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Friday, December 23, 2016

Hindus are forcely converted to muslims and Govertment do not protect? Human rights organization?

In Pakistan, Hindus are forcibly converted, young girls are raped, kept , without interference by government and human rights and all news channel are silent.

A Pakistani girl is snatched away, payment for a family debt

In this photo taken on Thursday, Dec. 1, 2016, Pakistani Hindu Jeevti sits in her husband's house in Pyaro Lundh, Pakistan. The night Jeevti disappeared, her family slept outside to escape Pakistan's brutal summer heat; in the morning she was gone, snatched by a wealthy landlord to whom her parents owed $1,000 dollars. She is one of the estimated 1,000 Christian and Hindu girls taken from their homes every year in Pakistan for supposed repayments of debt, most of them ending up married off to older men and forcibly converted to Islam. (AP Photo/B.K. Bangash)
It's a familiar story here in southern Pakistan: Small loans balloon into impossible debts, bills multiply, payments are never deducted.
In this world, women like Ameri and her young daughter are treated as property: taken as payment for a debt, to settle disputes, or as revenge if a landowner wants to punish his worker. Sometimes parents, burdened by an unforgiving debt, even offer their daughters as payment.
The women are like trophies to the men. They choose the prettiest and the young and pliable. Sometimes they take them as second wives to look after their homes. Sometimes they use them as prostitutes to earn money. Sometimes they take them simply because they can.
And like everything else in her life, as a Hindu in a Muslim country, as a woman who is among the poorest of the poor, she knows she will be powerless to stop it from happening.
"I went to the police and to the court. But no one is listening to us," Ameri says. She says the land manager made her daughter convert to Islam and took the girl as his second wife. "They told us, 'Your daughter has committed to Islam and you can't get her back.'"
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Ameri works as a day laborer cutting sugar cane and feed for animals in Pakistan's southern Sindh province, a region dominated by powerful landowners whose holdings stretch for hundreds of acres.
Like Ameri, they're often indebted to the owner of the land on which they work, kept as virtual slaves until they pay back their debt, which almost never happens.
More than 2 million Pakistanis live as "modern slaves," according to the 2016 Global Slavery Index, which ranks Pakistan in the top three offending countries that still enslave people, some as farm workers, others at brick kilns or as household staff. Sometimes the workers are beaten or chained to keep them from fleeing.
"They have no rights, and their women and girls are the most vulnerable," says Ghulam Hayder whose Green Rural Development Organization works to free Pakistan's bonded laborers.
Employers sexually assault the women and girls, marry them, force them to convert, and rarely will the police intervene, he says. He recalls a case in which a husband accused a landowner of sexually assaulting his wife. The landowner held him for three days, beat him and released him with a warning to tell no one.
An estimated 1,000 young Christian and Hindu girls, most of them underage and impoverished, are taken from their homes each year, converted to Islam and married, said a report by the South Asia Partnership organization.
"They always take the pretty ones," Hayder says.
"So many girls, immature girls below the age of 18 years, mostly have been kidnapped," says Ramesh Kumar Vankwani of the Pakistan Hindu Council.
He says families are routinely threatened, and without police protection, they abandon their daughters.
Ameri, the mother, says she has been threatened by both the police and the man who took her daughter. She has gone to five different courts to get her daughter back, and failed each time. But she hasn't given up hope.
This is how muslim converted non muslims  and take advantage of being illiterate by thumb impression so court can be silent.



Friday, October 2, 2015

भारतीय मुसल्मानों के हिन्दु पूर्वज मुसलमान कैसे बने?



भारतीय मुसल्मानों के हिन्दु पूर्वज मुसलमान कैसे बने?

इस तथ्य को सभी स्वीकार करते हैं कि लगभग 99 प्रतिशत भारतीय मुसलमानों के पूर्वज हिन्दू थे। वह स्वधर्म को छोड़ कर कैसे मुसलमान हो गये?अधिकांश हिन्दू मानते हैं कि उनको तलवार की नोक पर मुसलमान बनाया गया अर्थात्‌ वे स्वेच्छा से मुसलमान नहीं बने। मुसलमान इसका प्रतिवाद करते हैं। उनका कहना है कि इस्लाम का तो अर्थ ही शांति का धर्म है। बलात धर्म परिवर्तन की अनुमति नहीं है। यदि किसी ने ऐसा किया अथवा करता है तो यह इस्लाम की आत्मा के विरुद्ध निंदनीय कृत्य है। अधिकांश हिन्दू मुसलमान इस कारण बने कि उन्हें अपने दम घुटाऊ धर्म की तुलना में समानता का सन्देश देने वाला इस्लाम उत्तम लगा।

इस लेख में हम इस्लमिक आक्रान्ताओं के अत्याचारों को सप्रमाण देकर यह सिद्ध करेंगे की भारतीय मुसलमानों के पूर्वज हिन्दू थे एवं उनके पूर्वजों पर इस्लामिक आक्रान्ताओं ने अनेक अत्याचार कर उन्हें जबरन धर्म परिवर्तन के लिए विवश किया था। अनेक मुसलमान भाइयों का यह कहना हैं कि भारतीय इतिहास मूलत: अंग्रेजों द्वारा रचित हैं। इसलिए निष्पक्ष नहीं है। यह असत्य है। क्यूंकि अधिकांश मुस्लिम इतिहासकार आक्रमणकारियों अथवा सुल्तानों के वेतन भोगी थे। उन्होंने अपने आका की अच्छाइयों को बढ़ा-चढ़ाकर लिखना एवं बुराइयों को छुपाकर उन्होंने अपनी स्वामी भक्ति का भरपूर परिचय दिया हैं। तथापि इस शंका के निवारण के लिए हम अधिकाधिक मुस्लिम इतिहासकारों के आधार पर रचित अंग्रेज लेखक ईलियट एंड डाउसन द्वारा संगृहीत एवं प्रामाणिक समझी जाने वाली पुस्तकों का इस लेख में प्रयोग करेंगे।

भारत पर 7वीं शताब्दी में मुहम्मद बिन क़ासिम से लेकर 18वीं शताब्दी में अहमद शाह अब्दाली तक करीब 1200 वर्षों में अनेक आक्रमणकारियों ने हिन्दुओं पर अनगिनत अत्याचार किये। धार्मिक, राजनैतिक एवं सामाजिक रूप से असंगठित होते हुए भी हिन्दू समाज ने मतान्ध अत्याचारियों का भरपूर प्रतिकार किया। सिंध के राजा दाहिर और उनके बलिदानी परिवार से लेकर वीर मराठा पानीपत के मैदान तक अब्दाली से टकराते रहे। आक्रमणकारियों का मार्ग कभी भी निष्कंटक नहीं रहा अन्यथा सम्पूर्ण भारत कभी का दारुल इस्लाम (इस्लामिक भूमि) बन गया होता। आरम्भ के आक्रमणकारी यहाँ आते, मारकाट -लूटपाट करते और वापिस चले जाते। बाद की शताब्दियों में उन्होंने न केवल भारत को अपना घर बना लिया अपितु राजसत्ता भी ग्रहण कर ली। इस लेख में हम कुछ आक्रमणकारियों जैसे मौहम्मद बिन कासिम,महमूद गजनवी, मौहम्मद गौरी और तैमूर के अत्याचारों की चर्चा करेंगे।



मौहम्मद बिन कासिम

भारत पर आक्रमण कर सिंध प्रान्त में अधिकार प्रथम बार मुहम्मद बिन कासिम को मिला था।उसके अत्याचारों से सिंध की धरती लहूलुहान हो उठी थी। कासिम से उसके अत्याचारों का बदला राजा दाहिर की दोनों पुत्रियों ने कूटनीति से लिया था।

1. प्रारंभिक विजय के पश्चात कासिम ने ईराक के गवर्नर हज्जाज को अपने पत्र में लिखा-'दाहिर का भतीजा, उसके योद्धा और मुख्य मुख्य अधिकारी कत्ल कर दिये गये हैं। हिन्दुओं को इस्लाम में दीक्षित कर लिया गया है, अन्यथा कत्ल कर दिया गया है। मूर्ति-मंदिरों के स्थान पर मस्जिदें खड़ी कर दी गई हैं। अजान दी जाती है। [i]

2. वहीँ मुस्लिम इतिहासकार आगे लिखता है- 'मौहम्मद बिन कासिम ने रिवाड़ी का दुर्ग विजय कर लिया। वह वहाँ दो-तीन दिन ठहरा। दुर्ग में मौजूद 6000 हिन्दू योद्धा वध कर दिये गये, उनकी पत्नियाँ, बच्चे, नौकर-चाकर सब कैद कर लिये (दास बना लिये गये)। यह संख्या लगभग 30 हजार थी। इनमें दाहिर की भानजी समेत 30 अधिकारियों की पुत्रियाँ भी थी[ii]



महमूद गजनवी

मुहम्मद गजनी का नाम भारत के अंतिम हिन्दू सम्राट पृथ्वी राज चौहान को युद्ध में हराने और बंदी बनाकर अफगानिस्तान लेकर जाने के लिए प्रसिद्द है। गजनी मजहबी उन्माद एवं मतान्धता का जीता जागता प्रतीक था।

1. भारत पर आक्रमण प्रारंभ करने से पहले इस 20 वर्षीय सुल्तान ने यह धार्मिक शपथ ली कि वह प्रति वर्ष भारत पर आक्रमण करता रहेगा, जब तक कि वह देश मूर्ति और बहुदेवता पूजा से मुक्त होकर इस्लाम स्वीकार न कर ले। अल उतबी इस सुल्तान की भारत विजय के विषय में लिखता है-'अपने सैनिकों को शस्त्रास्त्र बाँट कर अल्लाह से मार्ग दर्शन और शक्ति की आस लगाये सुल्तान ने भारत की ओर प्रस्थान किया। पुरुषपुर (पेशावर) पहुँचकर उसने उस नगर के बाहर अपने डेरे गाड़ दिये[iii]

2. मुसलमानों को अल्लाह के शत्रु काफिरों से बदला लेते दोपहर हो गयी। इसमें 15000 काफिर मारे गये और पृथ्वी पर दरी की भाँति बिछ गये जहाँ वह जंगली पशुओं और पक्षियों का भोजन बन गये। जयपाल के गले से जो हार मिला उसका मूल्य 2 लाख दीनार था। उसके दूसरे रिद्गतेदारों और युद्ध में मारे गये लोगों की तलाशी से 4 लाख दीनार का धन मिला। इसके अतिरिक्त अल्लाह ने अपने मित्रों को 5 लाख सुन्दर गुलाम स्त्रियाँ और पुरुष भी बखशो[iv]

3. कहा जाता है कि पेशावर के पास वाये-हिन्द पर आक्रमण के समय महमूद ने महाराज जयपाल और उसके 15 मुख्य सरदारों और रिश्तेदारों को गिरफ्तार कर लिया था। सुखपाल की भाँति इनमें से कुछ मृत्यु के भय से मुसलमान हो गये। भेरा में, सिवाय उनके, जिन्होंने इस्लाम स्वीकार कर लिया, सभी निवासी कत्ल कर दिये गये। स्पष्ट है कि इस प्रकार धर्म परिवर्तन करने वालों की संखया काफी रही होगी[v]

4. मुल्तान में बड़ी संख्या में लोग मुसलमान हो गये। जब महमूद ने नवासा शाह पर (सुखपाल का धर्मान्तरण के बाद का नाम) आक्रमण किया तो उतवी के अनुसार महमूद द्वारा धर्मान्तरण का अभूतपूर्व प्रदर्शन हुआ[vi]। काश्मीर घाटी में भी बहुत से काफिरों को मुसलमान बनाया गया और उस देश में इस्लाम फैलाकर वह गजनी लौट गया[vii]

5. उतबी के अनुसार जहाँ भी महमूद जाता था, वहीं वह निवासियों को इस्लाम स्वीकार करने पर मजबूर करता था। इस बलात्‌ धर्म परिवर्तन अथवा मृत्यु का चारों ओर इतना आतंक व्याप्त हो गया था कि अनेक शासक बिना युद्ध किये ही उसके आने का समाचार सुनकर भाग खड़े होते थे। भीमपाल द्वारा चाँद राय को भागने की सलाह देने का यही कारण था कि कहीं राय महमूद के हाथ पड़कर बलात्‌ मुसलमान न बना लिया जाये जैसा कि भीमपाल के चाचा और दूसरे रिश्तेदारों के साथ हुआ था[viii]

6. 1023 ई. में किरात, नूर, लौहकोट और लाहौर पर हुए चौदहवें आक्रमण के समय किरात के शासक ने इस्लाम स्वीकार कर लिया और उसकी देखा-देखी दूसरे बहुत से लोग मुसलमान हो गये। निजामुद्‌दीन के अनुसार देश के इस भाग में इस्लाम शांतिपूर्वक भी फैल रहा था, और बलपूर्वक भी`[ix]। सुल्तान महमूद कुरान का विद्वान था और उसकी उत्तम परिभाषा कर लेता था। इसलिये यह कहना कि उसका कोई कार्य इस्लाम विरुद्ध था, झूठा है।

7. हिन्दुओं ने इस पराजय को राष्ट्रीय चुनौती के रूप में लिया। अगले आक्रमण के समय जयपाल के पुत्र आनंद पाल ने उज्जैन, ग्वालियर, कन्नौज, दिल्ली और अजमेर के राजाओं की सहायता से एक बड़ी सेना लेकर महमूद का सामना किया। फरिश्ता लिखता है कि 30,000 खोकर राजपूतों ने जो नंगे पैरों और नंगे सिर लड़ते थे, सुल्तान की सेना में घुस कर थोड़े से समय में ही तीन-चार हजार मुसलमानों को काट कर रख दिया। सुल्तान युद्ध बंद कर वापिस जाने की सोच ही रहा था कि आनंद पाल का हाथी अपने ऊपर नेपथा के अग्नि गोले के गिरने से भाग खड़ा हुआ। हिन्दू सेना भी उसके पीछे भाग खड़ी हुई[x]

8. सराय (नारदीन) का विध्वंस- सुल्तान ने (कुछ समय ठहरकर) फिर हिन्द पर आक्रमण करने का इरादा किया। अपनी घुड़सवार सेना को लेकर वह हिन्द के मध्य तक पहुँच गया। वहाँ उसने ऐसे-ऐसे शासकों को पराजित किया जिन्होंने आज तक किसी अन्य व्यक्ति के आदेशों का पालन करना नहीं सीखा था। सुल्तान ने उनकी मूर्तियाँ तोड़ डाली और उन दुष्टों को तलवार के घाट उतार दिया। उसने इन शासकों के नेता से युद्ध कर उन्हें पराजित किया। अल्लाह के मित्रों ने प्रत्येक पहाड़ी और वादी को काफिरों के खून से रंग दिया और अल्लाह ने उनको घोड़े, हाथियों और बड़ी भारी संपत्ति मिली[xi]

9. नंदना की विजय के पश्चात् सुल्तान लूट का भारी सामान ढ़ोती अपनी सेना के पीछे-पीछे चलता हुआ, वापिस लौटा। गुलाम तो इतने थे कि गजनी की गुलाम-मंडी में उनके भाव बहुत गिर गये। अपने (भारत) देश में अति प्रतिष्ठा प्राप्त लोग साधारण दुकानदारों के गुलाम होकर पतित हो गये। किन्तु यह तो अल्लाह की महानता है कि जो अपने महजब को प्रतिष्ठित करता है और मूति-पूजा को अपमानित करता है[xii]

10. थानेसर में कत्ले आम- थानेसर का शासक मूर्ति-पूजा में घोर विश्वास करता था और अल्लाह (इस्लाम) को स्वीकार करने को किसी प्रकार भी तैयार नहीं था। सुल्तान ने (उसके राज्य से) मूर्ति पूजा को समाप्त करने के लिये अपने बहादुर सैनिकों के साथ कूच किया। काफिरों के खून से, नदी लाल हो गई और उसका पानी पीने योग्य नहीं रहा। यदि सूर्य न डूब गया होता तो और अधिक शत्रु मारे जाते। अल्लाह की कृपा से विजय प्राप्त हुई जिसने इस्लाम को सदैव-सदैव के लिये सभी दूसरे मत-मतान्तरों से श्रेष्ठ स्थापित किया है, भले ही मूर्ति पूजक उसके विरुद्ध कितना ही विद्रोह क्यों न करें। सुल्तान, इतना लूट का माल लेकर लौटा जिसका कि हिसाब लगाना असंभव है। स्तुति अल्लाह की जो सारे जगत का रक्षक है कि वह इस्लाम और मुसलमानों को इतना सम्मान बख्शता है[xiii]

11. अस्नी पर आक्रमण- जब चन्देल को सुल्तान के आक्रमण का समाचार मिला तो डर के मारे उसके प्राण सूख गये। उसके सामने साक्षात मृत्यु मुँह बाये खड़ी थी। सिवाय भागने के उसके पास दूसरा विकल्प नहीं था। सुल्तान ने आदेश दिया कि उसके पाँच दुर्गों की बुनियाद तक खोद डाली जाये। वहाँ के निवासियों को उनके मल्बे में दबा दिया अथवा गुलाम बना लिया गया।चन्देल के भाग जाने के कारण सुल्तान ने निराश होकर अपनी सेना को चान्द राय पर आक्रमण करने का आदेश दिया जो हिन्द के महान शासकों में से एक है और सरसावा दुर्ग में निवास करता है[xiv]

12. सरसावा (सहारनपुर) में भयानक रक्तपात- सुल्तान ने अपने अत्यंत धार्मिक सैनिकों को इकट्‌ठा किया और द्गात्रु पर तुरन्त आक्रमण करने के आदेश दिये। फलस्वरूप बड़ी संख्या में हिन्दू मारे गये अथवा बंदी बना लिये गये। मुसलमानों ने लूट की ओर कोई ध्यान नहीं दिया जब तक कि कत्ल करते-करते उनका मन नहीं भर गया। उसके बाद ही उन्होंने मुर्दों की तलाशी लेनी प्रारंभ की जो तीन दिन तक चली। लूट में सोना, चाँदी, माणिक, सच्चे मोती, जो हाथ आये जिनका मूल्य लगभग तीस लाख दिरहम रहा होगा। गुलामों की संखया का अनुमान इस बात से लगाया जा सकता है कि प्रत्येक को 2 से लेकर 10 दिरहम तक में बेचा गया। द्गोष को गजनी ले जाया गया। दूर-दूर के देशों से व्यापारी उनको खरीदने आये। मवाराउन-नहर ईराक, खुरासान आदि मुस्लिम देश इन गुलामों से पट गये। गोरे, काले, अमीर, गरीब दासता की समान जंजीरों में बँधकर एक हो गये[xv]

13. सोमनाथ का पतन- अल-काजवीनी के अनुसार 'जब महमूद सोमनाथ के विध्वंस के इरादे से भारत गया तो उसका विचार यही था कि (इतने बड़े उपसाय देवता के टूटने पर) हिन्दू (मूर्ति पूजा के विश्वास को त्यागकर) मुसलमान हो जायेंगे[xvi]।दिसम्बर 1025 में सोमनाथ का पतना हुआ। हिन्दुओं ने महमूद से कहा कि वह जितना धन लेना चाहे ले ले, परन्तु मूर्ति को न तोड़े। महमूद ने कहा कि वह इतिहास में मूर्ति-भंजक के नाम से विखयात होना चाहता है, मूर्ति व्यापारी के नाम से नहीं। महमूद का यह ऐतिहासिक उत्तर ही यह सिद्ध करने के लिये पर्याप्त है कि सोमनाथ के मंदिर को विध्वंस करने का उद्‌देश्य धार्मिक था, लोभ नहीं।मूर्ति तोड़ दी गई। दो करोड़ दिरहम की लूट हाथ लगी, पचास हजार हिन्दू कत्ल कर दिये गये[xvii]। लूट में मिले हीरे, जवाहरातों, सच्चे मोतियों की, जिनमें कुछ अनार के बराबर थे, गजनी में प्रदर्शनी लगाई गई जिसको देखकर वहाँ के नागरिकों और दूसरे देशों के राजदूतों की आँखें फैल गई[xviii]

मौहम्मद गौरी

मुहम्मद गौरी नाम नाम गुजरात के सोमनाथ के भव्य मंदिर के विध्वंश के कारण सबसे अधिक कुख्यात है। गौरी ने इस्लामिक जोश के चलते लाखों हिन्दुओं के लहू से अपनी तलवार को रंगा था।

1. मुस्लिम सेना ने पूर्ण विजय प्राप्त की। एक लाख नीच हिन्दू नरक सिधार गये (कत्ल कर दिये गये)। इस विजय के पश्चात्‌ इस्लामी सेना अजमेर की ओर बढ़ी-वहाँ इतना लूट का माल मिला कि लगता था कि पहाड़ों और समुद्रों ने अपने गुप्त खजानें खोल दिये हों। सुल्तान जब अजमेर में ठहरा तो उसने वहाँ के मूर्ति-मंदिरों की बुनियादों तक को खुदावा डाला और उनके स्थान पर मस्जिदें और मदरसें बना दिये, जहाँ इस्लाम और शरियत की शिक्षा दी जा सके[xix]

2. फरिश्ता के अनुसार मौहम्मद गौरी द्वारा 4 लाख 'खोकर' और 'तिराहिया' हिन्दुओं को इस्लाम ग्रहण कराया गया[xx]

3. इब्ल-अल-असीर के द्वारा बनारस के हिन्दुओं का भयानक कत्ले आम हुआ। बच्चों और स्त्रियों को छोड़कर और कोई नहीं बक्शा गया[xxi]।स्पष्ट है कि सब स्त्री और बच्चे गुलाम और मुसलमान बना लिये गये।



तैमूर लंग

तैमूर लंग अपने समय का सबसे अत्याचारी हमलावर था। उसके कारण गांव के गांव लाशों के ढेर में तब्दील हो गए थे।लाशों को जलाने वाला तक बचा नहीं था।

1. 1399 ई. में तैमूर का भारत पर भयानक आक्रमण हुआ। अपनी जीवनी 'तुजुके तैमुरी' में वह कुरान की इस आयत से ही प्रारंभ करता है 'ऐ पैगम्बर काफिरों और विश्वास न लाने वालों से युद्ध करो और उन पर सखती बरतो।' वह आगे भारत पर अपने आक्रमण का कारण बताते हुए लिखता है। 'हिन्दुस्तान पर आक्रमण करने का मेरा ध्येय काफिर हिन्दुओं के विरुद्ध धार्मिक युद्ध करना है (जिससे) इस्लाम की सेना को भी हिन्दुओं की दौलत और मूल्यवान वस्तुएँ मिल जायें[xxii]

2. कश्मीर की सीमा पर कटोर नामी दुर्ग पर आक्रमण हुआ। उसने तमाम पुरुषों को कत्ल और स्त्रियों और बच्चों को कैद करने का आदेश दिया। फिर उन हठी काफिरों के सिरों के मीनार खड़े करने के आदेश दिये। फिर भटनेर के दुर्ग पर घेरा डाला गया। वहाँ के राजपूतों ने कुछ युद्ध के बाद हार मान ली और उन्हें क्षमादान दे दिया गया। किन्तु उनके असवाधान होते ही उन पर आक्रमण कर दिया गया। तैमूर अपनी जीवनी में लिखता है कि 'थोड़े ही समय में दुर्ग के तमाम लोग तलवार के घाट उतार दिये गये। घंटे भर में दस हजार लोगों के सिर काटे गये। इस्लाम की तलवार ने काफिरों के रक्त में स्नान किया। उनके सरोसामान, खजाने और अनाज को भी, जो वर्षों से दुर्ग में इकट्‌ठा किया गया था, मेरे सिपाहियों ने लूट लिया। मकानों में आग लगा कर राख कर दिया। इमारतों और दुर्ग को भूमिसात कर दिया गया[xxiii]

3. दूसरा नगर सरसुती था जिस पर आक्रमण हुआ। 'सभी काफिर हिन्दू कत्ल कर दिये गये। उनके स्त्री और बच्चे और संपत्ति हमारी हो गई। तैमूर ने जब जाटों के प्रदेश में प्रवेश किया। उसने अपनी सेना को आदेश दिया कि 'जो भी मिल जाये, कत्ल कर दिया जाये।' और फिर सेना के सामने जो भी ग्राम या नगर आया, उसे लूटा गया।पुरुषों को कत्ल कर दिया गया और कुछ लोगों, स्त्रियों और बच्चों को बंदी बना लिया गया[xxiv]।'

4. दिल्ली के पास लोनी हिन्दू नगर था। किन्तु कुछ मुसलमान भी बंदियों में थे। तैमूर ने आदेश दिया कि मुसलमानों को छोड़कर शेष सभी हिन्दू बंदी इस्लाम की तलवार के घाट उतार दिये जायें। इस समय तक उसके पास हिन्दू बंदियों की संखया एक लाख हो गयी थी। जब यमुना पार कर दिल्ली पर आक्रमण की तैयारी हो रही थी उसके साथ के अमीरों ने उससे कहा कि इन बंदियों को कैम्प में नहीं छोड़ा जा सकता और इन इस्लाम के शत्रुओं को स्वतंत्र कर देना भी युद्ध के नियमों के विरुद्ध होगा। तैमूर लिखता है- 'इसलिये उन लोगों को सिवाय तलवार का भोजन बनाने के कोई मार्ग नहीं था। मैंने कैम्प में घोषणा करवा दी कि तमाम बंदी कत्ल कर दिये जायें और इस आदेश के पालन में जो भी लापरवाही करे उसे भी कत्ल कर दिया जाये और उसकी सम्पत्ति सूचना देने वाले को दे दी जाये। जब इस्लाम के गाजियों (काफिरों का कत्ल करने वालों को आदर सूचक नाम) को यह आदेश मिला तो उन्होंने तलवारें सूत लीं और अपने बंदियों को कत्ल कर दिया। उस दिन एक लाख अपवित्र मूर्ति-पूजक काफिर कत्ल कर दिये गये[xxv]

इसी प्रकार के कत्लेआम, धर्मांतरण का विवरण कुतुबुद्दीन ऐबक, इल्लतुमिश, ख़िलजी,तुगलक से लेकर तमाम मुग़लों तक का मिलता हैं। अकबर और औरंगज़ेब के जीवन के विषय में चर्चा हम अलग से करेंगे। भारत के मुसलमान आक्रमणकारियों बाबर, मौहम्मद बिन-कासिम, गौरी, गजनवी इत्यादि लुटेरों को और औरंगजेब जैसे साम्प्रदायिक बादशाह को गौरव प्रदान करते हैं और उनके द्वारा मंदिरों को तोड़कर बनाई गई मस्जिदों व दरगाहों को इस्लाम की काफिरों पर विजय और हिन्दू अपमान के स्मृति चिन्ह बनाये रखना चाहते हैं। संसार में ऐसा शायद ही कहीं देखने को मिलेगा जब एक कौम अपने पूर्वजों पर अत्याचार करने वालों को महान सम्मान देते हो और अपने पूर्वजों के अराध्य हिन्दू देवी देवताओं, भारतीय संस्कृति एवं विचारधारा के प्रति उसके मन में कोई आकर्षण न हो।



(नोट- इस लेख को लिखने में "भारतीय मुसल्मानों के हिन्दु पूरवज (मुसलमान कैसे बने)" नामक पुस्तक लेखक पुरुषोत्तम, प्रकाशक कर्ता हिन्दू राइटर फोरम, राजौरी गार्डन, दिल्ली का प्रयोग किया गया है।)

डॉ विवेक आर्य






[i] इलियटएंड डाउसन खंड-1 पृ.164


[ii] इलियटएंड डाउसन खंड-1 पृ.164


[iii] इलियटएंड डाउसन खंड-1 पृ 24-25


[iv] उपरोक्त पृ. 26


[v] के. एस. लाल : इंडियन मुस्लिम : व्हू आर दे, पृ. 6


[vi] अनेक स्थानों पर महमूद द्वारा धर्मान्तरण के लिये देखे-उतबी की पुस्तक 'किताबें यामिनी' का अनुवाद जेम्स रेनाल्ड्‌स द्वारा पृ. 451-463


[vii] जकरिया अल काजवीनी, के. एस. लाल, उपरोक्त पृ. 7


[viii] ईलियट एंड डाउसन, खंड-2, पृ.40 / के. एस. लाल, पूर्वोद्धत पृ. 7-8


[ix] के. एस. लाल, पूर्वोद्धत पृ. 7


[x] प्रो. एस. आर. द्गार्मा, द क्रीसेन्ट इन इंडिया, पृ. 43


[xi] ईलियट एंड डाउसन, खण्ड-2, पृ. 36


[xii] उपरोक्त, पृ.39


[xiii] उपरोक्त, पृ. 40-41


[xiv] उपरोक्त, पृ. 47


[xv] उपरोक्त, पृ. 49-50


[xvi] के. एस. लाल : इंडियन मुस्लिम व्यू आर दे, पृ. 7


[xvii] प्रो. एस. आर. शर्मा, द क्रीसेन्ट इन इंडिया, पृ. 47


[xviii] ईलियट एंड डाउसन, खण्ड-2, पृ. 35


[xix] उपरोक्त पृ. 215


[xx] के. एस. लाल : इंडियन मुस्लिम व्यू आर दे, पृ. 11


[xxi] उपरोक्त पृ.23


[xxii] सीताराम गोयल द्वारा 'स्टोरी ऑफ इस्लामिक इम्पीरियलिज्म इन इंडिया में उद्धत, पृ. 48


[xxiii]उपरोक्त


[xxiv] उपरोक्त, पृ.49-50


[xxv] सीताराम गोयल द्वारा 'स्टोरी ऑफ इस्लामिक इम्पीरियलिज्म इन इंडिया में उद्धत, पृ. 48

Thursday, October 1, 2015

सूफियों द्वारा भारत का इस्लामीकरण ,islamization of India by Sufi-Soft conversion



सूफियों द्वारा भारत का इस्लामीकरण

प्राय: हिन्दू समाज में यही माना जाता है कि हिंदुस्तान में जितने भी मुस्लमान सूफी, फकीर और पीर आदि हुए हैं, वे सभी उदारवादी थे। हिन्दू-मुस्लिम एकता के प्रतीक थे। वे भारतीय दर्शन और ध्यान योग की उपज थे। मगर यह एक भ्रान्ति है। भारत देश पर इस्लामिक आकर्मण दो रूपों में हुआ था। प्रथम इस्लामिक आक्रमणकर्ताओं द्वारा एक हाथ में तलवार और एक में क़ुरान लेकर भारत के शरीर और आत्मा पर जख्म पर जख्म बनाते चले गए। दूसरा सूफियों द्वारा मुख में भजन, कीर्तन, चमत्कार के दावे और बगल में क़ुरान दबाये हुए पीड़ित भारतीयों के जख्मों पर मरहम लगाने के बहाने इस्लाम में दीक्षित करना था। सूफियों को इस्लाम में दीक्षित करने वाली संस्था कहना कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी। इस लेख में हम ऐतिहासिक प्रमाणों के माध्यम से यह जानेंगे की सूफियों द्वारा भारत का इस्लामीकरण किस प्रकार किया गया।

सूफियों के कारनामें

हिन्दुओं का धर्म परिवर्तन कर उन्हें मुसलमान बनाने के लिए सूफियों ने साम-दाम, दंड-भेद की नीति से लेकर तलवार उठाने तक सभी नैतिक और अनैतिक तरीकों का भरपूर प्रयोग किया।

1. शाहजहाँ की मुल्ला मुहीबीब अली सिन्धी नामक सूफी आलिम से अभिन्नता थी। शाहजहाँ ने इस सूफी संत को हिन्दुओं को इस्लाम में दीक्षित करने की आज्ञा दी थी[i]

2. सूफी कादरिया खानकाह के शेख दाऊद और उनके शिष्य शाह अब्दुल माली के विषय में कहा जाता है कि वे 50 से 100 हिन्दुओं को इस्लाम में दीक्षित करते थे[ii]

3.सूफी शेख अब्दुल अज़ीज़ द्वारा अनेक हिन्दुओं को इस्लाम में दीक्षित किया गया[iii]

4. सूफी मीरान भीख के जीवन का एक प्रसंग मिलता है। एक हिन्दू जमींदार बीरबर को मृत्युदंड की सजा सुनाई गई। उसने सूफी मीरान भीख से सजा मांफी की गुहार लगाई। सूफी ने इस्लाम कबूल करने की शर्त लगाई। हिन्दू बीरबर मुसलमान बन गया। सूफी ने इस्लाम की सेवा में उसे रख लिया[iv]

5. दारा शिकोह के अनुसार सूफी शेख अब्दुल क़ादिर द्वारा अनेक हिन्दुओं को मुसलमान बनाया गया[v]

6. मीर सैय्यद अली हमदानी द्वारा कश्मीर का बड़े पैमाने पर इस्लामीकरण किया गया। श्रीनगर के काली मंदिर को तोड़कर उसने अपनी खानकाह स्थापित करी थी। हिन्दू ब्राह्मणों को छलने के लिए हमदानी के शिष्य नूरुद्दीन ने नुंद ऋषि के नाम से अपने को प्रसिद्द कर लिया। नूरुद्दीन ने श्रीनगर की प्रसिद्द हिन्दू उपासक लाल देह के हिन्दू रंग में अपने को पहले रंग लिया। फिर उसके उपासकों को प्रभावित कर इस्लाम में दीक्षित कर दिया। उसके मुख्य शिष्यों के नाम बामुद्दीन, जैनुद्दीन, लतीफुद्दीन आदि रख दिया।ये सभी जन्म से ब्राह्मण थे[vi]

सूफियों द्वारा इस्लाम की सेवा करने के लिए मुस्लिम शासकों को हिन्दुओं पर अत्याचार करने के लिए प्रोत्साहित किया गया। जिससे हिन्दू तंग आकर इस्लाम ग्रहण कर ले।

1. अल्तमश द्वारा नियुक्त सुहरावर्दी ख़लीफ़ा सैय्यद नूरुद्दीन मुबारक ने इस्लाम की सेवा के लिए

- शरिया लागु करना।

-मूर्तिपूजा और बहुदेवतावाद को कुफ्र घोषित करना।

-मूर्तिपूजक हिन्दुओं को प्रताड़ित करना।

-हिन्दुओं विशेष रूप से ब्राह्मणों को दंड देना।

-किसी भी उच्च पद पर किसी भी हिन्दू को न आसीन करना[vii]



2. बंगाल के सुल्तान गियासुद्दीन आज़म को फिरदवासिया सूफी शेख मुज्जफर ने पत्र लिख कर किसी भी काफिर को किसी भी सरकारी उच्च पद पर रखने से साफ़ मना किया। शेख ने कहा इस्लाम के बन्दों पर कोई काफिर हुकुम जारी न कर सके। ऐसी व्यवस्था करे। इस्लाम, हदीस आदि में ऐसे स्पष्ट निर्देश दिए गए हैं[viii]

3. मीर सैय्यद अली हमदानी द्वारा कश्मीर के सुलतान को हिन्दुओं के सम्बन्ध में राजाज्ञा लागु करने का परामर्श दिया गया था। इस परामर्श में हिन्दुओं के साथ कैसा बर्ताव करे। यह बताया गया था।

-हिन्दुओं को नए मंदिर बनाने की कोई इजाजत न हो।

-हिन्दुओं को पुराने मंदिर की मरम्मत की कोई इजाजत न हो।

-मुसलमान यात्रियों को हिन्दू मंदिरों में रुकने की इजाज़त हो।

- मुसलमान यात्रियों को हिन्दू अपने घर में कम से कम तीन दिन रुकवा कर उनकी सेवा करे।

-हिन्दुओं को जासूसी करने और जासूसों को अपने घर में रुकवाने का कोई अधिकार न हो।

-कोई हिन्दू इस्लाम ग्रहण करना चाहे तो उसे कोई रोकटोक न हो।

-हिन्दू मुसलमानों को सम्मान दे एवं अपने विवाह में आने का उन्हें निमंत्रण दे।

-हिन्दुओं को मुसलमानों जैसे वस्त्र पहनने और नाम रखने की इजाजत न हो।

-हिन्दुओं को काठी वाले घोड़े और अस्त्र-शस्त्र रखने की इजाजत न हो।

-हिन्दुओं को रत्न जड़ित अंगूठी पहनने का अधिकार न हो।

-हिन्दुओं को मुस्लिम बस्ती में मकान बनाने की इजाजत न हो।

-हिन्दुओं को मुस्लिम कब्रिस्तान के नजदीक से शव यात्रा लेकर जाने और मुसलमानों के कब्रिस्तान में शव गाड़ने की इजाजत न हो।

-हिन्दुओं को ऊँची आवाज़ में मृत्यु पर विलाप करने की इजाजत न हो।

-हिन्दुओं को मुस्लिम गुलाम खरीदने की इजाजत न हो।

मेरे विचार से इससे आगे कुछ कहने की आवश्यता ही नहीं है[ix]

4. सूफी शाह वलीउल्लाह द्वारा दिल्ली के सुल्तान अहमद शाह को हिन्दुओं को उनके त्योहार बनाने से मना किया गया। उन्हें होली बनाने और गंगा स्नान करने से रोका जाये। सुन्नी फिरके से सम्बंधित होने के कारण सूफी शाह वलीउल्लाह द्वारा शिया फिरके पर पाबन्दी लगाने की सलाह दी गई। शिया मुसलमानों को ताजिये निकालने और छाती पीटने पर पाबन्दी लगाने की सलाह दी गई[x]

5. मीर मुहम्मद सूफी और सुहा भट्ट की सलाह पर कश्मीर के सुल्तान सिकंदर ने अनंतनाग,मार्तण्ड, सोपुर और बारामुला के प्राचीन हिन्दुओं के मंदिरों को नष्ट कर दिया। हिन्दुओं पर जज़िया कर लगाया गया। कश्मीरी हिन्दू ब्राह्मणों को सरकारी पदों से हटाकर ईरान से मौलवियों को बुलाकर बैठा दिया गया[xi]

सूफियों द्वारा हिन्दू मंदिरों का विनाश।

इतिहास में अनेक उदहारण मिलते हैं जब सूफियों ने अनेक हिन्दू मंदिरों का स्वयं विध्वंश किया अथवा मुस्लिम शासकों को ऐसा करने की प्रेरणा दी।

1. सूफी मियां बयान अजमेर में ख़्वाजा मुईनुद्दीन चिश्ती की दरगाह के समीप रहता था। गुजरात से बहादुर शाह जब अजमेर आया तो सूफी मियां उससे मिले। उस समय राजगद्दी को लेकर गुजरात में अनेक मतभेद चल रहे थे। मियां ने बहादुर शाह की खूब आवभगत करी और उसे अजमेर को राजपूत काफिरों से मुक्त करने की गुजारिश करी। बाद में शासक बनने पर बहादुर शाह ने अजमेर पर हमला कर दिया। हिन्दू मंदिरों का सहार कर उसने अपने वायदे को निभाया[xii]

2. लखनौती बंगाल में रहने वाले सुहरावर्दी शेख जलालुद्दीन ने उत्तरी बंगाल के देवताला (देव महल) में जाकर एक विशाल मंदिर का विध्वंश कर उसे पहले खानकाह में तब्दील किया फिर हज़ारों हिन्दू और बुद्धों को इस्लाम में दीक्षित किया[xiii]

सूफियों द्वारा हिन्दू राज्यों पर इस्लामिक शासकों द्वारा हमला करने के लिए उकसाना

1. चिश्ती शेख नूर क़ुतुब आलम ने बंगाल के दिनाजपुर के राजा गणेश की बढ़ते शासन से क्षुब्ध होकर जौनपर के इस्लामिक शासक सुल्तान इब्राहिम शाह को हमला करने के लिए न्योता दिया। गणेश राजा ने भय से अपने बेटे को इस्लाम काबुल करा अपनी सत्ता बचाई[xiv]

2. शेख गौस द्वारा ग्वालियर के किले को जितने में बाबर की सहायता करी गई थी[xv]

3. शेख अहमद शाहिद द्वारा नार्थ वेस्ट फ्रंटियर प्रोविंस में हज़ारों अनुयाइयों को नमाज पढ़ने के बाद सिखों के राज को हटाने के लिए इस्लाम के नाम पर रजामंद किया गया[xvi]

सूफियों का हिन्दुओं के प्रति सौतेला व्यवहार

हिन्दू-मुस्लिम एकता के प्रतीक के नाम से प्रसिद्द सूफियों का हिन्दुओं के प्रति व्यवहार मतान्ध और संकुचित सोच वाला था।

1. सूफी वलीउल्लाह का कहना था की मुसलमानों को हिन्दुओं के घरों से दूर रहना चाहिए जिससे उन्हें उनके घर के चूल्हे न देखने पड़े[xvii]। यही वलीउल्लाह सुल्तान मुहम्मद गजनी को खिलाफत-ए-खास के बाद इस्लाम का सबसे बड़ा शहंशाह मानता था। उसका कहना था की मुहम्मद के इतिहासकारों ने नहीं पहचाना की मुहम्मद गजनी की जन्मपत्री मुहम्मद साहिब से मिलती थी इसीलिए उसे जिहाद में आशातीत सफलता प्राप्त हुई[xviii]। हिन्दुओं पर अथाह अत्याचार करने वाले ग़जनी की प्रसंशा करने वाले को क्या आप हिन्दू मुस्लिम एकता का प्रतीक मानना चाहेंगे?

2. सूफी सुहरावर्दी शेख जलालुद्दीन द्वारा अल्लाह को हिन्दुओं द्वारा ठाकुर, धनी और करतार जैसे शब्दों का प्रयोग करने से सख्त विरोध था[xix]

इस लेख के माध्यम से हमने भारत वर्ष के पिछले 1200 वर्षों के इतिहास में से सप्रमाण कुछ उदहारण दिए है जिनसे यह सिद्ध होता हैं सूफियों का मूल उद्देश्य भारत का इस्लामीकरण करना था। अजमेर के ख़्वाजा मुईनुद्दीन चिश्ती, दिल्ली के निजामुद्दीन औलिया, बहराइच के सालार गाज़ी मियां के विषय में कब्र पूजा: मूर्खता अथवा अन्धविश्वास नामक लेख में विस्तार से प्रकाश डाला जायेगा। आशा है इस लेख को पढ़कर पाठकों की इस भ्रान्ति का निवारण हो जायेगा की सूफी संतों का कार्य शांति और भाईचारे का पैगाम देना था।

डॉ विवेक आर्य

[i] Tabaqat-I-shahjahani, f.316b


[ii] supra, p.63, p.119-120


[iii]malfuzat-I-shah ‘abdu’l-’aziz, p.22)


[iv]History of Sufism in India by SAA Rizvi vol. 2 p.272-273


[v]Muhammad dara-shukoh, safinatu’l-auliya’, lucknow, 1872,p.69


[vi]सूफियों द्वारा भारत का इस्लामीकरण,पुरुषोत्तम पृष्ठ 28


[vii]tarikh-I firuz shahi, pp. 41-44


[viii]S.H.Askari- the correspondence of the fourteenth century Sufi saints of Bihar with the contemporary sovereigns of Delhi and Bengal, journal of the Bihar research society, march 1956,p.186-187


[ix]Zakhiratul-muluk, pp. 117-118


[x] Shah Waliu’llah dihlawi ke siyasi maktubat, aligarh, 1950, pp. 41-44, 2nd edition, Delhi 1969, p.5


[xi] HSI by SAA Rizvi, vol.1, pp.297


[xii] akhbaru’l-akhyar by Shaikh ‘abdu’l-haqq muhaddis dihlawi pp.291-292


[xiii] jamali, p.171


[xiv] tabaqat-I-akbari, 3,p.265; gulshan-I ibrahimi, pp. 296-207; ghulam hussain salim, riyazu’s- salatin, Calcutta, 1890, pp.108-110, maktubat-I ashrafi (letter to sultan Ibrahim)


[xv] Beveridge, a.s.tr.Babur-nama, 2, reprint, New Delhi, 1970, pp. 539-540


[xvi] Muhammad ja’far thaneswari, ed. Maktubat-Saiyid Ahmad shahid, Karachi, 1969.no.14, 16


[xvii] shah waliu’llah, hujjat Allah al – baligha, 1, Karachi, n.d. pp.468


[xviii] shah waliu’llah, qurrat al-a’ynain fi tafzil al-shaykhyn, Delhi, 1893, p.324


[xix] siraju’l-hidaya, f.64b

Sunday, September 13, 2015

जागो हिन्दुस्तानी Beware of Vatican conversion-Worse than Islam.

💥प्रश्न - साधू-संतो के पास करोड़ो की संपत्ति है । साधू-संतो को इतनी संपत्ति की क्या जरुरत है? साधू को तो अपरिग्रही होना चाहिए ?

​​💥उत्तर : रोमन केथोलिक चर्च का एक छोटा राज्य है जिसे वेटिकन बोलते है । अपने धर्म के प्रचार के लिए वे हर साल​ 171,600,000,000
डॉलर खर्च करते है । तो उनके पास कुल कितनी संपत्ति होगी?

💥वेटिकन के किसी भी व्यक्ति को पता नहीं है कि उनके कितने व्यापार चलते है ।
💥रोम शहर में 33% इलेक्टोनिक, प्लास्टिक, एर लाइन, केमिकल और इंजीनियरिंग बिजनेस वेटिकन के हाथ में है ।
💥दुनिया में सबसे बड़े shares​ वेटिकन के पास है ।
💥इटालियन बैंकिंग में उनकी बड़ी संपत्ति है और अमेरिका एवं स्विस बेंको में उनकी बड़ी भारी deposits है ।
💥ज्यादा जानकारी के लिए पुस्तक पढाना जिसका नाम है VATICAN EMPIRE

💥उनकी संपत्ति के आगे आपके भारत के साधुओं के करोड रुपये कोई मायना नहीं रखते ।

💥वे लोग खर्च करते है विश्व में धर्मान्तरण करके लोगों को अपनी संस्कृति, और धर्म से भ्रष्ट करने में 🚩और भारत के संत खर्च करते है लोगों को शान्ति देने में, उनकी स्वास्थ्य सेवाओं में, आदिवासियों और गरीबों की सेवा में, प्राकृतिक आपदा के समय पीडितों की सेवा में और अन्य लोकसेवा के कार्यों में ।

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Monday, December 15, 2014

SWAMI DAYANAD SARASWATI AND PURIFICATION OF CONVERTED HINDUS BACK TO HINDUISM

आधुनिक भारत में "शुद्धि" के सर्वप्रथम प्रचारक स्वामी दयानंद थे तो उसे आंदोलन के रूप में स्थापित कर सम्पूर्ण हिन्दू समाज को संगठित करने वाले स्वामी श्रद्धानन्द थे। सबसे पहली शुद्धि स्वामी दयानंद ने अपने देहरादून प्रवास के समय एक मुस्लमान युवक की करी थी जिसका नाम अलखधारी रखा गया था। स्वामी जी के निधन के पश्चात पंजाब में विशेष रूप से मेघ, ओड और रहतिये जैसे निम्न और पिछड़ी समझी जाने वाली जातियों का शुद्धिकरण किया गया। इसका मुख्य उद्देश्य उनकी पतित, तुच्छ और निकृष्ट अवस्था में सामाजिक एवं धार्मिक सुधार करना था।

आर्यसमाज द्वारा चलाये गए शुद्धि आंदोलन का व्यापक स्तर पर विरोध हुआ क्यूंकि हिन्दू जाति सदियों से कूपमण्डूक मानसिकता के चलते सोते रहना अधिक पसंद करती थी। आगरा और मथुरा के समीप मलकाने राजपूतों का निवास था जिनके पूर्वजो ने एक आध शताब्दी पहले ही इस्लाम की दीक्षा ली थी। मलकानों के रीती रिवाज़ अधिकतर हिन्दू थे और चौहान, राठोड़ आदि गोत्र के नाम से जाने जाते थे। 1922 में क्षत्रिय सभा मलकानों को राजपूत बनाने का आवाहन कर सो गई मगर मुसलमानों में इससे पर्याप्त चेतना हुई एवं उनके प्रचारक गावं गावं घूमने लगे। यह निष्क्रियता स्वामी श्रद्धानन्द की आँखों से छिपी नहीं रही। 11 फरवरी 1923 को भारतीय शुद्धि सभा की स्थापना करते समय स्वामी श्रद्धानन्द द्वारा शुद्धि आंदोलन आरम्भ किया गया। स्वामी जी द्वारा इस अवसर पर कहा गया की जिस धार्मिक अधिकार से मुसलमानों को तब्लीग़ और तंज़ीम का हक हैं उसी अधिकार से उन्हें अपने बिछुड़े भाइयों को वापिस अपने घरों में लौटाने का हक हैं। आर्यसमाज ने 1923 के अंत तक 30 हजार मलकानों को शुद्ध कर दिया।
मुसलमानों में इस आंदोलन के विरुद्ध प्रचंड प्रतिकिया हुई। जमायत-उल-उलेमा ने बम्बई में 18 मार्च, 1923 को मीटिंग कर स्वामी श्रद्धानन्द एवं शुद्धि आंदोलन की आलोचना कर निंदा प्रस्ताव पारित किया। स्वामी जी की जान को खतरा बताया गया मगर उन्होंने "परमपिता ही मेरा रक्षक हैं, मुझे किसी अन्य रखवाले की जरुरत नहीं हैं" कहकर निर्भीक सन्यासी होने का प्रमाण दिया। कांग्रेस के श्री राजगोपालाचारी, मोतीलाल नेहरू एवं पंडित जवाहरलाल नेहरू ने धर्मपरिवर्तन को व्यक्ति का मौलिक अधिकार मानते हुए तथा शुद्धि के औचित्य करते हुए भी तत्कालीन राष्ट्रीय आंदोलन के सन्दर्भ में उसे असामयिक बताया। शुद्धि सभा गठित करने एवं हिन्दुओं को संगठित करने का स्वामी जी का ध्यान 1912 में उनके कलकत्ता प्रवास के समय आकर्षित हुआ था जब कर्नल यू. मुखर्जी ने 1911 की जनगणना के आधार पर यह सिद्ध किया की अगले 420 वर्षों में हिन्दुओं की अगर इसी प्रकार से जनसँख्या कम होती गई तो उनका अस्तित्व मिट जायेगा। इस समस्या से निपटने के लिए हिन्दुओं का संगठित होना आवश्यक था और संगठित होने के लिए स्वामी जी का मानना था कि हिन्दू समाज को अपनी दुर्बलताओं को दूर करना चाहिए। सामाजिक विषमता, जातिवाद, दलितों से घृणा, नारी उत्पीड़न आदि से जब तक हिन्दू समाज मुक्ति नहीं पा लेगा तब तक हिन्दू समाज संगठित नहीं हो सकता।

इसी बीच हिन्दू और मुसलमानों के मध्य खाई बराबर बढ़ती गई। 1920 के दशक में भारत में भयंकर हिन्दू-मुस्लिम दंगे हुए। केरल के मोपला, पंजाब के मुल्तान, कोहाट, अमृतसर, सहारनपुर आदि दंगों ने अंतर और बढ़ा दिया। इस समस्या पर विचार करने के लिए 1923 में दिल्ली में कांग्रेस ने एक बैठक का आयोजन किया जिसकी अध्यक्षता स्वामी जी को करनी पड़ी। मुसलमान नेताओं ने इस वैमनस्य का कारण स्वामी जी द्वारा चलाये गए शुद्धि और हिन्दू संगठन को बताया। स्वामी जी ने सांप्रदायिक समस्या का गंभीर और तथ्यात्मक विश्लेषण करते हुए दंगों का कारण मुसलमानों की संकीर्ण सांप्रदायिक सोच बताया। इसके पश्चात भी स्वामी जी ने कहा की मैं आगरा से शुद्धि प्रचारकों को हटाने को तैयार हूँ अगर मुस्लिम उलेमा अपने तब्लीग के मौलवियों को हटा दे। परन्तु मुस्लिम उलेमा न माने।
इसी बीच स्वामी जी को ख्वाजा हसन निज़ामी द्वारा लिखी पुस्तक 'दाइए-इस्लाम' पढ़कर हैरानी हुई। इस पुस्तक को चोरी छिपे केवल मुसलमानों में उपलब्ध करवाया गया था। स्वामी जी के एक शिष्य ने अफ्रीका से इसकी प्रति स्वामी जी को भेजी थी। इस पुस्तक में मुसलमानों को हर अच्छे-बुरे तरीके से हिन्दुओं को मुस्लमान बनाने की अपील निकाली गई थी। हिन्दुओं के घर-मुहल्लों में जाकर औरतों को चूड़ी बेचने से, वैश्याओं को ग्राहकों में, नाई द्वारा बाल काटते हुए इस्लाम का प्रचार करने एवं मुस्लमान बनाने के लिए कहा गया था। विशेष रूप से 6 करोड़ दलितों को मुसलमान बनाने के लिए कहा गया था जिससे मुसलमान जनसँख्या में हिन्दुओं की बराबर हो जाये और उससे राजनैतिक अधिकारों की अधिक माँग करी जा सके। स्वामी जी ने निज़ामी की पुस्तक का पहले "हिन्दुओं सावधान, तुम्हारे धर्म दुर्ग पर रात्रि में छिपकर धावा बोला गया हैं" के नाम से अनुवाद प्रकाशित किया एवं इसका उत्तर "अलार्म बेल अर्थात खतरे का घंटा" के नाम से प्रकाशित किया। इस पुस्तक में स्वामी जी ने हिन्दुओं को छुआ छूत का दमन करने और समान अधिकार देने को कहा जिससे मुस्लमान लोग दलितों को लालच भरी निगाहों से न देखे। इस बीच कांग्रेस के काकीनाडा के अध्यक्षीय भाषण में मुहम्मद अली ने 6 करोड़ अछूतों को आधा आधा हिन्दू और मुसलमान के बीच बाँटने की बात कहकर आग में घी डालने का कार्य किया।
महात्मा गांधी भी स्वामी जी के गंभीर एवं तार्किक चिंतन को समझने में असमर्थ रहे एवं उन्होंने यंग इंडिया के 29 मई, 1925 के अंक में 'हिन्दू मुस्लिम-तनाव: कारण और निवारण' शीर्षक से एक लेख में स्वामी जी पर अनुचित टिप्पणी कर डाली। उन्होंने लिखा
"स्वामी श्रद्धानन्द जी भी अब अविश्वास के पात्र बन गये हैं। मैं जानता हूँ की उनके भाषण प्राय: भड़काने वाले होते हैं। दुर्भाग्यवश वे यह मानते हैं कि प्रत्येक मुसलमान को आर्य धर्म में दीक्षित किया जा सकता हैं, ठीक उसी प्रकार जिस प्रकार अधिकांश मुसलमान सोचते हैं कि किसी-न-किसी दिन हर गैरमुस्लिम इस्लाम को स्वीकार कर लेगा। श्रद्धानन्द जी निडर और बहादुर हैं। उन्होंने अकेले ही पवित्र गंगातट पर एक शानदार ब्रहचर्य आश्रम (गुरुकुल) खड़ा कर दिया हैं। किन्तु वे जल्दबाज हैं और शीघ्र ही उत्तेजित हो जाते हैं। उन्हें आर्यसमाज से ही यह विरासत में मिली हैं।" स्वामी दयानंद पर आरोप लगाते हुए गांधी जी लिखते हैं "उन्होंने संसार के एक सर्वाधिक उदार और सहिष्णु धर्म को संकीर्ण बना दिया। "
गांधी जी के लेख पर स्वामी जी ने प्रतिक्रिया लिखी की "यदि आर्यसमाजी अपने प्रति सच्चे हैं तो महात्मा गांधी या किसी अन्य व्यक्ति के आरोप और आक्रमण भी आर्यसमाज की प्रवृतियों में बाधक नहीं बन सकते। "
स्वामी जी सधे क़दमों से अपने लक्ष्य की ओर बढ़ते रहे। एक ओर मौलाना अब्दुल बारी द्वारा दिए गए बयान जिसमें इस्लाम को न मानने वालो को मारने की वकालात की गई थी के विरुद्ध महात्मा गांधी जी कि प्रतिक्रिया पक्षपातपूर्ण थी। गांधी जी अब्दुल बारी को 'ईश्वर का सीदा-सादा बच्चा' और 'एक दोस्त' के रूप में सम्बोधित करते हैं जबकि स्वामी जी द्वारा कि गई इस्लामी कट्टरता की आलोचना उन्हें अखरती हैं। गांधी जी ने कभी भी मुसलमानों कि कट्टरता की आलोचना करी और न ही उनके दोषों को उजागर किया। इसके चलते कट्टरवादी सोच वाले मुसलमानों का मनोबल बढ़ता गया एवं सत्य एवं असत्य के मध्य वे भेद करने में असफल हो गए। मुसलमानों में स्वामी जी के विरुद्ध तीव्र प्रचार का यह फल निकला की एक मतान्ध व्यक्ति अब्दुल रशीद ने बीमार स्वामी श्रद्धानन्द को गोली मार दी उनका तत्काल देहांत हो गया।
स्वामी जी का उद्देश्य विशुद्ध धार्मिक था नाकि राजनैतिक था। हिन्दू समाज में समानता उनका लक्ष्य था। अछूतोद्धार, शिक्षा एवं नारी जाति में जागरण कर वह एक महान समाज की स्थापना करना चाहते थे। आज आर्यसमाज का यह कर्त्तव्य हैं कि उनके द्वारा छोड़े गए शुद्धि चक्र को पुन: चलाये। यह तभी संभव होगा जब हम मन से दृढ़ निश्चय करे की आज हमें जातिवाद को मिटाना हैं और हिन्दू जाति को संगठित करना हैं।

डॉ विवेक आर्य
स्वामी दयानंद फॉउन्डेशन, दिल्ली