Wednesday, July 20, 2016

धारा 370 पर अब मोदी लेने जा रहे बड़ा फैसला

नई दिल्ली। जम्मू कश्मीर पर एक दिन पहले आए सुप्रीम कोर्ट के ऐतिहासिक फैसले के बाद आज मोदी सरकार ने भी एक बड़ा फैसला किया है। सूत्रों के मुताबिक मोदी सरकार सभी दलों से इस मसले पर एकसाथ आने की अपील करने वाली है। बताया जा रहा है कि यह अपील जम्मू कश्मीर से धारा 370 हटाने के लिए की जाएगी।

धारा 370 और मोदी सरकार

बीते दिन सुप्रीम कोर्ट की 5 सदस्यीय संविधान पीठ ने एक ऐतिहासिक फैसला सुनाया था। इसमें सु्प्रीम कोर्ट ने कहा कि जम्मू कश्मीर कोर्ट के कानूनी मामले अब देश की किसी भी अदालत में ट्रांसफर किए जा सकते हैं। जम्मू कश्मीर में अभी तक यह प्रावधान नहीं था।

आपको बता दें कि भारतीय जनता पार्टी की ओर से प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार बनकर नरेंद्र मोदी ने जम्मू में एक बड़ी सभा में ये कहकर एक नई बहस छेड़ दी थी कि भारतीय संविधान की धारा 370 पर बहस होनी चाहिए। यह धारा भारतीय संघ के भीतर जम्मू-कश्मीर को विशेष राज्य का दर्जा देती है।

सूत्रों के मुताबिक मोदी सरकार अब धारा 370 पर संसद में बहस कराना चाहती है। लेकिन अभी तक ये जानकारी नहीं मिली है कि ये बहस इसी मानसून सत्र में कराने की योजना है या इसे अभी आगे बढ़ा दिया जाएगा।

आखिर क्या है धारा-370 का सच

  • भारतीय संविधान की धारा 370 जम्मू-कश्मीर राज्य को विशेष दर्जा प्रदान करती है।
  • 1947 में विभाजन के समय जम्मू-कश्मीर के राजा हरिसिंह पहले स्वतंत्र रहना चाहते थे लेकिन उन्होंने बाद में भारत में विलय के लिए सहमति दी।
  • जम्मू-कश्मीर में पहली अंतरिम सरकार बनाने वाले नेशनल कॉफ्रेंस के नेता शेख़ अब्दुल्ला ने भारतीय संविधान सभा से बाहर रहने की पेशकश की थी।
  • इसके बाद भारतीय संविधान में धारा 370 का प्रावधान किया गया जिसके तहत जम्मू-कश्मीर राज्य को विशेष अधिकार मिले हुए हैं।
  • 1951 में राज्य को संविधान सभा को अलग से बुलाने की अनुमति दी गई।
  • नवंबर, 1956 में राज्य के संविधान का कार्य पूरा हुआ। 26 जनवरी, 1957 को राज्य में विशेष संविधान लागू कर दिया गया।

क्या हैं विशेष अधिकार

  • धारा 370 के प्रावधानों के अनुसार, संसद को जम्मू-कश्मीर के बारे में रक्षा, विदेश मामले और संचार के विषय में कानून बनाने का अधिकार है। लेकिन किसी अन्य विषय से संबंधित क़ानून को लागू करवाने के लिए केंद्र को राज्य सरकार का अनुमोदन चाहिए।
  • इसी विशेष दर्जें के कारण जम्मू-कश्मीर राज्य पर संविधान की धारा 356 लागू नहीं होती। इस कारण राष्ट्रपति के पास राज्य के संविधान को बरख़ास्त करने का अधिकार नहीं है।
  • 1976 का शहरी भूमि क़ानून जम्मू-कश्मीर पर लागू नहीं होता। सूचना का अधिकार कानून भी यहां लागू नहीं होता।
  • इसके तहत भारतीय नागरिक को विशेष अधिकार प्राप्त राज्यों के अलावा भारत में कही भी भूमि ख़रीदने का अधिकार है। यानी भारत के दूसरे राज्यों के लोग जम्मू-कश्मीर में ज़मीन नहीं ख़रीद सकते हैं।
  • भारतीय संविधान की धारा 360 जिसमें देश में वित्तीय आपातकाल लगाने का प्रावधान है।वह भी जम्मू-कश्मीर पर लागू नहीं होती।
  • राज्य की महिला अगर राज्य के बाहर शादी करती है तो वह यहां की नागरिकता गंवा देती है।

Tuesday, July 5, 2016

Gurjar Pratihar -Battle of Herat Gurjar Vs Persian

World Famous Battle of Herat 
  Gurjar Vs Persian
Gurjar Samrat Khushnavaz Hoon 
Date 484 bc

Location Herat, Afghanistan
Result Decisive Hephthalite victory.
Belligerents
Hephthalite(Hoon) Empire; Sassanid Empire
Commanders and leaders
Khushnavaz Peroz I  †
Mihran  †
Strength
Unknown 100,000 soldiers[1]
Casualties and losses
Unknown Heavy
The Battle of Herat was a large scale military confrontation that took place in 484 between an invading force of the Sassanid Empire composed of around 100,000 men[1] under the command of Peroz I and a smaller army of the Hun Empire of Gurjar under the command of Khushnavaz Hoon. The battle was a catastrophic defeat for the Sassanid forces who were almost completely wiped out. Peroz, the Sassanid king, was killed in the action.

In 459, the Hoon(Clan Of Gujjar) occupied Bactria and were confronted by the forces of the Sassanid king, Hormizd III. It was then that Peroz, in an apparent pact with the Hephthalites,[2] killed Hormizd, his brother, and established himself as the new king. He would go on to kill the majority of his family and began a persecution of various Christian sects in his territories.

Peroz quickly moved to maintain peaceful relations with the Byzantine Empire to the west. To the east, he attempted to check the Hephthalites, whose armies had begun their conquest of eastern Iran. The Romans supported the Sassanids in these efforts, sending them auxiliary units. The efforts to deter the Hephthalite expansion met with failure when Peroz chased their forces deep into Hephthalite territory and was surrounded. Peroz was taken prisoner in 481 and was made to deliver his son, Kavadh, as a hostage for three years, further paying a ransom for his release.

It was this humiliating defeat which led Peroz to launch a new campaign against the Hephthalites.

The battle::

In 484, after the liberation of his son, Peroz formed an enormous army and marched northeast to confront the Hephthalites. The king marched his forces all the way to Balkh where he established his base camp and rejected emissaries from the Hunnic king Khushnavaz. Peroz's forces advanced from Balkh to Herat. The Huns, learning of Peroz's way of advance, left troops along his path who proceeded to cut off the eventual Sassanid retreat and surround Peroz's army in the desert around the city of Herat. In the ensuing battle, almost all of the Sassanid army was wiped out. Peroz was killed in the action and most of his commanders and entourage were captured, including two of his daughters. The Gurjar forces proceeded to sack Herat before continuing on to a general invasion of the Sassanid Empire.

Aftermath 

The Huns invaded the Sassanid territories which had been left without a central government following the death of the king. Much of the Sassanid land was pillaged repeatedly for a period of two years until a Persian noble from the House of Karen, Sukhra, restored some order by establishing one of Peroz's brothers, Balash, as the new king. The Hunnic Gurjar menace to Sassanid lands continued until the reign of Khosrau I. Balash failed to take adequate measures to counter the Hephthalite incursions, and after a rule of four years, he was deposed in favor of Kavadh I, his nephew and the son of Peroz. After the death of his father, Kavadh had fled the kingdom and took refuge with his former captors, the Hephthalites, who had previously held him as a hostage. He there married one of the daughters of the Hunnic king, who gave him an army to conquer his old kingdom and take the throne.The Sassanids were made to pay tributes to the Hephthalite Gurjar Empire until 496 when Kavadh was ousted and forced to flee once again to Hephthalite territory. King Djamasp was installed on the throne for two years until Kavadh returned at the head of an army of 30,000 troop and retook his throne, reigning from 498 until his death in 531, when he was succeeded by his son, Khosrau I.

References:

^ a b c d e Heritage World Coin Auction #3010. Boston: Heritage Capital Corporation, 2010, pp. 28
^ a b Frye, 1996: 178
^ a b c Dani, 1999: 140
^ Christian, 1998: 220
Much of the information on this page was translated from its Spanish equivalent.
Bibliography 

David Christian (1998). A history of Russia, Central Asia, and Mongolia. Oxford: Wiley-Blackwell, ISBN 0-631-20814-3.
Richard Nelson Frye (1996). The heritage of Central Asia from antiquity to the Turkish expansion. Princeton: Markus Wiener Publishers, ISBN 1-55876-111-X.
Ahmad Hasan Dani (1999). History of civilizations of Central Asia: Volumen III. Delhi: Motilal Banarsidass Publ., ISBN 81-208-1540-8.

Jewel of Pratihar Rajput saved Bharat from Mohammed गुर्जर सम्राट नागभट प्रतिहार

-------गुर्जर सम्राट नागभट प्रतिहार ----

वीर गुर्जर यौद्धा जिसने अरबो को अपने बाजुओं से मथडाला एवं इतना भयाक्रांत कर दिया था की जब गुर्जरेन्द्र नागभट्ट की गुर्जरसेना गुर्जर रणनृत्य करती हुई ,जय भौणा ( गुर्जरो का युद्ध का देवता) व जय गुर्जरेश कहती हुई जोश व वीरता से अरबो से युद्ध के लिए जाए तो अरबी लोग मुल्तान में बने एक शिव मंदिर को नष्ट करने की धमकी देकर अपनी जान बचाते थे और जिससे सैनिक युद्ध क्षेत्र से लौट आते थे। गुर्जरेन्द्र नागभट्ट प्रतिहार वीर साहसी थे जिन्हें इतिहास में नागावलोक व गुर्जरेन्द्र ( गुर्जरो के इन्द्र) के नाम से भी जाना जाता है।

के.एम.पन्निकर ने अपनी पुस्तक "सर्वे ऑफ़ इंडियन हिस्ट्री "में लिखा है -जो शक्ति मोहम्मद साहिब की मृत्यु के सौ साल के अंदर एक तरफ चीन की दिवार तक पंहुच गयी थी ,तथा दूसरी और मिश्र को पराजित करते हुए उतरी अफ्रिका को पार कर के स्पेन को पद दलित करते हुए दक्षिणी फ़्रांस तक पंहुच गयी थी जिस ताकत के पास अनगिनित सेना थी तथा जिसकी सम्पति का कोई अनुमान नही था जिसने रेगिस्तानी प्रदेशों को जीता तथा पहाड़ी व् दुर्लभ प्रांतों को भी फतह किया था। 

इन अरब सेनाओं ने जिन जिन देशों व् साम्राज्यों को विजय किया वंहा कितनी भी सम्पन्न संस्कृति थी उसे समाप्त किया तथा वहां के निवासियों को अपना धर्म छोड़ कर इस्लाम स्वीकार करना पड़ा। ईरान , मिश्र आदि मुल्कों की संस्कृति जो बड़ी प्राचीन व विकसित थी वह इतिहास की वस्तु बन कर रह गयी। अगर अरब हिंदुस्तान को भी विजय कर लेते तो यहां की वैदिक संस्कृति व धर्म भी उन्ही देशों की तरह एक भूतकालीन संस्कृति के रूप में ही शेष रहता।। 

इस सबसे बचाने का भारत में कार्य वीर गुर्जरेन्द्र नागभट्ट व गुर्जरो ने किया प्रतिहार की उपाधि पायी। गुर्जरेन्द्र ने खलीफाओं की महान आंधी को देश में घुसने से रोका और इस प्रकार इस देश की प्राचीन संस्कृति व धर्म को अक्षुण रखा। देश के लिए यह उसकी महान देन है। गुर्जरो में वैसे तो कई महान राजा हुए पर सबसे ज्यादा शक्तिशाली कनिष्क महान,कल्किराज मिहिरकुल हूण,सम्राट तोरमाण हूण , गुर्जर सम्राट खुशनवाज हूण,गुर्जरेन्द्र नागभट्ट प्रथम , गुर्जरेश मिहिरभोज , दहाडता हुआ गुर्जर सम्राट महिपालदेव,सम्राट हुविष्क कसाणा,महाराजा दद्दा चपोतकट, जयभट गुर्जर,वत्सराज रणहस्तिन थे  जिन्होने अपने जीवन मे कभी भी चीनी साम्राज्य,फारस के शहंसाह , मंगोल,तुर्की,रोमन ,मुगल और अरबों को भारत पर पैर जमाने का मौका नहीं दिया । इसीलिए आप सभी मित्रों ने कई प्रसिद्ध ऐतिहासिक किताबो पर भी पढा होगा की गुर्जरो का भारत का प्रतिहार यानी राष्ट्र रक्षक व द्वारपाल व  ईसलाम का सबसे बड़ा दुश्मन बताया गया है।।

ब्रिटिश इतिहासकार कहते थे कि भारत कभी एक  राष्ट्र था ही नहीं वामी इतिहासकार कहते हैं कि भारत राष्ट्रीयता की भावना से एक हुआ ही नहीं धर्म निरपेक्ष इतिहासकार कहते हैं कि हिंदुत्व और इस्लाम में कोई संघर्ष था ही नहीं मुस्लिम कहते है कि इस्लाम के शेरों के सामने निर्वीर्य हिंदू कभी टिके ही नहीं हमें तो यही बताया गया है यही पढाया गया है कि हिंदू सदैव हारते आये हैं .. They are born looser , और आप भी शायद ऐसा ही मानते हों पर क्या ये सच है ?
मानोगे भी क्यों नहीं जब यहाँ के राजा  खुद ही अपनी बेटियाँ पीढीदर पीढी अपने कट्टर दुश्मनो के यहाँ ब्याह के हैं, जिन अत्याचार मुगलो का सिर काटना था उन्हीं की सेनाओ के प्रधान सेनापति हो,सेनाओ में लडते हो, दामाद बनवाकर बारात मंगवाते हो व दामाद जी कहकर खुशामद व गुलामी करते हो वहाँ के लोगो को हारा व हताश ही कहा जायेगा। जहाँ के राजा व उनके सामन्त अंग्रेजो की जय जयकार करते हो व जनता का खून चूसकर कर वसूलते हो वहाँ भारत के स्वर्णिम समय गुर्जर काल यानी गुर्जर प्रतिहार साम्राज्य के काल को बस चार लाइनो में निपटा देते हैं ।

................ बिलकुल भी नहीं ...............

तो फिर सच क्या है ? क्या हमारे पूर्वजों के भी कुछ कारनामे हैं ? कुछ ऐसे कारनामे जिनपर हम गर्व कर सकें ? जवाब है .हाँ ...ऐसे ढेर सारे कारनामे जिन्होंने इस देश ही नहीं विश्व इतिहास को भी प्रभावित किया और जिनके कारण आज हम हमारी संस्कृति जीवित है और हम अपना सिर ऊंचा करके खडे हो सकते हैं क्या थे वे कारनामे ? कौन थे वे जिन्होंने इन्हें अंजाम दिया और हम उनसे अंजान हैं ??

समय - 730 ई.

मुहम्मद बिन कासिम की पराजय के बाद खलीफा हाशिम के आदेश पर जुनैद इब्न अब्द ने मुहम्मद बिन कासिम के अधूरे काम को पूरा करने का बीडा उठाया बेहद शातिर दिमाग जुनैद समझ गया था कि कश्मीर के महान योद्धा शासक ललितादित्य मुक्तापीड और कन्नौज के यशोवर्मन से वह नहीं जीत सकता , इसीलिये उसने दक्षिण में गुर्जरत्रा (गुजरात, वह भूमि जिसकी रक्षा गुर्जर करते थे व शासक थे।) के रास्ते से राजस्थान और फिर मध्यभारत को जीतकर ( और शायद फिर कन्नौज की ओर) आगे बढने की योजना बनाई और अपनी सेना के दो भाग किये -

1- अल रहमान अल मुर्री के नेतृत्व में गुजरात की ओर
2 - स्वयं जुनैद के नेतृत्व में मालवा की ओर

अरब तूफान की तरह आगे बढे नांदीपुरी में दद्द द्वारा स्थापित प्राचीन राज्य ,राजस्थान में मंडोर का हरिश्चंद्र द्वारा स्थापित प्राचीन राज्य , चित्तौड का मोरी राज्य इस तूफान में उखड गये और यहाँ तक की अरब उज्जैन तक आ पहुँचे और अरबों को लगने लगा कि वे स्पेन ,ईरान और सिंध की कहानी भी यहाँ बस दुहराने ही वाले हैं ..स्थित सचमुच भयावनी हो चुकी थी और तब भारत के गौरव को बचाने के लिये अपने यशस्वी पूर्वजों  कनिष्क महान व मिहिरकुल हूण, श्रीराम व लक्ष्मण के नाम पर गुज्जर यानी गुर्जर अपने सुयोग्य गुर्जर युवक  नागभट्ट प्रथम के नेतृत्व में उठ खडे हुए वे थे ---

-------गुर्जर कैसे बने भारतवर्ष के प्रतिहार ----------

- प्रतिहार सूर्यवंशी ( मिहिर यानी हूणो के वंशज) थे।।
- गुर्जर राष्ट्र रक्षक व प्रतिहार उपाधि से नवाजे गये।।
- गुर्जरो को शत्रु संहारक कहा गया । 

वे भारतीय इतिहास के रंगमंच पर ऐसे समय प्रकट हुए जब भारत अब तक के ज्ञात सबसे भयंकर खतरे का सामना कर रहा था . भारत संस्कृति और धर्म , उसकी ' हिंद ' के रूप में पहचान खतरे में थी अरबों के रूप में " इस्लाम " हिंदुत्व " को निगलने के लिये बेचैन था। गुर्जरेन्द्र  नागभट्ट प्रतिहार के नेतृत्व में दक्षिण के गुर्जर चालुक्य राजा विक्रमादित्य द्वितीय, वल्लभी के गुर्जरराज शिलादित्य मैत्रक और उन्हीं गुर्जर मैत्रक वंश  के गुहिलौत वंश के राणा खुम्माण जिन्हें इतिहास " बप्पा रावल " के नाम से जानता है , के साथ एक संघ बनाया गया संभवतः यशोवर्मन और ललितादित्य भी अपने राष्ट्रीय कर्तव्य से पीछे नहीं हटे और उन्होंने भी इस संघ को सैन्य सहायता भेजी . मुकाबला फिर भी गैरबराबरी का था ----

--- 100000 अरबी योद्धा v/s 40000 गुर्जर सैनिक .

और फिर शुरू हुयी कई युद्धों की श्रंखला जिसे भारत के व विश्व  के  इतिहासकार छुपाते आये हैं  व भारत में मुगलो व तुर्को के आगे झुकने वालो का , अकबर जैसे मुगलो को दामाद बनाने वालो का,हारे हुए छोटे रजवाडे के राजाओ का व हारा हुआ व  छोटे युद्धो का इतिहास पढाकर भारत को नपुंसक का देश व पराजितो का दे श बताकर किरकिरी करवा रखी है, कनिष्क महान जैसे सम्राटो जिन्होंने चीन को हराया, खुशनवाज हूण जैसे परम प्रतापी जिन्होंने फारस के बादशाह फिरोज को तीन बार हराया, मिहिरकुल हूण जैसे सम्राट को जिनका शासन मध्यएशिया तक था व गुर्जर सम्राट मिहिरभोज महान व गुर्जरेन्द्र नागभट प्रतिहार जैसे महान शासको को पढा ने से बचते रहे हैं  बस छोटी मोटी हारो पर कलम घिसते रहे हैं।-

........... "गुर्जरत्रा का युद्ध " .............

गुर्जर सम्राट नागभट्ट प्रतिहार ने 730 ई. में अपनी राजधानी भीनमाल जालौर को बनाकर एक शक्तिशाली नये गुर्जर राज्य की नींव डाली।  गुर्जरसेना ने सम्राट के रूप में नागभट्ट का राज्याभिषेक किया। वह कुशल सेनापति एवं प्रबल देशभक्त थे। गुर्जरेन्द्र नागभट्ट का ही काल वह कुसमय था जब अरब लुटेरों का आक्रमण भारत पर प्रारम्भ हो गया। अरबों ने सिंध प्रांत जीत लिया और फिर मालवा और अन्य राज्यों पर आक्रमण करना प्रारम्भ किया। सिंध पर शासन करने वाला राज्यपाल जुनैद एक खतरनाक अरबी था।उसके पास घोडो और डाकुओं की भारी सेना थी। वह तूफान की तरह सारे पश्चिमी भारत को रौंदता हुआ जालौर की ओर आ रहा था।सभी छोटे - छोटे राज्यों में रहने वाले, व्यक्ति अपना स्थान छोडकर भाग रहे थे। गुर्जर सम्राट नागभट्ट  व भडौच के महाराजा जयभट चपोत्कट ही वे प्रथम योद्धाथे जिन्होने गुर्जरत्रा ( गुर्जरदेश,गुर्जरभूमि, गुर्जरराष्ट्र,गुर्जरधरा, गुर्जरमण्डल) ही नहीं अपने भारत देश को अरबों से मुक्त कराने का बीडा उठाया था।नागभट्ट की गुर्जरसेना छोटी थी, किंतु वह स्वयं जितना साहसी, दिलेर और विवेकशील था, वैसे ही उसकी सेना थी। गुर्जरो का गुर्जर रणनृत्य इन युद्धो में बडा  काम आया इस रणनृत्य के जरिये गुर्जर बडी भयंकर व भयभीत करने वाली आवाजे निकालते थे जिससे शत्रु सेना घबरा उठती थी। गुर्जराधिराज नागभट्ट ने जुनैद के विरूद्ध अपनी मुठ्ठी भर  गुर्जरसेना को खडा कर दिया - पहली ही लडाई में ही जुनैद को करारी शिकस्त झेलनी पडी। 

अरबों के खिलाफ गुर्जरेन्द्र की सफलता अल्पकालिक मात्र न थी, बल्कि उसने अरबों की सेनाओं को बहुत पीछे खदेड दिया था। इस विजय का ऐसा प्रभाव पडा की अनेक भयभीत राजा नागभट्ट से आकर मिल गये। एक वर्ष के बाद ही नागभट्ट गुर्जरेन्द्र ने सिंध पर आक्रमण कर दिया और जुनैद का सिर काट लिया। सारी अरब सेना तितर - बितर होकर भाग खडी हुई, दुश्मनो के हाथ से नागभट्ट ने सैनधक, सुराष्ट्र, उज्जैन, मालवा, भड़ौच आदि राज्यों को मुक्त करा लिया। सन 750 में अरब लोग पुनः एकत्र हो गये। भारत विजय का अभियान छेड दिया। सारी पश्चिमी सीमा अरबो के अत्याचार से त्राहि-त्राहि कर उठी। नागभट्ट आग बबूला होकर युद्ध के लिए आक्रोशित हुआ, उसने तुरंत सीमा की रक्षा के लिए कूच कर दिया। 3000 से ऊपर अरब शत्रुओं को मौत के घाट उतार दिया और देश ने चैन की सांस ली, अपने को नागभट्ट नारायण देव के नाम से अलंकृत किया।

तंदूशे प्रतिहार के तनभृति त्रलोक्यरक्षास्पदे। 
देवो नागभट्ट: पुरातन पुने मुतिवर्षे भूणाद भुतम ।।

मर्तवढ चौहान नागभट्ट का सामंत था वह जैसा वीर था वैसा ही सुयोग्य कवि भी। उसने नागभट्ट प्रशस्ति नामक अच्छे ग्रंथ की रचना की है जो इतिहास और काव्य दोनों है। उसने गुर्जरेन्द्र नागभट्ट को वामन अवतार नाम दिया है। जिन्होने राक्षसों से धरती का उद्धार किया था। चौहान सामंत ने, जुनैद के उत्तराधिकारी तमीम को जिस वीरता से पराजित कर चमोत्कट और भड़ौच से मार भगाया कि नागभट्ट प्रतिहार ने उसे सामंत से भड़ौच का राजा ही बना दिया। सन 760 ई. में गुर्जरेन्द्र का स्वर्गवास हो गया । सन 760 - 775 तक उसके पुत्र कक्कुस्थ और पौत्र देवराज प्रतिहार ने गुर्जर राज्य को संभाला।।

अरब सदैव के लिये सिंधु के उस पार धकेल दिये गये और मात्र टापूनुमा शहर " मनसुरा " तक सीमित होकर रह गये इस तरह ना केवल विश्व को यह बताया गया कि हिंदुस्तान के योद्धा शारीरिक बल में श्रेष्ठ हैं बल्कि यह भी कि उनके हथियार उनकी युद्ध तकनीक और रणनीति विश्व में सर्वश्रेष्ठ है।। 

इस तरह भारत की सीमाओं को सुरक्षित रखते हुए उन्होंने अपना नाम सार्थक किया --

जय सम्राट कनिष्क महान 
जय गुर्जरराज मिहिरकुल हूण 
जय गुर्जरेश मिहिरभोज महान 
जय गुर्जरेन्द्र नागभट प्रतिहार 
जय गुर्जरत्रा,जय हिन्द।।।।।।।।।।।।।।।

Monday, July 4, 2016

Indian Muslim has chance to become civilized .Ban madarsa , मदरसेपेप्रतिबन्धलगाओ

Turkey ....... तुर्की 
20वीं सदी में , टर्की जो की एक जाहिल इस्लामिक देश था वहाँ एक राष्ट्रपति हुए . 
मुस्तफा कमाल अतातुर्क . 

उन्होंने  10 साल के अन्दर टर्की को एक जाहिल इस्लामिक देश से एक modern पढालिखा progressive देश बना दिया . 
सबसे पहले उन्होंने एक अभियान चलाया और टर्की को उसकी अरबी जड़ों से काट के तुर्की आत्मसमान को जागृत किया . 
सबसे पहले उन्होंने देश में अरबी भाषा पे प्रतिबन्ध लगा दिया . अरबी लिपि को त्याग कर Latin आधारित नयी लिपि तुर्की भाषा के लिए विकसित की . उन्होंने देश के शिक्षा विदों से पूछा , हम कितने दिनों में पूरे देश को नयी तुर्की लिपि सिखा देंगे ? 
3 से 5 साल में ? 
राष्ट्रपति ने कहा 3 से 5 महीने में करो ये काम .........
उन्होंने कुरआन शरीफ को नयी तुर्की लिपि में लिखवाया . मस्जिदों से अरबी अजान बंद कर दी गयी . अब अजान तुर्की भाषा में होती थी . अतातुर्क ने कहा हमें अरबी इस्लाम नहीं चाहिए . हमें तुर्की इस्लाम चाहिए . हमें अरबी भाषा में कुरआन रटने वाले मुसलमान नहीं चाहिए बल्कि तुर्की भाषा में कुरआन समझने वाले मुसलमान चाहिए .
उन्होंने Turkey को इस्लामिक state से एक सेक्युलर state बना दिया . 
उन्होंने इस्लामिक शरियत की शरई courts जो सदियों से चली आ रही थी उन्हें बंद कर दिया और तुर्की का नया कानून बनाया जो इस्लामिक न हो के modern था . 
इसके बाद उन्हें मुस्लिम सिविल कोड को abolish कर Turkish सिविल कोड बनाया . मौखिक तलाक गैर कानूनी कर दिया . 4 शादियाँ गैर कानूनी कर दी . family planning अनिवार्य कर दी . 

अतातुर्क ने पूरे देश की शिक्षा व्यवस्था बदल दी . नयी तुर्की लिपि में पाठ्य पुस्तकें लिखी गयी . 
मदरसों और दीनी इस्लामिक शिक्षा पे प्रतिबन्ध लगा दिया गया . पूरी तुर्की में modern शिक्षा को अनिवार्य कर दिया गया . नतीजा ये निकला की सिर्फ 2 सालों में देश में साक्षरता 10% से बढ़ के 70 % हो गयी . 

सबसे बड़ा काम जो अतातुर्क ने किया वो देश के इस्लामिक पहनावे और रहन सहन को बदल दिया . इस्लामिक दाढ़ी , कपडे , पगड़ी प्रतिबंधित कर दी . पुरुषों को पगड़ी की जगह Hat पहनने की हिदायत दी गयी .महिलाओं के लिए हिजाब नकाब बुर्का प्रतिबंधित कर दिया . देखते  देखते महिलाएं घरों से बाहर आ के पढने लिखने लगी और काम करने लगी ........पर्दा फिर भी पूरी तरह ख़तम न हुआ था . 
इसके लिए अतातुर्क ने एक तरकीब निकाली . वेश्याओं के लिए बुर्का और पर्दा अनिवार्य कर दिया . इसका नतीजा ये निकला की जो थोड़ी बहुत महिलाएं अभी भी परदे में रहती थी उन्होंने एक झटके में पर्दा छोड़ दिया . अतातुर्क ने रातों रात देश की महिलाओं को इस्लामिक जड़ता और गुलामी से मुक्त कर दिया .........
उन्होंने महिलाओं को समाज में बराबरी का दर्जा दिया . 1935 के आम चुनावों में तुर्की में 18 महिला सांसद चुनी गयी थी . ये वो दौर था जब की अभी बहुत से यूरोपीय देशों में महिलाओं को मताधिकार तक न था . 

मुस्तफा कमाल अतातुर्क ने सिर्फ 10 साल में इस्लामिक Ottoman empire के एक जाहिल देश को एक modern देश बना दिया था . 

ऐ भारत के मुसलमानों ........ आज एक मौक़ा तुम्हे भी मिल रहा है . इस्लामिक जहालत से मुक्त होने का . मदरसों से हटा के अपने बच्चों को स्कूल भेजो . 
फैसला तुम्हे करना है  . तुम्हारी अपनी लीडरशिप ने तो तुम्हे जानबूझ कर आज तक जाहिल रखा है . वो आज भी आपको जाहिल ही रखना चाहते हैं . . आज भारत में भी एक अतातुर्क आया है जो आपको एक सम्मानजनक जीवन देना चाहता है . 
फैसला आपको ही करना है . 

banmadarsa  मदरसेपेप्रतिबन्धलगाओ

Licensed prostitution in shivapuri in MP India

शिवपुरी। बेशक भारत प्रथाओं और परम्पराओं का देश है। यहां अलग-अलग धर्म और जगहों पर अनेक प्रथाएं प्रचलित हैं। लेकिन क्या आपने किसी ऐसी प्रथा के बारे में सुना है, जिसमें औरतों की खरीद फरोख्त होती हो। वह भी दस रुपये के स्टाम्प पर। अगर नही तो हम आपको बता रहे हैं एक ऐसी ही प्रथा के बारे में जो कुप्रथा बन गयी है। यह प्रथा मध्य प्रदेश के शिवपुरी में प्रचलित है और खूब फल-फूल रही है। यह धड़ीचा प्रथा के नाम से प्रचलित है।


इसी प्रथा की शिकार कल्पना अब तक दो पति बदल चुकी है। और दो साल से दूसरे पति रमेश के साथ रह रही है। इसी तरह रज्जो पहले पति को छोड़कर अब दूसरे पति के साथ है।

दरअसल यहां प्रथा की आड़ में गरीब लड़कियों का सौदा होता है। यह सौदा स्थाई और अस्थाई दोनों तरह का होता है। प्रथा की आड़ में यहां एक तरह से औरतों की मंडी लगती है। इसमें क्षेत्र के पुरुष अपनी पसंदीदा औरत की बोली लगाते हैं। सौदा तय होने के बाद बिकने वाली औरत और खरीदने वाले पुरुष के बीच एक अनुबन्ध किया जाता है। यह अनुबन्ध खरीद की रकम के मुताबिक 10 रुपये से लेकर 100 तक के स्टाम्प पर किया जाता है। घटता लिंगानुपात और गरीबी इस प्रथा के फलने-फूलने का मुख्य कारण है। ।

सामान्य तौर पर अनुबंध छह माह से कुछ वर्ष तक के होते हैं। अनुबंध बीच में छोड़ने का भी रिवाज है। इसे छोड़- छुट्टी कहते हैं। इसमें भी अनुबंधित महिला स्टांप पर शपथपत्र देती है कि वह अब अनुबंधित पति के साथ नहीं रहेगी। ऐसे भी बहुत मामले हैं, जिसमें अनुबंध के माध्यम से एक के बाद एक आठ से दस अलग-अलग धड़ीचा प्रथा के विवाह हुए हैं। अनुबंध बीच में तोड़ने पर कई बार अनुबंधित पति को तय राशि लौटानी पड़ती है। कई बार किसी दूसरे पुरुष से ज्यादा रूपये मिलने पर महिलाएं अनुबंध तोड़ देती हैं। रकम बढ़ने पर पति को सहमति से छोड़ने में महिला को कोई परेशानी नहीं होती है।

यहां हर साल करीब 300 से ज्यादा महिलाओं को दस से 100 रूपये तक के स्टांप पर खरीदा और बेचा जाता है। स्टांप पर शर्त के अनुसार खरीदने वाले व्यक्ति को महिला या उसके परिवार को एक निश्चित रकम अदा करनी पड़ती है। रकम अदा करने व स्टांप पर अनुबंध होने के बाद महिला निश्चित समय के लिए उसकी बहू या व्यक्ति की पत्नी बन जाती है। मोटी रकम पर संबंध स्थायी होते हैं, वरना संबंध समाप्त। अनुबंध समाप्त होने के बाद मायके लौटी महिला का दूसरा सौदा कर दिया जाता है। अनुबंध की राशि समयानुसार 50 हजार से 4 लाख रूपये तक हो सकती है।

धड़ीचा प्रथा: घटता लिंगानुपात बड़ा कारण 

यहां प्रति हजार पुरूषों पर 852 महिलाएं हैं। यही कारण है कि यहां बिहार, झारखंड, छत्तीसगढ़, ओडिशा जैसे गरीब राज्यों से महिलाओं को लाकर धड़ीचा के जरिये बेचा जाता है। सामान्य वर्ग से लेकर कोली, धाकड़, लोधी आदिवासी आदि जातियों में यह चलन जारी है। इसमें सबसे ज्यादा परेशानी बच्चों को उठानी पड़ती है। स्टांप पर लिखा जाता है कि महिला स्वेच्छा से उस व्यक्ति के साथ जीवनयापन करना चाहती है। और वह उसकी पत्नी के रूप में अनुबंध की शर्तों के मुताबिक रहेगी। इस बात का भी उल्लेख होता है, इस रिश्ते से जन्मे बच्चों का अनुबंधित पति की संपत्ति पर हक होगा। फिर भी सबसे ज्यादा नुकसान तब होता है, जब मां बाप अनुबंध खत्म कर अलग हो जाते हैं। और बच्चे किसी एक के पास रह जाते हैं। यदि बच्चे महिला के पास रहते हैं तो वह धड़ीचा प्रथा के तहत दोबारा शादी कर बच्चों को अपने साथ ले जाती है, या नही तो अपने नाना नानी के पास छोड़ जाती है।

जानवरों की तरह होती है खरीद-फरोख्त 

गर्ल्स काउंट के प्रमुख रिजवान परवेज बताते हैं कि लिंग अनुपात कम होने से ढेर सारी सामाजिक बुराईंया जन्म लेती हैं। इन्हीं में से एक औरतों को जानवरों की तरह खरीद फरोख्त करना भी है।

सामाजिक कार्यकर्ता और एडवोकेट शैला अग्रवाल का कहना है कि यह अनुबंध पूरी तरह से गैरकानूनी है, कई बार इसे सरकार के समक्ष उठाया गया। लेकिन, महिलाएं या पीड़ित सामने नहीं आती हैं। जिस कारण यह प्रथा चल रही है।


Saturday, June 25, 2016

Do not vote Hillary Clinton---Clinton White House was a den of cocaine and mistresses: ex-Secret Service officer

Gary J. Byrne has devoted his life, and risked it, to serve his country — as a member of the US Air Force, a uniformed White House Secret Service officer, and a federal air marshal.
And he believes it is his patriotic duty to do anything he can to prevent Hillary Clinton from becoming president of the United States.


As someone who guarded the Oval Office during the Clinton presidency, Byrne, in an exclusive interview with The Post, tells how he witnessed “the Clinton machine leaving a wake of destruction in just about everything they do.”
He says he has also seen Hillary’s “dangerous,” abusive, paranoid behavior.
“It’s like hitting yourself with a hammer every day,” says Byrne, pounding a fist into his open hand, of the former First Lady’s explosive anger.
In his new book, “Crisis of Character: A White House Secret Service Officer Discloses His Firsthand Experience with Hillary, Bill, and How They Operate,” out Tuesday, Byrne makes no apologies for his anti-Clinton motivations.
“ ‘America first’ is in my blood,” he writes, sounding very similar to another presidential hopeful.


The book details how the president had as many as three mistresses during the same time period, including former Vice President Walter Mondale’s daughter, Eleanor, who Byrne once discovered “making out on the Map Room table” with Bill Clinton.

Read more at Here- New York POST

Friday, June 24, 2016

ललितादित्य मुक्तापीड (राज्यकाल 724-761 ई)कश्मीर के हिन्दू सम्राट

ललितादित्य मुक्तापीड (राज्यकाल 724-761 ई)कश्मीर के कर्कोटा वंश के हिन्दू सम्राट थे। उनके काल में कश्मीर का विस्तार मध्य एशिया और रूस,पीकिंग तक पहुंच गया।


कश्मीर के इतिहास के उज्ज्वल पृष्ठों पर ‘कक्रोटा वंश’ का 245 वर्ष का राज्य स्वर्णिम अक्षरों में वर्णित है।
इस वंश के राजाओं ने अरब हमलावरों को अपनी तलवार की नोक पर कई वर्षों तक रोके रखा था। कक्रोटा की माताएं अपने बच्चों को रामायण और महाभारत की कथाएं सुनाकर राष्ट्रवाद की प्रचंड आग से उद्भासित करती थीं। यज्ञोपवीत धारण के साथ शस्त्र धारण के समारोह भी होते थे, जिनमें माताएं अपने पुत्रों के मस्तक पर खून का तिलक लगाकर मातृभूमि और धर्म की रक्षा की सौगंध दिलाती थीं। अपराजेय राज्य कश्मीर इसी कक्रोटा वंश में चन्द्रापीड़ नामक राजा ने सन् 711 से 719 ई.तक कश्मीर में एक आदर्श एवं शक्तिशाली राज्य की स्थापना की। यह राजा इतना शक्तिशाली था कि चीन का राजा भी इसकी महत्ता को स्वीकार करता था।
इससे कश्मीरियों की दिग्विजयी मनोवृत्ति का परिचय मिलता है। अरब देशों तक जाकर अपनी तलवार के जौहर दिखाने की दृढ़ इच्छा और चीन जैसे देशों के साथ सैन्य संधि जैसी कूटनीतिज्ञता का आभास भी दृष्टिगोचर होता है। उन्होने अरब के मुसलमान आक्रान्ताओं को सफलतापूर्वक दबाया तथा चीन सैनिकों को भी पीछे धकेला।
ललितादित्य मुक्तापीड के साथ चीन के सम्राट का सैनिक संधि के परिणामस्वरूप, चीन से सैनिक टुकड़ियां कश्मीर के राजा चन्द्रापीड़ की सहायतार्थ पहुंची थीं। इसका प्रमाण चीन के एक राज्य वंश ‘ता-आंग’ के सरकारी उल्लेखों में मिलता है।
साहस और पराक्रम की प्रतिमूर्ति सम्राट ललितादित्य मुक्तापीढ़ का नाम कश्मीर के इतिहास में सर्वोच्च स्थान पर है। उसका सैंतीस वर्ष का राज्य उसके सफल सैनिक अभियानों, उसकी सर्वधर्मसमभाव पर आधारित जीवन प्रणाली, उसके अद्भुत कला कौशल और विश्व विजेता बनने की उसकी चाह से पहचाना जाता है। लगातार बिना थके युद्धों में व्यस्त रहना और रणक्षेत्र में अपने अनूठे सैन्य कौशल से विजय प्राप्त करना उसके स्वभाव का साक्षात्कार है।
उनका राज्य पूर्व में बंगाल तक, दक्षिण में कोंकण तक पश्चिम में तुर्किस्तान और उत्तर-पूर्व में चीन और रूस,पीकिंग तक फैला था। उन्होने अनेक भव्य भवनों का निर्माण किया।
ललितादित्य ने दक्षिण की महत्वपूर्ण विजयों के पश्चात अपना ध्यान उत्तर की तरफ लगाया जिससे उनका साम्राज्य काराकोरम पर्वत शृंखला के सूदूरवर्ती कोने तक जा पहुँचा।
साहस और पराक्रम की प्रतिमूर्ति सम्राट ललितादित्य मुक्तापीड का नाम कश्मीर के इतिहास में सर्वोच्च स्थान पर है। उसका सैंतीस वर्ष का राज्य उसके सफल सैनिक अभियानों, उसके अद्भुत कला-कौशल-प्रेम और विश्व विजेता बनने की उसकी चाह से पहचाना जाता है। लगातार बिना थके युद्धों में व्यस्त रहना और रणक्षेत्र में अपने अनूठे सैन्य कौशल से विजय प्राप्त करना उसके स्वभाव का साक्षात्कार है। ललितादित्य ने रूस,पीकिंग को भी जीता और 12 वर्ष के पश्चात् कश्मीर लौटा।
कश्मीर उस समय सबसे शक्तिशाली राज्य था। उत्तर में तिब्बत से लेकर द्वारिका और उड़ीसा के सागर तट और दक्षिण तक, पूर्व में बंगाल, पश्चिम में विदिशा और मध्य एशिया तक कश्मीर का राज्य फैला हुआ था जिसकी राजधानी प्रकरसेन नगर थी। ललितादित्य की सेना की पदचाप अरण्यक (ईरान) और रूस,पीकिंग तक पहुंच गई थी ।
–जय श्री राम
-वंदे मातरम
-भारत माता की जय