महायोगी देवरहा बाबा की गाथा

सिद्धी योग में जो शक्तियां हैं उसका वर्णन पुराणों में विस्तार से है। सिद्धी योग के चमत्कार भी पढऩे को मिल जाते हैं, लेकिन इस अद्भूत योग क्रिया का एक जीता जागता उदाहरण भारत में भी देखने को मिला। उत्तरप्रदेश के देवरिया में देवरहा बाबा नाम से एक योगी थे। माना जाता है कि देवरहा बाबा 250 साल तक जीवित रहे। सुनने में यह भी आता है कि बाबा 900 साल जिंदा रहे, कुछ लोगों का मानना है कि बाबा 500 साल तक जीवित रहे। बाबा पर लिखी कुछ किताबों और लेखों में दावा किया गया है कि बाबा ने जीवन भर अन्न नहीं खाया।
कब जन्म हुआ, किसी को नहीं पता

बाबा देवरहा 19 मई, 1990 में चल बसे। लेकिन बाबा का जन्म कब हुआ, कहां हुआ? इस बारे में किसी को कुछ पता नहीं है। बाबा मथुरा में यमुना के किनारे रहा करते थे। यमुना किनारे लकडिय़ों की बनी एक मचान उनका स्थाई बैठक स्थान था। बाबा इसी मचान पर बैठकर ध्यान, योग किया करते थे। भक्तों को दर्शन और उनसे संवाद भी यहीं से होता था। कहा जाता है कि जिस भक्त के सिर पर बाबा ने मचान से अपने पैर रख दिए, उसके वारे-न्यारे हो जाते थे। उन्होंने कभी अन्न नहीं खाया, बाबा केवल यमुना नदी का पानी पीते थे।

एक अध्ययन के अनुसार अगर कोई व्यक्ति ब्रह्माण्ड की ऊर्जा से शरीर के लिए आवश्यक एनर्जी प्राप्त कर ले और उसे भूख ना लगे यह संभव है।
साथ ही अगर कोई व्यक्ति ध्यान क्रिया करे और उसकी लाइफस्टाइल संयत और संतुलित हो तो भी लम्बे जीवन की अपार संभावनाएं होती हैं। इसके अतिरिक्त आयु बढ़ाने के लिए किए जाने वाली योग क्रियाएं करे, तो भी लम्बा जीवन सपना नहीं। हालांकि अध्ययन के अनुसार इन तीनों चीजों का एक साथ होना आवश्यक है। बाबा देवरहा एक साथ दो अलग जगहों पर भी प्रकट हो सकते थे।
इसके पीछे पतंजलि योग सूत्र में वर्णित सिद्धी थी। बाबा के पास इस तरह की कई और सिद्धियां भी थी। इनमें से एक और सिद्धी थी पानी के अंदर बिना सांस लिए आधे घंटे तक रहने की। इतना ही नहीं बाबा जंगली जानवरों की भाषा भी समझ लेते थे। कहा जाता है कि वह खतरनाक जंगली जानवरों को पल भर में काबू कर लेते थे।
हालांकि बाबा को किसी ने कहीं आते-जाते नहीं देखा था। उनके अनुयायियों के अनुसार बाबा के पास जो भी आता उसे वे प्रसाद जरूर देते थे। बाबा मचान पर बैठे-बैठे अपना हाथ मचान के खाली भाग में करते और उनके हाथ में मेवे, फल और कई अन्य तरह के खाद्य पदार्थ आ जाते थे। कहा तो यह भी जाता है कि बाबा के रहने के स्थान के आस-पास के बबूल के पेड़ों के कांटे भी नहीं होते थे।

बाबा के अनुयायियों के अनुसार बाबा को दिव्यदृष्टि की सिद्धी प्राप्त थी। बाबा बिना कहे-सुने ही अपने पास आने वालों की समस्याओं और उनकी मन की बात जान लिया करते थे। याद्दाश्त उनकी इतनी गजब की थी कि वे दशकों बाद भी किसी व्यक्ति से मिलते थे उसके दादा-परदादा तक के नाम और इतिहास बता दिया करते थे।
बाबा देवरहा 19 मई, 1990 में चल बसे। लेकिन बाबा का जन्म कब हुआ, कहां हुआ? इस बारे में किसी को कुछ पता नहीं है। बाबा मथुरा में यमुना के किनारे रहा करते थे। यमुना किनारे लकडिय़ों की बनी एक मचान उनका स्थाई बैठक स्थान था। बाबा इसी मचान पर बैठकर ध्यान, योग किया करते थे। भक्तों को दर्शन और उनसे संवाद भी यहीं से होता था। कहा जाता है कि जिस भक्त के सिर पर बाबा ने मचान से अपने पैर रख दिए, उसके वारे-न्यारे हो जाते थे। उन्होंने कभी अन्न नहीं खाया, बाबा केवल यमुना नदी का पानी पीते थे।
एक अध्ययन के अनुसार अगर कोई व्यक्ति ब्रह्माण्ड की ऊर्जा से शरीर के लिए आवश्यक एनर्जी प्राप्त कर ले और उसे भूख ना लगे यह संभव है।
साथ ही अगर कोई व्यक्ति ध्यान क्रिया करे और उसकी लाइफस्टाइल संयत और संतुलित हो तो भी लम्बे जीवन की अपार संभावनाएं होती हैं। इसके अतिरिक्त आयु बढ़ाने के लिए किए जाने वाली योग क्रियाएं करे, तो भी लम्बा जीवन सपना नहीं। हालांकि अध्ययन के अनुसार इन तीनों चीजों का एक साथ होना आवश्यक है। बाबा देवरहा एक साथ दो अलग जगहों पर भी प्रकट हो सकते थे।
इसके पीछे पतंजलि योग सूत्र में वर्णित सिद्धी थी। बाबा के पास इस तरह की कई और सिद्धियां भी थी। इनमें से एक और सिद्धी थी पानी के अंदर बिना सांस लिए आधे घंटे तक रहने की। इतना ही नहीं बाबा जंगली जानवरों की भाषा भी समझ लेते थे। कहा जाता है कि वह खतरनाक जंगली जानवरों को पल भर में काबू कर लेते थे।
हालांकि बाबा को किसी ने कहीं आते-जाते नहीं देखा था। उनके अनुयायियों के अनुसार बाबा के पास जो भी आता उसे वे प्रसाद जरूर देते थे। बाबा मचान पर बैठे-बैठे अपना हाथ मचान के खाली भाग में करते और उनके हाथ में मेवे, फल और कई अन्य तरह के खाद्य पदार्थ आ जाते थे। कहा तो यह भी जाता है कि बाबा के रहने के स्थान के आस-पास के बबूल के पेड़ों के कांटे भी नहीं होते थे।
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