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Wednesday, September 9, 2015

सम्राट अशोक

 
सम्राट अशोक
सम्राट अशोक मगध के राजा थे। वे पास-पड़ोस के सभी राज्यों को जीतकर अपने अधीन कर लेना चाहते थे। इस कोशिश में उन्होंने कई राज्यों को जीतकर मगध के अधीन कर लिया था लेकिन कलिंग को जीतना आसान नहीं था। चार साल तक युद्ध हुआ, लेकिन कलिंग के राजा बहादुरी से लड़ रहे थे और सम्राट अशोक जीत नहीं पाए।


एक दिन खबर मिली कि कलिंग के राजा युद्ध में मारे गए। फिर भी अशोक की सेना कलिंग के दुर्ग के अंदर प्रवेश नहीं कर सकी।

अचानक दुर्ग का फाटक खुला और कलिंग की राजकुमारी पद्मा सैनिक की वेशभूषा में आकर अशोक से कहती हैं- हमसे लड़ो। हमें मारोगे तभी किले के अंदर जा सकते हो। सम्राट अशोक कहते हैं- यह कैसे हो सकता है? क्या मैं स्त्रियों पर हथियार चलाऊंगा?,



अशोक सम्राट बिंदुसार के पुत्र थे। पिता की मुत्यु के बाद अशोक मगध के सिंहासन पर बैठे। अशोक बहुत वीर राजा थे। वे अपने राज्य को दूर-दूर तक फैलाना चाहते थे। सम्राट अशोक ने कई राजाओं को हराकर, अपने राज्य का विस्तार किया। उन दिनों कलिंग का राज्य भी मगध राज्य के समान प्रसिद्ध था।

कलिंग वासी बहुत वीर थे। वे अपने राजा और अपनी जन्मभूमि से बहुत प्यार करते थे। अपना राज्य बढ़ाने के लिए सम्राट अशोक ने कलिंग राज्य पर आक्रमण कर दिया। दोनों ओर से घमासान युद्ध शुरू हो गया। चार वर्ष बीत जाने पर भी कलिंग को जीता न जा सका। कलिंग के लाखों सैनिक मारे गए, लाखों घायल हुए, पर कलिंग वालों ने हार नहीं मानी।

एक दिन सम्राट अशोक अपने शिविर में उदास बैठे थे। वे सोच रहे थे कि दोनों ओर के लाखों सैनिक मारे जा चुके हैं, पर आज तक युद्ध का कोई फैसला नहीं हो सका है। तभी एक सैनिक ने आकर सूचना दी-

”महाराज की जय हो। अभी-अभी खबर मिली है। कलिंग के महाराज युद्ध में मारे गए।“

”वाह ! यह तो बड़ी अच्छी खबर है। इसका मतलब हम युद्ध में जीत गए। मगध-राज्य अब हमारा है।“ अशोक प्रसन्न हो उठे।

”आपका सोचना ठीक है, महाराज परंतु कलिंग के किले का दरवाजा अभी भी बंद है।“ सिर झुकाकर सैनिक ने जवाब दिया।

”कोई बात नहीं, अब दरवाजा खुल जाएगा। कल मैं स्वयं कलिंग के दुर्ग का द्वार खुलवाऊंगा।“

”दूसरे दिन सम्राट अशोक ने स्वयं अपनी सेना का नेतृत्व किया। उनके पीछे मगध के हजारों सैनिक, सम्राट अशोक की जय-जयकार कर रहे थे। कलिंग दुर्ग के सामने पहुंचकर सम्राट अशोक ने अपनी सेना को ललकारा-

”मगध के वीर सैनिकों, पिछले चार वर्षो से युद्ध चल रहा है। कलिंग के महाराज मारे जा चुके हैं। आओ हम शपथ लें। आज कलिंग दुर्ग के फाटक, खुलवाकर, दुर्ग पर मगध का झंडा फहराएँगे।“

”सम्राट अशोक की जय, मगध राज्य की जय।“ चारों ओर जय-जयकार गूंज उठी।

ष्शोर मचाती अशोक की सेना आगे बढ़ी। अचानक कलिंग दुर्ग का फाटक खुल गया। कलिंग देश की राजकुमारी पद्मा सैनिक वेष में घोड़े पर सवार खड़ी थीं। राजकुमारी पद्मा के पीछे स्त्रियों की सेना थी। राजकुमारी ने अपनी स्त्रियों की सेना से कहा-

”बहिनो, आज हमें अपने देश के सम्मान की रक्षा करनी है। जिन्होंने हमारे पिता, भाई, पति हमसे छीने हैं, वे हत्यारे आज हमारे सामने खड़े हैं। हमारे जीते जी, इस दुर्ग में ये प्रवेश नहीं कर सकते। जय भवानी ...............“ पद्मा के साथ स्त्री-सेना ने जय भवानी का हुंकार भरा।

सम्राट अशोक विस्मित थे। उन्होंने पूछा-

”तुम कौन हो देवी? सम्राट अशोक स्त्रियों से युद्ध नहीं करता।“

”तुम मेरे पिता के हत्यारे हो। तुम्हें मुझसे युद्ध करना होगा सम्राट।“ राजकुमारी ने गर्जना की।

”नहीं, स्त्रियों पर हथियार चलाना अधर्म है। यह अन्याय मैं नहीं कर सकता।“

”तुमने न्याय-अन्याय की चिंता कब की है, सम्राट? अपनी जीत के लिए तुमने लाखों मासूम लोगों की हत्या की है। अब तो केवल हम स्त्रियाँ बची हैं। दुर्ग पाने के लिए तुम्हें हमसे युद्ध करना पड़ेगा। ये सारी दुखी स्त्रियाँ तुमसे युद्ध करना चाहती हैं। तुमने इनके घर उजाडे़ हैं, सम्राट। क्या यह अन्याय नहीं है?“ पद्मा की आँखों से चिंगारियाँ-सी छिटक रही थीं।

”मैं अपनी गलती स्वीकार करता हूँ, राजकुमारी। मुझसे भूल हो गई। आप जो चाहें सजा दे दें।“ तलवार फेंककर अशोक ने सिर झुका लिया।

”नहीं तुम्हें हमसे युद्ध करना होगा। उठाओ तलवार सम्राट.........................“

”नहीं राजकुमारी, आज के बाद यह तलवार कभी नहीं उठेगी। मेरा सिर हाजिर है, आप इसे काटकर अपने पिता की मृत्यु का बदला ले लीजिए।“

”नहीं महाराज, हम भी निहत्थों पर वार नहीं करते। जाइए, हमने आपको क्षमा किया।“

”धन्यवाद, राजकुमारी। आज से आप कलिंग का राज्य संभालिए। मगध और कलिंग दोनों राज्य मित्र बनकर रहेंगे। आज के बाद मैं कोई युद्ध नहीं करूँगा। मैं अपने शस्त्र त्यागता हूँ।“

कभी युद्ध न करने का निर्णय लेने के बाद सम्राट अशोक, युद्ध-भूमि में गए। युद्ध-भूमि पर खून से लथपथ लाखों शव पड़े थे। हजारों घायल पानी-पानी कहकर तड़प रहे थे, कराह रहे थे, उनकी यह दशा देखकर अशोक का दिल भर आया राज्य पाने के लिए उसने कितने लोगों की हत्या कर दी। अशोक का हृदय बेचैन था। तभी उसने देखा कुछ बौद्ध भिक्षु घायलों को पानी पिला रहे थे। उनके घावों पर मरहम-पट्टी कर रहे थे। अशोक उनके सामने घुटने टेककर बैठ गए।

”मैं अपराधी हूँ, देव। मेरे हृदय को शांति दीजिए, भिक्षुवर।“

”धर्म ही तुम्हारे हृदय को शांति दे सकता है, अशोक। तुम बौद्ध धर्म की शरण में आ जाओ।“ भिक्षु ने शांति से उत्तर दिया।

”मुझे क्या करना होगा, भिक्षुवर?“

”प्रतिज्ञा करो, आज से तुम जीव-हत्या नहीं करोगे। जब तक शरीर में प्राण हैं, अहिंसा का पालन करोगे। सबसे प्रेम का व्यवहार करोगे।“

”मैं प्रतिज्ञा करता हूँ, देव। मुझे बौद्ध धर्म की शरण में ले लीजिए।“ हाथ जोड़कर सम्राट अशोक ने प्रार्थना की।

”जाओ अपनी प्रतिज्ञा का पालन करो। तुम्हारे मन को अवश्य शांति मिलेगी, सम्राट।“ हाथ उठाकर भिक्षु ने सम्राट को आशीर्वाद दिया।

कलिंग-युद्ध के बाद सम्राट अशोक ने कोई युद्ध नहीं किया। उसने अपनी प्रजा की भलाई और कल्याण में अपना जीवन बिताया। शांति और अहिंसा के धर्म को देश भर में फेलाया। इतना ही नहीं, उसे दूसरे देशों तक पहुंचाया। अशोक के राज्य में प्रजा बहुत सुखी थी। स्वयं सम्राट वेष बदलकर अपनी प्रजा का दुख-सुख जानने,घर-घर जाते थे। इतिहास में सम्राट अशोक का नाम अमर रहेगा।
 Meenu Ahuja