Friday, September 18, 2015

Sardar patel and Hyderabad annexation , Nizam and Patel


17 सितंबर 1948 को हैदराबाद का निज़ाम के इस्लामिक साशन से भारत मे विलय हुआ था.... सरदार पटेल जी को बहुत बहुत धन्यवाद है .

हैदराबाद के निज़ाम बड़े कंजूस थे...

हैदराबाद के निज़ाम के दौलत के बारे में बहुत-से क़िस्से मशहूर रहे हैं। वह बहुत मज़हबी और आलिम मुसलमान थे। वह और मुसलिम शासक वर्ग के कुछ लोग मिलाकर सन् 1947 से पूर्व भारत की सबसे विस्तृत और सबसे बड़ी आबादी वाली रियासत हैदराबाद पर शासन करते थे। उनकी रियासत उस उप-महाद्वीप के बीच में थी और उसमें 2 करोड़ हिन्दू और 30 लाख मुसलमान रहते थे। वह बहुत दुबले-पतले, छोटे-से क़द के बूढ़े आदमी थे। मुश्किल से सवा पाँच फीट का क़द रहा होगा और वज़न सिर्फ 90 पौंड। निज़ाम हिन्दुस्तान के एकमात्र शासक थे जिन्हें ‘एक्ज़ाल्टेड हाइनेस’ का खिताब था; उन्हें यह सम्मान इसलिए दिया गया था कि उन्होंने पहले महायुद्ध के समय अँग्रेजों के युद्धकोष में ढाई करोड़ पौंड की रक़म दी थी।

1947 में निज़ाम दुनिया के सबसे अमीर आदमी माने जाते थे। उनकी दौलत के क़िस्से से ज्यादा मशहूर उनकी कंजूसी के किस्से थे जिसके सहारे वह इतनी दौलत बटोर पाये थे। वह बहुत ही मैला सूती पाजामा पहनते थे और उनके पैरों में बहुत ही घटिया क़िस्म की सलीपरें होती थीं, जो वह बाजार से कुछ रुपयों में ही मँगा लेते थे। पैंतीस साल से वह वही एक फफूँदी लगी हुई तुर्की टोपी पहनते आये थे। हालाँकि उनके पास सौ आदमियों को एक साथ खाना खिलाने भर के लिए काफी सोने के बर्तन थे, लेकिन वह अपने सोने के कमरे में चटाई पर बैठकर टीन की प्लेट में खाना खाते थे। वह इतने कंजूस थे कि उनके मेहमान सिगरेट पीकर जो बुझे हुए टुर्रे छोड़ जाते थे उन्हें वह फिर से सुलगा कर पी लेते थे। एक बार किसी खास मौक़े पर उन्हें शाही दस्तरख़ान पर शैम्पेन रखने पर मजबूर होना पड़ा। उन्होंने बेदिली से एक बोतल मेज पर रखवायी, लेकिन इस बात कड़ी नज़र रखी कि वह पास बैठे हुए तीन-चार मेहमानों से आगे न जाने पाये। 1944 में जब लॉर्ड वेवेल वाइसराय की हैसियत से हैदराबाद आने वाले थे तो निज़ाम ने ख़ास तौर दिल्ली तार भिजवाकर पुछवाया कि लड़ाई के जमाने की ऊँची क़ीमतों को देखते हुए क्या वाइसराय साहब का सचमुच यह आग्रह होगा कि शैम्पेन पिलायी जाये। हफ़्ते में एक बार, इतवार को गिरजाघर से लौटते हुए अँग्रेज रेज़िडेंट उनके यहाँ आता था। हमेशा बड़ी पाबंदी से एक नौकर निज़ाम और उनके मेहमान के लिए ट्रे में एक प्याली चाय, एक बिस्कुट और एक सिगरेट रखकर लाता था। एक इतवार रेज़िडेंट साहब पहले से कोई सूचना दिये बिना किसी बहुत ही ख़ास मेहमान को अपने साथ लेकर आ गये। निज़ाम ने चुपके से नौकर के कान में कुछ कहा और वह दूसरे मेहमान के लिए भी एक ट्रे लेकर आया। उसमें भी वही एक प्याली चाय, एक बिस्कुट और एक सिगरेट रखी थी।

ज़्यादातर रियासतों में यह दस्तूर था कि साल में एक बार बड़-बड़े अमीर-उमरा और जागीदार अपने राजा को एक अशरफ़ी का नज़राना पेश करते थे; राजा अशरफी को छूकर ज्यों-का-त्यों वापस कर देता था। लेकिन हैदराबाद में नज़राने को इस तरह वापस कर देने का कोई दस्तूर नहीं था। निज़ाम हर अशरफी को झपटकर उठा लेते थे और अपने तख्त के पास रखे हुए कागज के एक थैले में डालते जाते थे। एक बार एक अशरफ़ी गिर पड़ी। निज़ाम फ़ौरन कुहनियों और घुटनों के बल रेंगते हुए इस लुढकती हुई अशरफ़ी को पकड़ने के लिए लपके।

निज़ाम का सोने का कमरा किसी गन्दी बस्ती की झोपड़ी की कोठरी मालूम होता था। उसमें टूटा-सा पलंग, एक टूटी-सी मेज और तीन टीन की कुर्सियों के अलावा कोई फ़र्नीचर नहीं था। हर ऐश-ट्रे जली हुई सिगरेटों के टुकड़ों और राख से ऊपर तक भरी रहती थी; यही हाल रद्दी कागज की टोकरियों का था जिन्हें साल में सिर्फ एक बार उनकी सालगिरह के दिन साफ़ किया जाता था। उनके दफ़्तर में धूल से अटे हुए सरकारी काग़ज़ों के ढेर लगे रहते थे और छत पर ढेरों मकड़ी के जाले।

फिर भी उस महल के अँधेरे कोनों में इतनी दौलत छुपी हुई थी कि कोई हिसाब नहीं। निज़ाम की मेज की एक दराज में एक पुराने अख़बार में लिपटा हुआ मशहूर जेकब हीरा रखा रहता था, जो नींबू के बराबर था, पूरे 280 कैरेट का जगमगाता हुआ अनमोल हीरा। निज़ाम उसे पेपरवेट की तरह इस्तेमाल करते थे। उनके बाग़ में जहां चारों ओर झाड़-झँखाड़ उगा रहता था दर्जनों ट्रकें ऊपर तक लदी हुई सोने की ठोस ईटों के बोझ की वजह से पहियों की धुरी तक कीचड़ से धँसी हुई खड़ी रहती थी। निज़ाम के हीरे-जवाहरात तहख़ानों के फ़र्श पर कोयले के टुकड़ों की तरह बिखरे पड़े रहते थे; नीलम, पुखराज, लाल हीरे के मिले-जुले ढेर जगह-जगह लगे रहते थे। कहा जाता था कि उनमें अकेले मोती ही इतने थे कि लन्दन के पिकैडिली सर्कस के सारे फ़ुटपाथ उनसे ढक जाते। उनके पास बीस लाख पौंड से ज्यादा नकद रकम रही होगी- पौंड और रुपयों में-जिसके उन्होंने पुराने अख़बारों में लपेटकर तहख़ानों और दुछत्तियों के धूल से अटे हुए कोनों में ढेर लगा रखे थे। वहाँ पड़े-पड़े निज़ाम की इस दौलत पर ब्याज तो क्या मिलता, उलटे उनमें से हर साल कई हज़ार पौंड के नोट चूहे कुतर जाते थे।

1947 के बाद तो निज़ाम भारत छोड़कर भाग गया, लेकिन उसके धन का क्या हुआ- शायद भारत सरकार को मालूम होगा???
Sanjay Dwivedi

Small story of Mahabharat

भगवान श्री कृष्ण ने कहा हैं :- "धर्मयुद्ध में कोई निरपक्ष नहीं रह सकता " |


महाभारत के युद्ध के समय जब पांडवो और कौरवो दोनों द्वारिका में मदद मांगने गए तो बलराम जी ने किसी की तरफ से भी लड़ने से मना कर दिया और तीर्थ यात्रा पर निकल गए |

और वो जब आये तो महाभारत का अंतिम भाग चल रहा था |
जब उनके देखते देखते भीम ने दुर्योधन की जंघा तोड़ डाली तो बलराम जी भीम का वध करने पर अड़ गए |

तब भगवन श्री कृष्ण ने उन्हें रोकते हुए कहा
"रुक जाओ दाऊ , पहले मेरी बात सुनो फिर जो चाहे वोह करो " |
बलराम जी बोले " अब बोलने को रह क्या गया हैं किशन ??

और में येह भी जानता हूँ की अब इसके बचाव में तुम कुछ भी नहीं कह सकते |
भगवान बोले " यदि बोलने को कुछ ना होता तो बीच में आता ही क्यूँ ??
में यह नहीं कहता की मझले भैया भीम ने किसी मर्यादा का उलंघन नहीं किया हैं
अवश्य किया हैं |
परन्तु हे दाऊ आपने कभी दुर्योधन को तो नहीं रोका |

क्या मर्यादा भी पक्षपात करती हैं दाऊ की यदि दुर्योधन कोई मर्यादा का
उलंघन करेतो वोह ठीक और यदि भीम भैया से कोई मर्यादा का उलंघन हो जाए
तो उनके लिए मृत्युदंड ??

येह तो कोई नहीं न्याय नहीं हैं दाऊ | टूटना ही था इस जंघा को क्यूंकि मंझले
भैया प्रतिज्ञा बद्ध थे , यदि आप उनके स्थान पर रहे होते तो आप क्या करते
दाऊ ?? हे दाऊये ना भूलिए जब येह सब आपके पास सहायता मांगने आये थे
तब आप तीर्थ यात्रापर निकल गए थे दाऊ तीर्थ यात्रा पर ...........

" जब धर्म और अधर्म के बीच युद्ध होने जा रहा हो दाऊ...
तब केवल एक ही तीर्थ स्थान रह जाता हैं ---रणभूमि "

जिस युद्ध से आप भाग गए थे दाऊ उसके अंतिम क्षणो में आकर उस पर अपना प्रभाव डालने कायत्न ना कीजिये |

वैसे आप दाऊ हैं यदि आप फिर भी भीम का वध करना ही चाहते हैं तो
लीजिये में हट जाता हूँ बीच से | बलराम जी लज्जित हो कर वहां से चले गए|
तो फिर बंधुओं अब आप लोग किसकी तरफ से लड़ना चाहेंगे इस धर्मयुद्ध में इसका फैसला आज और अभी कर लो....

अब कृपया ये मत पूछ लेना कोन सा युद्ध......!!!
आप सब समझदार है.....

 Sanjay Dwivedi

Truth of Caba, islam, mecca-Shivlinga in Mecca

मक्‍का मे विराजित प्रसिद्ध मक्‍केश्‍वर महादेव शिवलिंग
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सम्‍पूर्ण विश्‍व क्‍या भारत के लोग ही यह कटु सत्‍य स्‍वीकार नही कर सकते कि इस्लाम ने हिन्दू की आस्‍था माने जाने वाले असंख्‍य मंदिर तोड़े है और उनके स्‍थान पर उसी मंदिर के अवशेष से मस्जितों को निर्माण करवाया। 

इस्‍लामिक विध्‍वंशक गतिविधियां इतनी प्रंचडता के साथ की जाती थी कि तक्षशिला विश्वविद्यालय और सोमनाथ मंदिर विध्‍वंश किये गये। इस्लाम नीव इस आधार पर रखी गई कि दूसरों के धर्म का अनादर करों और उनको नेस्‍तानाबूत और पवित्र स्थलों को खंडित कर वहाँ मस्जित और मकबरे का निर्माण किया किया जाए। इस काम बाधा डालने वाले जो लोग भी सामने आये उन लोगो को मौत के घाट उतार दिया जाये। भले ही वे लोग मुस्लिमो को परेशान न करते हो। मुहम्‍मद साहब और मुसलमानों के हमले से मक्‍का और मदीना के आस पास का पूरा इतिहास बदल दिया गया। इस्लाम एक तलवार पे बना धर्म था है और रहेगा और इसका अंत भी उस से ही होगा।

मुसलमाने के पैगम्‍बर मुहम्‍मद एक ऐसे विध्‍वंसक गिरोह का नेतृत्‍व करते थे जो धन और वासना के पुजारी थे। मुहम्‍मद ने मदीना से मक्का के शांतिप्रिय मुर्तिपूजकों पर हमला किया और जबरजस्‍त नरसंंहार किया। मक्‍का का म‍दीना के अपना अगल अस्तितव था किन्‍तु मुहम्‍मद साहब के हमले के बाद मक्‍का मदीना को एक साथ जोड़कर देखा जाने लगा। जबकि मक्‍का के लोग जो कि शिव के उपासक माने जाते है।

मुहम्‍मद की टोली ने मक्‍का में स्‍थापित कर वहां पे स्थापित की हुई 360 में से 359 मूर्तियाँ नष्ट कर दी और सिर्फ काला पत्थर सुरक्षित रखा जिसको आज भी मुस्‍लिमों द्वारा पूजा जाता है। उसके अलावा अल-उज्जा, अल-लात और मनात नाम की तीन देवियों के मंदिरों को नष्ट करने का आदेश भी महम्मद ने दिया और आज उन मंदिरों का नामो निशान नहीं है (हिशम इब्न अल-कलबी, 25-26)। इतिहास में यह किसी हिन्दू मंदिर पर सबसे पहला इस्लामिक आतंकवादी हमला था।उस काले पत्थर की तरफ आज भी मुस्लिम श्रद्धालु अपना शीश जुकाते है। किसी हिंदू पूजा के दौरान बिना सिला हुआ वस्त्र या धोती पहनते हैं, उसी तरह हज के दौरान भी बिना सिला हुआ सफेद सूती कपड़ा ही पहना जाता है।

मक्का मदीना का सच
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मुसलमानों के सबसे बड़े तीर्थ मक्का मक्केश्वर महादेव का मंदिर था। वहां काले पत्थर का विशाल शिवलिंग था जो खंडित अवस्था में अब भी वहां है। हज के समय संगे अस्वद (संग अर्थात पत्थर, अस्वद अर्थात अश्वेत यानी काला) कहकर मुसलमान उसे ही पूजते और चूमते हैं। इस सम्‍बन्‍ध में प्रख्‍यात प्रसिद्ध इतिहासकार स्व0 पी.एन.ओक ने अपनी पुस्तक ‘वैदिक विश्व राष्ट्र का इतिहास’ में समझाया है कि मक्का और उस इलाके में इस्लाम के आने से पहले से मूर्ति पूजा होती थी। हिंदू देवी-देवताओं के मंदिर थे, गहन रिसर्च के बाद उन्होंने यह भी दावा किया कि काबा में भगवान शिव का ज्योतिर्लिंग है।

पैगंबर मोहम्मद ने हमला कर मक्का की मूर्तियां तोड़ी थीं। यूनान और भारत में बहुतायत में मूर्ति पूजा की जाती रही है, पूर्व में इन दोनों ही देशों की सभ्यताओं का दूरस्थ इलाकों पर प्रभाव था। ऐसे में दोनों ही इलाकों के कुछ विद्वान काबा में मूर्ति पूजा होने का तर्क देते हैं। हज करने वाले लोग काबा के पूर्वी कोने पर जड़े हुए एक काले पत्थर के दर्शन को पवित्र मानते हैं जो कि हिन्‍दूओं का पवित्र शिवलिंग है। वास्‍तव में इस्लाम से पहले मिडिल-ईस्ट में पीगन जनजाति रहती थी और वह हिंदू रीति-रिवाज को ही मानती थी।

एक प्रसिद्ध मान्‍यता के अनुसर है कि काबा में “पवित्र गंगा” है। जिसका निर्माण वेज्ञानिक रावण ने किया था, रावड़ शिव भक्त था वह शिव के साथ गंगा और चन्द्रमा के महात्‍म को समझता था और यह जानता था कि कि क‍भी शिव को गंगा से अलग नही किया जा सकता। जहाँ भी शिव होंगे, पवित्र गंगा की अवधारणा निश्चित ही मौजूद होती है। काबा के पास भी एक पवित्र झरना पाया जाता है, इसका पानी भी पवित्र माना जाता है। इस्लामिक काल से पहले भी इसे पवित्र (आबे ज़म-ज़म) ही माना जाता था।

रावण की तपस्‍या से प्रसन्‍न होकर भगवान शिव ने रावड़ को एक शिवलिंग प्रदान किया जिसें लंका में स्‍थापित करने का कहा और बाद जब रावड़ आकाश मार्ग से लंका की ओर जाता है पर रास्ते में कुछ ऐसे हालत बनते हैं की रावण को शिवलिंग धरती पर रखना पड़ता है। वह दुबारा शिवलिंग को उठाने की कोशिश करता है पर खूब प्रयत्न करने पर भी लिंग उस स्थान से हिलता नहीं। वेंकटेश पण्डित के अनुसर यह स्थान वर्तमान में सऊदी अरब के मक्का नामक स्थान पर स्थित है।

सऊदी अरब के पास ही यमन नामक राज्य भी है जहाँ श्री कृष्ण ने कालयवन नामक राक्षस का विनाश किया था। जिसका जिक्र श्रीमदभगवत पुराण में भी आता है।

पहले राजा भोज ने मक्का में जाकर वहां स्थित प्रसिद्ध शिव लिंग मक्केश्वर महादेव का पूजन किया था, इसका वर्णन भविष्य-पुराण में निम्न प्रकार है :-
"नृपश्चैवमहादेवं मरुस्थल निवासिनं !
गंगाजलैश्च संस्नाप्य पंचगव्य समन्विते :
चंद्नादीभीराम्भ्यचर्य तुष्टाव मनसा हरम !
इतिश्रुत्वा स्वयं देव: शब्दमाह नृपाय तं!
गन्तव्यम भोज राजेन महाकालेश्वर स्थले !!

बाबर नरसंहारक,babar was terrorist

बाबर नरसंहारक, लुटेरा,बलात्कारी,शराबी और नशेड़ी था.भारत का युद्ध अपराधी है.
प्रमाण इस दरिन्दे की लिखी जीवनी बाबरनामा सेदिए जा रहे हैं. इसके और अधिक कारनामे जानने के लिए पूरी पुस्तक पढ़ लें.
पृष्ठ २३२- वह लिखता है कि उसकी सेना ने निरपराध अफगानों के सिर काट लिए जो उसके साथ शान्ति की बात करने आ रहे थे. इन कटे हुए सिरों से इसने मीनार बनवाई. ऐसा ही कुछ इसने हंगू में किया जहाँ २००अफगानियों के सिर काट कर खम्बे बनाए गए.
पृष्ठ ३७०- क्योंकि बाजौड़ में रहने वाले लोग दीन(इस्लाम) को नहीं मानते थे इसलिए वहां ३०००लोगों का क़त्ल कर दिया गया और उनके बीवी बच्चों को गुलाम बना लिया गया.
पृष्ठ ३७१- गुलामों में से कुछों के सिर काटकर काबुल और बल्ख भेजे गए ताकि फतह की सूचना दी जा सके.
पृष्ठ ३७१- कटे हुए सिरों के खम्बे बनाए गए ताकि जीत का जश्न मनाया जा सके.
पृष्ठ ३७१- मुहर्रम की एक रात को जश्न मनाने के लिए शराब की एक महफ़िल जमाई गयी जिसमें हमने पूरी रात पी. (पूरे बाबरनामा में जगह जगहऐसी शराब की महफ़िलों का वर्णन है.ध्यान रहे कि शराब इस्लाम में हराम है.)
पृष्ठ ३७३- बाबर ने एक बार ऐसा नशा किया कि नमाज पढने भी न जा सका. आगे लिखता हैकि यदि ऐसा नशा वह आज करता तो उसे पहले से आधा नशा भी नहीं होता.
पृष्ठ ३७४- बाबर ने अपने हरम की बहुत सी महिलाओं से बहुत से बच्चे उत्पन्न किये.उसकी पहली बेगम ने उससे वादा किया कि वह उसके हर बच्चे को अपनाएगी चाहे वे किसी भी बेगम से हुए हों,ऐसा इसलिए क्योंकि उसके पैदा किये कुछ बच्चे चल बसे थे. यह तो जाहिर ही है कि इसके हरम बनाम मुर्गीखाने में इसकी हवस मिटाने के लिएकुछ हजार औरतें तो होंगी ही जैसे कि इसके पोते स्वनामधन्य अकबर के हरम में पांच हजार औरतें थीं जो इसकी ३६(छत्तीस) पत्नियों से अलग थीं. यह बात अलग है कि इसका हरम अधिक तर समय सूना ही रहता होगा क्योंकि इसको स्त्रियों से अधिक पुरुष और बच्चे पसंद थे ! और बाबरी नाम के बच्चे में तो इसके प्राण ही बसे थे.
पृष्ठ ३८५-३८८- अपने बेटे हुमायूं के पैदा होने पर बाबर बहुत खुश हुआ था, इतना कि इसका जश्न मनाने के लिए अपने दोस्तों के साथ नाव में गया जहां पूरी रात इसने शराब पी और नशीली चीजें खाकर अलग से नशा किया. फिर जब नशा इनके सिरों में चढ़ गया तो आपस में लड़ाई हुई और महफ़िल बिखर गयी.इसी तरह एक और शराब की महफ़िल में इसने बहुत उल्टी की और सुबह तक सब कुछ भूल गया.
पृष्ठ ५२७- एक और महफ़िल एक मीनारों और गुम्बद वाली इमारत में हुई थी जो आगरा में है. (ध्यान रहे यह इमारत ताजमहल ही है जिसे अधिकाँश सेकुलर इतिहासकार शाहजहाँ की बनायी बताते हैं, क्योंकि आगरा में इस प्रकार की कोई और इमारत न पहले थी और न आज है! शाहजहाँ से चार पीढी पहले जिस महल में उसके दादा ने गुलछर्रे उड़ाए थे उसे वह खुद कैसे बनवा सकता है?)
बाबरनामा का लगभग हर एक पन्ना इस दरिन्दे के कातिल होने, लुटेरा होने, और दुराचारी होने का सबूत है.यहाँ यह याद रखना चाहिए कि जिस तरह बाबर यह सब लिखता है, उससे यह पता चलता है कि उसे इन सब बातों का गर्व है, इस बात का पता उन्हें चल जाएगा जो इसके बाबरनामा को पढेंगे. आश्चर्य इस बात का है कि जिन बातों पर इसे गर्व था यदि वे ही इतनी भयानक हैं तो जो आदतें इसकी कमजोरी रही होंगी, जिन्हें इसने लिखा ही नहीं, वे कैसी क़यामत ढहाने वाली होंगी?सारांश
१.यदि एक आदमी समलैंगिक होकर भी मुसलमान हो सकता है, बच्चों के साथ दुराचार करके भी मुसलमान हो सकता है, चार से ज्यादा शादियाँ करके भी मुसलमान हो सकता है, शराब पीकर नमाज न पढ़कर भी मुसलमान हो सकता है, चरस, गांजा,अफीम खाकर भी मुसलमान हो सकता है, हजारों लोगों के सिर काटकर उनसे मीनार बनाकर भी मुसलमान हो सकता है, लूट और बलात्कार करके भी मुसलमान हो सकता है तो फिर वह कौन है जो मुसलमान नहीं हो सकता? क्या इस्लाम इस सब की इजाजत देता है? यदि नहीं तो आज तक किसी मौलवी मुल्ला ने इस विषय पर एक शब्द भी क्यों नहीं कहा?
२. केवल यही नहीं, जो यह सब करके अपने या अपने पुरुष आशिक के नाम की मस्जिद बनवा दे, ऐसी जगह को मस्जिद कहना हराम नहीं है क्या? क्या किसी बलात्कारी सम लैंगिक शराबी व्यभिचारी के पुरुष आशिक के नाम की मस्जिद में अता की गयी नमाज अल्लाह को क़ुबूल होगी? यदि हाँ तो अल्लाह ने इन सबको हराम क्यों बताया? यदि नहीं तो अधिकतर मुसलमान और मौलवी इस जगह को मस्जिद कहकर दंगा फसाद क्यों कर रहे हैं? क्या इसका टूटना इस्लाम पर लगे कलंक को मिटाने जैसा नहीं था? क्या यह काम खुद मुसलमानों को नहीं करना चाहिए था?
३. जब इस दरिन्दे बाबर ने खुद क़ुबूल किया है कि इसने हजारों के सिर कटवाए और कुफ्र को मिटाया तो फिर आजकल के जाकिर नाइक जैसे आतंकी मुल्ला यह क्यों कहते हैं कि इस्लाम तलवार के बल पर भारत में नहीं फैला? जब खुद अकबर (जिसको इतिहासकारों द्वारा हिन्दुओं का रक्षक कहा गया है और जान ए हिन्दुस्तान नाम से पुकारा गया है) जैसा नेकदिल (?) भी हजारों हिन्दुओं के सिरों को काटकर उनके खम्बे बनाने में प्रसिद्ध था तो फिर यह कैसे माना जाए कि इस्लामतलवार से नहीं फैला? क्या ये लक्षण शान्ति से धर्म फैलाने के हैं? फिर इस्लाम का मतलब ‘शान्ति’ कैसे हुआ?
४.भारत,पाकिस्तान, अफगानिस्तान, बंगलादेश में रहने वाले सब मुसलमानों के पूर्वज हिन्दू ही थे, जो हजारों सालों से यहाँ रहते आ रहे थे. जब बाबर जैसे और इससे भी अधिक दरिंदों ने आकर यहाँ मारकाट बलात्कार और तबाही मचाई,सिरों को काटकर मीनारें लहरायीं तो दहशत के इस वातावरण में बहुत से हिन्दुओं ने अपना धर्म बदल लिया और उन्हीं लाचार पूर्वजों की संतानें आज मुसलमान होकर अपने असली धर्म के खिलाफ आग उगल रही हैं.
जिन मुसलमानों के बाबरी मस्जिद(?) विध्ध्वंस पर आंसू नहीं थम रहे, जो बार बार यही कसम खा रहे हैं कि बाबरी मस्जिद ही बनेगी, जो बाबर को अपना पूर्वज मान बैठे हैं, ज़रा एक बार खुद से सवाल तो करें- क्या मेरे पूर्वज अरब, तुर्क या मंगोल से आये थे? क्या मेरे पूर्वज इस भारत भूमि की पैदावार नहीं थे? कटे हुए सिरों की मीनारें देखकर भय से धर्म परिवर्तन करने वाले पूर्वजों के वंशज आज कौन हैं, कहाँ हैं, क्या कभी सोचा है? क्या यह विचार कभी मन में नहीं आता कि इतने कत्लेआम और बलात्कार होने पर विवश माता पिताओं के वे लाल आज कहाँ हैं कि जिन्हें अपना धर्म, माता, पिता सब खोने पड़े? क्या भारत, पाकिस्तान, अफगानिस्तान, बंगलादेश में रहने वाले ७०-८० करोड़ मुसलमान सीधे अरबों, तुर्कों के वंशज हैं? कभी यह नहीं सोचा कि इतने मुसलमान तो अरब, तुर्क, ईरान, ईराक में मिला कर भी नहीं हैं जो इस्लाम के फैलाने में कारण बने? क्या तुम्हारे पूर्वज राम को नहीं मानते थे? क्या बलपूर्वक अत्याचार के कारण तुम्हारे पूर्वजों का धर्म बदलने से तुम्हारा पूर्वज राम की बजाय बाबर हो जाएगा? अगर नहीं तो आज अपने असली पूर्वज राम को गाली और अपने पूर्वजों के कातिल और बलात्कारी बाबर का गुणगान क्यों?
५.अयोध्या की तरह काशी, मथुरा और हजारों ऐसी ही जगहें जिन्हें मस्जिद कह कर इस्लाम का मजाक उड़ाया जाता है, जो बाबर की तरह ही इसके पूर्वजों और वंशजों की हवस की निशानियाँ हैं, इनको मुसलमान खुद क्यों मस्जिद मानने से इनकार नहीं करते?
६.यदि बाबरी ढांचा टूटना गलत था तो राम मंदिर टूटना गलत क्यों नहीं था? यदि राम मंदिर की बात पुरानी हो गयी है तो ढांचा टूटने की बात भी तो कोई नयी नहीं! तो फिर उस पर हायतौबा क्यों?
अंत में हम कहेंगे कि जिस तरह भारत में रहने वाले हिन्दू मुसलमानों के पूर्वजों पर अत्याचार और बलात्कार करने वाले वहशी दरिन्दे बाबर के नाम का ढांचा आज नहीं है उसी तरह बाकी सब ढांचे जो तथाकथित इस्लामी राज्य के दौरान मंदिरों को तोड़कर बनवाये गए थे, जो सब हिन्दू मुसलमानों के पूर्वजों के अपमान के प्रतीक हैं, उनको अविलम्ब मिट्टी में मिला दिया जाए और इसकी पहल हमारे खून के भाई मुसलमान ही करें जिनके साथ हमारा हजारों लाखों सालों का रक्त सम्बन्ध है. इस देश में रहने वाले किसी आदमी की, चाहे वह हिन्दू हो या मुसलमान, धमनियों में दरिन्दे जानवर बाबर या अकबर का खून नहीं किन्तु राम, कृष्ण, महाराणा प्रताप और शिवाजी का खून है. और इस एक खून की शपथ लेकर सबको यह प्रण करना है कि अब हमारे पूर्वजों पर लगा कोई कलंक भी देश में नहीं रह पायेगा. क्या दृश्य होगा कि हिन्दू और मुसलमान एक साथ अपने एक पूर्वजों पर लगे कलंकों को गिराएंगे और उस जगह अपने पूर्वजों की यादगार के साथ साथ उनके असली धर्म वेद की पाठशाला बनायेंगे जहां राम और कृष्ण जैसे धर्मयोद्धा तैयार होंगे कि फिर कोई बाबर आकर इस भूमि के पुत्रों को उनके माता पिता, दोस्तों और धर्म से अलग न कर सके! और तब तक के लिए, आओ हम सब हिन्दू और मुस्लिम भाई मिलकर हर साल पूरे उत्साह के साथ ६ दिसंबर के पावन पर्व को ‘शौर्य दिवस’ और ‘गौरव दिवस’ के रूप में मनाएं. हाँ, मथुरा और वाराणसी में ऐसे ही वहशी दरिन्दे ‘औरंगजेब’ के बनाये ढांचें – जो इस्लाम के पावन नाम पर बदतर कलंक है - उनको मिटाने का सौभाग्य हमारे मुस्लिम भाइयों को ही मिले.

Sunday, September 13, 2015

जागो हिन्दुस्तानी Beware of Vatican conversion-Worse than Islam.

💥प्रश्न - साधू-संतो के पास करोड़ो की संपत्ति है । साधू-संतो को इतनी संपत्ति की क्या जरुरत है? साधू को तो अपरिग्रही होना चाहिए ?

​​💥उत्तर : रोमन केथोलिक चर्च का एक छोटा राज्य है जिसे वेटिकन बोलते है । अपने धर्म के प्रचार के लिए वे हर साल​ 171,600,000,000
डॉलर खर्च करते है । तो उनके पास कुल कितनी संपत्ति होगी?

💥वेटिकन के किसी भी व्यक्ति को पता नहीं है कि उनके कितने व्यापार चलते है ।
💥रोम शहर में 33% इलेक्टोनिक, प्लास्टिक, एर लाइन, केमिकल और इंजीनियरिंग बिजनेस वेटिकन के हाथ में है ।
💥दुनिया में सबसे बड़े shares​ वेटिकन के पास है ।
💥इटालियन बैंकिंग में उनकी बड़ी संपत्ति है और अमेरिका एवं स्विस बेंको में उनकी बड़ी भारी deposits है ।
💥ज्यादा जानकारी के लिए पुस्तक पढाना जिसका नाम है VATICAN EMPIRE

💥उनकी संपत्ति के आगे आपके भारत के साधुओं के करोड रुपये कोई मायना नहीं रखते ।

💥वे लोग खर्च करते है विश्व में धर्मान्तरण करके लोगों को अपनी संस्कृति, और धर्म से भ्रष्ट करने में 🚩और भारत के संत खर्च करते है लोगों को शान्ति देने में, उनकी स्वास्थ्य सेवाओं में, आदिवासियों और गरीबों की सेवा में, प्राकृतिक आपदा के समय पीडितों की सेवा में और अन्य लोकसेवा के कार्यों में ।

💥http://goo.gl/Pc1fhn
✨- डॉ.प्रेमजी
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💻- https://youtu.be/uH40OaPPoSE
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मुस्लिम सिख ईसाई आपस मे सब भाई भाई--इससे बड़ी मूर्खता क्या होगी ?, Muslim terrorism started by Mohammed.

"हिंदू मुस्लिम सिख ईसाई आपस मे सब भाई भाई" नारा किसने दिया था ? यह नारा ही हिंदू और सिख मे फूट कराने वाला है क्योंकि हिंदू परिवार का बड़ा बेटा ही धर्म की रक्षा के लिए सिख बनता था | कृपया इस पर गंभीरता से सोच कर अपने विचार प्रकट करे |

ये तो समझ आता है के हिंदू, मुस्लिम, ईसाई पर सिखों को तुमने कहाँ से अलग बना दिया ? सिखों को हमारी गलती ने अलग बनाया मित्रों | सिख वह सिख जिस धर्म को गुरु गोविन्द सिंह जी ने शुरू किया उन्होंने कहा था "सकल विश्व में खालसा पंथ गाजे, जगे धर्म हिंदू सकल भंड भाजे" गुरु गोविन्द सिंह ने राम कि वंदना की है, गुरु गोविन्द सिंह ने चंडी चरित्र लिखा है, काली की उपासना की है, रामायण गुरुमुखी में लिखी |

आज गुरु ग्रन्थ साहिब उठाकर पढ़ो, पन्ने पन्ने पर राम अंकित है | उस पंथ को किसने अलग बना दिया | भूल गए वो इतिहास पंजाब में नारे गूजे है "मुस्लिम सिख भाई-भाई, हिंदू कौम कहाँ से आई" | तब हमारे दिमाग के अंदर ये बात क्यों नहीं आई की किसने गुरु तेग बहादुर की गर्दन कटवाई ? दिल्ली का शीशगंज गुरुद्वारा वहाँ हम जाते है शीश झुकाते है, उसका नाम शीशगंज क्यों है ? क्योंकि वहाँ बैठकर गुरु तेग बहादुर कि गर्दन कटी | जब औरंगजेब ने कहा था तुम इस्लाम स्वीकार करोगे तो तुम्हे छोड़ दिया जायेगा | लेकिन गुरु तेग बहादुर ने शीश दिया पर धर्म न त्यागा |

याद करे इतिहास अंगददेव तवे पर भून दिए गए, हमारे गुरु आरो से चीर दिए गए | आज मतिदास चौक बना हुआ है, आज लोग झगड रहे है मतिदास सिख था या हिंदू | अरे कोई भी था हिंदू था, गुरु का शिष्य था | वो गुरु जी राम की वंदना करते थे | उस मतिदास को आरे से चीर दिया गया | हमारा रक्तरंजित इतिहास है |

गुरुपुत्र जिन्हें सरहिंद में औरंगजेब ने खड़ा किया और कहा मुस्लिम धर्म स्वीकार करो | लेकिन नन्हे नन्हे उन बच्चो ने कहा हमे गुरु ग्रन्थ प्यारा है, हमे राम प्यारे है, हमे कृष्ण प्यारे है, यह भारत भूमि प्यारी है, हमे अपना हिंदू धर्म प्यारा है, वो बालक दीवारों में चुन दिए गए |

उन सिखों को आज इन नारों ने अलग बना दिया | अंग्रेजो में लार्ड मैकाले हुआ था, जिसने षड़यंत्र के तहत सिख धर्म स्वीकार किया और गलत तरीके से सिखों का इतिहास लिखा और बना दिया सिख हिंदू तो अलग अलग है | मुस्लिम सिख भाई भाई तो बताओ गुरु तेग बहादुर की गर्दन किसने कटवाई | गुरु पुत्रो के लिए दिवार किसने चिन्वायी | फिर भी नारा लगते है तो इससे बड़ी मूर्खता क्या होगी ?

Thursday, September 10, 2015

आचार्य चाणक्य...कौटिल्य

आचार्य चाणक्य...कौटिल्य..

माना जाता है कि चाणक्य ने ईसा से 370 वर्ष पूर्व ऋषि चणक के पुत्र के रूप में जन्म लिया था। वही उनके आरंभिक काल के गुरु थे। कुछ इतिहासकार मानते हैं कि चणक केवल उनके गुरु थे। चणक के ही शिष्य होने के नाते उनका नाम 'चाणक्य' पड़ा। उस समय का कोई प्रामाणिक इतिहास उपलब्ध नहीं है। इतिहासकारों ने प्राप्त सूचनाओं के आधार पर अपनी-अपनी धारणाएं बनाई। परंतु यह सर्वसम्मत है कि चाणक्य की आरंभिक शिक्षा गुरु चणक द्वारा ही दी गई। संस्कृत ज्ञान तथा वेद-पुराण आदि धार्मिक ग्रंथों का अध्ययन चाणक्य ने उन्हीं के निर्देशन में किया। चाणक्य मेधावी छात्र थे। गुरु उनकी शिक्षा ग्रहण करने की तीव्र क्षमता से अत्यंत प्रसन्न थे। तत्कालीन समय में सभी सूचनाएं व विधाएं धर्मग्रंथों के माध्यम से ही प्राप्त होती थीं। अत: धार्मिक पुस्तकों का अध्ययन शिक्षा प्राप्त का एकमात्र साधन था। चाणक्य ने किशोरावस्था में ही उन ग्रंथों का सारा ज्ञान ग्रहण कर लिया था।]

इन्होंने 'अर्थशास्त्र' नामक एक ग्रन्थ की रचना की, जो तत्कालीन राजनीति, अर्थनीति, इतिहास, आचरण शास्त्र, धर्म आदि पर भली भाँति प्रकाश डालता है। 'अर्थशास्त्र' मौर्य काल के समाज का दर्पण है, जिसमें समाज के स्वरूप को सर्वागं देखा जा सकता है। अर्थशास्त्र से धार्मिक जीवन पर भी काफ़ी प्रकाश पड़ता है। उस समय बहुत से देवताओं तथा देवियों की पूजा होती थी। न केवल बड़े देवता-देवी अपितु यक्ष, गन्धर्व, पर्वत, नदी, वृक्ष, अग्नि, पक्षी, सर्प, गाय आदि की भी पूजा होती थी। महामारी, पशुरोग, भूत, अग्नि, बाढ़, सूखा, अकाल आदि से बचने के लिए भी बहुत से धार्मिक कृत्य किये जाते थे। अनेक उत्सव, जादू टोने आदि का भी प्रचार था।

अर्थशास्त्र राजनीति का उत्कृट ग्रन्थ है, जिसने परवर्ती राजधर्म को प्रभावित किया। चाणक्य ने अर्थशास्त्र में वार्ता (अर्थशास्त्र) तथा दण्डनीति (राज्यशासन) के साथ आन्वीक्षिकी (तर्कशास्त्र) तथा त्रयी (वैदिक ग्रन्थों) पर भी काफ़ी बल दिया है। अर्थशास्त्र के अनुसार यह राज्य का धर्म है कि वह देखे कि प्रजा वर्णाश्रम धर्म का 'उचित पालन करती है कि नहीं।

: कौटिल्य ने ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्यों के लिए ब्रह्मचर्य, गृहस्थ, वानप्रस्थ तथा सन्न्यास आश्रमों का विधान किया है। किन्तु जब तक किसी व्यक्ति के ऊपर घरेलू दायित्व है, तब तक उसे वानप्रस्थ या सन्न्यास आश्रम में नहीं जाना चाहिए, ऐसा उनका मत है। इसी प्रकार जो स्त्रियां सन्तान पैदा कर सकती हैं, उन्हें सन्न्यास ग्रहण करने का उपदेश देना कौटिल्य की दृष्टि में अनुचित है। इससे स्पष्ट है कि कौटिल्य ने गृहस्थ आश्रम सुदृढ़ करने का अथक परिश्रम किया है।

चाणक्य (अनुमानतः ईसापूर्व ३७५ - ईसापूर्व २२५) चन्द्रगुप्त मौर्य के महामंत्री थे। वे 'कौटिल्य' नाम से भी विख्यात हैं। उन्होने नंदवंश का नाश करके चन्द्रगुप्त मौर्य को राजा बनाया। उनके द्वारा रचित अर्थशास्त्र राजनीति, अर्थनीति, कृषि, समाजनीति आदि का महान ग्रंन्थ है। अर्थशास्त्र मौर्यकालीन भारतीय समाज का दर्पण माना जाता है।

मुद्राराक्षस के अनुसार इनका असली नाम 'विष्णुगुप्त' था। विष्णुपुराण, भागवत आदि पुराणों तथा कथासरित्सागर आदि संस्कृत ग्रंथों में तो चाणक्य का नाम आया ही है, बौद्ध ग्रंथो में भी इसकी कथा बराबर मिलती है। बुद्धघोष की बनाई हुई विनयपिटक की टीका तथा महानाम स्थविर रचित महावंश की टीका में चाणक्य का वृत्तांत दिया हुआ है। चाणक्य तक्षशिला (एक नगर जो रावलापिंडी के पास था) के निवासी थे। इनके जीवन की घटनाओं का विशेष संबंध मौर्य चंद्रगुप्त की राज्यप्राप्ति से है। ये उस समय के एक प्रसिद्ध विद्वान थे, इसमें कोई संदेह नहीं। कहते हैं कि चाणक्य राजसी ठाट-बाट से दूर एक छोटी सी कुटिया में रहते थे।

लौकिक मामलों में राजा की शक्ति को सर्वोपरि मानता है, परन्तु कर्त्तव्यों के मामलों में वह स्वयं धर्म में बँधा है। वह धर्म का व्याख्याता नहीं, बल्कि रक्षक है। कौटिल्य ने राज्य को अपने आप में साध्य मानते हुए सामाजिक जीवन में उसे सर्वोच्च स्थान दिया है। राज्य का हित सर्वोपरि है जिसके लिए कई बार वह नैतिकता के सिद्धांतो को भी परे रख देता है।

कौटिल्य के अनुसार राज्य का उद्देश्य केवल शान्ति-व्यवस्था तथा सुरक्षा स्थापित करना नहीं, वरन् व्यक्ति के सर्वोच्च विकास में योगदान देना है।
यथार्थवादी होने के नाते कौटिल्य ने राज्य के व्यवहारिक पक्ष पर अधिक ध्यान केन्द्रित किया है। कौटिल्य का राज्य यद्यपि सर्वाधिकारी है, किन्तु वह जनहित के प्रति उदासीन नहीं है।
Meenu Ahuja