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Sunday, April 17, 2016

Read what Subhas Chandra Bose say about Congress


Subhas Chandra files are now coming out with many anti India activities started by Jawaharlal Nehru and continued by his daughter and now others. Time to learn these Apostrophes .Read more -here

Friday, February 12, 2016

JNU - a den of ISI , CIA, Marxists, anti india activity center

Binayak Sen was a Professor at the Centre for Social Medicine and Community Health at NU.  On May 14, 2007, Dr Sen, was arrested under the provisions of the Chhattisgarh Special Public Security Act, 2005, (CSPSA) and the Unlawful Activities (Prevention) Act, 1967. The allegations claimed that he had acted as a courier for a Maoist leader Narayan Sanyal lodged in the Raipur Jail and then absconded. 

The charges against him were as follows:
a) Treason
b) Criminal Conspiracy
c) Sedition, anti-national activities and making war against the nation
d) Knowingly using the proceeds of terrorism
e) Links with the Maoists
DIVIDE EVERY WHICH WAY is a method used in the JNU campus.  

The latest example is foreign forces want NE Christian students also to behave like Kashmiri Muslim students . The Commie professors and students have NO fear of Indian law , as they feel that foreign forces will handle everything using their contacts with politicians, police and “collegium” judiciary.

Recently Baba Ramdev was insulted by the JNU Commie students .

Binayak Sen is now the national Vice-President of the People's Union for Civil Liberties (PUCL).  He is a member of the policy group for Police Reforms of Aam Aadmi Party and he has the support of BIG BROTHER who uses his DOUBLE AGENT Noam Chomsky.

The whole of India knows that JNU is known to be a red bastion who cultivates  Communism and lack of attachment to the motherland and Indian culture .  A lot of JNU students are in the campus and hostels for years.  Some of them continue even after double PHD.  The professors with Communist leanings sponsor them and requiRe them to be ANTI-HINDU . The main stream media sponsors these anti-national professors .  These professors live far beyond their month end salaries.  The students say that living is cheap inside the hostels .  The real reason is that they get enormous amount of foreign money MONTHLY from Trojan Horse NGOs and they make more money inside the campus than taking up a job outside – and a lot of USEFUL IDIOTS are hooked on to expensive cocaine and synthetic drugs that they really cant leave ”
For the first year students to get a hostel is an uphill task unless you are on a Communist Students Union recommendation .  Even to get a cheap residence / cheap transport outside the campus , it is easy if you are a Communist Student “

It rang a bell , because I know for sure from another JNU student , that this Commie sponsoring link was broken for a while due to Lyngdoh commission stopping Students Union activities in JNU.


“ Commie male students get enough good quality liquor from Trojan Horse NGOs – the BAR used to be at the  Parthasarathy Hill rock , a water source area etc.   Commie student activists are provided “female services” on weekends outside the campus FREE. The more you distort ancient Indian history , the more you ridicule Hindu culture the better the FREE perks , all from these NGOs.  The professors know that drugs are almost in every Commie students rooms , but they do nothing.  Even girls roll and smoke drugs and have sex with boys. The Maoist-Naxalites students’ wings is AISA (All India Student Associations).  AISA cry is, ‘Naxalbari lal Salam’ (Naxalbari Red Salute) . This cry is often heard even in girl student hostels"




ajitvadakayil

Saturday, October 31, 2015

Congress and its anti india activity


जरूर पढ़े,, भाग ४. , १. अंग्रेज़ी सत्ता के विरुद्ध भारत की स्वतंत्रता के लिए संघर्ष करने वाले विनायक दामोदरसावरकर साधारणतया वीर … के पहले व्यक्ति थे जिन्होंने सन् 1905 के बंग-भंग के बाद सन् 1906 में ‘स्वदेशी’ का नारा दे, विदेशी कपड़ों की होली जलाई ..जब सावरकर ने पूना (महाराष्ट्र) में गुलाम भारत के इतिहास में पहली बार विदेशी कपड़ों की होली जलाई तो, तब गांधी ने कहा , यह देश का नुकसान है, और वतन के साथ गद्दारी है.., सावरकर ने स्वदेशी वस्तुओं को खरीदने का देश वासियों को आव्हान किया …, कई वर्षों बाद में गांधी ने, सावरकर के विचारों कों स्वीकार कर, नेशनल हेराल्ड अखबार के मक्खनबाजी से ये श्रेय (स्वदेशी का नारा) अपने नाम कर गए…
जाने गांधी – नेहरू का देश को तोड़ने का यह खेल
२.गांधी की आड़ में कांग्रेस में एक बड़ा खेल खेला , हिन्दू राज्य को ठुकराकर, जब गांधीजी और नेहरु ने देश का विभाजन मजहब के आधार पर स्वीकार किया, पाकिस्तान मुसलमानों के लिए और शेष बचा हिंदुस्थान हिंदूओ के लिए, तो उन्हें हिंदूओं को तर्कश: :द्विराष्ट्रवाद के सिद्धांत के अनुसार अपना हिन्दूराज्य स्थापित करने के अधिकार से वंचित नहीं करना चाहिए था .यह पंडित नेहरु ही थे जिन्होंने स्वेच्छाचारी तानाशाह के समान अगस्त १९४७ में घोषणा की थी कि जब तक वे देश की सरकार के सूत्रधार है,भारत “हिंदू राज्य” नहीं हो सकेगा. कांग्रेस के सभी हिंदू सदस्य इतने दब्बू थे कि इस स्वेच्छाचारी घोषणा के विरुद्ध एक शब्द भी बोलने की भी उनमें हिम्मत नहीं थी.
३. असांविधानिक धर्मनिरपेक्षतावाद के आड़ में कांग्रेस ने देश को धोखा दिया, जब खंडित हिंदुस्थान को “हिंदू राज्य” घोषित करने के स्थान पर सत्ताधारी छद्म धर्मनिरपेक्षतावादीयों ने धूर्तता के साथ धर्मनिरपेक्षतावाद को ,१९४६ तक अपने संविधान में शामिल किये बिना ही, हिन्दुओं की इच्छा के विरुद्ध राजनीति में गुप्त रूप से समाहित कर दिया.
४,धर्म-निरपेक्षता एक विदेशी धारणा से वाहवाही बटोरने का खेल खेला ,यद्यपि गांधीजी और नेहरु “स्वदेशी के मसीहा” होने की डींगे मारते थे, तथापि उन्होंने विदेशी राजनितिक धारणा ‘धर्म-निरपेक्षता’ का योरप से आयात किया, यद्यपि यह धारणा भारत के वातावरण के अनुकूल नहीं थी.
५. धर्मविहीन धर्मनिरपेक्षता को पाखण्ड बनाया, यदि इंग्लॅण्ड और अमेरिका, ईसाइयत को राजकीय धर्म घोषित करने के बाद भी, विश्व भर में धर्म-निरपेक्ष माने जा सकते है,तो हिंदुस्थान को हिंदुत्व राजकीय धर्म घोषित करने के बाद भी, धर्म-निरपेक्ष क्यों नहीं स्वीकार किया जा सकता? पंडित नेहरु द्वारा थोपा हुआ धर्म-निरपेक्षतावाद धर्म-विहीन और नकारात्मक है.
६. इसी की आड़ में पूर्वी पाकिस्तान (बंगला देश) में हिन्दुओं का नरसंहार बेरहमी से हुआ और १९४७ में,पूर्वी पाकिस्तान में, हिंदुओं की जनसंख्या कुल आबादी का ३० प्रतिशत (बौद्धों सहित) अर्थात डेढ़ करोड़ थी. ५० वर्षो में अर्थात १९४७ से १९९७ तक इस आबादी का दुगना अर्थात ३ करोड़ हो जाना चाहिए था.परन्तु तथ्य यह है कि वे घट कर १ करोड़ २१ लाख अर्थात कुल आबादी का १२ प्रतिशत रह गये है.१९५० में ५० हजार हिंदुओं का नरसंहार किया गया. १९६४ में ६० हजार हिन्दू कत्ल किये गए. १९७१ में ३० लाख हिन्दू, बौद्ध तथा इसाई अप्रत्याशित विनाश-लीला में मौत के घाट उतारे गए. ८० लाख हिंदुओं और बौद्धों को शरणार्थी के रूप में भारत खदेड़ दिया गया. हिंदुस्थान के हिन्दू सत्ताधारियो द्वारा हिंदुओं को इस नरसंहार से बचने का कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया.
७. हमारे देश में कांग्रेस ने हिदू विस्थापितों की उपेक्षा की गई, यदि इज्रायल का ‘ला ऑफ़ रिटर्न’ प्रत्येक यहूदी को इज्रायल में वापिस आने का अधिकार देता है. प्रवेश के बाद उन्हें स्वयमेव ‘नागरिकता’ प्राप्त हो जाती है.परंतु खेद है की हिन्दुस्थान के छद्म-धर्मनिरपेक्ष राजनितिक सत्ताधारी उन हिदुओं को प्रवेश करने पर अविलंब नागरिकता नहीं देते, जो विभाजन के द्वारा पीड़ित हो कर और पाकिस्तान तथा बांग्लादेश में अत्याचार से त्रस्त होकर भारत में शरण लेते है.
८. नेहरु ने लियाकत समझौता का नाटक खेला , जब विभाजन के समय कांग्रेस सरकार ने बार बार आश्वासन दिया था कि वह पाकिस्तान में पीछे रह जाने वाले हिंदुओं के मानव अधिकारों के रक्षा के लिए उचित कदम उठाएगी परन्तु वह अपने इस गंभीर वचनबद्धता को नहीं निभा पाई. तानाशाह नेहरु ने पूर्वी पकिस्तान के हिंदुओं और बौद्धों का भाग्य निर्माण निर्णय अप्रैल ८ १९५० को नेहरु लियाकत समझौते के द्वारा कर दिया उसके अनुसार को बंगाली हिंदू शरणार्थी धर्मांध मुसलमानों के क्रूर अत्याचारों से बचने के लिए भारत में भाग कर आये थे, बलात वापिस पूर्वी पाकिस्तान में बंगाली मुसलमान कसाई हत्यारों के पंजो में सौप दिए गए
.
९. लियाकत अली के तुष्टिकरण के विरोध कने के लिए लिए वीर सावरकर गिरफ्तार कर लिया, जब पाकिस्तान के प्रधानमंत्री लियाकत अली खान को पंडित नेहरु द्वारा दिल्ली आमंत्रित किया गया तो छद्म धर्मनिरपेक्षतावादी कृतघ्न हिन्दुस्थान सरकार ने नेहरु के सिंहासन के तले ,स्वातंत्र वीर सावरकर को ४ अप्रैल १९५० के दिन सुरक्षात्मक नजरबंदी क़ानून के अन्दर गिरफ्तार कर लिया और बेलगाँव जिला कारावास में कैद कर दिया.पंडित नेहरु की जिन्होंने यह कुकृत्य लियाकत अली खान की मक्खनबाजी के लिए किया, लगभग समस्त भारतीय समाचार पत्रो ने इसकी तीव्र निंदा की. लेकिन नेहरू के कांग्रेसी अंध भक्तों ने कोई प्रतिक्रया नहीं की
१० १९७१ के युद्ध के बाद , हिंदू शरणार्थियो को बलपूर्वक बांग्लादेश वापिस भेजा
श्रीमती इंदिरा गाँधी की नेतृत्व वाली हिन्दुस्थान सरकार ने बंगाली हिंदूओं और बौद्ध शर्णार्थियो को बलात अपनी इच्छा के विरुद्ध बांग्लादेश वापिस भेजा.इनलोगो ने इतना भी नहीं सोचा कि वे खूंखार भूखे भेडीयो की मांद में भेडो को भेज रहे है.
११. बंगलादेशी हिंदुओं के लिए अलग मातृदेश की मांग को इंदिरा गांधी ने अपने दुर्गा देवी की छवि को आंच न आये , इसलिए वह भी अपने निहित स्वार्थों की वजह से इसे अनदेखा कर दिया
१२. यह आज तक कांग्रेस का दुग्गला पन रहा है, एक तरफ तो , यदि हिन्दुस्थान की सरकार १० लाख से भी कम फिलिस्थिनियो के लिए संयुक्त राष्ट्रसंघ में एक अलग मातृभूमि का प्रस्ताव रख सकती है तो वह २० लाख बंगाली हिंदुओं और बौद्धों के लिए जो बांग्लादेश के अन्दर और बाहर नारकीय जीवन बिता रहे है उसी प्रकार का प्रस्ताव क्यों नहीं रख सकती.
१३. इसके पहले कि और एक विडबन्ना , जो बांग्लादेश के ‘तीन-बीघा’ समर्पण कर दिया, जब
१९५८ के नेहरु-नून पैक्ट (समझौते) के अनुसार अंगारपोटा और दाहग्राम क्षेत्र का १७ वर्ग मिल क्षेत्रफल जो चारो ओर से भारत से घिरा था ,हिन्दुस्थान को दिया जाने वाला था .हिन्दुस्थान की कांग्रेसी सरकार ने उस समय क्षेत्र की मांग करने के स्थान पर १९५२ में अंगारपोटा तथा दाहग्राम के शासन प्रबंध और नियंत्रण के लिए बांग्लादेश को ३ बीघा क्षेत्र ९९९ वर्ष के पट्टे पर दे दिया.
१४. वोट बैंक के तुष्टीकरण की भी कांग्रेस ने सभी हदें पार कर दी , जब केरल में लघु पाकिस्तान, मुस्लिम लीग की मांग पर केरल की कम्युनिस्ट सरकार ने तीन जिलो, त्रिचूर पालघाट और कालीकट को कांट छांट कर एक नया मुस्लिम बहुल जिला मालापुरम बना दिया .इस प्रकार केरल में एक लघु पाकिस्तान बन गया. केंद्रीय सरकार ने केरल सरकार के विरुद्ध कोई कदम नहीं उठाया.