Monday, December 22, 2014

ओशो ध्यान केंद्र-REASON BEHIND ITS UNSUCCESSFUL MISSION - IT IS AGAINST HINDU DHARM- KNOWLEDGE IS NOT ENOUGH.

इस पोस्ट के साथ सलंग्न चित्र ओशो ध्यान शिविर का हैं जिसमें स्त्री-पुरुष नंग्न हो ध्यान कर रहे हैं। जोर जोर से चिल्लाना, नाचना, कूदना, हँसना, नाचना, गाना, जानवरों जैसी हरकतें करना इसे ध्यान कहना मूर्खता हैं।
धर्मानुसार जीवन अर्पण करने में संयम विज्ञान का अपना महत्व हैं। मनुष्यों को भोग का नशेड़ी बनाने का जो यह अभियान ओशो ध्यान के नाम से चलाया जा रहा हैं उसने अनेक घरों को बर्बाद कर दिया हैं। अनेक नौजवानों को बर्बाद कर दिया हैं।
वेदों में सदाचार, पाप से बचने, चरित्र निर्माण, ब्रहमचर्य आदि पर बहुत बल दिया गया हैं जैसे-
यजुर्वेद ४/२८ – हे ज्ञान स्वरुप प्रभु मुझे दुश्चरित्र या पाप के आचरण से सर्वथा दूर करो तथा मुझे पूर्ण सदाचार में स्थिर करो।
ऋग्वेद ८/४८/५-६ – वे मुझे चरित्र से भ्रष्ट न होने दे।
यजुर्वेद ३/४५- ग्राम, वन, सभा और वैयक्तिक इन्द्रिय व्यवहार में हमने जो पाप किया हैं उसको हम अपने से अब सर्वथा दूर कर देते हैं।
यजुर्वेद २०/१५-१६- दिन, रात्रि, जागृत और स्वपन में हमारे अपराध और दुष्ट व्यसन से हमारे अध्यापक, आप्त विद्वान, धार्मिक उपदेशक और परमात्मा हमें बचाए।
ऋग्वेद १०/५/६- ऋषियों ने सात अमर्यादाएं बनाई हैं। उनमे से जो एक को भी प्राप्त होता हैं, वह पापी हैं। चोरी, व्यभिचार, श्रेष्ठ जनों की हत्या, भ्रूण हत्या, सुरापान, दुष्ट कर्म को बार बार करना और पाप करने के बाद छिपाने के लिए झूठ बोलना।
अथर्ववेद ६/४५/१- हे मेरे मन के पाप! मुझसे बुरी बातें क्यों करते हो? दूर हटों. मैं तुझे नहीं चाहता।
अथर्ववेद ११/५/१०- ब्रहमचर्य और तप से राजा राष्ट्र की विशेष रक्षा कर सकता हैं।
अथर्ववेद११/५/१९- देवताओं (श्रेष्ठ पुरुषों) ने ब्रहमचर्य और तप से मृत्यु (दुःख) का नष्ट कर दिया हैं।
ऋग्वेद ७/२१/५- दुराचारी व्यक्ति कभी भी प्रभु को प्राप्त नहीं कर सकता।

इस प्रकार अनेक वेद मन्त्रों में संयम और सदाचार का उपदेश हैं।

सृष्टि के आदि से लेकर अंत तो सत्य सदा एक रहता हैं। इसलिए वेदाधारित सदाचार के सार्वभौमिक एवं सर्वकालिक नियमों की अनदेखी करना अज्ञानता का बोधक हैं।
डॉ विवेक आर्य

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