Tuesday, July 5, 2016
Gurjar Pratihar -Battle of Herat Gurjar Vs Persian
Jewel of Pratihar Rajput saved Bharat from Mohammed गुर्जर सम्राट नागभट प्रतिहार
Monday, July 4, 2016
Indian Muslim has chance to become civilized .Ban madarsa , मदरसेपेप्रतिबन्धलगाओ
Licensed prostitution in shivapuri in MP India
शिवपुरी। बेशक भारत प्रथाओं और परम्पराओं का देश है। यहां अलग-अलग धर्म और जगहों पर अनेक प्रथाएं प्रचलित हैं। लेकिन क्या आपने किसी ऐसी प्रथा के बारे में सुना है, जिसमें औरतों की खरीद फरोख्त होती हो। वह भी दस रुपये के स्टाम्प पर। अगर नही तो हम आपको बता रहे हैं एक ऐसी ही प्रथा के बारे में जो कुप्रथा बन गयी है। यह प्रथा मध्य प्रदेश के शिवपुरी में प्रचलित है और खूब फल-फूल रही है। यह धड़ीचा प्रथा के नाम से प्रचलित है।
इसी प्रथा की शिकार कल्पना अब तक दो पति बदल चुकी है। और दो साल से दूसरे पति रमेश के साथ रह रही है। इसी तरह रज्जो पहले पति को छोड़कर अब दूसरे पति के साथ है।
दरअसल यहां प्रथा की आड़ में गरीब लड़कियों का सौदा होता है। यह सौदा स्थाई और अस्थाई दोनों तरह का होता है। प्रथा की आड़ में यहां एक तरह से औरतों की मंडी लगती है। इसमें क्षेत्र के पुरुष अपनी पसंदीदा औरत की बोली लगाते हैं। सौदा तय होने के बाद बिकने वाली औरत और खरीदने वाले पुरुष के बीच एक अनुबन्ध किया जाता है। यह अनुबन्ध खरीद की रकम के मुताबिक 10 रुपये से लेकर 100 तक के स्टाम्प पर किया जाता है। घटता लिंगानुपात और गरीबी इस प्रथा के फलने-फूलने का मुख्य कारण है। ।
सामान्य तौर पर अनुबंध छह माह से कुछ वर्ष तक के होते हैं। अनुबंध बीच में छोड़ने का भी रिवाज है। इसे छोड़- छुट्टी कहते हैं। इसमें भी अनुबंधित महिला स्टांप पर शपथपत्र देती है कि वह अब अनुबंधित पति के साथ नहीं रहेगी। ऐसे भी बहुत मामले हैं, जिसमें अनुबंध के माध्यम से एक के बाद एक आठ से दस अलग-अलग धड़ीचा प्रथा के विवाह हुए हैं। अनुबंध बीच में तोड़ने पर कई बार अनुबंधित पति को तय राशि लौटानी पड़ती है। कई बार किसी दूसरे पुरुष से ज्यादा रूपये मिलने पर महिलाएं अनुबंध तोड़ देती हैं। रकम बढ़ने पर पति को सहमति से छोड़ने में महिला को कोई परेशानी नहीं होती है।
यहां हर साल करीब 300 से ज्यादा महिलाओं को दस से 100 रूपये तक के स्टांप पर खरीदा और बेचा जाता है। स्टांप पर शर्त के अनुसार खरीदने वाले व्यक्ति को महिला या उसके परिवार को एक निश्चित रकम अदा करनी पड़ती है। रकम अदा करने व स्टांप पर अनुबंध होने के बाद महिला निश्चित समय के लिए उसकी बहू या व्यक्ति की पत्नी बन जाती है। मोटी रकम पर संबंध स्थायी होते हैं, वरना संबंध समाप्त। अनुबंध समाप्त होने के बाद मायके लौटी महिला का दूसरा सौदा कर दिया जाता है। अनुबंध की राशि समयानुसार 50 हजार से 4 लाख रूपये तक हो सकती है।
धड़ीचा प्रथा: घटता लिंगानुपात बड़ा कारण
यहां प्रति हजार पुरूषों पर 852 महिलाएं हैं। यही कारण है कि यहां बिहार, झारखंड, छत्तीसगढ़, ओडिशा जैसे गरीब राज्यों से महिलाओं को लाकर धड़ीचा के जरिये बेचा जाता है। सामान्य वर्ग से लेकर कोली, धाकड़, लोधी आदिवासी आदि जातियों में यह चलन जारी है। इसमें सबसे ज्यादा परेशानी बच्चों को उठानी पड़ती है। स्टांप पर लिखा जाता है कि महिला स्वेच्छा से उस व्यक्ति के साथ जीवनयापन करना चाहती है। और वह उसकी पत्नी के रूप में अनुबंध की शर्तों के मुताबिक रहेगी। इस बात का भी उल्लेख होता है, इस रिश्ते से जन्मे बच्चों का अनुबंधित पति की संपत्ति पर हक होगा। फिर भी सबसे ज्यादा नुकसान तब होता है, जब मां बाप अनुबंध खत्म कर अलग हो जाते हैं। और बच्चे किसी एक के पास रह जाते हैं। यदि बच्चे महिला के पास रहते हैं तो वह धड़ीचा प्रथा के तहत दोबारा शादी कर बच्चों को अपने साथ ले जाती है, या नही तो अपने नाना नानी के पास छोड़ जाती है।
जानवरों की तरह होती है खरीद-फरोख्त
गर्ल्स काउंट के प्रमुख रिजवान परवेज बताते हैं कि लिंग अनुपात कम होने से ढेर सारी सामाजिक बुराईंया जन्म लेती हैं। इन्हीं में से एक औरतों को जानवरों की तरह खरीद फरोख्त करना भी है।
सामाजिक कार्यकर्ता और एडवोकेट शैला अग्रवाल का कहना है कि यह अनुबंध पूरी तरह से गैरकानूनी है, कई बार इसे सरकार के समक्ष उठाया गया। लेकिन, महिलाएं या पीड़ित सामने नहीं आती हैं। जिस कारण यह प्रथा चल रही है।
Saturday, June 25, 2016
Do not vote Hillary Clinton---Clinton White House was a den of cocaine and mistresses: ex-Secret Service officer
The book details how the president had as many as three mistresses during the same time period, including former Vice President Walter Mondale’s daughter, Eleanor, who Byrne once discovered “making out on the Map Room table” with Bill Clinton.
Read more at Here- New York POST
Friday, June 24, 2016
ललितादित्य मुक्तापीड (राज्यकाल 724-761 ई)कश्मीर के हिन्दू सम्राट
कश्मीर के इतिहास के उज्ज्वल पृष्ठों पर ‘कक्रोटा वंश’ का 245 वर्ष का राज्य स्वर्णिम अक्षरों में वर्णित है।
इस वंश के राजाओं ने अरब हमलावरों को अपनी तलवार की नोक पर कई वर्षों तक रोके रखा था। कक्रोटा की माताएं अपने बच्चों को रामायण और महाभारत की कथाएं सुनाकर राष्ट्रवाद की प्रचंड आग से उद्भासित करती थीं। यज्ञोपवीत धारण के साथ शस्त्र धारण के समारोह भी होते थे, जिनमें माताएं अपने पुत्रों के मस्तक पर खून का तिलक लगाकर मातृभूमि और धर्म की रक्षा की सौगंध दिलाती थीं। अपराजेय राज्य कश्मीर इसी कक्रोटा वंश में चन्द्रापीड़ नामक राजा ने सन् 711 से 719 ई.तक कश्मीर में एक आदर्श एवं शक्तिशाली राज्य की स्थापना की। यह राजा इतना शक्तिशाली था कि चीन का राजा भी इसकी महत्ता को स्वीकार करता था।
इससे कश्मीरियों की दिग्विजयी मनोवृत्ति का परिचय मिलता है। अरब देशों तक जाकर अपनी तलवार के जौहर दिखाने की दृढ़ इच्छा और चीन जैसे देशों के साथ सैन्य संधि जैसी कूटनीतिज्ञता का आभास भी दृष्टिगोचर होता है। उन्होने अरब के मुसलमान आक्रान्ताओं को सफलतापूर्वक दबाया तथा चीन सैनिकों को भी पीछे धकेला।
ललितादित्य मुक्तापीड के साथ चीन के सम्राट का सैनिक संधि के परिणामस्वरूप, चीन से सैनिक टुकड़ियां कश्मीर के राजा चन्द्रापीड़ की सहायतार्थ पहुंची थीं। इसका प्रमाण चीन के एक राज्य वंश ‘ता-आंग’ के सरकारी उल्लेखों में मिलता है।
साहस और पराक्रम की प्रतिमूर्ति सम्राट ललितादित्य मुक्तापीढ़ का नाम कश्मीर के इतिहास में सर्वोच्च स्थान पर है। उसका सैंतीस वर्ष का राज्य उसके सफल सैनिक अभियानों, उसकी सर्वधर्मसमभाव पर आधारित जीवन प्रणाली, उसके अद्भुत कला कौशल और विश्व विजेता बनने की उसकी चाह से पहचाना जाता है। लगातार बिना थके युद्धों में व्यस्त रहना और रणक्षेत्र में अपने अनूठे सैन्य कौशल से विजय प्राप्त करना उसके स्वभाव का साक्षात्कार है।
उनका राज्य पूर्व में बंगाल तक, दक्षिण में कोंकण तक पश्चिम में तुर्किस्तान और उत्तर-पूर्व में चीन और रूस,पीकिंग तक फैला था। उन्होने अनेक भव्य भवनों का निर्माण किया।
ललितादित्य ने दक्षिण की महत्वपूर्ण विजयों के पश्चात अपना ध्यान उत्तर की तरफ लगाया जिससे उनका साम्राज्य काराकोरम पर्वत शृंखला के सूदूरवर्ती कोने तक जा पहुँचा।
साहस और पराक्रम की प्रतिमूर्ति सम्राट ललितादित्य मुक्तापीड का नाम कश्मीर के इतिहास में सर्वोच्च स्थान पर है। उसका सैंतीस वर्ष का राज्य उसके सफल सैनिक अभियानों, उसके अद्भुत कला-कौशल-प्रेम और विश्व विजेता बनने की उसकी चाह से पहचाना जाता है। लगातार बिना थके युद्धों में व्यस्त रहना और रणक्षेत्र में अपने अनूठे सैन्य कौशल से विजय प्राप्त करना उसके स्वभाव का साक्षात्कार है। ललितादित्य ने रूस,पीकिंग को भी जीता और 12 वर्ष के पश्चात् कश्मीर लौटा।
कश्मीर उस समय सबसे शक्तिशाली राज्य था। उत्तर में तिब्बत से लेकर द्वारिका और उड़ीसा के सागर तट और दक्षिण तक, पूर्व में बंगाल, पश्चिम में विदिशा और मध्य एशिया तक कश्मीर का राज्य फैला हुआ था जिसकी राजधानी प्रकरसेन नगर थी। ललितादित्य की सेना की पदचाप अरण्यक (ईरान) और रूस,पीकिंग तक पहुंच गई थी ।
–जय श्री राम
-वंदे मातरम
-भारत माता की जय
Tuesday, June 21, 2016
गुरु हरगोविंद सिंह
2. भाई जैता जी
3. भाई पिराना जी
4. भाई तोता जी
5. भाई त्रिलोका जी
6. भाई माई दास जी
7. भाई पैड़ जी
8. भाई भगतू जी
9. भाई नन्ता (अनन्ता) जी
10. भाई निराला जी
11. भाई तखतू जी
12. भाई मोहन जी
13. भाई गोपाल जी
शहीद सिक्खों की याद में गुरू जी ने गुरूद्वारा श्री सँगराणा साहिब जी बनाया।