Friday, September 2, 2022

सूर्यवंशी क्षत्रियों (इक्ष्वाकु कुल) की शाखा वर्तमान गौड राजपूतों का वंश परिचय एंव इतिहास।

 

सूर्यवंशी क्षत्रियों (इक्ष्वाकु कुल) की शाखा वर्तमान गौड राजपूतों का वंश परिचय एंव इतिहास।। 🙏🚩

ब्रह्मा के पुत्र मरीचि द्वारा चलित सूर्यवंशी क्षत्रिय कुल मे जन्मे परम प्रतापी, शौर्यवान और प्रजा प्रमी अतः अज के पुत्र महात्मा दशरथ। दशरथ जी के चार पुत्रों श्री राम, भरत, लक्ष्मण और शत्रुघ्न मे से श्री राम के अनुज भरत के वंशज द्वारा ही गौड राजपूत राजवंश की नींव रखी गई थी।।


गौङ वंश की सामान्य जानकारी :- 


कुल :  सूर्यवंशी क्षत्रिय (वर्तमान गौड राजपूत)

गौत्र : भारद्वाज

प्रवर : भारद्वाज, बाईस्पत्य, अंगिरस

वेद : यजुर्वेद

शाखा :  वाजसनेयी

सूत्र : पारस्कर

कुलदेवी : महाकाली

इष्ट देव : रूद्रदेव

वृक्ष : केला

गृहदेवी : नारायणी माता

भैरव : गया-सुर

नदी :  गिलखा

तालाब :  गया-सागर

गढ़ :  पहला बंगाल, दुसरा गढ़ अजमेर

गुरू : वशिष्ठ

किले की देवी :  महादुर्गा

ढाल : आशावरी

तलवार :  रंगरूप

बन्दुक :  संदाण

तोप :  कट्कबिजली

कटार :  रणवीर

छुरी :  अस्पात

ढोल : जीतपाल

नंगारा : रणजीत

घाट :  हरीद्वार

तीर्थ :  द्वारिका

भाट :  करणोत

चारण :  मेहसन

ढोली : डोगव


गौड़ राजवंश भारत में राजपूतों का एक कुल है, जोकि सूर्यवंशी क्षत्रियों के इक्ष्वाकु वंश में जन्मे श्रीराम के अनुज भरत जी के वंशज हैं ।


गौड़ राजवंश परिचय


गौड़ क्षत्रिय भगवान श्रीराम के छोटे भाई भरत के वंशज हैं। ये सूर्यवंशी क्षत्रिय कुल के हैं। जब श्रीराम अयोध्या के सम्राट बने तब महाराज भरत को गंधार प्रदेश का स्वामी बनाया गया। महाराज भरत के दो बेटे हुये तक्ष एवं पुष्कल जिन्होंने क्रमशः प्रसिद्द नगरी तक्षशिला (सुप्रसिद्ध विश्वविधालय) एवं पुष्कलावती बसाई (जो अब पेशावर है)। एक किंवदंती के अनुसार गंधार का अपभ्रंश गौर हो गया जो आगे चलकर राजस्थान में स्थानीय भाषा के प्रभाव में आकर गौड़ हो गया। महाभारत काल में इस वंश का राजा जयद्रथ था। कालांतर में सिंहद्वित्य तथा लक्ष्मनाद्वित्य दो प्रतापी राजा हुये जिन्होंने अपना राज्य गंधार से राजस्थान तथा कुरुक्षेत्र तक विस्तृत कर लिया था। पूज्य गोपीचंद जो सम्राट विक्रमादित्य तथा भृतहरि के भांजे थे इसी वंश के थे। बाद में इस वंश के क्षत्रिय बंगाल चले गए जिसे गौड़ बंगाल कहा जाने लगा। आज भी गौड़ राजपूतों की कुल देवी महाकाली का प्राचीनतम मंदिर बंगाल में है जो अब बंगलादेश में चला गया है।


बंगाल में गौड राजपूत वंश :-


बंगाल में गौड़ राजपूतों का लम्बे समय तक शासन रहा। चीनी यात्री ह्वेन्शांग के अनुसार शशांक गौड़ की राजधानी कर्ण-सुवर्ण थी जो वर्तमान में झारखण्ड के सिंहभूमि के अंतर्गत आता है। इससे पता चलता है कि गौड़ साम्राज्य बंगाल (वर्तमान बंगलादेश समेत) कामरूप (असाम) झारखण्ड सहित मगध तक विस्तृत था। गौड़ वंश के प्रभाव के कारण ही इस क्षेत्र को गौड़ बंगाल कहा जाने लगा । शशांक गौड़ इस वंश का सबसे प्रतापी राजा था जो सम्राट हर्षवर्धन का समकालीन था तथा सम्पूर्ण भारत वर्ष पर शासन करने की तीव्र महत्वकांक्षा रखता था। शशांक गौड़ ने हर्षवर्धन के भाई प्रभाकरवर्धन का वध किया था। इसके बाद एक युद्ध में हर्षवर्धन ने शशांक गौड़ को पराजित किया और उसकी महत्वकांक्षाओं को बंगाल तक ही सीमित कर दिया। शशांक गौड़ के बाद इस वंश का पतन हो गया। बाद में इसी वंश के किसी क्षत्रिय ने गौड़ बंगाल में समृद्ध एवं शक्तिशाली पालवंश की नींव रखी। पाल वंश के अनेक शिलालेखों तथा अन्य दस्तावेजों से प्रमाणित होता है कि ये विशुद्ध सूर्यवंशी थे। लेकिन बोद्ध धर्म को प्रश्रय देने के कारण ब्राह्मणवादियों ने चन्द्रगुप्त तथा अशोक महान की तरह इन्हें भी शुद्र घोषित करने का प्रयास किया है। सम्राट हर्षवर्धन की मृत्यु के बाद भारत कई राज्यों में बंट गया और अगले 100 वर्षों तक कन्नौज पर अधिपत्य के विभिन्न क्षत्रिय राजाओं के बीच संघर्ष होता रहा क्यूंकि मगध के पतन के बाद भारतवर्ष का नया सत्ता शीर्ष कन्नौज बन चूका था तथा कन्नौज अधिपति ही देश का सम्राट कहलाता था। कन्नौज के लिए हुये इस संघर्ष में शामिल तत्कालीन भारत के प्रमुख तीन राजवंशों में क्षत्रीय प्रतिहार, राष्ट्रकूट के अलावा बंगाल का पाल वंश(गौड़) था। उस समय चोथी शक्ति के रूप में बादामी के चालुक्य (सोलंकी) तेजी से उभर रहे थे। पाल वंश के पतन के बाद पर्शियन आक्रान्ता बख्तियार खिलजी ने जब बंगाल पर हमले किये और उसे तहस नहस कर दिया तब गौड़ राजपूतों का बड़ी संख्या में बंगाल से राजस्थान की तरफ पलायन हुआ।


राजस्थान में गौड राजपूत वंश :- 


राजस्थान में गौड़ प्राचीन काल से ही रहते आये है, मारवाड़ क्षेत्र में एक क्षेत्र आज भी गौड़वाड़ व गौड़ाटी कहलाता है, जो कभी गौड़ राजपूतों के अधिकार क्षेत्र में रहा और वहां वे निवास करते थे। राजपूत वंशावली के अनुसार सबसे पहले सीताराम गौड़ बंगाल से राजस्थान के मारवाड़ क्षेत्र में आये। यही से बाहरदेव व नाहरदेव दो गौड़ कन्नौज सम्राट नागभट्ट द्वितीय के पास पहुंचे। जिनको नागभट्ट ने कालपी व नार (कानपुर) क्षेत्र जागीर में दिया। इन्हीं के वंशज आज उत्तर प्रदेश के इटावा बदायूं, कन्नौज, मोरादाबाद अलीगढ में निवास करते हैं। नार क्षेत्र में आगे की पीढ़ियों में हुये वत्सराज, वामन व सूरसेन नामक गौड़ वि.स. 1206 में पुष्कर तीर्थ स्नान हेतु राजस्थान आये। उस समय दहिया राजपूत अजमेर में चैहानों के सामंत थे। जिन्होंने चैहानों से विद्रोह कर रखा था.। तत्कालीन चैहान शासक विग्रहराज तृतीय ने विद्रोह दबाने गौड़ों को भेजा। गौड़ों ने दहियाओं का विद्रोह दबा दिया तब प्रसन्न होकर चैहान शासक ने इनको केकड़ी, जूनियां, देवलिया और सरवाड़ के परगने जागीर में दिये। वत्सराज के अधिकार में केकड़ी, जूनियां, सरवाड़ व देवलिया के परगने रहे वहीं वामन के अधिकार में मोठड़ी, मारोठ परगना रहा। महान राजपूत सम्राट पृथ्वीराज चैहान के कई प्रसिद्ध गौड़ सामंत थे। जिनमें रण सिंह गौड़ तथा बुलंदशहर का राजा रणवीर सिंह गौड़ प्रमुख थे। पृथ्वीराज रासो में और भी कई गौड़ सामंतों का जिक्र आता है। चंदरबरदाई ने गौडों की प्रशंसा में लिखा है -‘‘बलहट बांका देवड़ा, करतब बांका गौड़ हाडा बांका गाढ़ में, रण बांका राठौड़।’’


गौड वंश की उप-शाखाएं :- 


गौड़ राजपूत वंश की कई उपशाखाएँ (खापें) है जैसे- अमेठिया गौड़,अजमेरा गौड़, मारोठिया (लाखणोत) गौड़,सांगावत गौड़, बलभद्रोत गौड़, ब्रह्म गौड़, चॅवर गौर, भट्ट गौड़, गौड़हर, वैद्य गौड़, सुकेत गौड़, पिपारिया गौड़, अभेराजोत, किशनावत, चतुर्भुजोत, पथुमनोत, विबलोत, भाकरसिंहोत, भातसिंहोत, मनहरद सोत, मुरारीदासोत, लवणावत, विनयरावोत, उटाहिर, उनाय, कथेरिया, केलवाणा, खगसेनी, जरैया, तूर, दूसेना, घोराणा, उदयदासोत, नागमली, अजीतमली, बोदाना, सिलहाला आदि खापें है जो उनके निकास स्थल व पूर्वजों के नाम से प्रचलित है।


उत्तर प्रदेश में गौड़ क्षत्रिय : राजस्थान के मारवाड़ क्षेत्र से बाहरदेव व नाहरदेव दो गौड़ भाई कन्नौज सम्राट नागभट्ट द्वितीय के पास पहुंचे। जिनको नागभट्ट ने कालपी व नार (कानपुर) क्षेत्र जागीर में दिया। इन्हीं के ही वंशज आज उत्तर प्रदेश के कानपुर, एटा, इटावा, गोरखपुर बदायूं, मोरादाबाद तथा अलीगढ में निवास करते हैं।


नार के राजा पृथ्वीदेव गौड़ का विवाह महाराज गोपीचंद राठौड़ की बहिन से हुआ था। जब पृथ्वीदेव एक युद्ध में वीरगति को प्राप्त हुआ तो गोपीचंद राठौड़ ने अपने भांजों को बुला कर उन्हें अमेठी (कानपूर) का शासक बना दिया। राजा कान्ह्देव के ये वंशज अमेठिया गौड़ कहलाये। ये अमेठी लखनऊ, सीतापुर, पंचगछिया सहरसा ,राजधाम खगड़िया ,सीवान जिलों में बसते हैं। बंगाल से ही एक शाखा मथुरा आयी। दिल्ली सम्राट अनंगपाल तंवर के सेनापति दो गौड़ सगे भाई सूर और घोट थे। इन्होंने वर्तमान बिलराम (मथुरा) को जीता।


पवायन रियासत 1705 में राजा उदयसिंह गौड़ ने रूहिल्ला पठानों को पराजित कर रोहिलखंड उत्तरप्रदेश (महाभारतकालीन पंचाल प्रदेश) में सबसे बड़ी राजपूत रियासत पवायन (जिला शाहजहांपुर) की स्थापना की। जिसका शासन 1947 तक कायम रहा। यहाँ के शासक को राजा की उपाधि धारण करने का अधिकार रहा है।


बुलंदशहर में बसने वाले गौडों के पूर्वज राजस्थान से आये दो भाई थे जिला बिजनोर में भी गौड़ राजपूत बसते हैं। यहाँ मुकुटसिंह शेखावत के नेतृत्व में सोमवती अमावस्य पर गंगा स्नान करने राजस्थान से आये 12 राजाओं ने जिनमें बलभद्रसिंह गौड़ और बुद्धसिंह गौड़ भी शामिल थे, हिन्दु साधुओं की रक्षा आततायी मुस्लिम नवाब फतह उल्ला खान का वध करके की। इसके बाद इन 12 राजाओं ने 84-84 गाँव आपस में बाँट लिए और वहीं पर ही शासन करने लगे।


कानपुर से गौड़ राजपूतों का एक खानदान इलाहाबाद आ गया जो ओरछा के बुंदेलों की सेवा में था। इनके एक सामंत बिहारीसिंह गौड़ ने ओरंगजेब से बगावत की और एक युद्ध में मारे गए। इलाहबाद के डॉक्टर नरेंद्रसिंह गौर उत्तर प्रदेश सरकार में शिक्षा एवं गन्ना मंत्री भी रहे।


मध्य प्रदेश में गौड़ क्षत्रिय : मध्यप्रदेश में शेओपुर (जिला जबलपुर) गौड़ राजपूतों का एक प्रमुख ठिकाना रहा है। 1301 में अल्लाउद्दीन खिलजी ने शेओपुर पर कब्जा किया जो तब तक हमीर देव चैहान के पास था। बाद में मालवा के सुलतान का तथा शेरशाह सूरी का भी यहाँ कब्जा रहा। उसके बाद बूंदी के शासक सुरजन सिंह हाडा ने भी शेओपुर पर कब्जा किया। बाद में अकबर ने इसे मुगल साम्राज्य में मिला लिया। स्वतंत्र रूप से इस राज्य की स्थापना विट्ठलदास गौड़ के पुत्र अनिरुद्ध सिंह गौड़ ने की थी। इनके आमेर का कछवाहा राजपूतों से काफी निकट के और घनिष्ट सम्बन्ध रहे। अनिरुद्ध सिंह गौड़ की पुत्री का विवाह आमेर नरेश मिर्जा राजा रामसिंह से हुआ था। सवाई राजा जयसिंह का विवाह उदयसिंह गौड़ की पुत्री आनंदकंवर से हुआ था। जिससे ज्येष्ठ पुत्र शिवसिंह पैदा हुआ।


सन 1722 में जब जयपुर नरेश सवाई राजा जयसिंह जाटों का दमन करने थुड गए थे, उस समय तत्कालीन शेओपुर नरेश इन्दरसिंह गौड़ अपनी सेना सहित उनकी मदद में उपस्थित रहे। बाद में मैराथन के विरुद्ध भी इन्द्रसिंह गौड़ जय सिंह के साथ रहे। इसके अलावा भोपाल में पेशवाओं के विरुद्ध युद्ध और जोधपुर के विरुद्ध युद्ध में भी इन्दरसिंह गौड़ सवाई राजा की मदद में रहे। इस प्रकार इन्दरसिंह गौड़ ने पूरे जीवन सवाई राजा जयसिंह का साथ दिया। बाद में सिंधियों ने गौड़ों से शेओपुर को जीत लिया।


शेओपुर का 225 साल का इतिहास गवाही है, शानदार गौड़ राजपूत वास्तुकला की। नरसिंह गौड़ का महल हो, राणी महल हो या किशोरदास गौड़ की छतरियां हों, सब अपने आप में बेमिसाल हैं। आज ये शहर मध्यप्रदेश के पर्यटन का एक प्रमुख हिस्सा है।


खांडवा के गौड़ क्षत्रिय : शेओपुर के अलावा खांडवा भी मध्यप्रदेश में गौडों का एक प्रमुख ठिकाना रहा है। अजमेर साम्राज्य के सामंत राजा वत्सराज (बच्छराज) गौड़ (केकड़ी-जूनियां) के वंशज गजसिंह गौड़ और उनके भाइयों ने राजस्थान से हटकर 1485 में पूर्व निमाड़ (खांडवा) में घाटाखेड़ी नमक राज्य स्थापित किया। यह गौड़ राजपूतों का एक मजबूत ठिकाना रहा। वर्तमान में खांडवा के मोहनपुर, गोरड़िया पोखर राजपुरा प्लासी आदि गाँवों में उपरोक्त ठिकाने के वंशज बसे हुये हैं।


किंवदंती है एक गौड़ राजा के प्रताप और तप के कारण ही मध्यप्रदेश की नर्मदा नदी उलटी बहती है लेखक : सचिन सिंह गौड़, संपादक, सिंह गर्जना।।


गौड़ क्षत्रिय वंश से जुड़ी रोचक और इतिहास की बातें इस प्रकार हे :- 


(1). गौड़ क्षत्रिय भगवान श्रीराम के छोटे भाई भरत के वंशज हैं। ये विशुद्ध सूर्यवंशी कुल के हैं। जब श्रीराम अयोध्या के सम्राट बने तब महाराज भरत को गंधार प्रदेश का स्वामी बनाया गया। महाराज भरत के दो बेटे हुये तक्ष एवं पुष्कल जिन्होंने क्रमशः प्रसिद्द नगरी तक्षशिला (सुप्रसिद्ध विश्वविधालय) एवं पुष्कलावती बसाई (जो अब पेशावर है)। एक किंवदंती के अनुसार गंधार का अपभ्रंश गौर हो गया जो आगे चलकर राजस्थान में स्थानीय भाषा के प्रभाव में आकर गौड़ हो गया। 


(2). गंधार प्रदेश में शासन करने वाले गौड़ वंश में भी काफी महान सम्राट हुए जिन्होंने गौड़ वंश को अन्य क्षेत्रों में फैला दिया। इन महान सम्राटों ने कंधार प्रदेश की सीमा को बढ़ाते हुए राजस्थान तक पहुँचा दिया। आज भी राजस्थान में गौड़ राजपूतों की काफी अच्छी संख्या है।


(3). महाभारत काल में इस वंश का राजा जयद्रथ था। कालांतर में सिंहद्वित्य तथा लक्ष्मनाद्वित्य दो प्रतापी राजा हुये जिन्होंने अपना राज्य गंधार से राजस्थान तथा कुरुक्षेत्र तक विस्तृत कर लिया था। पूज्य गोपीचंद जो सम्राट विक्रमादित्य तथा भृतहरि के भांजे थे इसी वंश के थे। बाद में इस वंश के क्षत्रिय बंगाल चले गए जिसे गौड़ बंगाल कहा जाने लगा। आज भी गौड़ राजपूतों की कुल देवी महाकाली का प्राचीनतम मंदिर बंगाल में है जो अब बंगलादेश में चला गया है।


(4). बंगाल के गौड़ शासकों के अलावा राजस्थान में भी गौड़ वंश की एक अच्छी खासी जनसंख्या है। राजस्थान को गौड़ों के प्राचीन स्थलों के तौर पर देखा जाता है। यहां पर पुराने समय से ही गौड़ वंश के लोग निवास  कर रहे हैं। राजस्थान में जिस क्षेत्र को गौड़ वंश के लोग अच्छा खासा प्रभावित करते  है उसे गौड़बाड़ क्षेत्र के नाम से जाना जाता है। बंगाल से आकर मारवाड़ क्षेत्र में बसने बाले सर्वप्रथम सीताराम गौड़ थे।


(5). बंगाल में गौड़ राजपूतों का लम्बे समय तक शासन रहा। चीनी यात्री ह्वेन्शांग के अनुसार शशांक गौड़ की राजधानी कर्ण-सुवर्ण थी जो वर्तमान में झारखण्ड के सिंहभूमि के अंतर्गत आता है। इससे पता चलता है कि गौड़ साम्राज्य बंगाल (वर्तमान बंगलादेश समेत) कामरूप (असाम) झारखण्ड सहित मगध तक विस्तृत था। गौड़ वंश के प्रभाव के कारण ही इस क्षेत्र को गौड़ बंगाल कहा जाने लगा ।


(6). महान राजपूत शासक पृथ्वीराज  चौहान भी गौड़ वंश के नेतृत्व से खासे प्रभावित थे जिस बजह से उन्होंने अपने दरबार में गौड़ वंशियों को उच्च पद प्रदान किये थे।  रण सिंह गौड़ उनके दरबार  का हमेशा अहम हिस्सा रहे इसके अलावा बुलंदशहर के राजा रणवीर सिंह गौड़ से भी पृथ्वीराज चौहान के काफी अच्छे संबंध थे। प्रथ्वीराज चौहान की जीवनी में भी गौड़ वंशियों की काफी तारीफ की गयी है।


(7). गौड़ राजपूत वंश की कई उपशाखाएँ (खापें) है जैसे- अजमेरा गौड़, मारोठिया गौड़, बलभद्रोत गौड़, ब्रह्म गौड़, चमर गौड़, भट्ट गौड़, गौड़हर, वैद्य गौड़, सुकेत गौड़, पिपारिया गौड़, अभेराजोत, किशनावत, चतुर्भुजोत, पथुमनोत, विबलोत, भाकरसिंहोत, भातसिंहोत, मनहरद सोत, मुरारीदासोत, लवणावत, विनयरावोत, उटाहिर, उनाय, कथेरिया, केलवाणा, खगसेनी, जरैया, तूर, दूसेना, घोराणा, उदयदासोत, नागमली, अजीतमली, बोदाना, सिलहाला आदि खापें है जो उनके निकास स्थल व पूर्वजों के नाम से प्रचलित है।


(8). मध्यप्रदेश में शेओपुर (जिला जबलपुर) गौड़ राजपूतों का एक प्रमुख ठिकाना रहा है। 1301 में अल्लाउद्दीन खिलजी ने शेओपुर पर कब्जा किया जो तब तक हमीर देव चैहान के पास था। बाद में मालवा के सुलतान का तथा शेरशाह सूरी का भी यहाँ कब्जा रहा। उसके बाद बूंदी के शासक सुरजन सिंह हाडा ने भी शेओपुर पर कब्जा किया। बाद में अकबर ने इसे मुगल साम्राज्य में मिला लिया। स्वतंत्र रूप से इस राज्य की स्थापना विट्ठलदास गौड़ के पुत्र अनिरुद्ध सिंह गौड़ ने की थी। इनके आमेर का कछवाहा राजपूतों से काफी निकट के और घनिष्ट सम्बन्ध रहे। अनिरुद्ध सिंह गौड़ की पुत्री का विवाह आमेर नरेश मिर्जा राजा रामसिंह से हुआ था। सवाई राजा जयसिंह का विवाह उदयसिंह गौड़ की पुत्री आनंदकंवर से हुआ था। जिससे ज्येष्ठ पुत्र शिवसिंह पैदा हुआ।


(9). शेओपुर के अलावा खांडवा भी मध्यप्रदेश में गौडों का एक प्रमुख ठिकाना रहा है। अजमेर साम्राज्य के सामंत राजा वत्सराज (बच्छराज) गौड़ (केकड़ी-जूनियां) के वंशज गजसिंह गौड़ और उनके भाइयों ने राजस्थान से हटकर 1485 में पूर्व निमाड़ (खांडवा) में घाटाखेड़ी नमक राज्य स्थापित किया। यह गौड़ राजपूतों का एक मजबूत ठिकाना रहा। वर्तमान में खांडवा के मोहनपुर, गोरड़िया पोखर राजपुरा प्लासी आदि गाँवों में उपरोक्त ठिकाने के वंशज बसे हुये हैं।


(10). गौड़ वंश के शासकों की गिनती एक तेज तर्रार दिमाग वाले व्यक्ति एवं एक कुशल घुड़सवार के तौर पर की जाती है। गौड़ वंश की वीरता से प्रभावित होकर बहुत से शासकों ने अपने दरबार में गौड़ वंशियों को ऊँचे पद प्रदान किये । इतिहास गवाह है कि गौड़ों के नेतृत्व के बल पर कई शासक कामयाबी के शिखर तक पहुँचे थे।


नोट – गौड़ वंश की ऐतिहासिक जानकारी काफी विस्तृत है हमने अपने इस पोस्ट में मुख्य पहलुओं पर ही जानकारी दी है।फिर भी कोई महत्वपूर्ण जानकारी छूट गयी है तो हम उसके लिए क्षमाप्रार्थी हैं।


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जय एकलिंग महाराज ⚔️🚩

Sunday, August 28, 2022

Shekhavat and Kushwah Rajput history

 


शूर्यवंशी क्षत्रिय प्रभु श्री राम के पुत्र कुश से चला कुशवाहा (कच्छवाहा) राजपूत राजवंश से अलग होकर शेखावत राजपूत राजवंश स्थापित करने वाले गौरक्षक महाराव शेखा जी।। 🙏🚩


महाराव शेखाजी का इतिहास :- 


वर्तमान के शेखावटी क्षेत्र (जयपुर, सीकर, झुंझुनू) के संस्थापक महाराव शेखा जी ही थे. जिनके नाम शेखा से शेखावटी क्षेत्र पड़ा. इनका जन्म विक्रम संवत 1490 को मोकल जी के घर हुआ था. इनकी माता का नाम निरबान देवी था. शेखा जी जब अल्पायु में थे तभी इनके पिताजी का देहांत हो गया था. पिताजी के स्वर्गवास के बाद कम अवस्था में ही इन्हें चौबीस गाँवों की जागीर को सभालना पड़ा था. महाराव शेखाजी का इतिहास में हम इस महान प्रतापी, लोक हितेषी, नारी सम्मानरक्षक के बारे में संक्षिप्त में जानेगे।


महाराव शेखा जी पन्द्रहवी शताब्दी का एक अद्वितीय व्यक्तित्व था. उसका जन्म 1433 ई में हुआ. कछवाहा वंशीय होने से आमेर राज्य का सम्मान बनाए रखने हेतु वह उसे वार्षिक कर देता था. आमेर शासक चन्द्रसेन महाराव शेखाजी के बड़े भ्राता थे, उन्हें शेखा का स्वतंत्र राज्य मान्य नही नही था और उनको किसी प्रकार से आमेर की अधिनता में लाने के लिए प्रयासरत थे. राव शेखा जो एक स्वाभिमानी व्यक्ति थे, को आमेर की अधीनता स्वीकार नही थी अतः इसी कारण दोनों भाइयों के मध्य एक दशक तक युद्ध होते रहे और अंत में 1471 ई के युद्ध में शेख की विजय हुई. इसलिए चन्द्रसेन को शेखा को एक स्वतंत्र शासक के रूप में स्वीकार करना पड़ा।


महाराव शेखाजी युद्ध कला में पारंगत थे. इसके बाद उसने अपने आस-पास के स्थानों को हस्तगत करना शुरू किया. इसके परिणामस्वरूप भिवानी, हिंसार व अन्य अनेक क्षेत्रों पर महाराव शेखाजी का आधिपत्य हो गया. इनके राज्य में गाँवों की संख्या 360 तक पहुच गई।


महाराव शेखाजी के राज्य अमरसर का क्षेत्रफल आमेर राज्य से भी अधिक बड़ा था. राव शेखाजी ने शासक के रूप में धार्मिक सहिष्णुता का भी परिचय दिया. इन्ही के प्रयासों से पठानों ने गाय के मांस को न खाने का संकल्प लिया, वे नारी अस्मिता के रक्षक थे।


नारी के सम्मान को सुरक्षित रखने के लिए अपने जीवन का सन 1488 में उत्सर्ग कर दिया. जहाँ इनकी मृत्यु हुई, वहां उनकी याद में एक छतरी बनी हुई हैं.


शेखाजी का जीवनकाल :-


शेखावत समाज के पितृपुरुष कहे जाने वाले महाराव शेखाजी का जन्म कार्तिक महीने की शुक्ल पक्ष की दशमी रविवार संवत 1490 को नाण बरवाडा के स्थानीय शासक राजा मोकल जी की रानी निर्वाण के गर्भ से हुआ था।


वर्ष 1502 में अपने पिता की मृत्यु के उपरांत महज 12 वर्ष की आयु में इन्होने राजकाज संभाला, उन्नीस वर्ष की आयु प्राप्त करते ही शेखाजी ने राज्य विस्तार और अपनी प्रजा की भलाई के कार्य शुरू कर दिए.


राज्य की कूटनीति को विस्तार देने तथा पड़ोसी जागीरो से अच्छे सम्बन्ध स्थापित करने के लिए महाराव शेखाजी ने गोडो, निर्वाणों, तंवरो आदि जागीरदारों के साथ वैवाहिक सम्बन्ध स्थापित किये, उस समय मेवाड़ की सत्ता पर बैठे दूदाजी के साथ अपनी बेटी का विवाह कर अच्छे सम्बन्ध स्थापित किये।


आमेर के शासक चन्द्रसेन के साथ महाराव की पांच लड़ाईयां हुई, आखिर में दोनों के मध्य शान्ति समझौता हुआ और यह लम्बे समय तक कायम रहा।


स्त्री का सम्मान और गौरक्षा :-


महाराव शेखाजी की शासनावधि में विदेशी तुर्क आक्रान्ताओं की मार आज का समूचा राजस्थान झेल रहा था. शेखाजी गजनी, गौरी से कई बार भिड़े ऐसा माना जाता हैं. एक गौरक्षक के रूप में इन्होने गायो की सेवा की, उनके लिए गौशाला और चारे का प्रबंध किया.


इनकी स्पष्ट घोषणा थी कि अगर कोई उनके रहते गाय पर अत्याचार करेगा तो उसकी गर्दन उडा दी जाएगी. जैसी छवि इनकी गौरक्षा के प्रति थी वैसे ही नारी सुरक्षा और सम्मान के रक्षक भी थे।


गोड राजा रिडमल के साथ घाटवा के युद्ध में तीर लगने से इनका देहांत हो गया था. आज भी शेखाजी की छतरी रलावता गाँव से कुछ ही दूरी पर जीण माता के पास बनी हुई हैं. यहाँ बनी छतरी का उद्घाटन पूर्व राष्ट्रपति महामहिम प्रतिभा पाटील के हाथों से हुआ था।


स्त्री का सम्मान और गौरक्षा :-


महाराव शेखाजी की शासनावधि में विदेशी तुर्क आक्रान्ताओं की मार आज का समूचा राजस्थान झेल रहा था. शेखाजी अरबी और अफगानी बर्बरता से कई युद्ध लडे जीता और अपने राज्य को उनसे सुरक्षित और स्वतंत्र रखा, एक गौरक्षक के रूप में इन्होने गायो की सेवा की, उनके लिए गौशाला और चारे का प्रबंध किया।


इनकी स्पष्ट घोषणा थी कि अगर कोई उनके रहते गाय पर अत्याचार करेगा तो उसकी गर्दन उडा दी जाएगी. जैसी छवि इनकी गौरक्षा के प्रति थी वैसे ही नारी सुरक्षा और सम्मान के रक्षक भी थे।


गोड राजा रिडमल के साथ घाटवा के युद्ध में तीर लगने से इनका देहांत हो गया था. आज भी शेखाजी की छतरी रलावता गाँव से कुछ ही दूरी पर जीण माता के पास बनी हुई हैं. यहाँ बनी छतरी का उद्घाटन पूर्व राष्ट्रपति महामहिम प्रतिभा पाटील के हाथों से हुआ था।


क्षत्रिय धर्म युगे: युगे: ⚔️🚩


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जय माॅं भवानी ⚔️🚩

जय एकलिंग महाराज ⚔️🚩

Thursday, January 27, 2022

Gupta empire

 


The Gupta Empire (319 CE - 470 CE) 👑


HISTORY:-


Gupta dynasty was initially a small kingdom which was a vassal state of the Kushans. Later during Chandragupt I's reign it became an independent Empire limited to the Ganga Valley. Samudragupta the Great became the Emperor in 319 AD as per Gupta records. He was a great military commander who conquered Bengal, Kamrupa(North east),Kalinga, Dakshin Koshal,Vengi, Pallava kingdom, parts of Vatakata dynasty, later Kushan Empire in eastern Punjab and Kashmir.


As per Sri Lankan records Ceylon accepted the Suzerainty of the Gupta Empire during Samudragupta's rule. He also maintained relations with the Western Kshatrapas, Kushans of Afghanistan and Punjab and EVEN SOUTH EAST ASIAN KINGDOMS. It is quite possible that about mentioned Kingdoms accepted his suzerainty INCLUDING INDONESIA AND MALAYSIA.


Samudragupta was succeeded by Chandragupt ii Vikramaditya (as per some texts Ramgupta). Chandragupta ii Vikramaditya subjugated Western Kshatrapas, Bactria and also defeated the Sassanid Empire. He crossed Sapta Sindhu to conquer these Lands. Vatakatas and Kadambas remained his Vassal states.


Source: Allahabad Pillar Inscriptions, Chandragupta ii Vikramaditya's Delhi pillar inscriptions, Ceylonese records Raghuvamsha and various articles relating to the topic including my self study.

©Thehindumapper

Rashtrakuta empire

 


Rashtrakuta Empire at its peak under Govinda iii around 793 CE.


Govinda III (reign 793–814 CE) was a famous Rashtrakuta ruler who succeeded his illustrious father Dhruva Dharavarsha. He was militarily the most successful emperor of the dynasty with successful conquests-from Kanyakumari in the south to Kannauj in the north, from Banaras in the east to Broach (Bharuch) in the west. He held such titles as Prabhutavarsha, Jagattunga, Anupama, Kirthinarayana, Prithvivallabha, Shrivallabha, Vimaladitya, Atishayadhavala and Tribhuvanadhavala. From the Someshvara inscription of 804 it is known that Gamundabbe was his chief queen.


Rashtrakutas after defeating the Palas and Gurjara Pratihars captured the city of Kannauj. They also made Ceylon, Chola, Chera,Pandayas, Dakshin Koshal, Pallavas and Western Ganga their Vassals under Govinda iii.


Except dating which is bit +- nothing wrong in data. which is Illustration in adobe spark once edited we cant do anything. And its summarized rashtrakuta empire map.Its not about just one king which achieved peak during govinda iii.under Krishna III & Butuga II after battle of takkolam entire southern land submitted to rastrakutas.


Monday, October 25, 2021

ब्राह्मण_सरदार शंकर चक्रवर्ती - मुघलों का काल||

 

【●|| ब्राह्मण_सरदार_शंकर_चक्रवर्ती - #मुघलों_का_काल||● 】


इतिहास में ब्राह्मणों की वीरता की कहानी से हम लगभग भुला दिए गए हैं, लेकिन इतिहास के पन्नों में दर्ज वे सभी ऐतिहासिक घटनाएं आज भी हमें विस्मय से विस्मित करती हैं। आत्म-बलिदान के इन वीर कृत्यों ने भारतवर्ष को विदेशी हमलावरों के आक्रमण से रक्षा के साथ-साथ राष्ट्रीय गौरव भी बचाया है। इतिहास में ऐसी ही असाधारण वीर ब्राह्मण सेनापति है सरदार शंकर चक्रवर्ती, जिसने अपनी वीरता और बुद्धिमत्ता से विधर्मी मुघल शक्ति को बार-बार पराजित किया। ईनका जन्म सोलहवीं शताब्दी के अंतिम भाग में बंगाल के हरिपाल अंतर्गत द्वारहट्टा के पास प्रसादपुर गांव में हुआ था। एक साधारण मध्यमवर्गीय कुलीन ब्राह्मण परिवार में जन्मे, वह अपनी बुद्धि और क्षमता के कारण बंगाल के स्वतंत्र सम्राट महाराज प्रतापादित्य के यशोर सेना के राजसेनाध्यक्ष और मुख्य सलाहकार के पद तक पहुंचे।


सोलहवीं शताब्दी में दिल्ली में मुघल बादशाह अकबर का शासन चल रहा था । इस समय वीर महाराज प्रतापादित्य के शासन में बंगाल एक स्वतंत्र हिंदू राज्य बनके खड़ा हुआ था । शंकर के वीरता,व्यक्तित्व और चरित्र से प्रभावित होकर महाराज प्रतापादित्य उनको बंगाल के यशोर सेनापति के पद में निर्वाचन किया । महाराजा प्रतापादित्य के मुख्य सलाहकार शंकर चक्रवर्ती थे । सरदार शंकर एक परमधार्मिक शैव और महादेव के भक्त थे । युद्ध के मैदान में, विशेष रूप से मुघल सत्ता के खिलाफ लड़ाई में, शंकर ने हमेशा प्रतापादित्य को युद्ध की रणनीति करने की सलाह दी। इस सलाह ने प्रतापादित्य को कई लड़ाइयों में मुघलों को हराने में मदद की।


1) हिजली का युद्ध / ओडिशा विजय : 


इस समय ओडिशा सल्तनत में लोहानी पठान सुल्तानों का राज था जो हिंदुओं पर चरम अत्याचार करते थे । ओडिशा सल्तनत के अंतर्गत हिजली में सुल्तान ताज खान मसन्दरी का राज था जो जगन्नाथ रथयात्रा के दिन गौ-ब्राह्मण निधन शुरू किए । पठानों की इस अत्याचार से क्रोधित होकर इसी समय महाराज प्रतापादित्य ने हिजली पर आक्रमण कर दिया, इस आक्रमण के नेतृत्व में थे सेनापति शंकर चक्रवर्ती । हिजली में ताज खान और ईशा खान के साथ शंकर का भयंकर युद्ध हुआ । इस युद्ध मे शंकर ने ताज खान को बुरी तरह हराया और ईशा खान युद्ध के मैदान में ही मार दिया गया। इस युद्ध मे विजय से ओडिशा सल्तनत बंगाल के सम्राट प्रतापादित्य के शासन में एक सामंतराज्य बन गया और सनातन धर्म का विजययात्रा शुरू हुआ । 


2) पटना का युद्ध :


शंकर चक्रवर्ती की वीरता से भयभीत होकर अकबर ने पटना के नवाब अब्राहाम खान को एक बड़ी सेना के साथ बंगाल आक्रमण करने भेजा। अब्राहाम खान पटना के सभी सैनिकों के साथ बंगाल में प्रवेश किया और जेसोर की ओर बढ़ गया। आसन्न युद्ध की खबर सुनते ही, सरदार शंकर सैन्यसंयोग शुरू किया। जेसोर में मौटाला गढ़ के पास, शंकर एक विस्तृत दो-तरफा संरचना बनाई। जब मुघल सेना मौटाला आया तो सेनापति शंकर के निर्देश से बंगाल के सेना ने दो दिशाओं से आक्रमण करना शुरू कर दिया। ऐसे दोतरफा हमले में अधिकांश मुघल सेना की मौत हो गई और बाकी मुगल सेना डर ​​के मारे जेसोर सेना में शामिल हो गई। अब्राहाम खान को बंदी बना लिया गया।


3) राजमहल का युद्ध : 


वीर सेनापति शंकर चक्रवर्ती अब साम्राज्य विस्तार करना शुरू किया। लगभग पच्चीस हजार सैनिकों के साथ उसने राजमहल पर हमला किया। शंकर चक्रवर्ती की नेतृत्व में बंगाल की सेना गंगा के तट पर राजमहल में शेर खान की मुघल सेना के साथ भीषण लड़ाई लड़ी। आखिरकार नवाब की सेना हार गई और शेर खान दिल्ली भाग गया । इसके बाद सम्पूर्ण बिहार से मुघलो को खदेड़ कर इसे बंगाल के स्वतंत्र हिंदू शासन में लाया गया ।


(4) कालिन्द्री की युद्ध (1603): 


1603 में मुगल बादशाह जहांगीर बंगाल आक्रमण के लिए लड़ने के लिए मान सिंह के साथ 22 मुघल उमराह फौजदार भेजे। जेसोर पर हमले के दौरान कालिंदी नदी के पूर्वी तट पर बसंतपुर क्षेत्र में एक शिविर का निर्माण करते हुए, उन्होंने देखा कि सरदार शंकर उनके चारों ओर सैनिकों की व्यवस्था करके युद्ध का सारा इंतज़ाम करके रखे है । बसंतपुर-शीतलपुर क्षेत्र में बंगाल के सेना और मुघल सेना के बीच एक भीषण लड़ाई लड़ी गई थी। सरदार शंकर के नेतृत्व में युद्धग्रस्त बंगाल सेना की छापामार नौकाओं के हमले में मुघल सेना व्यावहारिक रूप से विध्वस्त हो गया। 22 मुघल उमराह में 12 युद्ध मे मारे गए थे और अन्य 10 अपनी जान बचाने के लिए युद्ध के मैदान से भाग गए थे। सरदार शंकर का महाकालस्वरूप उग्रमूर्ति देख मान सिंह मैदान छोड़ के भाग गया । 


सरदार शंकर चक्रवर्ती धर्म और राष्ट्र के रक्षा के लिए अनेक लड़ाईया लड़े । अपने जीवन के अंतिम समय मे उन्होंने ब्रह्मचर्य को अपनाया और तपस्या करके जीवन बिताया । बारासात इलाके में उनके खोदित पुष्करिणी "शंकरपुकुर" के नाम से आज भी उनके स्मृति का याद दिलाता है । मुघलों के खिलाफ उनके संघर्ष की कहानी ब्राह्मणों के वीरता को एक अलग आयाम दिया है। जाती की मन मे सरदार शंकर की स्मृति जगाने के लिए कलकत्ता निगम की पहल पर दक्षिण कोलकाता के कालीघाट की एक गली का नाम 'सरदार शंकर रोड' रखा गया है। स्मरण के उद्देश्य से एक पत्थर की पटिया पर खुदा हुआ -

ब्राह्मण महारानी नाग्निका सातकर्णी

 


ब्राह्मण महारानी नाग्निका सातकर्णी 


विश्व की पहली साम्राज्ञी,ब्राह्मण कुलवधू,सातवाहन ब्राह्मण वंश की महारानी नाग्निका सातकर्णी


ध्यान दीजिए भारत ही नहीं अपितु पुरे विश्व की पहली सम्रागी शासिका बनी थी श्री सातकर्णि की अर्धांगिनी नागनिका.. 


पुष्यमित्र शुंग के शासनकाल के बाद लगभग 518 वर्षों तक सातवाहन ( शालिवाहन ) राजवंश का समृद्ध इतिहास मिलता है इसी वंश की तीसरी पीढ़ी की राज-शासिका थी-‘नागनिका’ 

विश्व के इतिहास में नागनिका पहली महिला-शासक मानी जाती है  नागनिका सम्राट सिमुक सातवाहन की पुत्रवधू तथा श्री सातकर्णी की पत्नी थी , 

युवावस्था में ही श्री सातकर्णी का निधन हो जाने से वह राज्य-कार्यभार सँभालती है सातवाहन काल में राज्य शासन केंद्र था वृहद् महाराष्ट्र,जिसमें कर्णाटक-कोंकण तक सम्मिलित थे जिसकी राजधानी प्रतिष्ठान (पैठण) थी.. 


सातवाहन (शालिवाहन) काल में सीरिया, बेबीलोनिया के असुरी शक्तिओ का प्रभाव था यह इतने क्रुर थे जहाँ भी जाते थे लूटपाट मचाते थे , सनातन संस्कृति को नष्ट करना इनका मूल उद्देश्य होता था.. 


जब श्री सातकर्णि शालिवाहन सम्राट का युद्ध में निधन हुआ तो असुरी शक्ति के प्रभाव से शालिवाहन साम्राज्य को नुक्सान भी हुआ था वस्तुतः राष्ट्रनिर्माण हो जाने पर राष्ट्रविकास की संकल्पना को पूर्ण करते समय प्रथम और सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण कार्य सीमा रक्षण का होता है जिसमे चूंक होना विनाश का बुलावा होता है.. 


आज भी इन बातों पर गम्भीरता से विचार करने की आवश्यकता है राज्य सबल, सुन्दर, विकसित और सम्पन्न तभी हो सकेगा जब राष्ट्र निर्भय होगा , 

हम शान्तिप्रिय हैं और हम अहिंसा के पुजारी हैं इसका कोई, मनमाना अर्थ न निकाल ले इसलिए हमें अपने राष्ट्र को सामर्थ्यशाली साधन सम्पन्न बनाना चाहिए.. 


किसी को इस भ्रम में नहीं रहना चाहिए कोई शत्रु कभी हम पर आक्रमण नहीं करेगा दुष्ट और हिंसक प्रवृत्तियाँ कभी समाप्त नहीं होती हैं यथावसर ऐसी प्रवृत्तियाँ विश्व-विनाशकारी सिद्ध होती हैं इसलिए राष्ट्रसेना सुरक्षित, सुसज्जित और प्रशिक्षित होनी चाहिए.. 


इसी वैचारिकता को आत्म सात करते हुए महारानी नागनिका ने कहा -भविष्य में हम अपने राष्ट्र में अन्तरिम और बाह्य कैसे भी विद्रोह अथवा आक्रमण को क्षमा नहीं करेंगे महामन्त्री सुशर्मा ! आप इस समाचार को त्वरित प्रसारित करने की व्यवस्था कीजिए !’’– महारानी नागनिका ने गर्जना की.. 

वीरांगना सम्रागी नागनिका सातकर्णि ने शालिवाहन साम्राज्य और वैदिक हिन्दू संस्कृति के सूर्य को कभी अस्त नहीं होने दिया साम्रगी नागनिका के समय 781-764 (ई.पूर्व) 6 युद्ध हुये अस्सीरिया मेसोपोटामिया (Mesopotami , Assyria) के असुरों के खिलाफ शाल्मनेसेर चतुर्थ 773 (ई.पूर्व)और आशूर निरारि पंचम 755 (ई.पूर्व) यह असुर प्रजाति के थे यह जिस राज्य में कदम रखते थे वहाँ के नारियों को यह अपना निशाना बनाते थे , दर्दनाक शारीरिक यातनाओं से गुजरना पड़ता था ना केवल धन लूटते थे अपितु संस्कृति का विनाश कर देते थे..

यह कोई सौ पचास हज़ार की तादात में सेना लेकर नहीं आते थे यह मेसोपोटमिया के असुर दल लाखों की संख्या में सेना लेकर आते थे, सम्रागी नागनिका के राज्य शासन की राजधानी महाराष्ट्रा थी, इन्होंने कई लड़ाईयां लड़ी शाल्मनेसेर चतुर्थ के साथ प्रथम लड़ाई लड़ी गई थी जहाँ इतिहासकार "रोबर्ट वालमन" ने अपनी पुस्तक "वर्ल्ड फर्स्ट वारियर" में लिखा हैं "सम्रागी नागनिका ने अरब तक राज्य विस्तार की थी उनके तलवार के आगे 157 विदेशी असुरों ने घुटने टेक दिये थे"


आगे "शुभांगी भदभदे" नाम की इतिहासकार "सम्रागी नागनिका नमक उपन्यास" में लिखती हैं "असुर- निरारि पंचम की 1,36,000 संख्या वाली दानव शक्ति   को नाग्निका ने भारत की पुण्यभूमि से बहुत बुरी तरह खदेड़ दिया था,  साम्रगी नागनिका के मृत्यु के पश्चात भी इन दानवों की हिम्मत नहीं हो पायी दोबारा आर्यावर्त पे आक्रमण करने की सम्रागी नागनिका बेबीलोनिया, मेसोपोटमिया और अरबी हमलावरों को भारत से ना केवल खदेडती थी अपितु उनका पूर्णरूप से विनाश कर देती थी ,ताकि ये बर्बर आक्रमणकारि दोबारा सनातन राष्ट्र भारत पर आक्रमण करने का सोच भी ना सके यह प्रसिद्ध लड़ाइयाँ कर्णाटक-कोंकण पैठण में लड़ी गयी थी"


सम्रागी नागनिका ना केवल एक कुशल महारानी साथ ही साथ सनातन हिन्दू संस्कृति के संरक्षण के लिए अवतरित हुई एक विलक्षण,रण कौशलिनी, युद्ध के 49 कला से निपुण शासिका थी, शत्रुओं के बल और दर्प (घमण्ड) का अन्त तो करती थी साथ ही साथ अगर ज़रूरत होती थी तो शत्रु का पूर्णरूप से मा दुर्गा की तरह नाश कर देती थी..


सम्रागी नागनिका सातकर्णि अतिकुशल राजनीतिज्ञ भी थी उन्होंने राजनीती के बल पर घोर विरोधी राज्य को भी बिना युद्ध लड़े एक छत्र शासन में ले आई थी...!


विश्व की पहली सम्रागी नागनिका सातकर्णि पहली शासिका थी जिन्होंने युद्ध में नेतृत्व करते हुए खुद भी युद्ध लड़ी थी असुर दलों के विरुद्ध और अरब तक राज्य विस्तार की थी.. 


ज़रा सोचिये मित्रो यह बात कोई आधुनिक ज़माने की बात नहीं हैं यह बात 782(ई.पूर्व) की बात हैं यह तब की बात हैं जब यूरोप में कोई शासिका बनना तो दूर घर से चौखट लांग कर जाने तक के लिए पूछना पड़ता था, 

तब हमारे भारत की नारी सम्रागी बन कर भारत का सनातनी भगवा ध्वज अरब में लहराई थी...!


नाग्निका विश्व की पहली महारानी हैं जिनके नाम का सिक्का निकला था...!


साभार ऐतिहासिक तथ्य साक्ष्य 

रोबर्ट वालमन by वर्ल्ड फर्स्ट वारियर

शुभांगी भदभदे by सम्रागी नागनिका उपन्यास

Sunday, October 24, 2021

Chennabhairadevi, the queen of Gersoppa (Karnataka) Protected from Portuguese

 


She is Rani Chennabhairadevi, the queen of Gersoppa (Karnataka), who protected her kingdom from Portugese attacks and intrusion for 54 long years. She one of the longest serving queens of India, ruling from 1552 to 1606 CE! She built the robust Mirjan Fort in Uttara Kannada to check Portugese attacks. She was known as the Pepper Queen. The Portugese feared her.


During this time of October in 1505, Francisco de Almeida started office as the Viceroy of Portugese India with headquarters at Kochi. Thereafter, they started building forts in several locations and expanded their base and trading of pepper and other spices. By the time Rani Chennabhairadevi became the ruler, the Portugese had already established a strong base. She drove away the Portugese from her kingdom and involved in several wars against them, emerging victorious.


Besides the small conflicts, Chennabhairadevi involved in two major wars against the Portuguese when D Constantino de Braganza was the Viceroy and when D Luis de Ataide held that position. So badly were the Portugese defeated that they gave up the idea of attacking her kingdom. Chennabhairadevi’s story of valor is described in detail in a chapter in #SaffronSwords Vol 2 along with 51 more chapters/episodes of valor of our warrior ancestors from 8th century to Independence. It is under publication by Garuda Prakashan and will be released soon. Hitharth S Bhatt did an illustration on Rani Chennabhairadevi for the book. Saffron Swords Vol 1 link: https://www.amazon.in/Saffron-Swords-Authors-Manoshi-Yogaditya/dp/B07Q139493.


Had Rani Chennabhairadevi not shown her military might and had she not offered resistance continuously, India would have been under Portugese rule for centuries. We all know about the Goa Inquisition after Goa fell under Portugese wherein the Hindus were m@ssacred, converted and not allowed to follow rituals. Hundreds of temples were v@ndalized by the Portugese.  


Attacks by Adharmics continue to this day. Self defence and retaliation is the need of the hour. 


- Manoshi Sinha; attached image is the cover of Kannada book on Chennabhairadevi by Dr Gajanana Sharma.


From the Facebook wall of Manoshi Sinha