Tuesday, November 17, 2015

Historical Research on the use of word "Rajput"for Kshatriyas

Historical Research on the use of word "Rajput"for Kshatriyas .क्षत्रियों के लिए राजपूत शब्द के प्रयोग का ऐतिहासिक शोध ।
राजपूत शब्द का उच्चारण करते ही "राजपुताना "स्म्रति पटल पर तुरंत ही आ जाता है ।राजपुताना राजपूत जाति का मुख्य केंद्र था ।भारतवर्ष के इतिहास में राजपूत जाति और राजपुताना का एक विशेष स्थान है ।इस समय भी राजपूत हिन्दुस्तान की वीर जातियों में माने जाते है ।ईसा की शताब्दी से पूर्व राजपूतों को "क्षत्रिय "नाम से पुकारते थे और हिन्दुओं में साहसी व् पराक्रमी जाति भी यही थी जिसके हाथ में हिंदुस्तान भर की सत्ता थी और जिससे अरब ,अफगान ,और तुर्क आदि विदेशी जातियों को उत्तर -पश्चिम भाग से आकर टक्कर लेनी पडी थी ।
7वीं शताब्दी से लगाकर 18 वीं शताबदी तक हिंदुस्तान में बड़ा संघर्ष का समय था ।अरब के आक्रमणकारी मुसलमान योद्धाओं ने प्रथम तो सिंध में राजूतों से लोहा लिया बाद में महमूद गजनी ,गौरी ,ख़िलजी वंशों आदि से इनको दवाने की चेष्टा की ,फिर तुर्क व् मुगलों ने भी ।उस आपत्ति काल में भी राजपूत अपने देश व् मातृभूमि की रक्षा के लिए ,आन और स्त्रियों के मान के लिए ,जीवन न्योछावर करते रहे और अपना सुवतंत्र जीवन किसी न किसी रूप में कायम रखा ।दुःख से कहना पड़ता है कि जिस प्रकार से ब्रिटिशकालमें वीर राजपूतों का पराभव व् पतन हुआ है वैसा कभी भी नहीं हुआ ।राजपूतों का आदर्श सिर्फ यही रहा है कि जीवन संग्राम में विजय पाकर ख्याति के साथ मारना हमारा धर्म है न कि घर में खटिया पर जराजीर्ण होकर प्राण छोड़ना ।
मुगलों के अंतिम काल तक हमने राजस्थान की हवा में उच्चकोटि का वीरत्व देखा था पर वह यकायक आंगल कला से ऐसा छूमंतर हो गया कि लिखते दुःख होता है ,इसका मुख्य कारण है प्राचीन रीति रिवाजों ,आचार विचारों को छोड़ना।अपनी राज्य पद्धति तथा शिक्षा की कमी ने भी इसका साथ दिया ।आपस में जाति भेद आरम्भ होने के कारण एकता का अभाव हो गया और पारस्परिक युद्ध होने लगे ।इसी कारण वह कभी विदेशी शक्तिओं से पूर्णतया लोहा न लेसके और अपनी सुवतंत्रता धीरे धीरे खो बैठे ।बहु विवाह तथा मद्यपान का रिवाज इनका पूर्णतया संहार कर बैठा ।इसी कारण बड़े -बड़े राज्य नस्ट हो गये और होते भी जारहे है ।प्राचीन ग्रंथों में न तो राजपूत जाति का ही उल्लेख है और न राजपूताने का ।
रामायण और महाभारत के समय से लेकर चीनी यात्री हुएनसांग के भारत -भ्रंमन (ई0सन् 629-645 ) तक राजपूत शब्द जाति के अर्थ में प्रयुक्त नहीं होता था ।प्राचीन इतिहास और पुराण ग्रंथों में इस जाति के लिए "क्षत्रिय "शब्द का प्रयुक्त मिलता है तथा वेद और उपनिषद् काल में "राजन्य"शब्द का प्रयोग देखने में आता है। सूत्रकाल में कहीं -कहीं क्षत्रियों के लिए "उग्र"शब्द लिखा गया है ।जैन -ग्रंथों व् मध्यकालीन (ई0स0600 से 1200 तक )ग्रंथों में भी राजपूत शब्द नहीं पाया जाता है।पृथ्वीराजरासो ग्रन्थ में भी -जो विक्रम की सोलहवीं शताब्दी के आस पास रचा माना जाता है ,उसमें भी "राजपूत "शब्द जाति वाचक नहीं ,किन्तु योद्धा के अर्थ में आया है।जैसे "रजपूत टूट पचासरन जीत समर सेना धनिय " "लग्यो सूजाय रजपूत सीस " "बुड गई सारी रजपूती "।उस समय राजपूत जाति कोई विशेष जाति नहीं गिनी जाती थी ।मुसलमानों के आक्रमणों तक यहां के राजा "क्षत्रिय "ही कहलाते थे ।जिस प्रकार राजस्थान या राजपुताना प्रदेश ब्रिटिशकाल की रचना है(विलियम फ्रेंकलिन ,मिलिट्री मेमआर्स आफ मिस्टर जार्ज टामस पृष्ठ 347 सन् 1805 ई0 लन्दन संस्करण ।इसी प्रकार राजपूत का राजपुत्र शब्द मुगलकालीन शासनकाल के पूर्व के इतिहास ग्रंथों में नही मिलता है ।हाँ!इनके स्थान पर क्षत्रिय जाति का उल्लेख पाया जाता है ।हमारे प्राचीन इतिहास और साहित्य में क्षत्रिय जाति का वही स्थान है जो इस समय राजपूत जाति का माना जाता है ।जब हिंदुस्तान में मुगलों का आक्रमण हुआ और उनकी अरबी सभ्यता और उनके मत का नया तूफ़ान आया ,तब उस वक्त के क्षत्रिय राजाओं नेबड़े साहस और पराक्रम से अपने प्राणों की बाजी लगाकर मुकाबला करने का भरसक प्रयत्न किया ,परंतु आपसी फुट के कारण इस तूफान को रोकने में असमर्थ रहे ।परिणाम यह हुआ कि मुगलों का सिक्का भारत पर बैठ गया जिन्होंने इस देश के पूर्व राजाओं का नाम "सामंत या राजपुत्र "रक्खा।
राजपुत्र शब्द का अर्थ "राजकीय वंश में पैदा हुआ "है ।इसी का अपभ्रंश "राजपूत "शब्द है जो बाद में धीरे धीरे मुग़ल बादशाहों के अहद से या कुछ पहले 14 वीं शताब्दी से ,बोल चाल में क्षत्रिय शब्द के स्थान पर व्यवहार में आने लगा ।इससे पहले राजपूत शब्द का प्रयोग जाति के अर्थ में कहीं नही पाया जाता है ।अतः राजपूत कोई जाति नही थी ।मुसलामानों के समय में धीरे धीरे यह शब्द जाति वाचक बन गया ।राजपुताना प्रान्त इन क्षत्रिय वीरों का प्रधान राज्य गिना जाने लगा ।इसके बाद जितनी शासन करने वाली शाखाएं फैलीं ,उनका सम्बन्ध राजस्थान की मूलशाखा से किसी न किसी रूप में अवश्य है ।
"राजपूत "या रजपूत"शब्द संस्कृत के "राजपुत्र"का अपभ्रंश अर्थात लौकिक रूप है। ।प्राचीनकाल में "राजपुत्र"शब्द जाति वाचक नहीं ,किन्तु क्षत्रिय राजकुमारों या राजवंशियों का सूचक था ,क्यों क़ि बहुत प्राचीन काल से प्रायः सारा भारतवर्ष क्षत्रिय वर्ण के अधीन था ।कौटिल्य के अर्थशास्त्र ,कालिदास के काव्य और नाटकों ,अश्वघोष के ग्रंथों ,बाणभट्ट के हर्षचरित तथा कादंबरी आदि पुस्तकों एवं प्राचीन शिलालेखों तथा दानपात्रों में राजकुमारों और राजवंशियों के लिए "राजपुत्र "शब्द का प्रयोग होना पाया जाता है ।देश का शासन क्षत्रिय जाति के ही हाथों में रहता था ।अतः इसी जाति के लोगों का नाम मुगलकाल में जाकर लगभग 14 वीं शताब्दी में "राजपूत"हो गया ।पुराणों में केवल राजपुत्र शब्द आता है।
क्षत्रिय वर्ण वैदिक काल से इस देश पर शासन करता रहा और आर्यों की वर्णव्यवस्था के अनुसार प्रजा का रक्षण करना ,दान देना ,यज्ञ करना ,वेदादि शास्त्रों का अध्ययन करना और विषयासक्ति में न पड़ना आदि क्षत्रियों के धर्म या कर्म माने जाते थे।मुगलों के समय से वही क्षत्रिय जाति "राजपूत "कहलाने लगी lप्राचीन ग्रंथों में राजपूतों के लिए राजपुत्र ,राजन्य ,बाहुज आदि शब्द मिलते है। यजुर्वेद जो स्वयं ईश्वरकृत है ,में भी राजपूतों की खूब चर्चा हुई है।
ब्रध्यतां राजपुत्राश्च बाहू राजन्य कृत :।
बध्यतां राजपुत्राणां क्रन्दता मित्तेरम्।।
इसके बाद पुराणों में सूर्य और चन्द्रवंश जो राजपूतों के वंश है की उत्तपति भी क्षत्रियों से मानी गयी है ।
चंद्रादित्य मनुनांच् प्रवराः क्षत्रियाः स्मतः ।
बाण के हर्षचरित में भी राजपुत्र शब्द का प्रयोग हुआ है।बाण लिखता है ---
अभिजात राजपुत्र प्रेष्यमान कुप्यमुक्ता कुल कुलीन
कुलपुत्र वाहने ।
अर्थात सेना के साथ अभिजात राजपूतों द्वारा भेजे गए पीतल के पत्रों से मढे वाहनों में कुलीन राजपुत्रों की स्त्रियां जा रहीं है ।अतः राजपूत प्राचीन आर्य क्षत्रियों की संतान है ।यदि प्राचीन इतिहास के पन्नें पलटे जायं तो स्थान -स्थान पर यह वर्णन मिलेगा कि राजपूतों ने शकों ,हूणों से अनेक बार युद्ध किये और उनसे देश ,धर्म तथा संस्कृति की रक्षा की ,किन्तु आधुनिक इतिहासकारों ने अपनी कल्पना और अनुमान के आधार पर उन्हें उन्हीं की संतान बना दिया ।
सोलह संस्कारों को धारण करना राजपूतों के लिए अनिवार्य था ।राजपूत अपने गुणों ,वीरता ,साहस ,त्याग ,अतिथि सेवा तथा शरणागत वत्सलता ,प्रजावत्सलता ,अनुशासनप्रियता ,युद्धप्रियता आदि गुणों के साथ -साथ ब्राह्मणों के क्षमा ,दया ,उदारता ,सहनशीलता ,विद्वता आदि गुणों को भी धारण करना होता था ।इसी से भ्रांत होकर कई इतिहासकारों ने राजपूतों को ब्राह्मणों की संतान मान लिया है ,किन्तु जैसा कि इस्पस्ट हो चूका है कि ये ऋषी बाह्मण नही थे ,बल्कि वैदिक ऋषी थे और क्षत्रिय तथा ब्राह्मणों दोनों के पूर्वज थे ,क्यों कि वर्ण -व्यवस्था तो उस युग के बहुत बाद वैवस्वत मनु ने आरम्भ की थी ।
यूरोपियन विद्धवान जैसे नेसफील्ड ,इबटसन राजपूतों को प्राचीन आर्यों की संतान मानते हुए कहते है ,"राजपूत लोग आर्य है और वे उन क्षत्रियों की संतान है जो वैदिक काल से भारत में शासन कर रहे है ।" मि0 टेलवीय हीव्लर , 'भारत के इतिहास 'में लिखते है "राजपूत जाति भारतवर्ष में सबसे कुलीनब और स्वाभिमानी है "।कई इतिहासकारों ने ये सिद्ध किया है कि राजपूत विशुद्ध आर्यों की संतान है और उनकी शारीरिक बनावट ,गुण ,और स्वभाव प्राचीन क्षत्रियों के समान है ।कालिदास रघुवंश में लिखते है :
क्षत्रतिक ल त्रायत इत्युद्ग्र क्षत्रस्य शब्दों भुवणेषु रूढ़:।
राज्मेंन किं कादिवप्रीत वरतेः प्राणैरुप कोशमलीन सर्वा :।।
अर्थात विश्व को आंतरिक और बाह्य अत्याचारों जैसे शोषण ,भूख ,अज्ञान ,अनाचार ,तथा शत्रु द्वारा पहुंचाई गयी जन -धन की हानि से बचाने बाला क्षत्रिय है ।इसके विपरीत कार्य करने वाला न तो क्षत्रिय कहलाने का अधिकारी है और न ही वह शासन करने का अधिकारी हो सकता है ।क्षत्रियों के गुण -कर्म तथा स्वभावों का मनुसमृति में वर्णन करते हुए स्वयं मनु जी कहते है :
प्रजानों रक्षा दान मिज्याध्ययन मेथ च ।
विषयेतवन सकितश्च क्षत्रियस्य समास्त :।।
अर्थात न्याय से प्रजा की रक्षा करना ,सबसे प्रजा का पालन करना ,विद्या ,धर्म की प्रवर्ति और सुपात्रों की सेवा में धन का व्यय करना ,अग्निहोत्री यज्ञ करना व् कराना ,शास्त्रों का पठन ,और पढ़ाना ,जितेन्द्रिय रहकर शरीर और आत्मा को बलवान बनाना ,ये क्षत्रियों के स्वाभाविक कर्म है ।
श्रीमद् भगवदगीता में क्षत्रियों के गुणों और कर्मों का वर्णन करते हुये श्री कृष्ण अर्जुन को कहते है :
शौर्य तेजो धृति दक्षिर्य युद्धे चाप्याप्लायनम ।
दानमीश्वर भावस्य क्षात्रं कर्म स्वभावजम् ।।
अर्थात शौर्य ,तेज ,धैर्य ,दक्षता ,और युद्ध में न भागने का स्वभाव और दान तथा ईश्वर का भाव ये क्षत्रियों के स्वाभाविक गुण तथा कर्म है ।
देश -धर्म तथा संस्कृति की रक्षा में सर्वस्व त्याग की भावना ही राजपूतों का सबसे बड़ा गुण एवं कर्म रहा है ।इसी लिए इस जाति ने मध्यकाल में सैकड़ों साके और जौहर किये ।विश्वामित्र जैसे महामुनि .राजा हरिश्चंद्र जैसे सत्यवादी ,राजा रघु जैसे पराक्रमी ,राजा जनक जैसे राजषि ,श्री राम जैसे पितृभक्त ,श्री कृष्ण जैसे कर्मयोगी ,कर्ण जैसे दानी ,मोरध्वज जैसे त्यागी ,अशोक जैसे प्रजा -वत्सल ,विक्रमादित्य जैसे न्यायकारी ,राजा भोज जैसे विद्धान ,जयमल जैसे वीर ,प्रताप जैसे देशभक्त ,पृथ्वीराज जैसा साहसी योद्धा ,दुर्गादास जैसे स्वामीभक्त अनेक वीर इसी जाति की देंन है ।यहाँ तो पालने में जन्मघुटी के साथ ही देश भक्ति तथा त्याग का पाठ शुरू हो जाता था ।
अपने इन गुण -कर्मों ,स्वभावों तथा पवित्र परम्पराओं के कारण ही राजपूत सफल मानव ,सच्चे सेनानी ,तथा कुशल शासक बनते थे ।ये राजपूत राजा कमल के समान निर्लेप ,सूर्य जैसे तेजस्वी ,चंद्र जैसे शीतल ,तथा पृथ्वी जैसे सहनशील होते थे ,क्यों कि उनका शासन आत्मत्याग और जौहर जैसी पावन परम्पराओं पर आधारित होता था ।वे हँसते -हँसते मृत्यु का आलिंगन करना श्रेयस्कर समझते थे और युद्ध में पीठ दिखाकर भाग जाना मृत्यु से भी बदतर समझते थे । इस जाति ने समय समय पर देश ,धर्म और आर्य सभ्यता की रक्षा की है तथा अपनी मर्यादा व् आन -वान् के लिए सदा हथेली पर जान भी रखी है ।।इतिहास बतलाता है कि इस पराक्रमी क्षत्रिय जाति ने अपने बच्चों सहित शत्रु के साथ लड़कर। अमर यश प्राप्त किया है ।अल्लाउदीन ख़िलजी के हमले और चित्तोड़ और रणथंभोर के शाके आज भी बच्चों की जवान पर है ।इस जाति के प्रत्येक वंश ने न जाने कितने वीरोचित काम किये है जिनका वर्णन सुन कर देशी ही नही किन्तु विदेशी विद्दान भी मुग्ध है जिन्होंने अपने विचार कुछ इस प्रकार व्यक्त किये ।
राजपूतों की ख्याति का बखान करते हुए इतिहासवेत्ता कर्नल टॉड नही अघाते ।
"राजस्थान (राजपुताना)में कोई छोटा से छोटा राज्य भी ऐसा नही है जिसमें थर्मोपॉलि (ग्रीस स्थित )जैसी रणभूमि न हो और शायद ही कोई ऐसा नगर मिले जहाँ लियोनिदास सा वीर पुरुष उत्पन्न न हुआ हो ।"
टॉड अपने राजस्थान के इतिहास की भूमिका में लिखते है ----
"एक वीर जाति का लगातार कई पीढ़ियों तक स्वाधीनता के लिए युद्ध आदि करते रहना ,अपने पूर्वजों के धर्म की रक्षा के लिए अपनी प्रिय वस्तु की भी हानि सहना और सर्वस्व देकर भी शौर्य पूर्वक अपने स्वतत्वों और जातीय स्वतंत्रता को किसी भी प्रकार के लोभ ,लालच में न आकर बचाना ,यह सब मिल कर एक ऐसा चित्र बनाते है कि जिसका ध्यान करने से हमारा शरीर रोमांचित हो जाता है ।"
आगेचल कर टॉड राजपूत जाति का चरित्र -चित्रण इस प्रकार करते है ----
"महान शूरता ,देश भक्ति ,स्वाभिमान ,प्रतिष्ठा ,अथिति सत्कार और सरलता यह गुण सर्वांश में राजपूतों में पाये जाते है ।"
मुग़ल सम्राट अकबर का मंत्री अबुलफजल (यह जोधपुर राज्य के नागौर शहर में एक शेख कुल में जन्मा था ) राजपूतों की वीरता की प्रशंसा इन शब्दों में करता है ----
"विपत्तिकाल में राजपूतों का असली चरित्र जाज्वल्यमान होता है ।राजपूत -सैनिक रणक्षेत्र से भागना जानते ही नहीं है बल्कि जब लड़ाई का रुख संदेहजनक हो जाता है तो वे लोग अपनेघोड़ों से उत्तर जाते है और वीरता के साथ अपने प्राण न्योछावर कर देते है ।"
बर्नियर अपनी भारत यात्रा की पुस्तक में लिखता है कि -----
"राजपूत लोग जब युद्ध क्षेत्र में जाते है ,तब आपस में इस प्रकार गले मिलते है जैसे कि उन्होंने मरने का पूरा निश्चय कर लिया हो ।ऐसी वीरता के उदाहरण संसार की अन्य जातियों में कहाँ पाये जाते है ?किस देश और किस जाति में इस प्रकार की सभ्यता और साहस है और किसने अपने पूर्वजों के रिवाजों को इतनी शताब्दीयों तक अनेक संकट सहते हुए भी कायम रखा है ?
मिस्टर टेलबोय व्हीलर ने अपने "भारत के इतिहास "में राजपूत जाति के विषय में यह लिखा है ----
"राजपूत जाति भारतवर्ष में सबसे कुलीन और स्वाभिमानी है ।यहूदी जाति को छोड़ कर संसार में शायद ही अन्य कोई जाति हो जिसकी उत्पति इतनी पुरानी और शुद्ध हो ।वे क्षत्रिय जाति के उच्च वंशज और जागीरदार है ।ये वीर और दींन अनाथों के रक्षक होते है और अपमान को कभी सहन नहीं करते है और अपनी स्त्रियों के सम्मान का पूर्ण ध्यान रखने बाले होते है ।"
कर्नल वाल्टर (भूतपूर्व एजेंट गवर्नर जनरल ,राजपुताना )बहुत समय तक राजपूताने में रहे थे ।वह भी इस प्रकार लिखते है कि ------
"राजपूतों को अपने महत्वशाली पूर्वजों के इतिहास का गर्व हो सकता है क्यों कि संसार के किसी भी देश के इतिहास में ऐसी वीरता और अभिमान के योग्य चरित्र नहीं मिलते जैसे इन वीरों के कार्यों में पाये जाते है जो कि उन्होंने अपने देश ,प्रतिष्ठा और धार्मिक स्वतंत्रता के लिए किये ।"
डॉ शिफार्ड जो कई वर्षों तक राजपूतों के संसर्ग में रहे थे इस प्रकार लिखते है कि ----
"ऐसे इतिहासों के पढ़ने से जिनमें राजपूतों के उत्तम स्वाभाविक गुण और चरित्र यथावत रूप से दर्शाये गए है ,सम्भव नहीं कि इतिहास के प्रेमी नवयुवक पर उत्तम और उत्तेजक प्रभाव उत्पन्न न हो ।"
यद्धपि इस वीर राजपूत जाति के अनेक साहसी वीर योद्धाओं जिनमे अंतिम हिन्दू सम्राट पृथ्वीराज चौहान ,विश्व प्रसिद्ध योद्धा राणा सांगा ,प्रातः स्मरणीय वीर शिरोमणि महाराणा प्रताप ,महान बलिदानी राजा रामशाह तोमर ,वीरवर छात्र साल बुंदेला ,स्वाभिमानी वीर दुर्गादास राठौड़ ,वीरवर अमर सिंह राठौड़ ,जयमल राठौड़ ,रावत पत्ता ,शरणागत रक्षक रणथम्भोर के राजा हमीर देव चौहान ,गोरा -बादल ,वीर योद्धा मेदिनिराय खंगार ,प्रमुख थे ने मुगलों से जम कर युद्ध किया और अपनी जन्म भूमि की स्वतंत्रता के लिए प्राणों की बाजी लगा दी ।इसी कालमें क्षत्राणियो ने भी युद्ध तक किये और देश की रक्षा में जौहर तक किये जिनमे रानी दुर्गावती ,रानी कर्मवती ,रानी पद्यमिनी तथा हाडी रानी प्रमुख वीरांगनाएं रही ।यही ही नही सन् 1857में ब्रिटिशकाल में भी अनेक राजपूत वीर और वीरांगनाओं ने अपने देश की स्वतंत्रता के लिए प्राण न्योछावर कर दिया।जिनमें झांसी की रानी लक्ष्मीबाई के अलावा और वीरों को इतिहास में वो स्थान हमारे इतिहासकारों ने नही दिया जो दिया जाना चाहिए था ।
जिनमें प्रथम स्वतंत्रता संग्रामसेनानी हिमाचल प्रदेश के नूरपुर एस्टेट के वजीर राम सिंह पठानिया ,1857 की क्रान्ति के नायक विहार की शान बाबू बीर कुंवर सिंह पंवार ,गोण्डा के राजा देवीबक्ष सिंह बिसेन ,अवध का शेर राणा बेणी माधोसिंह बैस , राजपूत जाति को पहला परमवीर चक्र दिलाने वाले पश्चिमी उत्तरप्रदेश के गौरव परमवीर यदुनाथ सिंह राठौड़ ,पीरु सिंह शेखावत ,शैतान सिंह भाटी एवं उस समय की एक और वीरांगना उत्तरप्रदेश की तुलसीपुर एस्टेट की चौहान रानी ईष्वरी कुमारी देवी थी जिन्होंने अपनी वीरता और शौर्यता ,आन ,वान् एवं स्वाभिमान ,त्याग एवंबलिदान पूर्ण कार्यों से इतिहास के पन्नें रंग कर चले गये ।परन्तु अब उनकी ये ख्याति केवल इतिहास के पन्नों में ही रह गई है और दिन प्रतिदिन राजपूत लोग अपने गौरव को भूलते जारहे है ,क्यों न भूले जब कि पश्चिमी सभ्यता और शिक्षा का प्रभाव चारों तरफ पड़ रहा है और समय भी बदल चुका है ।
लार्ड मैकाले का यह कथन भी उल्लेख करने योग्य है कि -----
"जो जाति अपने पूर्वजों के श्रेष्ठ कार्यों का अभिमान नहीं करती वह कोई ऐसी बात ग्रहण न करेगी जो कि बहुत पीढ़ी पीछे उनकी संतानों से सगर्व स्मरण करने योग्य हो ।"
वर्तमान पीढ़ी एवं इसके बाद आने वाली पीढ़ी भी चली जायगी किन्तु राजपूत जाति जिन्दा रहेगी ,राजपूत संस्कृति जिन्दा रहेगी ,किन्तु जिस तेजी से हम संभी क्षेत्रों में पीछे खिसक रहे है यदि यही रफ़्तार जारी रही तो आगामी कुछ वर्षों बाद राजपूत कहाँ होगा यह सोचकर ही दिल में एक हड़कंप पैदा होता है ।
यदि अब भी राजपूत जाति अपने पूर्व गौरव व् इतिहास की ओर ध्यान देवे तो यह जाति संसार में अदिवतीय चमत्कार दिखला सकती है ।लेकिन आज के समय में एकता और शिक्षा के क्षेत्र में अदिवतीय होना होगा तभी ये संभव है ।क्या ये शब्द हमारे बहरे कानों में पड़ेंगे ?
जय हिन्द ।जय राजपूताना ।
लेखक -डा0 धीरेन्द्र सिंह जादौन ,गांव -लढोता ,सासनी ,जिला -हाथरस ,उत्तरप्रदेश ।

प्रतिहार वंश /Pratihar or Parihar Rajput

यूँ तो प्रतिहारो की उत्पत्ति पर कई सारे मत है,किन्तु उनमे से अधिकतर कपोल कल्पनाओं के अलावा कुछ नहीं है। प्राचीन साहित्यों में प्रतिहार का अर्थ "द्वारपाल" मिलता है। अर्थात यह वंश विश्व के मुकुटमणि भारत के पश्चिमी द्वारा अथवा सीमा पर शासन करने के चलते ही प्रतिहार कहलाया।
अब प्रतिहार वंश की उत्पत्ति के बारे में जो भ्रांतियाँ है उनका निराकारण करते है। एक मान्यता यह है की ये वंश अबू पर्वत पर हुए यज्ञ की अग्नि से उत्पन्न हुआ है,जो सरासर कपोल कल्पना है।हो सकता है अबू पर हुए यज्ञ में इस वंश की हाजिरी के कारण इस वंश के साथ साथ अग्निवंश की कथा रूढ़ हो गई हो। खैर अग्निवंश की मान्यता कल्पना के अलावा कुछ नहीं हो सकती और ऐसी कल्पित मान्यताये इतिहास में महत्त्व नहीं रखती।
इस वंश की उत्पत्ति के संबंध में प्राचीन साहित्य,ग्रन्थ और शिलालेख आदि क्या कहते है इसपर भी प्रकाश डालते है।
१) सोमदेव सूरी ने सन ९५९ में यशस्तिलक चम्पू में गुर्जर देश का वर्णन किया है। वह लिखता है कि न केवल प्रतिहार बल्कि चावड़ा,चालुक्य,आदि वंश भी इस देश पर राज करने के कारण गुर्जर कहलाये।
२) विद्व शाल मंजिका,सर्ग १,श्लोक ६ में राजशेखर ने कन्नौज के प्रतिहार राजा भोजदेव के पुत्र महेंद्र को रघुकुल तिलक अर्थात सूर्यवंशी क्षत्रिय बताया है।
३)कुमारपाल प्रबंध के पृष्ठ १११ पर भी गुर्जर देश का वर्णन है...
कर्णाटे,गुर्जरे लाटे सौराष्ट्रे कच्छ सैन्धवे।
उच्चाया चैव चमेयां मारवे मालवे तथा।।
४) महाराज कक्कूड का घटियाला शिलालेख भी इसे लक्ष्मण का वंश प्रमाणित करता है....अर्थात रघुवंशी
रहुतिलओ पड़ीहारो आसी सिरि लक्खणोत्रि रामस्य।
तेण पडिहार वन्सो समुणई एत्थ सम्प्तो।।
५) बाउक प्रतिहार के जोधपुर लेख से भी इनका रघुवंशी होना प्रमाणित होता है।(९ वी शताब्दी)
स्वभ्राता राम भद्रस्य प्रतिहार्य कृतं सतः।
श्री प्रतिहारवड शोयमत श्रोन्नतिमाप्युयात।
इस शिलालेख के अनुसार इस वंश का शासनकाल गुजरात में प्रकाश में आया था।
६) चीनी यात्री हुएन्त त्सांग ने गुर्जर राज्य की राजधानी पीलोमोलो,भीनमाल या बाड़मेर कहा है।
७) भोज प्रतिहार की ग्वालियर प्रशस्ति
मन्विक्षा कुक्कुस्थ(त्स्थ) मूल पृथवः क्ष्मापल कल्पद्रुमाः।
तेषां वंशे सुजन्मा क्रमनिहतपदे धाम्नि वज्रैशु घोरं,
राम: पौलस्त्य हिन्श्रं क्षतविहित समित्कर्म्म चक्रें पलाशे:।
श्लाध्यास्त्स्यानुजो सौ मधवमदमुषो मेघनादस्य संख्ये,
सौमित्रिस्तिव्रदंड: प्रतिहरण विर्धर्य: प्रतिहार आसी।
तवुन्शे प्रतिहार केतन भृति त्रैलौक्य रक्षा स्पदे
देवो नागभट: पुरातन मुने मुर्तिर्ब्बमूवाभदुतम।
अर्थात-सुर्यवंश में मनु,इश्वाकू,कक्कुस्थ आदि राजा हुए,उनके वंश में पौलस्त्य(रावण) को मारने वाले राम हुए,जिनका प्रतिहार उनका छोटा भाई सौमित्र(सुमित्रा नंदन लक्ष्मण) था,उसके वंश में नागभट हुआ। इसी प्रशस्ति के सातवे श्लोक में वत्सराज के लिए लिखा है क़ि उस क्षत्रिय पुंगव(विद्वान्) ने बलपूर्वक भड़ीकुल का साम्राज्य छिनकर इश्वाकू कुल की उन्नति की।
८) देवो यस्य महेन्द्रपालनृपति: शिष्यों रघुग्रामणी:(बालभारत,१/११)
तेन(महिपालदेवेन)च रघुवंश 
मुक्तामणिना(बालभारत)
बालभारत में भी महिपालदेव को रघुवंशी कहा है।
९)ओसिया के महावीर मंदिर का लेख जो विक्रम संवत १०१३(ईस्वी ९५६) का है तथा संस्कृत और देवनागरी लिपि में है,उसमे उल्लेख किया गया है कि-
तस्या कार्षात्कल प्रेम्णालक्ष्मण: प्रतिहारताम ततो अभवत प्रतिहार वंशो राम समुव:।।६।।
तदुंदभशे सबशी वशीकृत रिपु: श्री वत्स राजोडsभवत।
अर्थात लक्ष्मण ने प्रेमपूर्वक उनके प्रतिहारी का कार्य किया,अनन्तर श्री राम से प्रतिहार वंश की उत्पत्ति हुई। उस प्रतिहार वंश में वत्सराज हुआ।
१०) गौडेंद्रवंगपतिनिर्ज्जयदुर्व्विदग्धसदगुर्ज्जरेश्वरदिगर्ग्गलतां च यस्य।
नीत्वा भुजं विहतमालवरक्षणार्त्थ स्वामी तथान्यमपि राज्यछ(फ) लानि भुंक्ते।।
-बडोदे का दानपत्र,Indian Antiquary,Vol 12,Page 160
उक्त ताम्रपत्र के 'गुजरेश्वर' एद का अर्थ 'गुर्जर देश(गुजरात) का राजा' स्पष्ट है,जिसे खिंच तानकर गुर्जर जाती या वंश का राजा मानना सर्वथा असंगत है। संस्कृत साहित्य में कई ऐसे उदाहरण मिलते है।
ये लेख गुजरेश्वर,गुर्जरात्र,गुज्जुर इन संज्ञाओ का सही मायने में अर्थ कर इसे जाती सूचक नहीं स्थान सूचक सिद्ध करता है जिससे भगवान्लाल इन्द्रजी,देवदत्त रामकृष्ण भंडारकर,जैक्सन तथा अन्य सभी विद्वानों के मतों को खारिज करता है जो इस सज्ञा के उपयोग से प्रतिहारो को गुर्जर मानते है।
११) कुशनवंशी राजा कनिष्क के समय में गुर्जरों का भारतवर्ष में आना प्रमाणशून्य बात है,जिसे स्वयं डॉ.भगवानलाल इन्द्रजी ने स्वीकार किया है,और गुप्तवंशियों के समय में गुजरो को राजपूताना,गुजरात और मालवे में जागीर मिलने के विषय में कोई प्रमाण नहीं दिया है। न तो गुप्त राजाओं के लेखो और भडौच से मिले दानपत्रों में इसका कही उल्लेख है।
१२)३६ राजवंशो की किसी भी सूची में इस वंश के साथ "गुर्जर" एद का प्रयोग नहीं किया गया है। यह तथ्य भी गुर्जर एद को स्थानसूचक सिद्धकर सम्बंधित एद का कोइ विशेष महत्व नही दर्शाता।
१३)ब्राह्मण उत्पत्ति के विषय में इस वंश के साथ द्विज,विप्र यह दो संज्ञाए प्रयुक्त की गई है,तो द्विज का अर्थ ब्राह्मण न होकर द्विजातिय(जनेउ) संस्कार से है न की ब्राह्मण से। ठीक इसी तरह विप्र का अर्थ भी विद्वान पंडित अर्थात "जिसने विद्वत्ता में पांडित्य हासिल किया हो" ही है।
१४) कुशनवंशी राजा कनिष्क के समय में गुर्जरों का भारतवर्ष में आना प्रमाणशून्य बात है,जिसे स्वयं डॉ.भगवानलाल इन्द्रजी ने स्वीकार किया है,और गुप्तवंशियों के समय में गुजरो को राजपूताना,गुजरात और मालवे में जागीर मिलने के विषय में कोई प्रमाण नहीं दिया है। न तो गुप्त राजाओं के लेखो और भडौच से मिले दानपत्रों में इसका कही उल्लेख है।
उपरोक्त सभी प्रमाणों के आधार पर हम इस निष्कर्ष पर पहुँचते है की,प्रतिहार वंश निस्संदेह भारतीय मूल का है तथा शुद्ध क्षत्रिय राजपूत वंश है।
============================
प्रतिहार वंश
संस्थापक- हरिषचन्द्र
वास्तविक - नागभट्ट प्रथम (वत्सराज)
पाल -धर्मपाल
राष्ट्रकूट-ध्रव
प्रतिहार-वत्सराज
राजस्थान के दक्षिण पष्चिम में गुर्जरात्रा प्रदेष में प्रतिहार वंष की स्थापना हुई। ये अपनी उत्पति लक्ष्मण से मानते है। लक्षमण राम के प्रतिहार (द्वारपाल) थे। अतः यह वंष प्रतिहार वंष कहलाया। नगभट्ट प्रथम पष्चिम से होने वाले अरब आक्रमणों को विफल किया। नागभट्ट प्रथम के बाद वत्सराज षासक बना। वह प्रतिहार वंष का प्रथम षासक था जिसने त्रिपक्षीप संघर्ष त्रिदलीय संघर्ष/त्रिराष्ट्रीय संघर्ष में भाग लिया।
त्रिपक्षीय संघर्ष:- 8 वीं से 10 वीं सदी के मध्य लगभग 200 वर्षो तक पष्चिम के प्रतिहार पूर्व के पाल और दक्षिणी भारत के राष्ट्रकूट वंष ने कन्नौज की प्राप्ति के लिए जो संघर्ष किया उसे ही त्रिपक्षीय संघर्ष कहा जाता है।
नागभट्ट द्वितीय:- वत्सराज के पष्चात् षक्तिषाली षासक हुआ उसने भी अरबों को पराजित किया किन्तु कालान्तर में उसने गंगा में डूब आत्महत्या कर ली।
मिहिर भोज प्रथम - इस वंष का सर्वाधिक षक्तिषाली षासक इसने त्रिपक्षीय संघर्ष में भाग लेकर कन्नौज पर अपना अधिकार किया और प्रतिहार वंष की राजधानी बनाया। मिहिर भोज की उपब्धियों की जानकारी उसके ग्वालियर लेख से प्राप्त होती है।
- आदिवराह व प्रीाास की उपाधी धारण की।
-आदिवराह नामक सिक्के जारी किये।
मिहिर भोज के पष्चात् महेन्द्रपाल षासक बना। इस वंष का अन्तिम षासक गुर्जर प्रतिहार वंष के पतन से निम्नलिखित राज्य उदित हुए।
मारवाड़ का राठौड़ वंष
मेवाड़ का सिसोदिया वंष
जैजामुक्ति का चन्देष वंष
ग्वालियर का कच्छपधात वंष
प्रतिहार
8वीं से 10वीं षताब्दी में उत्तर भारत में प्रसिद्ध राजपुत वंष गुर्जर प्रतिहार था। राजस्थान में प्रतिहारों का मुख्य केन्द्र मारवाड़ था। पृथ्वीराज रासौ के अनुसार प्रतिहारों की उत्पत्ति अग्निकुण्ड से हुई है।
प्रतिहार का अर्थ है द्वारपाल प्रतिहार स्वयं को लक्ष्मण वंषिय सूर्य वंषीय या रधुकुल वंषीय मानते है। प्रतिहारों की मंदिर व स्थापत्य कला निर्माण षैली गुर्जर प्रतिहार षैली या महामारू षैली कहलाती है। प्रतिहारों ने अरब आक्रमण कारीयों से भारत की रक्षा की अतः इन्हें "द्वारपाल"भी कहा जाता है। प्रतिहार गुर्जरात्रा प्रदेष (गुजरात) के पास निवास करते थे। अतः ये गुर्जर - प्रतिहार कहलाएं। गुर्जरात्रा प्रदेष की राजधानी भीनमाल (जालौर) थी।
मुहणौत नैणसी (राजपुताने का अबुल-फजल) के अनुसार गुर्जर प्रतिहारों की कुल 26 शाखाएं थी। जिमें से मण्डोर व भीनमाल शाखा सबसे प्राचीन थी।
मण्डौर शाखा का संस्थापक - हरिचंद्र था।
गुर्जर प्रतिहारों की प्रारम्भिक राजधानी -मण्डौर
भीनमाल शाखा
1. नागभट्ट प्रथम:- नागभट्ट प्रथम ने 730 ई. में भीनमाल में प्रतिहार वंष की स्थापना की तथा भीनमाल को प्रतिहारों की राजधानी बनाया।
2. वत्सराज द्वितीय:- वत्सराज भीनमाल प्रतिहार वंष का वास्तिवक संस्थापक था। वत्सराज को रणहस्तिन की उपाधि प्राप्त थी। वत्सराज ने औसियां के मंदिरों का निर्माण करवाया। औसियां सूर्य व जैन मंदिरों के लिए प्रसिद्ध है। इसके समय उद्योतन सूरी ने "कुवलयमाला" की रचना 778 में जालौर में की। औसियां के मंदिर महामारू षैली में बने है। लेकिन औसियां का हरिहर मंदिर पंचायतन षैली में बना है।
-औसियां राजस्थान में प्रतिहारों का प्रमुख केन्द्र था।
-औसिंया (जोधपुर)के मंदिर प्रतिहार कालीन है।
-औसियां को राजस्थान को भुवनेष्वर कहा जाता है।
-औसियां में औसिया माता या सच्चिया माता (ओसवाल जैनों की देवी) का मंदिर है जिसमें महिसासुर मर्दनी की प्रतिमा है।
-जिनसेन ने "हरिवंष पुराण " की रचना की।
वत्सराज ने त्रिपक्षिय संर्घष की षुरूआत की तथा वत्सराज राष्ट्रकूट राजा ध्रुव से पराजित हुआ।
त्रिपक्षिय/त्रिराष्ट्रीय संर्घष
कन्नौज को लेकर उत्तर भारत की गुर्जर प्रतिहार पूर्व में बंगाल का पाल वंष तथा दक्षिणी भारत का राष्ट्रवंष के बीच 100 वर्षो तक के चले संघर्ष को त्रिपक्षिय संघर्ष कहा जाता है।
3. नागभट्ट द्वितीय:- वत्सराज व सुन्दर देवी का पुत्र। नागभट्ट द्वितीय ने अरब आक्रमणकारियों पर पूर्णतयः रोक लगाई। नागभट्ट द्वितीय ने गंगा समाधि ली। नागभट्ट द्वितीय ने त्रिपक्षिय संघर्ष में कन्नौज को जीतकर सर्वप्रथम प्रतिहारों की राजधानी बनाया।
4. मिहिर भोज (835-885 ई.):- मिहिर भोज को आदिवराह व प्रभास की उपाधि प्राप्त थी। मिहिर भोज वेष्णों धर्म का अनुयायी था। मिहिरभोज प्रतिहारों का सबसे अधिक षक्तिषाली राजा था। इस काल चर्माेत्कर्ष का काल था। मिहिर भोज ने चांदी के द्रुम सिक्के चलवाये। मिहिर भोज को भोज प्रथम भी कहा जाता है। ग्वालियर प्रषक्ति मिहिर भोज के समय लिखी गई।
851 ई. में अरब यात्री सुलेमान न मिहिर भोज के समय भारत यात्रा की। अरबीयात्री सुलेमान व कल्वण ने अपनी राजतरंगिणी (कष्मीर का इतिहास) में मिहिर भोज के प्रषासन की प्रसंषा की। सुलेमान ने भोज को इस्लाम का षत्रु बताया।
5. महिन्द्रपाल प्रथम:- इसका गुरू व आश्रित कवि राजषेखर था। राजषेखर ने कर्पुर मंजरी, काव्य मिमांसा, प्रबंध कोष हरविलास व बाल रामायण की रचना की। राजषेखर ने महेन्द्रपाल प्रथम को निर्भय नरेष कहा है।
6. महिपाल प्रथम:- राजषेखर महिपाल प्रथम के दरबार में भी रहा। 915 ई. में अरब यात्री अली मसुदी ने गुर्जर व राजा को बोरा कहा है।
7. राज्यपाल:- 1018 ई. में मुहम्मद गजनवी ने प्रतिहार राजा राज्यपाल पर आक्रमण किया।
8. यषपाल:- 1036 ई. में प्रतिहारों का अन्तिम राजा यषपाल था।
भीनमाल:- हेनसांग/युवाचांग न राजस्थान में भीनमाल व बैराठ की यात्रा की तथा अपने ग्रन्थ सियू की मे भीनमाल को पोनोमोल कहा है। गुप्तकाल के समय का प्रसिद्व गणितज्ञ व खगोलज्ञ ब्रहमागुप्त भीनमाल का रहने वाला था जिससे ब्रहमाण्ड की उत्पत्ति का सिद्धान्त " ब्रहमास्फुट सिद्धान्त (बिग बैन थ्यौरी) का प्रतिपादन किया।
==========================
---प्रतिहार राजपूतो की वर्तमान स्थिति---
भले ही यह विशाल प्रतिहार राजपूत साम्राज्य बाद में खण्डित हो गया हो लेकिन इस वंश के वंशज राजपूत आज भी इसी साम्राज्य की परिधि में मिलते हैँ।
उत्तरी गुजरात और दक्षिणी राजस्थान में भीनमाल के पास जहाँ प्रतिहार वंश की शुरुआत हुई, आज भी वहॉ प्रतिहार राजपूत पड़िहार आदि नामो से अच्छी संख्या में मिलते हैँ।
प्रतिहारों की द्वितीय राजधानी मारवाड़ में मंडोर रही। जहाँ आज भी प्रतिहार राजपूतो की इन्दा शाखा बड़ी संख्या में मिलती है। राठोड़ो के मारवाड़ आगमन से पहले इस क्षेत्र पर प्रतिहारों की इसी शाखा का शासन था जिनसे राठोड़ो ने जीत कर जोधपुर को अपनी राजधानी बनाया। 17वीं सदी में भी जब कुछ समय के लिये मुगलो से लड़ते हुए राठोड़ो को जोधपुर छोड़ना पड़ गया था तो स्थानीय इन्दा प्रतिहार राजपूतो ने अपनी पुरातन राजधानी मंडोर पर कब्जा कर लिया था।
इसके अलावा प्रतिहारों की अन्य राजधानी ग्वालियर और कन्नौज के बीच में प्रतिहार राजपूत परिहार के नाम से बड़ी संख्या में मिलते हैँ।
बुन्देल खंड में भी परिहारों की अच्छी संख्या है। यहाँ परिहारों का एक राज्य नागौद भी है जो मिहिरभोज के सीधे वंशज हैँ।
प्रतिहारों की एक शाखा राघवो का राज्य वर्तमान में उत्तर राजस्थान के अलवर, सीकर, दौसा में था जिन्हें कछवाहों ने हराया। आज भी इस क्षेत्र में राघवो की खडाड शाखा के राजपूत अच्छी संख्या में हैँ। इन्ही की एक शाखा पश्चिमी उत्तर प्रदेश के बुलंदशहर, अलीगढ़, रोहिलखण्ड और दक्षिणी हरयाणा के गुडगाँव आदि क्षेत्र में बहुसंख्या में है। एक और शाखा मढाढ के नाम से उत्तर हरयाणा में मिलती है। व
उत्तर प्रदेश में सरयूपारीण क्षेत्र में भी प्रतिहार राजपूतो की विशाल कलहंस शाखा मिलती है। इनके अलावा संपूर्ण मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, बिहार और उत्तरी महाराष्ट्र आदि में(जहाँ जहाँ प्रतिहार साम्राज्य फैला था) अच्छी संख्या में प्रतिहार/परिहार राजपूत मिलते हैँ।

प्रतिहार गुज्जर कैसे ??
-प्रतिहारो के गल्लका के लेख में स्पष्ट लिखा है के प्रतिहार सम्राट नागभट्ट जिन्हें गुर्जरा प्रतिहार वंश का संस्थापक भी माना जाता है ने गुर्जरा राज्य पर हमला कर गुज्जरों को गुर्जरा देश से बाहर खदेड़ा व अपना राज्य स्थापित किया... अगर प्रतिहार गुज्जर थे तो खुद को ही अपने देश में हराकर बाहर क्यों खड़ेंगे ?? मिहिर भोज के पिता प्रतिहार क्षत्रिय और पुत्र गुज्जर कैसे ??

- हरश्चरित्र में गुजरादेश का जिक्र बाण भट्ट ने एक राज्य एक भू भाग के रूप में किया है यही बात पंचतंत्र और कई विदेशी सैलानियों के रिकार्ड्स में भी पुख्ता होती है। इस गुर्जरा देस में गुज्जरों को खदेड़ने के बाद जिस भी वंश ने राज्य किया गुर्जरा नरपति या गुर्जर नरेश कहलाया। यदि गुज्जर विदेशी जाती है तो दक्षिण से आये हुए सोलंकी/चालुक्य जैसे वंश भी गुर्जरा पर फ़तेह पाने के बाद गुर्जरा नरेश या गुर्जरेश्वर क्यों कहलाये ?

- गुज्जर एक विदेशी जाती है जो हूणों के साथ भारत आई जिसका मुख्य काम गोपालन और दूध मीट की सेना को सप्लाई था तो आज भी गुजरात में गुर्जरा ब्राह्मण गुर्जरा वैश्य गुर्जरा मिस्त्री गुर्जरा धोभी गुर्जरा नाई जैसी जातियाँ कैसे मिलती है ??

- प्रतिहार राजा हरिश्चंद्र को मंडोर के शीलालेखों में द्विज लिखा है , जिनकी ब्राह्मण और क्षत्रिय पत्नियां थी । यह मिहिर भोज के भी पूर्वज थे। रिग वेद और मनुस्मृति के अनुसार द्विज केवल आर्य क्षत्रिय और ब्राह्मण जातियाँ ही हो सकती थीं। अगर हरिशन्द्र आर्य क्षत्रिय थे तो उनके वंशज विदेशी शूद्र गुज्जर कैसे ??

- प्रतिहारों की राजोरगढ़ के शिलालेखों में प्रतिहारों को गुर्जर प्रतिहार लिखा है ये शिलालेख मण्डोर और गललका के शिलालेख से बाद के है यानी प्रतिहारों के गुर्जरा राज्य पर अधिपत्य के बाद स्थापित किये गए। सभी इतिहासकार इन्हें स्थान सूचक मानतें हैं। तो कुछ विदेशी इतिहासकार ये लिखते है के 12वि पंक्ति में गूजरों का पास के खेतों में खेती करने का जिक्र किया गया है तो इस वजह से कहा जा सकता है प्रतिहार गुज्जर थे। अब ये समझा दी भैया के राजा और क्षत्रिय की पदवी पा चुकी राजवंशी जाती क्यों खेती करेगी ?? जबकि ये तो शूद्रों का कार्य माना जाता था। यानि साफ़ है के गुर्जरा देस से राजोर आये प्रतिहार ही गुर्जरा प्रतिहार कहलाए जिनके राज्य में गुर्जर देश से आये हुए गर्जर यानी गुर्जरा के नागरिक खेती करते थे और ये प्रतिहारों से अलग थे ।।।

- अवंती के प्रतिहार राजा, वत्सराज के ताम्रपत्रों और शिलालेखों से यह पता चलता है के वत्सराज प्रतिहार ने नंदपुरी की पहली और आखिरी गुज्जर बस्ती को उखाड़ फेंका नेस्तेनाबूत कर दिया और भत्रवर्ध चौहान को जयभट्ट गुज्जर के स्थान पर जागीर दी। इस शिलालेखों से भी प्रतिहार और गुज्जरों के अलग होने के सबूत मिलते हैं तो प्रतिहार और गुज्जर एक कैसे ???

- देवनारायण जी की कथा के अनुसार भी उनके पिता चौहान क्षत्रिय और माता गुजरी थी जिससे गूजरों की बगड़ावत वंश निकला यही उधारण राणा हर राय देव से कलस्यां गोत्र के गुज्जरों को उतपत्ति ( करनाल और मुज़्ज़फरगर ब्रिटिश गजट पढ़ें या सदियों पुराने राजपूतों के भाट रिकॉर्ड पढ़ें।) , ग्वालियर के राजा मान सिंह तंवर की गुजरी रानी मृगनयनी से तोंगर या तंवर गुज्जरों की उत्पत्ति के प्रमाण मिलतें हैं तो प्रीतिहार राजपूत वंश गुज्जरों से कैसे उतपन्न हुआ ? क्षत्रिय से शुद्र तो बना जा सकता है पर शुद्र से क्षत्रिय कैसे बना जा सकता है 
- जहाँ जहाँ प्रतिहार वंश का राज रहा है वहाँ आज भी प्रतिहार राजपूतों की बस्ती है और यह बस्तियाँ हजारों साल पुरानी है पर यहाँ गुज्जर प्रतिहार नहीं पाये जाते।
मंडोर के इलाके में इन्दा व देवल प्रतिहार कन्नौज में कलहंस और मूल प्रतिहार , मध्य प्रदेश में प्
रतिहारों को नागोद रियासत व गुजरात में प्रतिहार राजपूतों के आज भी 3 रियासत व् 200 से अधिक गाँव। न कन्नौज में गुज्जर है ना नागोद में ना गुजरात में। और सारे रजवाड़े भी क्षत्रिय व राजपूत प्रतिहार माने जाते है जबकि गुज्जरों में तो प्रतिहार गोत्र व खाप ही नहीं है तो प्रतिहार गुज्जर कैसे ??

- मिहिर भोज नागभट्ट हरिश्चंद्र प्रतिहारों के शिलालेखों और ताम्रपत्रों में इन तीनों को सूर्य वंशी रघु वंशी और लक्षमण के वंश में लिखा है ; गुज्जर विदेशी है तो ये सब खुद को आर्य क्षत्रिय क्यों बता के गए ??!

- राजोरगढ़ के आलावा ग्वालियर कन्नोज मंडोर गल्लका अवंती उज्जैन के शिलालेखों और ताम्रपत्रों में प्रतिहारों के लिये किसी भी पंक्ति व लेख में गुर्जर गू जर गू गुर्जरा या कोई भी मिलता जुलता शब्द या उपाधि नहीं मिलती है साफ है सिर्फ राजोरगढ़ में गुर्जरा देस से आई हुई खाप को गुर्जरा नरेश को उपाधि मिली !! जब बाकि देश के प्रतिहार गुज्जर नहीं तो राजोरगढ़ के प्रतिहार गुज्जर कैसे ??
लेखक--कुंवर विश्वजीत सिंह शिशोदिया(खानदेश महाराष्ट्र)

Jaunpur college and Th.Tilak Dhari Singh

The Great Contribution of Th.Tilak Dhari Singh (A first graduate person in Rajputs of jaunpur district of U P) in Educational Development And Social Upliftment of Rajput Community in purvanchal of U P.
Thakur Tilak Dhari Singh was great man who obtained Graduate Degree first in Rajput Community of Jaunpur district of U P .He was also play a signifucant role with Raja Amar Singh of Jaunpur in freedom fighters struggle.His great contribution can not be overemphasized in the educational development and social Upliftment of kshatriyas of Purvanchal Area of U P .He wasa devoted man in unity of his socity.Thakur Tilak Dari Singh was
Born on 29th February, 1872 in a middle class kshattriya family in village Kuddupur, district Jaunpur.Th.Tilak Dhari Singh completed his school education partly in Jaunpur and partly in Semari of Raebareily district of U.P. He did his graduation in 1894 from Canning College of Lucknow University. After graduation he enrolled for law degree in 1895 but owing to the sudden death of his beloved father he discontinued his studies.He was an energetic and promising young man. He came into contact with the leading lawyers of the city of jaunpur and helped the poor and neglected sections of the society in their legal problems. He was always worried to see the condition of Kshatriyas of the poor and felt that it could be improved only if they are properly educated.He decided to establish an institution of learning meant for the people irrespective of his caste Kshatriyas and creed With this aim in mind he founded an English Middle School in rented premises in the year 1914. . Mr Singh was the first graduate in this district of his community.It was recognized as Kshatriya High School in 1916. It Became an Intermediate in 1940. It acquired the status of of a Degree College in 1946 in affiliation to Agra University.It’s affiliation shifted to Gorakhpur University in 1956. It got the status of Post Graduation in 1970 after a long drawn protest led by then principal Sri H N Singh.
Most of the rajput of purvanchal obtained education from this Institution and gets good and very valuable post in the country .
Courtesy---Dr Dhirendra Singh Jadaun
Village --Larhota ,Sasni ,District -Hatharas ,UP.

Thursday, November 12, 2015

Dawood and its real estate in London

3000 करोड़ रुपये की संपत्ति का मालिक है दाऊद
हिंदुस्तान का दुश्मन नंबर वन दाऊद इब्राहिम भले ही पाकिस्तान में बैठा है, लेकिन उसके हुक्म पर धंधा दुबई और ग्रेट ब्रिटेन में भी चलता है. भारत सरकार की कोशिश है कि दाऊद हर हाल में कानून के कठघरे में खड़ा हो. इसलिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के दौरे में वो दस्तावेज ब्रिटिश सरकार को सौंपे गए, जिनमें ब्रिटेन में स्थित दाऊद की संपत्तियों का ब्यौरा है.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ब्रिटिश प्रधानमंत्री डेविड कैमरन से उनके सरकारी निवास 10, डाउनिंग स्ट्रीट में मुलाकात की. प्रधानमंत्री के साथ गए राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल ने अधिकारियों के एक दल के साथ दाऊद की संपत्ति पर एक डोजियर ब्रिटिश सरकार को सौंपा. ब्रिटिश अधिकारियों से दाऊद की संपत्ति सीज करने की गुजारिश भी की है.

प्रवर्तन निदेशालय के मुताबिक, दुनिया की 10 देशों में दाऊद की 50 प्राइम प्रॉपर्टी हैं. इनकी कीमत करीब 3000 करोड़ रुपये आंकी गई है. लेकिन सबसे ज्यादा निवेश ब्रिटेन और लंदन में ही हुआ है. ब्रिटेन में दाऊद और उसके करीबियों की 15 संपत्तियां हैं, जिनकी कीमत करीब 1500 करोड़ रुपये आंकी जा रही है. डी कंपनी ने ब्रिटिश अधिकारियों की मिलीभगत से यह बनाई है


हिंदुस्तान का दुश्मन नंबर वन दाऊद इब्राहिम भले ही पाकिस्तान में बैठा है, लेकिन उसके हुक्म पर धंधा दुबई और ग्रेट ब्रिटेन में भी चलता है. भारत सरकार की कोशिश है कि दाऊद हर हाल में कानून के कठघरे में खड़ा हो. इसलिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के दौरे में वो दस्तावेज ब्रिटिश सरकार को सौंपे गए, जिनमें ब्रिटेन में स्थित दाऊद की संपत्तियों का ब्यौरा है.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ब्रिटिश प्रधानमंत्री डेविड कैमरन से उनके सरकारी निवास 10, डाउनिंग स्ट्रीट में मुलाकात की. प्रधानमंत्री के साथ गए राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल ने अधिकारियों के एक दल के साथ दाऊद की संपत्ति पर एक डोजियर ब्रिटिश सरकार को सौंपा. ब्रिटिश अधिकारियों से दाऊद की संपत्ति सीज करने की गुजारिश भी की है.

प्रवर्तन निदेशालय के मुताबिक, दुनिया की 10 देशों में दाऊद की 50 प्राइम प्रॉपर्टी हैं. इनकी कीमत करीब 3000 करोड़ रुपये आंकी गई है. लेकिन सबसे ज्यादा निवेश ब्रिटेन और लंदन में ही हुआ है. ब्रिटेन में दाऊद और उसके करीबियों की 15 संपत्तियां हैं, जिनकी कीमत करीब 1500 करोड़ रुपये आंकी जा रही है. डी कंपनी ने ब्रिटिश अधिकारियों की मिलीभगत से यह बनाई है.

D कंपनी की संपत्ति सीज करने की गुजारिश
भारत चाहता है कि डी कंपनी की सारी संपत्ति सीज हो ताकि उसकी कमर टूटे. दूसरे देशों को पैगाम जाए कि डॉन को बचाना गलत ही नहीं, गैरकानूनी भी है. कुछ समय पहले ही प्रधानमंत्री मोदी ने दाऊद की संपत्तियों का ब्योरा यूएई सरकार को सौंपा था. अब साफ है कि पाकिस्तान चाहे दाऊद को बचाने की कितनी ही नापाक कोशिश करे, लेकिन उसे बचा नहीं सकता.

लंदन में डॉन का चलता है साम्राज्य
लंदन से कभी अंग्रेजों का ऐसा राज चलता था, जिसमें कभी सूरज डूबता ही नहीं था. आज इसी लंदन में उस दाऊद इब्राहिम के काले कारोबार का साम्राज्य भी चलता है, जो आतंक, ड्रग तस्करी और हवाला के धंधों में माहिर है. इसीलिए भारत चाहता है कि ब्रिटेन में यदि दाऊद के धंधों और अड्डों को चौपट कर दिया जाए तो उसको पकड़ना आसान हो जाएगा.

दाऊद की प्रॉपर्टी की एक्सक्लूसिव लिस्ट


प्रापर्टी नं-1 - 6, सेंट जॉन्स वूड रोड, लंदन (साथ में बड़ा गैराज)
प्रापर्टी नं-2-- हरबर्ट रोड, हॉर्नचर्च, एसेक्स
प्रापर्टी नं-3- सारा हाउस (9 फ्लैट्स और एक पेंट हाउस) रिचमंड रोड, इलफोर्ड
प्रापर्टी नं-4- डार्टफोर्ड होटल, 22-26 स्पिटल स्ट्रीट, डार्टफोर्ड
प्रापर्टी नं 5- 2, टॉम्सवूड रोड, शिगवेल
प्रापर्टी नं -6-रॉम्पटन हाइ स्ट्रीट, लंदन में दुकान और अपार्टमेंट
प्रापर्टी नं-7- लांसलॉट रोड पर दुकान और अपार्टमेंट
प्रापर्टी नं-8- 230, थॉर्न्टन रोड, क्रॉयडॉन
प्राप्रटी नं-9-  9, कोमो स्ट्रीट, रॉमफोर्ड, एसेक्स
प्रापर्टी-नं-10- द लान्स, 74, शेफर्ड्स बुश गार्डन, लंदन
प्रापर्टी नं-11- 37 और 37 ए, ग्रेट सेंट्रल एवेन्यू, साउथ रुइस्लिप
प्रापर्टी नं-12- 15-17, सेंट स्विथिन्स लेन, लंदन
प्रापर्टी नं-13- 28-30 नाइट्सब्रिज रोड/हावर्ड हाउस (साउदेंड), रॉम्पटन हाइ स्ट्रीट, लंदन
प्रापर्टी नं-14- 18, वूडहाउस रोड, न्यू नॉर्थ रोड हैनॉल्ट
प्राप्रटी नं-15- 13 बी, रिचमॉन्ड रोड, इलफोर्ड

दाऊद का लंदन में ऐसे चलता है धंधा
दाऊद इब्राहिम खुद लंदन नहीं जाता, लेकिन उसका धंधा फलता-फूलता रहा है. भारत सरकार द्वारा ब्रिटेन को सौंपे गए डोजियर से पता चलता है कि हवाला का कारोबार ब्रिटेन में दाऊद के गैरकानूनी बिजनेस की बुनियाद है.
एक अनुमान के मुताबिक दुबई से 1000 करोड़ रुपये की रकम हवाला के जरिए भेजी गई. वो रकम लंदन सहित यूरोप के कई देशों में भेजी गई.

1993 बम धमाकों के बाद दाऊद के साथ इकबाल मिर्ची भारत से फरार हो गया. लेकिन दाऊद और उसकी गैरहाजिरी में भी डी कंपनी भारत में काम करती रही. लूट, हत्या, फिरौती, जमीन कब्जाने जैसे तमाम काले धंधों से जो मोटी रकम आती, डी कंपनी के गुर्गे उसे हवाला के जरिए दुबई और लंदन भेजते रहे...इससे दाऊद ने इकबाल मिर्ची के सहारे यूरोप में अपना काला कारोबार खड़ा किया.

अगस्त 2013 को इकबाल मिर्ची की हार्ट अटैक से मौत हो गई. इसके बाद दाऊद ने अपना कारोबार इकबाल मिर्ची के परिवार को सौंप दिया. सरकार ने ब्रिटेन को दाऊद का कारोबार संभालने वालों के नाम सौंपे हैं. ये सभी नाम हैं तो इकबाल मिर्ची के परिजनों के, लेकिन काले धंधे की बड़ी रकम दाऊद की झोली में जाती है. इस तरह दाऊद पाकिस्तान में बैठे हुए साम्राज्य चलाता है.

दाऊद का कारोबर देखने वालों की लिस्ट

आसिफ मेमन
इकबाल मिर्ची का बड़ा बेटा. आसिफ मेमन दुबई और भारत के बीच होने वाले हवाला कारोबार पर निगाह रखता है.

जुनैद मेमन
इकबाल मिर्ची का छोटा बेटा. जुनैद दाऊद के यूरोप और अफ्रीका का कोराबार देखता है.

हाजरा मेमन
इकबाल मिर्ची की बीवी. हाजरा दाऊद के मोरक्को, स्पेन और लंदन के काले कारोबार में सहयोग करती है.

नादिया मेमन मलिक
इकबाल मिर्ची की बेटी, नादिया की शादी जावेद मलिक से हुई है. नादिया अपनी मां की मदद करती है.

जावेद मलिक
पाकिस्तानी नागरिक और नादिया मेमन का पति. वह पाकिस्तान और दुबई के बीच होने वाले काले कारोबार में दाऊद की मदद करता है.

इसके अलावा भारत सरकार ने अपने डोजियर में हुमायूं सुलेमान मर्चेंट, हारूम रशीद अलीम, एआर यूसुफ, मुख्तार पटका, वाधवा ग्रुप, अरशद फिरोज मेमन, फिरोज मेमन और परवीन फिरोज मेमन के नाम भी सौंपे हैं. सरकार इन सबकी धरपकड़ के जरिए भी दाऊद का नेटवर्क कमजोर करने में लगी है. ताकि दाऊद को कमजोर करके सरेंडर कराया जा सके. 
From WWW.AAJTAK.IN 

Sunday, November 8, 2015

भारत के PM नरेन्द्र मोदी- भविष्यवाणी, दो साल बाद सबको धूल चटा देंगे मोदी ...

भारत के PM नरेन्द्र मोदी के सितारे इन दिनों कुछ अच्छे नहीं चल रहे हैं। पहले दिल्ली विधानसभा चुनावों में अरविंद केजरीवाल और अब बिहार विधानसभा चुनावों में लालू-नीतीश के हाथों हुई हार से उनके राजनीतिक विरोधी मुखर होकर उनकी आलोचना कर रहे हैं। ज्योतिष की दृष्टि से देखा जाए तो उनकी कुंडली के अनुसार अभी उन्हें शनि की साढ़े साती लगी हुई है।

यह उन्हें 15 नवम्बर 2011 को शुरू हुई थी जो 23 जनवरी 2020 तक चलेगी। इसमें भी 3 नवम्बर 2014 को साढ़े साती अपने शिखर में पहुंच गई जो 26 अक्टूबर 2017 तक रहेगी। इसके बाद वह अपने अस्तकाल में आ जाएगी।

मोदी का जन्म 17 सितम्बर 1950 को गुजरात के बडऩगर में सुबह 10 बजे हुआ था। इस हिसाब से उनकी राशि तुला है। उनकी कुंडली के ग्यारहवें घर में शुक्र और शनि साथ बैठे हैं जिसके कारण ही वह भौतिक सुख-संपदा और उच्च आध्यात्मिक अनुभवों का एक साथ लाभ उठा पाते हैं।

शनि की साढे साती का है यह कमाल

























इसके साथ ही उन्हें चन्द्रमा की महादशा और राहू की अन्र्तदशा चल रही है, जिसके कारण उन्हें राजनीति में स्थातित्व मिल रहा है। वर्ष 2014 के अंत में राहू और केतु की गोचर दशा नकारात्मक होने के कारण ही उन्हें दिल्ली तथा बिहार विधानसभा चुनावों में हार का मुंह देखना पड़ा। मोदी के नेतृत्व में विधानसभा चुनावों में आखिरी बार जीत जम्मू-कश्मीर में हुई। वहां भी नवंबर में चुनाव हुए जबकि शनि की साढ़े साती अपने शिखर चरण में प्रवेश कर रही थी, यही कारण रहा कि भाजपा को जम्मू-कश्मीर में पीडीपी के साथ गठबंधन कर सरकार बनानी पड़ी।

2017 तक हारेंगे हर चुनाव

इसके बाद फरवरी 2015 में दिल्ली में हुए विधानसभा चुनाव तथा हाल ही के बिहार विधानसभा चुनावों में करारी हार का सामना करना पड़ा। इस समय राहू 12वें घर में केतु तथा सूर्य से युति करेगा जिसके फलस्वरूप उनकी नेतृत्व क्षमता पर सवाल उठाए जाएंगे।

साथ ही शनि गोचर में चन्द्रमा के साथ युति करेगा जिसके चलते भाजपा की अंदरूनी राजनीति में भी बहुत बड़ा फेरबदल देखने को मिल सकता है। लोगों को कोई बड़ा आश्चर्य नहीं होना चाहिए यदि 2017 तक भाजपा किसी भी राज्य में कोई विधानसभा चुनाव नहीं जीत पाए, हां वह मुख्य विपक्षी दल के रूप में जरूर उभरेगी।

दोस्तों के भेष में दुश्मन होंगे उनके साथ

इसके साथ ही मोदी के पुराने अच्छे साथी भी उनका साथ छोड़ देंगे। हाल ही में हम अरुण शौरी, राम जेठमलानी के रूप में इसकी हकीकत भी देख चुके हैं। हालांकि 9वें घर पर धर्म की दृष्टि होने से वह धार्मिक बने रहेंगे और निकट भविष्य में देश को और आगे ले जाएंगे।

सबसे बड़ी बात उनकी पार्टी के अंदरूनी साथी ही उनके दुश्मन बनेंगे और उन्हें डुबोने का काम कर रहे हैं। यदि भविष्य में मोदी पर किसी तरह का कोई संकट आता भी है तो इन ग्रह-नक्षत्रों के कारण उसके जिम्मेदार उनकी अपनी पार्टी के लोग होंगे जो गुप्त रूप से उनके खिलाफ अभियान चला रहे होंगे।

बना रहेगा उनके जीवन पर खतरा

बहुत संभव है कि वह इस दौरान किसी हादसे का शिकार भी हो जाएं। उनकी स्वास्थ्य के साथ साथ उनके जीवन के लिए भी लगातार खतरा बना रहेगा। अक्टूबर 2017 में उनकी साढ़े साती अपने अस्त चरण में प्रवेश कर जाएगी, तभी से उनकी मुश्किलें समाप्त होना शुरू हो जाएंगी और 2019 में साढ़े साती के हटते ही वह पूर्ण रूप से पूरी ताकत से फिर उभरेंगे।
From WWW.PATRIKA.COM


Saturday, November 7, 2015

Ford foundation and anti India activities

फोर्ड फाउंडेशन क्या है?
आज भारत में नयी सरकार बीजेपी के आने के वाद बहुत से NGO की वाट लगी उनमे ग्रीनपीस भी एक है और फोर्ड फाउंडेशन भी।।
उसके वाद से अमेरिका भी बौखलाया हुआ है।बो भारत सरकार से स्पष्टीकरण मांग रहा और अमेरिका की ये बोखलाहट साफ़ साफ़ दिखाती है की बो कांग्रेस राज में किस तरह देश को अस्थिर कर रहे थे।।
आज जो साहित्यकार और कुछ बड़े लोग मोदी सरकार को किसी ना किसी तरीके से कोष रहे है बो किसी न किसी रूप में फोर्ड फाउंडेशन से जुड़े हुए है ।।अब उनके NGO को पैसा मिलना बन्द हो चूका है इसलिए बो बोखलाए हुए है।
अब उस फोर्ड फाउंडेशन की मनमानी बन्द हो चुकी है बीजेपी के आने के वाद इसलिए अब बो बोखलाए हुए है और बीजेपी को अस्थिर करने में लगे है।
फोर्ड फाउंडेशन को समझिए !
फोर्ड मोटर्स कम्पनी के मालिक व अमेरिका के मूल निवासी हेनरी फोर्ड और एडसेल फोर्ड ने 15 जनवरी 1936 में फोर्ड फाउंडेशन नामक NGO का गठन किया ! NGO मुख्य उद्देश्य वैश्विक स्तर पर मानव कल्याण को बढ़ावा देना था, फोर्ड फाउंडेशन का मुख्यालय न्यूयॉर्क में है !
"मानव कल्याण" का मुखौटा लेकर पूरे विश्व में पहचान बनाने वाली फोर्ड फाउंडेशन का असली उद्देश्य कुछ और है ! फोर्ड फाउंडेशन को अमेरिकन ख़ुफ़िया एजेंसी CIA का रणनीतिक भागीदार माना जाता है !
फोर्ड फाउंडेशन के मुख्य काम है ___
1. CIA के इशारे पर विभिन्न देशो में चुनी हुई सरकार को अस्थिर करना !
2. विभिन्न देशो में सरकार के विरुद्ध कुछ विशेष राजनितिक आंदोलन को तकनीकी और वित्तीय सहायता प्रदान करना !
3. सरकार के विरुद्ध काम कर रही NGO को धन उपलब्ध कराना !
4. अमेरिकी हितो के लिए गुटबाज़ी करना !
5. CIA के इशारे पर लोकतांत्रिक सरकारों के विरुद्ध दुर्भावनापूर्ण आंदोलन खड़ा करना !
6. अमेरिका के लिए पूरे विश्व में राजनितिक स्तर पर स्लीपर सेल तैयार करना !
भारत में अन्ना हज़ारे के आंदोलन को फोर्ड फाउंडेशन का समर्थन था व अरविन्द केजरीवाल की NGO "परिवर्तन" को फोर्ड फाउंडेशन से भारी मात्रा में अनुदान प्राप्त हुए !
फोर्ड फाउंडेशन बिना किसी स्वार्थ के किसी को एक पैसा नहीं देता फिर अरविन्द केजरीवाल की NGO को अनुदान किस आधार पर दिया गया?
क्या अरविन्द केजरीवाल CIA या फोर्ड फाउंडेशन की राजनितिक कठपुतली है?
जब इसी प्रकार के कयास भारत में लगाये जाने लगे तो फोर्ड फाउंडेशन ने अरविन्द केजरीवाल की NGO को अनुदान देने का विवरण ही अपनी आधिकारिक वेबसाइट से हटा दिया !
फोर्ड फाउंडेशन द्वारा भारत में रचे गए कुछ षडयन्त्रों का विवरण ____
1. भारतीय ख़ुफ़िया एजेंसी IB (Intelligence Bureau) की रिपोर्ट के अनुसार फोर्ड फाउंडेशन भारत में सांप्रदायिक सौहार्द को बिगाड़ने के लिए निरंतर कार्यरत है !
2. IB (Intelligence Bureau) की रिपोर्ट के अनुसार फोर्ड फाउंडेशन भारत के अंदरुनी मामलो में और न्यायिक व्यवस्था में अवांछित घुसपैठ कर चुका है !
3. IB (Intelligence Bureau) की रिपोर्ट के अनुसार फोर्ड फाउंडेशन ने भारतीय सेना के विरुद्ध साज़िश रची और सेना की छवि को धूमिल करने के उद्देश्य से लगातार काम किया !
4. IB (Intelligence Bureau) की रिपोर्ट के अनुसार फोर्ड फाउंडेशन ने गुजरात की मोदी सरकार को अस्थिर करने व नरेंदर मोदी के विरुद्ध दुष्प्रचार करने व घृणास्प्रद अभियान चलाने के लिए तीस्ता सीतलवाड की NGO को लगभग 10 लाख अमेरिकी डॉलर का भारी भरकम अनुदान दिया !
5. गुजरात सरकार की विवेचना के अनुसार फोर्ड फाउंडेशन ने तीस्ता सीतलवाड को केवल मुस्लिम हितो की पैरवाई के लिए यह कहकर उकसाया की इससे सांप्रदायिक सौहार्द को बढ़ावा मिलेगा !
6. फाउंडेशन ने अपने प्रभाव का प्रयोग कर पाकिस्तानी मानवाधिकार संगठन की भारत यात्रा करवाकर अपनी सीमाओ का उल्लंघन किया।
7. IB (Intelligence Bureau) की रिपोर्ट के अनुसार फोर्ड फाउंडेशन ने भारत की लगभग सभी बड़ी और महत्त्वकांशी परियोजनाओं में बाधा डालने की पुरजोर कोशिश की इसके लिए सैकड़ो NGO का मकड़जाल बुना गया और उनको भारी अनुदान देकर कभी पर्यावरण सुरक्षा के नाम पर तो कभी अन्य काल्पनिक भय दिखाकर परियोजनाओं का विरोध करवाया गया धरने प्रदर्शन करवाये गए !
8. जिन परियोजनाओं का विरोध किया गया उनमे बिजली उत्पादन परियोजना और खनन उद्योग से जुडी परियोजनाएं शामिल थी ! इस विरोध का अंतिम और एक मात्र उद्देश्य भारत की विकास की गति में अवरोध उत्त्पन्न करना था !
यह तो केवल झांकी मात्र है !
IB की यह रिपोर्ट केवल पिछले 10 सालो में फोर्ड फाउंडेशन द्वारा किये गए कुकर्मो का लेखा जोखा है ! उस से पहले फोर्ड फाउंडेशन ने क्या क्या किया होगा उसकी जानकारी अभी सार्वजानिक नहीं की गयी है !
चीन सीमा और कश्मीर जैसे घाव देने वाले नेहरू और कांग्रेस की यह एक और ऐतिहासिक विफलता है की एक विदेशी NGO और ख़ुफ़िया एजेंसी ने देश में जमकर कोहराम मचाया इनको भनक तक नहीं लगी अथवा ये भी हो सकता है की इनको सबकुछ पता हो पर इनके विरुद्ध कार्यवाही ही न की गयी हो ! सच भी है ___ जिस पार्टी खून में ही सुभाष चन्द्र बॉस जैसे पूजनीय देशभक्तो की जासूसी करने का कीड़ा हो उनको इस बात से क्या फर्क पड़ता है कोई उनकी जासूसी कर रहा है !
आम आदमी पार्टी के जन्म के समय इसे फोर्ड फाउंडेशन की भारतीय शाखा कहा गया था और अरविन्द केजरीवाल को फोर्ड फाउंडेशन की भारतीय शाखा का प्रभारी !
अब IB की रिपोर्ट के आने पर स्पष्ट रूप से समझ आ रहा है की आम आदमी पार्टी का जन्म ही शायद लोकसभा चुनाओ में मोदी की संभावित जीत को रोकना था ! लेकिन बो कामयाब नहीं हो पाये।
आम आदमी पार्टी, अन्ना हज़ारे, अरविन्द केजरीवाल, तीस्ता सीतलवाड, मेधा पाटेकर जैसे छदम क्रांतिजनक और समाजसेवियों के अलावा भी कुकुरमुत्ते की तरह देश में फ़ैल चुकी करोडो NGO का मकड़जाल सब एक सुनियोजित षड्यंत्र का हिस्सा है जो केवल राजनितिक विरोधी ही नहीं राष्ट्र विरोधी भी है !
एक मात्र अच्छी खबर यह है की गुजरात सरकार की अनुशंसा और IB की रिपोर्ट को आधार मानकर गृह मंत्रालय ने फोर्ड फाउंडेशन के विरुद्ध जांच के आदेश दे दिए है ! गृहमंत्री राजनाथ सिंह जी को नमन ! शायद हम अपने उन भाई बहनो की कुछ सहायता कर सके जो केवल मीडिया द्वारा प्रायोजित और प्रचारित तथाकथित क्रांतिकारियों के पीछे निकल लेते है थैला लेके जिनका उद्देश्य केवल विदेशी हितो के लिए भारतीय राजनैतिक व्यवस्था में घुसपैठ करना है !
केवल जन जागरण ही क्रांति ला सकता है और षडयंत्रो को विफल कर सकता है ! More at www.shankhnad.org 

Saturday, October 31, 2015

How British Distorted Indian History Read More at www.mysteryofindia.com/2014/08/how-british-distorted-indian-history.html © Mystery of India

Appeasement of Muslims By Congress Leaders The reason why Indian history was not rewritten much after 1947, is to found in our freedom struggle. Gandhi returned to Indian in 1915 and after Lokmanya Tilak’s death became the leader of the freedom struggle. Gandhi himself had shamelessly supported the British during the British -Boer war, British-Zulu war (also known as Kaffir Wars) and the World War I. In fact, Gandhi volunteered to organize a brigade of Indians to put down the Zulu uprising. Sergeant-Major Gandhi, the deputy commander of his cops – himself carried the stretcher of the mortally wounded British commanding officer from the Zulu war battle field for miles over the sun-baked veldt. Thence he was awarded Victoria’s coveted War Medal for valor under fire. However by the time of his return to India Gandhi was so obsessed with Ahimsa (non-violence) that he condemned Rana Pratap, Shivaji and Guru Gobind Singh for their armed struggle.  Savarkar proclaimed “We Hindus on our own can win our freedom from the British“. Gandhi lacked Savarkar’s confidence and conviction. This led to his perpetual capitulation to Muslim demands and finally culminated in the horrors of partition. After the horrible Mopla riots in 1921 when over 5000 Hindus were killed by the Moplas of Malbar. But Gandhi had no hesitation calling them “My brave Mopla brothers!” In December 1926 when a fanatic Muslim Abdul Rashid killed Swami Shraddhananda who had converted thousands of Muslims to Hinduism, Gandhi immediately pleaded that Brother Abdul Rashid’s life be spared. But he refused to plead for life of Bhagat Singh and others only six months later. In 1938 Hindus launched an unarmed struggle for their legitimate rights in Hyderabad state, Gandhi did not support them and said “I do not want to embarrass the Nizam”. Congress was in power in C.P., U.P., Bihar, Orissa, Bombay and Madras from 1937 and 1939. Not once the Congress ministers stood up to unreasonable demands of the Muslims. The same lieutenants became chief ministers of various states in 1946. After independence Nehru’s secularism always meant capitulation to Muslims and anti-Hindu politics. Thus under Nehru years and early Indira Gandhi rule Gandhian appeasement hangover was still intact. It must be noted that during all the Lok Sabha elections after 1947, the Congress party todate has NOT EVEN ONCE received even 50 percent of popular vote. Thus a 10 percent vote swing can change the power equation in New Delhi. Under these conditions, Muslim vote bank had disproportionate importance. Thus in later years (particularly after emergency) capitulation to the Muslim demands and appeasement became a tool for staying in power. In the zeal for retaining the power, true history has become the first victim. 8. Effect of Appeasement of Muslims Encyclopedia of Britannica says “Hindu Architecture .. It should be noted that there exists in India a vast technical literature known as Shilpa Shastra.. dating back to Gupta period perhaps much earlier, the medieval compilations are still in use by Indian Architecture.” The first victim of appeasement is Hindu architecture which is not taught at all in the Architecture and engineering schools. What ever insignificant part is taught is taught with Greek or Roman titles under Indo-Sarcenic architecture.

Read More at www.mysteryofindia.com/2014/08/how-british-distorted-indian-history.html