Wednesday, October 14, 2015

दारा शिकोह


दारा शिकोह और कुरान पर गीता जी की श्रेष्ठता सिद्ध करने वाली अद्भुत घटना 
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मुग़ल बढ़शाह शाहजहाँ का बड़ा बेटा दारा शिकोह को 10 September 1642 में मुग़ल सल्तनत का युवराज बनाया गया।  बब्बर मुग़ल सल्तनत मे जन्मा इकलौता जहीन, धर्म-ज्ञानी, प्रतिभाशाली लेखक दारा को सूफियों, मनीषियों, फ़क़ीरों, दर्वेशों और सन्यासियों की संगत अच्छी लगती थी । कट्टर मुसलमान उसे धर्मद्रोही मानते थे, जबकि दारा को अलग-अलग धर्मों में गहरी रुचि थी, वे विश्व बंधुत्व और विभिन्न धर्मों, संस्कृति और फिलॉसफी में मेलजोल चाहते थे ।

1645 मे शाहजहां ने 20 हजार पैदल और 20 हजार घुड़सवार सेना के साथ दारा को इलाहाबाद का सूबेदार  (governor) नियुक्त किया । अप्रैल 1648 मे गुजरात के सूबेदार बनाये जाने से पहले करीब साढे 3 साल दारा इलाहाबाद का एकछत्र शासक रहा ! उन दिनों की ही बात है ---दारा इलाहाबाद संगम पर रोज सुबह घूमने हवाखोरी करने जाया करते थे, जहां संगम तट पर दारा साधु-संत के साथ धर्म-चर्चा मे खासी रुचि लिया करते थे ।

दारा की हिन्दू सनातन धर्म मे बढ़ती रुचि को देख उसकी पत्नी नादिरा ने एक दिन धार्मिक चर्चा के दौरान अजीब सी शर्त रख दी । बोली क्यों नही  हिन्दू और इस्लाम के पवित्र धर्मग्रंथ एक बंद कमरे मे एक-के-उपर एक रख दिये जाएं और परवरदिगार की नजर मे जो धर्मग्रंथ सर्वश्रेष्ठ होगा वह अपने आप सबसे उपर आ जायेगा ।

इस पर दारा ने भी थोड़ी ना-नुकुर पर अपनी सहमति दे दिया । तुरंत सभी धर्मग्रंथ मंगवाये गये, पर इस प्रतियोगिता मे किस ग्रंथ को शामिल किया जाये इस पर हिन्दू साधु-संत एकमत नही हो पा रहे थे । तत्काल वेद नही उपलब्ध होने के करण उसे प्रतियोगिता मे शामिल नही किया जा सका । काफी विचार-विमर्श के बाद हिन्दू धर्म की तरफ़ से रामायण, रामचरित मानस, कुछ पुराण-उपनिषद और श्रीमदभगवद गीता जी शामिल हुए और इस्लाम की तरफ से सिर्फ कुरान-शरीफ़ को शामिल किये जाने पर सभी एकमत हुए ।

कड़ी सुरक्षा के बीच दारा ने अपने महल के एक कमरे मे एक टेबल पर सभी साधु-संतों की मौजूदगी मे सभी धर्मग्रंथों को रखा गया, पर नादिरा ने चालाकी से कुरान को सबसे उपर रख दिया और बोली अब श्रेष्ठता का फैसला अल्लाह करेंगे ।

लेकिन सुबह जब सभी पक्षों के सामने कमरे का ताला खोला गया तो, श्रीमदभगवद गीता जी सभी धर्मग्रंथों मे सबसे उपर रखी थी, और कुरान शरीफ़ सबसे नीचे रखा मिला । दारा उसकी पत्नी नादिरा सभी पक्ष गीता जी के पक्ष मे अल्लाह का यह फैसला देख अचंभित रह गये । गीता जी के परम ईश्वरीय ज्ञान के आगे सभी नतमस्तक हो गये ।
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इस घटना का असर दारा के मन मस्तिष्क पर गहरा असर छोड़ गया, दारा दिनों दिन अध्यात्मिकता की तरफ झुकता चला गया । मुस्लिम विद्वान पढ सके इसके लिये उसने हिन्दू सनातन धर्म के धर्म ग्रंथ उपनिषद का रूपांतरण संस्कृत से पर्सियन भाषा मे किया । उसकी ज्यादातर रचनाएं Sirr-e-Akbar (The Greatest Mystery) के नाम  से जानी जाती है ।

सूफ़ी और वेदान्त मत  पर लिखी दारा की किताब Majma-ul-Bahrain ("The Confluence of the Two Seas") भी काफी प्रसिद्ध हुई । शासन से विरक्त दारा धार्मिक सद्भाव के लिये सातवें सिख गुरु Guru Har Rai से भी मिला, लाहौर के प्रसिद्ध कादरी सूफ़ी संत  Hazrat Mian Mir का सानिध्य भी दारा को प्राप्त हुआ ।  

दारा ने एकबार कहा था :- "यहाँ के आबो हवा में कुछ है, कि हर आदमी खुद से यह सवाल करता कि मै कौन हूँ, मेरे जीवन का मकसद क्या है ? और अगर कभी वह यह बात भूल भी जाता है, तो यहाँ के साधु-संत, फ़क़ीर, दर्वेश, उसे यह याद दिला देते है कि तू सोच, कि तुम कौन हो !"
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काश शाहजहां के बाद दारा शिकोह जैसा विश्व बंधुत्व और सर्वधर्म समभाव मे विश्वास करने वाला ज्ञानी, धर्म तत्व मर्मग्य बादशाह हिन्दुस्तान की गद्दी पर बैठता ! 
By Dr Alam Frankfurt Germany 

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