Tuesday, May 12, 2015

Can India’s Rupee Rival Renminbi As ‘Great New’ Reserve Currency?

India’s rupee “is destined to become one of the great new reserve currencies of the world.”
Reuters
Chinese banknotes in Beijing.
So says Ashmore research head Jan Dehn as he compares China’s latest central bank rate cut and India in research today. He thinks the Indian rupee has the potential – like the Renminbi – to become a global reserve currency sooner than expected. As China struggles with its debt burden and slowing economy, he says:
China “is making intelligent use of the disinflation caused by economic reforms and a strong currency to allow real interest rates to drift higher, even as it slowly cuts policy rates. This strategy is part of a wider set of reforms aimed at bringing domestic interest rates into equilibrium as the capital account is gradually liberalized. The combination of a strong currency, disinflation, extremely strong technicals and high real yields makes China’s bond market attractive.”
Meanwhile, Indian legislators are making progress on approving a pan-Indian goods and services tax (GST) to will indirect taxes levied by the central government and states. This will dramatically improve economic efficiency and the central government’s fiscal situation, Dehn notes. He adds:
“In another positive development, Prime Minister Modi has backed the central bank (RBI) in its turf war with the finance ministry over the right to regulate bond markets and manage public debt. The RBI, under the leadership of Governor Raghuram Rajan, has been instrumental in the re-establishment of investor confidence in India. There have also been significant improvements in the fiscal management under Finance Minister, Arun Jaitley, but the fiscal stance has historically posed the larger threat to macroeconomic stability in India. This is why it is so important that regulation stays with the RBI, in our view.
Bloomberg News
Rupee banknotes in Mumbai.
We think that the Indian rupee has the potential – like the Renminbi – to become a global reserve currency sooner than expected. The world will need new reserve currencies as the QE economies gradually succeed in converting their excessive debt into inflation problems (with negative ramifications for their currencies). Having won the turf war over regulation, we think the RBI will now slowly move towards making the INR freely convertible …  Rajan is slowly but steadily pushing India towards capital account liberalization. Bond quotes are being made more flexible, Indian companies are being allowed to issue INR denominated debt abroad, Indian banks are being recapitalized and local currency government debt is being made Euroclearable. The INR is destined to become one of the great new reserve currencies of the world, albeit over a much longer time frame than, say, the Renminbi. The RBI is the best placed institution to oversee this process, including the establishment of an efficient and modern regulatory regime to ensure that liberalization serves the national interest rather than special interests …”
Source-- blogs.barrons.com


Thursday, May 7, 2015

रणजीत सिंह जी जाडेजा,RANJIT SINGH JADEJA

Rajputana Soch  राजपूताना सोच और क्षत्रिय इतिहास's photo.टेस्ट क्रिकेट और अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट खेलने वाले प्रथम भारतीय
***महाराजा जाम साहेब रणजीत सिंह जी जाडेजा***
आज हम आपका परिचय उस हस्ती से करवाएंगे जिसे भारतीय क्रिकेट का पितामहः कहलाने का गौरव प्राप्त है और साथ ही भारत के घरेलू क्रिकेट सत्र के सबसे बड़े टूर्नामेंट रणजी ट्रॉफी का नामकरण भी उनके नाम पर किया गया है। गुजरात में नवानगर रियासत के महाराजा रहे जाम साहेब रणजीत सिंह जी जाडेजा पहले भारतीय थे जिन्होंने प्रोफेशनल टेस्ट मैच और अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट खेला। उन्हें अब तक दुनिया के सर्वश्रेष्ठ बल्लेबाजो में से एक माना जाता है। क्रिकेट की दुनिया में कई नए शॉट लाने का श्रेय उन्हें ही दिया जाता है। क्रिकेट की दुनिया में लेग ग्लांस शॉट का आविष्कार और उसे लोकप्रिय बनाने का श्रेय उन्हें ही जाता है। साथ ही बैकफुट पर रहकर अटैक और डिफेन्स, दोनों तरह के शॉट लगाने का कारनामा भी दुनिया के सामने सर्वप्रथम वो ही लेकर आए।
रणजीत सिंह जी का जन्म 10 सितम्बर 1872 को नवानगर राज्य के सदोदर नामक गाँव में जाडेजा राजपूत परिवार में हुआ। उनके पिता का नाम जीवन सिंह जी और दादा का नाम झालम सिंह जी था जो नवानगर के महाराजा जाम साहेब विभाजी जाडेजा के परिवार में से थे। जाम विभाजी की कोई योग्य संतान ना होने की वजह से उन्होंने कुमार रणजीत सिंह जी को गोद ले लिया और अपना उत्तराधिकारी बना दिया। लेकिन बाद में विभाजी के एक संतान होने की वजह से उत्तराधिकार को लेकर विवाद उतपन्न हो गया जिसकी वजह रणजीत सिंह जी को कई साल संघर्ष करना पड़ा।
Rajputana Soch  राजपूताना सोच और क्षत्रिय इतिहास's photo.कुमार श्री रणजीत सिंह जी को राजकोट के राजकुमार कॉलेज में शिक्षा लेने के लिये भेजा गया। वहां स्कूली शिक्षा के साथ उनका क्रिकेट से परिचय हुआ। वो कई साल कॉलेज की क्रिकेट टीम के कप्तान रहे। उनकी पढाई में योग्यता से प्रभावित होकर उन्हें आगे की पढ़ाई के लिये इंग्लैंड की कैम्ब्रिज़ यूनिवर्सिटी में पढ़ने भेजा गया। वहॉ पर रणजीत सिंह जी की रूचि क्रिकेट खेलने में बढ़ने लगी जिसकी वजह से वो शिक्षा पर ध्यान नही दे पाए। उन्होंने पूरी तरह क्रिकेट को अपना कैरियर बनाने का निर्णय लिया। पहले वो कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी की ओर से खेला करते थे। इसके बाद वे ससेक्स से जुड़ गए और लॉर्डस में पहले ही मैच में 77 और 150 रन की पारियां खेली। काउंटी क्रिकेट में बल्ले से धमाल के बाद उन्हें इंग्लैंड की राष्ट्रीय टीम में चुन लिया गया और 1896 में ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ रणजीत सिंह ने पहला टेस्ट खेला। इस मैच में उन्होंने 62 और 154 नाबाद की पारी खेली। उल्लेखनीय बात है कि इस टेस्ट की दूसरी पारी में रणजीत सिंह के बाद दूसरा सर्वाधिक स्कोर 19 रन था। बल्ले से उनके इस प्रदर्शन की न केवल इंग्लैण्ड बल्कि ऑस्ट्रेलिया में भी जमकर तारीफें हुई। उन्होंने लगभग चार साल क्रिकेट खेला। इसमें उन्होंने 15 टेस्ट में 44.95 की औसत से 989 रन बनाए। इसमें दो शतक और छह अर्धशतक भी शामिल है। प्रथम श्रेणी क्रिकेट में रणजीत सिंह ने 307 मैच में 72 शतकों और 109 अर्धशतकों की मदद से 56.37 की औसत से 24692 रन बनाए। उनकी बल्लेबाजी औसत 1986 तक भी इंग्लैंड में खेलने वाले किसी बल्लेबाज की सबसे बढ़िया औसत थी।
हालांकि इस दौरान उन्हें नस्लभेद का भी शिकार होना पड़ा। लगातार अच्छा प्रदर्शन करने के बाद भी उन्हें भारतीय होने के कारण राष्ट्रीय टीम में शामिल नही किया जाता था। उस वक्त अन्तर्राष्टीय क्रिकेट सिर्फ इंग्लैंड और ऑस्ट्रेलिया के बीच में खेला जाता था। एक भारतीय को अंग्रेज़ो के साथ क्रिकेट खेलने के लायक नही समझा जाता था। लेकिन रणजीत सिंह जी अपने अच्छे खेल की वजह से दर्शको में इतने लोकप्रिय हो गए थे की अंग्रेज खेल प्रशासक उन्हें ज्यादा दिन अनदेखा नही कर सके।
नवानगर में घरेलू जिम्मदारियों और उत्तराधिकार में विवाद के चलते उन्हें भारत लौटना पड़ा। इसके कारण उनका क्रिकेट कॅरियर प्रभावित हुआ और लगभग खत्म सा हो गया। उन्होंने अंतिम बार 1920 में 48 साल की उम्र में क्रिकेट खेला। लेकिन बढ़े हुए वजन और एक आंख में चोट के चलते वे केवल 39 रन बना सके। निशानेबाजी के दौरान उनकी एक आंख की रोशनी चली गई थी।
रणजीत सिंह जी को अब तक के विश्व के सर्वकालिक महान बल्लेबाज में से एक माना जाता है। विस्डन पत्रिका ने भी उन्हें 5 सर्वश्रेष्ठ क्रिकेट खिलाड़ियो में जगह दी थी। नेविल्ले कार्डस ने उन्हें "midsummer night's dream of cricket" कहा है। उन्होंने यह भी कहा है कि जब रणजीत सिंह खेलने के लिये आए तो जैसे पूर्व दिशा से किसी अनजाने प्रकाश ने इंग्लैंड के आकाश को चमत्कृत कर दिया। अंग्रेजी क्रिकेट में वो एक नई शैली लेकर आए। उन्होंने बिलकुल अपरंपरागत बैटिंग तकनीक और तेज रिएक्शन से एक बिलकुल नई बल्लेबाजी शैली विकसित कर के क्रिकेट में क्रांति ला दी। पहले बल्लेबाज फ्रंट फुट पर ही खेलते थे, उन्होंने बैकफुट पर रहकर सब तरह के शॉट लगाने का कारनामा सबसे पहली बार कर के दिखाया। उनको अब तक क्रिकेट खेलने वाले सबसे मौलिक stylist में से एक के रूप में जाना जाता है। उनके समय के क्रिकेटर CB Fry ने उनकी विशिष्टता के लिये उनके जबरदस्त संतुलन और तेजी जो एक राजपूत की खासियत है को श्रेय दिया है।
टेस्ट क्रिकेट के इतिहास में एक ही दिन में दो शतक मारने का उनका 118 साल पुराना रिकॉर्ड अब तक कोई नही तोड़ पाया है।
शुरुआत के नस्लवाद के बावजूद रणजीत सिंह जी इंग्लैंड और ऑस्ट्रेलिया के दर्शको में अत्यधिक लोकप्रिय क्रिकेटर बन गए थे।
1933 में उनका जामनगर में देहांत हो गया। उनके बारे में सर नेविले कार्डस ने ही लिखा कि,"जब रणजी ने क्रिकेट को अलविदा कहा तो खेल से यश और चमत्कार हमेशा के लिए चला गया।"
क्रिकेट में उनके योगदान को देखते हुए पटियाला के महाराजा भूपिन्दर सिंह ने उनके नाम पर 1935 रणजी ट्रॉफी की शुरूआत की। जो बाद में भारतीय क्रिकेट की सबसे बड़ी प्रतियोगिता बन गई। उनके भतीजे कुमार श्री दलीपसिंहजी ने भी इंग्लैण्ड की ओर से क्रिकेट खेला। उनके नाम पर दलीप ट्रॉफी की शुरूआत हुई।
नवानगर के शाशक के रूप में भी उनको राज्य का विकास करने, पहली बार रेल लाइन बिछाने, सड़के बनवाने, आधुनिक सुविधाओ वाला एक बंदरगाह बनवाने और राजधानी को विकसित करवाने का श्रेय दिया जाता है।

भूतालाघाटी--हल्‍दीघाटी से भी बड़ी जंग

Rajputana Soch  राजपूताना सोच और क्षत्रिय इतिहास's photo.भूतालाघाटी : जहां लड़ी गई हल्‍दीघाटी से भी बड़ी जंग
हल्‍दीघाटी की लड़ाई से भी बड़ी जंग भूतालाघाटी की थी और इस्‍लामी सल्‍तनत के खिलाफ यह मेवाड़ का पहला संघर्ष था। इसके चर्चे लम्‍बे समय तक बने रहे। यहां तक कि 1273 ईस्‍वी के चीरवा शिलालेख में भी इस जंग की चर्चा है। 'भूतालाघाटी की लड़ाई' की ख्‍याति के कारण ही 'खमनोर की लड़ाई' भी हल्‍दीघाटी की लड़ाई के नाम पर जानी गई।
गुलाम वंश के संस्‍थापक कुतुबुद्दीन एबक के उत्‍तराधिकारी अत्‍तमिश या इल्‍तुतमिश (1210-1236 ईस्‍वी) ने दिल्‍ली की गद्दी संभालने के साथ ही राजस्‍थान के जिन प्रासादाें के साथ जुड़े विद्या केंद्रों को नेस्‍तनाबूत कर अढाई दिन के झोंपड़े की तरह आनन फानन में नवीन रचनाएं करवाई, उसी क्रम में मेवाड़ पर यह आक्रमण भी था। तब मेवाड़ का नागदा नगर बहुत ख्‍याति लिए था और यहां के शासक जैत्रसिंह के पराक्रम के चर्चे मालवा, गुजरात, मारवाड़, जांगल आदि तक थे। कहा तो यह भी जाता है कि नागदा में 999 मंदिर थे और यह पहचान देश के अनेक स्‍थलों की रही है। अधिक नहीं तो नौ मंदिर ही किसी नगर में बहुत होते हैं और इतनों के ध्‍वंसावशेष तो आज भी मौजूद हैं ही। ये मंदिर पहाड़ी और मैदानी दोनों ही क्षेत्रों में बनाए गए और इनमें वैष्‍णव सहित लाकुलिश शैव मत के मंदिर रहे हैं।
जैत्रसिंह के शासन में मेवाड़ की ख्‍याति चांदी के व्‍यापार के लिए हुई। गुजरात के समुद्रवर्ती व्‍यापारियों तक भी यह चर्चा थी किंतु व्‍यापार अरब तक था। इस काल में ज्‍योतिष के खगोल पक्ष के कर्ता मग द्विजों का प्रसार नांदेशमा तक था। कहने को तो वे सूर्य मंदिर बनाते थे मगर वे मंदिर वास्‍तव में वर्ष फल के अध्‍ययन व वाचन के केंद्र थे।
अल्‍तमिश की आंख में जैत्रसिंह कांटे की तरह चुभ रहा था क्‍योंकि वह मेवाड़ के व्‍यापार पर अपना कब्‍जा करना चाहता था। जैत्रसिंह ने उसके हरेक प्रस्‍ताव को ठुक करा दिया। इस पर अल्‍तमिश ने अजमेर के साथ ही मेवाड़ को अपना निशाना बनाया। चौहानों की रही सही ताकत को भी पद दलित कर दिया और गुहिलों के अब तक के सबसे ताकतवर शासक काे कैद करने की रणनीति अपनाई। यह योजना पृथ्‍वीराज चौहान के खिलाफ मोहम्‍मद गौरी की नीति से कोई अलग नहीं थी। उसने तत्‍कालीन मियांला, केलवा और देवकुल पाटन के रास्‍ते नांदेशमा के नव उद्यापित सूर्य मंदिर को तोड़ा, रास्‍ते के एक जैन मंदिर को भी धराशायी किया। नांदेशमा का सूर्यायतन मेवाड़ में टूटने वाला पहला मंदिर था। (चित्र में उसके अवशेश है,,, यह चित्र मित्रवर श्रीमहेश शर्मा का उपहार है।)
तूफान की तरह बढ़ती सल्‍तनत सेना को जैत्रसिंह ने मुंहतोड़ जवाब देने का प्रयास किया। तलारक्ष योगराज के ज्‍येष्‍ठ पुत्र पमराज टांटेर के नेतृत्‍व में एक बड़ी सेना ने हरावल की हैसियत से भूताला के घाटे में युद्ध किया। हालांकि वह बहुत वीरता से लड़ा मगर खेत रहा। उसने जैत्रसिंह पर आंच नहीं आने दी। गुहिलों ही नहीं, चौहान, चदाणा, सोलंकी, परमार आदि वीरवरों से लेकर चारणों और आदिवासी वीरों ने भी इस सेना का जोरदार ढंग से मुकाबला किया। गोगुंदा की ओर से नागदा पहुंचने वाली घाटी में यह घमासान हुआ। लहराती शमशीरों की लपलपाती जबानों ने एक दूसरे के खून का स्‍वाद चखा और जो धरती बचपन से ही सराहा होकर मां कहलाती है, उसने जवान ख्‍ाून को अपने सीने पर बहते हुए झेला।
इसमें जैत्रसिह को एक शिकंजे के तहत घेर लिया गया किंतु उसको योद्धाओं ने महफूज रखा और पास ही नागदा के एक साधारण से घर में छिपा दिया। अल्‍तमिश का गुस्‍सा शांत नहीं हुआ। उसने आगे बढ़कर नागदा को घेर लिया। एक-एक घर की तलाशी ली गई। हर घर सूनसान था। उसने एक एक घर फूंकने का आहवान किया। यही नहीं, नागदा के सुंदरतम एक एक मंदिर को बुरी तरह तोड़ा गया। हर सैनिक ने अपनी खीज का बदला एक एक बुत से लिया। सभी को इस तरह तोड़ा-फोड़ा क‍ि बाद में जोड़ा न जा सके...। तभी तो यहां कहावत रही है- 'अल्‍त्‍या रे मस मूरताऊं बाथ्‍यां आवै, जैत नीं पावै तो नागदो हलगावै।' इस पंक्ति मात्र चिरस्‍थायी श्रुति ने भूतालाघाटी के पूरे युद्ध का विवरण अपने अंक में समा रखा है।
इस घमासान में किस-किस हुतात्‍मा के लिए तर्पण किया जाता। जब पूरा ही नगर जल गया था। घर-घर मरघट था। चौदहवीं सदी में इस नगर को एक परंपरा के तरह जलमग्‍न करके सभी हुतात्‍माओं के स्‍थानों को स्‍थायी रूप से जलांजलि देने के लिए बाघेला तालाब बनवाया गया..।
(इस युद्ध की स्‍मृतियां तक नहीं बची हैं, इतिहास में एकाध पंक्तिभर मिलती है, मगर यह बहुत खास तरह का संघर्ष था। भूताला के पास ही एक गांव में पांच साल तक सेवारत रहने के दौरान मेरा ध्‍यान इस युद्ध की ओर गया था और करीब बीस साल तक अध्‍ययन- शोधन के बाद, पहली बार इस युद्ध का विवरण का कुछ अंश लिखने का प्रयास किया है... मित्राें को संभवत: रुचिकर लगेगा...)
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* चीरवा अभिलेख - वियाना ऑरियंटल जर्नल, जिल्‍द 21
* इंडियन एेटीक्‍वेरी, जिल्‍द 27
* नांदेशमा अभिलेख - राजस्‍थान के प्राचीन अभिलेख (श्रीकृष्‍ण 'जुगनू')
पोस्ट साभार-- श्रीकृष्ण 'जुगनू' जी

लेफ्टिनेंट जनरल हणुतसिंह राठौड़

Rajputana Soch  राजपूताना सोच और क्षत्रिय इतिहास's photo.सैनिक संत के नाम से प्रसिद्ध महावीर चक्र विजेता सेवानिवृत्त लेफ्टिनेंट जनरल हणुतसिंह राठौड़ (जसोल) जी


सन् 1971 के भारत पाकिस्तान युद्ध में महावीर चक्र विजेता जिन्हाेने अद्वितीय रणनीती से पाकिस्तान के 48 से अधिक टेंकाे काे नेस्तानाबूद कर दिया था।इस युद्ध के कारण ही भारतीय सेना लाहौर को घेरने में सफल हुई थी जिससे 1971 की लड़ाई में भारत पाकिस्तान के शकरगढ़ क्षेत्र में विजयी हुआ था।
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जीवन परिचय-----
हणूत सिंह राठौड़ जसोल रावल मल्लिनाथ के वंशज थे,उनका वंश राठौड़ो के वरिष्ठ शाखा महेचा राठौड़ है,उनके पिता lt .col अर्जुन सिंह जी थे,इनका जन्म 6 जुलाई 1933 को राजस्थान के बाड़मेर की जसोल रियासत में हुआ था। स्कूली शिक्षा दून के कर्नल ब्राउन स्कूल से हुई थी।
इन्हे 28 दिसंबर 1952 को भारतीय सेना में कमीशन प्राप्त हुआ। आज़ाद भारत के 12 महानतम जनरलाें में शामिल थे। और भारतीय फाैज में जनरल हनुत के नाम से famous जनरल साब अभी देहरादून में रह रहे थे।वे पूर्व केन्द्रीय मंत्री जसवंतसिंहजी के सगे चचेरे भाई थे।
Rajputana Soch  राजपूताना सोच और क्षत्रिय इतिहास's photo. सन् 1971 के भारत पाकिस्तान युद्ध में इन्हे असाधारण वीरता के लिए महावीर चक्र प्रदान किया गया था,वे FLAG HISTORY OF ARMOURED CORP के अधिकृत लेखक थे.
इन्हे परम विशिस्ट सेवा मेडल PVSM भी दिया गया था,
31 जुलाई 1991 में वे रिटायर हो गए।
1991 में सेना से रिटायर होने के बाद जनरल हणुत सिंह दून में रह रहे थे। पिछले कई साल से वह मौन साधना में थे। वह आजीवन ब्रह्मचारी थे।
ये जीवन भर अविवाहित रहे और सती माता रूपकंवर बाला गांव के परम भक्तों में थे, इन्हें सेना और सामाजिक जीवन में ‘संत जनरल’ के नाम से जाना जाता था। इनके देश और विदेश में हजारों अनुयायी हैं।जनरल हनुतसिंह आध्यात्मिक साधना में लीन रहते थे।
Rajputana Soch  राजपूताना सोच और क्षत्रिय इतिहास's photo. स्व. हणुतसिंह जी (लेफ्टि. जनरल) का तेजस्वता से युक्त व्यक्तित्व हमारे लिए प्रेरणादायक है। इन्होने क्षत्रिय समाज को पुरुषार्थी जीवन जीकर दिखलाया है। इनके कर्तव्य कर्मों के चर्चे सेना में चर्चित है।
प्रधानमन्त्री इंदिरा गांधी को इनके घर जाकर इनसे मिलने की प्रतीक्षा करनी पड़ी थी------
जब इंदिरा जी उनके निवास पर बिना पूर्व कार्यकृम के मिलने आई तो हनूतसिंह जी ईश्वर की साधना में लीन थे।
जिस पर इंदिरा गांधी खिन्न हो गई। तब उन्होंने उस समय के तत्कालीन आर्मी चीफ को शिकायत की, जिस पर आर्मी चीफ ने इंदिरा गांधी की उपस्थिति में स्व. हणुतसिंह जी (लेफ्टि. जनरल) जी को बुलाया और प्रधानमन्त्री इंदिरा गांधी को कहा कि मैं इनसे कुछ कह नहीं सकता हूँ,अब आप अपनी नाराजगी की जानकारी स्वयं ही इनसे कर लें।
जवाब में स्व. हणुतसिंह जी (लेफ्टि. जनरल) जी ने इंदिरा गांधी से कहा कि"आप मेरे घर मिलने आई। तब आपने मुझसे पहले कोई अनुमति नहीं ली और फिर आप कुछ देर प्रतीक्षा भी नहीं कर सकी। यहां आपका कार्यालय है, वहां मेरा घर है और मेरे घर में मेरा अनुशासन चलता है।
अब आप पूछ सकते है कि आपको क्या जानकारी चाहिए""
स्व. हणुतसिंह (लेफ्टि. जनरल) जी का व्यक्तित्व इतना प्रभावी था कि इस पर इंदिरा गांधी शांत हो गई।
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1971 का भारत पाकिस्तान युद्ध-------
लेफिनेंट कर्नल(तत्कालीन) हणूत सिंह राठौड़ ने इस युद्ध में 47 इन्फेंट्री ब्रिगेड/17 पूना होर्स रेजिमेंट को कमांड किया था,इस युद्ध में जिन क्षेत्रों में सबसे घमासान युद्ध हुआ था उनमे शकरगढ़ भी एक था.
लेफिनेंट कर्नल(तत्कालीन) हणूत सिंह की 47 इन्फेंट्री ब्रिगेड/17 पूना होर्स रेजिमेंट को शकरगढ़ सेक्टर में बसन्तरा नदी के पास तैनात किया गया था, उन्होंने भारतीय सेना की 17 पूना हार्स रेजिमेंट को कमांड किया, जो एकमात्र ऐसी रेजीमेंट है जिसे दो परमवीर चक्र मिले। इस युद्ध में भारतीय सेना ने जनरल हणुत सिंह के नेतृत्व में पाकिस्तान के 8 आर्म्ड ब्रिगेड को पूरी तरह से तबाह किया था।पाकिस्तान ने इस नदी में बहुत सी लैंड माइंस लगा रखी थी,
16 दिसंबर 1971 के दिन हणूत सिंह की कमांड में सेना ने नदी को सफलता पूर्वक पार किया,पाकिस्तान ने दो दिन लगातार टैंको से हमले किये,
लेफिनेंट कर्नल(तत्कालीन) हणूत सिंह ने अपनी सुरक्षा की परवाह किये बिना एक खतरनाक सेक्टर से दूसरे खतरनाक सेक्टर में जाकर सेना का नेतृत्व और मार्गदर्शन किया।
इस युद्ध में इनके नेतृत्व में भारतीय सेना ने पाकिस्तान के 48 टैंक ध्वस्त कर दिए,और पाकिस्तान का आक्रमण विफल कर दिया।
उनके नेतृत्व में ही इसी युद्ध में उनकी यूनिट के असीम खेत्रपाल को सबसे कम आयु में परमवीर चक्र मिला था.
पाकिस्तान ने भी माना लोहा-------------------
बसंतारा युद्ध में पाकिस्तानी सेना ने भी उनका लोहा माना। इस बहादुरी के लिए दुश्मन सेना पाकिस्तान ने भी 17 पूना हार्स रेजीमेंट को ‘फक्र ए हिंद’ की उपाधि से नवाजा था। जनरल हणुत सिंह असाधारण प्रतिभा के धनी थे।
ईश्वर भक्ति इतनी थी कि कहते हैँ हनुतसिंह जी युद्ध क्षेत्र में भी कई घण्टो तक साधना में बैठे रहते थे।
बसन्तरा नदी के चारो और पाकिस्तान ने लैंड माइंस बिछा रखे थे,जिनकी चपेट में आकर सैंकड़ो भारतीय सैनिको की जान जा सकती थी और इस नदी पर पुल बनाया जाना असम्भव लग रहा था।पर लाहौर पर घेरा डालने को इस नदी को पार करना बेहद जरूरी था।
कमांडर हणुतसिंह ने जान की परवाह न करते हुए आगे आगे चलकर भारतीय सैनिक टुकड़ी को अपने पीछे रखते हुए भूमिगत लैंडमाइंस बचाते हुए आगे ले गए थे।
युद्ध के बाद पाकिस्तान ने अपने लिखित कागजातों के माध्यम से यह जानना चाहा कि "वह कमाण्डर कौन था और इतनी बिछाई हुई लैंड माइंस के बीच से बिना विस्फोट हुए उस मार्ग से आगे कैसे बढ़ गया!!!!!!!!~????
भारत-पाकिस्तान की सेनाओं के कागजातों में यह सभी संवाद उल्लेख है।
उन्होंने आश्चर्यजनक वीरता, नेतृत्व और कर्तव्यपरायणता का परिचय दिया और इस विजय के फलस्वरूप हणूत सिंह को महावीर चक्र से सम्मानित किया गया.……
प्रोन्नति में सरकार द्वारा भेदभाव-----
बेदाग सर्विस रिकॉर्ड और हर प्रकार से योग्य,सर्वाधिक वरिष्ठ अधिकारी होते हुए भी इन्हें थलसेनाध्यक्ष पद पर प्रोन्नति नही दी गई।
"After General Sundharji, when General V.N. Sharma, who was also from the Armoured Corps, was appointed as COAS, Hanut was in all likelihood of being appointed as Army Commander but was sidelined. Having a faultless service record, there was no reason for Hanut not being considered suitable for command of a field army, though was not appointed. When Hanut was informed of his having been passed over by a junior, who conveyed his sorrow, his reply was "Why should you be sorry. It is the Army which should be sorry. If they don't want me, the loss is theirs".
हनूतसिंह को जानबूझकर आर्मी चीफ नही बनाया गया था।
इसी तरह सगत सिंह राठौड़ और ठाकुर नाथू सिंह के साथ अन्याय किया गया था।
वही सब बाद में जनरल वी के सिंह के साथ दोहराने का प्रयास किया गया।
(इतने वीरतापूर्ण कार्यो और वरिष्ठ होने के बावजूद अज्ञात कारणों से सेना में कई बार राजपूत आर्मी ऑफिसर को थल सेनाध्यक्ष नही बनाया गया)
पूर्व सेनाध्यक्ष जनरल वी के सिंह ने अपनी पुस्तक LEADERSHIP IN THE INDIAN ARMY
में हणूत सिंह जी के बारे में लिखा है कि.……
"Hanut will be remembered as one of the finest armour commanders of the indian army.His simplicity,courage,boldness,high sense of moral values and professionalism will always be a source of inspiration for generations of officers to come"
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दिनांक 11 अप्रैल को वीर सेनानायक लेफ्टिनेंट जनरल हणूत सिंह राठौड़(जसोल) जी का देहरादून के एक आश्रम में निधन हो गया,
कुर्सी पर ली समाधि-------
आश्रम में मौजूद अनुयायी बताते हैं कि "शुक्रवार सुबह वह ध्यान में बैठे और इसके बाद वह आंखें खोलकर उसी कुर्सी पर बैठे हैं। पिछले 24 घंटे में सिर्फ उनकी गर्दन झुकी है। जबकि सांस और नब्ज शनिवार सुबह से नहीं चल रही है"।
हणुतसिंह जी वैभवशाली राजसी खानदान से थे,आजीवन अविवाहित रहे,सेवानिवृति के बाद पूरी तरह ईश्वर साधना में लीन हो गए।
इस युग में ऐसे चरित्र!!!!!!!!!
विश्वास नही होता।
उन्हें सच्चे अर्थों को आधुनिक विश्वामित्र कहा जा सकता है।
स्वरगीय हणुतसिंह राठौड़ जी को कोटि कोटि नमन।
जय हिन्द,जय राजपूताना,जय क्षात्र धर्म
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सोर्स-----
1 -श्री राजेन्द्र सिंह जी राठौड़ बीदासर कृत राजपूतो की गौरव गाथा पृष्ठ संख्या 313 -316
2-जनरल वी के सिंह कृत "LEADERSHIP IN THE INDIAN ARMY"-sage publications new delhi.
3-ऐरावत सिंह जी http://veekay-militaryhistory.blogspot.in/…/biography-lieut…
4- http://bmrnewstrack.blogspot.in/2015/04/blog-post_239.html…
5- Maj Gen Raj Mehta. "A VISIONARY CAVALIER : Lt Gen Hanut Singh, PVSM, MVC". South Asia Defence & Strategic Review. Aakash Media. Retrieved 31 March 2014.
6- Singh, Lt. Gen. H. (1993). Fakhr-E-Hind: The Story of the Poona Horse. Agrim Publishers.
7- http://en.m.wikipedia.org/wiki/Hanut_Singh_Rathore




‎Rajput महाराव शेखा जी

Pundir/पुंडीर, क्षत्रिय राजपूत's photo.राव शेखा का जन्म आसोज सुदी विजयादशमी सं १४९० वि. में बरवाडा व नाण के स्वामी मोकल सिंहजी कछवाहा की रान...ी निरबाण जी के गर्भ से हुआ १२ वर्ष की छोटी आयु में इनके पिता का स्वर्गवास होने के उपरांत राव शेखा वि. सं. १५०२ में बरवाडा व नाण के २४ गावों की जागीर के उतराधिकारी हुए |
आमेर नरेश इनके पाटवी राजा थे राव शेखा अपनी युवावस्था में ही आस पास के पड़ोसी राज्यों पर आक्रमण कर अपनी सीमा विस्तार करने में लग गए और अपने पैत्रिक राज्य आमेर के बराबर ३६० गावों पर अधिकार कर एक नए स्वतंत्र कछवाह राज्य की स्थापना की |
अपनी स्वतंत्रता के लिए राव शेखा जी को आमेर नरेश रजा चंद्रसेन जी से जो शेखा जी से अधिक शक्तिशाली थे छः लड़ाईयां लड़नी पड़ी और अंत में विजय शेखाजी की ही हुई,अन्तिम लड़ाई मै समझोता कर आमेर नरेश चंद्रसेन ने राव शेखा को स्वतंत्र शासक मान ही लिया | राव शेखा ने अमरसर नगर बसाया , शिखरगढ़ , नाण का किला,अमरगढ़,जगन्नाथ जी का मन्दिर आदि का निर्माण कराया जो आज भी उस वीर पुरूष की याद दिलाते है |
राव शेखा जहाँ वीर,साहसी व पराक्रमी थे वहीं वे धार्मिक सहिष्णुता के पुजारी थे उन्होंने १२०० पन्नी पठानों को आजीविका के लिए जागिरें व अपनी सेना मै भरती करके हिन्दूस्थान में सर्वप्रथम धर्मनिरपेक्षता का परिचय दिया | उनके राज्य में सूअर का शिकार व खाने पर पाबंदी थी तो वहीं पठानों के लिए गाय,मोर आदि मारने व खाने के लिए पाबन्दी थी |
राव शेखा दुष्टों व उदंडों के तो काल थे एक स्त्री की मान रक्षा के लिए अपने निकट सम्बन्धी गौड़ वाटी के गौड़ क्षत्रियों से उन्होंने ग्यारह लड़ाइयाँ लड़ी और पांच वर्ष के खुनी संघर्ष के बाद युद्ध भूमि में विजय के साथ ही एक वीर क्षत्रिय की भांति प्राण त्याग दिए |
राव शेखा की मृत्यु रलावता गाँव के दक्षिण में कुछ दूर पहाडी की तलहटी में अक्षय तृतीया वि.स.१५४५ में हुई जहाँ उनके स्मारक के रूप में एक छतरी बनी हुई है | जो आज भी उस महान वीर की गौरव गाथा स्मरण कराती है | राव शेखा अपने समय के प्रसिद्ध वीर.साहसी योद्धा व कुशल राजनिग्य शासक थे,युवा होने के पश्चात उनका सारा जीवन लड़ाइयाँ लड़ने में बीता |
और अंत भी युद्ध के मैदान में ही एक सच्चे वीर की भांति हुआ,अपने वंशजों के लिए विरासत में वे एक शक्तिशाली राजपूत-पठान सेना व विस्तृत स्वतंत्र राज्य छोड़ गए जिससे प्रेरणा व शक्ति ग्रहण करके उनके वीर वंशजों ने नए राज्यों की स्थापना की विजय परम्परा को अठारवीं शताब्दी तक जारी रखा,राव शेख ने अपना राज्य हाँसी दादरी,भिवानी तक बढ़ा दिया था | उनके नाम पर उनके वंशज शेखावत कहलाने लगे और शेखावातो द्वारा शासित भू-भाग शेखावाटी के नाम से प्रसिद्ध हुआ,इस प्रकार सूर्यवंशी कछवाहा क्षत्रियों में एक नई शाखा "शेखावत वंश"का आविर्भाव हुआ | राव शेखा जी की मृत्यु के बाद उनके सबसे छोटे पुत्र राव रायमल जी अमरसर की राजगद्दी पर बैठे जो पिता की भाँती ही वीर योद्धा व निपूण शासक थे |


साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर

===साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर को न्याय कब मिलेगा====
 साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर को बिना सबूतों के हिन्दू आतंकवादी होने के आरोप में 7 वर्ष से जेल में यातनाए दी जा रही हैं।
 -------------------- परिचय-------------
प्रज्ञा सिंह ठाकुर का जन्म मध्य प्रदेश के कछवाहाघर इलाके में ठाकुर चन्द्रपाल सिंह के घर हुआ था,ये राजावत(कुशवाहा,कछवाहा)राजपूत परिवार में जन्मी थी,इनकी आयु लगभग 38 वर्ष है,बाद में इनके अभिभावक सूरत गुजरात आकर बस गये.
आध्यात्मिक जगत की और लगातार आकर्षित होने के कारण इन्होने भौतिक जगत को अलविदा करने का निश्चय कर लिया और दिनांक 30-01-2007 को संन्यासिन हो गयी.सन्यास ग्रहण करने के बाद साध्वी प्रज्ञा ने हिंदुत्व और राष्ट्रवाद की अलख जगानी शुरू कर दी और अपनी ओजस्वी वाणी से शीघ्र ही इनका नाम सारे देश में फ़ैल गया,उस समय कांग्रेस की अध्यक्ष सोनिया गांधी जिनके इशारे पर पूरी केंद्र सरकार घूमती थी और उनके नेतृत्व की यूपीए सरकार लगातार इस्लामिक आतंकवादियों के प्रति नरम रुख अपनाए हुए थी जिसकी साध्वी प्रज्ञा ने जमकर आलोचना की...... शीघ्र ही ये आलोचना मैडम सोनिया तक पहुँच गयी और तभी से साध्वी को सबक सिखाने की रणनीति बनाई जाने लगी.……साध्वी प्रज्ञा को झूठा फसाया गया-------
साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर को मालेगांव बम विस्फोट मामले में सरकार ने तब गिरफ्तार किया था जब सरकार ने नीति के आधार पर यह निर्णय कर लिया था कि आतंकवादी गतिविधियों में कुछ हिन्दुओं की संलिप्तता दिखाना भी जरुरी है।उस बम ब्लास्ट मे उनकी मोटर साईकल वहां पाई गई थी जबकी वो मोटर साईकिल बहुत पहले ही साध्वी जी द्वारा बेची जा चुकी थी और उसकी आर सी तक उस आदमी के नाम ट्रांसफर करवा चुकी थी
अभी तक आतंकवादी गतिविधियों में जितने लोग पकड़े जा रहे थे वे सब मुस्लिम ही थे। सोनिया कांग्रेस की सरकार को उस वक्त लगता था कि यदि आतंकवादी गतिविधियों से किसी तरह कुछ हिन्दुओं को भी पकड़ लिया जाये तो सरकार मुसलमानों के तुष्टीकरण के माध्यम से उनके वोट बैंक का लाभ उठा सकती है। इस नीति के पीछे ऐसा माना जाता है कि मोटे तौर पर दिग्विजय सिंह का दिमाग काम करता था।
विद्यार्थी परिषद से प्रज्ञा ठाकुर के संबंधों को भगवा बताने में दिग्विजय सिंह जैसे लोगों को कितनी देर लगती। अब प्रश्न केवल इतना ही था कि प्रज्ञा ठाकुर को किस अपराध के अन्तर्गत गिरफ्तार किया जाये?
2006 और 2008 में महाराष्ट्र के मालेगांव में बम विस्फोट हुए थे। उनमें शामिल लोग गिरफ्तार भी हो चुके थे। लेकिन जांच एजेंसियों को तो अब सरकार द्वारा कल्पित भगवा आतंकवाद के सिध्दांत को स्थापित करना था, इसलिये कुछ अति उत्साही पुलिस वालों ने प्रज्ञा ठाकुर को भी मालेगांव के बम विस्फोट में ही लपेट दिया और अक्तूबर 2008 में उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया। प्रज्ञा को सामान्य कानूनी सहायता भी न मिल सके इसके लिये उस पर मकोका अधिनियम की विभिन्न धाराएं आरोपित कर दी गई।इस नीच काम में महाराष्ट्र के शरद पवार जैसे नेताओं ने भी अपने विश्वस्त पुलिस अधिकारीयों के माध्यम से सोनिया का भरपूर साथ दिया …

शारीरिक व मानसिक यातनाएं------------
जेल में साध्वी को शारीरिक व मानसिक यातनाएं दी गई। उनकी केवल पिटाई ही नहीं कि गई बल्कि उन पर फब्तियां कसी गई। उन्हें जबरन अंडा और मांसाहारी भोजन खिलाया गया और पीट पीट कर पोर्न फिल्मे देखने को विवश किया गया,बेहोशी की हालत में इनके कपड़े तक बदले गए,जब साध्वी जी की माता बिमार हुई तो उनको साध्वी जी से मिलने तक नही दिया इन सत्ता धारीयो ने क्यो? क्या संविधान मे ये लिखा हुआ है कि जेल मे रहने वालो को उनकी मरणासन माता पिता से नही मिलने दिए जाना चाहिए?
डराने धमकाने का जो सिलसिला चला, उसको तो भला क्या कहा जाये?
इन अत्याचारों से जेल में ही साध्वी प्रज्ञा ठाकुर को कैंसर के रोग ने घेर लिया। प्रज्ञा ठाकुर ने जमानत के लिये एक बार फिर आवेदन दिया। वे बाहर अपना कैंसर का इलाज करवाया चाहती थीं। लेकिन सरकार ने इस बार भी उनकी जमानत का जी जान से विरोध किया। उनकी जमानत नहीं हो सकी। इसे ताज्जुब ही कहना होगा कि जिन राजनैतिक दलों ने जाने-माने आतंकवादी मौलाना मदनी को जेल से छुड़ाने के लिये केरल विधानसभा में बाकायदा एक प्रस्ताव पारित कर अपने पंथ निरपेक्ष होने का राजनैतिक लाभ उठाने का घटिया प्रयास किया वही राजनैतिक दल साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर को फांसी पर लटका देने के लिये दिल्ली के जंतर-मंतर पर धरना प्रदर्शन करते हैं।यहाँ तक कि एक बार कोर्ट को भी कहना पड़ा कि क्या सरकार साध्वी को जिन्दा भी देखना चाहती है या नहीं???????????
सोनिया कांग्रेस का षडयंत्र--------
लेकिन एक दिक्कत अभी भी बाकी थी। एक ही अपराध और एक ही घटना। उसके लिये पुलिस ने दो अलग-अलग केस तैयार कर लिये। एक साथ ही दो अलग-अलग समूहों को दोषी ठहरा दिया। पुलिस की इस हरकत से विस्फोट में संलिप्तता का आरोप भुगत रहे तथाकथित आतंकवादियों को बचाव का एक ठेस रास्ता उपलब्ध हो गया। इन विस्फोटों के लिये पकड़े गये मुस्लिम युवकों ने अदालत में जमानत की अर्जी लगा दी।पुलिस की जांच यह कहती है कि इन विस्फोटों के लिये मुसलमान दोषी हैं तो प्रज्ञा ठाकुर को क्यों पकड़ा हुआ है? लेकिन जेल में बन्द मुसलमानों ने तो यही तर्क दिया कि पुलिस ने स्वयं स्वीकार कर लिया है कि मालेगांव विस्फोट के लिये प्रज्ञा और उनके साथी जिम्मेदार हैं, इसलिये उन्हें कम जमानत पर छोड़ दिया जाय।
लेकिन पुलिस तो जानती थी कि प्रज्ञा ठाकुर की गिरफ्तारी तो मात्र सोनिया कांग्रेस के दिग्विजय सिंह बिग्रेड की राजनीतिक पहल रंग भरने के मात्र के लिए उसका माले गांव के विस्फोट से लेना देना नहीं है। इसलिए पुलिस ने इन मुस्लिम आतंकवादियों की जमानत की अर्जी का डट कर विरोध किया। विधि के जानकार लोगों को तभी ज्ञात हो गया था कि सोनिया कांग्रेस के मुस्लिम तुष्टीकरण के अभियान को पूरा करने के लिये साध्वी प्रज्ञा ठाकुर की बलि चढ़ाई जा रही है।उसका बम विस्फोट से कुछ लेना देना नहीं है।
प्रज्ञा सिंह ठाकुर को बिना किसी अपराध के भी जेल में पड़े हुये लगभग छह साल हो गए हैं। प्रश्न है कि बिना मुकदमा चलाये हुये किसी हिन्दू स्त्री को, केवल इसलिये कि मुसलमान खुश हो जायेंगे, भला कितनी देर जेल में बंद रखा जा सकता है? पुलिस अपनी तोता-बिल्ली की कहानी को और कितना लम्बा खींच सकती है? लेकिन ताज्जुब है अब पुलिस ने जब देखा कि प्रज्ञा सिंह के खिलाफ और किसी भी अपराध में कोई सबूत नहीं मिला तो उसने सुनील जोशी की हत्या के मामले में प्रज्ञा सिंह ठाकुर को जोड़ना शुरू कर दिया।
साध्वी प्रज्ञा ठाकुर को जेल में पड़े हुये छह साल पूरे हो गये हैं। राष्ट्रीय जांच एजेंसी उस पर कोई केस नहीं बना सकी। उसके खिलाफ तमाम हथकंडे इस्तेमाल करने के बावजूद कोई प्रमाण नहीं जुटा सकी। एक स्टेज पर तो राष्ट्रीय जांच एजेंसी को कहना ही पड़ा कि साध्वी के खिलाफ पर्याप्त सबूत न होने के कारण इन पर लगे आरोप निरस्त कर देने चाहिये। यदि सही प्रकार से कहा जाये तो प्रज्ञा ठाकुर का केस अभी प्रारंभ ही नहीं हुआ है। पर सरकार उसकी जमानत की अर्जी का डट कर विरोध करती है।
किस्सा यह है कि जांच एजेंसियों ने उस वक्त सोनिया कांग्रेस को खुश करने के लिये और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को बदनाम करने के लिए प्रज्ञा सिंह ठाकुर को पकड़ लिया और अपनी कारगुजारी दिखाने के लिये उसके इर्द-गिर्द कपोल कल्पित कथाओं का ताना-बाना भी बुन लिया। पुलिस अपने आप को निर्दोष सिध्द करने के लिये अभी भी प्रज्ञा सिंह के इर्द गिर्द झूठ का ताना-बाना बुनती ही जा रही है। कैंसर की मरीज प्रज्ञा ठाकुर क्या दिग्विजय सिंह,मैडम सोनिया के बुने हुये फरेब के इस जाल से निकल पायेगी या उसी में उलझी रह कर दम तोड़ देगी?
इस प्रश्न का उत्तर तो भविष्य ही देगा, लेकिन एक साध्वी के साथ किये इस जुल्म की जिम्मेदारी तो आखिर किसी न किसी को लेनी ही होगी।
मोदी सरकार की उदासीनता----------
जब मोदी सरकार आई तो सबको लगा क़ि चलो अब हिंदुत्ववादी सरकार आई है तो साध्वी जी को न्याय मिलेगा और उन्हें फ़साने वालो को कड़ा दंड मिलेगा,मगर हाय दुर्भाग्य,मोदी जी भी साध्वी को न्याय नही मिल पाया है,
अब जाकर सुप्रीम कोर्ट ने उनकी जमानत याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा है कि साध्वी के खिलाफ कोई भी आरोप सिद्ध नही होता,पर तभी केंद्र सरकार के अधीन एनआईए ने फिर जमानत का विरोध कर दिया,और तब सुप्रीम कोर्ट ने भी इनकी याचिका ख़ारिज कर दी और इन्हे निचली कोर्ट में अपील करने को कहा.……
साध्वी जी कैंसर जैसी बिमारी से जूझ रही है और उन्होने इस कथित हिन्दुवा सरकार को पत्र लिखकर उन पर जेल मे हो रहे अत्याचारो को लिखित मे पीएम तक पहुंचाया कि कैसे जेल मे उनको पुलिस वाले जबरदस्ती उनके मुंह मे मांस ठूसते है और कैसे वो उनके कपडे भी सार्वजनिकता से बदलते है उनको गंदा पानी पीने पर मजबूर करते है जबकी उन्होने कोई अपराध तक भी नही किया?तब भी मोदी सरकार ने उनकी कोई मदद नही की.…

पर ये सच है कि इस देश मे राजपूतो को सिर्फ राजनीती मे एक ट्रंप कार्ड की तरह इस्तेमाल किया जाने लगा है जहां कही भी बदनामी का डर हो वहां राजपूतो को आगे कर दिया जाता है चाहे वो वी.के.सिंह जी का पाकिस्तानी दिवस मे जाना हो या कांधार मे आताकंवादीयो को छोडकर जाने के लिए जसवंंत सिंह जी हो और तो और इस देश की गंदी राजनीती ने हमारी बहन साध्वी प्रज्ञा ठाकुर जी को भी नही बख्शा ,
चुनाव से पहले बीजेपी ने वही अपना हिन्दुत्व का राग गाया और साध्वीप्रज्ञा जी पर जेल मे हो रहे अत्याचारो को बखान करके लोगो की भावनाए ऐसे जगाई जैसे की इनकी सरकार बनते ही दूसरे दिन साध्वी जी को जेल से रिहा करके उचित सम्मान दिया जाएगा मगर अफसोस फिर से सरकार ने धोखा ही दिया जैसे पहले से ही हमारे साथ होता आया है,जब सरकार को पता है कि मालेगांव बम बलास्ट मे साध्वी जी निर्दोष है तो क्यो उनको अभी तक बाहर नही निकाला गया? चलो पहले तो बीजेपी के पास बहाना था कि महाराष्ट्र मे उनकी सरकार नही है पर अब तो वहां इन कथित ठेकेदारो की ही सरकार है तो क्यो ये बाहर नही निकाल रहे ?
इसका कारण ये है कि ये सरकार हमेशा हिन्दुओ की धार्मिक भावनाओ को ढाल बनाकर सत्ता मे आती है पहले इन्होने राम मंदिर का मुद्दा उठाकर हिन्दुओ की वोटो को लूटा और सरकार बनाई क्या इन्होने राम मंदिर बनाया था?
मोदी की एनआईए ने प्रज्ञा ठाकुर की जमानत का विरोध किया और वहीँ बीजेपी अध्यक्ष और अमित शाह को क्लीन चिट देने में देर नही लगाइ.कोर्ट से हर दो महीने बाद संजय दत्त को पैरोल मिल जाती है,सलमान खान को आज  सजा मिल पाई.…
way-for-bail-for-most-of-the-accused-in-2008-malegaon-blasts-case

दुर्गा दस राठौड़-देश का पूर्ण इस्लामीकरण करने की औरंगजेब की साजिश को विफल

Rajputana Soch  राजपूताना सोच और क्षत्रिय इतिहास's photo. देश का पूर्ण इस्लामीकरण करने की औरंगजेब की साजिश को विफल कर हिन्दू धर्म की रक्षा की थी.....उस महान यौद्धा का नाम है वीर दुर्गादास राठौर...
समय - सोहलवीं - सतरवी शताब्दी
चित्र - वीर शिरोमणि दुर्गा दस राठौड़
स्थान - मारवाड़ राज्य
वीर दुर्गादास राठौड का जन्म मारवाड़ में करनोत ठाकुर आसकरण जी के घर सं. 1695 श्रावन शुक्ला चतुर्दसी को हुआ था। आसकरण जी मारवाड़ राज्य की सेना में जोधपुर नरेश महाराजा जसवंत सिंह जी की सेवा में थे ।अपने पिता की भांति बालक दुर्गादास में भी वीरता कूट कूट कर भरी थी,एक बार जोधपुर राज्य की सेना के ऊंटों को चराते हुए राईके (ऊंटों के चरवाहे) आसकरण जी के खेतों में घुस गए, बालक दुर्गादास के विरोध करने पर भी चरवाहों ने कोई ध्यान नहीं दिया तो वीर युवा दुर्गादास का खून खोल उठा और तलवार निकाल कर झट से ऊंट की गर्दन उड़ा दी,इसकी खबर जब महाराज जसवंत सिंह जी के पास पहुंची तो वे उस वीर बालक को देखने के लिए उतावले हो उठे व अपने सेनिकों को दुर्गादास को लेन का हुक्म दिया ।अपने दरबार में महाराज उस वीर बालक की निडरता व निर्भीकता देख अचंभित रह गए,आस्करण जी ने अपने पुत्र को इतना बड़ा अपराध निर्भीकता से स्वीकारते देखा तो वे सकपका गए। परिचय पूछने पर महाराज को मालूम हुवा की यह आस्करण जी का पुत्र है,तो महाराज ने दुर्गादास को अपने पास बुला कर पीठ थपथपाई और इनाम तलवार भेंट कर अपनी सेना में भर्ती कर लिया।
उस समय महाराजा जसवंत सिंह जी दिल्ली के मुग़ल बादशाह औरंगजेब की सेना में प्रधान सेनापति थे,फिर भी औरंगजेब की नियत जोधपुर राज्य के लिए अच्छी नहीं थी और वह हमेशा जोधपुर हड़पने के लिए मौके की तलाश में रहता था ।सं. 1731 में गुजरात में मुग़ल सल्तनत के खिलाफ विद्रोह को दबाने हेतु जसवंत सिंह जी को भेजा गया,इस विद्रोह को दबाने के बाद महाराजा जसवंत सिंह जी काबुल में पठानों के विद्रोह को दबाने हेतु चल दिए और दुर्गादास की सहायता से पठानों का विद्रोह शांत करने के साथ ही वीर गति को प्राप्त हो गए । उस समय उनके कोई पुत्र नहीं था और उनकी दोनों रानियाँ गर्भवती थी,दोनों ने एक एक पुत्र को जनम दिया,एक पुत्र की रास्ते में ही मौत हो गयी और दुसरे पुत्र अजित सिंह को रास्ते का कांटा समझ कर ओरंग्जेब ने अजित सिंह की हत्या की ठान ली,ओरंग्जेब की इस कुनियत को स्वामी भक्त दुर्गादास ने भांप लिया और मुकंदास की सहायता से स्वांग रचाकर अजित सिंह को दिल्ली से निकाल लाये व अजित सिंह की लालन पालन की समुचित व्यवस्था करने के साथ जोधपुर में गदी के लिए होने वाले ओरंग्जेब संचालित षड्यंत्रों के खिलाफ लोहा लेते अपने कर्तव्य पथ पर बदते रहे।
अजित सिंह के बड़े होने के बाद गद्दी पर बैठाने तक वीर दुर्गादास को जोधपुर राज्य की एकता व स्वतंत्रता के लिए दर दर की ठोकरें खानी पड़ी,ओरंग्जेब का बल व लालच दुर्गादास को नहीं डिगा सका जोधपुर की आजादी के लिए दुर्गादास ने कोई पच्चीस सालों तक सघर्ष किया,लेकिन जीवन के अन्तिम दिनों में दुर्गादास को मारवाड़ छोड़ना पड़ा । महाराज अजित सिंह के कुछ लोगों ने दुर्गादास के खिलाफ कान भर दिए थे जिससे महाराज दुर्गादास से अनमने रहने लगे वस्तु स्तिथि को भांप कर दुर्गादास ने मारवाड़ राज्य छोड़ना ही उचित समझा ।और वे मारवाड़ छोड़ कर उज्जेन चले गए वही शिप्रा नदी के किनारे उन्होने अपने जीवन के अन्तिम दिन गुजारे व वहीं उनका स्वर्गवास हुवा ।दुर्गादास हमारी आने वाली पिडियों के लिए वीरता, देशप्रेम, बलिदान व स्वामिभक्ति के प्रेरणा व आदर्श बने रहेंगे ।
१-मायाड ऐडा पुत जाण, जेड़ा दुर्गादास । भार मुंडासा धामियो, बिन थम्ब आकाश ।
२-घर घोड़ों, खग कामनी, हियो हाथ निज मीत सेलां बाटी सेकणी, श्याम धरम रण नीत ।
वीर दुर्गादास का निधन 22 नवम्बर, सन् 1718 में हुवा था इनका अन्तिम संस्कार शिप्रा नदी के तट पर किया गया था ।
"उनको न मुगलों का धन विचलित कर सका और न ही मुग़ल शक्ति उनके दृढ हृदये को पीछे हटा सकी। वह एक वीर था जिसमे राजपूती साहस व मुग़ल मंत्री सी कूटनीति थी "
जिसने इस देश का पूर्ण इस्लामीकरण करने की औरंगजेब की साजिश को विफल कर हिन्दू धर्म की रक्षा की थी.....उस महान यौद्धा का नाम है वीर दुर्गादास राठौर...
इसी वीर दुर्गादास राठौर के बारे में रामा जाट ने कहा था कि "धम्मक धम्मक ढोल बाजे दे दे ठोर नगारां की,, जो आसे के घर दुर्गा नहीं होतो,सुन्नत हो जाती सारां की.......
आज भी मारवाड़ के गाँवों में लोग वीर दुर्गादास को याद करते है कि
“माई ऐहा पूत जण जेहा दुर्गादास, बांध मरुधरा राखियो बिन खंभा आकाश”
हिंदुत्व की रक्षा के लिए उनका स्वयं का कथन
"रुक बल एण हिन्दू धर्म राखियों"
अर्थात हिन्दू धर्म की रक्षा मैंने भाले की नोक से की............
इनके बारे में कहा जाता है कि इन्होने सारी उम्र घोड़े की पीठ पर बैठकर बिता दी।
अपनी कूटनीति से इन्होने ओरंगजेब के पुत्र अकबर को अपनी और मिलाकर,राजपूताने और महाराष्ट्र की सभी हिन्दू शक्तियों को जोडकर ओरंगजेब की रातो की नींद छीन ली थी।और हिंदुत्व की रक्षा की थी।
उनके बारे में इतिहासकार कर्नल जेम्स टॉड ने कहा था कि .....
"उनको न मुगलों का धन विचलित कर सका और न ही मुगलों की शक्ति उनके दृढ निश्चय को पीछे हटा सकी,बल्कि वो ऐसा वीर था जिसमे राजपूती साहस और कूटनीति मिश्रित थी".
ये निर्विवाद सत्य है कि अगर उस दौर में वीर दुर्गादास राठौर,छत्रपति शिवाजी,वीर गोकुल,गुरु गोविन्द सिंह,बंदा सिंह बहादुर जैसे शूरवीर पैदा नहीं होते तो पुरे मध्य एशिया,ईरान की तरह भारत का पूर्ण इस्लामीकरण हो जाता और हिन्दू धर्म का नामोनिशान ही मिट जाता............
28 नवम्बर 1678 को अफगानिस्तान के जमरूद नामक सैनिक ठिकाने पर जोधपुर के महाराजा जसवंतसिंह का निधन हो गया था उनके निधन के समय उनके साथ रह रही दो रानियाँ गर्भवती थी इसलिए वीर शिरोमणि दुर्गादास सहित जोधपुर राज्य के अन्य सरदारों ने इन रानियों को महाराजा के पार्थिव शरीर के साथ सती होने से रोक लिया | और इन गर्भवती रानियों को सैनिक चौकी से लाहौर ले आया गया जहाँ इन दोनों रानियों ने 19 फरवरी 1679 को एक एक पुत्र को जन्म दिया,बड़े राजकुमार नाम अजीतसिंह व छोटे का दलथंभन रखा गया
ये वही वीर दुर्गा दास राठौड़ जो जोधपुर के महाराजा को औरंगज़ेब के चुंगल ले निकल कर लाये थे जब जोधपुर महाराजा अजित सिंह गर्भ में थे उनके पिता की मुर्त्यु हो चुकी थी तब औरंगज़ेब उन्हें अपने संरक्षण में दिल्ली दरबार ले गया था उस वक़्त वीर दुर्गा दास राठौड़ चार सो चुने हुए राजपूत वीरो को लेकर दिल्ली गए और युद्ध में मुगलो को चकमा देकर महाराजा को मारवाड़ ले आये.....
उसी समय बलुन्दा के मोहकमसिंह मेड़तिया की रानी बाघेली भी अपनी नवजात शिशु राजकुमारी के साथ दिल्ली में मौजूद थी वह एक छोटे सैनिक दल से हरिद्वार की यात्रा से आते समय दिल्ली में ठहरी हुई थी | उसने राजकुमार अजीतसिंह को बचाने के लिए राजकुमार को अपनी राजकुमारी से बदल लिया और राजकुमार को राजकुमारी के कपड़ों में छिपाकर खिंची मुकंददास व कुंवर हरीसिंह के साथ दिल्ली से निकालकर बलुन्दा ले आई | यह कार्य इतने गोपनीय तरीके से किया गया कि रानी ,दुर्गादास,ठाकुर मोहकम सिंह,खिंची मुकंदास,कु.हरिसिघ के अलावा किसी को कानों कान भनक तक नहीं लगी यही नहीं रानी ने अपनी दासियों तक को इसकी भनक नहीं लगने दी कि राजकुमारी के वेशभूषा में जोधपुर के राजकुमार अजीतसिंह का लालन पालन हो रहा है |
छ:माह तक रानी राजकुमार को खुद ही अपना दूध पिलाती,नहलाती व कपडे पहनाती ताकि किसी को पता न चले पर एक दिन राजकुमार को कपड़े पहनाते एक दासी ने देख लिया और उसने यह बात दूसरी रानियों को बता दी,अत: अब बलुन्दा का किला राजकुमार की सुरक्षा के लिए उचित न जानकार रानी बाघेली ने मायके जाने का बहाना कर खिंची मुक्न्दास व कु.हरिसिंह की सहायता से राजकुमार को लेकर सिरोही के कालिंद्री गाँव में अपने एक परिचित व निष्टावान जयदेव नामक पुष्करणा ब्रह्मण के घर ले आई व राजकुमार को लालन-पालन के लिए उसे सौंपा जहाँ उसकी (जयदेव)की पत्नी ने अपना दूध पिलाकर जोधपुर के उतराधिकारी राजकुमार को बड़ा किया |
((वीर दुर्गादास राठौड़ के सिक्के और पोस्ट स्टाम्प भारत सरकार पहले ही जारी कर चुकी है ))