय भाषा के प्रभाव में आकर गौड़ हो गया। 


(2). गंधार प्रदेश में शासन करने वाले गौड़ वंश में भी काफी महान सम्राट हुए जिन्होंने गौड़ वंश को अन्य क्षेत्रों में फैला दिया। इन महान सम्राटों ने कंधार प्रदेश की सीमा को बढ़ाते हुए राजस्थान तक पहुँचा दिया। आज भी राजस्थान में गौड़ राजपूतों की काफी अच्छी संख्या है।


(3). महाभारत काल में इस वंश का राजा जयद्रथ था। कालांतर में सिंहद्वित्य तथा लक्ष्मनाद्वित्य दो प्रतापी राजा हुये जिन्होंने अपना राज्य गंधार से राजस्थान तथा कुरुक्षेत्र तक विस्तृत कर लिया था। पूज्य गोपीचंद जो सम्राट विक्रमादित्य तथा भृतहरि के भांजे थे इसी वंश के थे। बाद में इस वंश के क्षत्रिय बंगाल चले गए जिसे गौड़ बंगाल कहा जाने लगा। आज भी गौड़ राजपूतों की कुल देवी महाकाली का प्राचीनतम मंदिर बंगाल में है जो अब बंगलादेश में चला गया है।


(4). बंगाल के गौड़ शासकों के अलावा राजस्थान में भी गौड़ वंश की एक अच्छी खासी जनसंख्या है। राजस्थान को गौड़ों के प्राचीन स्थलों के तौर पर देखा जाता है। यहां पर पुराने समय से ही गौड़ वंश के लोग निवास  कर रहे हैं। राजस्थान में जिस क्षेत्र को गौड़ वंश के लोग अच्छा खासा प्रभावित करते  है उसे गौड़बाड़ क्षेत्र के नाम से जाना जाता है। बंगाल से आकर मारवाड़ क्षेत्र में बसने बाले सर्वप्रथम सीताराम गौड़ थे।


(5). बंगाल में गौड़ राजपूतों का लम्बे समय तक शासन रहा। चीनी यात्री ह्वेन्शांग के अनुसार शशांक गौड़ की राजधानी कर्ण-सुवर्ण थी जो वर्तमान में झारखण्ड के सिंहभूमि के अंतर्गत आता है। इससे पता चलता है कि गौड़ साम्राज्य बंगाल (वर्तमान बंगलादेश समेत) कामरूप (असाम) झारखण्ड सहित मगध तक विस्तृत था। गौड़ वंश के प्रभाव के कारण ही इस क्षेत्र को गौड़ बंगाल कहा जाने लगा ।


(6). महान राजपूत शासक पृथ्वीराज  चौहान भी गौड़ वंश के नेतृत्व से खासे प्रभावित थे जिस बजह से उन्होंने अपने दरबार में गौड़ वंशियों को उच्च पद प्रदान किये थे।  रण सिंह गौड़ उनके दरबार  का हमेशा अहम हिस्सा रहे इसके अलावा बुलंदशहर के राजा रणवीर सिंह गौड़ से भी पृथ्वीराज चौहान के काफी अच्छे संबंध थे। प्रथ्वीराज चौहान की जीवनी में भी गौड़ वंशियों की काफी तारीफ की गयी है।


(7). गौड़ राजपूत वंश की कई उपशाखाएँ (खापें) है जैसे- अजमेरा गौड़, मारोठिया गौड़, बलभद्रोत गौड़, ब्रह्म गौड़, चमर गौड़, भट्ट गौड़, गौड़हर, वैद्य गौड़, सुकेत गौड़, पिपारिया गौड़, अभेराजोत, किशनावत, चतुर्भुजोत, पथुमनोत, विबलोत, भाकरसिंहोत, भातसिंहोत, मनहरद सोत, मुरारीदासोत, लवणावत, विनयरावोत, उटाहिर, उनाय, कथेरिया, केलवाणा, खगसेनी, जरैया, तूर, दूसेना, घोराणा, उदयदासोत, नागमली, अजीतमली, बोदाना, सिलहाला आदि खापें है जो उनके निकास स्थल व पूर्वजों के नाम से प्रचलित है।


(8). मध्यप्रदेश में शेओपुर (जिला जबलपुर) गौड़ राजपूतों का एक प्रमुख ठिकाना रहा है। 1301 में अल्लाउद्दीन खिलजी ने शेओपुर पर कब्जा किया जो तब तक हमीर देव चैहान के पास था। बाद में मालवा के सुलतान का तथा शेरशाह सूरी का भी यहाँ कब्जा रहा। उसके बाद बूंदी के शासक सुरजन सिंह हाडा ने भी शेओपुर पर कब्जा किया। बाद में अकबर ने इसे मुगल साम्राज्य में मिला लिया। स्वतंत्र रूप से इस राज्य की स्थापना विट्ठलदास गौड़ के पुत्र अनिरुद्ध सिंह गौड़ ने की थी। इनके आमेर का कछवाहा राजपूतों से काफी निकट के और घनिष्ट सम्बन्ध रहे। अनिरुद्ध सिंह गौड़ की पुत्री का विवाह आमेर नरेश मिर्जा राजा रामसिंह से हुआ था। सवाई राजा जयसिंह का विवाह उदयसिंह गौड़ की पुत्री आनंदकंवर से हुआ था। जिससे ज्येष्ठ पुत्र शिवसिंह पैदा हुआ।


(9). शेओपुर के अलावा खांडवा भी मध्यप्रदेश में गौडों का एक प्रमुख ठिकाना रहा है। अजमेर साम्राज्य के सामंत राजा वत्सराज (बच्छराज) गौड़ (केकड़ी-जूनियां) के वंशज गजसिंह गौड़ और उनके भाइयों ने राजस्थान से हटकर 1485 में पूर्व निमाड़ (खांडवा) में घाटाखेड़ी नमक राज्य स्थापित किया। यह गौड़ राजपूतों का एक मजबूत ठिकाना रहा। वर्तमान में खांडवा के मोहनपुर, गोरड़िया पोखर राजपुरा प्लासी आदि गाँवों में उपरोक्त ठिकाने के वंशज बसे हुये हैं।


(10). गौड़ वंश के शासकों की गिनती एक तेज तर्रार दिमाग वाले व्यक्ति एवं एक कुशल घुड़सवार के तौर पर की जाती है। गौड़ वंश की वीरता से प्रभावित होकर बहुत से शासकों ने अपने दरबार में गौड़ वंशियों को ऊँचे पद प्रदान किये । इतिहास गवाह है कि गौड़ों के नेतृत्व के बल पर कई शासक कामयाबी के शिखर तक पहुँचे थे।


नोट – गौड़ वंश की ऐतिहासिक जानकारी काफी विस्तृत है हमने अपने इस पोस्ट में मुख्य पहलुओं पर ही जानकारी दी है।फिर भी कोई महत्वपूर्ण जानकारी छूट गयी है तो हम उसके लिए क्षमाप्रार्थी हैं।


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जय एकलिंग महाराज ⚔️🚩

Sunday, August 28, 2022

Shekhavat and Kushwah Rajput history

 


शूर्यवंशी क्षत्रिय प्रभु श्री राम के पुत्र कुश से चला कुशवाहा (कच्छवाहा) राजपूत राजवंश से अलग होकर शेखावत राजपूत राजवंश स्थापित करने वाले गौरक्षक महाराव शेखा जी।। 🙏🚩


महाराव शेखाजी का इतिहास :- 


वर्तमान के शेखावटी क्षेत्र (जयपुर, सीकर, झुंझुनू) के संस्थापक महाराव शेखा जी ही थे. जिनके नाम शेखा से शेखावटी क्षेत्र पड़ा. इनका जन्म विक्रम संवत 1490 को मोकल जी के घर हुआ था. इनकी माता का नाम निरबान देवी था. शेखा जी जब अल्पायु में थे तभी इनके पिताजी का देहांत हो गया था. पिताजी के स्वर्गवास के बाद कम अवस्था में ही इन्हें चौबीस गाँवों की जागीर को सभालना पड़ा था. महाराव शेखाजी का इतिहास में हम इस महान प्रतापी, लोक हितेषी, नारी सम्मानरक्षक के बारे में संक्षिप्त में जानेगे।


महाराव शेखा जी पन्द्रहवी शताब्दी का एक अद्वितीय व्यक्तित्व था. उसका जन्म 1433 ई में हुआ. कछवाहा वंशीय होने से आमेर राज्य का सम्मान बनाए रखने हेतु वह उसे वार्षिक कर देता था. आमेर शासक चन्द्रसेन महाराव शेखाजी के बड़े भ्राता थे, उन्हें शेखा का स्वतंत्र राज्य मान्य नही नही था और उनको किसी प्रकार से आमेर की अधिनता में लाने के लिए प्रयासरत थे. राव शेखा जो एक स्वाभिमानी व्यक्ति थे, को आमेर की अधीनता स्वीकार नही थी अतः इसी कारण दोनों भाइयों के मध्य एक दशक तक युद्ध होते रहे और अंत में 1471 ई के युद्ध में शेख की विजय हुई. इसलिए चन्द्रसेन को शेखा को एक स्वतंत्र शासक के रूप में स्वीकार करना पड़ा।


महाराव शेखाजी युद्ध कला में पारंगत थे. इसके बाद उसने अपने आस-पास के स्थानों को हस्तगत करना शुरू किया. इसके परिणामस्वरूप भिवानी, हिंसार व अन्य अनेक क्षेत्रों पर महाराव शेखाजी का आधिपत्य हो गया. इनके राज्य में गाँवों की संख्या 360 तक पहुच गई।


महाराव शेखाजी के राज्य अमरसर का क्षेत्रफल आमेर राज्य से भी अधिक बड़ा था. राव शेखाजी ने शासक के रूप में धार्मिक सहिष्णुता का भी परिचय दिया. इन्ही के प्रयासों से पठानों ने गाय के मांस को न खाने का संकल्प लिया, वे नारी अस्मिता के रक्षक थे।


नारी के सम्मान को सुरक्षित रखने के लिए अपने जीवन का सन 1488 में उत्सर्ग कर दिया. जहाँ इनकी मृत्यु हुई, वहां उनकी याद में एक छतरी बनी हुई हैं.


शेखाजी का जीवनकाल :-


शेखावत समाज के पितृपुरुष कहे जाने वाले महाराव शेखाजी का जन्म कार्तिक महीने की शुक्ल पक्ष की दशमी रविवार संवत 1490 को नाण बरवाडा के स्थानीय शासक राजा मोकल जी की रानी निर्वाण के गर्भ से हुआ था।


वर्ष 1502 में अपने पिता की मृत्यु के उपरांत महज 12 वर्ष की आयु में इन्होने राजकाज संभाला, उन्नीस वर्ष की आयु प्राप्त करते ही शेखाजी ने राज्य विस्तार और अपनी प्रजा की भलाई के कार्य शुरू कर दिए.


राज्य की कूटनीति को विस्तार देने तथा पड़ोसी जागीरो से अच्छे सम्बन्ध स्थापित करने के लिए महाराव शेखाजी ने गोडो, निर्वाणों, तंवरो आदि जागीरदारों के साथ वैवाहिक सम्बन्ध स्थापित किये, उस समय मेवाड़ की सत्ता पर बैठे दूदाजी के साथ अपनी बेटी का विवाह कर अच्छे सम्बन्ध स्थापित किये।


आमेर के शासक चन्द्रसेन के साथ महाराव की पांच लड़ाईयां हुई, आखिर में दोनों के मध्य शान्ति समझौता हुआ और यह लम्बे समय तक कायम रहा।


स्त्री का सम्मान और गौरक्षा :-


महाराव शेखाजी की शासनावधि में विदेशी तुर्क आक्रान्ताओं की मार आज का समूचा राजस्थान झेल रहा था. शेखाजी गजनी, गौरी से कई बार भिड़े ऐसा माना जाता हैं. एक गौरक्षक के रूप में इन्होने गायो की सेवा की, उनके लिए गौशाला और चारे का प्रबंध किया.


इनकी स्पष्ट घोषणा थी कि अगर कोई उनके रहते गाय पर अत्याचार करेगा तो उसकी गर्दन उडा दी जाएगी. जैसी छवि इनकी गौरक्षा के प्रति थी वैसे ही नारी सुरक्षा और सम्मान के रक्षक भी थे।


गोड राजा रिडमल के साथ घाटवा के युद्ध में तीर लगने से इनका देहांत हो गया था. आज भी शेखाजी की छतरी रलावता गाँव से कुछ ही दूरी पर जीण माता के पास बनी हुई हैं. यहाँ बनी छतरी का उद्घाटन पूर्व राष्ट्रपति महामहिम प्रतिभा पाटील के हाथों से हुआ था।


स्त्री का सम्मान और गौरक्षा :-


महाराव शेखाजी की शासनावधि में विदेशी तुर्क आक्रान्ताओं की मार आज का समूचा राजस्थान झेल रहा था. शेखाजी अरबी और अफगानी बर्बरता से कई युद्ध लडे जीता और अपने राज्य को उनसे सुरक्षित और स्वतंत्र रखा, एक गौरक्षक के रूप में इन्होने गायो की सेवा की, उनके लिए गौशाला और चारे का प्रबंध किया।


इनकी स्पष्ट घोषणा थी कि अगर कोई उनके रहते गाय पर अत्याचार करेगा तो उसकी गर्दन उडा दी जाएगी. जैसी छवि इनकी गौरक्षा के प्रति थी वैसे ही नारी सुरक्षा और सम्मान के रक्षक भी थे।


गोड राजा रिडमल के साथ घाटवा के युद्ध में तीर लगने से इनका देहांत हो गया था. आज भी शेखाजी की छतरी रलावता गाँव से कुछ ही दूरी पर जीण माता के पास बनी हुई हैं. यहाँ बनी छतरी का उद्घाटन पूर्व राष्ट्रपति महामहिम प्रतिभा पाटील के हाथों से हुआ था।


क्षत्रिय धर्म युगे: युगे: ⚔️🚩


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जय माॅं भवानी ⚔️🚩

जय एकलिंग महाराज ⚔️🚩

Thursday, January 27, 2022

Gupta empire

 


The Gupta Empire (319 CE - 470 CE) 👑


HISTORY:-


Gupta dynasty was initially a small kingdom which was a vassal state of the Kushans. Later during Chandragupt I's reign it became an independent Empire limited to the Ganga Valley. Samudragupta the Great became the Emperor in 319 AD as per Gupta records. He was a great military commander who conquered Bengal, Kamrupa(North east),Kalinga, Dakshin Koshal,Vengi, Pallava kingdom, parts of Vatakata dynasty, later Kushan Empire in eastern Punjab and Kashmir.


As per Sri Lankan records Ceylon accepted the Suzerainty of the Gupta Empire during Samudragupta's rule. He also maintained relations with the Western Kshatrapas, Kushans of Afghanistan and Punjab and EVEN SOUTH EAST ASIAN KINGDOMS. It is quite possible that about mentioned Kingdoms accepted his suzerainty INCLUDING INDONESIA AND MALAYSIA.


Samudragupta was succeeded by Chandragupt ii Vikramaditya (as per some texts Ramgupta). Chandragupta ii Vikramaditya subjugated Western Kshatrapas, Bactria and also defeated the Sassanid Empire. He crossed Sapta Sindhu to conquer these Lands. Vatakatas and Kadambas remained his Vassal states.


Source: Allahabad Pillar Inscriptions, Chandragupta ii Vikramaditya's Delhi pillar inscriptions, Ceylonese records Raghuvamsha and various articles relating to the topic including my self study.

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Rashtrakuta empire

 


Rashtrakuta Empire at its peak under Govinda iii around 793 CE.


Govinda III (reign 793–814 CE) was a famous Rashtrakuta ruler who succeeded his illustrious father Dhruva Dharavarsha. He was militarily the most successful emperor of the dynasty with successful conquests-from Kanyakumari in the south to Kannauj in the north, from Banaras in the east to Broach (Bharuch) in the west. He held such titles as Prabhutavarsha, Jagattunga, Anupama, Kirthinarayana, Prithvivallabha, Shrivallabha, Vimaladitya, Atishayadhavala and Tribhuvanadhavala. From the Someshvara inscription of 804 it is known that Gamundabbe was his chief queen.


Rashtrakutas after defeating the Palas and Gurjara Pratihars captured the city of Kannauj. They also made Ceylon, Chola, Chera,Pandayas, Dakshin Koshal, Pallavas and Western Ganga their Vassals under Govinda iii.


Except dating which is bit +- nothing wrong in data. which is Illustration in adobe spark once edited we cant do anything. And its summarized rashtrakuta empire map.Its not about just one king which achieved peak during govinda iii.under Krishna III & Butuga II after battle of takkolam entire southern land submitted to rastrakutas.