Tuesday, October 20, 2015

JUNAGARH FORT {BIKANER}

JUNAGARH FORT {BIKANER}
बीकानेर का किला [जूनागढ]
=>लाल पत्थरो से बने इस भव्य किले का निर्माण बीकानेर के प्रतापी शासक रायसिँह ने करवाया था जो मुगल बादशाह अकबर और फिर जहाँगीर का प्रमुख एंव विशवत मनसबदार था।
=>बीकानेर के पुराने गढ कि नीव तो आदि मे बीकानेर यशस्वी संस्थापंक राव बीकाजी ने विं सवत 1542 [1485 ई] मे रखी थी।उनके द्वारा निर्मित प्राचीन किला नगर प्राचीन[शहरपनाह]के भीतर दक्षिण पच्चिम मे एक ऊँची चट्टान पर विधमान है।जो "बीकाजी कि टेकरी" कहलाती है।
=>महाराजा रायसिँह ने बीकानेर के वर्तमान भव्य दुर्ग जुनागढ का निर्माण करवाया।
=>बीकानेर के राजाओ द्रारा मुगलो कि अधीनता स्वीकार करने उनसे राजनैतिक मित्रता और निकट सम्बन्द कि वजह से बीकानेर के इस किले पर कोई बडे आक्रमण नही हुए।
=>1733 ईँ मे नागौर के अधिपति बखतसिँह ने अपने भाई जोधपुर के महाराजा अभयसिँह के साथ एक विशाल सेना लेकर बीकानेर पर आक्रमण किया परन्तु वे विफल रहे।
=>1740 ई मे जोधपुर के महाराजा अभयसिँह ने बीकानेर पर चढाई कि।इस शक्तिशाली सेना ने बीकानेर नगर मे बहुत विंध्वस किया तथा जूनागढ पर तोपो के गोले बरसाये। संकट कि इस घडी मे बीकानेर के महाराजा जोरावरसिँह ने जयपुर नरेश सवाईजयसिँह से सहायता करने का अनुरोध किया।इस पर महाराजा सवाईसिँह ने जोधपुर के महाराजा अभयसिँह को[जो उनके दामाद भी थे] चेतावनी देते हुए सन्देशा भेजा कि वह तत्काल बीकानेर का घेरा उठा ले। लेकिन अभयसिह नही माने तो सवाई जयसिँह ने तीन लाख कि विशाल सेना के साथ जोधपुर पर चढाई कर दि।अब अभयसिँह को विवश होकर बीकानेर का घेरा उठाना पडा।
=>सुरजपोल दरवाजे पर अपने वीर पतियो के साथ स्वर्गारोहण करने वाली विरांगनाओ के हाथ के छापे भी अंकित है।सुरजपोल कि एक अन्य विशेष बात यह है कि इसके दोनो तरफ 1567 ई के चितौड के साके मे वीरगति पाने वाले दो इतिहास प्रसिद्ध वीरो जयमल मेडतिया और उनके बहनोई आमेट के रावत पता सिसोदिया कि गजारुढ मुर्तिया स्थापित है।अकबर ने भी आगरा के किले के प्रवेश द्वार पर वीरवर जयमल और पता कि ऐसी ही गजारुढ प्रतिमाये स्थापित करवायी थी।
=>रायसिँह का चौबारा,फूल महल,चन्द्र महल,गज मन्दिर,अनुप महल,रत्न निवास,रंग महल,कर्ण महल,दलेल निवास,चीनी बुर्ज,सुनहरी बुर्ज,विक्रम विलास,सुरत निवास,मोती महल,कुंवरपदा और जालीदार बारहदरियां प्रमुख है।
=>बीकानेर के अंतिम महाराजा डाँ करणीसिँह थे।
=>बीकानेर के किले मे अनुपमहल कि दिवारो पर सोने कि पच्चीकारी का काम किया गया है।इस भव्य महल मे बीकानेर के राजाऔ का राजतिलक होता था।
=>जूनागढ कि एक प्रमुख विशेषता है कि इसके प्रांगण मे दुर्लभ प्राचीन वस्तुओ,शस्त्रास्त्रो,देव प्रतिमाओ विविध प्रकार के पात्रो तथा फारसी व संस्क्रत मे लिखे गए हस्तलिखित ग्रन्थो का बहुत समृद्ध संग्रहालय है।
From rajput unity 

बुलेट चले बिना सवार ॐ बन्ना के प्रत्यक्ष चमत्कार

बुलेट चले बिना सवार ॐ बन्ना के प्रत्यक्ष चमत्कार
राजस्थान वीरो की भूमि ऐसा कोई गाव नही जहा झुंझार के देवालय न हो ऐसी कोई जगह नही जो राजपूतो के रक्त से सिंचित न हो
यहाँ की मिट्टी में हजारो नही लाखो कहानिया दबी पड़ी है पर सन् 1988 में पाली जिले में घटी एक विचित्र घटना ने पुरे देश को एक बार फिर सोचने पर मजबूर कर दिया
एक दिव्य आत्मा जो मारने के बाद भी अमर हो गयी और आज भी करती है राहगिरो की सेवा नाम है '""ओम् सिंह राठौड उर्फ़ ॐ बन्ना"""
सदूर राजस्थान के पाली जिले का एक गाव "चोटीला" यहाँ ठाकुर जोग। सिंह जी के घर 5 मई को जन्म हुआ
ओम सिंह राठौड का .. आप 2 दिसम्बर 1988 को वाहन दुर्घटना में देवलोक गमन हो गये। इसके बाद में ओम बन्ना की बुलेट को पुलिस प्रशासन अपने साथ नजदीक रोहिट थाने (पाली) थाने में ले आई। चमत्कार कहो या अजूबा वो बुलेट थाने से रात को उसी स्थान पहुंच गई जहां दुर्घटना हुई थी। इसी घटना की चार बार पुनरावर्ति हुई। ठाकुर साहब व गाँववालों के निवेदन पर ओम बन्ना की अन्तिम इच्छा समझकर पुलिस प्रशासन ने बुलेट को उसी स्थान पर रख दिया। धीरे-धीरे यह चर्चा सुनकर आस पास के गाँवों व शहरों के लोग उनके दर्शनों के लिए आने लगे। रोहर हाइवे पर कई दुर्घटनाएं घटित होती थी पर बाद में ओम बन्ना उस हाइवे पर दुर्घटनाओं को बचाते दिखाई देते रहते थे। लोगों में आस्था बढती गई और अपनी मन्नते मागने लगे।
पाली शहर से 17 किलोमीटर दूर जोधपुर-अहमदाबाद राजमार्ग, पाली जिले के बांडाई गांव के पास ओम बन्ना की मोटर साइकिल को भी उन्हीं के साथ पूजा जाता है। यह बात भले ही आपको आश्चर्यजनक लगे मगर यह सच है। मोटर साइकिल की पूजा के पीछे कुछ चमत्कारिक कारण भी है जिसके कई लोगों के साथ पुलिसकर्मी भी प्रत्यक्षदर्शी हैं। बात आज से करीब 27 साल पहले दिंनाक 2 दिसम्बर 1988 की है। राजमार्ग पर बसे पाली से जाते समय बांडाई गांव के पास ओम बन्ना का सड़क दुर्घटना में देहान्त हो गया। जानकार बताते हैं कि घोर अंधेरी रात्रि के समय ओम बन्ना अपनी बुलेट मोटर साईकिल पर गांव लौट रहे थे। चोटिला के पास जब वे पहुंचे तो अचानक उनके सामने दिव्य प्रकाश हुआ यह देखकर उनकी आंखें चौंधिया सी गई और ऐसी स्थिति में उन्हें कुछ न समझ आया तो और उनकी बुलेट एक। पेड़ से जा भीड़ी और ओम बन्ना का देहावसान हो गया।
1988 में हादसे की खबर पाकर पुलिस वहां पहुंची और शव का पंचनामा कर आवश्यक खानापूर्ति के बाद उसे उनके परिजनों को सौंप दिया। पुलिस बुलेट मोटर साइकिल को लेकर थाने आ गई। इसी के साथ शुरू हो गया चमत्कारों का सिलसिला। अगली सुबह मोटर साइकिल फिर हादसे वाली जगह पर पायी गई। पुलिस ने दुबारा मोटर साइकिल घटनास्थल से उठवाकर थाने के एक कमरे के अन्दर बंद कर दी और बाहर से मजबूत ताला लगवा दिया चाबी थानाधिकारी ने अपने पास रख ली। परन्तु दूसरे दिन जब मोटर साइकिल वाला कमरा देखा गया तो ताला व मोटर साइकिल हादसे वाली जगह पर खड़ी पायी गई।
थाने में चार बार मोटर साइकिल को जंजीर से बांधकर भी रखा गया, लेकिन हर बार वह दुर्घटना स्थल पर ही मिलती। प्रत्यक्षदर्शियों के अनुसार कई ग्रामीणों ने मोटर साइकिल को बिना चालक राजमार्ग की ओर दौड़ते हुए भी देखा। अंतत: बन्ना के पिता ठाकुर जोगसिंह और प्रत्यक्षदर्शी ग्रामीणों के भावना की कद्र करते हुए पुलिस ने मोटर साइकिल को हादसे वाली जगह पर रखने की इजाजत दी। कुछ दिन पश्चात ओम बन्ना ने अपनी दादीसा श्रीमती समंदर कंवर को सपने में दर्शन दिए और कहा कि जहां पर मेरी दुर्घटना हुई, वहां पर मुझे स्थान दिया जाए, इसके लिए वहां मेरा चबूतरे नुमा स्थान बनाया जाए तभी मुझे शांति मिलेगी। उसके बाद वहां पर एक चबूतरा बनवाया गया और ओम बन्ना की इच्छानुसार मोटर साइकिल को भी उनके स्थान के पास रखवा दिया गया। कहते है कि जिस तारीख व समय पर ओम बन्ना दुर्घटना का शिकार हुए थे उस दिन खडी मोटर साइकिल का इंजन कुछ देर के लिए चालू हो जाता है। अब आराध्यदेव यानि भौमियाजी का दर्जा पा चुकी मोटरसाइकिल को लेकर पेशोपेश थी कि इस अजूबे को फूल माला कहां पहनाई जाये और चंदन टीका कहां लगाया जाए। काफी सलाह मशवरा व आपसी सोच विचार के बाद तय किया गया कि हेडलाइट पर माल्यार्पण हो और पहियों के पास जमीन पर दीया-धूप-बत्ती की जाए। तब से लेकर आज दिन तक यह सिलसिला जारी है। मोटर साइकिल को किसी ने वहां से हिलाया तक नहीं है। हां इतना अवश्य है कि इसकी साफ सफाई नियमित तौर पर की जाती है और नम्बर प्लेट जिस पर आर. एन. जे. 7773 नम्बर पड़ा है। प्रतिवर्ष नए रंग रोगन से मोटर साइकिल सजती है। धार्मिक भावना का यह आलम है कि हर साल हादसे वाली रात को इस स्थान पर भजन कीर्तन के दौरान ओम बन्ना भी वहां अदृश्य होते हुए भी अपनी मौजूदगी का अहसास दिलाते हैं।
ये क्षेत्र पहले राजस्थान के दुर्घटना संभावित क्षेत्र था पर ॐ बन्ना के मंदिर के बाद यहाँ दुर्घटंना न के बराबर हुयी है
एक नही सैकड़ो चालको को दावा है की ॐ बन्ना ने उनको बहुत से दुर्घटनाओ से बचाया है
कहा यह भी जाता है कि उस दिन बुलेट मोटर साइकिल बिना सवारी के थाने के चारों और चक्कर काटकर अपनी श्रद्धा ‘ओम बन्ना’ को अर्पित करती है।
ओम बन्ना आज भी अपने अनुयायियों के दिलों में इस कदर जगह बनाए हुए है कि मानों अब भी उनके साथ ही रहते हो, ओम बन्ना के देहावसान के बाद ज्यों-ज्यों उनके चमत्कार सामने आने लगे तो दुर्घटनास्थल पर ही उनका स्थान देवालय का सा दर्जा पा गया, जो आज तक जारी है। वर्तमान में यह स्थान काफी विकसित हो गया है। यहां दो तीन धर्मशालाएं बनी हुई है व छोटी बड़ी घुमटियों में जोत जलती रहती है और पूजा अर्चना के लिए पुजारी की नियुक्ति की गई है।दिन रात गाव के ढोली जी यहाँ रहते है मारवाड क्षेत्र ही नहीं ओम बन्ना के भक्त अन्य कई स्थानों से यहां प्रसाद चढ़ाने आते हैं खासतौर से जोधपुर मार्ग पर यहां से गुजरने वालों में से शायद ही कोई ऐसा होगा जो यहां रूककर ओम बन्ना के दर्शन किये बिना चला जाये। कई लोगों की ओम बन्ना के प्रति ऐसी श्रद्वा व आस्था है। यहां रोजाना ही भीड लगी रहती है लेकिन हर वर्ष उनके दिवस पर बहुत बडे मेले का आयोजन किया जाता है।
बडाई गांव के लोग भी मोटर साइकिल वाले ‘ओम बन्ना की वजह से गांव को मिल रही पहचान से खुश है। वजह साफ है इससे पहले सैकड़ों मीटर लम्बे राजमार्ग पर सन्न सन्न निकलते वाहनों के लिए इसकी अहमियत रास्ते में पडऩे वाले दूसरे गांवों से ज्यादा न थी, और अब यह ऐसा आस्था स्थल बन चुका है जहां दिन हो या रात हमेशा काफी भीड़ लगी रहती है। एक गुमनाम मील के पत्थर की जगह यह स्थान इस राजमार्ग पर अपनी एक पहचान बना चुका है।
बचपन में ही भविष्यवाणी हो गई थी उनके चमत्कारी होने की
ओम बन्ना राठौड वंश से जुडे राजपूत है ओम बन्ना का जन्म विक्रम सम्वत २०२१ में वैशाख सुदी अष्ठमी का चमकी चांदनी रात में हुआ था। कहते है जब ओम बन्ना की जन्म कुंडली बनवाने ज्योतिषी आए तो उन्होंने ओम बन्ना की ठुड्डी व ललाट देखकर भविष्यवाणी की कि यह एक चमत्कारी बालक है, यह बडा होकर दशों दिशाओं में राठौड़ वंश का नाम उज्ज्वल करेगा। ठाकुर जोग सिंह व मां सरूप कंवर के पुत्र ओम बन्ना को मोटर गाडी चलाने का काफी शौक था बचपन में जब भी वह गांव में स्कूटर या मोटर साइकिल देखते थे तो वह अपने माता-पिता या दादी सा की गोद से कूदकर अपने छोटे-छोटे हाथों से मोटर साइकिल की आकृति बनाते और मुंह से गाडी की आवाज निकालकर सडक पर तेजी से दौडऩे लग जाते थे। शायद यही कारण है कि मोटर साइकिल से उनका नाता आज भी जुड़ा हुआ है।
* जोधपुर के राजकुमार शिवराज सिंह की पोलो खेलते वक़्त घोड़े पर गिरने से चोट लगी थी सभी डॉक्टर ने मना कर दिया था तभी महारानी हेमलता राजे के यहा की मन्नत मांगी और अगले ही क्षण अमेरिका से खबर आती की अब हालात खतरे से बहार है मन्नत पूरी होने पर जोधपुर महारानी हेमलता राजे यहाँ दर्शन को आई थी
*प्रवासी सिद्धान्त और उनकी पत्नी का एक्सीडेंट ॐ बन्ना के समीप जोधपुर मार्ग पर होता है सिंद्धांत सीरियस होता है हालात खतरे में होती है उनकी पत्नी में बहुत मदद मांगी पर एक भी गाडी नही रुकी ओर जैसा की उनकी पत्नी खुद Mano ya na mano Star Tv को बताया की तभी एक बुलेट सवार वहा आता है और उन्हें जोधपुर ले जाता और अपना नाम ॐ सिंह बातके जाते है वापसी में जब ये लौट रहे थे तभी वो ॐ बन्ना के दर्शन को रुके वहा लगी तस्वीर और बुलेट को देख वो सकते में आ जाते है तस्वीर होती है उस बुलेट सवार की जिन्होंने उन्हें बचाया और बुलेट भी वही

तब से हर अंतराल के बाद ये बड़े शहर में पढ़ा लिखा जैन दंपति यहाँ माथा टेकने आते है
* वक़्त 2011 पाली से जोधपुर शहर के बीच चलने वाली प्राइवेट बस गर्मियों की भरी दोपहर शहर से एक चारण महिला चढ़ती है और ॐ बन्ना स्थान के जाने के लिये पूछती है बस चलती है तभी कंडेक्टर। मनमाने किराये लेता है ॐ बन्ना के लिए और ये कहता है की। इतने रूपये नही दिया तो बस वहा नही रुकेगी
वहा यात्रियों चारण महिला और कन्डेक्टर की तू तू मै मै होती है महिला ने सबके सामने बस ईतना ही कहा की ओम बन्ना की मर्जी के बिना तुम आगे नही जा सकते आज ही चमत्कार मिल जायेगा तभी बस आगे बड़ी और ॐ बन्ना के मंदिर से कुछ 20 मीटर पहले चलती बस के आगे वाले दोनो कांच वही मन्दिर के सामने फुट जाते है इस घटना का प्रत्यक्ष दर्शी में खुद रहा था
* जाखड़ ट्रैवल की बस का ॐ बन्ना के थान के सामने ही 3 बार पलटना और चमत्कारिक रूप से एक भी यात्री का घायाल न होना सभी को 3 घंटे के भीतर प्राथमिक उपचार के बाद छुट्टी
ऐसे ही हजारो चमत्कार जिसके हजारो प्रत्यक्षदर्शी है
Source :- Rajputana Soch

जैसलमेर दुर्ग

जैसलमेर दुर्ग
यह किला जैसलमेर मे स्थित है।इस किले का निर्माण 1155 ईँ मे राव जैसल ने किया था। राजस्थान लोक कव्य मे इस किले को जयसनगढ कहा गया है। इस किले के निर्माण मे चुने का उपयोग नही किया गया। इस किले का निर्माण पिले पत्थरो से किया गया है।
विदेशी आक्रमणकारियो से देश कि उतरी-पशिचमी सीमा कि रक्षा करने के कारण इसे उतरी भडकिवाड के नाम से जाना गया ।
ये किला त्रिभुजकार पहाडी पर बना हुआ है। इसलिए इसे त्रिकुट के नाम से भी जाना जाता है। यह किला दुर से ऐसा लगता मानो रेत के समुन्दर मे विशाल जहाज लंगर डाले खडा हो।
इस किले के चार दरवाजे है जिनके नाम अक्षयपोल,सुरजपोल,गणेशपोल और हवापोल।
यह किला राज्य का दुसरा सबसे बडा लिविँग किला है जिसके चारो और 99 ब्रुज है।
फिल्म निदेशक सत्यजित राय ने इस इतिहासिक किले पर "सोनार किला" नामक फिल्म बनाई थी।
किले के अन्दर जयसुल कुँआ स्थित है। माना जाता है कि इसका निर्माण श्रीक्रष्ण ने सुदर्शन चक्र से किया था।
किले के अन्दर आदिनाथ जी का मन्दिर भी है। किले के पशिचमी गेट के पास "बादल महल" स्थित है।
इस किले के बारे मे एक दोहा प्रसिद्ध है।

"गढ दिल्ली,गढ आगरो,अदगढ बीकानेर।
भलो चुनयो भाटीयो,सिरे तो जैसलमेर।
 

Friday, October 16, 2015

महायोगी देवरहा बाबा ,Yogi Devraha Baba

महायोगी देवरहा बाबा की गाथा






सिद्धी योग में जो शक्तियां हैं उसका वर्णन पुराणों में विस्तार से है। सिद्धी योग के चमत्कार भी पढऩे को मिल जाते हैं, लेकिन इस अद्भूत योग क्रिया का एक जीता जागता उदाहरण भारत में भी देखने को मिला। उत्तरप्रदेश के देवरिया में देवरहा बाबा नाम से एक योगी थे। माना जाता है कि देवरहा बाबा 250 साल तक जीवित रहे। सुनने में यह भी आता है कि बाबा 900 साल जिंदा रहे, कुछ लोगों का मानना है कि बाबा 500 साल तक जीवित रहे। बाबा पर लिखी कुछ  किताबों और लेखों में दावा किया गया है कि बाबा ने जीवन भर अन्न नहीं खाया।
कब जन्म हुआ, किसी को नहीं पता


 बाबा देवरहा 19 मई, 1990 में चल बसे। लेकिन बाबा का जन्म कब हुआ, कहां हुआ? इस बारे में किसी को कुछ पता नहीं है। बाबा मथुरा में यमुना के किनारे रहा करते थे। यमुना किनारे लकडिय़ों की बनी एक मचान उनका स्थाई बैठक स्थान था। बाबा इसी मचान पर बैठकर ध्यान, योग किया करते थे। भक्तों को दर्शन और उनसे संवाद भी यहीं से होता था। कहा जाता है कि जिस भक्त के सिर पर बाबा ने मचान से अपने पैर रख दिए, उसके वारे-न्यारे हो जाते थे। उन्होंने कभी अन्न नहीं खाया, बाबा केवल यमुना नदी का पानी पीते थे।




एक अध्ययन के अनुसार अगर कोई व्यक्ति ब्रह्माण्ड की ऊर्जा से शरीर के लिए आवश्यक एनर्जी प्राप्त कर ले और उसे भूख ना लगे यह संभव है।

साथ ही अगर कोई व्यक्ति ध्यान क्रिया करे और उसकी लाइफस्टाइल संयत और संतुलित हो तो भी लम्बे जीवन की अपार संभावनाएं होती हैं। इसके अतिरिक्त आयु बढ़ाने के लिए किए जाने वाली योग क्रियाएं करे, तो भी लम्बा जीवन सपना नहीं। हालांकि अध्ययन के अनुसार इन तीनों चीजों का एक साथ होना आवश्यक है। बाबा देवरहा एक साथ दो अलग जगहों पर भी प्रकट हो सकते थे।
इसके पीछे पतंजलि योग सूत्र में वर्णित सिद्धी थी। बाबा के पास इस तरह की कई और सिद्धियां भी थी। इनमें से एक और सिद्धी थी पानी के अंदर बिना सांस लिए आधे घंटे तक रहने की। इतना ही नहीं बाबा जंगली जानवरों की भाषा भी समझ लेते थे। कहा जाता है कि वह खतरनाक जंगली जानवरों को पल भर में काबू कर लेते थे।
हालांकि बाबा को किसी ने कहीं आते-जाते नहीं देखा था। उनके अनुयायियों के अनुसार बाबा के पास जो भी आता उसे वे प्रसाद जरूर देते थे। बाबा मचान पर बैठे-बैठे अपना हाथ मचान के खाली भाग में करते और उनके हाथ में मेवे, फल और कई अन्य तरह के खाद्य पदार्थ आ जाते थे। कहा तो यह भी जाता है कि बाबा के  रहने के स्थान के आस-पास के बबूल के पेड़ों के कांटे भी नहीं होते थे।

बाबा के अनुयायियों के अनुसार बाबा को दिव्यदृष्टि की सिद्धी प्राप्त थी। बाबा बिना कहे-सुने ही अपने पास आने वालों की समस्याओं और उनकी मन की बात जान लिया करते थे। याद्दाश्त उनकी इतनी गजब की थी कि वे दशकों बाद भी किसी व्यक्ति से मिलते थे उसके दादा-परदादा तक के नाम और इतिहास बता दिया करते थे।







Thursday, October 15, 2015

Great King Ashoka महन सम्राट अशोक


क्या आपने कभी सोचा है.?
=> जिस सम्राट के नाम के साथ
संसार भर के इतिहासकार “महान” शब्द लगाते हैं......
=> जिस सम्राट
का राज चिन्ह अशोक चक्र भारत देश अपने झंडे में लगता है.....
=> जिस सम्राट का राज चिन्ह चारमुखी शेर को भारत देश
राष्ट्रीय प्रतीक मानकर सरकार
चलाती है......
=> जिस देश में सेना का सबसे बड़ा युद्ध
सम्मान सम्राट अशोक के नाम पर अशोक चक्र दिया जाता है.....
=> जिस
सम्राट से पहले या बाद में कभी कोई ऐसा राजा या सम्राट
नहीं हुआ, जिसने अखंड भारत (आज का नेपाल, बांग्लादेश,
पूरा भारत, पाकिस्तान और अफगानिस्तान) जितने बड़े भूभाग पर एक
छत्री राज किया हो......
=> जिस सम्राट के शाशन काल
को विश्व के बुद्धिजीवी और इतिहासकार
भारतीय इतिहासका सबसे स्वर्णिम काल मानते हैं.....
=> जिस सम्राट के शाशन काल में भारत विश्व गुरु था, सोने
की चिड़िया था, जनता खुशहाल और भेदभाव रहित
थी......
=> जिस सम्राट के शाशन काल
जी टी रोड जैसे कई हाईवे रोड बने, पूरे रोड पर
पेड़ लगाये गए, सराये बनायीं गईं इंसान तो इंसान जानवरों के लिए
भी प्रथम बार हॉस्पिटल खोले गए, जानवरों को मारना बंद कर
दिया गया.....
ऐसे महन सम्राट अशोक कि जयंती उनके
अपने देश भारत में
क्यों नहीं मनायी जाती, न किकोई
छुट्टी घोषित कि गई है??
अफ़सोस जिन लोगों को ये
जयंती मनानी चाहिए, वो लोग अपना इतिहास
ही नहीं जानते और जो जानते हैं

Wednesday, October 14, 2015

दारा शिकोह


दारा शिकोह और कुरान पर गीता जी की श्रेष्ठता सिद्ध करने वाली अद्भुत घटना 
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मुग़ल बढ़शाह शाहजहाँ का बड़ा बेटा दारा शिकोह को 10 September 1642 में मुग़ल सल्तनत का युवराज बनाया गया।  बब्बर मुग़ल सल्तनत मे जन्मा इकलौता जहीन, धर्म-ज्ञानी, प्रतिभाशाली लेखक दारा को सूफियों, मनीषियों, फ़क़ीरों, दर्वेशों और सन्यासियों की संगत अच्छी लगती थी । कट्टर मुसलमान उसे धर्मद्रोही मानते थे, जबकि दारा को अलग-अलग धर्मों में गहरी रुचि थी, वे विश्व बंधुत्व और विभिन्न धर्मों, संस्कृति और फिलॉसफी में मेलजोल चाहते थे ।

1645 मे शाहजहां ने 20 हजार पैदल और 20 हजार घुड़सवार सेना के साथ दारा को इलाहाबाद का सूबेदार  (governor) नियुक्त किया । अप्रैल 1648 मे गुजरात के सूबेदार बनाये जाने से पहले करीब साढे 3 साल दारा इलाहाबाद का एकछत्र शासक रहा ! उन दिनों की ही बात है ---दारा इलाहाबाद संगम पर रोज सुबह घूमने हवाखोरी करने जाया करते थे, जहां संगम तट पर दारा साधु-संत के साथ धर्म-चर्चा मे खासी रुचि लिया करते थे ।

दारा की हिन्दू सनातन धर्म मे बढ़ती रुचि को देख उसकी पत्नी नादिरा ने एक दिन धार्मिक चर्चा के दौरान अजीब सी शर्त रख दी । बोली क्यों नही  हिन्दू और इस्लाम के पवित्र धर्मग्रंथ एक बंद कमरे मे एक-के-उपर एक रख दिये जाएं और परवरदिगार की नजर मे जो धर्मग्रंथ सर्वश्रेष्ठ होगा वह अपने आप सबसे उपर आ जायेगा ।

इस पर दारा ने भी थोड़ी ना-नुकुर पर अपनी सहमति दे दिया । तुरंत सभी धर्मग्रंथ मंगवाये गये, पर इस प्रतियोगिता मे किस ग्रंथ को शामिल किया जाये इस पर हिन्दू साधु-संत एकमत नही हो पा रहे थे । तत्काल वेद नही उपलब्ध होने के करण उसे प्रतियोगिता मे शामिल नही किया जा सका । काफी विचार-विमर्श के बाद हिन्दू धर्म की तरफ़ से रामायण, रामचरित मानस, कुछ पुराण-उपनिषद और श्रीमदभगवद गीता जी शामिल हुए और इस्लाम की तरफ से सिर्फ कुरान-शरीफ़ को शामिल किये जाने पर सभी एकमत हुए ।

कड़ी सुरक्षा के बीच दारा ने अपने महल के एक कमरे मे एक टेबल पर सभी साधु-संतों की मौजूदगी मे सभी धर्मग्रंथों को रखा गया, पर नादिरा ने चालाकी से कुरान को सबसे उपर रख दिया और बोली अब श्रेष्ठता का फैसला अल्लाह करेंगे ।

लेकिन सुबह जब सभी पक्षों के सामने कमरे का ताला खोला गया तो, श्रीमदभगवद गीता जी सभी धर्मग्रंथों मे सबसे उपर रखी थी, और कुरान शरीफ़ सबसे नीचे रखा मिला । दारा उसकी पत्नी नादिरा सभी पक्ष गीता जी के पक्ष मे अल्लाह का यह फैसला देख अचंभित रह गये । गीता जी के परम ईश्वरीय ज्ञान के आगे सभी नतमस्तक हो गये ।
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इस घटना का असर दारा के मन मस्तिष्क पर गहरा असर छोड़ गया, दारा दिनों दिन अध्यात्मिकता की तरफ झुकता चला गया । मुस्लिम विद्वान पढ सके इसके लिये उसने हिन्दू सनातन धर्म के धर्म ग्रंथ उपनिषद का रूपांतरण संस्कृत से पर्सियन भाषा मे किया । उसकी ज्यादातर रचनाएं Sirr-e-Akbar (The Greatest Mystery) के नाम  से जानी जाती है ।

सूफ़ी और वेदान्त मत  पर लिखी दारा की किताब Majma-ul-Bahrain ("The Confluence of the Two Seas") भी काफी प्रसिद्ध हुई । शासन से विरक्त दारा धार्मिक सद्भाव के लिये सातवें सिख गुरु Guru Har Rai से भी मिला, लाहौर के प्रसिद्ध कादरी सूफ़ी संत  Hazrat Mian Mir का सानिध्य भी दारा को प्राप्त हुआ ।  

दारा ने एकबार कहा था :- "यहाँ के आबो हवा में कुछ है, कि हर आदमी खुद से यह सवाल करता कि मै कौन हूँ, मेरे जीवन का मकसद क्या है ? और अगर कभी वह यह बात भूल भी जाता है, तो यहाँ के साधु-संत, फ़क़ीर, दर्वेश, उसे यह याद दिला देते है कि तू सोच, कि तुम कौन हो !"
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काश शाहजहां के बाद दारा शिकोह जैसा विश्व बंधुत्व और सर्वधर्म समभाव मे विश्वास करने वाला ज्ञानी, धर्म तत्व मर्मग्य बादशाह हिन्दुस्तान की गद्दी पर बैठता ! 
By Dr Alam Frankfurt Germany 

ज्वाला देवी मंदिर


अकबर और ध्यानु भगत की कथा :-
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हिमाचल प्रदेश में कांगड़ा से 30 किलो मीटर दूर स्तिथ है, ज्वाला देवी मंदिर। इसे  जोता वाली का मंदिर भी कहा जाता है।   यहाँ पर पृथ्वी के गर्भ से नौ अलग अलग जगह से ज्वाला निकल रही है जिसके ऊपर ही मंदिर बना दिया गया हैं।  इन नौ ज्योतियां को महाकाली, अन्नपूर्णा, चंडी, हिंगलाज, विंध्यावासनी, महालक्ष्मी, सरस्वती, अम्बिका, अंजीदेवी के नाम से जाना जाता है। 

इस जगह के बारे में एक कथा अकबर और माता के परम भक्त ध्यानु भगत से जुडी है। जिन दिनों भारत में मुगल सम्राट अकबर का शासन था,उन्हीं दिनों की यह घटना है। हिमाचल के नादौन ग्राम निवासी माता का एक सेवक धयानू भक्त एक हजार यात्रियों सहित माता के दर्शन के लिए जा रहा था। इतना बड़ा दल देखकर बादशाह के सिपाहियों ने चांदनी चौक दिल्ली मे उन्हें रोक लिया और अकबर के दरबार में ले जाकर ध्यानु भक्त को पेश किया।

बादशाह ने पूछा तुम इतने आदमियों को साथ लेकर कहां जा रहे हो। ध्यानू ने हाथ जोड़ कर उत्तर दिया मैं ज्वालामाई के दर्शन के लिए जा रहा हूं मेरे साथ जो लोग हैं, वह भी माता जी के भक्त हैं, और यात्रा पर जा रहे हैं।

अकबर ने सुनकर कहा यह ज्वालामाई कौन है ? और वहां जाने से क्या होगा? ध्यानू भक्त ने उत्तर दिया महाराज ज्वालामाई संसार का पालन करने वाली माता है। वे भक्तों के सच्चे ह्रदय से की गई प्राथनाएं स्वीकार करती हैं। उनका प्रताप ऐसा है उनके स्थान पर बिना तेल-बत्ती के ज्योति जलती रहती है। हम लोग प्रतिवर्ष उनके दर्शन जाते हैं।

अकबर ने कहा अगर तुम्हारी बंदगी पाक है तो देवी माता जरुर तुम्हारी इज्जत रखेगी। अगर वह तुम जैसे भक्तों का ख्याल न रखे तो फिर तुम्हारी इबादत का क्या फायदा? या तो वह देवी ही यकीन के काबिल नहीं, या फिर तुम्हारी इबादत झूठी है। इम्तहान के लिए हम तुम्हारे घोड़े की गर्दन अलग कर देते है, तुम अपनी देवी से कहकर उसे दोबारा जिन्दा करवा लेना। इस प्रकार घोड़े की गर्दन काट दी गई।

ध्यानू भक्त ने कोई उपाए न देखकर बादशाह से एक माह की अवधि तक घोड़े के सिर व धड़ को सुरक्षित रखने की प्रार्थना की। अकबर ने ध्यानू भक्त की बात मान ली और उसे यात्रा करने की अनुमति भी मिल गई।

बादशाह से विदा होकर ध्यानू भक्त अपने साथियों सहित माता के दरबार मे जा उपस्थित हुआ। स्नान-पूजन आदि करने के बाद रात भर जागरण किया। प्रात:काल आरती के समय हाथ जोड़ कर ध्यानू ने प्राथना की कि मातेश्वरी आप अन्तर्यामी हैं। बादशाह मेरी भक्ती की परीक्षा ले रहा है, मेरी लाज रखना, मेरे घोड़े को अपनी कृपा व शक्ति से जीवित कर देना। कहते है की अपने भक्त की लाज रखते हुए माँ ने घोड़े को फिर से ज़िंदा कर दिया।

यह सब कुछ देखकर बादशाह अकबर हैरान हो गया | उसने अपनी सेना बुलाई और खुद  मंदिर की तरफ चल पड़ा | वहाँ पहुँच कर फिर उसके मन में शंका हुई | उसने अपनी सेना से मां की ज्योतियों को बुझाने के लिए अकबर नहर  बनवाया लेकिन मां के चमत्कार से ज्योतियां नहीं बुझ पाईं। इसके बाद अकबर मां के चरणों में पहुंचा लेकिन उसको अहंकार हुआ था कि उसने सवा मन (पचास किलो) सोने  का छत्र हिंदू मंदिर में चढ़ाया  है । इसलिये  ज्वाला  माता ने वह छतर कबूल नहीं किया, इसे लोहे का बना (खंडित) दिया था।

आप आज भी वह बादशाह अकबर का छतर ज्वाला देवी के मंदिर में देख सकते हैं | जब माँ ने अकबर का घम्मंड दूर कर दिया था और अकबर भी माँ का सेवक बन गया था,तब अकबर ने भी माँ के भगतो के लिए वहाँ सराय बनवाए। 
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चमत्कारिक है ज्वाला :
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पृत्वी के गर्भ से इस तरह की ज्वाला निकलना  वैसे कोई आश्चर्य की बात नहीं है, क्योंकि पृथ्वी की अंदरूनी हलचल के कारण पूरी दुनिया में कहीं ज्वाला कहीं गरम पानी निकलता रहता है। कहीं-कहीं तो बाकायदा पावर हाऊस भी बनाए गए हैं, जिनसे बिजली उत्पादित की जाती है। लेकिन यहाँ पर ज्वाला प्राकर्तिक न होकर चमत्कारिक है क्योंकि अंग्रेजी काल में अंग्रेजों ने अपनी तरफ से पूरा जोर लगा दिया कि जमीन के अन्दर से निकलती 'ऊर्जा' का इस्तेमाल किया जाए। कुछ वर्ष पहले ONGC ने भी Gas Resources ढूंढे, लेकिन लाख कोशिश करने पर भी वे इस 'ऊर्जा' के श्रोत को नहीं ढूंढ पाए। वही अकबर लाख कोशिशों के बाद भी इसे बुझा न पाए। यह दोनों बाते यह सिद्ध करती है की यहां ज्वाला चमत्कारी रूप से ही निकलती है ना कि प्राकृतिक रूप से, नहीं तो आज यहां मंदिर की जगह मशीनें लगी होतीं और बिजली का उत्पादन होता। 
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डॉक्टर आलम  जर्मनी 
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