Sunday, April 17, 2016

बुद्ध बनना: नौटंकी या फैशन

नवबुद्ध बनना: नौटंकी या फैशन

रोहित वेमुला की माँ और भाई ने बुद्ध मत स्वीकार कर लिया। बुद्ध मत स्वीकार करने वाला 99.9 %दलित वर्ग बुद्ध मत को एक फैशन के रूप में स्वीकार करता हैं। उसे महात्मा बुद्ध कि शिक्षाओं और मान्यताओं से कुछ भी लेना देना नहीं होता। उलटे उसका आचरण उससे विपरीत ही रहता हैं। उदहारण के लिए-

1.
मान्यता- महात्मा बुद्ध प्राणी हिंसा के विरुद्ध थे एवं मांसाहार को वर्जित मानते थे।

समीक्षा-  रोहित वेमुला हैदराबाद यूनिवर्सिटी में बीफ फेस्टिवल बनाने वालों में शामिल था। 99.9% नवबौद्ध मांसाहारी है। बुद्ध मत के दो देश के देश दुनिया के सबसे बड़े मांसाहारी हैं। इसे कहते है "नाम बड़े दर्शन छोटे"

2. मान्यता- महात्मा बुद्ध अहिंसा के पूजारी थे। वो किसी भी प्रकार कि वैचारिक हिंसा के विरुद्ध थे।

समीक्षा- किसी भी नवबुद्ध से मिलो। वह झल्लाता हुआ अवसाद से पीड़ित व्यक्ति जैसा दिखेगा। जो सारा दिन ब्राह्मणवाद और मनुवाद के नाम पर सभी का विरोध करता दिखेगा। वह उनका भी विरोध करता दिखेगा जो जातिवाद को नहीं मानते। हर अच्छी बात का विरोध करना उसकी दैनिक दिनचर्या का भाग होगा। महात्मा बुद्ध शारीरिक, मानसिक, वैचारिक सभी प्रकार की हिंसा के विरोधी थे। नवबुद्ध ठीक विपरीत व्यवहार करते हैं।

3. मान्यता- महात्मा बुद्ध संघ अर्थात संगठन की बात करते थे। समाज को संगठित करना उनका उद्देश्य था।

समीक्षा- नवबुद्ध अलगावावादी कश्मीरी नेताओं का समर्थन कर देश और समाज को तोड़ने की नौटंकी करते दीखते हैं।

4. मान्यता- महात्मा बुद्ध धर्म में विश्वास रखते थे।

समीक्षा- नवबुद्ध देश के विरुद्ध षड़यंत्र करने वाले याकूब मेनन जैसे अधर्मी के समर्थन में खड़े होकर अपने आपको ढोंगी सिद्ध करते हैं।

5. मान्यता- महात्मा बुद्ध छल- कपट करने वाले को छल-कपट छोड़ने की शिक्षा देते थे।

समीक्षा- भारत में ईसाई मिशनरी छल-कपट कर निर्धन हिन्दुओं का धर्मान्तरण करती हैं। नवबुद्ध उनका विरोध करने के स्थान पर उनका साथ देते दीखते हैं।

6. मान्यता- महात्मा बुद्ध अत्याचारी व्यक्ति को अत्याचार छोड़ने की प्रेरणा देते थे।

समीक्षा- 1200 वर्षों से भारत भूमि इस्लामिक आक्रमणकारियों के अत्याचार सहती रही। हज़ारों बुद्ध विहार से लेकर नालंदा विश्वविद्यालय इस्लामिक आक्रमणक्रियों ने तहस-नहस कर दिए। नवबौद्ध उसी मानसिकता की पीठ थपथपाते दीखते हैं।

सन्देश- बनना भी है तो महात्मा बुद्ध कि मान्यताओं को जीवन में , व्यवहार में और आचरण में उतारों।

अन्यथा नवबुद्ध बनना तो केवल नौटंकी या फैशन जैसा दीखता हैं।

डॉ विवेक आर्य

Read what Subhas Chandra Bose say about Congress


Subhas Chandra files are now coming out with many anti India activities started by Jawaharlal Nehru and continued by his daughter and now others. Time to learn these Apostrophes .Read more -here

Dr Ambedkar and his word about Islam


सोर्स प्रमाण :- डा अंबेडकर सम्पूर्ण वाग्मय , खण्ड 151
हिन्दू मुस्लिम एकता एक अंसभव कार्य हैं भारत से समस्त मुसलमानों को पाकिस्तान भेजना और हिन्दुओं को वहां से बुलाना ही एक हल है । यदि यूनान तुर्की और बुल्गारिया जैसे कम साधनों वाले छोटे छोटे देश यह कर सकते हैं तो हमारे लिए कोई कठिनाई नहीं । साम्प्रदायिक शांति हेतु अदला बदली के इस महत्वपूर्ण कार्य को न अपनाना अत्यंत उपहासास्पद होगा ।
भारत विभाजन के बाद भी भारत में साम्प्रदायिक समस्या बनी रहेगी । पाकिस्तान में रुके हुए अल्पसंख्यक हिन्दुओं की सुरक्षा कैसे होगी ? मुसलमानों के लिए हिन्दू काफिर सम्मान के योग्य नहीं है ।
मुसलमान की भातृ भावना केवल मुसमलमानों के लिए है । कुरान गैर मुसलमानों को मित्र बनाने का विरोधी है , इसीलिए हिन्दू सिर्फ घृणा और शत्रुता के योग्य है । मुसलामनों के निष्ठा भी केवल मुस्लिम देश के प्रति होती है । इस्लाम सच्चे मुसलमानो हेतु भारत को अपनी मातृभूमि और हिन्दुओं को अपना निकट संबधी मानने की आज्ञा नहीं देता ।
संभवतः यही कारण था कि मौलाना मौहम्मद अली जैसे भारतीय मुसलमान भी अपेन शरीर को भारत की अपेक्षा येरूसलम में दफनाना अधिक पसन्द किया । कांग्रेस में मुसलमानों की स्थिति एक साम्प्रदायिक चौकी जैसी है । गुण्डागर्दी मुस्लिम राजनीति का एक स्थापित तरीका हो गया है । इस्लामी कानून समान सुधार के विरोधी हैं । धर्म निरपेक्षता को नहीं मानते ।
मुस्लिम कानूनों के अनुसार भारत हिन्दुओं और मुसलमानों की समान मातृभूमि नहीं हो सकती । वे भारत जैसे गैर मुस्लिम देश को इस्लामिक देश बनाने में जिहाद आतंकवाद का संकोच नहीं करते ।
:- डा अंबेडकर सम्पूर्ण वाग्मय , खण्ड 151

Wednesday, April 13, 2016

बैसाखी के अवसर पर हिन्दू समाज के लिए सन्देश

बैसाखी के अवसर पर हिन्दू समाज के लिए सन्देश

मुगल शासनकाल के दौरान बादशाह औरंगजेब का आतंक बढ़ता ही जा रहा था। चारों और औरंगज़ेब की दमनकारी नीति के कारण हिन्दू जनता त्रस्त थी। सदियों से हिन्दू समाज मुस्लिम आक्रांताओं के झुंडों पर झुंडों का सामना करते हुए अपना आत्म विश्वास खो बैठा था। मगर अत्याचारी थमने का नाम भी नहीं ले रहे थे। जनता पर हो रहे अत्याचार को रोकने के लिए सिख पंथ के गुरु गोबिन्द सिंह ने बैसाखी पर्व पर आज ही के दिन आनन्दपुर साहिब के विशाल मैदान में अपनी  संगत को आमंत्रित किया। जहां गुरुजी के लिए एक तख्त बिछाया गया और तख्त के पीछे एक तम्बू लगाया गया।  गुरु गोबिन्द सिंह के दायें हाथ में नंगी तलवार चमक रही थी। गोबिन्द सिंह नंगी तलवार लिए मंच पर पहुंचे और उन्होंने ऐलान किया- मुझे एक आदमी का सिर चाहिए। क्या आप में से कोई अपना सिर दे सकता है? यह सुनते ही वहां मौजूद सभी शिष्य आश्चर्यचकित रह गए और सन्नाटा छा गया। उसी समय  दयाराम नामक एक खत्री आगे आया जो लाहौर निवासी था और बोला- आप मेरा सिर ले सकते हैं। गुरुदेव उसे पास ही बनाए गए तम्बू में ले गए। कुछ देर बाद तम्बू से खून की धारा निकलती दिखाई दी। तंबू से निकलते खून को देखकर पंडाल में सन्नाटा छा गया। गुरु गोबिन्द सिंह तंबू से बाहर आए, नंगी तलवार से ताजा खून टपक रहा था। उन्होंने फिर ऐलान किया- मुझे एक और सिर चाहिए। मेरी तलवार अभी भी प्यासी है। इस बार धर्मदास नामक जाट आगे आये जो सहारनपुर के जटवाडा गांव के निवासी थे। गुरुदेव उन्हें भी तम्बू में ले गए और पहले की तरह इस बार भी थोड़ी देर में खून की धारा बाहर निकलने लगी। बाहर आकर गोबिन्द सिंह ने अपनी तलवार की प्यास बुझाने के लिए एक और व्यक्ति के सिर की मांग की। इस बार जगन्नाथ पुरी के हिम्मत राय झींवर (पानी भरने वाले) खड़े हुए। गुरुजी उन्हें भी तम्बू में ले गए और फिर से तम्बू से खून धारा बाहर आने लगी। गुरुदेव पुनः बाहर आए और एक और सिर की मांग की तब द्वारका के युवक मोहकम चन्द दर्जी आगे आए। इसी तरह पांचवी बार फिर गुरुदेव द्वारा सिर मांगने पर बीदर निवासी साहिब चन्द नाई सिर देने के लिए आगे आये। मैदान में इतने लोगों के होने के बाद भी वहां सन्नाटा पसर गया, सभी एक-दूसरे का मुंह देख रहे थे। किसी को कुछ समझ नहीं आ रहा था। तभी तम्बू से गुरु गोबिन्द सिंह केसरिया बाना पहने पांचों  नौजवानों के साथ बाहर आए। पांचों नौजवान वहीं थे जिनके सिर काटने के लिए गुरु गोबिन्द सिंह तम्बू में ले गए थे। गुरुदेव और पांचों नौजवान मंच पर आए, गुरुदेव तख्त पर बैठ गए। पांचों नौजवानों ने कहां गुरुदेव हमारे सिर काटने के लिए हमें तम्बू में नहीं ले गए थे बल्कि वह हमारी परीक्षा थी। तब गुरुदेव ने वहां उपस्थित सिक्खों से कहा आज से ये पांचों मेरे पंज प्यारे हैं। गुरु गोविन्द सिंह के महान संकल्प से खालसा की स्थापना हुई। हिन्दू समाज अत्याचार का सामना करने हेतु संगठित हुआ। इतिहास की यह घटना का मनोवैज्ञानिक पक्ष अत्यन्त महत्वपूर्ण है।

पञ्च प्यारों में सभी जातियों के प्रतिनिधि शामिल हुए थे। इसका अर्थ यही था कि अत्याचार का सामना करने के लिए हिन्दू समाज को जात-पात मिटाकर संगठित होना होगा। तभी अपने से बलवान शत्रु का सामना किया जा सकेगा। खेद है की हिन्दुओं ने गुरु गोविन्द सिंह के सन्देश पर  अमल नहीं किया। जात-पात के नाम पर बटें हुए हिन्दू समाज में संगठन भावना शुन्य हैं। गुरु गोविन्द सिंह ने स्पष्ट सन्देश दिया कि कायरता भूलकर, स्वबलिदान देना जब तक हम नहीं सीखेंगे तब तक देश, धर्म और जाति की सेवा नहीं कर सकेंगे। अन्धविश्वास में अवतार की प्रतीक्षा करने से कोई लाभ नहीं होने वाला। अपने आपको समर्थ बनाना ही एक मात्र विकल्प है। धर्मानुकूल व्यवहार, सदाचारी जीवन, अध्यात्मिकता, वेदादि शास्त्रों का ज्ञान जीवन को सफल बनाने के एकमात्र विकल्प हैं।

1. आज हमारे देश में सेक्युलरता के नाम पर, अल्पसंख्यक के नाम पर, तुष्टिकरण के नाम पर अवैध बांग्लादेशियों को बसाया जा रहा हैं।
 2. हज सब्सिडी दी जा रही है, मदरसों को अनुदान और मौलवियों को मासिक खर्च दिया जा रहा हैं, आगे आरक्षण देने की तैयारी हैं।
3. वेद, दर्शन, गीता के स्थान पर क़ुरान और बाइबिल को आज के लिए धर्म ग्रन्थ बताया जा रहा हैं।
4. हमारे अनुसरणीय राम-कृष्ण के स्थान पर साईं बाबा, ग़रीब नवाज, मदर टेरेसा को बढ़ावा दिया जा रहा हैं।
5. ईसाईयों द्वारा हिन्दुओं के धर्मान्तरण को सही और उसका प्रतिरोध करने वालों को कट्टर बताया जाता रहा हैं।
6. गौरी-ग़जनी को महान और शिवाजी और प्रताप को भगोड़ा बताया जा रहा हैं।
7.1200 वर्षों के भयानक और निर्मम अत्याचारों कि अनदेखी कर बाबरी और गुजरात दंगों को चिल्ला चिल्ला कर भ्रमित किया जा रहा हैं।
8. हिन्दुओं के दाह संस्कार को प्रदुषण और जमीन में गाड़ने को सही ठहराया जा रहा हैं।
9. दीवाली-होली को प्रदुषण और बकर ईद को त्योहार बताया जा रहा हैं।
10. वन्दे मातरम, भारत माता की जय बोलने पर आपत्ति और कश्मीर में भारतीय सेना को बलात्कारी बताया जा रहा हैं।
11. विश्व इतिहास में किसी भी देश, पर हमला कर अत्याचार न करने वाली हिन्दू समाज को अत्याचारी और समस्ते विश्व में इस्लाम के नाम पर लड़कियों को गुलाम बनाकर बेचने वालों को शांतिप्रिय बताया जा रहा हैं।
12. संस्कृत भाषा को मृत और उसके स्थान पर उर्दू, अरबी, हिब्रू और जर्मन जैसी भाषाओँ को बढ़ावा दिया जा रहा हैं।

हमारे देश, हमारी आध्यात्मिकता, हमारी आस्था, हमारी श्रेष्ठता, हमारी विरासत, हमारी महानता, हमारे स्वर्णिम इतिहास सभी को मिटाने के लिए सुनियोजित षड़यंत्र चलाया जा रहा हैं। गुरु गोविन्द सिंह के पावन सन्देश- जातिवाद और कायरता का त्याग करने और संगठित होने मात्र से हिन्दू समाज का हित संभव हैं।

आईये वैसाखी पर एक बार फिर से देश, धर्म और जाति की रक्षा का संकल्प ले।

डॉ विवेक आर्य
Following is by - S Suchindranath Aiyer
The Sikhs are a house divided. In Three. While a great number of them have a natural affinity for the Hindus whose first born were raised as the Khalsa to protect the Hindus from the Moslems, many have taken the more extreme view born from the Akali movement that the British Indian Political Service started at Sialkot (1921 - "Divide to Rule") by means of an Englishman converted to Sikhism who greatly influenced Karag Singh and Kartar Singh. The Akali movement borrows a great deal from Islam, including ideas of iconoclasm and the notion of a "Nation" while repudiating Hinduism. (They moved the Maa Bhawani that Guru Govind Singh worshiped out of Harmandir Saheb to the Durgiani Mandir and renamed Guru Arjun Singh as Guru ArjAn Singh. They also removed the Surya Narayana that Guru Nanak (a Bedi) worshipped after whom the Hari (Narayana) Mandir was originally named. The Third faction finds far great affinity with the British Commonwealth as, after the Sikh wars, seeing the military value of the Sikhs, the British took the Sikh Army into the British Indian Army and in 1857, used them, along with the Pathans, to execute the remnants of the Bengal Native Infantry and to massacre the Brahmins (Man, Woman and Child) of the Bengal Presidency which they did (though Guru Nanak was, himself, born a Brahmin to Bedi parents) Thereafter, apart from dedicated Sikh Regiments, the Sikhs were recruited and deployed in the middle rungs of the British Colonial Police Service through out the Empire, just as Anglo Indians were within India)


War Banners of Maharaja Ranjit Singh: (Karthikeya and Anjaneya)













Flag of Maharaja Ranjit Singh during the Khyber Operation. Chandi Devi flanked by Anjaneya and Karthikeya:
















 

Sunday, April 10, 2016

नकली शंकराचार्य

अद्वैत परम्परा के मठों के मुखिया के लिये प्रयोग की जाने वाली उपाधि है "शंकराचार्य"। शंकराचार्य हिन्दू धर्म में सर्वोच्च धर्म गुरु का पद है, जो कि बौद्ध धर्म में दलाईलामा एवं ईसाई धर्म में पोप के समकक्ष है। जिसकी शुरुआत आदि शंकराचार्य जी ने की। आदि शंकराचार्य जी ने चार मठ में शंकराचार्य बिठाये थे :-
1 ) उत्तर मठ, ज्योतिर्मठ जो कि जोशीमठ में स्थित है।
2) पूर्वी मठ, गोवर्धन मठ जो कि पुरी में स्थित है।
3) दक्षिणी मठ, शृंगेरी शारदा पीठ जो कि शृंगेरी में स्थित है।
4) पश्चिमी मठ, द्वारिका पीठ जो कि द्वारिका में स्थित है। बाद में एक और मठ बना जिसे मान्यता दी गयी। लेकिन आजकल बहुत नकली शंकराचार्य घूम रहे हैं सड़कों पर। करीब 65 शंकराचार्य आपको TV -अख़बारों में दिखेंगे , पर इनमे सिर्फ 5 ही असली हैं, बांकी सभी नकली-ठग स्वयम्भू "शंकराचार्य" हैं।
"दिल्ली पीठ" का कोई इतिहास ही नहीं है, जहाँ के दयानंद नाम के व्यक्ति ने खुद को शंकराचार्य घोषित किया, उन्हें आपने Peace Tv वाले डॉ जोकर नाईक के साथ धर्म की दलाली करते हुए अक्सर देखा होगा। अगर नहीं देखा आपने तो इनकी हरकतें यहाँ देखिये :-https://www.youtube.com/watch?v=X8zasuy9FBA
उतराखंड के मित्र ने बताया करीब 14-15 साल पहले एक आदमी को हरिद्वार में सायकिल चोरी में पकड़कर पब्लिक ने पिटा था -- वो बाद में खुद को शंकराचार्य बताने लगा। जब मैंने उसे जोकर नाईक साथ बैठ धर्म की दलाली करते देखा तो दंग रह गया। अब वो श्रीमान तो नहीं रहे पर उनके पुत्र शंकराचार्य" बने घूम रहे हैं।
शंकराचार्य कोई नेतागिरी या बिजनेस हॉउस नहीं जहाँ बाप की पदवी बेटे को मिले --- समस्त धर्म ग्रंथों के ज्ञान के आधार पर परीक्षा में पास हुए साधक को शंकराचार्य बनाया जाता है। पर नकली ठगों ने "जमात" और "मिशिनरी" से पैसे खाकर स्यंभू शंकराचार्य बने बैठे हैं।
मैं इन इस्लाम प्रेमी शंकराचार्य जी को सादर प्रणाम करते हुए उनसे तथ्य आधारित इस्लाम की कुछ खूबियाँ जान चाहूँगा जिसे देख दोनों पिता-पुत्र इस्लाम की मार्केटिंग करते आ रहे हैं। सबूत के तौर पर आप सिर्फ तथ्य आधारित इस्लाम या कुरान या अल्लाह या हमारे रसूल साहब की कोई खूबी बताएं जिससे आप इस्लाम के प्रशंसक बने ?
अगर अपने Sponsors के खिलाफ वयान देने में में आपको आर्थिक हानि का खतरा है तो आपसे अनुरोध है की आप फ़िल्मी इस्लाम को छोड़ वास्तविकता से परिचित होयें -- अर्थात आप कुरान पढ़ें -- हिंदी-अंग्रेजी सबमे उपलब्ध है--- पूरी किताब पढना संभव न हो तो --- कुछ सूरा और आयत आपको बता रहा हूँ प्लीज़ पढ़िए ---
1) सूरा 2 आयत 190 से 195 , सूरा 9 आयत 5, जिसमे क़त्ल-खून-खराबा का सन्देश कुरान के अल्लाह ने दिया। 
2) सूरा 33 आयत 37 और 50 जिसमे कुरान के अल्लाह चचेरी-ममेरी-फुफेरी-मौसेरी बहन और सगी बहु से सेक्स का अधिकार मुहम्मद सहित सभी मुसलमानों को देते हैं।
3) इसके अलावे आप सूरा -बकरा 2 आयत 223 पढ़िए जिसमे कुरान के अल्लाह औरतों को खेती की तरह जोतने की सलाह देते हैं। सूरा बकरा 2 आयत 228 जिसमे औरत से मर्द का दर्ज ऊपर है। प्लीज़ पढियेगा सूरा -बकरा 2 आयत 282 पढ़िए जिसमे बलात्कार पीड़ित महिला को गवाह लाने होंगे 4 -- अगर औरत गवाह है तो कुल 8 गवाह ---क्योंकि औरतों की गवाही मर्दों की आधी है कुरान के अल्लाह के हिसाब से।
इसके अलावे जन्नत में शराब की नदी और औरत (हूर) और गिलिमा (अल्प व्यसक बच्चे) सेक्स के लिए सप्लाय करने वाले अल्ला की कथा अनंत है. . … आप इतना सा पढ़ लीजिये आँखों में लगा इस्लामी सुनहरा ख्याल बदल जायेगा। आप नकली ही सही पर आपने आदि शंकराचार्य जी का नाम अपने साथ लगाया हुआ है अतः आपकी पदवी को पुनः प्रणाम करता हूँ __/\__ ‪#‎DrAlam‬

ॐ, ohm , om

हर धर्म-पंथ-सम्प्रदाय मे ईश्वर का वास्तविक नाम ॐ है:- 

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1) ॐ ख़म ब्रह्म -अर्थात ॐ ही सर्वत्र व्याप्त परम ब्रह्म है:- यजुर्वेद 40/17
2) सिख पंथ :- एक 'ओंकार', सतनाम ..! अर्थात एक मात्र ॐ स्वरुप परमात्मा है; उसका नाम ही सत्य है।
3) बौद्ध पंथ :- इसे “ओं मणिपद्मे हूं” कह कर प्रयोग करते हैं, जिसे आप स्वयं धर्मगुरु दलाई लामा से समझिये, देखें वीडियो :- https://www.youtube.com/watch?v=4QQKDP8SQZg
4) जैन पंथ में भी इस शब्द ॐ का महत्व है, वीडियो देखिये :
5) "तस्य वाचक प्रणवः " :- उस ईश्वर नामक चेतन तत्व विशेष के अस्तित्व का बोध करने वाला शब्द ध्वन्यात्मक ॐ है :- महर्षि पतंजलि समाधिपाद 27 वें सूत्र । 
इसी तरह भारत के अनेक संत महात्माओं ने भी ॐ के ध्वन्यात्मक स्वरुप (Sound vibrations) को ही ब्रह्म माना है तथा ॐ को" शब्द ब्रह्म" भी कहा है ।
6) अब्राह्मिक पंथ (यहूदी-ईसाई और इस्लाम) में हिन्दुस्तानी धर्म-सम्प्रदाय की तरह दर्शन-अध्यात्म-वेदांतज्ञान का अभाव है ! फिर भी उदाहरण के लिए अगर हिन्दू अपने सब मन्त्रों और भजनों में ॐ को शामिल करते हैं तो ईसाई और यहूदी भी इसके जैसे ही एक शब्द “आमेन” का प्रयोग धार्मिक सहमति दिखाने के लिए करते हैं । मुस्लिम इसको “आमीन” कह कर याद करते हैं ।
अंग्रेजी का शब्द “omni”, जिसके अर्थ अनंत और कभी ख़त्म न होने वाले तत्त्वों पर लगाए जाते हैं (जैसे omnipresent, omnipotent), भी वास्तव में इस ॐ शब्द से ही बना है ।
7) NASA ने सूर्य की जो ध्वनि रिकॉर्ड किया है, वह भी ॐ ही है, जिसे खुद  ‪‎NASA‬ ने 'शब्द ब्रह्म' प्रमाणित किया । देखें वीडियो :-
 

http://sdo.gsfc.nasa.gov/
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यह तो हुए ॐ शब्द के धार्मिक पहलू अब आपको बताएं की ॐ का उच्चारण करने से जो आनंद और शान्ति अनुभव होती है, वैसी शान्ति किसी और शब्द के उच्चारण से नहीं आती । यही कारण है कि सब जगह बहुत लोकप्रिय होने वाली योग-प्राणायाम की कक्षाओं में ओ३म के उच्चारण का बहुत महत्त्व है । अपनी आँखें बंद कर 10 बार ॐ का उच्चारण करके देखिये, खुद समझ जायेंगे ।
ॐ किसी ना किसी रूप में सभी मुख्य संस्कृतियों का प्रमुख भाग है । इतने से यह सिद्ध है कि ॐ किसी मत, मजहब या सम्प्रदाय से न होकर पूरी इंसानियत का है । Aum‬ के अन्दर ऐसी कोई बात नहीं है कि किसी के भगवान्/Jesus/अल्लाह का अनादर हो जाये ।
फिर आज से हम सब प्राण लें की -- अपने हर काम की शुरुआत इस पवित्र शब्द ॐ के उच्चारण के साथ करेंगे !
Dr. Alam ॐ ॐ ॐ ॐ

हिन्दू" शब्द की उत्पत्ति

"हिन्दू" शब्द की उत्पत्ति :-
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अफ़ग़ानिस्तान स्थित हिन्दूकुश पर्वत से हिन्द महासागर तक की भूमि को "हिन्दुओं का स्थान" अर्थात "हिन्दुस्तान" कहा गया है । "हिन्दू" शब्द भारतीय विद्वानों के अनुसार 5000 वर्ष से भी पुराना है। प्रमाण देखिये :-
1) इस्लाम के पिगअम्बर के जन्म से भी 1700 वर्ष पुर्व 'लबि बिन अख्ताब बिन तुर्फा' नाम के एक कवि अरब में पैदा हुए। उन्होंने अपने एक ग्रन्थ में लिखा है :-
"अया मुबार्केल अरज यू शैये नोहा मिलन हिन्दे। व अरादाक्ल्लाह मन्योंज्जेल जिकर्तुं॥
अर्थात हे हिंद कि पुन्य भूमि ! तू धन्य है,क्योंकि ईश्वर ने अपने ज्ञान के लिए तुझे चुना है।
2) शब्द कल्पद्रुम : जो कि लगभग दूसरी शताब्दी में रचित है ,में मन्त्र- 
"हीनं दुष्यति इतिहिंदू जाती विशेष:"
अर्थात हीन कर्म का त्याग करने वाले को हिंदू कहते है।
3) इसी प्रकार "अदभुत कोष" में मन्त्र है :- 
"हिंदू: हिन्दुश्च प्रसिद्धौ दुशतानाम च विघर्षने"।
अर्थात हिंदू और हिंदु दोनों शब्द दुष्टों को नष्ट करने वाले अर्थ में प्रसिद्द है।
4) वृद्ध स्म्रति (छठी शताब्दी)में मन्त्र :- 
"हिंसया दूयते यश्च सदाचरण तत्पर:। वेद्.........हिंदु मुख शब्द भाक्। "
अर्थात जो सदाचारी वैदिक मार्ग पर चलने वाला, हिंसा से दुख मानने वाला है, वह हिंदु है।
5) ब्रहस्पति आगम (समय ज्ञात नही) में श्लोक है :- 
"हिमालय समारभ्य यवाद इंदु सरोवं।तं देव निर्वितं देशम हिंदुस्थानम प्रच्क्षेत ।
अर्थात हिमालय पर्वत से लेकर इंदु(हिंद) महासागर तक देव पुरुषों द्बारा निर्मित इस क्षेत्र को हिन्दुस्थान कहते है।
6) पारसी समाज के एक अत्यन्त प्राचीन अवेस्ता ग्रन्थ में लिखा है कि,
"अक्नुम बिरह्मने व्यास नाम आज हिंद आमद बस दाना कि काल चुना नस्त"।
अर्थात व्यास नमक एक ब्राह्मण हिंद से आया जिसके बराबर कोई बुध्दिमान नही था।
7) उरूल उकुल काव्य संग्रह के पृष्ठ 235 पर उमर बिन हश्शाम लिखते है,
"व सहबी के याम फिम कामिल हिन्दे मौमन यकुलून न लाजह जन फइन्नक तवज्जरू" !
अर्थात-हे प्रभो,मेरा संपुर्ण जीवन आप ले लो परंतु,एकही दिन क्यों न हो मुझे हिन्दुस्थान में अधिवास मिलने दो। क्योकि,वहां पहुंचकर ही मनुष्य को मोक्ष की प्राप्ती हो सकती है।
8) 10 वीं शताब्दी के महाकवि वेन .....अटल नगर अजमेर,अटल हिंदव अस्थानं । महाकवि चन्द्र बरदाई :- 
जब हिंदू दल जोर छुए छूती मेरे धार भ्रम ।
ऐसे हजारो तथ्य चीख-चीख कर कहते है की हिंदू शब्द हजारों-हजारों वर्ष पुराना है। इन हजारों तथ्यों के अलावा भी लाखों तथ्य इस्लाम के लूटेरों ने तक्षशिला व नालंदा जैसे विश्वविद्यालयों को नष्ट करके समाप्त कर दिए है।
ऐसे मे जिसका जन्मस्थान हिन्दुस्तान है, वही अपनी मातृभूमि की जय बोलेगा न की गज़नी-बाबर-तैमूर-टीपू के बलात्कार से पैदा हुए नाजायज औलादें -- भारत माता की जय --- वन्दे मातरम् _

‪#‎DrAlam‬