An account of effects of political isolation of other religions from Hindus –
बुद्ध के विषय में मेरी उतनी ही आस्था है जितनी की एक बौद्ध भिक्षु की होनी चाहिए ,कृपया कोई इस लेख को अन्यथा ना ले.समीक्षा तो सिर्फ हिंदुत्व से हटे पन्थो के अलगाव वाद और उसके परिणामो की है जिस से आज अलगाव वादियों को कुछ सिख मिले यही केवल एकमात्र उद्देश।
ॐ,नमो आदि हिंदुत्व के तत्वों का उपयोग करके धार्मिक सुधारना के नाम पर हिंदुत्व से हट कर अनेक पन्थो का निर्माण हुआ. इन पन्थो में बौद्ध,जैनादि मुख्य थे परन्तु इसके अलावा भी अनेको पंथ भारत भूमि में अपनी विचारधारा को फैला रहे थे.
घुमा फिर कर इन सभी धर्मो की विचारधारा वेदो से ही प्रणीत होती थि.
घुमा फिर कर इन सभी धर्मो की विचारधारा वेदो से ही प्रणीत होती थि.
हिन्दू धर्म में काल और प्रसंग के अनुसार सुधारना का व्यवधान खुद ही लिखा हुआ है, जिसके तहत अनेको स्मृतियों ने जन्म लिया (स्मृतियाँ ये हिंदुत्व का सुधारित संस्करण होती है ,देवल स्मृृति इतिहास में क्रांतिकारक सिद्ध हुयी).फिर भी कुछ् लोगो ने अपनी स्वेच्छा से हिंदुत्व से हट कर अलग अलग पन्थो का निर्माण कराया जिन्हे हिन्दुओ की धार्मिक सहिष्णुता के कारण समर्थन और संरक्षण दोनों मिले।
बौद्ध पंथ का निर्माण करने के बाद खुद भगवान बुद्ध ने भी ये नहीं सोचा होगा की मेरे अनुयायी अपने अंदर ऐसी विचारधारा का विकास करे जो की हिन्दुओ से राजकीय-अलगाव-वाद को जन्म देगी !
धार्मिक मतानुभेद ये केवल धर्म ,परम्परा और आचरण तक सिमित रहते तो सब ठीक था परन्तु समय के साथ साथ बौद्ध सम्प्रदाय में हिन्दुओ के प्रति अलगाव वाद और विरोध को जन्म दिया ,इसी विरोध ने जब राजनीति में प्रवेश किया तब बौद्ध धर्मानुयायियों में हिन्दुओ के प्रति अलगाव वाद इतना बढ़ गया की वे विदेशी आक्रमण कारियों से समर्थन करने का राष्ट्रद्रोह भी कर बैठे!!
इतिहास में इस विषय में २ प्रमुख प्रमाण मिलते है –
(१) ग्रीक राजा डेमिट्रियस और मिलण्डर का भारत पर आक्रमण (इसा पूर्व :२००) –
इसा के लगभग ३१५ साल पहले समग्र विश्व को जितने वाले राजा अलेक्झांडर सिकंदर के अनुयायी सेल्यूकस निकेटर को भारत में चन्द्रगुप्त से मात खानी पड़ी।चंद्रगुप्त के बाद आये सम्राट अशोक ने भारत में बौद्ध धर्म को के प्रचार को अपना परम कर्त्तव्य समझते हुए हिन्दुओ पर इसका बलात स्वीकार करने की अनिवार्यता डाली।
राष्ट्र की सुरक्षा का मुख्य तत्त्व “शस्त्रबल” को ही उसने अहिंसा के नाम पर ख़त्म कर डाला था ,फलस्वरूप उसके मृत्यु के १०-१५ साल बाद ही बक्टेरियन ग्रीको ने राजा डेमिट्रियस के नेतृत्व में भारत पर पुनः आक्रमण किया। डेमिट्रियस से कई अधिक शक्तिशाली सिकंदर को ध्वस्त करनेवाली उत्तर भारतीय योद्धाओ की क्षात्रवृत्ति अशोक की अहिंसा के कारण ख़त्म हो गयी थी जिस कारण डेमिट्रियस बड़े ही आसानी से पंजाब,गांधार,सिंध समेत अयोध्या तक का बड़ा भूभाग निगल गया।
पुरे भारत में उस से लड़ने की हिम्मत केवल सम्राट अशोक के शत्रु हिन्दू राजा कलिंगराज खारवेल ने की ,उसने आंध्र की सेनाओ को साथ लिए डेमिट्रियस पर हमला बोल दिया ,थोड़ी बोहत मारकाट के बाद ही डेमिट्रियस अपने देश वापस लौट गया.
उसके ठीक ५ साल बाद पुनः मिलण्डर नामक ग्रीक राजा ने भारत पर चढ़ाई की।
मिलंदर ने बड़ी अच्छी राजनीति करते हुए भारत के प्रमुख बौद्ध नेताओ से यह कहना शुरू कर दिया की उसे बौद्ध मत में विश्वास है ,और इसीलिए भारत को जीतकर वह देश में वो पुनः बौद्ध मत को दृढ़ करेगा ! बस। ।इतना ही पर्याप्त था तत्कालीन बौद्ध सम्रदाय के लिए! बौद्ध नेताओ ने उसका नाम मिलण्डर से “मिलिंद ” रख दिया और उसे भारत के बौद्ध राजाओ का समर्थन मिला।
विदेशी ग्रीको को भगाने के लिए सेनापति पुष्यकुमार शुंग को मौर्या साम्राज्य के विरुद्ध विद्रोह करना पड़ा , बृहद्रथ मौर्या को हटाकर वह स्वयं अधिपति बना और मिलण्डर की ग्रीक सेनाओ पर सेनाओ का विद्धवंस करते हुए उसने भारत पर से ग्रीको का संकट हमेशा के लिए दूर कर डाला।
उसके ठीक ५ साल बाद पुनः मिलण्डर नामक ग्रीक राजा ने भारत पर चढ़ाई की।
मिलंदर ने बड़ी अच्छी राजनीति करते हुए भारत के प्रमुख बौद्ध नेताओ से यह कहना शुरू कर दिया की उसे बौद्ध मत में विश्वास है ,और इसीलिए भारत को जीतकर वह देश में वो पुनः बौद्ध मत को दृढ़ करेगा ! बस। ।इतना ही पर्याप्त था तत्कालीन बौद्ध सम्रदाय के लिए! बौद्ध नेताओ ने उसका नाम मिलण्डर से “मिलिंद ” रख दिया और उसे भारत के बौद्ध राजाओ का समर्थन मिला।
विदेशी ग्रीको को भगाने के लिए सेनापति पुष्यकुमार शुंग को मौर्या साम्राज्य के विरुद्ध विद्रोह करना पड़ा , बृहद्रथ मौर्या को हटाकर वह स्वयं अधिपति बना और मिलण्डर की ग्रीक सेनाओ पर सेनाओ का विद्धवंस करते हुए उसने भारत पर से ग्रीको का संकट हमेशा के लिए दूर कर डाला।
(२) मीर कासिम को सिंध के बौद्ध नेताओ का समर्थन तथा मुसलमानो की सिंध विजय (ईसा ७१२) –
बौद्ध धर्म ग्रंथो में लिखा था की भारत में म्लेच्छो का राज आनेवाला है ,इसलिए व्यर्थ में उनसे लड़कर अपना रक्त क्यों बहाये ? इस सिद्धांत के चलते जब मीर कासिम ने भारत के सिंध प्रांत पर हमला बोला तब बौद्ध नेताओ ने उसका स्वागत किया तथा उस से बौद्ध मठो की रक्षा या उन्हें ना तोड़ने का वचन माँगा ! बदले में उसकी सेनाओ को भोजन ,पानी से लेकर राजकीय भेद बताने की तक सहायता करने का प्रस्ताव रख.
राजा दाहिर की मृत्यु के बाद सिंध में हजारो हिन्दू वीरो ने लड़कर अपना बलिदान दिया और मीर कासिम की विशाल सेना की जीत हुयी !
जीत के तुरंत बाद मंदिरो के साथ साथ बौद्ध मठो का भी कासिम ने विद्ध्वंस करवा डाला।
सिंध पर विजय होने के बाद भी कासिम को हर जगह हिन्दू सरदारो सेना नायको से लड़ाई लड़ना पद रही थी , सिविस्थान नामक सिंध का बड़ा प्रांत अभी भी स्वतंत्र ही था ,इसलिए कासिम की मुसलमान सेनाओ को मंदिरो का विध्वंस करने में हिन्दुओ का डर था परन्तु बौद्ध प्रासादों में उन्हें ऐसा कोई विरोध होने की बिलकुल चिंता नहीं थी सो उन्होंने धड़ा धड़ बौद्ध मठो का तोड़ना शुरू कर दिया।
राजा दाहिर की मृत्यु के बाद सिंध में हजारो हिन्दू वीरो ने लड़कर अपना बलिदान दिया और मीर कासिम की विशाल सेना की जीत हुयी !
जीत के तुरंत बाद मंदिरो के साथ साथ बौद्ध मठो का भी कासिम ने विद्ध्वंस करवा डाला।
सिंध पर विजय होने के बाद भी कासिम को हर जगह हिन्दू सरदारो सेना नायको से लड़ाई लड़ना पद रही थी , सिविस्थान नामक सिंध का बड़ा प्रांत अभी भी स्वतंत्र ही था ,इसलिए कासिम की मुसलमान सेनाओ को मंदिरो का विध्वंस करने में हिन्दुओ का डर था परन्तु बौद्ध प्रासादों में उन्हें ऐसा कोई विरोध होने की बिलकुल चिंता नहीं थी सो उन्होंने धड़ा धड़ बौद्ध मठो का तोड़ना शुरू कर दिया।
जब बौद्ध नेताओ ने मीर कासिम को उसका वचन याद दिलाया तब उसने कहा की उसे मूर्तिपूजकों के नाश के अलावा वचन निभाने कआ आदेश नहीं है !
गाँजर मूली की तरह बौद्ध काट दिए गए , केवल वही बचे जिन्होंने इस्लाम काबुल किया था !
अफगानिस्तान ,हेरात सिंध जैसी जगह जाहा जाहा बौद्ध मत अधिक संख्या में था वहाँ वहाँ धर्म बदले हुए मुसलमानो की संख्या सर्वाधिक हो गयी !
गाँजर मूली की तरह बौद्ध काट दिए गए , केवल वही बचे जिन्होंने इस्लाम काबुल किया था !
अफगानिस्तान ,हेरात सिंध जैसी जगह जाहा जाहा बौद्ध मत अधिक संख्या में था वहाँ वहाँ धर्म बदले हुए मुसलमानो की संख्या सर्वाधिक हो गयी !
सारांश ये रहा की जो पंथ हिंदुत्व की मुख्य धारा से हटे उनके राजकीय अलगाव वाद ने उन पन्थो का आत्मघात कर डाला और जो अलग होने के बाद भी हिंदुत्व से जुड़े रहे ऐसे सिख ,जैन,महानुभाव पन्थादि अपने राजनैतिक उथ्थान का अनुभव करते रहे !
हर हर महादेव ,
कुलदीप सिंह
कुलदीप सिंह