Monday, February 29, 2016

इंदिरा गाँधी की कुछ कडवी हकीकत, truth of India Gandhi

इंदिरा गाँधी को एक बहुत
ही जिम्मेदार ,
ताकतवर और राष्ट्रभक्त महिला बताया हैं ,
इसकी कुछ
कडवी हकीकत से आपको रूबरू करवा दे !

इंदिरा प्रियदर्शिनी नेहरू राजवंश में
अनैतिकता को नयी ऊँचाई पर
पहुचाया. 
बौद्धिक इंदिरा को ऑक्सफोर्ड
विश्वविद्यालय में
भर्ती कराया गया था 

लेकिन वहाँ से
जल्दी ही पढाई में खराब प्रदर्शन
के कारण बाहर निकाल दी गयी. 

उसके बाद
उनको शांतिनिकेतन
विश्वविद्यालय में भर्ती कराया गया था,

 लेकिन गुरु
देव रवीन्द्रनाथ
टैगोर ने उन्हें उसके दुराचरण के लिए बाहर कर दिया.

शान्तिनिकेतन से
बहार निकाल जाने के बाद इंदिरा अकेली हो गयी.

राजनीतिज्ञ के रूप में
पिता राजनीति के साथ व्यस्त था और

 मां तपेदिक के
स्विट्जरलैंड में
मर रही थी.

 उनके इस अकेलेपन का फायदा फ़िरोज़ खान नाम के
व्यापारी ने उठाया. 

फ़िरोज़ खान मोतीलाल नेहरु
के घर पे
मेहेंगी विदेशी शराब की आपूर्ति किया करता था.

फ़िरोज़ खान और
इंदिरा के बीच प्रेम सम्बन्ध स्थापित हो गए.

महाराष्ट्र के तत्कालीन
राज्यपाल डा. श्री प्रकाश नेहरू ने चेतावनी दी,

कि फिरोज खान के
साथ अवैध संबंध बना रहा था. 

फिरोज खान इंग्लैंड में
तो था और
इंदिरा के प्रति उसकी बहुत सहानुभूति थी. 

जल्द
ही वह अपने धर्म
का त्याग कर,

एक मुस्लिम महिला बनीं और लंदन के एक
मस्जिद में
फिरोज खान से उसकी शादी हो गयी.

इंदिरा प्रियदर्शिनी नेहरू ने
नया नाम मैमुना बेगम रख लिया.

 उनकी मां कमला नेहरू
इस शादी से
काफी नाराज़ थी जिसके कारण उनकी तबियत और
ज्यादा बिगड़ गयी.

नेहरू भी इस धर्म रूपांतरण से खुश नहीं थे क्युकी इससे
इंदिरा के
प्रधानमंत्री बनने की सम्भावना खतरे में आ गयी. 
तो,

नेहरू ने
युवा फिरोज खान से कहा कि अपना उपनाम खान से
गांधी कर लो.

परन्तु इसका इस्लाम से हिंदू धर्म में परिवर्तन के साथ
कोई लेना -
देना नहीं था. 

यह सिर्फ एक शपथ पत्र द्वारा नाम
परिवर्तन का एक
मामला था. 
और फिरोज खान 
फिरोज गांधी बन
गया है, 

हालांकि यह
बिस्मिल्लाह शर्मा की तरह एक असंगत नाम है.

दोनों ने ही भारत
की जनता को मूर्ख बनाने के लिए नाम बदला था.

 जब
वे भारत लौटे,
एक नकली वैदिक विवाह जनता के उपभोग के लिए
स्थापित
किया गया था. 

इस प्रकार, 
इंदिरा और उसके वंश
को काल्पनिक नाम
गांधी मिला.

 नेहरू और गांधी दोनों फैंसी नाम हैं.

जैसे एक गिरगिट
अपना रंग बदलती है,

 वैसे ही इन लोगो ने
अपनी असली पहचान छुपाने के
लिए नाम बदले. . 

के.एन. राव की पुस्तक "नेहरू
राजवंश"
 (10:8186092005 ISBN) में यह स्पष्ट रूप से
लिखा गया है संजय गांधी फ़िरोज़ गांधी का पुत्र
नहीं था,

जिसकी पुष्टि के लिए उस पुस्तक में अनेक
तथ्यों को सामने
रखा गया है. 

उसमे यह साफ़ तौर पे लिखा हुआ है
की संजय गाँधी 
एक और मुस्लिम मोहम्मद यूनुस नामक सज्जन का बेटा था.

दिलचस्प बात
यह है की एक सिख लड़की मेनका का विवाह भी संजय गाँधी के साथ
मोहम्मद यूनुस के घर में ही हुआ था.

 मोहम्मद यूनुस ही वह
व्यक्ति था जो संजय गाँधी की विमान दुर्घटना के
बाद सबसे
ज्यादा रोया था. 

'यूनुस की पुस्तक 
"व्यक्ति जुनून और
राजनीति" (persons passions and politics )
(ISBN-10:
में साफ़ लिखा हुआ है की संजय गाँधी के
जन्म के बाद
उनका खतना पूरे मुस्लिम रीति रिवाज़ के साथ
किया गया था. 

कैथरीन
फ्रैंक की पुस्तक "the life of Indira Nehru Gandhi

(ISBN:
9780007259304) 
में इंदिरा गांधी के अन्य प्रेम संबंधों के
कुछ पर
प्रकाश डाला है. 

यह लिखा है
कि इंदिरा का पहला प्यार शान्तिनिकेतन
में जर्मन शिक्षक के साथ था. 

बाद में वह एम.ओ मथाई,

(पिता के सचिव) धीरेंद्र ब्रह्मचारी
 (उनके योग शिक्षक) के साथ
और 
दिनेश सिंह
(विदेश मंत्री) के साथ भी अपने प्रेम संबंधो के लिए
प्रसिद्द हुई. 

पूर्व
विदेश मंत्री नटवर सिंह ने इंदिरा गांधी के मुगलों के
लिए संबंध के बारे में
एक दिलचस्प रहस्योद्घाटन किया अपनी पुस्तक

"profiles and
letters "
 (ISBN: 8129102358) में किया. 

यह
कहा गया है
कि 1968 में इंदिरा गांधी भारत की प्रधानमंत्री के
रूप में
अफगानिस्तान की सरकारी यात्रा पर गयी थी .

नटवरसिंह एक
आई एफ एस अधिकारी के रूप में इस दौरे पे गए थे. 

दिन भर
के
कार्यक्रमों के होने के बाद इंदिरा गांधी को शाम में
सैर के लिए बाहर
जाना था . 

कार में एक लंबी दूरी जाने के बाद,
इंदिरा गांधी बाबर
की कब्रगाह के दर्शन करना चाहती थी,

 हालांकि यह
इस
यात्रा कार्यक्रम में शामिल नहीं किया गया.

अफगान
सुरक्षा अधिकारियों ने उनकी इस इच्छा पर
आपत्ति जताई पर
इंदिरा अपनी जिद पर अड़ी रही . 

अंत में वह उस
कब्रगाह पर गयी . 

यह
एक सुनसान जगह थी.

 वह बाबर की कब्र पर सर झुका कर
आँखें बंद
करके कड़ी रही और नटवर सिंह उसके पीछे खड़े थे . 

जब
इंदिरा ने
उसकी प्रार्थना समाप्तकर ली तब वह मुड़कर नटवर से
बोली 

"आज
मैंने अपने इतिहास को ताज़ा कर लिया (Today we
have had our
brush with history ". 

यहाँ आपको यह बता दे
की बाबर मुग़ल
साम्राज्य का संस्थापक था, 

और नेहरु खानदान
इसी मुग़ल साम्राज्य
से उत्पन्न हुआ. 

इतने सालो से भारतीय
जनता इसी धोखे में है की नेहरु
एक कश्मीरी पंडित था....

जो की सरासर गलत तथ्य
है..... 

इस तरह इन
नीचो ने भारत में अपनी जड़े जमाई जो आज एक बहुत बड़े
वृक्ष में
तब्दील हो गया हैं ,

जिसकी महत्वाकांक्षी शाखाओ ने
माँ भारती को आज बहुत जख्मी कर दिया हैं बाकी देश के
प्रति यदि आपकी भी कुछ
जिम्मेदारी बनती हो , 

तो अब आप लोग '' निःशब्द ''
ना बनियेगा ,, 

इसे
फैला दीजिए हर घर में !!!!

वन्देमातरम..

रॉबर्ट और प्रियंका की शादी सन 1997 में हुई
थी .
लेकिन अगर कोई रॉबर्ट को ध्यान से देखे तो यह
बात सोचेगा कि सोनिया ने रॉबर्ट जैसे कुरूप और
साधारण व्यक्ति से प्रियंका की शादी कैसे
करवा दी ?

क्या उसे प्रियंका के लिए कोई उपयुक्त वर नहीं मिला ,

और यह शादी जल्दी में और चुप चाप
क्यों की गयी . ???

वास्तव में सोनिया ने रॉबर्ट से
प्रियंका की शादी अपनी पोल खुलने के डर से
की थी .

क्योंकि जिस समय सोनिया इंगलैंड में एक कैंटीन में
बार गर्ल थी . 

उसी समय उसी जगह रोबट
की माँ मौरीन (Maureen)
भी यही काम करती थी .??

मौरीन को सोनिया और माधव राव की रास
लीला की बात पता थी ,

जब वह उसी कैंटीन सोनिया उनको शराब
पिलाया करती थी .

मौरीन यह भी जानती थी कि किन किन लोगों के
साथ सोनिया के अवैध सम्बन्ध थे .

जब सोनिया राजिव से शादी करके दिल्ली आ गयी ,

तो कुछ समय बाद मौरीन भी दिल्ली में बस गयी .

मौरीन जानती थी कि सोनिया सत्ता के लिए कुछ
भी कर सकती है ,

क्योंकि जो भी व्यक्ति उसके खतरा बन
सकता था सोनिया ने उसका पत्ता साफ कर दिया ,

जैसे संजय , 
माधव राव , 
पायलेट ,
जितेन्द्र प्रसाद ,
योगी , 

यहाँ तक लोग तो यह भी शक है कि राजीव
की हत्या में सोनिया का भी हाथ है ,

वर्ना वह अपने पति के हत्यारों को माफ़ क्यों कर देती ?

चूँकि मौरीन का पति और रॉबर्ट का पिता राजेंदर
वडरा पुराना जनसंघी था ,

और सोनिया को डर था कि अगर अपने पति के दवाब ने
मौरीन अपना मुंहखोल देगी तो मुझे भारत पर हुकूमत करने
और अपने नालायक कु पुत्र राहुल को प्रधानमंत्री बनाने
में सफलता नहीं मिलेगी .

इसीलिए सोनिया ने मौरीन के लडके रॉबर्ट
की शादी प्रियंका से करवा दी .

............शादी के बाद-की कहानी -..........
राजेंद्र वडरा के दो पुत्र ,
 रिचार्ड और रॉबर्ट और
 एक
पुत्री मिशेल थे .

और प्रियंका की शादी के बाद सभी एक एक कर मर गए

या मार दिएगए .

जैसे , 
मिशेल ( Michelle )सन 2001 में कार
दुर्घटना में मारी गयी ,

रिचार्ड ( Richard )ने सन 2003 में आत्मह्त्या कर ली .

और प्रियंका के ससुर सन 2009 में एक मोटेल में मरे हुए पाए
गए थे .

लेकिन इनकी मौत के कारणों की कोई जाँच नहीं कराई
गयी ,

और इसके बाद सोनिया ने रॉबर्ट को राष्ट्रपति और
प्रधान मंत्री के बराबर का दर्जा इनाम के तौर पर दे
दिया .

तब इस अधिकार को जिस रॉबर्ट को कोई
पडौसी भी नहीं जानता था ,

उसने मात्र आठ महीनों में
करोड़ों की संपत्ति बना ली ,

और कई
कंपनियों का मालिक बन गया , 

साथ ही सैकड़ों एकड़
कीमती जमीने भी हथिया ली 

"अगर
 जानकारी अच्छी लगे
तो प्लीज शेयर करना न भूले
Jai hind
🇮🇳🇮🇳🇮🇳

Saturday, February 27, 2016

'अल-तकिया' ll Al Taquia

ll 'अल-तकिया' ll
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गजवा-ए-हिन्द (हिन्दुस्तान को मुग्लिस्तान बनाना मकसद)
* इसने इस्लाम के प्रचार प्रसार में जितना योगदान दिया है उतना इनकी सैंकड़ों हजारों कायरों की सेनायें नहीं कर पायीं ।

* इस अचूक हथियार का नाम है "अल - तकिया" । 

** आज मै आपको इसके बारे में बताने जा रहा हूँ भाईयों इग्नोर न करना ध्यान से जरुर पढ़ना **

--> ये " अल तकीय " जिहाद का सबसे खतरनाक रूप है ये एक मीठा जहर है यह " अल तकिया " सभी तरह के जिहादों का समावेस है जैसे की -- 
● लव जिहाद ,
● भक्ती जिहाद,
● ब्लोगिंग जिहाद,
● भाषा जिहाद,
● सांस्कृतिक जिहाद
इसमे न जाने कौन कौन और किस किस तरह के सैकड़ों जिहाद और भी सामिल है 

--> अल- तकिया के अनुसार यदि इस्लाम के प्रचार , प्रसार अथवा बचाव के लिए किसी भी प्रकार का झूठ, धोखा , द्वेष अपने वादे से मुकर जाना काफिरों (हिन्दू) का विस्वास जितना और उनको घात लगाकर पीछे से हमला करना यहाँ तक की कुरआन की झूठी कसमे खाना - सब धर्म स्वीकृत है । और ये इनके अल्लाह का फरमान है 

--> इस प्रकार अल - तकिया ने मुसलामानों को सदियों से बचाए रखा है ।
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मुसलमानों के विश्वासघात के अन्य उदाहरण --->
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1 -मुहम्मद गौरी ने 17 बार कुरआन की कसम खाई थी कि भारत पर हमला नहीं करेगा,  लेकिन हमला किया ।

2 -अलाउद्दीन खिलजी ने चित्तोड़ के राणा रतन सिंह को दोस्ती के बहाने बुलाया फिर क़त्ल कर दिया ।

3 -औरंगजेब ने शिवाजी को दोस्ती के बहाने आगरा बुलाया फिर धोखे से कैद कर लिया ।

4 -औरंगजेब ने कुरआन की कसम खाकर शिखों के गुरु श्री गोविन्द सिघ जी को आनंद पुर से सुरक्षित जाने देने का वादा किया था. 
फिर पीछे से हमला किया था और निर्मम हत्या की थी

5 -अफजल खान ने दोस्ती के बहाने
शिवाजी की ह्त्या का प्रयत्न किया था ।

6-मित्रता की बातें कहकर पाकिस्तान ने कारगिल पर हमला किया था ।

सावधान रहें और अपने आस पास नजर बनाएं रखें 
धन्यवाद जय श्रीराम

Tuesday, February 23, 2016

Brave Kshatriyas Rajput who liberated Goa

The BRAVE KSHATRIYA NAIR WARRIOR from KERALA 
Lieutenant General Kunhiraman Palat CANDETH Who Liberated Goa 
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Kunhiraman Palat Candeth (23 October 1916 – 19 May 2003) was a Lieutenant General in the Indian army. In 1961, the then Major General Candeth led Operation Vijay to annex Goa from the Portuguese colonial rule and served briefly as the Lieutenant Governor of the state. Subsequently, he rose to Deputy Chief of Army Staff at the time of the 1965 war and commanded the Western Army during the Indo-Pakistani War of 1971.

He was born in Ottapalam, Madras Presidency (now Kerala) in British India (now India) to MA Candeth, being the grandson of the renowned barrister and writer Vengayil Kunhiraman Nayanar. His maternal grandfather was Sir C. Sankaran Nair, who was the President of the Indian National Congress.[
 He told a reporter during the Indo-Pakistani War of 1971 that "I am a Nair from Kerala. I am a Kshatriya".
 He had done his training at the Prince of Wales Royal Indian Military College, Dehradun, where he was highly rated in the classroom and on the playing field. Candeth was commissioned in the British Indian Army on 30 August 1936 in 28 Field Brigade of the Royal Indian Artillery.

Commissioned into the Royal Artillery in 1936, Candeth saw action in West Asia during the Second World War. And, shortly before India's independence from colonial rule, he was deployed in the North West Frontier Province, bordering Afghanistan, to quell local tribes. The mountainous terrain gave Candeth the experience for his later operations against Nagaland separatists in the North East. He attended the Military Services Staff College at Quetta, capital of Baluchistan in 1945.

Kashmir 1947
After Independence, Candeth was commanding an artillery regiment that was deployed to Jammu and Kashmir after Pakistan-backed tribesmen attacked and captured a third of the province before being forced back by the Indian Army. Thereafter, Candeth held a series of senior appointments, including that of Director General of Artillery at Army Headquarters in Delhi.

Goa
Following Indian independence from British rule, certain parts of India were still under foreign rule. While the French left India in 1954, the Portuguese, however, refused to leave. After complex diplomatic pressure and negotiations had failed, finally on December 18, 1961 the Indian prime minister Jawaharlal Nehru's patience ran out and he sanctioned military action. Kunhiraman Candeth earned his name in Operation Vijay—the Liberation of Goa, Daman and Diu from Portuguese rule. 
As 17 Infantry Division commander, Candeth took the colony within a day and was immediately appointed Goa's first Indian administrator (acting as the Military Governor), a post he held till 1963.

North East
After relinquishing charge as Goa's Military Governor in 1963, Candeth took command of the newly raised 8 Mountain Division in the North-East, where he battled, although with little success, the highly organised Naga insurgents. The insurgency in the North East has not been quelled completely to this day.

Indo-Pakistani War of 1971
During the Indo-Pakistani War of 1971 that led to East Pakistan breaking away to become Bangladesh, Candeth (at that stage a lieutenant-general), was the Western Army commander responsible for planning and overseeing operations in the strategically crucial regions of Kashmir, Punjab and Rajasthan where the fiercest fighting took place.

Awards
Lt. Gen. Kunhiraman Palat Candeth was awarded the Param Vishisht Seva Medal and also the Padma Bhushan by the Government of India.
He remained a bachelor till the end.
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* Lft.Gen. K.P. Candeth >

Monday, February 22, 2016

Did an Indian fly first unmanned aircraft?

Did an Indian fly first unmanned aircraft?

Shivkar Bāpuji Talpade (1864–1916) and Subbarāya Shāstry were two Indian scientists, who have constructed and flown modern world’s first unmanned airplane in the year 1895 to a height of 1500 feet.Wright brothers did it in the year 1903 (8 years later) and got recognized as the inventors of modern day Aeroplane.

Shivkar flew an unmanned flying machine which was an mercury ion plasma , imploding and expanding vortex noiseless flying machine, which could move in all directions*(citation needed).Accelerated pressurized Mercury when spun and thus heated gives out latent energy.Infact mercury was the fuel of many ancent vimanas*(citation needed), including the one described in ‘Samarangana Sutradhara‘, which was written by Paramara King, Raja Bhoja during 1050 AD.

Shivkar’s feat was witnessed by more than three thousand people including Britishers at Chowpatty beach in 1895.(Unfortunately, Indian science was not given prominence by the british, so few inventions like this and Jagadish Chandra Bose, who demonstrated publicly the use of radio waves in Calcutta in 1894, but he was not interested in patenting his work.)He was threatened by britishers for flying an unmanned plane in public.
Rukma vimana maruthsakhaTalpade’s airplane was named Marutsakhā, a term used for the goddess Sarasvati in the Rigveda (RV 7.96.2) – a portmanteau of Marut meaning stream of air and Sakha meaning friend.This was built under the guidance of Pandit Subbarāya Shāstry.It was airborne for 18 minutes and after that the Naksha Rasa accumulators ran out of energy*(citation needed).

Bal Gangadhara Tilak the editor of Kesari Pune had put in an editorial . It was also reported by two other English newspapers, a terse account. Eminent Indian judge Mahadeva Govin-da Ranade and King of Baroda H H Sayaji Rao Gaekwad witessed the flight.

Shivakar’s wife was very technie savvy and was his partner on the day the flight of MARUTSAKHA took place.One of Talpade’s students, Pt. S. D. Satawlekar, wrote that Marutsakhā sustained flight for a few minutes.

Deccan Herald in 2003 stated “scholarly audience headed by a famous Indian judge and a nationalist, Mahadeva Govin-da Ranade and H H Sayaji Rao Gaekwad, respectively, had the good fortune to see the unmanned aircraft named as ‘Marutsakha’ take off, fly to a height of 1500 feet and then fall down to earth“.

Few days after this first flight, Talpade’s wife, who was his partner in this experiment, died mysteriously !After her death, Talpade went into depression, ran out of finances and ultimatelt died in 1916.However, Marutsakhā was stored at Talpade’s house until well after his death. Velakara quotes one of Talpade’s nieces, Roshan Talpade, as saying the family used to sit in the aircraft’s frame and imagine they were flying.
A model reconstruction of Marutsakhā was exhibited at an exhibition on aviation at Vile Parle, and Hindustan Aeronautics Limited has preserved documents relating to the experiment.

Hawaaizaada is a 2015 Hindi film directed by Vibhu Puri. The film stars Ayushmann Khurrana, Mithun Chakraborty and Pallavi Sharda in pivotal roles. The film is based on the life of scientist Shivkar Bapuji Talpade.

https://en.wikipedia.org/wiki/Shivkar_Bapuji_Talpade
https://en.wikipedia.org/wiki/Hawaizaada

Friday, February 19, 2016

Modi power will return back per horoscope

PM Narendra Modiमोदी के बदले सितारे, अब बनेगें दुनिया के हीरो

पं० धनंजय शर्मा वैदिक ज्योतिषाचार्य 
प्रधानमंत्री के सितारे जल्द ही मजबूत स्थिति में आने वाले हैं। मोदी जी जबसे प्रधानमंत्री बने तब से उनका मूल स्वाभाव काफी बदला-बदला सा नजर आ रहा था। ऐसे में मोदी समर्थक मोदी जी की चुप्पी को लेकर काफी समय से असमंजस की स्थिति में थे लेकिन अब उनके लिये खुशी की बात है की भारत का शेर जल्द ही गरर्जने वाला है।

narendra-modi-birth-chart (1)

जी हां मोदी जी के ग्रह इस समय बडे परिवर्तन की ओर इशारा कर रहे हैं। मंगल का वृश्चिक संचार उन्हे कुछ महत्वपूर्ण कदम उठाने की प्रेरणा देगा तथा शनि व मंगल की युति मोदी जी के विरोधियों को बडा सबक सिखाने वाली है। दूसरी ओर मोदी जी की दशा उन्हे कडे और नपे-तुले फैसले लेते हुये दिखायेगी।

अगले चार माह मोदी जी के लिये निर्णायक साबित होंगे। इस समय मोदी जी आतंकवाद और भ्रष्टाचार पर खुलकर सामने आयेंगे। पाकिस्तानी और आईएस0आईएस0 आतंकवादी संगठनों के लिये मोदी जी इस समय बडे फैसले लेते हुये दिखेंगे, इसके अतिरिक्त वे धर्म पर भी खुलकर बोलेंगे। मोदी जी की वर्तमान दशा और गोचर उन्हे को हीरों के रूप में दुनिया के सामने लेकर आयेंगे।

Wednesday, February 17, 2016

बीजापुर स्थित ""सात कबर"" और उनका रहस्य ?




इस सवाल का जबाब जानने से पहले  ये बात अच्छी तरह से समझ लें कि .. जलन, असुरक्षा और अविश्वास.. से इस्लामी शासनकाल के पन्ने रंगे पड़े हैं. जहाँ भाई-भाई, और पिता-पुत्र में सत्ता के लिये खूनी रंजिशें की गईं!

लेकिन , क्या आप ये सोच भी सकते हैं कि. कोई शासक अपनी 63 पत्नियों को सिर्फ़ इसलिये मार डाले कि कहीं उसके मरने के बाद वे दोबारा शादी न कर लें है ना ये .एक बेहद आश्चर्यजनक और चौंकाने वाली बात ?

परन्तु जहाँ इस्लाम और उसके सरपरस्त मुस्लिम मौजूद हों. वहाँ कुछ भी असम्भव नहीं है!

यूँ तो कर्नाटक के बीजापुर में गोल गुम्बज और इब्राहीम रोज़ा जैसी कई ऐतिहासिक इमारतें और दर्शनीय स्थल हैं लेकिन, एक स्थान ऐसा भी है जहाँ पर्यटकों को ले जाकर इस्लामी आक्रांताओं के कई काले कारनामों में से एक के दर्शन करवाये जा सकते हैं।

परन्तु बीजापुर-अठानी रोड पर लगभग 5 किलोमीटर दूर एक उजाड़ स्थल पर पाँच एकड़ में फ़ैली यह ऐतिहासिक कत्लगाह “सात कबर” (साठ कब्र का अपभ्रंश) एक ऐसी ही एक जगह है..।

क्योंकि इस स्थान पर आदिलशाही सल्तनत के एक सेनापति अफ़ज़ल खान द्वारा अपनी 63 पत्नियों की हत्या के बाद बनाई गई कब्रें हैं।

इस खण्डहर में काले पत्थर के चबूतरे पर 63 कब्रें बनाई गई हैं और, आज की तारीख में इतना समय गुज़र जाने के बाद भी जीर्ण-शीर्ण खण्डहर अवस्था में यह बावड़ी और कब्रें काफ़ी ठीक-ठाक हालत में हैं।

यहाँ पहली दो लाइनों में 7-7 कब्रें, तीसरी लाइन में 5 कब्रें तथा आखिरी की चारों लाइनों में 11 कब्रें बनी हुई दिखाई देती हैं और , वहीं एक बड़ी "आर्च(Arch) (मेहराब) भी बनाई गई है!

ऐसा क्यों और किस गणित के आधार पर किया गया ये तो वो अफ़ज़ल खान ही बता सकता है ।
साथ ही अफ़ज़ल खान ने खुद अपने लिये भी एक कब्र यहीं पहले से बनवाकर रखी थी. परन्तु उसके शव को यहाँ तक नहीं लाया जा सका और मौत के बाद प्रतापगढ़ के किले में ही उसे दफना दिया गया था, जिससे यह साबित होता है कि.वीर शिवाजी के हाथों अपनी मौत को लेकर वो अफजल खान नमक सूअर बेहद आश्वस्त था,!

भला ऐसी मानसिकता में वह वीर शिवाजी से युद्ध कैसे लड़ता????

खैर  अंततः , महान मराठा योद्धा शिवाजी ने इस सूअर अफ़ज़ल खान का वध .प्रतापगढ़ के किले में 1659 में कर ही दिया ।

इन सब बातों में सबसे बड़ी दिक्कत ये है कि.वामपंथियों और कांग्रेसियों ने .हमारे इतिहास में मुगल बादशाहों के अच्छे-अच्छे, नर्म-नर्म, मुलायम-मुलायम किस्से-कहानी ही भर रखे हैं, जिनके द्वारा उन्हें सतत महान, सदभावनापूर्ण और दयालु(?) बताया है, लेकिन इस प्रकार 63 पत्नियों की हत्या वाली बातें जानबूझकर छुपाकर रखी गई हैं.।

यही कारण है कि.आज बीजापुर में इस स्थान तक पहुँचने के लिये ऊबड़-खाबड़ सड़कों से होकर जाना पड़ता है. और, वहाँ अधिकतर लोगों को इसके बारे में विस्तार से कुछ पता नहीं है (साठ कब्र का नाम भी अपभ्रंश होते-होते "सात-कबर" हो गया),

खैर जो भी हो लेकिन , है तो यह एक ऐतिहासिक स्थल ही, सरकार को इस तरफ़ ध्यान देना चाहिये और इसे एक पर्यटन स्थल के रूप में विकसित करना चाहिये ताकि , लोगों को मुगलकाल के राजाओं द्वारा की गई क्रूरता का पता लग सके ।

सिर्फ ये ही नहीं बल्कि. खोजबीन करके भारत के खूनी इतिहास में से मुगल बादशाहों द्वारा किये गये सभी अत्याचारों को बाकायदा पर्यटन स्थल के रूप में विकसित किया जाना चाहिए ताकि, कम से कम अगली पीढ़ी को उनके कारनामों के बारे में तो पता लग सके ,वरना ,मैकाले-मार्क्स के प्रभाव में वे तो यही सोचते रहेंगे कि 

अकबर एक दयालु बादशाह था (भले ही उसने सैकड़ों हिन्दुओं का कत्ल किया हो),

और, शाहजहाँ अपनी बेगम से बहुत प्यार करता था ( भले ही मुमताज़ ने 14 बच्चे पैदा किये और उसकी मौत भी एक डिलेवरी के दौरान ही हुई, ऐसा भयानक प्यार..????

या, औरंगज़ेब ने जज़िया खत्म किया और वह टोपियाँ सिलकर खुद का खर्च निकालता था (भले ही उसने हजारों मन्दिर तुड़वाये हों, बेटी ज़ेबुन्निसा शायर और पेंटर थी इसलिये उससे नफ़रत करता था, भाई दाराशिकोह हिन्दू धर्म की ओर झुकाव रखने लगा तो उसे मरवा दिया… इतना महान मुगल शासक?

तात्पर्य यह कि .अब इस दयालु मुगल शासक वाले वामपंथी मिथक को तोड़ना बहुत ज़रूरी है.. और, बच्चों को उनके व्यक्तित्व के उचित विकास के लिये सही इतिहास बताना ही चाहिये… वरना उन्हें 63 पत्नियों के हत्यारे के बारे में कैसे पता चलेगा ??.

इसीलिए, बड़े शहरों की कूल डूड हिन्दू युवतियाँ किसी भी मुस्लिम से दोस्ती अथवा प्यार की पींगें बढ़ने से पहले हजार बार जरुर सोच लें कि बाबर और चंगेज खां के वंशजों से निकटता बढ़ाने के क्या परिणाम हो सकते हैं!

Tuesday, February 16, 2016

History of Pratihar/ Parihar Rajput

== = क्षत्रिय सम्राट वत्सराज प्रतिहार === 

प्रतिहार एक ऐसा वंश है जिसकी उत्पत्ति पर कई महान इतिहासकारों ने शोध किए जिनमे से कुछ अंग्रेज भी थे और वे अपनी सीमित मानसिक क्षमताओं तथा भारतीय समाज के ढांचे को न समझने के कारण इस वंश की उतपत्ति पर कई तरह के विरोधाभास उतपन्न कर गए।

प्रतिहार एक शुद्ध क्षत्रिय वंश है जिसने गुर्जरा
देश से गुज्जरों को खदेड़ने व राज करने के कारण गुर्जरा सम्राट की भी उपाधि पाई। आये
जानिए प्रतिहार वंश और सम्राट वत्सराज
को।                        

= = = सम्राट वत्सराज प्रतिहार ===  

सम्राट वत्सराज (775 से 800 ईस्वीं तक) प्रतिहार\परिहार राजवंश का संस्थापक एवं वह देवराज एवं भूमिका देवी का प्रबल प्रतापी पुत्र थे । उसने शास्त्र सूत्र ग्रहण करते ही अपने पूर्वज सम्राट नागभट्ट की भांति राज्य की चारों दिशाओं में वृद्धि करने का निश्चय किया । उस समय उज्जैन में श्रीहर्ष का ममेरा भाई भण्डि शासन कर रहा था, वह बार बार जालौर राज्य को आधीनता में लेने का पैगाम भेज रहा था। देवराज प्रतिहार उससे डर रहा था। वत्सराज ने शासन ग्रहण करते ही उज्जैन पर आक्रमण कर दिया, राजा भण्डि को कैद कर लिया और उसके संपूर्ण परिवार को राज्य से बाहर कर दिया। वत्सराज ने ही प्रतिहार साम्राज्य की राजधानी उज्जैन को बनाया।

ख्यानादि भण्डिकुलां मदोत्कट काटि प्रकार लुलंघतो।
यः साम्राज्य मरधाज्य कारमुक सखां सख्य हहादग्रहीत।।

मण्डौर राज्य के कमजोर हो जाने के बाद भारत में तीन महाशक्तियां अस्तित्व में थीं।

प्रतिहार साम्राज्य - उज्जैन, राजा वत्सराज
पाल साम्राज्य - गौड़, राजा धर्मपाल
राष्ट्रकूट साम्राज्य - दक्षिण भारत राजा धु्रव

वत्सराज ने सम्मुख साम्राज्य के लिए पाल और राष्ट्रकूट दोनों ही समान खतरे थे। दोनों की निगाहें उज्जैन पर लगी थी । वत्सराज भी अवसर व साधन की प्रतिक्षा कर रहा था। भण्डि पर विजय प्राप्त होने से ववत्सराज को पर्याप्त धन युद्ध सामग्री और सैन्य बल पप्राप्त हो गया। इससे संपन्न होकर प्रतिहार वंश के प्रमुख शत्रु धर्मपाल पर वत्सराज ने ही आक्रमण कर दिया। गंगा यमुना के दोआब मे लडा गया युद्ध अति भयानक था, अंततः धर्मपाल पीछे हटने लगा, वत्सराज ने उसे बंगाल की खाडी तक खदेडा, यहां पर पुनः एक निर्णायक युद्ध हुआ। इस युद्ध में धर्मपाल ने ही संधि प्रस्ताव भेजा और उज्जैन साम्राज्य की आधीनता स्वीकार कर ली। गौड राज्य की विजय से सम्राट वत्सराज प्रतिहार का हौसला इतना बुलंद हुआ कि धर्मपाल ने और ध्रुव(राष्ट्रकूट) ने एक - एक राजछत्र और राज्यलक्ष्मी उसे भेंट कर दिया।

"हैसा स्वीकृत गौड़ राज्य कमलां मनतं प्रवेश्या विरात"

सन् 780 से 781 की महान विजय के समानांतर सन् 798 अर्थात 18 वर्ष तक उज्जैन साम्राज्य का अकंटक यह काल न केवल राजस्थान वरन संपूर्ण उत्तरी भारत का वैभव काल था। प्रशासन की स्वच्छता न्याय की आस्था और कृषि व्यापार की संपन्नता ने उज्जैन को भारत का मुकुट और वत्सराज प्रतिहार को राजाधिराज का पद दिया।।

Pratihara / Pratihar / Parihar Rulers of india

जय माँ भवानी।।
जय क्षात्र धर्म।।
नागौद रियासत।।