Wednesday, November 19, 2014

BOY WITH 4 HANDS AND 4 LEGS BORN IN WEST BENGAL

चार हाथ और चार पैरों के साथ जन्मा बच्चा, लोगों ने बताया ब्रह्मा का अवतार
पश्चिम बंगाल के बरुईपुर में एक बच्चे ने अविकसित चार हाथ और चार पैरों के साथ जन्म लिया है. बच्चे के मां बाप ने इसे ईश्वर का अवतार बताया है. उनका कहना है कि बच्चे का स्वरूप एक भारतीय देवता से मिलता है.
बच्चे का नाम 'भगवान बालक' (गॉड ब्वॉय) रखा गया है, क्योंकि हिंदू मान्यताओं के अनुसार देवी-देवताओं के कई हाथ-पैर होते हैं. राज्य के दूर दराज वाले इलाकों से भी लोग उसे देखने आ रहे हैं.
स्थानीय पुलिस की मानें, तो उन्हें भीड़ को नियंत्रित करने में काफी परेशानी हो रही है, क्योंकि सैकड़ों लोग गलियों में उमड़े हैं. बच्चे की जन्म से यह असामान्यता दरअसल, अविकसित और एक साथ जुड़े जुड़वां बच्चों का नतीजा है.
बच्चे का परिवार इस नए सदस्य से काफी खुश है और उसको हिंदू देवता ब्रह्मा का अवतार बता रहा है. स्थानीय टी.वी. चैनल पर उसके एक रिश्तेदार ने बताया कि जब वह बच्चा पहली बार आया, तो उन लोगों को यकीन ही नहीं हुआ.
उन्होंने आगे कहा, 'नर्स ने उसे अविकसित बताया, लेकिन मैं देख रहा था कि यह भगवान की तरफ से एक संकेत है. दरअसल, यह तो चमत्कार है, यह भगवान का बच्चा है. हिंदू देवताओं के अतिरिक्त हाथ-पैर होते ही हैं.'
पड़ोस के गांव से बच्चे के दर्शन करने आए, 67 वर्षीय चुक्का राव ने कहा, 'पहली बार जब बच्चे के बारे में सुना, तो वे संदेह में था. हालांकि, दोस्तों और दूसरे लोगों से यह ख़बर सुनकर उनकी उत्सुकता उन्हें खींच ही लायी.'
पुलिस प्रवक्ता ने कहा, 'यह बच्चा असामान्य है और यह दुखद है. इसमें कहीं से कुछ भी भगवान का लेना-देना नहीं है. हालांकि, लोग पागल हो रहे हैं और उसे देखने को जमा हो रहे हैं. सैकड़ों गली में रो रहे हैं, कुछ तो दहशत में हैं और सोच रहे हैं कि यह दुनिया के अंत की निशानी है. मैंने अपने पूरे करियर में ऐसा कुछ नहीं देखा.'
बच्चे के परिवार के सदस्य ने हालांकि इसे बिल्कुल सहज बताया. उनके मुताबिक, 'यह आसानी से समझा जा सकता है कि लोगों में इस बात को लेकर काफी रोमांच है और यह काफी सामान्य सी बात है कि लोग इस बच्चे को देखना चाहते हैं.'

अजीब शहरों,UNIQUE CITIES

लिली डेल: आपको यह जानकर आश्चर्य हो सकता है परन्तु यह बिल्कुल सच है कि यहां रहने वाले हर व्यक्ति के पास या तो सुपरनेचुरल पॉवर्स है या फिर उसने किसी न किसी भूत-प्रेत या शैतान को अपने काबू में कर रखा है।
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बौनों का गांव: चीन के इस छोटे से गांव के लोगों को देखते ही आपको समझ आ जाएगा कि इस जगह को बौनों का गांव क्यों कहा जाता है। यहां रहने वाले सभी लोगों की आबादी हाईट में काफी कम है हालांकि अब सामान्य कद-काठी के लोगों ने यहां पर अपना टूरिस्ट डेस्टिनेशन बना लिया है। 
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एलिस्टा: रशिया के इस छोटे से शहर की नींव शतरंज सिटी के रूप में रखी गई थी। इसे बनाते समय आर्किटेक्ट और डिजाइनर्स सभी शतरंज से इतने अधिक प्रेरित थे कि उन्होंने शतरंज को ही थीम बना कर पूरा शहर बसा डाला जिससे इसका नाम भी चेस सिटी पड़ गया।
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रोजवेल: विश्व के रोचक रोजवेल यूएफओ घटना के बाद से न्यू मैक्सिकों के इस स्थान का नाम ही यूएफओ टाउन पड़ गया। यहां रहने वाले लोग अक्सर यूएफओ देखे जाने की पुष्टि करते रहे हैं। हालांकि इनकी वैज्ञानिक पुष्टि कभी नहीं की जा सकी।Ten most interesting cities in the world, you should know


 मोनोवी: नेब्रास्का के इस छोटे से कब्जे की आबादी कुल 1 व्यक्ति है। यहां केवल एकमात्र बूढ़ी औरत रहती है जोकि एक बार और पब्लिक लाइब्रेरी चलाती है। और सारे काम वहीं करती है। 
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भारत के मालदीव, स्कॉटलैंड, स्विट्जरलैंड और अमरीका.UNITED STATES,SWITZERLAND,SCOTLAND OF INDIA IN INDIA

1.भारत में भी है स्कॉटलैंड: समुद्र लेवल से 2730 मीटर की ऊंचाई पर स्थित मंडली की प्रसार झील में स्कॉटलैंड के नजारे नजर आते है 
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2.मालदीव के बीच देखने है तो केरल के वारकेला बीच पर जाएं 
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3.अमरीका के ग्रान्ड कैन्योन के नजारे देखने हैं तो भारत के गंडीकोट चले आएं।
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4.भारत में कर्नाटक के हम्पी स्थित मंदिर मिस्त्र के एज्टेक मंदिरों से ज्यादा खूबसूरत दिखते हैं
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5.आल्प्स की पहाडियों से कहीं बेहतर है हमारा अपना ऑली
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6.भारत के गुलमर्ग में दिखते हैं स्विटजरलैण्ड के मनोरम दृश्य -
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7.चेरापूंजी के जंगलों में आप पाएंगे अमेजन के जंगलों से बेहतर रोमांच और आनंद -
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8.कच्छ के रन में बोनविले साल्ट एरिया का अनुभव होता है। 
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9.लक्ष्यद्वीप में हॉलीवुड की फैंटेसी फिल्मों के स्पेशल इफेक्ट देखे जा सकते हैं, जहां आपके हाथ रखेंगे, जगह चमक उठेगी
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10.आप बता नहीं पाएंगे कि कौन ज्यादा बेहतर दिखता है जॉर्जिया की गुफाएं या लद्दाख के बौद्ध मठ - 
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11.

50 साल से सीमा पर ड्यूटी दे रही है शहीद जसवंत सिंह की आत्मा Jaswant Singh's ghost keeps vigil on border of China from 1962

50 साल से सीमा पर ड्यूटी दे रही है शहीद जसवंत सिंह की आत्मा

Jaswant Singh's ghost keeps vigil on border of China from 1962

50 साल से सीमा पर ड्यूटी दे रही है शहीद जसवंत सिंह की आत्माअरूणाचल प्रदेश। यह सच्ची गाथा है एक वीर सैनिक की। भारत मां के इस सच्चे सपूत की जिंदगी तो देश की रक्षा के लिए समर्पित थी ही, यह सैनिक शहीद होने के बाद भी आज तक सीमा की सुरक्षा में लगा है। यह जांबाज सैनिक था जसवंत सिंह रावत। इसकी बहादुरी के चलते सेना ने जसवंत के शहीद होने के 40 साल बाद रिटायरमेंट देने की घोषणा की। इस बीच जसवंत को पदोन्नति भी दी जाती रही। देश के इतिहास में यह एक मात्र उदाहरण है 
जसवंत की आत्मा भी दे रही सीमा पर पहरा : - भारतीय सेना ही नहीं आम लोगों में भी जसवंत सिंह को लेकर कई तरह की कहानियां कही जाती हैं। बताया जाता है कि जिस कमरे में जसवंत सिंह रहा करते थे, उस कमरे में आज भी उनके जूतों को पॉलिश करके रखा जाता है। उनके कपड़ों को भी धोकर और प्रेस कर रखा जाता है। लोगों का कहना है कि रात में रखे गए जूते और कपड़ों को जब सुबह देखा जाता है तो ऎसा लगता है कि उनका इस्तेमाल किया गया है। कपड़े मैले और जूते गंदे मिलते हैं। जसवंत सिंह के लिए हर रोज बिस्तर भी लगाया जाता है। यह बिस्तर भी सुबह ऎसा लगता है कि यहां कोई सोया था। 




Jaswant Singh's ghost keeps vigil on border of China from 1962
ऎसी ही किंवदंतियों में से एक है जसवंत सिंह की आत्मा का लोगों को थप्पड़ मारना। हालांकि इस शहीद की आत्मा केवल पोस्ट पर तैनात झपकी ले रहे सैनिकों को ही थप्पड़ मारती है। शहीद की आत्मा झपकी ले रहे सैनिकों को यह भी समझाती है कि देश की सीमा की सुरक्षा उनके जिम्मे है इसलिए जागते रहो।
Jaswant Singh's ghost keeps vigil on border of China from 1962

जहां पर शहीद जसवंत सिंह का स्मारक बना हुआ है, वहां से गुजरने वाले लोग जसवंत सिंह को नमन करके ही गुजरते हैं। बताया जाता है कि नमन नहीं करने वाले यात्रियों को कुछ ना कुछ नुकसान जरूर होता है। इसलिए ड्राइवर तो ऎसा करने में जरा भी चूक नहीं करते हैं। ... आगे की स्लाइड में पढिए जसवंत की आत्मा के लिए तैनात हैं सैनिक 
Jaswant Singh's ghost keeps vigil on border of China from 1962

जसवंत सिंह की बहादुरी के चलते सेना ने उनके लिए ऎसा काम किया जो आज भी एक मिसाल है। जसंवत सिंह को शहीद होने के साथ ही सेवानिवृत नहीं किया गया। जब उनकी रिटायरमेंट का समय आया तब ही उन्हें रिटायर किया गया। लगभग 40 साल बाद उन्हें रिटायर घोषित किया गया। इस बीच उन्हें समय-समय पर पदोन्नती भी दी गई 
अकेले ही 300 चीनी सैनिकों को उतारा मौत के घाट : - भारत और चीन के बीच नवंबर 1962 में हुए युद्ध में चौथी गढ़वाल राइफल इंफेंटरी रेजीमेंट के जसवंत सिंह 10000 फीट की ऊंचाई पर स्थित नूरानांग पोस्ट पर तैनात थे। चीनी सेना तवांग जिले से होते हुए नूरानांग तक पहुंच गई। 17 नवंबर को चीनी और भारतीय सेना में नूरानांग में लड़ाई छिड़ गई। इस लड़ाई में लांस नायक त्रिलोकी सिंह नेगी, परमवीर चक्र विजतेा जोगिंदर सिंह और राइफलमैन गोपाल सिंह गोसाई सहित अन्य सैनिक शहीद हो गए। इससे सारी जिम्मेदारी जसंवत सिंह पर आ पड़ी। जसवंत सिंह ने गजब का शौर्यप्रदर्शन करते हुए लगातार 3 दिनों तक चीनी सेना से मुकाबला किया। जसवंत सिंह ने समझदारी का परिचय देते हुए अलग-अलग बंकरों से जा कर गोलीबारी की, इससे चीनी सेना को लगा कि वहां बहुत सारे जवान अभी भी जिंदा हैं और गोलीबारी कर रहे हैं। इस दौरान जसवंत सिंह ने करीब 300 चीनी सैनिकों को अकेले ही मौत के घाट उतार दिया। यह देखते हुए चीनी सेना ने इस सेक्टर को चारों ओर से घेर लिया। आखिरकार जब यह सेक्टर चीनी सैनिकों के घेरे में आ गया, तो मालूम चला कि यहां बहुत सारे सैनिक नहीं थे, केवल एक ही सैनिक चीनी सेना को बेवकूफ बना रहा था, तो चीनी सैनिक चिढ़ गए। चीनी सैनिकों ने जसवंत सिंह को बंदी बना लिया और एक टेलिफोन तार के सहारे पेड़ पर फांसी पर लटका दिया। इसके बाद जसवंत सिंह का सिर काटकर साथ ले गए। जसवंत सिंह के शहीद होने के बारे में एक और तथ्य सामने आता है। बताया जाता है कि जब जसवंत सिंह को लगा कि अब चीनी सैनिक उसे गिरफ्तार कर लेंगे, तो उसने खुद को गोली मार ली। बाद में चीनी सैनिक उसका सिर काटकर ले गए। हालांकि युद्ध विराम होने के बाद चीनी कमांडर ने जसवंत सिंह की बहादुरी से प्रभावित होकर उसका सिर और एक तांबे का लोकेट वापस कर दिया।
नूरानांग की इस पोस्ट पर जसवंत सिंह का साथ गांव की दो लड़कियों ने भी दिया। शैला और नूरा नाम की इन लड़कियों ने जसवंत सिंह को हथियार और असलहे मुहैया करवाए। इन दोनो लड़कियों को भी सम्मान दिया गया। यहां के एक दर्रे का नाम शैला रखा गया और हाईवे का नाम नूरा 

Tuesday, November 18, 2014

नथूराम ने कहा, ह्त्या के समय गांधी के मुख से “आह” की आवाज निकली, “हे राम” शब्द नहीं

























नथूराम गोडसे की पुण्य तिथी पर..,
नथूराम गोडसे, एक राष्ट्रवादी योद्धा, जिसने अपने प्राणों की आहुती से ..., गांधी को , देश के साथ खिलवाड़ से.., देश के टुकड़े करने के बाद भी, देश की तुष्टी करण की नीती से, देश को असहाय बनाने के बाद, आगे के खेल से, देश को पंगु बनाने का, अंजाम न दे सके , इस ह्त्या का उद्देश्य बताया,
याद रहे, नथूराम गोड़से ने स्वंय अपना मुकदमा लड़ते हुए , गांधी की ह्त्या करने के १५० कारण गिनाये थे...,तब अदालत में बैठे दर्शकों की आँखे, आंसू लबालब भरकर, जमीन में गिरकर नाथूराम गोड़से को सलाम कर रही थी ...
१. गांधी ह्त्या के पहिले नथूराम गोडसे ने गांधी को प्रणाम किया, बाद में गोली मारी.
२. नथूराम ने अदालत में कहा , मैंने गांधी को गोली मारने में इतनी सावधानी से, इतने, पास से गोली मारी ताकि उनके बगल में दो युवतियां, जो हमेशा उनके साथ रहती थी.., उन्हें गोली के छर्रे लगने से, मैं बदनाम न हो जाऊं (याद रहे, गांधी उन युवतियों के साथ नग्न सोकर, ब्रह्मचर्य /सत्य के प्रयोग में इस्तेमाल करते थे)
३. नथूराम ने कहा, ह्त्या के समय गांधी के मुख से “आह” की आवाज निकली, “हे राम” शब्द नहीं ..., 
जिसे कांग्रेस ने हेराल्ड अखबार के प्रचार से “हे राम” शब्द से देशवासियों को भरमाया..
न्यायाधीश खोसला ने, अपने सेवा निर्वत्ती के बाद कहा था , यदि मुझे न्याय के लिए स्वतंत्र विचार दिया जाता तो मैं, नथूराम गोड़से को निर्दोषी मानता , मैं तो कानून का गुलाम था, इसलिए मुझे नाथूराम गोड़से व उसके अन्य साथियों को मृत्यु दंड सुनाना पड़ा
नथूराम गोड़से व उनके साथी, ‘भारतमाता की गोद में’ सोने के लिए इतने आतुर थे कि उन्होंने उच्च न्यायालय में अपनी सजा को चुनौती नहीं दी और न ही क्षमा याचना की अपील राष्ट्रपति से की ...
यह शांती का दूत..????, कपूत निकला.., याद रहे, इस अनशन की खाल में बापू ने .., दो विश्व युध्ह में २ लाख हिंदुस्थानी सैनिकों की अकारण बलि देकर, जो कुत्ते की मौत मारे गए थे .. व १९४७ में देश का अंग भंग कर ५ लाख हिन्दुस्थानियो की बलि लेकर..., इस अहिसा के परदे में खूनी खेल खेलकर, आज तक शांती दूत का चेहरा दिखाया है...
गाँधी वध के पश्चात जब सावरकर जी को न्यायलय ने सम्मान बरी किया तो जज का, वीर सावरकर के लिए यह
वक्तव्य था ..., “सावरकर ने अपना जीवन राष्ट्र के लिए समर्पित कर दिया, लेकिन ऐसे तुच्छ कार्य में उन्हें घसीटना बहुत ही निंदनीय है, इस बात की जांच की जानी चाहिए की ऐसे महान व्यक्ति का नाम इस कार्य में क्यों घसीटा गया”
जबकि स्वयं नथूराम गोडसे ने गाँधी वध में सावरकरजी की संलिप्तता को सिरे से नकार दिया,
धर्मनिरपेक्षता के झूठे आडम्बर में फंसे तथाकथित सेकुलर उस दिन सूर्य के सामान जुगनू से प्रतीत हो रहे थे, जो की सूर्य को अपनी मद्दम रौशनी दिखा कर उसे निचा दिखाने की कोशिश कर रहे है,
वीर सावरकर के क्रातिकारी के जज्बे को सलाम करने के के लिए, 13 मार्च 1910 मे जहाज से कूदकर,पानी मे अंग्रज सैनिको की पीछे से गोली गोलियो की बौछर का सामना करते हुए , फ्रांस के मार्सेल तट पर पहुँचे, इस साहसिक घटना को जीवित कर , प्रेरित करने के लिए, घटना की 100 वर्ष पूरे होने के उपलक्ष्य मे एक भव्य स्मारक बनाने के लिए भारत सरकार को सूचित किया , और भारत सरकार ने वीर सावरकर को देश्द्रोही कहकर आपत्ति उठाने से वह प्रकल्प बंद करवा दिया..
दोस्तों अब गांधी जयंती के आयोजन में झूठे दिखावे के आचरण से, देश को, सरकारी अवकाश व विज्ञापनों व अन्य खर्चों से १० हजार करोड़ का चूना लगाने वाला है...
गांधी की गंदी राजनीती व जवाहर लाल नेहरू के जहर से देश ६८ साल के सत्ता परिवर्तन के शासन में कंगाल हो गया है..., आज सभी पार्टीयाँ विदेशों में विदेशी हाथ माँगने जा रहें हैं...
सत्ता तो मद से भरी.., मदारियों का समूह १९४७ से सत्ता परिवर्तन को आजादी के झांसे से बन्दर बांट से देश को लूट रहा है...
राजधर्म तो जातिवाद, भाषावाद,अलगाववाद, धर्मवाद व घुसपैठीयों से राजनीती में गहरी पैठ से जनता को गरीबी से तडफा-तड़फा कर..., हलाल कर ..., आज अपने को देश का लाल बनाकर., २ अक्टूबर से १४ नवम्बर से सालों - साल तक इनके पुतले..,बिना नहलाए पूजे जा रहें है...और तो और ६८ सालों से देश में गरीबी की वजह से गांधी का चष्मा चुरा लिया जाता है..., २ अक्टूबर तक सत्ताखोर बदहवासी में रहता है...

कुतुबमीनार के निर्माण की सही-सही कहानी

पराधीनता का असली कारण और
कुतुबमीनार के निर्माण की सही-सही कहानी
दिल्ली दर्शन के लिए बडी बेटी के स्कूल से एक बस गई, जिसके लिए मुझे भी अपनी बेटी को 300 रुपए देने पड़े। आने पर मैंने पूछा क्या-क्या देखा? उसने बताया कि कुतुबुद्दीन ऐबक की बनाई कुतुबमीनार! और भी बहुत कुछ बताया, लेकिन मैं केवल कुतुबमीनार पर ही चर्चा करूंगी।
मैंने बेटी से पूछा कि किसने बताया कि कुतुबमीनार कुतुबुद्दीन ऐबक ने बनाई, तो कहा, टीचर ने बताया।
लो जी अपने देश के टीचर भी क्या-क्या उल्टा-पुल्टा इतिहास पढा देते हैं। जहां तक मैं जानती हूं, सही इतिहास तो इस प्रकार है:
देश में तोमर वंश के शासक क्रमवार इस प्रकार रहेः
दीप सिंह तोमर
राजसिंह तोमर
अनंगसिंह तोमर
मदन सिंह तोमर
जीवनसिंह तोमर

जब दिल्ली में महाराज अनंगसिंह का राज था, तब उस जमाने में गजनी में तख्ता पलट हुआ था, और वहां के शासक ने भारत में शरण ली थी और अपनी बेटी का विवाह अनंगपाल तोमर से किया था। उससे एक बेटा जन्मा जिसका नाम घोरी रखा गया। परंतु घोरी को पंडितों के बहकाए में आकर म्लेच्छ माना गया, हिन्दू के रूप में स्वीकार नहीं किया। और देश में गृहयुद्ध की स्थिति हो गयी कि एक म्लेच्छ रानी का लडका भारत का युवराज नहीं बन सकता। यकीनन आज से 500 साल पुरानी पांडुलिपि में यही लिखा है, देखिए
शुद्धीकृता राजपत्नी हर्म्ये प्रासूत बालकम्
परं पृथ्वी भटेनाऽऽशु षडयंत्रमत्र निर्मितिम्
तेन स बालकः क्षिप्तः कान्तारे घोर नामके
कालान्तरे प्रतिद्धोऽभूद् घोरिनाम्ना स बालकः
वंशचरितावली
फिर गजनी में अनंगपाल के मुस्लिम साले का शासन पुनः हो गया तो अनंगपाल की रानी अपने बेटे को लेकर गजनी भाग गई, यकीनन देखें प्रमाण:
घोरिमाता सपुत्रा सा भीताऽऽशु गजनीं गता
कालांतर में दिल्ली में चौहान शासकों का शासन हो गया।
पृथ्वीराज चौहान ने जीवन सिंह तोमर को मारकर अपने भाई गोविंदपाल को दिल्ली का राजा बनाया था, वैराट यानी अजमेर का राजा था वह। प्रमाण देखें:
सप्तकालाक्षिचंद्राब्दे हत्वा जीवनसिंहकम्
पृथ्वीराज नृपोऽकार्षीद गोविन्पालकं नृपम्
इंद्रप्रस्थेऽधिकारोऽभूच्चह्वणानामित स्ततः
चौहानों के शासनकाल में घोरी अपनी मां के अपमान का बदला लेने हिन्दुस्तान आया और पृथ्वीराज को बंदी बनाकर ले गया और हिन्दुस्तान अपने गुलाम को सौंप गया।
घोरी मोहम्मद गौरी पृथ्वीराजं गृहीतवान्
युद्धे विजितवान् पृथ्वीं कारागारे स क्षिप्तवान्
कुतुबमीनार की बात करें तो कुतुबुद्दीन ने वराहमिहिर की प्राचीन वेधशाला की मूर्तियों को उसी पर उल्टा चिनवा दिया, बस यही है कुतुबमीनार के बनाने का रहस्य।
तेनापित कुतुबुद्दीन आर्यावर्त नृपः कृतः
खचुम्बी हिमहिराल्लयां स्तम्भस्तेन निपातितः
तन्निर्माणः कृतः पश्चातद य इल्तुतमिशेनवै
सप्ताष्टाक्षिधरावर्षे मीनारो नाम पूरितः
लेकिन वह गुलाम दिल्ली में बैठकर शासन न कर सका, क्योंकि मौत का भय था, इसलिए शासन किया लाहौर में बैठकर! और वह भी पृथ्वीराज चौहान के नाम से ही। प्रमाण देखें 500 साल पुरानी पांडुलिपि के:
जनक्रांतिभयान्म्लेच्छैरिन्द्रप्रस्थे प्रशासिते
पृथ्वीराजनाममुद्रा बहुवर्षाणि चालिता
कालाक्षिकाल भूवर्ष विक्रामाब्दे हिघोषितम्
यशःपालचह्वाणेन स्वातंत्रयंम्लैच्छशासनात्
तं निगृहीतवान् राजा गयासुद्दीन तुगलकः
प्रयागेन्यक्षिपद् दुर्गे करायां स मृतस्ततः
चौहान वंश के शासक क्रमबद्ध इस प्रकार रहे:
गोविन्दपाल
उभयपाल
दुर्जनपाल
उदयपाल
यशपाल
यशपाल ने जब क्रांति की तो उन्हें प्रयाग के किले में बंदी बना दिया, जहां उनकी मौत हो गई और गयासुद्दीन तुगलक पहली बार स्वतंत्र विदेशी तानाशाह भारत का शासक बन बैठा।
आजकल के अंग्रेजीपरस्त यदि संस्कृत को प्रमाण न समझें तो वे उन सिक्को को प्रमाण जानें जिन पर पृथ्वीराज के साथ-साथ मुहम्मद गौरी का एक नाम मुहम्मद बिन साम अंकित है।
हजारों की संख्या में मुहम्मद बिन साम के सिक्के आज भी हैं, जिन पर एक और पृथ्वीराज चौहान का नाम है। ऐसे सिक्के 2013 में जोहडी गांव यूपी से भी मिले और भारत सरकार के पुरातत्व विभाग के पास तो हजारों की संख्या में हैं ही। इसीलिए मेरा मानना है कि इतिहास दोबारा लिखा जाए। सही...सही....