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Tuesday, November 18, 2014

कुतुबमीनार के निर्माण की सही-सही कहानी

पराधीनता का असली कारण और
कुतुबमीनार के निर्माण की सही-सही कहानी
दिल्ली दर्शन के लिए बडी बेटी के स्कूल से एक बस गई, जिसके लिए मुझे भी अपनी बेटी को 300 रुपए देने पड़े। आने पर मैंने पूछा क्या-क्या देखा? उसने बताया कि कुतुबुद्दीन ऐबक की बनाई कुतुबमीनार! और भी बहुत कुछ बताया, लेकिन मैं केवल कुतुबमीनार पर ही चर्चा करूंगी।
मैंने बेटी से पूछा कि किसने बताया कि कुतुबमीनार कुतुबुद्दीन ऐबक ने बनाई, तो कहा, टीचर ने बताया।
लो जी अपने देश के टीचर भी क्या-क्या उल्टा-पुल्टा इतिहास पढा देते हैं। जहां तक मैं जानती हूं, सही इतिहास तो इस प्रकार है:
देश में तोमर वंश के शासक क्रमवार इस प्रकार रहेः
दीप सिंह तोमर
राजसिंह तोमर
अनंगसिंह तोमर
मदन सिंह तोमर
जीवनसिंह तोमर

जब दिल्ली में महाराज अनंगसिंह का राज था, तब उस जमाने में गजनी में तख्ता पलट हुआ था, और वहां के शासक ने भारत में शरण ली थी और अपनी बेटी का विवाह अनंगपाल तोमर से किया था। उससे एक बेटा जन्मा जिसका नाम घोरी रखा गया। परंतु घोरी को पंडितों के बहकाए में आकर म्लेच्छ माना गया, हिन्दू के रूप में स्वीकार नहीं किया। और देश में गृहयुद्ध की स्थिति हो गयी कि एक म्लेच्छ रानी का लडका भारत का युवराज नहीं बन सकता। यकीनन आज से 500 साल पुरानी पांडुलिपि में यही लिखा है, देखिए
शुद्धीकृता राजपत्नी हर्म्ये प्रासूत बालकम्
परं पृथ्वी भटेनाऽऽशु षडयंत्रमत्र निर्मितिम्
तेन स बालकः क्षिप्तः कान्तारे घोर नामके
कालान्तरे प्रतिद्धोऽभूद् घोरिनाम्ना स बालकः
वंशचरितावली
फिर गजनी में अनंगपाल के मुस्लिम साले का शासन पुनः हो गया तो अनंगपाल की रानी अपने बेटे को लेकर गजनी भाग गई, यकीनन देखें प्रमाण:
घोरिमाता सपुत्रा सा भीताऽऽशु गजनीं गता
कालांतर में दिल्ली में चौहान शासकों का शासन हो गया।
पृथ्वीराज चौहान ने जीवन सिंह तोमर को मारकर अपने भाई गोविंदपाल को दिल्ली का राजा बनाया था, वैराट यानी अजमेर का राजा था वह। प्रमाण देखें:
सप्तकालाक्षिचंद्राब्दे हत्वा जीवनसिंहकम्
पृथ्वीराज नृपोऽकार्षीद गोविन्पालकं नृपम्
इंद्रप्रस्थेऽधिकारोऽभूच्चह्वणानामित स्ततः
चौहानों के शासनकाल में घोरी अपनी मां के अपमान का बदला लेने हिन्दुस्तान आया और पृथ्वीराज को बंदी बनाकर ले गया और हिन्दुस्तान अपने गुलाम को सौंप गया।
घोरी मोहम्मद गौरी पृथ्वीराजं गृहीतवान्
युद्धे विजितवान् पृथ्वीं कारागारे स क्षिप्तवान्
कुतुबमीनार की बात करें तो कुतुबुद्दीन ने वराहमिहिर की प्राचीन वेधशाला की मूर्तियों को उसी पर उल्टा चिनवा दिया, बस यही है कुतुबमीनार के बनाने का रहस्य।
तेनापित कुतुबुद्दीन आर्यावर्त नृपः कृतः
खचुम्बी हिमहिराल्लयां स्तम्भस्तेन निपातितः
तन्निर्माणः कृतः पश्चातद य इल्तुतमिशेनवै
सप्ताष्टाक्षिधरावर्षे मीनारो नाम पूरितः
लेकिन वह गुलाम दिल्ली में बैठकर शासन न कर सका, क्योंकि मौत का भय था, इसलिए शासन किया लाहौर में बैठकर! और वह भी पृथ्वीराज चौहान के नाम से ही। प्रमाण देखें 500 साल पुरानी पांडुलिपि के:
जनक्रांतिभयान्म्लेच्छैरिन्द्रप्रस्थे प्रशासिते
पृथ्वीराजनाममुद्रा बहुवर्षाणि चालिता
कालाक्षिकाल भूवर्ष विक्रामाब्दे हिघोषितम्
यशःपालचह्वाणेन स्वातंत्रयंम्लैच्छशासनात्
तं निगृहीतवान् राजा गयासुद्दीन तुगलकः
प्रयागेन्यक्षिपद् दुर्गे करायां स मृतस्ततः
चौहान वंश के शासक क्रमबद्ध इस प्रकार रहे:
गोविन्दपाल
उभयपाल
दुर्जनपाल
उदयपाल
यशपाल
यशपाल ने जब क्रांति की तो उन्हें प्रयाग के किले में बंदी बना दिया, जहां उनकी मौत हो गई और गयासुद्दीन तुगलक पहली बार स्वतंत्र विदेशी तानाशाह भारत का शासक बन बैठा।
आजकल के अंग्रेजीपरस्त यदि संस्कृत को प्रमाण न समझें तो वे उन सिक्को को प्रमाण जानें जिन पर पृथ्वीराज के साथ-साथ मुहम्मद गौरी का एक नाम मुहम्मद बिन साम अंकित है।
हजारों की संख्या में मुहम्मद बिन साम के सिक्के आज भी हैं, जिन पर एक और पृथ्वीराज चौहान का नाम है। ऐसे सिक्के 2013 में जोहडी गांव यूपी से भी मिले और भारत सरकार के पुरातत्व विभाग के पास तो हजारों की संख्या में हैं ही। इसीलिए मेरा मानना है कि इतिहास दोबारा लिखा जाए। सही...सही....