Saturday, October 15, 2016

बुद्ध और युद्ध में अंतर जाने

बुद्ध और युद्ध में अंतर जाने


डॉ विवेक आर्य

मोदी जी ने बुद्ध और युद्ध का वर्णन दशहरे वाले दिन अपने भाषण में किया। सुनने में अच्छा लगा। मगर सत्य भिन्न है। बुद्ध और युद्ध एक दूसरे के पूरक नहीं है। महात्मा बुद्ध अहिंसा के समर्थक थे। अच्छी बात थी। मगर अहिंसा का तात्पर्य भी समझना आवश्यक था। शत्रु को युद्ध में यमलोक भेजना हिंसा नहीं है। एक चिकित्सक द्वारा प्राण-रक्षा के लिए शल्य चिकित्सा करना हिंसा नहीं है। इसलिए पाकिस्तान को प्रति उत्तर देना भी हिंसा नहीं है।

मध्यकाल में हमारे देश में दो विचारधारा प्रचलित हुई। एक बुद्ध मत और दूसरा जैन मत। दोनों ने अहिंसा को भिन्न भिन्न प्रकार से समझने का प्रयास किया। जैन मत ने अति अहिंसा को स्पर्श करने का प्रयास किया। छानकर जल पीना, नंगे पैर चलना, वाहन का प्रयोग न करना, मुख पर पट्टी बांधने से अतिसूक्षम जीवों की रक्षा करना जैन समाज के अनुसार धार्मिक कृत्य समझा गया। जैन शासकों ने इन मान्यताओं को प्रचलित किया। यहाँ तक एक सेठ द्वारा सर की जूं मारने पर उसे दण्डित किया गया। उसे जेल में डाल दिया गया और उसकी संपत्ति जब्त कर मृत जूं की स्मृति में मंदिर का निर्माण किया गया। इस विचार का दूरगामी परिणाम अत्यंत कष्टदायक था। हमारे देश के लोग शत्रु का सामना करने को हिंसा समझने लगे। हमारी रक्षा पंक्ति टूट गई। देश गुलाम बन गया। शत्रु का हनन करना हिंसा का प्रतीक बन गया।

बुद्ध मत में अहिंसा को नया नाम मिला। वह था "निराशावाद" ।महात्मा बुद्ध के काल में शरीर को पीप-विष्ठा-मूत्र का गोला कहा जाने लगा। विश्व को दुःख,असार, त्याग्य, हेय, निस्सार, कष्ठदायी माना जाने लगा और अकर्मयता एवं जगत के त्याग का भाव दृढ़ होने लगा। कालांतर में उपनिषदों और गीता में यही जगत दुखवाद का भाव लाद दिया गया। भारतीयों की इच्छा जगत को स्वर्ग बनाने के स्थान पर त्याग करने की होने लगी। अकर्मयता के साथ निराशावाद घर करने लगी। इससे यह भावना दृढ़ हुई की इस दुखमय संसार में मलेच्छ राज्य करे चाहे कोई और करे हमें तो उसका त्याग ही करना हैं। ऐसे विचार जिस देश में फैले हो वह देश सैकड़ों वर्षों क्या हज़ारों वर्षों तक भी पराधीन रहे तो क्या आश्चर्य की बात हैं।

इन दोनों विचारधाराओं से भिन्न वेद का दृष्टिकोण व्यावहारिक एवं सत्य है।

एक ओर वेदों में शत्रु का नाश करने के लिए सामर्थ्यवान बनने का सन्देश दिया गया है। वहीं दूसरी ओर सभी प्राणियों को मित्र के समान देखने का सन्देश दिया गया है।

 यजुर्वेद 1/18 में स्पष्ट कहा गया कि हे मनुष्य तू  शत्रुओं के नाश में समर्थ बन।

यजुर्वेद 36/18 में  मित्रस्य चक्षुषा समीक्षामहे अर्थात हे मनुष्य तो सभी को मित्र के समान देख।

हिंसा और अहिंसा का ऐसा सुन्दर सन्देश संसार में किसी अन्य विचारधारा में कहीं नहीं मिलता।

 जहाँ तक निराशावाद की बात है। वेद में हमारे शरीर का सुन्दर वर्णन मिलता हैं। अथर्ववेद के 10/2/31 मंत्र में इस शरीर को 8 चक्रों से ...रक्षा करने वाला (यम, नियम से समाधी तक) और 9  द्वार (दो आँख, दो नाक, दो कान, एक मुख, एक मूत्र और एक गुदा) से आवागमन करने वाला कहा गया हैं।  जिसके भीतर सुवर्णमय कोष में अनेक बलों से युक्त तीन प्रकार की गति (ज्ञान, कर्म और उपासना ) करने वाली चेतन आत्मा है। इस जीवात्मा के भीतर और बाहर परमात्मा है और उसी परमात्मा को योगी जन साक्षात करते है। शरीर का यह अलंकारिक वर्णन राज्य विस्तार एवं नगर प्रबंधन का भी सन्देश देता है। शरीर के समान राज्य की भी रक्षा की जाये। वैदिक अध्यात्मवाद जिस प्रकार शरीर को त्यागने का आदेश नहीं देता वैसे ही नगरों को भी त्यागने के स्थान पर उन्हें सुरक्षित एवं स्वर्गसमान बनाने का सन्देश देता है। वेद बुद्धि को दीर्घ जीवन प्राप्त करके सुखपूर्वक रहने की प्रेरणा देते हैं। वेद शरीर को अभ्युदय एवं जगत को अनुष्ठान हेतु मानते थे। वैदिक ऋषि शरीर को ऋषियों का पवित्र आश्रम, देवों का रम्य मंदिर, ब्रह्मा का अपराजित मंदिर मानते थे।


इस प्रकार से अतिवादी या छदम अहिंसा के सन्देश से संसार का कुछ भला नहीं होने वाला। आपको अहिंसा और स्वरक्षा के मध्य के सन्देश को समझना होगा। इसी में सभी का हित हैं।

A terrorist Ghazi Saiyyad Salar Masud is worshipped by Stupid Hindus

एक मुस्लिम हमलावर सुल्तान सैयद सालार मसूद गाज़ी जिसने भारत पर सन 1031 में विशाल सेना के साथ हमला किया 
ये जिहादी स्वयं ग़ज़नी का रिश्तेदार था, वही ग़ज़नी जिसने सोमनाथ मंदिर पर 16 बार हमला किया कत्लेआम किया बलात्कार किया मंदिर को तोडा एक मुस्लिम हमलावर सुल्तान सैयद सालार मसूद गाज़ी जिसने भारत पर सन 1031 में विशाल सेना के साथ हमला किया


ये जिहादी स्वयं ग़ज़नी का रिश्तेदार था, वही ग़ज़नी जिसने सोमनाथ मंदिर पर 16 बार हमला किया कत्लेआम किया बलात्कार किया मंदिर को तोडा एक मुस्लिम हमलावर सुल्तान सैयद सालार मसूद गाज़ी जिसने भारत पर सन 1031 में विशाल सेना के साथ हमला किया
ये जिहादी स्वयं ग़ज़नी का रिश्तेदार था, वही ग़ज़नी जिसने सोमनाथ मंदिर पर 16 बार हमला किया कत्लेआम किया बलात्कार किया मंदिर को तोडा 

ग़ज़नी तो भारत में बार बार लूट, हत्या, बलात्कार के बाद वापस चला जाता था पर उसी का रिश्तेदार सैयद सालार मसूद गाज़ी
ने भारत पर हमला किया और उसका मकसद था की भारत को पूरी तरह इस्लामिक राष्ट्र बना देगा जैसे पर्शिया/ ईरान को बन दिया गया 

सैयद सालार मसूद अपनी सेना को लेकर “हिन्दुकुश” पर्वतमाला को पार करके पाकिस्तान (आज के) के पंजाब में पहुँचा, जहाँ उसे पहले हिन्दू राजा आनन्द पाल शाही का सामना करना पड़ा, जिसका उसने आसानी से सफ़ाया कर दिया। मसूद के बढ़ते कदमों को रोकने के लिये सियालकोट के राजा अर्जन सिंह ने भी आनन्द पाल की मदद की लेकिन इतनी विशाल सेना के आगे वे बेबस रहे। मसूद धीरे-धीरे आगे बढ़ते-बढ़ते राजपूताना और मालवा प्रांत में पहुँचा, जहाँ राजा महिपाल तोमर से उसका मुकाबला हुआ, और उसे भी मसूद ने अपनी सैनिक ताकत से हराया। 

एक तरह से यह भारत के विरुद्ध पहला जेहाद कहा जा सकता है, जहाँ कोई मुगल आक्रांता सिर्फ़ लूटने की नीयत से नहीं बल्कि बसने, राज्य करने और इस्लाम को फ़ैलाने का उद्देश्य लेकर आया था। पंजाब से लेकर उत्तरप्रदेश के गांगेय इलाके को रौंदते, लूटते, हत्यायें-बलात्कार करते सैयद सालार मसूद अयोध्या के नज़दीक स्थित बहराइच पहुँचा, जहाँ उसका इरादा एक सेना की छावनी और राजधानी बनाने का था। इस दौरान इस्लाम के प्रति उसकी सेवाओं को देखते हुए उसे “गाज़ी बाबा” की उपाधि दी गई

इस्लामी खतरे को देखते हुए पहली बार भारत के उत्तरी इलाके के हिन्दू राजाओं ने एक विशाल गठबन्धन बनाया, जिसमें 17 राजा सेना सहित शामिल हुए और उनकी संगठित संख्या सैयद सालार मसूद की विशाल सेना से भी ज्यादा हो गई। जैसी कि हिन्दुओ की परम्परा रही है, सभी राजाओं के इस गठबन्धन ने सालार मसूद के पास संदेश भिजवाया कि यह पवित्र धरती हमारी है और वह अपनी सेना के साथ चुपचाप भारत छोड़कर निकल जाये अथवा उसे एक भयानक युद्ध झेलना पड़ेगा। 

गाज़ी मसूद का जवाब भी वही आया जो कि अपेक्षित था, उसने कहा कि “इस धरती की सारी ज़मीन खुदा की है, और वह जहाँ चाहे वहाँ रह सकता है… यह उसका धार्मिक कर्तव्य है कि वह सभी को इस्लाम का अनुयायी बनाये और जो खुदा को नहीं मानते उन्हें काफ़िर माना जाये…”। उसके बाद ऐतिहासिक बहराइच का युद्ध हुआ, जिसमें संगठित हिन्दुओं की सेना ने सैयद मसूद की सेना को धूल चटा दी। इस भयानक युद्ध के बारे में इस्लामी विद्वान शेख अब्दुर रहमान चिश्ती की पुस्तक मीर-उल-मसूरी में विस्तार से वर्णन किया गया है। उन्होंने लिखा है कि मसूद सन् 1033 में बहराइच पहुँचा, तब तक हिन्दू राजा संगठित होना शुरु हो चुके थे। यह भीषण रक्तपात वाला युद्ध मई-जून 1033 में लड़ा गया। युद्ध इतना भीषण था कि सैयद सालार मसूद के किसी भी सैनिक को जीवित नहीं जाने दिया गया, 

यहाँ तक कि युद्ध बंदियों को भी मार डाला गया… मसूद का समूचे भारत को इस्लामी रंग में रंगने का सपना अधूरा ही रह गया।बहराइच का यह युद्ध 14 जून 1033 को समाप्त हुआ।
बहराइच के नज़दीक इसी मुगल आक्रांता सैयद सालार मसूद (तथाकथित गाज़ी बाबा) की कब्र बनी। जब फ़िरोज़शाह तुगलक का शासन समूचे इलाके में पुनर्स्थापित हुआ तब वह बहराइच आया और मसूद के बारे में जानकारी पाकर प्रभावित हुआ और उसने उसकी कब्र को एक विशाल दरगाह और गुम्बज का रूप देकर सैयद सालार मसूद को “एक धर्मात्मा” के रूप में प्रचारित करना शुरु किया, एक ऐसा इस्लामी धर्मात्मा जो भारत में इस्लाम का प्रचार करने आया था। 

मुगल काल में धीरे-धीरे यह किंवदंती का रूप लेता गया और कालान्तर में सभी लोगों ने इस “गाज़ी बाबा” को “पहुँचा हुआ पीर” मान लिया तथा उसकी दरगाह पर प्रतिवर्ष एक “उर्स” का आयोजन होने लगा, जो कि आज भी जारी है।

आज अंधभक्ति और मूर्खता और महामूर्खता में अनपढ़ता में हिन्दू उसी जिहादी के मजार पर जाकर स्वास्थ्य लाभ और अन्य स्वार्थो की पूर्ती के लिए सर झुकाते है 
क्या इन हिन्दुओ को मुर्ख कहना गलत है जिसने हिन्दुओ के कत्लेआम, बलात्कार, मंदिरों को तोड़ने के अलावा कुछ नहीं किया आज उसकी भक्ति में हिन्दू किसी गधे की तरह सर झुकाने जाता है 

इतिहासकार और वामपंथी हैवानो ने हिन्दुओ को कोई जानकारी ही नहीं दी, ये पूरी जानकारी आप हिन्दुओ तक पहुचाइए 
दैनिक भारत ऐसी कई और जानकारियां आपतक देता रहेगा, दैनिक भारत का जन्म ही इंडिया को भारत(हिन्दू राष्ट्र) बनाने के लिए हुआ है

Thursday, October 13, 2016

Former Police officer exposes CIA- Drug Trafficker

Former LA Police Officer Mike Ruppert exoses that the CIA is the main trafficker of all drugs in 1996.

Thailand's King Bhumibol Adulyadej


Thailand's King Bhumibol Adulyadej is no more. He was not an ordinary king. He was a fine inventor and innovator and many of his inventions were devoted to development. The King owned over 20 patents and 19 trademarks, most of which are tools and techniques for rural development projects. In order to counter drought in his country, which was crippling farmers, he spent years researching cloud-seeing techniques and used his own money to launch the Royal Rainmaking Project. His 'Super Sandwich' technique of cloud seeding not only got him a European patent and scores of international awards but earned him the epithet of "Father of Royal Rain-Making" from his subjects who loved him dearly. Last year, Australia's Queensland requested Thailand to share this rain-making technique to counter its drought and a collaboration was started.
Another of his popular inventions was the Chaipattana aerator. This was developed as a low-cost solution to help address water pollution in rivers, canals, swamps and marshes. The Chaipattana aerator is used in many locations including Bangkok's Makasan lagoon, initiated by His Majesty the King himself, and in Ayutthaya's Bangpa-in Palace, implemented with cooperation from the German business community. Today, the aerators (which won many innovation awards) are widely used to treat water in both Bangkok and rural areas.
Other royal inventions include water purification devices, a liquid-propelled engine for small boats, as well as techniques for conversion of palm oil into palm diesel as an alternative source of energy, and techniques to revitalise acidic soil.
I mourn with the Thais at the passing of a great monarch. He had his faults but he was loved. Not sure if monarchy will survive after this death because his heir is not known all that much to the people. I believe the Indic institution of monarchy in its ideal form where the royals and their subjects understand their dharma, has always been an effective way of maintaining peace, harmony, cultural traditions and balance between environment and commerce.
Apart from the political struggle that will follow, I also worry about the Christian missionaries who are waiting on the sidelines for the death of this king whose remarkable influence prevented them from making significant inroads into Thailand. I remember reading several articles by pastors who were wondering how to break the devotion for the King as well as Buddha and get the people into the Christian fold. Thailand has been one of the countries which has stumped evangelicals for a long time.
Laa-gàwn (goodbye) dear King, may your love protect and preserve the country and take it to great heights.

Thursday, October 6, 2016

संत रविदास और इस्लाम


संत रविदास और इस्लाम

डॉ विवेक आर्य

आज जय भीम, जय मीम का नारा लगाने वाले दलित भाइयों को आज के कुछ राजनेता कठपुतली के समान प्रयोग कर रहे हैं। यह मानसिक गुलामी का लक्षण है। दलित-मुस्लिम गठजोड़ के रूप में बहकाना भी इसी कड़ी का भाग हैं। दलित समाज में संत रविदास का नाम प्रमुख समाज सुधारकों के रूप में स्मरण किया जाता हैं। आप जाटव या चमार कुल से सम्बंधित माने जाते थे। चमार शब्द चंवर का अपभ्रंश है।

चर्ममारी राजवंश का उल्लेख महाभारत जैसे प्राचीन भारतीय वांग्मय में मिलता है। प्रसिद्ध विद्वान डॉ विजय सोनकर शास्त्राी ने इस विषय पर गहन शोध कर चर्ममारी राजवंश के इतिहास पर पुस्तक लिखा है। इसी तरह चमार शब्द से मिलते-जुलते शब्द चंवर वंश के क्षत्रियों के बारे में कर्नल टाड ने अपनी पुस्तक ‘राजस्थान का इतिहास’ में लिखा है। चंवर राजवंश का शासन पश्चिमी भारत पर रहा है। इसकी शाखाएं मेवाड़ के प्रतापी सम्राट महाराज बाप्पा रावल के वंश से मिलती हैं। संत रविदास जी महाराज लम्बे समय तक चित्तौड़ के दुर्ग में महाराणा सांगा के गुरू के रूप में रहे हैं। संत रविदास जी महाराज के महान, प्रभावी व्यक्तित्व के कारण बड़ी संख्या में लोग इनके शिष्य बने। आज भी इस क्षेत्रा में बड़ी संख्या में रविदासी पाये जाते हैं।
                                         
उस काल का मुस्लिम सुल्तान सिकंदर लोधी अन्य किसी भी सामान्य मुस्लिम शासक की तरह भारत के हिन्दुओं को मुसलमान बनाने की उधेड़बुन में लगा रहता था। इन सभी आक्रमणकारियों की दृष्टि ग़ाज़ी उपाधि पर रहती थी। सुल्तान सिकंदर लोधी ने संत रविदास जी महाराज मुसलमान बनाने की जुगत में अपने मुल्लाओं को लगाया। जनश्रुति है कि वो मुल्ला संत रविदास जी महाराज से प्रभावित हो कर स्वयं उनके शिष्य बन गए और एक तो रामदास नाम रख कर हिन्दू हो गया। सिकंदर लोदी अपने षड्यंत्रा की यह दुर्गति होने पर चिढ़ गया और उसने संत रविदास जी को बंदी बना लिया और उनके अनुयायियों को हिन्दुओं में सदैव से निषिद्ध खाल उतारने, चमड़ा कमाने, जूते बनाने के काम में लगाया। इसी दुष्ट ने चंवर वंश के क्षत्रियों को अपमानित करने के लिये नाम बिगाड़ कर चमार सम्बोधित किया। चमार शब्द का पहला प्रयोग यहीं से शुरू हुआ। संत रविदास जी महाराज की ये पंक्तियाँ सिकंदर लोधी के अत्याचार का वर्णन करती हैं।

वेद धर्म सबसे बड़ा, अनुपम सच्चा ज्ञान
फिर मैं क्यों छोड़ूँ इसे पढ़ लूँ झूट क़ुरान
वेद धर्म छोड़ूँ नहीं कोसिस करो हजार
तिल-तिल काटो चाही गोदो अंग कटार

चंवर वंश के क्षत्रिय संत रविदास जी के बंदी बनाने का समाचार मिलने पर दिल्ली पर चढ़ दौड़े और दिल्लीं की नाकाबंदी कर ली। विवश हो कर सुल्तान सिकंदर लोदी को संत रविदास जी को छोड़ना पड़ा । इस झपट का ज़िक्र इतिहास की पुस्तकों में नहीं है मगर संत रविदास जी के ग्रन्थ रविदास रामायण की यह पंक्तियाँ सत्य उद्घाटित करती हैं

बादशाह ने वचन उचारा । मत प्यादरा इसलाम हमारा ।।
खंडन करै उसे रविदासा । उसे करौ प्राण कौ नाशा ।।
जब तक राम नाम रट लावे । दाना पानी यह नहीं पावे ।।
जब इसलाम धर्म स्वीरकारे । मुख से कलमा आप उचारै ।।
पढे नमाज जभी चितलाई । दाना पानी तब यह पाई ।।

जैसे उस काल में इस्लामिक शासक हिंदुओं को मुसलमान बनाने के लिए हर संभव प्रयास करते रहते थे वैसे ही आज भी कर रहे हैं। उस काल में दलितों के प्रेरणास्रोत्र संत रविदास सरीखे महान चिंतक थे। जिन्हें अपने प्रान न्योछावर करना स्वीकार था मगर वेदों को त्याग कर क़ुरान पढ़ना स्वीकार नहीं था।
मगर इसे ठीक विपरीत आज के दलित राजनेता अपने तुच्छ लाभ के  लिए अपने पूर्वजों की संस्कृति और तपस्या की अनदेखी कर रहे हैं।

 दलित समाज के कुछ राजनेता जिनका काम ही समाज के छोटे-छोटे खंड बाँट कर अपनी दुकान चलाना है अपने हित के लिए हिन्दू समाज के टुकड़े-टुकड़े करने का प्रयास कर रहे हैं।

आईये डॉ अम्बेडकर की सुने जिन्होंने अनेक प्रलोभन के बाद भी इस्लाम और ईसाइयत को स्वीकार करना स्वीकार नहीं किया।

(हर हिन्दू राष्ट्रवादी इस लेख को शेयर अवश्य करे जिससे हिन्दू समाज को तोड़ने वालों का षड़यंत्र विफल हो जाये)
सदना पीर कहता है -
" एक हिन्दू एक तुरक है ,प्रकट दोनों दीन |
अल्ला ताला ने किये ,दोनों मत प्रवीन || -रविदास रामायण
एक हिन्दू है और एक तुरक है दोनों धर्मो को मानने वाले है | अल्ला ताला ने ही दोनों को पैदा किया उनका दीन धर्म भी उसी ने प्रकट करा |
अब संत रविदास जोरदार जवाब देते हुए कहते है -
हिन्दू और तुरक दोनों शब्द को नवीन बताते हुए वेदों के देव शब्द को प्राचीन कहते है -
" हिन्दू तुरक दो शब्द नवीना | देव शब्द आदि प्राचीना ||
ये स्वभाव आद से आवै | काल पलट जग पलटा खावै ||
वैधर्म आ जगत में छाया | देव शब्द से हिन्दू कहलाया ||
अर्थात - हिन्दू और तुरक यह दोनों शब्द नवीन है यह दोनों शब्द अभी हाल के ही है हिन्दू और तुरक में भेद नही यह इस तर्क से ही अलग है | वेद धर्म से ही जगत अस्तित्व में आया है | जो देव से जुडा वही आज हिन्दू कहलाया है |
अब कुरान और मुस्लिमो पर प्रहार कर वेद का महत्व बताते हुए संत रविदास कहते है -
" तुरक शब्द की नाही निशानी | मोहमदीन नही मुल्लामानी ||
जाप जपत जगत वेद दुबारा | बिस्मिल पद नही कुरआन सिपारा || -रविदास रामायण
अर्थात मुस्लिम शब्द का तो कोई निशान ही नही मिलता है | यह संसार किसी मोहम्मद ,मुल्ला को नही मानता है | जो भी जपता है वो वेद के उपदेश से जपता है | कुरआन के बिस्मिल्ला का नही अर्थात लोग वेद के ही ईश्वर का जाप करते है कुरआन के बिस्मिला का नही |
वेद धर्म को २ अरब वर्ष पुराना संत रविदास जी बताते हुए कहते है -
" दो वृन्द काल लोक सुखदाई | वेद धर्म की ध्वजा फहराई ||
अर्थात २ अरव वर्षो से वेद धर्म जगत को सुख देते हुए ध्वजायमान है |
मुस्लिम लोग आवागमन नही मानते अर्थात पुनर्जन्म इस पर रविदास जी सदना पीर को कहते है -
" आवागमन को जो नही माने | ईशर्य्य ज्ञान क्या मुर्ख जाने || - रविदास रामायण
अर्थात जो आवागमन (पुनर्जन्म ) को नही मानता वो मुर्ख कैसे ईश्वर के ज्ञान को जान सकता है |
इस तरह कई संत रविदास ने दार्शनिक तर्को द्वारा सदना पीर की बोलती बंद कर दी तथा वेद धर्म श्रेष्ठ का मंडन भी कर दिया |
सम्भवत: रविदास जी का अनुसरण कर दलित भाई अम्बेडकर की तरफ भागने की जगह वेद धर्म की ओर आयेंगे |


Wednesday, September 28, 2016

Hillary Clinton is a poison for USA - Liar AND CORRUPTED



Here are few videos , one she double dip and she lie that she did not say that treaty signed by USA was a gold standard  - look video here-
- another- she wants to increase Islamist from 10000 to 65000 and sooner it could be millions and then USA screwed.
A big lie - She lied in senate committee and FBI director proved it and she is still roaming free- 
A big fT lie from Hillary exposed 
A video here when she used to like Trump- anti immigration but for sake of votes she changed and lied -

Now senate committee has been served to get all files related to Hillary , so if she does not become president , she will go in jail. 

Bill Clinton said same what trump saying and trump is considered a racist- 
 Attorney general is protecting Hillary 

In short - this is legacy of liar Hillary 

Monday, September 19, 2016

Baba Amte v/s Satanic Mother Teresa

Has any indian done service to Lepers like Theresa ? When Indians shunned lepers - Theresa cared for them


Have you heard about Baba Amte and his Family ???
Baba was the name given to him - it was not a religious title.
Baba Amte was born in a rich family. He had his own sports cars in 1920s. He was a lawyer in 1930s and had a great practice in Wardha 

But he joined freedom struggle - defended indians imprisoned by british and went to jail in quit india movement
After independence he started serving people with leprosy and tribals in Gond through ANANDWAN {if possible try to visit Anadwan once]
He wanted to prove that Leprosy is not very contagious and so he injected serum of a leprosy patient to prove that
He has served treated rehabilitated millions of leprosy patients
he has improved the economy of Tribal areas in Maharastra
All his life he wore khadi, lived with poor and tribals and served them
He never sought publicity in foreign countries or did Photo Op sessions for media
he didn't hobnob with politicians netas or media personal
he didn't live a 5 star life and get treated in US hospitals
He didn't take donations from dictators and smugglers
he never involved religion in this work and was an atheist
Hence we don't know his legacy
We didn't give him Bharat Ratna
He didn't get Nobel prize
And we don't put up his pictures in hospitals and call him Father Amte
Now his whole family is continuing his legacy
Baba Amte's two sons, Dr. Vikas Amte and Dr. Prakash Amte, and two daughters-in-law, Dr. Mandakini and Dr. Bharati, are all doctors. All four have dedicated their lives to social work and causes similar to those of the senior Amte.
Son Dr. Prakash Amte and his wife Dr. Mandakini Amte run a school and a hospital at Hemalkasa village in the underprivileged district of Gadchiroli in Maharashtra where people belonging to the "Madia Gond" tribe. After marrying Prakash Amte, Mandakini Amte left her governmental medical job and moved to Hemalkasa to eventually start a hospital, a school, and an orphanage for injured wild animals, including a lion and some leopards. Their two sons, Dr. Digant and Aniket have also dedicated their lives to the same causes as their parents.
Baba Amte's elder son Dr. Vikas Amte and his wife Dr. Bharati Amte run the hospital at Anandwan and co-ordinate operations between Anandwan and satellite projects.
Today, Anandwan and Hemalkasa village have one hospital, each. Anandwan has a university, an orphanage, and schools for the blind and the deaf. Currently, the self-sufficient Anandwan ashram has over 5,000 residents. The community development project at Anandwan in Maharashtra is recognised around the world. Besides Anandwan, Amte later founded "Somnath" and "Ashokwan" ashrams for treating leprosy patients.
Vishnu Vardhan