Saturday, October 31, 2015

Political effect of Buddhism-Buddha was not a GOD. 9th incarnation-Lord Chaitanya Mahabraphu


An account of effects of political isolation of other religions from Hindus –
बुद्ध के विषय में मेरी उतनी ही आस्था है जितनी की एक बौद्ध भिक्षु की होनी चाहिए ,कृपया कोई इस लेख को अन्यथा ना ले.समीक्षा तो सिर्फ हिंदुत्व से हटे पन्थो के अलगाव वाद और उसके परिणामो की है जिस से आज अलगाव वादियों को कुछ सिख मिले यही केवल एकमात्र उद्देश।
ॐ,नमो आदि हिंदुत्व के तत्वों का उपयोग करके धार्मिक सुधारना के नाम पर हिंदुत्व से हट कर अनेक पन्थो का निर्माण हुआ. इन पन्थो में बौद्ध,जैनादि मुख्य थे परन्तु इसके अलावा भी अनेको पंथ भारत भूमि में अपनी विचारधारा को फैला रहे थे.
घुमा फिर कर इन सभी धर्मो की विचारधारा वेदो से ही प्रणीत होती थि.
हिन्दू धर्म में काल और प्रसंग के अनुसार सुधारना का व्यवधान खुद ही लिखा हुआ है, जिसके तहत अनेको स्मृतियों ने जन्म लिया (स्मृतियाँ ये हिंदुत्व का सुधारित संस्करण होती है ,देवल स्मृृति इतिहास में क्रांतिकारक सिद्ध हुयी).फिर भी कुछ् लोगो ने अपनी स्वेच्छा से हिंदुत्व से हट कर अलग अलग पन्थो का निर्माण कराया जिन्हे हिन्दुओ की धार्मिक सहिष्णुता के कारण समर्थन और संरक्षण दोनों मिले।
बौद्ध पंथ का निर्माण करने के बाद खुद भगवान बुद्ध ने भी ये नहीं सोचा होगा की मेरे अनुयायी अपने अंदर ऐसी विचारधारा का विकास करे जो की हिन्दुओ से राजकीय-अलगाव-वाद को जन्म देगी !
धार्मिक मतानुभेद ये केवल धर्म ,परम्परा और आचरण तक सिमित रहते तो सब ठीक था परन्तु समय के साथ साथ बौद्ध सम्प्रदाय में हिन्दुओ के प्रति अलगाव वाद और विरोध को जन्म दिया ,इसी विरोध ने जब राजनीति में प्रवेश किया तब बौद्ध धर्मानुयायियों में हिन्दुओ के प्रति अलगाव वाद इतना बढ़ गया की वे विदेशी आक्रमण कारियों से समर्थन करने का राष्ट्रद्रोह भी कर बैठे!!
इतिहास में इस विषय में २ प्रमुख प्रमाण मिलते है –
(१) ग्रीक राजा डेमिट्रियस और मिलण्डर का भारत पर आक्रमण (इसा पूर्व :२००) –
इसा के लगभग ३१५ साल पहले समग्र विश्व को जितने वाले राजा अलेक्झांडर सिकंदर के अनुयायी सेल्यूकस निकेटर को भारत में चन्द्रगुप्त से मात खानी पड़ी।चंद्रगुप्त के बाद आये सम्राट अशोक ने भारत में बौद्ध धर्म को के प्रचार को अपना परम कर्त्तव्य समझते हुए हिन्दुओ पर इसका बलात स्वीकार करने की अनिवार्यता डाली।
राष्ट्र की सुरक्षा का मुख्य तत्त्व “शस्त्रबल” को ही उसने अहिंसा के नाम पर ख़त्म कर डाला था ,फलस्वरूप उसके मृत्यु के १०-१५ साल बाद ही बक्टेरियन ग्रीको ने राजा डेमिट्रियस के नेतृत्व में भारत पर पुनः आक्रमण किया। डेमिट्रियस से कई अधिक शक्तिशाली सिकंदर को ध्वस्त करनेवाली उत्तर भारतीय योद्धाओ की क्षात्रवृत्ति अशोक की अहिंसा के कारण ख़त्म हो गयी थी जिस कारण डेमिट्रियस बड़े ही आसानी से पंजाब,गांधार,सिंध समेत अयोध्या तक का बड़ा भूभाग निगल गया।
पुरे भारत में उस से लड़ने की हिम्मत केवल सम्राट अशोक के शत्रु हिन्दू राजा कलिंगराज खारवेल ने की ,उसने आंध्र की सेनाओ को साथ लिए डेमिट्रियस पर हमला बोल दिया ,थोड़ी बोहत मारकाट के बाद ही डेमिट्रियस अपने देश वापस लौट गया.
उसके ठीक ५ साल बाद पुनः मिलण्डर नामक ग्रीक राजा ने भारत पर चढ़ाई की।
मिलंदर ने बड़ी अच्छी राजनीति करते हुए भारत के प्रमुख बौद्ध नेताओ से यह कहना शुरू कर दिया की उसे बौद्ध मत में विश्वास है ,और इसीलिए भारत को जीतकर वह देश में वो पुनः बौद्ध मत को दृढ़ करेगा ! बस। ।इतना ही पर्याप्त था तत्कालीन बौद्ध सम्रदाय के लिए! बौद्ध नेताओ ने उसका नाम मिलण्डर से “मिलिंद ” रख दिया और उसे भारत के बौद्ध राजाओ का समर्थन मिला।
विदेशी ग्रीको को भगाने के लिए सेनापति पुष्यकुमार शुंग को मौर्या साम्राज्य के विरुद्ध विद्रोह करना पड़ा , बृहद्रथ मौर्या को हटाकर वह स्वयं अधिपति बना और मिलण्डर की ग्रीक सेनाओ पर सेनाओ का विद्धवंस करते हुए उसने भारत पर से ग्रीको का संकट हमेशा के लिए दूर कर डाला।
(२) मीर कासिम को सिंध के बौद्ध नेताओ का समर्थन तथा मुसलमानो की सिंध विजय (ईसा ७१२) –
बौद्ध धर्म ग्रंथो में लिखा था की भारत में म्लेच्छो का राज आनेवाला है ,इसलिए व्यर्थ में उनसे लड़कर अपना रक्त क्यों बहाये ? इस सिद्धांत के चलते जब मीर कासिम ने भारत के सिंध प्रांत पर हमला बोला तब बौद्ध नेताओ ने उसका स्वागत किया तथा उस से बौद्ध मठो की रक्षा या उन्हें ना तोड़ने का वचन माँगा ! बदले में उसकी सेनाओ को भोजन ,पानी से लेकर राजकीय भेद बताने की तक सहायता करने का प्रस्ताव रख.
राजा दाहिर की मृत्यु के बाद सिंध में हजारो हिन्दू वीरो ने लड़कर अपना बलिदान दिया और मीर कासिम की विशाल सेना की जीत हुयी !
जीत के तुरंत बाद मंदिरो के साथ साथ बौद्ध मठो का भी कासिम ने विद्ध्वंस करवा डाला।
सिंध पर विजय होने के बाद भी कासिम को हर जगह हिन्दू सरदारो सेना नायको से लड़ाई लड़ना पद रही थी , सिविस्थान नामक सिंध का बड़ा प्रांत अभी भी स्वतंत्र ही था ,इसलिए कासिम की मुसलमान सेनाओ को मंदिरो का विध्वंस करने में हिन्दुओ का डर था परन्तु बौद्ध प्रासादों में उन्हें ऐसा कोई विरोध होने की बिलकुल चिंता नहीं थी सो उन्होंने धड़ा धड़ बौद्ध मठो का तोड़ना शुरू कर दिया।
जब बौद्ध नेताओ ने मीर कासिम को उसका वचन याद दिलाया तब उसने कहा की उसे मूर्तिपूजकों के नाश के अलावा वचन निभाने कआ आदेश नहीं है !
गाँजर मूली की तरह बौद्ध काट दिए गए , केवल वही बचे जिन्होंने इस्लाम काबुल किया था !
अफगानिस्तान ,हेरात सिंध जैसी जगह जाहा जाहा बौद्ध मत अधिक संख्या में था वहाँ वहाँ धर्म बदले हुए मुसलमानो की संख्या सर्वाधिक हो गयी !
सारांश ये रहा की जो पंथ हिंदुत्व की मुख्य धारा से हटे उनके राजकीय अलगाव वाद ने उन पन्थो का आत्मघात कर डाला और जो अलग होने के बाद भी हिंदुत्व से जुड़े रहे ऐसे सिख ,जैन,महानुभाव पन्थादि अपने राजनैतिक उथ्थान का अनुभव करते रहे !
हर हर महादेव ,
कुलदीप सिंह

दुर्गा सप्तशती , Durga saptsadi and its meaning

दुर्गा सप्तशती वर्णित असुरों का मूल


दुर्गा सप्तशती वर्णित असुरों का मूल- असुरों का मूल केन्द्र मध्य-युग में असीरिया कहा जाता था, जो आजकल सीरिया तथा इराक हैं। इसकी राजधानी उर थी, जो इराक का प्राचीनतम नगर है। महिषासुर के बारे में भी स्पष्ट लिखा है कि वह पाताल (भारत के विपरीत क्षेत्र) का था। उसे चेतावनी भी दी गयी थी कि यदि जीवित रहना चाहते हो तो पाताल लौट जाओ-यूयं प्रयात पाताल यदि जीवितुमिच्छथ (दुर्गा सप्तशती ८/२६)। इसी अध्याय में (श्लोक ४-६) असुरों के क्षेत्र तथा भारत के सीमावर्त्ती क्षेत्र कहे गये हैं जहां असुरों का आक्रमण हुआ था-कम्बू-आजकल कम्बुज कहते हैं जिसे अंग्रेज कम्बोडिया कहते हैं। कोटि-वीर्य = अरब देश। कोटि = करोड़ का वीर्य (बल) १०० कोटि = अर्व तक है अतः इसे अरब कहते हैं। धौम्र (धुआं जैसा) को शाम (सन्ध्या = गोधूलि) कहते थे जो एसिया की पश्चिमी सीमा पर सीरिया का पुराना नाम है। शाम को सूर्य पश्चिम में अस्त होता है अतः एसिया की पश्चिमी सीमा शाम (सीरिया) है। इसी प्रकार भारत की पश्चिमी सीमा के नगर सूर्यास्त (सूरत) रत्नागिरि (अस्ताचल = रत्नाचल) हैं। कालक = कालकेयों का निवास काकेशस (कज्जाकिस्तान,उसके पश्चिम काकेशस पर्वतमाला), दौर्हृद (ह्रद = छोटे समुद्र, दो समुद्र भूमध्य तथा कृष्ण सागरों को मिलानेवाला पतला समुद्री मार्ग) = डार्डेनल (टर्की तथा इस्ताम्बुल के बीच का समुद्री मार्ग)। इसे बाद में हेलेसपौण्ट (ग्रीक में सूर्य क्षेत्र) भी कहते थे, क्योंकि यह उज्जैन से ठीक ७ दण्ड = ४२ अंश पश्चिम था। प्राचीन काल में लंका तथा उज्जैन से गुजरने वाली देशान्तर रेखा को शून्य देशान्तर रेखा मानते थे तथा उससे १-१ दण्ड अन्तर पर विश्व में ६० क्षेत्र थे जिनके समय मान लिये जाते थे। ये सूर्य क्षेत्र थे क्योंकि सूर्य छाया देखकर अक्षांश-देशान्तर ज्ञात होते हैं। आजकल ४८ समय-भाग हैं। मौर्य = मुर असुरों का क्षेत्र। मोरक्को के निवासियों को आज भी मुर कहते हैं। मुर का अर्थ लोहा है, मौर्य (मोरचा) के दो अर्थ हैं, लोहे की सतह पर विकार या युद्ध-क्षेत्र (लोहे के हथियारों से युद्ध होते हैं)। जंग शब्द के भी यही २ अर्थ हैं। कालकेय = कालक असुरों की शाखा। मूल कालक क्केशस के थे, उनकी शाखा कज्जाक हैं। इसके पूर्व साइबेरिया (शिविर) के निवासी शिविर (टेण्ट) में रहते थे तथा ठण्ढी हवा से बचने के लिये खोल पहनते थे, अतः उनको निवात-कवच कहते थे। अर्जुन ने उत्तर दिशा के दिग्विजय में कालकेयों तथा निवातकवचों को पराजित किया था (३१४५ ई.पू) जब आणविक अस्त्र का प्रयोग हुआ था जिसका प्रभाव अभी भी है।
यहां देवी को देवताओं की सम्मिलित शक्ति कहा गया है (अध्याय २, श्लोक ९-३१)। आज भी सेना, वाहिनी आदि शब्द स्त्रीलिंग हैं। उअनके अनुकरण से अंग्रेजी का पुलिस शब्द भी स्त्रीलिंग है।
दुर्गा सप्तशती अध्याय ११ में बाद की घटनायें भी दी गयी हैं। श्लोक ४२-नन्द के घर बालिका रूप में जन्म (३२२८ ई.पू.) जो अभी विन्ध्याचल की विन्ध्यवासिनी देवी हैं। विप्रचित्ति वंशज दानव (श्लोक ४३-४४)-असुरों की दैत्य जाति पश्चिम यूरोप में थी, जो दैत्य = डच, ड्यूट्श (नीदरलैण्ड, जर्मनी) आदि कहते हैं। पूर्वी भाग डैन्यूब नदी का दानव क्षेत्र था। दानवों ने मध्य एसिया पर अधिकार कर भगवान् कृष्ण के समय कालयवन के नेतृत्व में आक्रमण किया था। इसके बाद (श्लोक ४६) १०० वर्ष तक पश्चिमोत्तर भारत में अनावृष्टि हुयी थी (२८००-२७०० ई.पू.) जिसमें सरस्वती नदी सूख गयी तथा उससे पूर्व अतिवृष्टि के कारण गंगा की बाढ़ में पाण्डवों की राजधानी हस्तिनापुर पूरी तरह नष्ट हो गयी जिसके कारण युधिष्ठिर की ८वीं पीढ़ी के राजा निचक्षु को कौसाम्बी जाना पड़ा। उस समय शताक्षी अवतार के कारण पश्चिमी भाग में भी अन्न की आपूर्त्ति हुयी तथा असुरों को आक्रमण का अवसर नहीं मिला। उसके बाद नबोनासिर (लवणासुर) आदि के नेतृत्व में असुर राज्य का पुनः उदय हुआ (प्रायः १००० ई.पू.) जिनको दुर्गम असुर (श्लोक ४९) कहा गया है। उनके कई आक्रमण निष्फल होने पर उनकी रानी सेमिरामी ने सभी क्षेत्रों के सहयोग से ३५ लाख सेना एकत्र की तथा प्रायः १०,००० नकली हाथी तैयार किये (ऊंटों पर खोल चढ़ा कर)। इस आक्रमण के मुकाबले के लिये आबू पर्वत पर पश्चिमोत्तर के ४ प्रमुख राजाओं का संघ बना-इसके अध्यक्ष शूद्रक ने उस अवसर पर ७५६ ई.पू. में शूद्रक शक चलाया। ये ४ राजा देशरक्षा में अग्री (अग्रणी) होने के कारण अग्निवंशी कहे गये-परमार, प्रतिहार, चाहमान, चालुक्य। यह मालव-गण था जो श्रीहर्ष काल (४५६ ई.पू.) तक ३०० वर्ष चला। इसे मेगास्थनीज ने ३०० वर्ष गणतन्त्र काल कहा है। इस काल में एक और आक्रमण में ८२४ ई.पू.) में असुर मथुरा तक पहुंच गये जिनको कलिंग राजा खारावेल की गज सेना ने पराजित किया (खारवेल प्रशस्ति के अनुसार उसका राज्य नन्द शक १६३४ ई.पू. के ७९९ वर्ष बाद आरम्भ हुआ और राज्य के ११ वर्ष बाद मथुरा में असुरों को पराजित किया)।
१०००० ई.पू. के जल प्रलय के पूर्व खनिज निकालने के लिये देवों और असुरों का सहयोग हुआ था जिसे समुद्र-मन्थन कहते हैं। इसके बाद कार्त्तिकेय का काल १५८०० ई.पू. था जब उन्होंने क्रौञ्च द्वीप (उत्तर अमेरिका) पर आक्रमण किया। भारत में समुद्र-मन्थन वर्तमान झारखण्ड से छत्तीसगढ़ तक हुआ। आज भी मथानी का आकार का गंगा तट तक का मन्दार पर्वत है जहा वासुकिनाथ तीर्थ है। वासुकि को ही मथानी कहा गया है-यह संयोजक थे। मेगास्थनीज ने कार्त्तिकेय के आक्रमण का उल्लेख किया है कि १५००० वर्षों से भारत ने किसी भी दूसरे देश पर अधिकार नहीं किया क्योंकि यह सभी चीजों में स्वावलम्बी था और किसी को लूटने की जरूरत नहीं थी। (यह आक्रमण सिकन्दर से प्रायः १५,५०० वर्ष पूर्व था)। वही यह भी लिखा है कि भारत एकमात्र देश हैं जहा बाहर से कोई नहीं बसा है। बाद में डायोनिसस या बाकस ने ६७७७ ई.पू. में आक्रमण किया (मेगास्थनीज) जिसमें सूर्यवंशी राजा बाहु मारा गया। उसके १५ वर्ष बाद उसके पुर सगर ने असुरों को भगा दिया। वे अरब क्षेत्र से भाग कर गीस में बसे जब उसका नाम इयोनिआ (हेरोडोटस) = यूनान पड़ा। अतः आज भी झारखण्ड में खनिज निकालने के लिया १५८०० ई.पू. में आये असुरों के नाम वही हैं जो ग्रीक भाषा में उन खनिजों के होते हैं-मुण्डा (लोहा, इस क्षेत्र की वेद शाखा मुण्डक, पश्चिम ओड़िशा के मुण्ड ब्राह्मण), खालको (ताम्बे का अयस्क खालको-पाइराइट), ओराम (ग्रीक में सोना =औरम), टोप्पो (टोपाज), सिंकू (टिन का अयस्क स्टैनिक), किस्कू (लोहे के लिये धमन भट्टी) आदि।

Congress and its anti india activity


जरूर पढ़े,, भाग ४. , १. अंग्रेज़ी सत्ता के विरुद्ध भारत की स्वतंत्रता के लिए संघर्ष करने वाले विनायक दामोदरसावरकर साधारणतया वीर … के पहले व्यक्ति थे जिन्होंने सन् 1905 के बंग-भंग के बाद सन् 1906 में ‘स्वदेशी’ का नारा दे, विदेशी कपड़ों की होली जलाई ..जब सावरकर ने पूना (महाराष्ट्र) में गुलाम भारत के इतिहास में पहली बार विदेशी कपड़ों की होली जलाई तो, तब गांधी ने कहा , यह देश का नुकसान है, और वतन के साथ गद्दारी है.., सावरकर ने स्वदेशी वस्तुओं को खरीदने का देश वासियों को आव्हान किया …, कई वर्षों बाद में गांधी ने, सावरकर के विचारों कों स्वीकार कर, नेशनल हेराल्ड अखबार के मक्खनबाजी से ये श्रेय (स्वदेशी का नारा) अपने नाम कर गए…
जाने गांधी – नेहरू का देश को तोड़ने का यह खेल
२.गांधी की आड़ में कांग्रेस में एक बड़ा खेल खेला , हिन्दू राज्य को ठुकराकर, जब गांधीजी और नेहरु ने देश का विभाजन मजहब के आधार पर स्वीकार किया, पाकिस्तान मुसलमानों के लिए और शेष बचा हिंदुस्थान हिंदूओ के लिए, तो उन्हें हिंदूओं को तर्कश: :द्विराष्ट्रवाद के सिद्धांत के अनुसार अपना हिन्दूराज्य स्थापित करने के अधिकार से वंचित नहीं करना चाहिए था .यह पंडित नेहरु ही थे जिन्होंने स्वेच्छाचारी तानाशाह के समान अगस्त १९४७ में घोषणा की थी कि जब तक वे देश की सरकार के सूत्रधार है,भारत “हिंदू राज्य” नहीं हो सकेगा. कांग्रेस के सभी हिंदू सदस्य इतने दब्बू थे कि इस स्वेच्छाचारी घोषणा के विरुद्ध एक शब्द भी बोलने की भी उनमें हिम्मत नहीं थी.
३. असांविधानिक धर्मनिरपेक्षतावाद के आड़ में कांग्रेस ने देश को धोखा दिया, जब खंडित हिंदुस्थान को “हिंदू राज्य” घोषित करने के स्थान पर सत्ताधारी छद्म धर्मनिरपेक्षतावादीयों ने धूर्तता के साथ धर्मनिरपेक्षतावाद को ,१९४६ तक अपने संविधान में शामिल किये बिना ही, हिन्दुओं की इच्छा के विरुद्ध राजनीति में गुप्त रूप से समाहित कर दिया.
४,धर्म-निरपेक्षता एक विदेशी धारणा से वाहवाही बटोरने का खेल खेला ,यद्यपि गांधीजी और नेहरु “स्वदेशी के मसीहा” होने की डींगे मारते थे, तथापि उन्होंने विदेशी राजनितिक धारणा ‘धर्म-निरपेक्षता’ का योरप से आयात किया, यद्यपि यह धारणा भारत के वातावरण के अनुकूल नहीं थी.
५. धर्मविहीन धर्मनिरपेक्षता को पाखण्ड बनाया, यदि इंग्लॅण्ड और अमेरिका, ईसाइयत को राजकीय धर्म घोषित करने के बाद भी, विश्व भर में धर्म-निरपेक्ष माने जा सकते है,तो हिंदुस्थान को हिंदुत्व राजकीय धर्म घोषित करने के बाद भी, धर्म-निरपेक्ष क्यों नहीं स्वीकार किया जा सकता? पंडित नेहरु द्वारा थोपा हुआ धर्म-निरपेक्षतावाद धर्म-विहीन और नकारात्मक है.
६. इसी की आड़ में पूर्वी पाकिस्तान (बंगला देश) में हिन्दुओं का नरसंहार बेरहमी से हुआ और १९४७ में,पूर्वी पाकिस्तान में, हिंदुओं की जनसंख्या कुल आबादी का ३० प्रतिशत (बौद्धों सहित) अर्थात डेढ़ करोड़ थी. ५० वर्षो में अर्थात १९४७ से १९९७ तक इस आबादी का दुगना अर्थात ३ करोड़ हो जाना चाहिए था.परन्तु तथ्य यह है कि वे घट कर १ करोड़ २१ लाख अर्थात कुल आबादी का १२ प्रतिशत रह गये है.१९५० में ५० हजार हिंदुओं का नरसंहार किया गया. १९६४ में ६० हजार हिन्दू कत्ल किये गए. १९७१ में ३० लाख हिन्दू, बौद्ध तथा इसाई अप्रत्याशित विनाश-लीला में मौत के घाट उतारे गए. ८० लाख हिंदुओं और बौद्धों को शरणार्थी के रूप में भारत खदेड़ दिया गया. हिंदुस्थान के हिन्दू सत्ताधारियो द्वारा हिंदुओं को इस नरसंहार से बचने का कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया.
७. हमारे देश में कांग्रेस ने हिदू विस्थापितों की उपेक्षा की गई, यदि इज्रायल का ‘ला ऑफ़ रिटर्न’ प्रत्येक यहूदी को इज्रायल में वापिस आने का अधिकार देता है. प्रवेश के बाद उन्हें स्वयमेव ‘नागरिकता’ प्राप्त हो जाती है.परंतु खेद है की हिन्दुस्थान के छद्म-धर्मनिरपेक्ष राजनितिक सत्ताधारी उन हिदुओं को प्रवेश करने पर अविलंब नागरिकता नहीं देते, जो विभाजन के द्वारा पीड़ित हो कर और पाकिस्तान तथा बांग्लादेश में अत्याचार से त्रस्त होकर भारत में शरण लेते है.
८. नेहरु ने लियाकत समझौता का नाटक खेला , जब विभाजन के समय कांग्रेस सरकार ने बार बार आश्वासन दिया था कि वह पाकिस्तान में पीछे रह जाने वाले हिंदुओं के मानव अधिकारों के रक्षा के लिए उचित कदम उठाएगी परन्तु वह अपने इस गंभीर वचनबद्धता को नहीं निभा पाई. तानाशाह नेहरु ने पूर्वी पकिस्तान के हिंदुओं और बौद्धों का भाग्य निर्माण निर्णय अप्रैल ८ १९५० को नेहरु लियाकत समझौते के द्वारा कर दिया उसके अनुसार को बंगाली हिंदू शरणार्थी धर्मांध मुसलमानों के क्रूर अत्याचारों से बचने के लिए भारत में भाग कर आये थे, बलात वापिस पूर्वी पाकिस्तान में बंगाली मुसलमान कसाई हत्यारों के पंजो में सौप दिए गए
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९. लियाकत अली के तुष्टिकरण के विरोध कने के लिए लिए वीर सावरकर गिरफ्तार कर लिया, जब पाकिस्तान के प्रधानमंत्री लियाकत अली खान को पंडित नेहरु द्वारा दिल्ली आमंत्रित किया गया तो छद्म धर्मनिरपेक्षतावादी कृतघ्न हिन्दुस्थान सरकार ने नेहरु के सिंहासन के तले ,स्वातंत्र वीर सावरकर को ४ अप्रैल १९५० के दिन सुरक्षात्मक नजरबंदी क़ानून के अन्दर गिरफ्तार कर लिया और बेलगाँव जिला कारावास में कैद कर दिया.पंडित नेहरु की जिन्होंने यह कुकृत्य लियाकत अली खान की मक्खनबाजी के लिए किया, लगभग समस्त भारतीय समाचार पत्रो ने इसकी तीव्र निंदा की. लेकिन नेहरू के कांग्रेसी अंध भक्तों ने कोई प्रतिक्रया नहीं की
१० १९७१ के युद्ध के बाद , हिंदू शरणार्थियो को बलपूर्वक बांग्लादेश वापिस भेजा
श्रीमती इंदिरा गाँधी की नेतृत्व वाली हिन्दुस्थान सरकार ने बंगाली हिंदूओं और बौद्ध शर्णार्थियो को बलात अपनी इच्छा के विरुद्ध बांग्लादेश वापिस भेजा.इनलोगो ने इतना भी नहीं सोचा कि वे खूंखार भूखे भेडीयो की मांद में भेडो को भेज रहे है.
११. बंगलादेशी हिंदुओं के लिए अलग मातृदेश की मांग को इंदिरा गांधी ने अपने दुर्गा देवी की छवि को आंच न आये , इसलिए वह भी अपने निहित स्वार्थों की वजह से इसे अनदेखा कर दिया
१२. यह आज तक कांग्रेस का दुग्गला पन रहा है, एक तरफ तो , यदि हिन्दुस्थान की सरकार १० लाख से भी कम फिलिस्थिनियो के लिए संयुक्त राष्ट्रसंघ में एक अलग मातृभूमि का प्रस्ताव रख सकती है तो वह २० लाख बंगाली हिंदुओं और बौद्धों के लिए जो बांग्लादेश के अन्दर और बाहर नारकीय जीवन बिता रहे है उसी प्रकार का प्रस्ताव क्यों नहीं रख सकती.
१३. इसके पहले कि और एक विडबन्ना , जो बांग्लादेश के ‘तीन-बीघा’ समर्पण कर दिया, जब
१९५८ के नेहरु-नून पैक्ट (समझौते) के अनुसार अंगारपोटा और दाहग्राम क्षेत्र का १७ वर्ग मिल क्षेत्रफल जो चारो ओर से भारत से घिरा था ,हिन्दुस्थान को दिया जाने वाला था .हिन्दुस्थान की कांग्रेसी सरकार ने उस समय क्षेत्र की मांग करने के स्थान पर १९५२ में अंगारपोटा तथा दाहग्राम के शासन प्रबंध और नियंत्रण के लिए बांग्लादेश को ३ बीघा क्षेत्र ९९९ वर्ष के पट्टे पर दे दिया.
१४. वोट बैंक के तुष्टीकरण की भी कांग्रेस ने सभी हदें पार कर दी , जब केरल में लघु पाकिस्तान, मुस्लिम लीग की मांग पर केरल की कम्युनिस्ट सरकार ने तीन जिलो, त्रिचूर पालघाट और कालीकट को कांट छांट कर एक नया मुस्लिम बहुल जिला मालापुरम बना दिया .इस प्रकार केरल में एक लघु पाकिस्तान बन गया. केंद्रीय सरकार ने केरल सरकार के विरुद्ध कोई कदम नहीं उठाया.

Truth of Jesus= Reason for Osho's extradition


ओशो का वह प्रवचन, जि‍सपर ति‍लमि‍ला उठी थी अमेरि‍की सरकार और दे दि‍या जहर
ओशो का वह प्रवचन, जिससे ईसायत तिलमिला उठी थी और अमेरिका की रोनाल्‍ड रीगन सरकार ने उन्‍हें हाथ-पैर में बेडि़यां डालकर गिरफ्तार किया और फिर मरने के लिए थेलियम नामक धीमा जहर दे दिया था। इतना ही नहीं, वहां बसे रजनीशपुरम को तबाह कर दिया गया था और पूरी दुनिया को यह निर्देश भी दे दिया था कि न तो ओशो को कोई देश आश्रय देगा और न ही उनके विमान को ही लैंडिंग की इजाजत दी जाएगी। ओशो से प्रवचनों की वह श्रृंखला आज भी मार्केट से गायब हैं। पढिए वह चौंकाने वाला सच
ओशो:
जब भी कोई सत्‍य के लिए प्‍यासा होता है, अनायास ही वह भारत में उत्‍सुक हो उठता है। अचानक पूरब की यात्रा पर निकल पड़ता है। और यह केवल आज की ही बात नहीं है। यह उतनी ही प्राचीन बात है, जितने पुराने प्रमाण और उल्‍लेख मौजूद हैं। आज से 2500 वर्ष पूर्व, सत्‍य की खोज में पाइथागोरस भारत आया था। ईसा मसीह भी भारत आए थे। ईसामसीह के 13 से 30 वर्ष की उम्र के बीच का बाइबिल में कोई उल्‍लेख नहीं है। और यही उनकी लगभग पूरी जिंदगी थी, क्‍योंकि 33 वर्ष की उम्र में तो उन्‍हें सूली ही चढ़ा दिया गया था। तेरह से 30 तक 17 सालों का हिसाब बाइबिल से गायब है! इतने समय वे कहां रहे? आखिर बाइाबिल में उन सालों को क्‍यों नहीं रिकार्ड किया गया? उन्‍हें जानबूझ कर छोड़ा गया है, कि ईसायत मौलिक धर्म नहीं है, कि ईसा मसीह जो भी कह रहे हैं वे उसे भारत से लाए हैं।
यह बहुत ही विचारणीय बात है। वे एक यहूदी की तरह जन्‍मे, यहूदी की ही तरह जिए और यहूदी की ही तरह मरे। स्‍मरण रहे कि वे ईसाई नहीं थे, उन्‍होंने तो-ईसा और ईसाई, ये शब्‍द भी नहीं सुने थे। फिर क्‍यों यहूदी उनके इतने खिलाफ थे? यह सोचने जैसी बात है, आखिर क्‍यों ? न तो ईसाईयों के पास इस सवाल का ठीक-ठाक जवाबा है और न ही यहूदियों के पास। क्‍योंकि इस व्‍यक्ति ने किसी को कोई नुकसान नहीं पहुंचाया। ईसा उतने ही निर्दोष थे जितनी कि कल्‍पना की जा सकती है।
पर उनका अपराध बहुत सूक्ष्‍म था। पढ़े-लिखे यहूदियों और चतुर रबाईयों ने स्‍पष्‍ट देख लिया था कि वे पूरब से विचार ले रहे हैं, जो कि गैर यहूदी हैं। वे कुछ अजीबोगरीब और विजातीय बातें ले रहे हैं। और यदि इस दृष्टिकोण से देखो तो तुम्‍हें समझ आएगा कि क्‍यों वे बारा-बार कहते हैं- ‘ अतीत के पैगंबरों ने तुमसे कहा था कि यदि कोई तुम पर क्रोध करे, हिंसा करे तो आंख के बदले में आंख लेने और ईंट का जवाब पत्‍थर से देने को तैयार रहना। लेकिन मैं तुमसे कहता हूं कि अगर कोई तुम्‍हें चोट पहुंचाता है, एक गाल पर चांटा मारता है तो उसे अपना दूसरा गाल भी दिखा देना।’ यह पूर्णत: गैर यहूदी बात है। उन्‍होंने ये बातें गौतम बुद्ध और महावीर की देशनाओं से सीखी थीं।
ईसा जब भारत आए थे-तब बौद्ध धर्म बहुत जीवंत था, यद्यपि बुद्ध की मृत्‍यु हो चुकी थी। गौतम बुद्ध के पांच सौ साल बाद जीसस यहां आए थे। पर बुद्ध ने इतना विराट आंदोलन, इतना बड़ा तूफान खड़ा किया था कि तब तक भी पूरा मुल्‍क उसमें डूबा हुआ था। बुद्ध की करुणा, क्षमा और प्रेम के उपदेशों को भारत पिए हुआ था।
जीसस कहते हैं कि अतीत के पैगंबरों द्वारा यह कहा गया था। कौन हैं ये पुराने पैगंबर? वे सभी प्राचीन यहूदी पैगंबर हैं: इजेकिएल, इलिजाह, मोसेस,- कि ईश्‍वर बहुत ही हिंसक है और वह कभी क्षमा नहीं करता है!? यहां तक कि प्राचीन यहूदी पैगंबरों ने ईश्‍वर के मुंह से ये शब्‍द भी कहलवा दिए हैं कि मैं कोई सज्‍जन पुरुष नहीं हूं, तुम्‍हारा चाचा नहीं हूं। मैं बहुत क्रोधी और ईर्ष्‍यालु हूं, और याद रहे जो भी मेरे साथ नहीं है, वे सब मेरे शत्रु हैं। पुराने टेस्‍टामेंट में ईश्‍वर के ये वचन हैं। और ईसा मसीह कहते हैं, मैं तुमसे कहता हूं कि परमात्‍मा प्रेम है। यह ख्‍याल उन्‍हें कहां से आया कि परमात्‍मा प्रेम है? गौतम बुद्ध की शिक्षाओं के सिवाए दुनिया में कहीं भी परमात्‍मा को प्रेम कहने का कोई और उल्‍लेख नहीं है। उन 17 वर्षों में जीसस इजिप्‍त, भारत, लद्दाख और तिब्‍बत की यात्रा करते रहे। यही उनका अपराध था कि वे यहूदी परंपरा में बिल्‍कुल अपरिचित और अजनबी विचारधाराएं ला रहे थे। न केवल अपरिचित बल्कि वे बातें यहूदी धारणाओं के एकदम से विपरीत थीं। तुम्‍हें जानकर आश्‍चर्य होगा कि अंतत: उनकी मृत्‍यु भी भारत में हुई! और ईसाई रिकार्ड्स इस तथ्‍य को नजरअंदाज करते रहे हैं। यदि उनकी बात सच है कि जीसस पुनर्जीवित हुए थे तो फिर पुनर्जीवित होने के बाद उनका क्‍या हुआ? आजकल वे कहां हैं ? क्‍योंकि उनकी मृत्‍यु का तो कोई उल्‍लेख है ही नहीं !
सच्‍चाई यह है कि वे कभी पुनर्जीवित नहीं हुए। वास्‍तव में वे सूली पर कभी मरे ही नहीं थे। क्‍योंकि यहूदियों की सूली आदमी को मारने की सर्वाधिक बेहूदी तरकीब है। उसमें आदमी को मरने में करीब-करीब 48 घंटे लग जाते हैं। चूंकि हाथों में और पैरों में कीलें ठोंक दी जाती हैं तो बूंद-बूंद करके उनसे खून टपकता रहता है। यदि आदमी स्‍वस्‍थ है तो 60 घंटे से भी ज्‍यादा लोग जीवित रहे, ऐसे उल्‍लेख हैं। औसत 48 घंटे तो लग ही जाते हैं। और जीसस को तो सिर्फ छह घंटे बाद ही सूली से उतार दिया गया था। यहूदी सूली पर कोई भी छह घंटे में कभी नहीं मरा है, कोई मर ही नहीं सकता है।
यह एक मिलीभगत थी, जीसस के शिष्‍यों की पोंटियस पॉयलट के साथ। पोंटियस यहूदी नहीं था, वो रोमन वायसराय था। जूडिया उन दिनों रोमन साम्राज्‍य के अधीन था। निर्दोष जीसस की हत्‍या में रोमन वायसराय पोंटियस को कोई रुचि नहीं थी। पोंटियस के दस्‍तखत के बगैर यह हत्‍या नहीं हो सकती थी।पोंटियस को अपराध भाव अनुभव हो रहा था कि वह इस भद्दे और क्रूर नाटक में भाग ले रहा है। चूंकि पूरी यहूदी भीड़ पीछे पड़ी थी कि जीसस को सूली लगनी चाहिए। जीसस वहां एक मुद्दा बन चुका था। पोंटियस पॉयलट दुविधा में था। यदि वह जीसस को छोड़ देता है तो वह पूरी जूडिया को, जो कि यहूदी है, अपना दुश्‍मन बना लेता है। यह कूटनीतिक नहीं होगा। और यदि वह जीसस को सूली दे देता है तो उसे सारे देश का समर्थन तो मिल जाएगा, मगर उसके स्‍वयं के अंत:करण में एक घाव छूट जाएगा कि राजनैतिक परिस्थिति के कारण एक निरपराध व्‍यक्ति की हत्‍या की गई, जिसने कुछ भी गलत नहीं किया था।
तो पोंटियस ने जीसस के शिष्‍यों के साथ मिलकर यह व्‍यवस्‍था की कि शुक्रवार को जितनी संभव हो सके उतनी देर से सूली दी जाए। चूंकि सूर्यास्‍त होते ही शुक्रवार की शाम को यहूदी सब प्रकार का कामधाम बंद कर देते हैं, फिर शनिवार को कुछ भी काम नहीं होता, वह उनका पवित्र दिन है। यद्यपि सूली दी जानी थी शुक्रवार की सुबह, पर उसे स्‍थगित किया जाता रहा। ब्‍यूरोक्रेसी तो किसी भी कार्य में देर लगा सकती है। अत: जीसस को दोपहर के बाद सूली पर चढ़ाया गया और सूर्यास्‍त के पहले ही उन्‍हें जीवित उतार लिया गया। यद्यपि वे बेहोश थे, क्‍योंकि शरीर से रक्‍तस्राव हुआ था और कमजोरी आ गई थी। पवित्र दिन यानि शनिवार के बाद रविवार को यहूदी उन्‍हें पुन: सूली पर चढ़ाने वाले थे। जीसस के देह को जिस गुफा में रखा गया था, वहां का चौकीदार रोमन था न कि यहूदी। इसलिए यह संभव हो सका कि जीसस के शिष्‍यगण उन्‍हें बाहर आसानी से निकाल लाए और फिर जूडिया से बाहर ले गए।
जीसस ने भारत में आना क्‍यों पसंद किया? क्‍योंकि युवावास्‍था में भी वे वर्षों तक भारत में रह चुके थे। उन्‍होंने अध्‍यात्‍म और ब्रह्म का परम स्‍वाद इतनी निकटता से चखा था कि वहीं दोबारा लौटना चाहा। तो जैसे ही वह स्‍वस्‍थ हुए, भारत आए और फिर 112 साल की उम्र तक जिए। कश्‍मीर में अभी भी उनकी कब्र है। उस पर जो लिखा है, वह हिब्रू भाषा में है। स्‍मरण रहे, भारत में कोई यहूदी नहीं रहते हैं। उस शिलालेख पर खुदा है, जोशुआ- यह हिब्रू भाषा में ईसामसीह का नाम है। जीसस जोशुआ का ग्रीक रुपांतरण है। जोशुआ यहां आए- समय, तारीख वगैरह सब दी है। एक महान सदगुरू, जो स्‍वयं को भेड़ों का गड़रिया पुकारते थे, अपने शिष्‍यों के साथ शांतिपूर्वक 112 साल की दीर्घायु तक यहांरहे। इसी वजह से वह स्‍थान भेड़ों के चरवाहे का गांव कहलाने लगा। तुम वहां जा सकते हो, वह शहर अभी भी है-पहलगाम, उसका काश्‍मीरी में वही अर्थ है- गड़रिए का गांव
जीसस यहां रहना चाहते थे ताकि और अधिक आत्मिक विकास कर सकें। एक छोटे से शिष्‍य समूह के साथ वे रहना चाहते थे ताकि वे सभी शांति में, मौन में डूबकर आध्‍यात्मिक प्रगति कर सकें। और उन्‍होंने मरना भी यहीं चाहा, क्‍योंकि यदि तुम जीने की कला जानते हो तो यहां (भारत में)जीवन एक सौंदर्य है और यदि तुम मरने की कला जानते हो तो यहां (भारत में)मरना भी अत्‍यंत अर्थपूर्ण है। केवल भारत में ही मृत्‍यु की कला खोजी गई है, ठीक वैसे ही जैसे जीने की कला खोजी गई है। वस्‍तुत: तो वे एक ही प्रक्रिया के दो अंग हैं।
यहूदियों के पैगंबर मूसा ने भी भारत में ही देह त्‍यागी थी | इससे भी अधिक आश्‍चर्यजनक तथ्‍य यह है कि मूसा (मोजिज) ने भी भारत में ही आकर देह त्‍यागी थी! उनकी और जीसस की समाधियां एक ही स्‍थान में बनी हैं। शायद जीसस ने ही महान सदगुरू मूसा के बगल वाला स्‍थान स्‍वयं के लिए चुना होगा। पर मूसा ने क्‍यों कश्‍मीर में आकर मृत्‍यु में प्रवेश किया?
मूसा ईश्‍वर के देश इजराइल की खोज में यहूदियों को इजिप्‍त के बाहर ले गए थे। उन्‍हें 40 वर्ष लगे, जब इजराइल पहुंचकर उन्‍होंने घोषणा की कि, यही वह जमीन है, परमात्‍मा की जमीन, जिसका वादा किया गया था। और मैं अब वृद्ध हो गया हूं और अवकाश लेना चाहता हूं। हे नई पीढ़ी वालों, अब तुम सम्‍हालो!
मूसा ने जब इजिप्‍त से यात्रा प्रारंभ की थी तब ककी पीढ़ी लगभग समाप्‍त हो चुकी थी। बूढ़े मरते गए, जवान बूढ़े हो गए और नए बच्‍चे पैदा होते रहे। जिस मूल समूह ने मूसा के साथ यात्रा की शुरुआत की थी, वह बचा ही नहीं था। मूसा करीब-करीब एक अजनबी की भांति अनुभव कर रहे थेा उन्‍होंने युवा लोगों शासन और व्‍यवस्‍था का कार्यभारा सौंपा और इजराइल से विदा हो लिए। यह अजीब बात है कि यहूदी धर्मशास्‍त्रों में भी, उनकी मृत्‍यु के संबंध में , उनका क्‍या हुआ इस बारे में कोई उल्‍लेख नहीं है। हमारे यहां (कश्‍मीर में ) उनकी कब्र है। उस समाधि पर भी जो शिलालेख है, वह हिब्रू भाषा में ही है। और पिछले चार हजार सालों से एक यहूदी परिवार पीढ़ी-दर-पीढ़ी उन दोनों समाधियों की देखभाल कर रहा है।
मूसा भारत क्‍यों आना चाहते थे ? केवल मृत्‍यु के लिए ? हां, कई रहस्‍यों में से एक रहस्‍य यह भी है कि यदि तुम्‍हारी मृत्‍यु एक बुद्धक्षेत्र में हो सके, जहां केवल मानवीय ही नहीं, वरन भगवत्‍ता की ऊर्जा तरंगें हों, तो तुम्‍हारी मृत्‍यु भी एक उत्‍सव और निर्वाण बन जाती है।
सदियों से सारी दुनिया के साधक इस धरती पर आते रहे हैं। यह देश दरिद्र है, उसके पास भेंट देने को कुछ भी नहीं, पर जो संवेदनशील हैं, उनके लिए इससे अधिक समृद्ध कौम इस पृथ्‍वी पर कहीं नहीं हैं। लेकिन वह समृद्धि आंतरिक है।

मजार पर जाना हिन्दुओ की सबसे बड़ी बेवकूफी====मूर्खता का प्रमाण विश्व में कही देखने को मिल सकता है

कब्र और मजार पर जाना हिन्दुओ की सबसे बड़ी बेवकूफी:
मित्रो आज गली गली हम मजारो ,कब्रों को देखते हैं …
अक्सर मेने देखा है कुछ धर्म निरपेक्ष सेक्युलर जात के लोग अपने मंदिरो में जाने में शर्म महसूस होती है और पीर फकीरो कि मज़ारो पर ऐसे माथा टेकते है जैसे कि वही उनका असली बाप है क्या…. … ?
अरे मुर्ख हिन्दुओ जिन मज़ारो और मय्यतों पर जा कर तुम लोग कुत्तो कि तरह दुम हिलाते हो उसके बारे जान तो लो आखिर वो है
अब में उन हिन्दुओ से पूछता हु जो कुत्ते कि तरह वहाँ मन्नत मांगने पहुच जाते है
दुनिया जानती है कि हिंदुस्तान हिन्दुओ का स्थान रहा है जहा मुल्लो ने आक्रमण किया और हमारे पूर्वज उन मलेक्षों से लड़ते लड़ते शहीद हो गये जब युद्द हुआ तो उसमे हमारे पूर्वजो ने मलेक्षों को भी अल्लाह को प्यारा कर दिया अब देखो आज कि पीड़ी इन हिन्दुओ कि मूर्खता जो अपने वीर पूर्वजो को पूजने कि वजह अपने दुसमन कि कब्र पर जा कर मन्नत मांग रहे है . हमारे उन वीर पूर्वजो का अपमान नहीं हैं जिन्होंने अपने धर्म की रक्षा करते हुए ख़ुशी-ख़ुशी अपने प्राणों को बलि वेदी पर समर्पित कर दियें थे………?
क्या इससे बड़ा मूर्खता का प्रमाण विश्व में कही देखने को मिल सकता है
……..?
अधिकतर हिन्दू अजमेर में जो मुल्ले कि कब्र बनी है उसके बारे में नही जानते होंगे कुछ मुर्ख लोग उससे संत बोलते है
परन्तु मित्रोँ, ऐतिहासिक तथ्योँ के अनुसार देश के अधिकांश तथाकथित सूफी सन्त इस्लाम के जोशीले प्रचारक थे।
हिन्दुओँ के धर्मान्तरण एवं उनके उपासना स्थलोँ को नष्ट करनेँ मेँ उन्होनेँ जोर शोर से भाग लिया था। अगर हम अजमेर के बहुचर्चित ‘सूफी’ ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती कि बात करे तो ‘सिरत अल् कुतुब’ के अनुसार उसने सात लाख हिन्दुओँ को मुसलमान बनाया था। ‘मजलिस सूफिया’ नामक ग्रन्थ के अनुसार जब वह मक्का मेँ हज करने के लिए गया था,तो उसे यह निर्देश दिया गया था कि वह हिन्दुस्तान जाये और वहाँ पर कुफ्र के अन्धकार को
दूर करके इस्लाम का प्रचार करे।
‘मराकत इसरार’ नामक एक ग्रन्थ के अनुसार उसने तीसरी शादी एक हिन्दू लड़की का जबरन् धर्मान्तरण करके की थी। यह बेबस महिता एक राजा की पुत्री थी,जो कि युद्ध मेँ चिश्ती मियाँ के हाथ लगी थी। उसने इसका नाम उम्मत अल्लाह रखा, जिससे एक पुत्री बीबी हाफिज जमाल पैदा हुई. जिसका मजार इसकी दरगाह मेँ मौजूद है।
‘तारीख-ए-औलिया’ के अनुसार ख्वाजा ने अजमेर के तत्कालीन शासक पृथ्वीराज को उनके गुरू अजीतपाल जोगी के माध्यम से मुसलमान बनने की दावत दी थी, जिसे उन्होनेँ ठुकरा दिया था।
इस पर ख्वाजा ने तैश मेँ आकर मुस्लिम शासक मुहम्मद गोरी को भारत पर हमला करने के लिए उकसाया था।
हमारे प्रश्न- मित्रो, मैँ पूछना चाहता हूँ कि यदि चिश्ती वास्तव मेँ सन्त था और सभी धर्मो को एक समान मानता था, तो उसे सात लाख हिन्दुओँ को मुसलमान बनाने की क्या जरूरत थी?
क्या यह मानवता है कि युद्ध मेँ पराजित एक किशोरी का बलात् धर्मान्तरण कर निकाह किया जाये?
यदि वह सर्व धर्म की एकता मेँ विश्वास रखता था, तो फिर उसने मोहम्मद गोरी को भारत पर हमला करने और हिन्दू मन्दिरोँ को ध्वस्त करने लिए क्योँ प्रेरित किया था…..?
क्या हिन्दुओ के ब्रह्मा, विष्णु .. महेश समेत ३३ करोड़ देवी देवता शक्तिहीन हो चुकें हैं ….जो उन्हें मुसलमानों की कब्रों पर सर पटकने के लिए जाना आवश्यक हैं………??? ?
जब गीता में भगवान् श्री कृष्ण ने खुले रूप में कहा है कि… कर्म करने से ही सफलता प्राप्त होती हैं तो मजारों में दुआ मांगने से क्या””गधे का अंडा””हासिल होगा………?? ????
क्या आज तक किसी मुस्लिम देश में वीर शिवाजी, महाराणा प्रताप, हरी सिंह नलवा आदि वीरो स्मृति में कोई स्मारक आदि बनाकर उन्हें पूजा जाता हैं …….जो हमारे ही देश पर आक्रमण करने वालो की कब्र पर हम हिन्दू शीश झुकाते हैं………??? ??
हिन्दू जाति कौन सी ऐसी अध्यात्मिक प्रगति …….. मुसलमानों की कब्रों की पूजा कर प्राप्त कर रहीं हैं ………. जो हमारे वेदों- उपनिषदों में नहीं कही गई हैं…?
कब्र पूजा को हिन्दू-मुस्लिम एकता की मिसाल और सेकुलरता की निशानी बताने वाले लोग………… अमरनाथ…. तिरुपति … या महाकालेश्वर मंदिर में मुस्लिमों को पूजा कर हिन्दू-मुस्लिम एकता की मिसाल कायम करने को क्यों नहीं बोलते हैं….???????
जो मन्नत के फेर में किसी को भी पूजते है उनके लिए भगवान् कृष्ण कहते है, ” जो पुरुष शास्त्र विधि को त्याग कर अपनी इच्छा से मनमाना आचरण करता है, वह न सिद्धि को प्राप्त होता है, न परमगति को और न सुख को ही ”
आपको शर्म आनी चाहिए आप अपने पुर्वजो का अपमान करते हो जिन्होंने हमारे पूर्वजों को मारा काटा उनकी कब्र पर आप मन्नत मांगते हो इससे बड़ी शर्म की बात क्या होगी कुछ तो शर्म करो मजार और दरगाह पर जाने वालो …
आशा हैं कि…… मुस्लिमों के कब्र को अपना अराध्य मान कर पूजा करने वाले बुद्धिजीवी प्राणी….. मुझे उपरोक्त प्रश्नों का उत्तर दे कर मेरे ज्ञान में भी प्रकाश संचारित करेंगे…! अगर…… आपको भी लगता है कि…. उपरोक्त प्रश्न उचित हैं और सेकुलरों को पकड़-पकड़ कर इन प्रश्नों के उत्तर पूछे जाने चाहिए ……. अगर आप आर्य राजा राम और कृष्ण की संतान तथा गौरवशाली हिन्दू धर्म का हिस्सा हैं तो तत्काल इस मुर्खता पूर्ण अंधविश्वास को छोड़ दे और अन्य हिन्दुओ को भी इस बारे में बता कर उनका अंध विश्वास दूर करें …!

Survival of Sanatana Dharma


Survival of Sanatana Dharma
Much of the Hindu Dharma civilization was either destroyed or converted from approximately the First Century on, by Christian and Moslem zealots, who were out to gain wealth and power in the name of religion. Rulers all over the world have repeatedly obliterated world history with a view to subjugating the masses, since knowledge is power. In this context, thousands of manuscripts have been burned, millions of people tortured, thousands of buildings and cities converted into modern religious sites, with their artifacts buried in the dusts of time. Some famous expungings include:
240 BC: The Chinese Emperor Dic Huyang destroyed all of the books on history and science he had access to;
146 BC: The Romans burnt the Library in Carthage which contained 500,000 manuscripts. It burned for 17 days;
? BC: Library at the Temple of Ptah, the Divine Lord in Memphis was burned destroying many palm-leaf manuscripts;
In Asia Minor the library at Peragmus was burnt containing 200,000 texts;
48 BC: Julius Ceaser burned the famous library in Alexandria, Egypt which contained 700,000 manuscripts;
6 BC: Pisistratus in Athens was burnt; only Homer’s epics were salvaged;
The Bibractis Druid College’s Library in Autun, France was destroyed by Roman troops;
Emperor Tsin-She Hwangeti of China had thousands of ancient manuscripts burned;
Leo Isarus burned down a library of 300,000 volumes in Istanbul;
296 AD: Dioclisian burned a large number of Aegyptian and Greek manuscripts;
312 AD (approximately): The first neo-convert Roman Christian Emperor Constantine swooped down on the Vatican
(then Vedican) destroying a number of Vedic manuscripts. It is believed that he also slew the Vedic pontiff and installed a Christian in his place.
1555 AD: A European Christian ruler, Franciso Telod, in Peru destroyed all the records and manuscripts throwing light on the ancient civilization of the Americas in his access.
1600 AD: Bishop Diago de Landa destroyed most of the ancient literature and sacred books of Mexico(2)
1860-1940 AD: British rule in India effectively destroyed the public educational system and robbed thousands of valuable manuscripts, destroying the rest. Even with all of this, there are numerous facts which still point to the glory of the Vedic Age.
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  • Faris Eddo Indian subcontinent has a history which dates back to more than 5000 years back. Its origins lie on the banks of the The Ajanta and Ellora Cavesriver Indus and thus came to be known as the Indus Valley Civilization. The roots of numerous ideas and philosophies can still be traced back to India.
    Soon after the Indus Valley Civilization laid down the foundation of India and Indian history, the Dravidians came in as the inhabitants of this civilization which was called the Harappan culture and flourished for 1000 years. Gradually, Aryan tribes started infiltrating from Afghanistan and Central Asia, around 1500 B.C. They occupied the whole of the northern parts of India up to the Vindhya Hills. Thus the Dravidians were urged to move to the southern parts of India. The Aryans brought new ideas, new technology and new gods with them and this became an important era in the history of India. The Aryan tribe started expanding and was grouped into sixteen kingdoms, of which Kosala and Magadha were the most powerful ones in the 5th century B.C.
    Around 500 BC, Invasion by Persians followed by Maurya Dynasty:
    The next great invasion was around 500 BC by the Persian kings Cyrus and Darius. They conquered the Indus valley but then India went through times of speculation and indefiniteness. Then in 327 BC India again came into light due to the invasions of Alexander the great, from Macedonia. Although, he was not able to extend his powers into India.
    After the Greek power receded there was a phase of uncertainty and that was when Indian history’s first imperial dynasty, the Maurya Dynasty came into power. Founded by Chandragupta Maurya, this dynasty reached its height under King Ashoka. He has given many historical monuments and inscriptions. But after his death there came no other kings as powerful as him and so there was chaos again fragmenting India into smaller kingdom.
    1000 AD, Decline of Chandragupta & rise in Muslim Invasions:
    The Indian warriorsIt was during this time that Chandragupta II became the unifying force in northern India. India is said to have enjoyed its golden period during this time – under the Gupta dynasty. Though not as big as the Mauryan Empire, it saw huge developments in the field of art and architecture, the highlight being the Ajanta and Ellora caves. There was confusion again after the Gupta Dynasty and many regional powers rose until the Muslim invasions in 1000 AD.
    Indian History, in the meantime, also saw the rise of some powerful kingdoms like the Satavahanas, kalingas and Vakatakas in the southern part of India. Later the dynasties like Cholas, Pandyas, Cheras, Chalukyas and Pallavas came into prominence.
    The political instability gave opportunity to the Muslim invaders who raided the North India successfully under Mahmud of Ghazni. The next invasion was by Mahmud of Ghauri who established foreign rule in India. Many of the famous dynasties like the Slave Dynasty, Khilji Dynasty, Tughlaq Dynasty, Saiyyid and Lodhi, Bahmani Dynasty, and Others came after that.

  • Maharaj Krishan Nehru thanks –indus valley is nearly 8to 10 thousand years –5000 years before bhagwan Krishna ruled bharata –foriegners have made many distortions in indian history -kashmiris written history starts from nearly 3000 years bc but many a mnuscripts were destroyed by muslim rulers –sikander butshikan is a common name for that–recently a ganesha iodol has been found in Kuwait –we can omagine the extention of Hinduism world over in ancient times

Republic of India/Bhārat Ganarājya – भारत गणराज्य


Names of India
The Republic of India has two principal short names in both official and popular English usage, each of which is historically significant, India and Bharat. The first article of the Constitution of India states that “India, that is Bharat, shall be a union of states,” implicitly codifying India and Bharat as equally official short names for the Republic of India. A third name, Hindustan, is a historical term for the north and northwestern subcontinent (especially during the British India period) that is now widely used as an alternative name for the region comprising most of the modern nations of the subcontinent when Indians speak among themselves. The usage of Bharat, Hindustan or India is dependant on the context and language of conversation.
The name India is derived from Indus, which originates from the Old Persian word Hinduš. The latter term stems from the Sanskrit word Sindhu, which was the historical local appellation for the Indus River. The ancient Greeks referred to the Indians as Indoi (Ινδοί), which translates as “the people of the Indus”.
The geographical term Bharat (pronounced [ˈbʱaːrət̪], which is recognised by the Constitution of India as an official name for the country, is used by many Indian languages in its variations. The eponym of Bharat is Bharata, a theological figure that Hindu scriptures describe as a legendary emperor of ancient India. Hindustan ([ɦɪnd̪ʊˈst̪aːn] was originally a Persian word that meant “Land of the Hindus”; prior to 1947, it referred to a region that encompassed northern India and Pakistan. It is occasionally used to solely denote India in its entirety.
Bhārata, Bhārat(Bhāratavarsha)
The name Bhārata (/bˈhɑːrəθ/) (भारत) has been used as a self-ascribed name by people of the Indian Subcontinent and the Republic of India. Bhārata is the official Sanskrit name of the country, Bhārata Gaṇarājya, and the name is derived from the ancient Indian texts, that which refers to the land that comprises India as Bhārata varṣam, and uses this term to distinguish it from other varṣas or continents. For example, the Vayu Puranas says he who conquers the whole of Bharata-varsa is celebrated as a samrāt (Vayu Purana 45, 86). However in some puranas, the term ‘Bharate’ refers to the whole Earth as Emperor Bharata is said to have ruled the whole Earth. Until the death of Maharaja Parikshit, the last formidable emperor of the Kuru dynasty, the known world was known as Bharata varsha.
According to the most popular theory the name Bhārata is the vrddhi of Bharata, a king mentioned in Rigveda.
The Sanskrit word bhārata is a vrddhi derivation of bharata, which was originally an epithet of Agni. The term is a verbal noun of the Sanskrit root bhr-, “to bear / to carry”, with a literal meaning of “to be maintained” (of fire). The root bhr is cognate with the English verb to bear and Latin ferō. This term also means “one who is engaged in search for knowledge”.
According to the Puranas(Gita), this country is known as Bharatavarsha after the king Bharata Chakravarti. This has been mentioned in Vishnu Purana (2,1,31), Vayu Purana,(33,52), Linga Purana(1,47,23), Brahmanda Purana (14,5,62), Agni Purana ( 107,11–12), Skanda Purana, Khanda (37,57) and Markandaya Purana (50,41) it is clearly stated that this country is known as Bharata Varsha. Vishnu Purāna mentions:
ऋषभो मरुदेव्याश्च ऋषभात भरतो भवेत्
भरताद भारतं वर्षं, भरतात सुमतिस्त्वभूत्
Rishabha was born to Marudevi, Bharata was born to Rishabh,
Bharatavarsha (India) arose from Bharata, and Sumati arose from Bharata
—Vishnu Purana (2,1,31)
ततश्च भारतं वर्षमेतल्लोकेषुगीयते
भरताय यत: पित्रा दत्तं प्रतिष्ठिता वनम (विष्णु पुराण, २,१,३२)
This country is known as Bharatavarsha since the times the father entrusted the kingdom to the son Bharata and he himself went to the forest for ascetic practices [ Rishabha/ Rishabdev is First Trithankar (Teacher) of Jainism. He had two sons Bharat and Bahubali’ ]
—Vishnu Purana (2,1,32)
The realm of Bharata is known as Bharātavarṣa in the Mahabhārata (the core portion of which is itself known as Bhārata) and later texts. The term varsa means a division of the earth, or a continent. A version of the Bhagavata Purana says, the name Bharata is after Jata Bharata who appears in the fifth canto of the Bhagavata.
– Vishnu Purana (2.3.1)
uttaraṃ yatsamudrasya himādreścaiva dakṣiṇam
varṣaṃ tadbhārataṃ nāma bhāratī yatra santatiḥ
उत्तरं यत्समुद्रस्य हिमाद्रेश्चैव दक्षिणम् ।
वर्षं तद् भारतं नाम भारती यत्र संततिः ।।
“The country (varṣam) that lies north of the ocean and south of the snowy mountains is called Bhāratam; there dwell the descendants of Bharata.”
The term in Classical Sanskrit literature is taken to comprise the present day territories of Afghanistan, Pakistan, Republic of India, Nepal and Bangladesh. This corresponds to the approximate extent of the historical Maurya Empire under emperors Chandragupta Maurya and Ashoka the Great (4th to 3rd centuries BC). Later political entities unifying approximately the same region are the Mughal Empire (17th century), the Maratha Empire (18th century), and the British Raj (19th to 20th centuries).
India
The English term is from Greek Ἰνδία (Indía), via Latin India. Indía in Koine Greek denoted the region of the Indus (“Ἰνδός”) river in Pakistan, since Herodotus (5th century BC) ἡ Ἰνδική χώρη, hē Indikē chōrē; “Indian land”, Ἰνδός, Indos, “an Indian”, from Old Persian (referring to what is now known as Sindh, a province of present day Pakistan, and listed as a conquered territory by Darius I in the Persepolis terrace inscription). The name is derived ultimately from Sindhu, the Sanskrit name of the river, but also meaning “river” generically. Latin India is used by Lucian (2nd century).
The name India was known in Old English, and was used in King Alfred’s translation of Orosius. In Middle English, the name was, under French influence, replaced by Ynde or Inde, which entered Early Modern English as Indie. The name India then came back to English usage from the 17th century onwards, and may be due to the influence of Latin, or Spanish or Portuguese.
Sanskrit indu “drop (of Soma)”, also a term for the Moon, is unrelated, but has sometimes been erroneously connected, listed by, among others, Colonel James Todd in his Annals of Rajputana. Todd describes ancient India as under control of tribes claiming descent from the Moon, or “Indu” (referring to Chandravanshi Rajputs).
Hindustan
The name Hind (Persian: هند) is derived from the Iranian equivalent of Sindh. The Persian -stān means “country” or “land” (cognate to Sanskrit sthāna “place, land”).
Modern day North India was included as Hindustān (Persian: هندوستان) in Persian, الهند is the term in the Arabic language (e.g. in the 11th century. It also occurs intermittently in usage within India, such as in the phrase Jai Hind (Hindi: जय हिन्द).
Hindustān, as the term “india” itself, entered the English language in the 17th century. In the 19th century, the term as used in English referred to the northern region of the subcontinent between the Indus and Brahmaputra rivers and between the Himalayas and the Vindhyas in particular, hence the term Hindustani for the Hindi-Urdu language. Hindustan was in use synonymously with India during the British Raj.
Today, Hindustān is no longer in use as the official name for India, although in Modern Standard Arabic as well as dialects it is the only name for India, (al-Hind الهند).
Historically, the term “Hindustan” is usually applied to the Gangetic Plain of North India, between the Himalayas and the Vindhyas and the Indus river basin in Pakistan.
Further, it may pertain to numerous aspects belonging to three geographical areas: the Indus River basin during medieval times, or a region in northern India, east and south of the Yamuna river, between the Vindhya mountains and the Himalayas where Hindustani language is spoken.
In modern Persian, Urdu and Hindi, Hindustan and its abbreviated version Hind usually refer to the current Republic of India. The abbreviated version appears in the common nationalist salutation of India, Jai Hind, coined by Major Abid Hasan Safrani of the Indian National Army as a shortened version of Jai Hindustan Ki (translation: Victory to India). It was popularized by Subhas Chandra Bose, who used it on Azad Hind Radio during the Indian independence movement. It appears in the revered song, Aye Mere Watan Ke Logon. Today, it is widely used as a salutation and a battle cry in the Indian Armed Forces. It is also commonly used to sign off at the end of major speeches.
Most formally, in the proper disciplines of Geography and History, Hindustan refers to the region of the upper and middle Ganges valley; Hindustan by this definition is the region located between (but not including) the distinct lands of Punjab in the northwest and Bengal in the north-east. So used, the term is not a synonym for terms “South Asia”, “India”, “Country of the Hindus” [sic], or of the modern-day Republic of India, variously interpreted.