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Tuesday, October 21, 2014

INDIA , A PIONEER OF SHIP BUILDING BEFORE 200 YEARS AGO

BHARATA WAS PIONEER IN SHIP BUILDING AND OCEAN TRADE TILL BRITISHERS DESTROYED THE SHIP BUILDING INDUSTRY!!
Shipbuilding industry aroused the jealousy of British firms and its progress and development were restricted by legislation.
The Indian shipping industry was hit by the Portuguese, Dutch and English in that order. While the Indian cotton industry was hit by the ban on import of cotton into England, it lost hold over traditional markets like Persia due to loss of naval power. By imposition of various discriminatory duties, the ship building industry was killed.
In the Shanti Parvan (59, 41) of the Mahabharata it is said that the navy is one of the angas (part) of the complete army, and Mahabharata is 3128BCE !!!
Boat-making and ship-building industries were found in India since ancient times. In the Vedic period, sea was frequently used for trade purposes. The Rig Veda mentions "merchants who crowd the great waters with ships". The Ramayana speaks of merchants who crossed the sea and bought gifts for the king of Ayodhya. Manu legislates for safe carriage and freights by river and sea. In some of the earliest Buddhist literature we read of voyages ‘out of sight’ of land, some lasting six months or so.
In Kautalya Arthasastra the admiralty figures as a separate department of the War Office; and this is a striking testimony to the importance attached to it from very early times. In the Rg Veda Samhita boats and ships are frequently mentioned. The classical example often quoted by every writer on the subject is the naval expedition of Bhujya who was sent by his father with the ship which had a hundred oars (aritra). Being ship-wrecked he was rescued by the twin Asvins in their boat.

Sunday, October 19, 2014

कौन कहता है कि अकबर महान था ? AKBAR WAS A LIKE ISIL ISLAMIST AND THEIR PAGAMBUR

कौन कहता है कि अकबर महान था ?

श्री पुरुषोत्तम नागेश ओक, (२ मार्च,१९१७-७ दिसंबर,२००७), जिन्हें लघुनाम श्री.पी.एन.
ओक के नाम से जाना जाता है,द्वारा रचित पुस्तक "कौन कहता है कि अकबर महान था?"
में अकबर के सन्दर्भ में ऐतिहासिक सत्य को उद्घाटित करते हुए कुछ तथ्य सामने रखे हैं
जो वास्तव में विचारणीय हैं.....

अकबर को अकबर-ऐ-आज़म (अर्थात अकबर महान) के नाम से भी जाना जाता है।
जलालउद्दीन मोहम्मद अकबर मुगल वंश का तीसरा शासक था।
सम्राट अकबर मुगल साम्राज्य के संस्थापक जहीरुद्दीन मुहम्मद बाबर का पोता और
नासिरुद्दीन हुमायूं और हमीदा बानो का पुत्र था।
बाबर का वंश तैमूर से था, अर्थात उसके वंशज तैमूर लंग के खानदान से थे और
मातृपक्ष का संबंध चंगेज खां से था।
इस प्रकार अकबर की नसों में एशिया की दो प्रसिद्ध आतंकी जातियों, तुर्क और मंगोल
के रक्त का सम्मिश्रण था।
बाबर के शासनकाल के बाद हुमायूं दस वर्ष तक भी शासन नहीं कर पाया और उसे
अफगान के शेरशाह सूरी से पराजित होकर भागना पड़ा।
अपने परिवार और सहयोगियों के साथ वह सिन्ध की ओर गया, जहां उसने सिंधु
नदी के तट पर भक्कर के पास रोहरी नामक स्थान पर पांव जमाने चाहे।
रोहरी से कुछ दूर पतर नामक स्थान था, जहां उसके भाई हिन्दाल का शिविर था।
कुछ दिन के लिए हुमायूं वहां भी रुका।
वहीं मीर बाबा दोस्त उर्फ अलीअकबर जामी नामक एक ईरानी की चौदह वर्षीय
सुंदर कन्या हमीदाबानों उसके मन को भा गई जिससे उसने विवाह करने की इच्छा
जाहिर की।
अतः हिन्दाल की मां दिलावर बेगम के प्रयास से १४ अगस्त, १५४१ को हुमायूं और
हमीदाबानो का विवाह हो गया।
कुछ दिन बाद अपने साथियों एवं गर्भवती पत्नी हमीदा को लेकर हुमायूं २३ अगस्त,
१५४२ को अमरकोट के राजा बीरसाल के राज्य में पहुंचा।
हालांकि हुमायूं अपना राजपाट गवां चुका था, मगर फिर भी राजपूतों की विशेषता के
अनुसार बीरसाल ने उसका समुचित आतिथ्य किया। अमरकोट में ही १५ अक्टूबर,
१५४२ को हमीदा बेगम ने अकबर को जन्म दिया।
अकबर का जन्म पूर्णिमा के दिन हुआ था इसलिए उनका नाम बदरुद्दीन मोहम्मद
अकबर रखा गया था।
बद्र का अर्थ होता है पूर्ण चंद्रमा और अकबर उनके नाना शेख अली अकबर जामी
के नाम से लिया गया था।
कहा जाताहै कि काबुल पर विजय मिलने के बाद उनके पिता हुमायूँ ने बुरी नज़र से
बचने के लिए अकबर की जन्म तिथि एवं नाम बदल दिए थे।
अरबी भाषा मे अकबर शब्द का अर्थ “महान” या बड़ा होता है।
अकबर का जन्म राजपूत शासक राणा अमरसाल के महल में हुआ था यह स्थान
वर्तमान पाकिस्तान के सिंध प्रांत में है।
खोये हुए राज्य को पुनः प्राप्त करने के लिये अकबर के पिता हुमायूँ के अनवरत
प्रयत्न अंततः सफल हुए और वह सन्‌ १५५५ में हिंदुस्तान पहुँच सका किंतु अगले
ही वर्ष सन्‌ १५५६ में राजधानी दिल्ली में उसकी मृत्यु हो गई और गुरदासपुर के
कलनौर नामक स्थान पर १४ वर्ष की आयु में अकबर का राजतिलक हुआ।
अकबर का संरक्षक बैरम (बेरहम) खान को नियुक्त किया गया जिसका प्रभाव उस
पर १५६० तक रहा।
तत्कालीन मुगल राज्य केवल काबुल से दिल्ली तक ही फैला हुआ था।
हेमु के नेतृत्व में अफगान सेना पुनः संगठित होकर उसके सम्मुख चुनौती बनकर
खड़ी थी।
सन्‌ १५६० में अकबर ने स्वयं सत्ता संभाल ली और अपने संरक्षक बैरम खां को
निकाल बाहर किया।
अब अकबर के अपने हाथों में सत्ता थी लेकिन अनेक कठिनाइयाँ भी थीं।
जैसे – शम्सुद्दीन अतका खान की हत्या पर उभरा जन आक्रोश (१५६३), उज़बेक
विद्रोह (१५६४-६५) और मिर्ज़ा भाइयों का विद्रोह (१५६६-६७) किंतु अकबर ने बड़ी
कुशलता से इन समस्याओं को हल कर लिया।
अपनी कल्पनाशीलता से उसने अपने सामंतों की संख्या बढ़ाई।
सन्‌ १५६२ में आमेर के शासक से उसने समझौता किया –
इस प्रकार राजपूत राजा भी उसकी ओर हो गये।
इसी प्रकार उसने ईरान से आने वालों को भी बड़ी सहायता दी।
भारतीय मुसलमानों को भी उसने अपने कुशल व्यवहार से अपनी ओर कर लिया।
"हिन्दुओं पर लगे जज़िया १५६२ में अकबर ने हटा दिया, किंतु १५७५ में वापस लगाना
पड़ा |
जज़िया कर गरीब हिन्दुओं को गरीबी से विवश होकर इस्लाम की शरण लेने के लिए
लगाया जाता था।
यह मुस्लिम लोगों पर नहीं लगाया जाता था।
इस कर के कारण बहुत सी गरीब हिन्दू जनसंख्या पर बोझ पड़ता था, जिससे विवश
हो कर वे इस्लाम कबूल कर लिया करते थे।"
अपने शासन के आरंभिक काल में ही अकबर यह समझ गया कि सूरी वंश को
समाप्त किए बिना वह चैन से शासन नहीं कर सकेगा।
इसलिए वह सूरी वंश के सबसे शक्तिशाली शासक सिकंदर शाह सूरी पर आक्रमण
करने पंजाब चल पड़ा।
दिल्ली का शासन उसने मुग़ल सेनापति तारदी बैग खान को सौंप दिया।
सिकंदर शाह सूरी अकबरके लिए बहुत बड़ा प्रतिरोध साबित नही हुआ।
कुछ प्रदेशो मे तो अकबर के पहुंचने से पहले ही उसकी सेना पीछे हट जाती थी।
अकबर की अनुपस्थिति मे हेमू विक्रमादित्य ने दिल्ली और आगरा पर आक्रमण कर
विजय प्राप्त की।
६ अक्तूबर १५५६ को हेमु ने स्वयं को भारत का महाराजा घोषित कर दिया।
इसी के साथ दिल्ली मे हिंदू राज्य की पुनः स्थापना हुई।
अकबर के लिए पानिपत का युद्ध निर्णायक था हारने का मतलब फिर से काबुल जाना !
जीतने का अर्थ हिंदुस्तान पर राज !
पराक्रमी हिन्दू राजा हेमू के खिलाफ इस युद्ध मे अकबर हार निश्चित थी लेकिन अंत मे
एक तीर हेमू की आँख मे आ घुसा और मस्तक को भेद गया |
"वह मूर्छित हो गया घायल हो कर और उसके हाथी महावत को लेकर जंगल मे भाग
गया !
सेना तितर बितर हो गयी और अकबर की सेना का सामना करने मे असमर्थ हो
गई !
हेमू को पकड़ कर लाया गया अकबर और उसके सरंक्षक बहराम खान के सामने
इंडिया के "सेकुलर और महान" अकबर ने लाचार और घायल मूर्छित हेमू की गर्दन
को काट दिया और उसका सिर काबुल भेज दिया प्रदर्शन के लिए उसका बाकी का शव
दिल्ली के एक दरवाजे पर लटका दिया उससे पहले घायल हेमू को मुल्लों ने तलवारों
से घोप दिया लहलुहान किया !"
इतना महान था मुग़ल बादशाह अकबर !
हेमू को मारकर दिल्ली पर पुनः अधिकार जमाने के बाद अकबर ने अपने राज्य का
विस्तार करना शुरू किया और मालवा को १५६२ में, गुजरात को १५७२ में, बंगाल को
१५७४ में, काबुल को १५८१ में, कश्मीर को १५८६ में और खानदेश को १६०१ में मुग़ल
साम्राज्य के अधीन कर लिया।
अकबर ने इन राज्यों में एक एक राज्यपाल नियुक्त किया।
अकबर जब अहमदाबाद आया था २ दिसंबर १५७३ को तो दो हज़ार (२,०००) विद्रोहियो
के सिर काटकर उससे पिरामिण्ड बनाए थे !
"जब किसी विद्रोही को दरबार मे लाया जाता था तब उसके सिर को काटकर उसमे
भूसा भरकर तेल सुगंधी लगा कर प्रदर्शनी लगाता था "अकबर महान" बंगाल के
विद्रोह मे ही अकेले उस महान अकबर ने करीब तीस हज़ार (३०,०००) लोगो को मौत
के घाट उतारा था !"
अकबर के दरबारी भगवनदास ने भी इन कुकृत्यों से तंग आकार स्वयं को ही छूरा-भोक
कर अत्महत्या कर ली थी |
चित्तौड़गढ़ के दुर्ग रक्षक सेनिकों के साथ जो यातनाएं और अत्याचार अकबर ने किए
वो तो सबसे बर्बर और क्रूरतापूर्ण थे |
२४ फरवरी, १५६८ को अकबर चित्तौड़ के दुर्ग मे प्रवेश किया उसने कत्लेआम और लूट
का आदेश दिया हमलावर पूरे दिन लूट और कत्लेआम करते रहे विध्वंस करते घूमते
रहे एक घायल गोविंद श्याम के मंदिर के निकट पड़ा था तो अकबर ने उसे हाथी से कुचला !
आठ हजार योद्धा राजपूतो के साथ दुर्ग मे चालीस हज़ार (४०,०००) किसान भी थे जो
देख रेख और मरम्मत के कार्य कर रहे थे !
कत्ले आम का आदेश तब तक नहीं लिया जब तक उसमे से तेतीस हज़ार (३३,०००)
लोगो को नहीं मारा , अकबर के हाथो से ना तो मंदिर बचे और ना ही मीनारें !
अकबर ने जितने युद्ध लड़े है उसमे उसने बीस लाख (२०,०००००) लोगो को मौत के
घाट उतारा !
अकबर यह नही चाहता था की मुग़ल साम्राज्य का केन्द्र दिल्ली जैसे दूरस्थ शहर में हो;
इसलिए उसने यह निर्णय लिया की मुग़ल राजधानी को फतेहपुर सीकरी ले जाया जाए
जो साम्राज्य के मध्य में थी।
कुछ ही समय के बाद अकबर को राजधानी फतेहपुर सीकरी से हटानी पड़ी।
कहा जाता है कि पानी की कमी इसका प्रमुख कारणथा।
फतेहपुर सीकरी के बाद अकबर ने एक चलित दरबार बनाया जो कि साम्राज्य भर में
घूमता रहता था इस प्रकार साम्राज्य के सभी कोनो पर उचित ध्यान देना सम्भव हुआ।
सन १५८५ में उत्तर पश्चिमी राज्य के सुचारू राज पालन के लिए अकबर ने लाहौर को
राजधानी बनाया।
अपनी मृत्यु के पूर्व अकबर ने सन १५९९ में वापस आगरा को राजधानी बनाया और
अंत तक यहीं से शासन संभाला ।
अब कुछ प्रश्न अकबर की महानता के सम्बन्ध में विचारणीय हैं, जो किसी भी विचारशील व्यक्ति को यही कहने पर विवश कर देंगे कि...कौन कहता है –
अकबर महान था ????
(१.)यदि अगर अकबर से सभी प्रेम करते थे, आदर की दृष्टि से देखते थे तो इस प्रकार शीघ्रतापूर्वक बिना किसी उत्सव के उसे मृत्यु के तुरंत बाद क्यों दफनाया गया ?
(२.)जब अकबर अधिक पीता नहीं था तो उसे शराब पर अधिक ध्यान देने की आवश्यकता
क्यों पड़ी ?
(३.)आखिर अकबर को इतिहास महान क्यों कहता है, जिसने हिन्दू नगरों को नष्ट
किया ?
(४.)अगर फतेहपुरसीकरी का निर्माण अकबर ने कराया तो इस नाम का उल्लेख
अकबर के पहले के इतिहासों में कैसे है ?
(५.)क्या अकबर जैसा शराबी, हिंसक, कामुक, साम्राज्यवादी बादशाह खुदा की बराबरी
रखता है ?
(६.)क्या जानवरों को भी मुस्लिम बना देने वाला ऐसा धर्मांध अकबर महान है ?
(७.)क्या ऐसा अनपढ़ एवं मूर्खो जैसी बात करने वाला अकबर महान है ?
(८.)क्या अत्याचारी, लूट-खसोट करने वाला, जनता को लुटने वाला अकबर महान था ?
(९.)क्या ऐसा कामुक एवं पतित बादशाह अकबर महान है !
(१०.)क्या अपने पालनकर्ता बैरम खान को मरकर उसकी विधवा से विवाह कर लेने
वाला अकबर महान था |
(११.)क्या औरत को अपनी कामवासना और हवस को शांत करने वाली वस्तुमात्र समझने
वाला अकबर महान था |
अकबर औरतो के लिबास मे मीना बाज़ार जाता था |
मीना बाज़ार मे जो औरत अकबर को पसंद आ जाती,उसके महान फौजी उस औरत को
उठा ले जाते और कामी अकबर के लिए हरम मे पटक देते |
ऐसे ही ना जाने कितने प्रश्नचिन्ह अकबर की महानता के सन्दर्भ में हैं....,
जयति पुण्य सनातन संस्कृति ,,जयति पुण्य भूमि भारत....
सदा सुमंगल,,वंदेमातरम..श्री पुरुषोत्तम नागेश ओक, (२ मार्च,१९१७-७ दिसंबर,२००७), जिन्हें लघुनाम श्री.पी.एन.
ओक के नाम से जाना जाता है,द्वारा रचित पुस्तक "कौन कहता है कि अकबर महान था?"
में अकबर के सन्दर्भ में ऐतिहासिक सत्य को उद्घाटित करते हुए कुछ तथ्य सामने रखे हैं
जो वास्तव में विचारणीय हैं.....
अकबर को अकबर-ऐ-आज़म (अर्थात अकबर महान) के नाम से भी जाना जाता है।
जलालउद्दीन मोहम्मद अकबर मुगल वंश का तीसरा शासक था।
सम्राट अकबर मुगल साम्राज्य के संस्थापक जहीरुद्दीन मुहम्मद बाबर का पोता और
नासिरुद्दीन हुमायूं और हमीदा बानो का पुत्र था।
बाबर का वंश तैमूर से था, अर्थात उसके वंशज तैमूर लंग के खानदान से थे और
मातृपक्ष का संबंध चंगेज खां से था।
इस प्रकार अकबर की नसों में एशिया की दो प्रसिद्ध आतंकी जातियों, तुर्क और मंगोल
के रक्त का सम्मिश्रण था।
बाबर के शासनकाल के बाद हुमायूं दस वर्ष तक भी शासन नहीं कर पाया और उसे
अफगान के शेरशाह सूरी से पराजित होकर भागना पड़ा।

अपने परिवार और सहयोगियों के साथ वह सिन्ध की ओर गया, जहां उसने सिंधु
नदी के तट पर भक्कर के पास रोहरी नामक स्थान पर पांव जमाने चाहे।
रोहरी से कुछ दूर पतर नामक स्थान था, जहां उसके भाई हिन्दाल का शिविर था।
कुछ दिन के लिए हुमायूं वहां भी रुका।
वहीं मीर बाबा दोस्त उर्फ अलीअकबर जामी नामक एक ईरानी की चौदह वर्षीय
सुंदर कन्या हमीदाबानों उसके मन को भा गई जिससे उसने विवाह करने की इच्छा
जाहिर की।
अतः हिन्दाल की मां दिलावर बेगम के प्रयास से १४ अगस्त, १५४१ को हुमायूं और
हमीदाबानो का विवाह हो गया।
कुछ दिन बाद अपने साथियों एवं गर्भवती पत्नी हमीदा को लेकर हुमायूं २३ अगस्त,
१५४२ को अमरकोट के राजा बीरसाल के राज्य में पहुंचा।
हालांकि हुमायूं अपना राजपाट गवां चुका था, मगर फिर भी राजपूतों की विशेषता के
अनुसार बीरसाल ने उसका समुचित आतिथ्य किया।
अमरकोट में ही १५ अक्टूबर,
१५४२ को हमीदा बेगम ने अकबर को जन्म दिया।
अकबर का जन्म पूर्णिमा के दिन हुआ था इसलिए उनका नाम बदरुद्दीन मोहम्मद
अकबर रखा गया था।

बद्र का अर्थ होता है पूर्ण चंद्रमा और अकबर उनके नाना शेख अली अकबर जामी
के नाम से लिया गया था।
कहा जाताहै कि काबुल पर विजय मिलने के बाद उनके पिता हुमायूँ ने बुरी नज़र से
बचने के लिए अकबर की जन्म तिथि एवं नाम बदल दिए थे।
अरबी भाषा मे अकबर शब्द का अर्थ “महान” या बड़ा होता है।
अकबर का जन्म राजपूत शासक राणा अमरसाल के महल में हुआ था यह स्थान
वर्तमान पाकिस्तान के सिंध प्रांत में है।

खोये हुए राज्य को पुनः प्राप्त करने के लिये अकबर के पिता हुमायूँ के अनवरत
प्रयत्न अंततः सफल हुए और वह सन्‌ १५५५ में हिंदुस्तान पहुँच सका किंतु अगले
ही वर्ष सन्‌ १५५६ में राजधानी दिल्ली में उसकी मृत्यु हो गई और गुरदासपुर के
कलनौर नामक स्थान पर १४ वर्ष की आयु में अकबर का राजतिलक हुआ।
अकबर का संरक्षक बैरम (बेरहम) खान को नियुक्त किया गया जिसका प्रभाव उस
पर १५६० तक रहा।

तत्कालीन मुगल राज्य केवल काबुल से दिल्ली तक ही फैला हुआ था।
हेमु के नेतृत्व में अफगान सेना पुनः संगठित होकर उसके सम्मुख चुनौती बनकर
खड़ी थी।
सन्‌ १५६० में अकबर ने स्वयं सत्ता संभाल ली और अपने संरक्षक बैरम खां को
निकाल बाहर किया।
अब अकबर के अपने हाथों में सत्ता थी लेकिन अनेक कठिनाइयाँ भी थीं।
जैसे – शम्सुद्दीन अतका खान की हत्या पर उभरा जन आक्रोश (१५६३), उज़बेक
विद्रोह (१५६४-६५) और मिर्ज़ा भाइयों का विद्रोह (१५६६-६७) किंतु अकबर ने बड़ी
कुशलता से इन समस्याओं को हल कर लिया।
अपनी कल्पनाशीलता से उसने अपने सामंतों की संख्या बढ़ाई।
सन्‌ १५६२ में आमेर के शासक से उसने समझौता किया –
इस प्रकार राजपूत राजा भी उसकी ओर हो गये।
इसी प्रकार उसने ईरान से आने वालों को भी बड़ी सहायता दी।
भारतीय मुसलमानों को भी उसने अपने कुशल व्यवहार से अपनी ओर कर लिया।
"हिन्दुओं पर लगे जज़िया १५६२ में अकबर ने हटा दिया, किंतु १५७५ में वापस लगाना
पड़ा |
जज़िया कर गरीब हिन्दुओं को गरीबी से विवश होकर इस्लाम की शरण लेने के लिए
लगाया जाता था।
यह मुस्लिम लोगों पर नहीं लगाया जाता था।
इस कर के कारण बहुत सी गरीब हिन्दू जनसंख्या पर बोझ पड़ता था, जिससे विवश
हो कर वे इस्लाम कबूल कर लिया करते थे।"
अपने शासन के आरंभिक काल में ही अकबर यह समझ गया कि सूरी वंश को
समाप्त किए बिना वह चैन से शासन नहीं कर सकेगा।
इसलिए वह सूरी वंश के सबसे शक्तिशाली शासक सिकंदर शाह सूरी पर आक्रमण
करने पंजाब चल पड़ा।
दिल्ली का शासन उसने मुग़ल सेनापति तारदी बैग खान को सौंप दिया।
सिकंदर शाह सूरी अकबरके लिए बहुत बड़ा प्रतिरोध साबित नही हुआ।
कुछ प्रदेशो मे तो अकबर के पहुंचने से पहले ही उसकी सेना पीछे हट जाती थी।
अकबर की अनुपस्थिति मे हेमू विक्रमादित्य ने दिल्ली और आगरा पर आक्रमण कर
विजय प्राप्त की।

६ अक्तूबर १५५६ को हेमु ने स्वयं को भारत का महाराजा घोषित कर दिया।
इसी के साथ दिल्ली मे हिंदू राज्य की पुनः स्थापना हुई।

अकबर के लिए पानिपत का युद्ध निर्णायक था हारने का मतलब फिर से काबुल जाना !
जीतने का अर्थ हिंदुस्तान पर राज !
पराक्रमी हिन्दू राजा हेमू के खिलाफ इस युद्ध मे अकबर हार निश्चित थी लेकिन अंत मे
एक तीर हेमू की आँख मे आ घुसा और मस्तक को भेद गया |
"वह मूर्छित हो गया घायल हो कर और उसके हाथी महावत को लेकर जंगल मे भाग
गया !
सेना तितर बितर हो गयी और अकबर की सेना का सामना करने मे असमर्थ हो
गई !

हेमू को पकड़ कर लाया गया अकबर और उसके सरंक्षक बहराम खान के सामने
इंडिया के "सेकुलर और महान" अकबर ने लाचार और घायल मूर्छित हेमू की गर्दन
को काट दिया और उसका सिर काबुल भेज दिया प्रदर्शन के लिए उसका बाकी का शव
दिल्ली के एक दरवाजे पर लटका दिया उससे पहले घायल हेमू को मुल्लों ने तलवारों
से घोप दिया लहलुहान किया !"
इतना महान था मुग़ल बादशाह अकबर !

हेमू को मारकर दिल्ली पर पुनः अधिकार जमाने के बाद अकबर ने अपने राज्य का
विस्तार करना शुरू किया और मालवा को १५६२ में, गुजरात को १५७२ में, बंगाल को
१५७४ में, काबुल को १५८१ में, कश्मीर को १५८६ में और खानदेश को १६०१ में मुग़ल
साम्राज्य के अधीन कर लिया।
अकबर ने इन राज्यों में एक एक राज्यपाल नियुक्त किया।
अकबर जब अहमदाबाद आया था २ दिसंबर १५७३ को तो दो हज़ार (२,०००) विद्रोहियो
के सिर काटकर उससे पिरामिण्ड बनाए थे !

"जब किसी विद्रोही को दरबार मे लाया जाता था तब उसके सिर को काटकर उसमे
भूसा भरकर तेल सुगंधी लगा कर प्रदर्शनी लगाता था "अकबर महान" बंगाल के
विद्रोह मे ही अकेले उस महान अकबर ने करीब तीस हज़ार (३०,०००) लोगो को मौत
के घाट उतारा था !"
अकबर के दरबारी भगवनदास ने भी इन कुकृत्यों से तंग आकार स्वयं को ही छूरा-भोक
कर अत्महत्या कर ली थी |

चित्तौड़गढ़ के दुर्ग रक्षक सेनिकों के साथ जो यातनाएं और अत्याचार अकबर ने किए
वो तो सबसे बर्बर और क्रूरतापूर्ण थे |
२४ फरवरी, १५६८ को अकबर चित्तौड़ के दुर्ग मे प्रवेश किया उसने कत्लेआम और लूट
का आदेश दिया हमलावर पूरे दिन लूट और कत्लेआम करते रहे विध्वंस करते घूमते
रहे एक घायल गोविंद श्याम के मंदिर के निकट पड़ा था तो अकबर ने उसे हाथी से कुचला !
आठ हजार योद्धा राजपूतो के साथ दुर्ग मे चालीस हज़ार (४०,०००) किसान भी थे जो
देख रेख और मरम्मत के कार्य कर रहे थे !
कत्ले आम का आदेश तब तक नहीं लिया जब तक उसमे से तेतीस हज़ार (३३,०००)
लोगो को नहीं मारा , अकबर के हाथो से ना तो मंदिर बचे और ना ही मीनारें !
अकबर ने जितने युद्ध लड़े है उसमे उसने बीस लाख (२०,०००००) लोगो को मौत के
घाट उतारा !

अकबर यह नही चाहता था की मुग़ल साम्राज्य का केन्द्र दिल्ली जैसे दूरस्थ शहर में हो;
इसलिए उसने यह निर्णय लिया की मुग़ल राजधानी को फतेहपुर सीकरी ले जाया जाए
जो साम्राज्य के मध्य में थी।
कुछ ही समय के बाद अकबर को राजधानी फतेहपुर सीकरी से हटानी पड़ी।
कहा जाता है कि पानी की कमी इसका प्रमुख कारणथा।
फतेहपुर सीकरी के बाद अकबर ने एक चलित दरबार बनाया जो कि साम्राज्य भर में
घूमता रहता था इस प्रकार साम्राज्य के सभी कोनो पर उचित ध्यान देना सम्भव हुआ।
सन १५८५ में उत्तर पश्चिमी राज्य के सुचारू राज पालन के लिए अकबर ने लाहौर को
राजधानी बनाया।
अपनी मृत्यु के पूर्व अकबर ने सन १५९९ में वापस आगरा को राजधानी बनाया और
अंत तक यहीं से शासन संभाला ।

अब कुछ प्रश्न अकबर की महानता के सम्बन्ध में विचारणीय हैं, जो किसी भी विचारशील व्यक्ति को यही कहने पर विवश कर देंगे कि...कौन कहता है –
अकबर महान था ????
(१.)यदि अगर अकबर से सभी प्रेम करते थे, आदर की दृष्टि से देखते थे तो इस प्रकार शीघ्रतापूर्वक बिना किसी उत्सव के उसे मृत्यु के तुरंत बाद क्यों दफनाया गया ?
(२.)जब अकबर अधिक पीता नहीं था तो उसे शराब पर अधिक ध्यान देने की आवश्यकता
क्यों पड़ी ?
(
३.)आखिर अकबर को इतिहास महान क्यों कहता है, जिसने हिन्दू नगरों को नष्ट
किया ?

(४.)अगर फतेहपुरसीकरी का निर्माण अकबर ने कराया तो इस नाम का उल्लेख
अकबर के पहले के इतिहासों में कैसे है ?

(५.)क्या अकबर जैसा शराबी, हिंसक, कामुक, साम्राज्यवादी बादशाह खुदा की बराबरी
रखता है ?
(६.)क्या जानवरों को भी मुस्लिम बना देने वाला ऐसा धर्मांध अकबर महान है ?
(७.)क्या ऐसा अनपढ़ एवं मूर्खो जैसी बात करने वाला अकबर महान है ?
(८.)क्या अत्याचारी, लूट-खसोट करने वाला, जनता को लुटने वाला अकबर महान था ?
(९.)क्या ऐसा कामुक एवं पतित बादशाह अकबर महान है !
(१०.)क्या अपने पालनकर्ता बैरम खान को मरकर उसकी विधवा से विवाह कर लेने
वाला अकबर महान था |

(११.)क्या औरत को अपनी कामवासना और हवस को शांत करने वाली वस्तुमात्र समझने
वाला अकबर महान था |
अकबर औरतो के लिबास मे मीना बाज़ार जाता था |
मीना बाज़ार मे जो औरत अकबर को पसंद आ जाती,उसके महान फौजी उस औरत को
उठा ले जाते और कामी अकबर के लिए हरम मे पटक देते |

ऐसे ही ना जाने कितने प्रश्नचिन्ह अकबर की महानता के सन्दर्भ में हैं....,
जयति पुण्य सनातन संस्कृति ,,जयति पुण्य भूमि भारत....
सदा सुमंगल,,वंदेमातरम..


Monday, October 6, 2014

MOTHER GODESS

Photo: JEWELS OF BHARATAM ...SERIES [TM]

GREATNESS OF MOTHER GODDESS !!!

The only culture of Hindus who worship Mother Goddess since time immemorial ..The Devi Mahatmyam (Sanskrit: देवीमाहात्म्यम्), or “Glory of the Goddess”) is a Hindu religious text describing the victory of the Goddess Durga over the demons Madhu-Kaitabha, Mahishasura and Shambha-Nishumbha. It is part of the Markandeya Purana, one of the secondary Hindu scriptures, and was composed in Sanskrit around c. 8500-8400 CE, with authorship attributed to the sage Rishi Markandeya.

The oldest surviving manuscript of the Devi Māhātmya, on palm-leaf, in an early Bhujimol script, Bihar or Nepal, 11th century.

Hinduism is the only religion that does not have gender restriction on god ;the Ultimate Reality is referred to in neutral gender , but Its Power , the Creative Power , is always referred to in feminine terms ! thus we have ParaaS’akti , Vishn’uMaaya etc.;

Ambika ( Durga ) is the Vedic Deity , highest in order , on par with Rudra ( S’iva ) , Vishn’u , Gan’apati , and Aditya ;

Tri – Murtis and other Deities are mentioned , without fail , with their Consorts ;

Prithvi and Holy Rivers are regarded as goddesses ;

Divine Incarnations are also known to happen in female forms :

the foremost being ” Mahishaasura Mardini ” , our concern of today , Navaraatra !

अयि गिरिनन्दिनि नन्दितमेदिनि विश्वविनोदिनि नन्दिनुते

Sita and Rukmini are said to be incarnations of MahaLakshmi thus the list goes …GREATNESS OF MOTHER GODDESS !!!

The only culture of Hindus who worship Mother Goddess since time immemorial ..The Devi Mahatmyam (Sanskrit: देवीमाहात्म्यम्), or “Glory of the Goddess”) is a Hindu religious text describing the victory of the Goddess Durga over the demons Madhu-Kaitabha, Mahishasura and Shambha-Nishumbha. It is part of the Markandeya Purana, one of the secondary Hindu scriptures, and was composed in Sanskrit around c. 8500-8400 CE, with authorship attributed to the sage Rishi Markandeya.

The oldest surviving manuscript of the Devi Māhātmya, on palm-leaf, in an early Bhujimol script, Bihar or Nepal, 11th century.

Hinduism is the only religion that does not have gender restriction on god ;the Ultimate Reality is referred to in neutral gender , but Its Power , the Creative Power , is always referred to in feminine terms ! thus we have ParaaS’akti , Vishn’uMaaya etc.;

Ambika ( Durga ) is the Vedic Deity , highest in order , on par with Rudra ( S’iva ) , Vishn’u , Gan’apati , and Aditya ;

Tri – Murtis and other Deities are mentioned , without fail , with their Consorts ;

Prithvi and Holy Rivers are regarded as goddesses ;



Divine Incarnations are also known to happen in female forms :

the foremost being ” Mahishaasura Mardini ” , our concern of today , Navaraatra !

अयि गिरिनन्दिनि नन्दितमेदिनि विश्वविनोदिनि नन्दिनुते

Sita and Rukmini are said to be incarnations of MahaLakshmi thus the list goes …

REAL HISTORY OF INDIA

Photo: JEWELS OF BHARATAM ...SERIES[TM]

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Q. IS IT LYING BY HISTORIANS THAT  MAIZE WAS BROUGHT TO BHARAT BY PORTUGESE ?

A. EVIDENCE PROVES THAT MAIZE WAS A CULTIVATED CROP IN INDIA...AND NOT A GIFT BY EUROPEANS !!

MAIZE IS AN INDIAN CROP .....AND WAS NOT A GIFT BY EUROPEANS .... !!!

Macaulay addressed the parliament on about Indian education. [The date was 10th July 1833This speech is usually referred together with his famous Minutes on Indian Education, which was indeed dated 2nd February 1835 where he was arguing in favour of using English as the medium of education in India, and made his oft-quoted comment that 'a single shelf of good european library was worth the whole native literature of India and Arabia'.

However, what is overlooked, rather conveniently, is this comment contained the same document: Are we to keep the people of India ignorant in order that we may keep them submissive? Or do we think that we can give them knowledge without awakening ambition? Or do we mean to awaken ambition and to provide it with no legitimate vent? Who will answer any of these questions in the affirmative? Yet one of them must be answered in the affirmative, by every person who maintains that we ought permanently to exclude the natives from high office. I have no fears. The path of duty is plain before us: and it is also the path of wisdom, of national prosperity, of national honor.Q. IS IT LYING BY HISTORIANS THAT MAIZE WAS BROUGHT TO BHARAT BY PORTUGESE ?

A. EVIDENCE PROVES THAT MAIZE WAS A CULTIVATED CROP IN INDIA...AND NOT A GIFT BY EUROPEANS !!

MAIZE IS AN INDIAN CROP .....AND WAS NOT A GIFT BY EUROPEANS .... !!!

Macaulay addressed the parliament on about Indian education. [The date was 10th July 1833This speech is usually referred together with his famous Minutes on Indian Education, which was indeed dated 2nd February 1835 where he was arguing in favour of using English as the medium of education in India, and made his oft-quoted comment that 'a single shelf of good european library was worth the whole native literature of India and Arabia'.

However, what is overlooked, rather conveniently, is this comment contained the same document: Are we to keep the people of India ignorant in order that we may keep them submissive? Or do we think that we can give them knowledge without awakening ambition? Or do we mean to awaken ambition and to provide it with no legitimate vent? Who will answer any of these questions in the affirmative? Yet one of them must be answered in the affirmative, by every person who maintains that we ought permanently to exclude the natives from high office. I have no fears. The path of duty is plain before us: and it is also the path of wisdom, of national prosperity, of national honor.

Wednesday, September 24, 2014

REAL HISTORY OF INDIA

For the first time Indian History is rewritten as IT HAPPENED
Photo: A New History of India is out in the bookshops. For the first time Indian History is rewritten as IT HAPPENED, minus the bogus Aryan Invasion theory and plus the correct dating and importance of the Vedas. You can buy it online at : http://www.theindianbookshop.com/a-history-of-india-as-it-happened-not-as-it-has-been-written-9788124117620/A New History of India is out in the bookshops. For the first time Indian History is rewritten as IT HAPPENED, minus the bogus Aryan Invasion theory and plus the correct dating and importance of the Vedas. You can buy it online at : http://www.theindianbookshop.com/a-history-of-india-as-it-happened-not-as-it-has-been-written-9788124117620/