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Saturday, September 10, 2016

शाहजहाँ और मुमताज़ की प्रेमकहानी से जुड़ी कुछ सच्चाई


आगरा के ताजमहल को शाहजहाँ और मुमताज की प्रेम कहानी का प्रतीक कहा जाता है.

लेकिन शाहजहाँ और मुमताज की प्रेम कहानी को इतिहासकार शुरू के नकारते आयें हैं. शाहजहाँ और मुमताज की कोई प्रेम कहानी नहीं थी, बल्कि इनके जीवन की सच्चाई प्रेम कहानी से बिलकुल अलग थी

आइये जानते है शाहजहाँ और मुमताज़ की प्रेमकहानी से जुड़ी कुछ सच्चाई

मुमताज का असली नाम अर्जुमंद-बानो-बेगम” था, जो शाहजहाँ की पहली पत्नी नहीं थी.

मुमताज के अलावा शाहजहाँ की 6 और पत्नियां भी थी और इसके साथ उसके हरम में 8000 रखैलें भी थी.

मुमताज शाहजहाँ की चौथे नम्बर की पत्नी थी. मुमताज से पहले शाहजहाँ 3 शादियाँ कर चुका था. मुमताज से शादी करने के बाद 3 और लड़कियों से विवाह किया था.

मुमताज का विवाह शाहजहाँ से होने से पहले मुमताज शाहजहाँ के सूबेदार शेर अफगान खान की पत्नी थी. शाहजहाँ ने मुमताज का हरम कर विवाह किया.

मुमताज से विवाह करने के लिए शाहजहाँ ने मुमताज के पहले पति की हत्या करवा दी थी.

शाहजहाँ से विवाह के पहले मुमताज का शेर अफगान खान से एक बेटा भी था.

मुमताज शाहजहाँ के बीवियों में सबसे खुबसूरत नहीं थी. बल्कि उसकी पहली पत्नी इशरत बानो सबसे खुबसूरत थी.

मुमताज की मौत उसके 14 वे बच्चे के जन्म के बाद हुई थी.

मुमताज के मौत के तुरंत बाद शाहजहाँ ने मुमताज की बहन फरजाना से विवाह कर लिया था.

शाहजहाँ इतना ज्यादा वासना लिप्त था कि उसने अपनी स्वयं की बेटी जहाँआरा के साथ शारीरिक संबंध बना लिया था.

जहाँआरा मुमताज और शाहजहाँ की बड़ी पुत्री थी.

जहाँआरा की शक्ल मुमताज की हुबहू थी. इसलिए शाहजहाँ ने अपनी ही बेटी को अपनी रखैल बना लिया. और कभी भी जहाँआरा का कहीं और निकाह नहीं होने दिया.

शाहजहाँ ने अपने इस नाजायज संबंध को जायज दिखाने के लिए ईमाम और मौलवियों की सभा बुलाकर इस रिश्ते को जायज़ करार दिलवाया था .

शाहजहाँ की इस घटिया हरकत का समर्थन करते हुए ईमाम और मौलवियों ने कहा : – “माली को अपने द्वारा लगाये पेड़ का फल खाने का हक़ है…”.

जहाँआरा जब प्रेम संबंध में थी तो उसके प्रेमी के पकडे जाने पर शाहजहाँ ने उस लड़के को तंदूर में बंद कर जिन्दा जला दिया था.

ये थी शाहजहाँ और मुमताज़ की प्रेमकहानी की सच्चाई.

अगर दोनों में प्रेम होता तो शहजाहं की इतनी रखैलें न होती और शाहजहाँ मुमताज के मौत के बाद उसकी बहन से और अपनी बेटी से शारीरिक संबंध नहीं बनाता.

सच कहा जाए तो शाहजहाँ ना ही औरत की इज्ज़त करता था और ना ही मुमताज़ से प्रेम.

शाहजहाँ ने अपनी हवस और अहंकार के लिए मुमताज से विवाह किया था. शाहजहाँ और मुमताज़ की प्रेमकहानी झूठ के अलावा कुछ नहीं.

संदर्भ पढ़ें

Saturday, March 26, 2016

हमारे पूर्वजो पर हुए इस्लाम अत्याचार

हमारे पूर्वजो पर हुए अत्याचार

1- मैं नहीं भूला उस कामपिपासु अलाउद्दिन खिलजी को, जिससे अपने सतीतव को बचाने के लिये रानी पद्ममिनी 14000 महिलाओं के साथ जलते हुए अग्निकुंड में कूद गयी थीं।
2- मैं नहीं भूला उस जालिम औरंगजेब को, जिसने संभाजी महाराज को इस्लाम स्वीकारने से मना करने पर तडपा तडपा कर मारा था।
3- मैं नहीं भूला उस जिहादी टीपु सुल्तान को, जिसने एक एक दिन में लाखों हिंदुओ का नरसंहार किया था।
4- मैं नहीं भूला उस जल्लाद शाहजहाँ को, जिसने 14 बर्ष की एक ब्राह्मण बालिका के साथ अपने महल में जबरन बलात्कार किया
5- मैं नहीं भूला उस बर्बर बाबर को, जिसने मेरे श्री राम प्रभु का मंदिर तोड़ा और लाखों निर्दोष हिंदुओ का कत्ल किया था।
6- मैं नहीं भूला उस शैतान सिकन्दर लोदी को, जिसने नगरकोट के ज्वालामुखी मंदिर की माँ दुर्गा की मूर्ति के टुकड़े कर उन्हें कसाइयों को मांस तोलने के लिये दे दिया था।
7- मैं नहीं भूला उस धूर्त ख्वाजा मोइन्निद्दिन चिस्ती को, जिसने संयोगीता को इस्लाम कबूल ना करने पर नग्न कर मुगल सैनिको के सामने फेंक दिया था।
8- मैं नहीं भूला उस निर्दयी बजीर खान को, जिसने गुरूगोविंद सिंह के दोनों मासूम बच्चों फतेहसिंह और जोरावार को मात्र 7 साल और 5 बर्ष की उम्र में इस्लाम ना मानने पर दीवार में जिन्दा चुनवा दिया था।
9- मैं नहीं भूला उस जिहादी बजीर खान को, जिसने बन्दा बैरागी की चमडी को गर्म लोहे की सलाखों से तब तक जलाया जब तक उसकी हड्डियां ना दिखने लगी मगर उस बन्दा वैरागी ने इस्लाम स्वीकार नहीं किया
10- मैं नहीं भूला उस कसाई औरंगजेब को, जिसने पहले संभाजी महाराज की आँखों मे गरम लोहे के सलिए घुसाए, बाद में उन्हीं गरम सलियों से पुरे शरीर की चमडी उधेडी, फिर भी संभाजी ने हिंदू धर्म नही छोड़ा था।
11- मैं नहीं भूला उस नापाक अकबर को, जिसने हेमू के 72 वर्षीय स्वाभिमानी बुजुर्ग पिता के इस्लाम कबूल ना करने पर उसके सिर को धड़ से अलग करवा दिया था।
12- मैं नहीं भूला उस वहशी दरिंदे औरंगजेब को, जिने धर्मवीर भाई मतिदास के इस्लाम कबूल न करने पर बीच चौराहे पर आरे से चिरवा दिया था।

Wednesday, October 28, 2015

जहाँगीर, शाहजहाँ कामुकता and sex with his eldest daughter Jahan Ara


शाहजहाँ के हरम में ८००० रखैलें थीं जो उसे उसके पिता जहाँगीर से विरासत में मिली थी। उसने बाप की सम्पत्ति को और बढ़ाया। उसने हरम की महिलाओं की व्यापक छाँट की तथा बुढ़ियाओं को भगा कर और अन्य हिन्दू परिवारों से बलात लाकर हरम को बढ़ाता ही रहा।”(अकबर दी ग्रेट मुगल : वी स्मिथ, पृष्ठ ३५९)कहते हैं कि उन्हीं भगायी गयी महिलाओं से दिल्ली का रेडलाइट एरिया जी.बी. रोड गुलजार हुआ था और वहाँ इस धंधे की शुरूआत हुई थी।जबरन अगवा की हुई हिन्दू महिलाओं की यौन-गुलामी और यौन व्यापार को शाहजहाँ प्रश्रय देता था, और अक्सर अपने मंत्रियों और सम्बन्धियों को पुरस्कार स्वरूप अनेकों हिन्दू महिलाओं को


उपहार में दिया करता था।यह नर पशु, यौनाचार के प्रति इतना आकर्षित और उत्साही था, कि हिन्दू महिलाओं का मीना बाजार लगायाकरता था, यहाँ तक कि अपने महल में भी।सुप्रसिद्ध यूरोपीय यात्री फ्रांकोइस बर्नियर ने इस विषय में टिप्पणी की थी कि, ”महल मेंबार-बार लगने वाले मीना बाजार, जहाँ अगवा कर लाईहुई सैकड़ों हिन्दू महिलाओं का, क्रय-विक्रय हुआ करता था, राज्य द्वारा बड़ी संख्या में नाचने वाली लड़कियों की व्यवस्था, और नपुसंक बनाये गये सैकड़ों लड़कों की हरमों में उपस्थिती, शाहजहाँ की अनंत वासना के समाधान के लिए ही थी।(टे्रविल्स इन दी मुगल ऐम्पायर- फ्रान्कोइस बर्नियर :पुनः लिखित वी. स्मिथ, औक्सफोर्ड १९३४)शाहजहाँ को प्रेम की मिसाल के रूप पेश किया जाता रहा है और किया भी क्यों न जाए ,८००० औरतों को
पने हरम में रखने वाला अगर किसी एक में ज्यादा रुचि दिखाए तो वो उसका प्यार ही कहा जाएगा।आप यह जानकर हैरान हो जायेंगे कि मुमताज का नाम मुमताज महल था ही नहीं बल्कि उसका असली नाम”अर्जुमंद-बानो-बेगम” था।और तो और जिस शाहजहाँ और मुमताज के प्यार की इतनी डींगे हांकी जाती है वो शाहजहाँ की ना तो पहलीपत्नी थी ना ही आखिरी ।मुमताज शाहजहाँ की सात बीबियों में चौथी थी । इसका मतलब है कि शाहजहाँ ने मुमताज से पहले 3 शादियाँ कर रखी थी और, मुमताज से शादी करने के बाद भी उसका मन नहीं भरा तथा उसके बाद भी उस ने 3 शादियाँ और की यहाँ तक कि मुमताज के मरने के एक हफ्ते के अन्दर ही उसकी बहन फरजाना से शादी कर ली थी। जिसे उसने रखैल बना कर रखा हुआ था जिससे शादी करने से पहले ही शाहजहाँ को एक बेटा भी था।अगर शाहजहाँ को मुमताजसे इतना ही प्यार था तो मुमताज से शादी के बाद भी शाहजहाँ ने 3 और शादियाँ क्यों की….?????अब आप यह भी जान लो कि शाहजहाँ की सातों बीबियों में सबसे सुन्दर मुमताज नहीं बल्कि इशरत बानो थी जो कि उसकी पहली पत्नी थी ।उस से भी घिनौना तथ्य यह है कि शाहजहाँ से शादी करते समय मुमताज कोई कुंवारी लड़की नहीं थी बल्किवो शादीशुदा थी और, उसका पति शाहजहाँ की सेना मेंसूबेदार था जिसका नाम “शेर अफगान खान” था।शाहजहाँ ने शेर अफगान खान की हत्या कर मुमताज से शादी की थी।गौर करने लायक बात यह भी है कि ३८ वर्षीय मुमताज की मौत कोई बीमारी या एक्सीडेंट से नहीं बल्कि चौदहवें बच्चे को जन्म देने के दौरान अत्यधिक कमजोरी के कारण हुई थी। यानी शाहजहाँ ने उसे बच्चेपैदा करने की मशीन ही नहीं बल्कि फैक्ट्री बनाकर मार डाला।शाहजहाँ कामुकता के लिए इतना कुख्यात था, की कईइतिहासकारों ने उसे उसकी अपनी सगी बेटी जहाँआरा के साथ स्वयं सम्भोग करने का दोषी कहा है।शाहजहाँ और मुमताज महल की बड़ी बेटी जहाँआरा बिल्कुल अपनी माँ की तरह लगती थी।इसीलिए मुमताज की मृत्यु के बाद उसकी याद में लम्पट शाहजहाँ ने अपनी ही बेटी जहाँआरा को फंसाकर भोगना शुरू कर दिया था।जहाँआरा को शाहजहाँ इतना प्यार करता था कि उसने उसका निकाह तक होने न दिया।बाप-बेटी के इस प्यार को देखकर जब महल में चर्चा शुरू हुई,तो मुल्ला-मौलवियोंकी एक बैठक बुलाई गयी और उन्होंने इस पाप को जायज ठहराने के लिए एक हदीस का उद्धरण दिया और कहा कि – “माली को अपने द्वारा लगाये पेड़का फल खाने का हक़ है”।(Francois Bernier wrote, ” Shah Jahan used to have regular sex with his eldest daughter Jahan Ara.To defend himself, Shah Jahan used to say that, it was the privilege of a planter to taste the fruit of the tree he had planted.”)इतना ही नहीं जहाँआरा के किसी भी आशिक को वह उसके पास फटकने नहीं देता था।कहा जाता है की एकबार जहाँआरा जब अपने एक आशिक के साथ इश्क लड़ा रही थी तो शाहजहाँ आ गया जिससे डरकर वह हरम के तंदूर में छिप गया, शाहजहाँ नेतंदूर में आग लगवा दी और उसे जिन्दा जला दिया।दरअसल अकबर ने यह नियम बना दिया था, की मुगलिया खानदान की बेटियों की शादी नहीं होगी। इतिहासकारइसके लिए कईकारण बताते हैं। इसका परिणाम यह होता था, की मुग़लखानदान की लड़कियां अपने जिस्मानी भूख मिटाने के लिए अवैध तरीके से दरबारी, नौकर के साथ साथ, रिश्तेदार यहाँ तक की सगे सम्बन्धियों का भी सहारा लेती थी।जहाँआरा अपने लम्पट बाप के लिए लड़कियाँ भी फंसाकर लाती थी। जहाँआरा की मदद से शाहजहाँ ने मुमताज के भाई शाइस्ता खान की बीबी से कई बार बलात्कार किया था।शाहजहाँ के राजज्योतिष की 13 वर्षीय ब्राह्मण लडकी को जहाँआरा ने अपने महल में बुलाकर धोखे सेनशा करा बाप के हवाले करदिया था जिससे शाहजहाँ ने 58 वें वर्ष में उस 13 बर्ष की ब्राह्मण कन्या से निकाह किया था।बाद में इसी ब्राहम्ण कन्या ने शाहजहाँ के कैद होने के बाद औरंगजेब से बचने और एक बार फिर से हवस की सामग्री बनने से खुद को बचाने के लिए अपने ही हाथों अपने चेहरे पर तेजाब डाल लिया था।शाहजहाँ शेखी मारा करता था कि ‘ ‘वह तिमूर (तैमूरलंग)का वंशज है जो भारत में तलवार और अग्नि लाया था।उस उजबेकिस्तान के जंगली जानवर तिमूर से और उसकी हिन्दुओं के रक्तपात की उपलब्धि से इतना प्रभावित था कि ”उसने अपना नाम तिमूरद्वितीय रख लिया”(दी लीगेसी ऑफ मुस्लिम रूल इन इण्डिया- डॉ. के.एस. लाल, १९९२ पृष्ठ- १३२).बहुत प्रारम्भिक अवस्था से ही शाहजहाँ ने काफिरों (हिन्दुओं) के प्रति युद्ध के लिए साहस व रुचि दिखाई थी।अलग-अलग इतिहासकारों ने लिखा था कि, ”शहजादे केरूप में ही शाहजहाँ ने फतेहपुर सीकरी पर अधिकार करलिया था और आगरा शहर में हिन्दुओं का भीषण नरसंहार किया था ।भारत यात्रा पर आये देला वैले, इटली के एक धनी व्यक्ति के अुनसार -शाहजहाँ की सेना ने भयानक बर्बरता का परिचय कराया था। हिन्दू नागरिकों को घोर यातनाओं द्वारा अपने संचित धन को दे देने के लिए विवश किया गया, और अनेकों उच्च कुल की कुलीन हिन्दू महिलाओं काशील भंग किया गया।”(कीन्स हैण्ड बुक फौर विजिटर्स टू आगरा एण्ड इट्सनेबरहुड, पृष्ठ २५)हमारे वामपंथी इतिहासकारों ने शाहजहाँ को एक महान निर्माता के रूप में चित्रित किया है। किन्तु इस मुजाहिद ने अनेकों कला के प्रतीक सुन्दर हिन्दू मन्दिरों और अनेकों हिन्दू भवन निर्माण कला के केन्द्रों का बड़ी लगन और जोश से विध्वंस किया था।अब्दुल हमीद ने अपने इतिहास अभिलेख, ‘बादशाहनामा’ में लिखा था-‘महामहिम शहंशाह महोदय की सूचना में लाया गया कि हिन्दुओं के एक प्रमुख केन्द्र, बनारस में उनके अब्बा हुजूर के शासनकाल में अनेकों मन्दिरों के पुनः निर्माण का काम प्रारम्भ हुआ था और काफिर हिन्दू अब उन्हें पूर्ण कर देने के निकट आ पहुँचे हैं।इस्लाम पंथ के रक्षक, शहंशाह ने आदेश दिया कि बनारस में और उनके सारे राज्य में अन्यत्र सभी स्थानों पर जिन मन्दिरों का निर्माण कार्य आरम्भ है,उन सभी का विध्वंस कर दिया जाए।इलाहाबाद प्रदेश से सूचना प्राप्त हो गई कि जिला बनारस के छिहत्तर मन्दिरों का ध्वंस कर दिया गया था।”(बादशाहनामा : अब्दुल हमीद लाहौरी, अनुवाद एलियट और डाउसन, खण्ड VII, पृष्ठ ३६)हिन्दू मंदिरों को अपवित्र करने और उन्हें ध्वस्त करनेकी प्रथा ने शाहजहाँ के काल में एक व्यवस्थित विकराल रूप धारण कर लिया था।(मध्यकालीन भारत – हरीश्चंद्र वर्मा – पेज-१४१)”कश्मीर से लौटते समय १६३२ मेंशाहजहाँ को बताया गया कि अनेकों मुस्लिम बनायी गयी महिलायें फिर से हिन्दू हो गईं हैं और उन्होंने हिन्दू परिवारों में शादी कर ली है।शहंशाह के आदेश पर इन सभी हिन्दुओं को बन्दी बना लिया गया। प्रथम उन सभी पर इतना आर्थिक दण्ड थोपा गया कि उनमें से कोई भुगतान नहीं कर सका।तब इस्लाम स्वीकार कर लेने और मृत्यु में से एक को चुन लेने का विकल्प दिया गया। जिन्होनें धर्मान्तरण स्वीकार नहीं किया, उन सभी पुरूषों का सर काट दिया गया। लगभग चार हजार पाँच सौं महिलाओं को बलात् मुसलमान बना लिया गया और उन्हें सिपहसालारों, अफसरों और शहंशाह के नजदीकी लोगों और रिश्तेदारों के हरम में भेज दिया गया।”(हिस्ट्री एण्ड कल्चर ऑफ दी इण्डियन पीपुल : आर.सी. मजूमदार, भारतीय विद्या भवन, पृष्ठ ३१२)१६५७ में शाहजहाँ बीमार पड़ा और उसी के बेटे औरंगजेब ने उसे उसकी रखैल जहाँआरा के साथआगरा के किले में बंद कर दिया । परन्तु औरंगजेब मे एक आदर्श बेटे का भी फर्ज निभाया और अपने बापकी कामुकता को समझते हुए उसे अपने साथ ४० रखैलें (शाही वेश्याएँ) रखने की इजाजत दे दी। और दिल्ली आकर उसने बाप के हजारों रखैलों में से कुछ गिनी चुनी औरतों को अपने हरम में डालकर बाकी सभी को उसने किले से बाहर निकाल दिया।उन हजारों महिलाओं को भी दिल्ली के उसी हिस्से में पनाह मिली जिसे आज दिल्ली का रेड लाईट एरिया जीबी रोड कहा जाता है। जो उसके अब्बा शाहजहाँ की मेहरबानी से ही बसा और गुलजार हुआ था ।शाहजहाँ की मृत्यु आगरे के किले में ही २२ जनवरी १६६६ ईस्वी में ७४ साल की उम्र में द हिस्ट्री चैन शाहजहाँ की मृत्यु आगरे के किले में ही २२ जनवरी १६६६ ईस्वी में ७४ साल की उम्र में द हिस्ट्री चैनल के अनुसार अत्यधिक कमोत्तेजक दवाएँ खा लेने का कारण हुई थी। यानी जिन्दगी के आखिरी वक्त तक वो अय्याशी ही करता रहा था।अब आप खुद ही सोचें कि क्यों ऐसे बदचलन और दुश्चरित्र इंसान को प्यार की निशानी समझा कर महानबताया जाता है…… ?????क्या ऐसा बदचलन इंसान कभी किसी से प्यारकर सकता है….?????क्या ऐसे वहशी और क्रूर व्यक्ति की अय्याशी की कसमेंखाकर लोग अपने प्यार को बे-इज्जत नही करते हैं ??दरअसल ताजमहल और प्यार की कहानी इसीलिए गढ़ी गयी है कि लोगों को गुमराह किया जा सके और लोगों खासकर हिन्दुओं से छुपायी जा सके कि ताजमहल कोई प्यार की निशानी नहीं बल्कि महाराज जय सिंह द्वारा बनवाया गया भगवान् शिव का मंदिर””तेजो महालय”” है….!और जिसे प्रमाणित करने के लिए शंकराचार्य स्वरूपानंद जी आज भी कोर्ट में सत्य की लड़ाई लड़ रहे हैं।असलियत में मुगल इस देश में धर्मान्तरण, लूट-खसोट और अय्याशी ही करते रहे परन्तु नेहरू के आदेश पर हमारे इतिहासकारों नें इन्हें जबरदस्ती महान बनाया। और ये सब हुआ झूठी धर्मनिरपेक्षता के नामपर।
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