Thursday, October 6, 2016

संत रविदास और इस्लाम


संत रविदास और इस्लाम

डॉ विवेक आर्य

आज जय भीम, जय मीम का नारा लगाने वाले दलित भाइयों को आज के कुछ राजनेता कठपुतली के समान प्रयोग कर रहे हैं। यह मानसिक गुलामी का लक्षण है। दलित-मुस्लिम गठजोड़ के रूप में बहकाना भी इसी कड़ी का भाग हैं। दलित समाज में संत रविदास का नाम प्रमुख समाज सुधारकों के रूप में स्मरण किया जाता हैं। आप जाटव या चमार कुल से सम्बंधित माने जाते थे। चमार शब्द चंवर का अपभ्रंश है।

चर्ममारी राजवंश का उल्लेख महाभारत जैसे प्राचीन भारतीय वांग्मय में मिलता है। प्रसिद्ध विद्वान डॉ विजय सोनकर शास्त्राी ने इस विषय पर गहन शोध कर चर्ममारी राजवंश के इतिहास पर पुस्तक लिखा है। इसी तरह चमार शब्द से मिलते-जुलते शब्द चंवर वंश के क्षत्रियों के बारे में कर्नल टाड ने अपनी पुस्तक ‘राजस्थान का इतिहास’ में लिखा है। चंवर राजवंश का शासन पश्चिमी भारत पर रहा है। इसकी शाखाएं मेवाड़ के प्रतापी सम्राट महाराज बाप्पा रावल के वंश से मिलती हैं। संत रविदास जी महाराज लम्बे समय तक चित्तौड़ के दुर्ग में महाराणा सांगा के गुरू के रूप में रहे हैं। संत रविदास जी महाराज के महान, प्रभावी व्यक्तित्व के कारण बड़ी संख्या में लोग इनके शिष्य बने। आज भी इस क्षेत्रा में बड़ी संख्या में रविदासी पाये जाते हैं।
                                         
उस काल का मुस्लिम सुल्तान सिकंदर लोधी अन्य किसी भी सामान्य मुस्लिम शासक की तरह भारत के हिन्दुओं को मुसलमान बनाने की उधेड़बुन में लगा रहता था। इन सभी आक्रमणकारियों की दृष्टि ग़ाज़ी उपाधि पर रहती थी। सुल्तान सिकंदर लोधी ने संत रविदास जी महाराज मुसलमान बनाने की जुगत में अपने मुल्लाओं को लगाया। जनश्रुति है कि वो मुल्ला संत रविदास जी महाराज से प्रभावित हो कर स्वयं उनके शिष्य बन गए और एक तो रामदास नाम रख कर हिन्दू हो गया। सिकंदर लोदी अपने षड्यंत्रा की यह दुर्गति होने पर चिढ़ गया और उसने संत रविदास जी को बंदी बना लिया और उनके अनुयायियों को हिन्दुओं में सदैव से निषिद्ध खाल उतारने, चमड़ा कमाने, जूते बनाने के काम में लगाया। इसी दुष्ट ने चंवर वंश के क्षत्रियों को अपमानित करने के लिये नाम बिगाड़ कर चमार सम्बोधित किया। चमार शब्द का पहला प्रयोग यहीं से शुरू हुआ। संत रविदास जी महाराज की ये पंक्तियाँ सिकंदर लोधी के अत्याचार का वर्णन करती हैं।

वेद धर्म सबसे बड़ा, अनुपम सच्चा ज्ञान
फिर मैं क्यों छोड़ूँ इसे पढ़ लूँ झूट क़ुरान
वेद धर्म छोड़ूँ नहीं कोसिस करो हजार
तिल-तिल काटो चाही गोदो अंग कटार

चंवर वंश के क्षत्रिय संत रविदास जी के बंदी बनाने का समाचार मिलने पर दिल्ली पर चढ़ दौड़े और दिल्लीं की नाकाबंदी कर ली। विवश हो कर सुल्तान सिकंदर लोदी को संत रविदास जी को छोड़ना पड़ा । इस झपट का ज़िक्र इतिहास की पुस्तकों में नहीं है मगर संत रविदास जी के ग्रन्थ रविदास रामायण की यह पंक्तियाँ सत्य उद्घाटित करती हैं

बादशाह ने वचन उचारा । मत प्यादरा इसलाम हमारा ।।
खंडन करै उसे रविदासा । उसे करौ प्राण कौ नाशा ।।
जब तक राम नाम रट लावे । दाना पानी यह नहीं पावे ।।
जब इसलाम धर्म स्वीरकारे । मुख से कलमा आप उचारै ।।
पढे नमाज जभी चितलाई । दाना पानी तब यह पाई ।।

जैसे उस काल में इस्लामिक शासक हिंदुओं को मुसलमान बनाने के लिए हर संभव प्रयास करते रहते थे वैसे ही आज भी कर रहे हैं। उस काल में दलितों के प्रेरणास्रोत्र संत रविदास सरीखे महान चिंतक थे। जिन्हें अपने प्रान न्योछावर करना स्वीकार था मगर वेदों को त्याग कर क़ुरान पढ़ना स्वीकार नहीं था।
मगर इसे ठीक विपरीत आज के दलित राजनेता अपने तुच्छ लाभ के  लिए अपने पूर्वजों की संस्कृति और तपस्या की अनदेखी कर रहे हैं।

 दलित समाज के कुछ राजनेता जिनका काम ही समाज के छोटे-छोटे खंड बाँट कर अपनी दुकान चलाना है अपने हित के लिए हिन्दू समाज के टुकड़े-टुकड़े करने का प्रयास कर रहे हैं।

आईये डॉ अम्बेडकर की सुने जिन्होंने अनेक प्रलोभन के बाद भी इस्लाम और ईसाइयत को स्वीकार करना स्वीकार नहीं किया।

(हर हिन्दू राष्ट्रवादी इस लेख को शेयर अवश्य करे जिससे हिन्दू समाज को तोड़ने वालों का षड़यंत्र विफल हो जाये)
सदना पीर कहता है -
" एक हिन्दू एक तुरक है ,प्रकट दोनों दीन |
अल्ला ताला ने किये ,दोनों मत प्रवीन || -रविदास रामायण
एक हिन्दू है और एक तुरक है दोनों धर्मो को मानने वाले है | अल्ला ताला ने ही दोनों को पैदा किया उनका दीन धर्म भी उसी ने प्रकट करा |
अब संत रविदास जोरदार जवाब देते हुए कहते है -
हिन्दू और तुरक दोनों शब्द को नवीन बताते हुए वेदों के देव शब्द को प्राचीन कहते है -
" हिन्दू तुरक दो शब्द नवीना | देव शब्द आदि प्राचीना ||
ये स्वभाव आद से आवै | काल पलट जग पलटा खावै ||
वैधर्म आ जगत में छाया | देव शब्द से हिन्दू कहलाया ||
अर्थात - हिन्दू और तुरक यह दोनों शब्द नवीन है यह दोनों शब्द अभी हाल के ही है हिन्दू और तुरक में भेद नही यह इस तर्क से ही अलग है | वेद धर्म से ही जगत अस्तित्व में आया है | जो देव से जुडा वही आज हिन्दू कहलाया है |
अब कुरान और मुस्लिमो पर प्रहार कर वेद का महत्व बताते हुए संत रविदास कहते है -
" तुरक शब्द की नाही निशानी | मोहमदीन नही मुल्लामानी ||
जाप जपत जगत वेद दुबारा | बिस्मिल पद नही कुरआन सिपारा || -रविदास रामायण
अर्थात मुस्लिम शब्द का तो कोई निशान ही नही मिलता है | यह संसार किसी मोहम्मद ,मुल्ला को नही मानता है | जो भी जपता है वो वेद के उपदेश से जपता है | कुरआन के बिस्मिल्ला का नही अर्थात लोग वेद के ही ईश्वर का जाप करते है कुरआन के बिस्मिला का नही |
वेद धर्म को २ अरब वर्ष पुराना संत रविदास जी बताते हुए कहते है -
" दो वृन्द काल लोक सुखदाई | वेद धर्म की ध्वजा फहराई ||
अर्थात २ अरव वर्षो से वेद धर्म जगत को सुख देते हुए ध्वजायमान है |
मुस्लिम लोग आवागमन नही मानते अर्थात पुनर्जन्म इस पर रविदास जी सदना पीर को कहते है -
" आवागमन को जो नही माने | ईशर्य्य ज्ञान क्या मुर्ख जाने || - रविदास रामायण
अर्थात जो आवागमन (पुनर्जन्म ) को नही मानता वो मुर्ख कैसे ईश्वर के ज्ञान को जान सकता है |
इस तरह कई संत रविदास ने दार्शनिक तर्को द्वारा सदना पीर की बोलती बंद कर दी तथा वेद धर्म श्रेष्ठ का मंडन भी कर दिया |
सम्भवत: रविदास जी का अनुसरण कर दलित भाई अम्बेडकर की तरफ भागने की जगह वेद धर्म की ओर आयेंगे |


Wednesday, September 28, 2016

Hillary Clinton is a poison for USA - Liar AND CORRUPTED



Here are few videos , one she double dip and she lie that she did not say that treaty signed by USA was a gold standard  - look video here-
- another- she wants to increase Islamist from 10000 to 65000 and sooner it could be millions and then USA screwed.
A big lie - She lied in senate committee and FBI director proved it and she is still roaming free- 
A big fT lie from Hillary exposed 
A video here when she used to like Trump- anti immigration but for sake of votes she changed and lied -

Now senate committee has been served to get all files related to Hillary , so if she does not become president , she will go in jail. 

Bill Clinton said same what trump saying and trump is considered a racist- 
 Attorney general is protecting Hillary 

In short - this is legacy of liar Hillary 

Monday, September 19, 2016

Baba Amte v/s Satanic Mother Teresa

Has any indian done service to Lepers like Theresa ? When Indians shunned lepers - Theresa cared for them


Have you heard about Baba Amte and his Family ???
Baba was the name given to him - it was not a religious title.
Baba Amte was born in a rich family. He had his own sports cars in 1920s. He was a lawyer in 1930s and had a great practice in Wardha 

But he joined freedom struggle - defended indians imprisoned by british and went to jail in quit india movement
After independence he started serving people with leprosy and tribals in Gond through ANANDWAN {if possible try to visit Anadwan once]
He wanted to prove that Leprosy is not very contagious and so he injected serum of a leprosy patient to prove that
He has served treated rehabilitated millions of leprosy patients
he has improved the economy of Tribal areas in Maharastra
All his life he wore khadi, lived with poor and tribals and served them
He never sought publicity in foreign countries or did Photo Op sessions for media
he didn't hobnob with politicians netas or media personal
he didn't live a 5 star life and get treated in US hospitals
He didn't take donations from dictators and smugglers
he never involved religion in this work and was an atheist
Hence we don't know his legacy
We didn't give him Bharat Ratna
He didn't get Nobel prize
And we don't put up his pictures in hospitals and call him Father Amte
Now his whole family is continuing his legacy
Baba Amte's two sons, Dr. Vikas Amte and Dr. Prakash Amte, and two daughters-in-law, Dr. Mandakini and Dr. Bharati, are all doctors. All four have dedicated their lives to social work and causes similar to those of the senior Amte.
Son Dr. Prakash Amte and his wife Dr. Mandakini Amte run a school and a hospital at Hemalkasa village in the underprivileged district of Gadchiroli in Maharashtra where people belonging to the "Madia Gond" tribe. After marrying Prakash Amte, Mandakini Amte left her governmental medical job and moved to Hemalkasa to eventually start a hospital, a school, and an orphanage for injured wild animals, including a lion and some leopards. Their two sons, Dr. Digant and Aniket have also dedicated their lives to the same causes as their parents.
Baba Amte's elder son Dr. Vikas Amte and his wife Dr. Bharati Amte run the hospital at Anandwan and co-ordinate operations between Anandwan and satellite projects.
Today, Anandwan and Hemalkasa village have one hospital, each. Anandwan has a university, an orphanage, and schools for the blind and the deaf. Currently, the self-sufficient Anandwan ashram has over 5,000 residents. The community development project at Anandwan in Maharashtra is recognised around the world. Besides Anandwan, Amte later founded "Somnath" and "Ashokwan" ashrams for treating leprosy patients.
Vishnu Vardhan

Pakistan to get destroyed in 2017. 2017 तक पाकिस्तान ख़त्म हो सकता है ।

2017 तक पाकिस्तान ख़त्म हो सकता है ।

ज्योतिष के अनुसार पाकिस्तान के भविष्य पर चर्चा करें जिसका निर्माण दिनांक १४-०८ -१९४७ समय सुबह ९.३० बजे स्थान कराची में हुआ था जिसमें भाग्य स्थान से पूर्ण कालसर्प योग भी है । इस के आधार पर पाकिस्तान की कुंडली कन्या लगन तथा मिथुन राशी की बनती है.लगन कुंडली के अनुसार नावें घर में बैठा हुआ राहु पाकिस्तान की मानवता विरोधी ताकत तथा हिंसात्मक रवैये को दर्शाता है।

दसवें घर अष्टमेश मंगल का एकादशेश चन्द्र के साथ युति पाक सरकार की शान्ति विरोधी नीति व भारत के प्रति प्रतिशोध तथा कानून व्यवस्था को प्रकट करता है .लग्नेश बुध का सूर्य और शुक्र के साथ एकादश भावः में युति बनाना मानव विरोधी ताकत के प्रति शक्ति का प्रयोग तथा उसमे अन्य राष्ट्रों का सहयोग भी दर्शाता है। इसी लिए ज्योतिष आधार पर कुंडली विवेचन से यह बात स्पष्ट हो जाती है कि पाकिस्तान मानव विरोधी जिन ताकतों का भारत के साथ प्रयोग करता आ रहा है उसमे उसे पडोसी देशों से लाभ हो सकता है।

भारत एवम् पाक की प्रचलित नाम राशि क्रमश: धनु एवम् कन्या है। धनु एवम् कन्या राशि के स्वामी क्रमश: देव गुरू-बृहस्पति एवम् असुर-कुमार बुध है।बुध एवम् बृहस्पति में परस्पर शत्रुता है। देवगुरू बृहस्पति क्षमावान, ज्ञानवान, अहिंसावादी एवम् सात्विक ग्रह है, जबकि इसके विपरीत बुध बेहद चालक-अवसरवादी-बेईमान एवम् समयानुसार बदलाव की प्रकृति के मालिक है।

स्वतंत्र भारत की जन्मकुंडली में कर्क राशिस्थ होकर मूलभाव से सटाष्टक योग बना रहा है। पाकिस्तान के कुटिल सैन्य तंत्र के कारण आतंकवादी तत्व महाविनाशकारी परमाणु अस्त्रों को प्राप्त कर सकते है, जिससे भारत के गुजरात प्रांत में अहमदाबाद एवम् राजकोट क्षेत्र विशेष प्रभावित होंगे। पाकिस्तान आयोजित आतंकवादी आक्रमण के कारण भारत-पाक संबंधों में तनाव चरम सीमा पर होगा।

भारत-पाकिस्तान व्यापार संधि खटाई में पड़ सकती है। पाक का नापाक गणित: 2017 में हो सकता है इसका परिणाम भारत-पाक युद्ध में पाक को चीन का पूर्ण सहयोग होगा !चीन की बढ़ती ताकत के मद्देनजर पाकिस्तान में भारत-चीन संबंध को अलग नजरिए से देखा जाने लगेगा । इसमें 2017 तक भारत- पाक युद्ध की आशंका है किन्तु बाद में अंतर्राष्ट्रीय दबाव के चलते चीन पीछे हटेगा और पाकिस्तान ख़त्म हो सकता है ।



Saturday, September 10, 2016

GANESHA MOUSE -A FLYING MACHINE?

GANESHA MOUSE -A FLYING MACHINE?

जामा मस्जिद का सच-महाराज अनंगपाल तोमर द्वितीय माँ भद्र काली मंदिर

जामा मस्जिद की जगह पहले काली मंदिर था।


 लालकिला शाहजहाँ के जन्म से सैकड़ों साल पहले “महाराज अनंगपाल तोमर द्वितीय” द्वारा दिल्ली को बसाने के क्रम में ही बनाया गया था जो कि महाभारत के अभिमन्यु के वंशज तथा महाराज पृथ्वीराज चौहान के नाना जी थे | इतिहास के अनुसार लाल किला का असली नाम “लाल कोट” है,
“लाल कोट” को जिसे महाराज अनंगपालद्वितीय द्वारा सन 1060 ईस्वी में दिल्ली शहर को बसाने के क्रम में ही बनवाया गया था जबकि शाहजहाँ का जन्म ही उसके सैकड़ों वर्ष बाद 1592 ईस्वी में हुआ है | इसके पूरे साक्ष्य “प्रथवीराज रासोसे” ग्रन्थ में मिलते हैं | किले के मुख्य द्वार पर बाहर हाथी की मूर्ति अंकित है जबकि इस्लाम मूर्ति के विरोधी होते हैं और राजपूत राजा लोग हाथियों के प्रेम के लिए विख्यात थे | इसके अलावा लाल किले के महल मे लगे सुअर (वराह) के मुह वाले चार नल अभी भी हैं यह भी इस्लाम विरोधी प्रतीक चिन्ह है |
महाराज अनंगपाल तोमर द्वितीय माँ भद्र काली के उपासक थे तथा भगवान श्री कृष्ण की पत्नी देवी यमनोत्री उनकी कुल देवी थी | इन्ही के लिये उन्होने अपने आवास “लाल कोट” (लाल किला ) के निकट ही सामने भगवा पत्थर (हिंदुओं का पवित्र रंग ) से भव्य मंदिर का निर्माण करवाया था तथा प्रत्येक राजउत्सव उसी परिसर में हुआ करते थे
यहाँ की इमारतों में उपस्थित अष्टदलीय पुष्प, जंजीर, घंटियां, आदि के लक्षण वहां हिंदू धर्म चिन्हों के रूप में आज भी मौजूद हैं | हिंदुओं के मंदिर हिंदू सन्यासियों के भगवा रंग के अनुरूप भगवा पत्थरों ( लाल पत्थर ) से बनाए जाते थे जबकि मुसलमानों के इमारतें सफेद चूने से बनी होती थी और उन पर हरा रंग का प्रयोग किया जाता था | दिल्ली के जामा मस्जिद में कोई भी मुस्लिम प्रतीक चिन्ह निर्माण काल से प्रयोग नहीं हुआ था बल्कि इस मस्जिद की बनावट इसके आकार वास्तु आदि हिंदुओं के भव्य मंदिर के अनुरुप है |
शाहजहां 1627 में अपने पिता की मृत्यु होने के बाद वह गद्दी पर बैठे तो उन्होने चाहता था कि खुदा का दरबार उसके दरबार से ऊंचा हो । खुदा के घर का फर्श उसके तख्त और ताज से ऊपर हो, इसीलिए उसने महाराज अनंगपाल तोमर द्वितीय स्थापित माँ भद्र काली तथा भगवान श्री कृष्ण की पत्नी देवी यमनोत्री जो कि महाराज अनंगपाल कुल देवी थी उसे तुड़वा कर मंदिर से जुड़ी हुई भोजला नामक छोटी सी पहाड़ी जहां महाराज अनंगपाल राजकीय उत्सव के समय उत्सव देखने आने वालों के घोड़े बांधते थे उसे भी मस्जिद परिसर में मिलाने के लिये चुना और 6 अक्टूबर 1650 को मस्जिद को बनाने का काम शुरू हो गया।
मस्जिद बनाने के लिए 5000 मजदूरों ने छह साल तक काम किया । आखिरकार दस लाख के खर्च करके और हजारों टन नया पत्थर की मदद से माँ भद्र काली मंदिर के स्थान पर ये आलीशान मस्जिद बनवाई गयी । 80 मीटर लंबी और 27 मीटर चौड़ी इस मस्जिद में तीन गुंबद बनाए गए। साथ ही दोनों तरफ 41 फीट उंची मीनारे तामीर की गईं। इस मस्जिद में एक साथ 25 हजार लोग नमाज अदा कर सकते हैं। इस बेजोड़ मस्जिद का नाम भगवान श्री कृष्ण की पत्नी देवी “यमनोत्री” के नाम के कारण मुसलमान “य” की जगह “ज” शब्द का उच्चारण करते हैं अत: मस्जिद ए जहांनुमा रखा गया । जिसे फिर लोगों ने जामा मस्जिद कहना शुरू कर दिया।
मस्जिद के तैयार होते ही उज्बेकिस्तान के एक छोटे से शहर बुखारा के सैय्यद अब्दुल गफूर शाह को दिल्ली लाकर उन्हें यहाँ का इमाम घोषित किया गया और 24 जुलाई 1656 को जामा मस्जिद में पहली बार नमाज अदा की गई। इस नमाज में शाहजहां समेत सभी दरबारियों और दिल्ली के अवाम ने हिस्सा लिया। नमाज के बाद मुगल बादशाह ने इमाम अब्दुल गफूर को इमाम-ए-सल्तनत की पदवी दी और ये ऐलान भी किया कि उनका खानदान ही इस मस्जिद की इमामत करेंगे |
उस दिन के बाद से आजतक दिल्ली की जामा मस्जिद में इमामत का सिलसिला बुखारी खानदान के नाम हो गया | सैय्यद अब्दुल गफूर के बाद सय्यद अब्दुल शकूर इमाम बने। इसके बाद सैय्यद अब्दुल रहीम, सैय्यद अब्दुल गफूर, सैय्यद अब्दुल रहमान, सैय्यद अब्दुल करीम, सैय्यद मीर जीवान शाह, सैय्यद मीर अहमद अली, सैय्यद मोहम्मद शाह, सैय्यद अहमद बुखारी और सैय्यद हमीद बुखारी इमाम बने।
एक वक्त ऐसा भी था जब 1857 के बाद अंग्रेजों ने जामा मस्जिद में नमाज पर पाबंदी लगा दी और मस्जिद में अंग्रेजी फौज के घोड़े बांधे जाने लगे। आखिरकार 1864 में मस्जिद को दोबारा नमाजियों के लिए खोल दिया गया। नमाजियों के साथ-साथ दुनिया के कई जाने माने लोगों ने जामा मस्जिद की जमीन पर सजदा अदा किया है। चाहे वो सऊदी अरब के बादशाह हों या फिर मिस्त्र के नासिर। कभी ईरान के शाह पहलवी तो कभी इंडोनेशिया के राष्ट्रपति सुकर्नो, सबने यहां सजदा किया।
लेकिन इनमें से कोई भी यह नहीं जानता था कि जामा मस्जिद वास्तव में महाराज अनंगपाल तोमर द्वितीय स्थापित माँ भद्र काली तथा भगवान श्री कृष्ण की पत्नी देवी यमनोत्री का मंदिर था जिसे शाहजहां ने तुड़वा कर जामा मस्जिद बनवाया था |
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शाहजहाँ और मुमताज़ की प्रेमकहानी से जुड़ी कुछ सच्चाई


आगरा के ताजमहल को शाहजहाँ और मुमताज की प्रेम कहानी का प्रतीक कहा जाता है.

लेकिन शाहजहाँ और मुमताज की प्रेम कहानी को इतिहासकार शुरू के नकारते आयें हैं. शाहजहाँ और मुमताज की कोई प्रेम कहानी नहीं थी, बल्कि इनके जीवन की सच्चाई प्रेम कहानी से बिलकुल अलग थी

आइये जानते है शाहजहाँ और मुमताज़ की प्रेमकहानी से जुड़ी कुछ सच्चाई

मुमताज का असली नाम अर्जुमंद-बानो-बेगम” था, जो शाहजहाँ की पहली पत्नी नहीं थी.

मुमताज के अलावा शाहजहाँ की 6 और पत्नियां भी थी और इसके साथ उसके हरम में 8000 रखैलें भी थी.

मुमताज शाहजहाँ की चौथे नम्बर की पत्नी थी. मुमताज से पहले शाहजहाँ 3 शादियाँ कर चुका था. मुमताज से शादी करने के बाद 3 और लड़कियों से विवाह किया था.

मुमताज का विवाह शाहजहाँ से होने से पहले मुमताज शाहजहाँ के सूबेदार शेर अफगान खान की पत्नी थी. शाहजहाँ ने मुमताज का हरम कर विवाह किया.

मुमताज से विवाह करने के लिए शाहजहाँ ने मुमताज के पहले पति की हत्या करवा दी थी.

शाहजहाँ से विवाह के पहले मुमताज का शेर अफगान खान से एक बेटा भी था.

मुमताज शाहजहाँ के बीवियों में सबसे खुबसूरत नहीं थी. बल्कि उसकी पहली पत्नी इशरत बानो सबसे खुबसूरत थी.

मुमताज की मौत उसके 14 वे बच्चे के जन्म के बाद हुई थी.

मुमताज के मौत के तुरंत बाद शाहजहाँ ने मुमताज की बहन फरजाना से विवाह कर लिया था.

शाहजहाँ इतना ज्यादा वासना लिप्त था कि उसने अपनी स्वयं की बेटी जहाँआरा के साथ शारीरिक संबंध बना लिया था.

जहाँआरा मुमताज और शाहजहाँ की बड़ी पुत्री थी.

जहाँआरा की शक्ल मुमताज की हुबहू थी. इसलिए शाहजहाँ ने अपनी ही बेटी को अपनी रखैल बना लिया. और कभी भी जहाँआरा का कहीं और निकाह नहीं होने दिया.

शाहजहाँ ने अपने इस नाजायज संबंध को जायज दिखाने के लिए ईमाम और मौलवियों की सभा बुलाकर इस रिश्ते को जायज़ करार दिलवाया था .

शाहजहाँ की इस घटिया हरकत का समर्थन करते हुए ईमाम और मौलवियों ने कहा : – “माली को अपने द्वारा लगाये पेड़ का फल खाने का हक़ है…”.

जहाँआरा जब प्रेम संबंध में थी तो उसके प्रेमी के पकडे जाने पर शाहजहाँ ने उस लड़के को तंदूर में बंद कर जिन्दा जला दिया था.

ये थी शाहजहाँ और मुमताज़ की प्रेमकहानी की सच्चाई.

अगर दोनों में प्रेम होता तो शहजाहं की इतनी रखैलें न होती और शाहजहाँ मुमताज के मौत के बाद उसकी बहन से और अपनी बेटी से शारीरिक संबंध नहीं बनाता.

सच कहा जाए तो शाहजहाँ ना ही औरत की इज्ज़त करता था और ना ही मुमताज़ से प्रेम.

शाहजहाँ ने अपनी हवस और अहंकार के लिए मुमताज से विवाह किया था. शाहजहाँ और मुमताज़ की प्रेमकहानी झूठ के अलावा कुछ नहीं.

संदर्भ पढ़ें