Wednesday, December 24, 2014

AGARSEN KI BAOLI IN DELHI

AGARSEN KI BAOLI IN DELHI
Agrasen ki Baoli (also known as Agar Sain ki Baoli or Ugrasen ki Baoli), is a 60-meter long and 15-meter wide historical step well on Hailey Road near Connaught Place, a short walk from Jantar Mantar in New Delhi, India.Although there are no known historical records to prove who built Agrasen ki Baoli, it is believed that it was originally built by the legendary king Agrasen during the Mahabharat epic era and rebuilt in the 14th century by the Agrawal community which traces its origin to Maharaja Agrasen.
Baoli or bawdi, also referred to as baori or bauri, is a Hindi word (from Sanskrit wapi or vapi, vapika).In Rajasthan and Gujarat the words for step well include baoli, bavadi, vav, vavdi and vavadi.
Water temples and temple step wells were built in ancient India and the earliest forms of step well and reservoir were also built in India in places like Dholavira as far back as the Indus Valley Civilisation.
Regarding the name Agrasen Ki Baoli it should be stated that in 1132 AD an Agrawal poet named Vibudh Shridhar mentions, in his work Pasanahacariu, a wealthy and influential Agrawal merchant of Dhilli named Nattal Sahu who was also a minister in the court of King Anang Pal III. Rebuilding the old Agrasen Ki Baoli would have been within the means of a well established and wealthy Agrawal community during the 14th century
SOURCE- INDIAN HISTORY- REAL TRUTH

AKBAR AND ITS COWARDNESS OF RAPE AND CONVERSION OF HINDUS

मुगल- अकबर की महानता के लक्षण --------------!
आधुनिक भारत के बामपंथी इतिहासकार यह लिखते नहीं थकते कि अकबर महान था जबकि उसकी महानता का कोई लक्षण उसमे दिखाई नहीं देता, अकबर भारतीय शासक न होकर बिदेशी आक्रमणकारी था वह मुग़ल था उसने भारत की सबसे ताकतवर जाती जो भारत की सुरक्षा, सत्ता जिस कुल में चक्रवर्तियों का समूह रहा हो उस क्षत्रिय जाती की लड़कियों को बेगम बनाकर क्षत्रियों का अपमान यानी भारत का अपमान ही किया वह राजपूत राजाओं को मनसबदारी दे अपने दरबार में दरबारी बनाना उनकी लड़कियों को अपने हरम में रख उन्हें बार- बार अपमानित करना सभी का इस्लामी करण कर निकाह करना सभी हिन्दू नारियों का घुट- घुट कर मरने के अतिरिक्त कोई रास्ता नहीं था क्या यही उसकी महानता का लक्षण था -?
बामपंथी इतिहासकारों की दुनिया १५० वर्ष या १३०० वर्ष से अधिक २००० वर्ष तक ही जाती है उन्हें हिन्दू वांगमय, वैदिक वांगमय अथवा महाभारत, रामायण इतिहास दिखाई नहीं देता वे हमारी मान्यताओं की धज्जी उड़ाकर इसे इतिहास मानने को तैयार नहीं ''जैसे यदि मुर्गा वाग नहीं दे तो सुबह नहीं होगी'' ! इनके लिखने से कुछ नहीं होता उन्हें पता नहीं कि श्रुती यानी वेद लाखों वर्ष श्रुती के आधार पर सुरक्षित रहा भारत में उनकी कोई जगह नहीं, मुग़ल आक्रमणकारी थे यह सिद्ध हो चुका है भारतीय राजाओं ने लगातार संघर्ष कर मुगल (परकीय) सत्ता समाप्त करने का संकल्प लिया था, केवल कुछ चापलूस ही अकबर को शहंशाहे हिन्द कहते थे क्योंकि अकबर की सत्ता तो स्थिर थी नहीं, राजपूताना ने मुगलों को कभी स्वीकार नहीं किया यहाँ तककि राजा मान सिंह को अपना आवास आगरा में बनाना पड़ा वे राजस्थान में मुह दिखाने के लायक नहीं थे वे उसी प्रकार थे कि जैसे एक नककटे ब्यक्ति ने संप्रदाय चला पूरे राज्य के लोगो की नाक कटवा दी उसी प्रकार मानसिंह ने अपनी बेटी तो दी ही साथ में जागीर की लालच में बहुत से राजपूतों की राज कुमारियों को भी तुर्क हरम में पहुचायीं सभी एक से हो गए इस कारण कोई भी राणाप्रताप के सामने ठहर नहीं सकता था, गुजरात, मालवा, मराठा, बिहार, बंगाल असम तथा दक्षिण का कोई प्रदेश मुगलों के कब्जे में नहीं रहा फिर काहेका शहंशाहे हिन्द ! महाराणा प्रताप के स्वदेश, स्वधर्म संघर्ष ने उन्हे महान बना दिया प्रत्येक भारतीय उनके चित्र अपने घर मे लगा अपने को धन्य मानता है क्या कोई अकबर का भी चित्र लगता है! महान तो एक ही हो सकता है महाराणा अथवा अकबर---!

अकबर के पास कोई महानता का लक्षण नहीं था अकबर के हरम मे 500 बीवियाँ थीं इस्लाम मे कौन कितना वीवी रखता है उसी मे मुक़ाबला होता है अकबर की यही महानता थी, चित्तौण हमले के समय महारानी जयमल मेतावड़िया के साथ १२ हज़ार क्षत्राणियों का जौहर हुआ था क्या यही थी मु. जलालुद्दीन अकबर की महानता-? वह मीना बाज़ार लगवाता था जिसमे स्वयं महिला वेश मे जाता था जिसमे हिन्दू लडिकियाँ बेची-खरीदी जाती थी, उसने सभी क्षत्रिय राजकुमारियों से ही विवाह किया न कि किसी मुगल शाहजादी का विवाह किसी क्षत्रिय कुमार के साथ किया, मंत्रिमंडल के सभी सदस्यों राजा टोडरमल, पं तानसेन, बीरबल सभी को इस्लाम स्वीकार करवाया केवल मानसिंह ही बचा था, मुगल दरबार तुर्की, ईरानी शक्ल ले चुका था भारतीयता का कहीं नाम नहीं था, वह भारत मे लुटेरा था हमलावर था जोधाबाई तड़पती रहती थी, मुगलों की हुकूमत है उसका ईमान इस्लाम है जोधाबाई ने अपनी कोख से सलीम को पैदा किया लेकिन सलीम ने कभी भी जोधा को अपनी माँ नहीं स्वीकार किया उसकी शिक्षा -दीक्षा भारतीयता बिरोधी हुई उसी जोधाबाई की कोख द्वारा गुरु अर्जुनदेव का बधिक पैदा हुआ।
मेवाड़ के हजारों निहत्थे किसानों की हत्या यही उसकी महानता ! मेवाड़ के बिरोध मे आमेर, बीकानेर इत्यादि को राजा की उपाधि देकर राणा के समानान्तर खड़ा करने का असफल प्रयास किया क्योंकि ये कोई राजा नहीं थे ये तो मेवाण राणा सांगा के रिआया यानी जागीरदार थे, राजपूतों को मांसाहार और ऐयासी की आदत डाली, मानसिंह जब मेवाण पर हमला किया तो अकबर ने कहा की कोई भी मारे दोनों तरफ हिन्दू ही हैं मानसिंह के पराजय के पश्चात कभी भी उसने महाराणा पर हमला के लिए नहीं भेजा हमेसा मुस्लिम सेनापतियों को ही भेजा, अकबर हिन्दू संतों का अपमान करने हेतु अपने दरबार मे बुलाता कुम्हन दास और संत तुलसीदास इसके प्रत्यक्ष उदाहरण हैं विनय पत्रिका मे प्रकारांतर से वर्णन किया है, उसका मानसिंह के संत तुलसीदास से मिलने के पश्चात मान सिंह से विस्वास उठ गया था उसने मानसिंह को दूध मे जहर दिया लेकिन गिलाश बदल गया और जहर अकबर पी गया उसी से उसकी मृत्यु हो गयी।
अकबर न तो महान था न ही शहंसाहे हिन्द वह भारत के छोटे से हिस्से मे ही संघर्ष करता हुआ आत्म हत्या को मजबूर हुआ----!

RAPIST AND BLOOD THIRSTY AJMER'S MOINUDDIN CHISTI

महमूद ग़ज़नवी ने वर्ष १००१-१०१८ लगभग २० लाख हिन्दुओ का क़त्ल इस्लाम नहीं कबूल करने पर किया था।
१००१ में हिन्दुओ के महान राजा जयपाल के हारने के वाद उनकी वहु वेटिओ का वलात्कार उन्ही के सामने सरे आम किया था।
थानेसर के युद्ध में हिन्दुओ का रक्त ऐसे प्रवाहित हो रहा था जैसे वरसात का पानी।
सोमनाथ अकेले ५०००० हिन्दुओ का क़त्ल करते हुए शिवलिंग को टुकड़े टुकड़े करते हुए अफगानिस्तान के मस्जिद के पायदान पर लगा दिया था।
मथुरा में वर्ष १०१७ में सभी के सभी कृश्ण भगवन राधा आदि की मुर्तिओ को भट्टी में गलाते हुए लगभग २० टन सोना अपने देश ले गया था. चंगेज खान , मोहमद गोरी ,अकबर , ओरंगजेब जैसे लूटेरे और वालात्करिओ के किस्से  
REF- OJASWI HINDUSTAN

Tuesday, December 23, 2014

sengar rajput clan/dynasty सेंगर राजपूत वंश

सेंगर राजपूत वंश(sengar rajput clan/dynasty)-----
सेंगर राजपूत वंश को 36 कुली सिंगार या क्षत्रियों के 36 कुल का आभूषण भी कहा जाता है, यह बंश न कवल
वीरता एवं जुझारूपन के लिए बल्कि सभ्यता और सुसंस्कार के लिए भी विख्यात है.

सेंगर राजपूतो का गोत्र,कुलदेवी इत्यादि------------
गोत्र-गौतम,प्रवर तीन-गौतम ,वशिष्ठ,ब्रहास्पतय
वेद-यजुर्वेद ,शाखा वाजसनेयी, सूत्र पारस्कर
कुलदेवी -विंध्यवासिनी देवी
नदी-सेंगर नदी
गुरु-विश्वामित्र
ऋषि-श्रृंगी
ध्वजा -लाल
सेंगर राजपूत विजयादशमी को कटार पूजन करते हैं.
सेंगर राजपूत वंश की उत्पत्ति(origin of sengar rajput)
इस क्षत्रिय वंश की उत्पत्ति के विषय में कई मत
प्रचलित हैं,

1- ठाकुर ईश्वर सिंह मडाड द्वारा रचित राजपूत वंशावली के प्रष्ठ संख्या 168,169 के अनुसार"इस वंश की उत्पत्ति के विषय में ब्रह्म पुराण में वर्णन आता है.चन्द्रवंशी राजा महामना के दुसरे पुत्र तितुक्षू ने पूर्वी भारत में अपना राज्य स्थापित किय,इस्नके वंशज प्रतापी राजा बलि हुए,इनके अंग,बंग,कलिंग आदि 5 पुत्र हुए जो बालेय कहलाते थे, राजा अंग ने अपने नाम से अंग देश बसाया,इनके वंशज दधिवाहन, दिविरथ,धर्मरथ, दशरथ(लोमपाद),कर्ण विकर्ण आदि हुए. विकर्ण के सौ पुत्र हुए जिन्होंने अपने राज्य का विस्तार गंगा यमुना के दक्षिण से लेकर चम्बल नदी तक किया.अंग देश के बाद इस वंश के नरेशो नेचेदी प्रदेश(डाहल प्रदेश), राढ़(कर्ण सुवर्ण),आंध्र प्रदेश (आंध्र नाम के शातकर्णी राजा ने स्थापित किया,इस
वंश के प्रतापी राजा गौतमी पुत्र शातकर्णी थे),सौराष्ट्र,मालवा,आदि राज्य स्थापित किए, राड प्रदेश(वर्दमान)के सेंगर वंशी राजा सिंह के पुत्र सिंहबाहु हुए,उनके पुत्र विजय ने सन 543 ईस्वी में समुद्र मार्ग से जाकर लंका विजय की और अपने पिता के
नाम पर वहां सिंहल राज्य स्थापित किया.सिंहल ही बाद में सीलोन कहा जाने लगा. विकर्ण के सौ पुत्र होने के कारण ही ये
शातकर्णी कहलाते थे,शातकर्णी से ही धीरे धीरे ये सेंगरी,सिंगर,सेंगर कहलाने लगे.इस मत के अनुसार सेंगर चन्द्रवंशी क्षत्रिय हैं.यह बहुत ठोस तर्क है इस वंश की उत्पत्ति का,अब बाकि मत पर नजर डालते हैं, 
2-एक अन्य मत के अनुसार भगवान श्रीराम के पिता राजा दशरथ ने अपनी पुत्री शांता का विवाह श्रृंगी ऋषि से किया,प्राचीन काल में क्षत्रिय राजा के साथ साथ ज्ञानी ऋषि भी हुआ करते थे,श्रृंगी ऋषि की संतान से ही सेंगर वंश चला.इस मत के
अनुसार यह ऋषि वंश है. 
3-एक अन्य मत के अनुसार श्रृंगी ऋषि का विवाह कन्नौज के गहरवार राजा की पुत्री से हुआ,उसके दो पुत्र हुए,एक ने अर्गल के गौतम वंश की नीव रखी और दुसरे पदम से सेंगर वंश चला,इस मत के अविष्कारक ने लिखा कि 135 पीढ़ियों तक सेंगर वंश पहले सीलोन (लंका) फिर मालवा होते हुए ग्यारहवी सदी में जालौन में कनार में स्थापित हुए. किन्तु यह मत बिलकुल गलत है,क्योंकि पहले तो अर्गल का गौतम वंश,सूर्यवंशी क्षत्रिय गौतम बुध का वंशज है और दूसरी बात कि कन्नौज में गहरवार वंश का शासन ही दसवी सदी के बाद शुरू हुआ तो उससे 135 पीढ़ी पहले वहां के गहरवार राजा की पुत्री से श्रृंगी ऋषि का विवाह होना असम्भव है.
4-एक मत के अनुसार यह वंश 36 कुल सिंगर या क्षत्रियों के 36 कुल का श्रृंगार(आभुषण )भी कहलाता है,इसी से इस वंश का नाम बिगड़कर सेंगर हो गया.5-उपरोक्त सभी मतों को देखते हुए एवं कुछ स्वतंत्र अध्यन्न करने के बाद हमारा स्वयं का अनुमान----------
मत संख्या 1 के अनुसार इस वंश के पुरखों ने पूर्वी भारत में अंग,बंग(बंगाल) आदि राज्यों की स्थापना की थी,इन्ही की शाखा ने आंध्र कर्नाटका क्षेत्र में आन्ध्र शातकर्णी वंश की स्थापना की,इसी वंश में गौतमी पुत्र शातकर्णी जैसा विजेता हुआ,जिसने अपने राज्य की सीमाएं दक्षिण भारत से लेकर उत्तर,पश्चिम भारत,पूर्वी भारत तक फैलाई.उसके बारे में लिखा है कि उसके घोड़ो ने तीन समुद्रों का पानी पिया, गौतमी पुत्र की बंगाल विजय के बाद उसके कुछ वंशगण यहीं रह गये,जो सेन वंशी क्षत्रिय कहलाते थे,सेन वंशी क्षत्रिय को ब्रह्मक्षत्रिय(ऋषिवंश) या कर्नाट क्षत्रिय(दक्षिण आन्ध्र कर्नाटक से आने के कारण) भी कहा जाता था.पश्चिम बंगाल का एक नाम गौर (गौड़)क्षत्रियों के नाम पर गौड़ देश भी था,पाल वंश के बाद बंगाल में सेन वंश का शासन स्थापित हुआ,गौर देश (बंगाल) पर शासन करने के कारण सेन वंशी क्षत्रिय सेनगौर या सेनगर या सेंगर कहलाने लगे.
(बंगाल में आज भी सिंगूर नाम की प्रसिद्ध जगह है).कालान्तर में इस वंश के जो शासक चेदी प्रदेश,मालवा,जालौन,कनार आदि स्थानों पर शासन कर रहे थे वो भी सेंगर वंश के नाम से विख्यात हुए, इस प्रकार हमारे मत के अनुसार यह वंश चंद्रवंशी है और इस वंश के शासको के विद्वान और ब्रह्मज्ञानी होने के कारण इसे ब्रह्म क्षत्रिय(ऋषि वंशी) भी कहा जाता है,
श्रीलंका में सिंहल वंश की स्थापना भी सन 543 ईस्वी में सेंगर वंशी क्षत्रियों ने की थी,चित्तौड के राणा रत्न सिंह की प्रसिद्ध रानी पदमिनी सिंहल दीप की राजकुमारी थी जो संभवत इसी वंश की थी, आंध्र सातवाहन शातकर्णी वंश के गौतमी पुत्र
शातकर्णी भी इसी वंश के थे जिन्होने पुरे भारत पर अपना आधिपत्य जमाया.
========================================
सेंगर वंशी क्षत्रियों के राज्य(states established and ruled by sengar rajputs)
प्राचीन काल में सेंगर क्षत्रियों का शासन अंग, बंग,आंध्र,राढ़, सिंहल दीप आदि पर रहा है,अब हम मध्य काल में सेंगर क्षत्रियों के राज्यों पर जानकारी देंगे.
1-चेदी अथवा डाहल प्रदेश--------
सेंगर क्षत्रियों का सबसे स्थाई और बड़ा शासन चेदी प्रदेश पर रहा है,यहाँ का सेंगर वंशी राजा डाहल देव था जो महात्मा बुद्ध के समकालीन थे,इन्ही डहरिया या डाहलिया कहलाते हैं जो सेंगर वंश की शाखा हैं,बाद में इनके प्रदेश पर चंदेल व
कलचुरी वंशो ने अधिकार कर लिया,
2--कर्णवती--------------
जब सेंगर राज्य बहुत छोटा रह गया तो राजा कर्णदेव सेंगर ने यह राज्य अपने पुत्र वनमाली देव को देकर यमुना और  र्मन्व्ती के संगम पर कर्णवती राज्य स्थापित किया आजकल यह क्षेत्र रीवा राज्य के अंतर्गत आता है. 
3-कनार राज्य ----------
जालौन में राजा विसुख देव ने कनार राज्य स्थापित किया,उनका विवाह कन्नौज के गहरवार राजा की पुत्री देवकाली से हुआ.जिसके नाम पर उन्होंने देवकली नगर बसाया,उन्होंने बसीन्द नदी का नाम बदलकर अपने वंश के नाम पर सेंगर नदी रख दियाजो आज भी मैनपुरी,इटावा,कानपुर जिले से हो कर बह रही है.बिसुख देव के वंशधर जगमनशाह ने बाबर का सामना किया था,कनार राज्य नष्ट होने पर जगमनशाह ने जालौन में ही जगमनपुर राज्य की नीव रखी,आज भी इस वंश के राजपूत
जगमनपुर,कनार के आस पास 57 गाँवो में रहते हैं और कनारधनी कहलाते हैं,
सेंगर राजपूतो के अन्य राज्य --------
सेंगर वंश का शासन मालवा की सिरोज राज्य पर भी रहा है,सेंगर वंश के रेलिचंद्र्देव ने इटावा में भरेह राज्य स्थापित किया,
13 वी सदी में इस वंश के फफूंद के कुछ सेंगर राजपूतो ने बलिया जिले के लाखेनसर में राज्य स्थापित किया जो 18 वी सदी तक चला,लाखेनसर के सेंगर राजपूतो ने बनारस के भूमिहार राजा बलवंत सिंह और अंग्रेजो का डटकर सामना किया,
इस वंश की रियासते एवं ठिकानो में जगमनपुर (जालौन),भरेह(इटावा),रुरु और भीखरा के राजा,नकौता के राव एवं कुर्सी के रावत प्रसिद्ध हैं.
===================================
सेंगर वंश की शाखाएँ एवं वर्तमान निवास स्थान
(branches of sengar rajputs)
सेंगर राजपूतो की प्रमुख शाखाएँ चुटू,कदम्ब,बरहि या(बिहार,बंगाल,असम आदि में),डाहलिया,दाहारिया आदि हैं.
सेंगर राजपूत आज बड़ी संख्या में मध्य प्रदेश,यूपी के जालौन, अलीगढ, फतेहपुर,कानपूर वाराणसी,बलिया,इ
टावा,मैनपुरी,बिहार के छपरा,पूर्णिया आदि जिलो में मिलते हैं.तथा राजनीति,शिक्षा,नौकरी,कृषि,व्यापार के
मामले में इनका अपने इलाको में बहुत वर्चस्व है.
===================================
sources--------
1-ब्रह्मपुराण
2-राजपूत वंशावली ठाकुर ईश्वर सिंह मडाड प्रष्ठ
संख्या 168 से 170
3-annals and antiques of rajputana by col james
tod
4- https://www.google.co.in/url …
5- https://www.google.co.in/url …
6- https://www.google.co.in/url …
note-प्रस्तुत पोस्ट में सेंगर राजपूत वंश की उत्पत्ति पर विभिन्न मत के परिक्षण के उपरांत हमने अपना अलग से
मत दिया है,किन्तु यह बाध्यकारी नहीं है,हो सकता 

रानी कत्युरी की कहानी

कुमायूं (उतराखण्ड) के कत्युरी राजवंश की वीर राजमाता वीरांगना जिया रानी(मौला देवी पुंडीर)-
मित्रों इतिहास में कुछ ऐसे अनछुए व्यक्तित्व होते हैं जिनके बारे में ज्यादा लोग नहीं जानते मगर एक क्षेत्र विशेष में उनकी बड़ी मान्यता होती है और वे लोकदेवता के रूप में पूजे जाते हैं,
आज हम आपको एक ऐसी ही वीरांगना से परिचित कराएँगे जिनकी कुलदेवी के रूप में आज तक उतराखंड में पूजा की जाती है.
उस वीरांगना का नाम है राजमाता जिया रानी(मौला देवी पुंडीर) जिन्हें कुमायूं की रानी लक्ष्मीबाई कहा जाता है ----------------

====================
जिया रानी(मौला देवी पुंडीर) jiya rani pundir-------
जिया रानी का बचपन का नाम मौला देवी था,वो हरिद्वार(मायापुर) के राजा अमरदेव पुंडीर की पुत्री थी,ईस्वी 1192 में देश में तुर्कों का शासन स्थापित हो गया था,मगर उसके बाद भी किसी तरह दो शताब्दी तक हरिद्वार में पुंडीर राज्य बना रहा,मगर तुर्कों के हमले लगातार जारी रहे और न सिर्फ हरिद्वार बल्कि गढ़वाल और कुमायूं में भी तुर्कों के हमले होने लगे,ऐसे ही एक हमले में कुमायूं (पिथौरागढ़) के कत्युरी राजा प्रीतम देव ने हरिद्वार के राजा अमरदेव पुंडीर की सहायता के लिए अपने भतीजे ब्रह्मदेव को सेना के साथ सहायता के लिए भेजा,ज्सिके बाद राजा अमरदेव पुंडीर ने अपनी पुत्री मौला देवी का विवाह कुमायूं के कत्युरी राजवंश के राजा प्रीतमदेव उर्फ़ पृथ्वीपाल से कर दिया,मौला देवी प्रीतमपाल की दूसरी रानी थी,उनके धामदेव,दुला,ब्रह्मदेव पुत्र हुए जिनमे ब्रह्मदेव को कुछ लोग प्रीतम देव की पहली पत्नी से मानते हैं,मौला देवी को राजमाता का दर्जा मिला और उस क्षेत्र में माता को जिया कहा जाता था इस लिए उनका नाम जिया रानी पड़ गया,कुछ समय बाद जिया रानी की प्रीतम देव से अनबन हो गयी और वो अपने पुत्र के साथ गोलाघाट चली
 गयी जहां उन्होंने एक खूबसूरत रानी बाग़ बनवाया,यहाँ जिया रानी 12 साल तक रही.........
=====================================================
तैमुर का हमला-------------
ईस्वी 1398 में मध्य एशिया के हमलावर तैमुर ने भारत पर हमला किया और दिल्ली मेरठ को रौंदता हुआ वो हरिद्वार पहुंचा जहाँ उस समय वत्सराजदेव पुंडीर(vatsraj deo pundir) शासन कर रहे थे,उन्होंने वीरता से तैमुर का सामना किया मगर शत्रु सेना की विशाल संख्या के आगे उन्हें हार का सामना करना पड़ा,पुरे हरिद्वार में भयानक नरसंहार हुआ,जबरन धर्मपरिवर्तन हुआ और राजपरिवार को भी उतराखण्ड के नकौट क्षेत्र में शरण लेनी पड़ी वहां उनके वंशज आज भी रहते हैं और मखलोगा पुंडीर के नाम से जाने जाते हैं,
तैमूर ने एक टुकड़ी आगे पहाड़ी राज्यों पर भी हमला करने भेजी,जब ये सूचना जिया रानी को मिली तो उन्होंने इसका सामना करने के लिए कुमायूं के राजपूतो की एक बड़ी सेना का गठन किया,तैमूर की सेना और जिया रानी के बीच रानीबाग़ क्षेत्र में युद्ध हुआ जिसमे मुस्लिम सेना की हार हुई,इस विजय के बाद जिया रानी के सैनिक कुछ निश्चिन्त हो गये,पर वहां दूसरी अतिरिक्त मुस्लिम सेना आ पहुंची जिससे जिया रानी की सेना की हार हुई,और सतीत्व की रक्षा के लिए एक गुफा में जाकर छिप गयी,
जब प्रीतम देव को इस हमले की सूचना मिली तो वो स्वयं सेना लेकर आये और मुस्लिम हमलावरों को मार भगाया,इसके बाद में वो जिया रानी को पिथौरागढ़ ले आये,प्रीतमदेव की मृत्यु के बाद मौला देवी ने बेटे धामदेव के संरक्षक के रूप में शासन भी किया था।वो स्वयं शासन के निर्णय लेती थी। माना जाता है कि राजमाता होने के चलते उसे जियारानी भी कहा जाता है। मां के लिए जिया शब्द का प्रयोग किया जाता था। रानीबाग में जियारानी की गुफा नाम से आज भी प्रचलित है। कत्यूरी वंशज प्रतिवर्ष उनकी स्मृति में यहां पहुंचते हैं।

यहाँ जिया रानी की गुफा के बारे में एक और किवदंती प्रचलित है---------------
"कहते हैं कत्यूरी राजा पृथवीपाल उर्फ़ प्रीतम देव की पत्नी रानी जिया यहाँ चित्रेश्वर महादेव के दर्शन करने आई थी। वह बहुत सुन्दर थी। जैसे ही रानी नहाने के लिए गौला नदी में पहुँची, वैसे ही मुस्लिम सेना ने घेरा डाल दिया। रानी जिया शिव भक्त और सती महिला थी।उसने अपने ईष्ट का स्मरण किया और गौला नदी के पत्थरों में ही समा गई। मुस्लिम सेना ने उन्हें बहुत ढूँढ़ा परन्तु वे कहीं नहीं मिली। कहते हैं, उन्होंने अपने आपको अपने घाघरे में छिपा लिया था। वे उस घाघरे के आकार में ही शिला बन गई थीं। गौला नदी के किनारे आज भी एक ऐसी शिला है, जिसका आकार कुमाऊँनी घाघरे के समान हैं। उस शिला पर रंग-विरंगे पत्थर ऐसे लगते हैं - मानो किसी ने रंगीन घाघरा बिछा दिया हो। वह रंगीन शिला जिया रानी के स्मृति चिन्ह माना जाता है। रानी जिया को यह स्थान बहुत प्यारा था। यहीं उसने अपना बाग लगाया था और यहीं उसने अपने जीवन की आखिरी सांस भी ली थी। वह सदा के लिए चली गई परन्तु उसने अपने सतीत्व की रक्षा की। तब से उस रानी की याद में यह स्थान रानीबाग के नाम से विख्यात है।कुमाऊं के प्रवेश द्वार काठगोदाम स्थित रानीबाग में जियारानी की गुफा का ऐतिहासिक महत्व है"""
कुमायूं के राजपूत आज भी वीरांगना जिया रानी पर बहुत गर्व करते हैं,
उनकी याद में दूर-दूर बसे उनके वंशज (कत्यूरी) प्रतिवर्ष यहां आते हैं। पूजा-अर्चना करते हैं। कड़ाके की ठंड में भी पूरी रात भक्तिमय रहता है।
महान वीरांगना सतीत्व की प्रतीक पुंडीर वंश की बेटी और कत्युरी वंश की राजमाता जिया रानी को शत शत नमन.....
जय राजपूताना..................

Monday, December 22, 2014

ओशो ध्यान केंद्र-REASON BEHIND ITS UNSUCCESSFUL MISSION - IT IS AGAINST HINDU DHARM- KNOWLEDGE IS NOT ENOUGH.

इस पोस्ट के साथ सलंग्न चित्र ओशो ध्यान शिविर का हैं जिसमें स्त्री-पुरुष नंग्न हो ध्यान कर रहे हैं। जोर जोर से चिल्लाना, नाचना, कूदना, हँसना, नाचना, गाना, जानवरों जैसी हरकतें करना इसे ध्यान कहना मूर्खता हैं।
धर्मानुसार जीवन अर्पण करने में संयम विज्ञान का अपना महत्व हैं। मनुष्यों को भोग का नशेड़ी बनाने का जो यह अभियान ओशो ध्यान के नाम से चलाया जा रहा हैं उसने अनेक घरों को बर्बाद कर दिया हैं। अनेक नौजवानों को बर्बाद कर दिया हैं।
वेदों में सदाचार, पाप से बचने, चरित्र निर्माण, ब्रहमचर्य आदि पर बहुत बल दिया गया हैं जैसे-
यजुर्वेद ४/२८ – हे ज्ञान स्वरुप प्रभु मुझे दुश्चरित्र या पाप के आचरण से सर्वथा दूर करो तथा मुझे पूर्ण सदाचार में स्थिर करो।
ऋग्वेद ८/४८/५-६ – वे मुझे चरित्र से भ्रष्ट न होने दे।
यजुर्वेद ३/४५- ग्राम, वन, सभा और वैयक्तिक इन्द्रिय व्यवहार में हमने जो पाप किया हैं उसको हम अपने से अब सर्वथा दूर कर देते हैं।
यजुर्वेद २०/१५-१६- दिन, रात्रि, जागृत और स्वपन में हमारे अपराध और दुष्ट व्यसन से हमारे अध्यापक, आप्त विद्वान, धार्मिक उपदेशक और परमात्मा हमें बचाए।
ऋग्वेद १०/५/६- ऋषियों ने सात अमर्यादाएं बनाई हैं। उनमे से जो एक को भी प्राप्त होता हैं, वह पापी हैं। चोरी, व्यभिचार, श्रेष्ठ जनों की हत्या, भ्रूण हत्या, सुरापान, दुष्ट कर्म को बार बार करना और पाप करने के बाद छिपाने के लिए झूठ बोलना।
अथर्ववेद ६/४५/१- हे मेरे मन के पाप! मुझसे बुरी बातें क्यों करते हो? दूर हटों. मैं तुझे नहीं चाहता।
अथर्ववेद ११/५/१०- ब्रहमचर्य और तप से राजा राष्ट्र की विशेष रक्षा कर सकता हैं।
अथर्ववेद११/५/१९- देवताओं (श्रेष्ठ पुरुषों) ने ब्रहमचर्य और तप से मृत्यु (दुःख) का नष्ट कर दिया हैं।
ऋग्वेद ७/२१/५- दुराचारी व्यक्ति कभी भी प्रभु को प्राप्त नहीं कर सकता।

इस प्रकार अनेक वेद मन्त्रों में संयम और सदाचार का उपदेश हैं।

सृष्टि के आदि से लेकर अंत तो सत्य सदा एक रहता हैं। इसलिए वेदाधारित सदाचार के सार्वभौमिक एवं सर्वकालिक नियमों की अनदेखी करना अज्ञानता का बोधक हैं।
डॉ विवेक आर्य

Saturday, December 20, 2014

संयुक्त राष्ट्र ने लश्कर आतंकी हाफिज को कहा 'साहिब' /uno says sahib to Hafiz Syed, a terrorist

UNO is saying sahib to Terrorist , that masterminded 9/266 attack in India and it is enough for India to grill and get that stupid guy out from UN.


भारतीय सरकार के एक सूत्र ने इसे 'बेतुका' हरकत बताया है. 'संयुक्त राष्ट्र की सैंक्शन कमिटी 26/11 मुंबई हमले में 166 लोगों को मारने वाले आतंकवादी के प्रति आदर भाव रखता है. यह इस चिट्ठी से साफ हो गया.'
यह चिट्ठी उस दौरान लिखी गई है जब हाफिज सईद ने भारत में आतंकवादी हमले की धमकी दी है. लश्कर से अपना नाम बदलकर जमात-उद-दावा के बाद अब यह आतंकी संगठन फलाह-ए-इंसानियत फाउंडेशन के नाम से ऑपरेट कर रहा है. संयुक्त राष्ट्र ने तीनों पर बैन लगा रखा है.
संयुक्त राष्ट्र दुनियाभर में बढ़ रहे आतंकवाद को रोकने में नाकाम रहा है. इसके अलावा आतंकवादियों पर लगाम कसने के लिए कोई कारगर तरीका भी नहीं अपनाया गया. इन सब के बीच एक आतंकी को 'साहिब' कहना लापरवाह रवैये की एक बानगी है.