Saturday, October 31, 2015

BABAR AND BABRI MASJI- TRUTH

खुद बाबर के लिखे बाबरनामा से यह
पता चलता है कि राम मंदिर तोड़कर उसके नाम पर
बनाया गया ढांचा असल में मस्जिद
ही नहीं था! ऐसा इसलिए क्योंकि बाबर
खुद मुसलमान ही नहीं था! क्योंकि-
बाबर एक समलैंगिक
(homosexual),
नशेड़ी,
शराबी, और बाल
उत्पीड़क (child
molester) था
बाबरनामा के विभिन्न पृष्ठों से लिए गए निम्नलिखित अंश पढ़िए
१. पृष्ठ १२०-१२१ पर बाबर लिखता है कि वह
अपनी पत्नी में अधिक
रूचि नहीं लेता था बल्कि वह
तो बाबरी नाम के एक लड़के
का दीवाना था. वह लिखता है कि उसने
कभी किसी को इतना प्यार
नहीं किया कि जितना दीवानापन उसे उस
लड़के के लिए था. यहाँ तक कि वह उस लड़के पर
शायरी भी करता था. उदाहरण के लिए-
“मुझ सा दर्दीला, जुनूनी और बेइज्जत
आशिक और कोई नहीं है. और मेरे आशिक
जैसा बेदर्द और तड़पाने वाला भी कोई और
नहीं है.”
२. बाबर लिखता है कि जब बाबरी उसके
‘करीब’ आता था तो बाबर इतना रोमांचित
हो जाता था कि उसके मुंह से शब्द
भी नहीं निकलते थे. इश्क के नशे
और उत्तेजना में वह बाबरी को उसके प्यार के लिए
धन्यवाद देने को भी मुंह नहीं खोल
पता था.
३. एक बार बाबर अपने दोस्तों के साथ एक गली से
गुजर रहा था तो अचानक उसका सामना बाबरी से
हो गया! बाबर इससे इतना उत्तेजित हो गया कि बोलना बंद
हो गया, यहाँ तक कि बाबरी के चेहरे पर नजर
डालना भी नामुमकिन हो गया. वह लिखता है- “मैं
अपने आशिक को देखकर शर्म से डूब जाता हूँ. मेरे
दोस्तों की नजर मुझ पर
टिकी होती है और
मेरी किसी और पर.” स्पष्ट है
की ये सब साथी मिलकर क्या गुल खिलाते
थे!
४. बाबर लिखता है कि बाबरी के जूनून और चाह में
वह बिना कुछ देखे पागलों की तरह नंगे सिर और
नागे पाँव इधर उधर घूमता रहता था.
५. वह लिखता है- “मैं उत्तेजना और रोमांच से पागल
हो जाता था. मुझे नहीं पता था कि आशिकों को यह
सब सहना होता है. ना मैं तुमसे दूर जा सकता हूँ और न
उत्तेजना की वजह से तुम्हारे पास ठहर
सकता हूँ. ओ मेरे आशिक (पुरुष)! तुमने मुझे बिलकुल पागल
बना दिया है”.
इन तथ्यों से पता चलता है कि बाबर और उसके
साथी समलैंगिक और बाल उत्पीड़क थे.
अब यदि इस्लामी शरियत की बात करें
तो समलैंगिकों के लिए मौत की सजा
ही मुक़र्रर की जाती है.
बहुत से इस्लामी देशों में यह सजा आज
भी दी जाती है. बाबर
को भी यही सजा मिलनी चाहिए
थी. दूसरी बात यह है कि उसके नाम
पर बनाए ढाँचे का नाम “बाबरी मस्जिद”
था जो कि उसके पुरुष आशिक “बाबरी” के नाम पर था!
हम पूछते हैं कि क्या अल्लाह के इबादत के लिए कोई
ऐसी जगह क़ुबूल
की जा सकती है कि जिसका नाम
ही समलैंगिकता के प्रतीक बाबर के
पुरुष आशिक “बाबरी” के नाम पर रखा गया हो?
इससे भी बढ़कर एक
आदमी द्वारा जो कि मुसलमान
ही नहीं हो, समलैंगिक और बच्चों से
कुकर्म करने वाला हो , उसके नाम पर मस्जिद
किसी भी मुसलमान को कैसे क़ुबूल
हो सकती है?
यह सिद्ध हो गया है कि बाबरी मस्जिद कोई
इबादतघर नहीं लेकिन समलैंगिकता और बाल
उत्पीडन का प्रतीक जरूर
थी. और इस तरह यह अल्लाह, मुहम्मद,
इस्लाम आदि के नाम पर कलंक थी कि जिसको खुद
मुसलमानों द्वारा ही नेस्तोनाबूत कर दिया जाना चाहिए
था. खैर वे यह नहीं कर सके पर जिसने यह
काम किया है उनको बधाई और धन्यवाद तो जरूर देना चाहिए था.
यह बहुत शर्म की बात है कि पशुतुल्य और
समलैंगिकता के महादोष से ग्रसित आदमी के बनाए
ढाँचे को, जो कि भारत की हार का प्रतीक
था, यहाँ के इतिहासकारों, मुसलमानों, और सेकुलरवादियों ने
किसी अमूल्य धरोहर की तरह
संजो कर रखना चाहा.
यह ऐसी ही बात है कि जैसे मुंबई में
छत्रपति शिवाजी टर्मिनल्स स्टेशन पर नपुंसक और
कायर आतंकवादी अजमल कसब द्वारा निर्दोष
लोगों को मौत के घाट उतारने के उपलक्ष्य में उस स्थान का नाम
“कसब भूमि” रखकर उसे भी धरोहर बना दिया जाये!
बाबर नरसंहारक, लुटेरा,
बलात्कारी,
शराबी और
नशेड़ी था
यहाँ पर इस विषय में कुछ ही प्रमाण इस दरिन्दे
की लिखी जीवनी बाबरनामा से
दिए जा रहे हैं. इसके और अधिक कारनामे जानने के लिए
पूरी पुस्तक पढ़ लें.
पृष्ठ २३२- वह लिखता है कि उसकी सेना ने
निरपराध अफगानों के सिर काट लिए जो उसके साथ
शान्ति की बात करने आ रहे थे. इन कटे हुए
सिरों से इसने मीनार बनवाई.
ऐसा ही कुछ इसने हंगू में किया जहाँ २००
अफगानियों के सिर काट कर खम्बे बनाए गए.
पृष्ठ ३७०- क्योंकि बाजौड़ में रहने वाले लोग दीन
(इस्लाम) को नहीं मानते थे इसलिए वहां ३०००
लोगों का क़त्ल कर दिया गया और उनके
बीवी बच्चों को गुलाम बना लिया गया.
पृष्ठ ३७१- गुलामों में से कुछों के सिर काटकर काबुल और बल्ख
भेजे गए ताकि फतह
की सूचना दी जा सके.
पृष्ठ ३७१- कटे हुए सिरों के खम्बे बनाए गए
ताकि जीत का जश्न मनाया जा सके.
पृष्ठ ३७१- मुहर्रम की एक रात को जश्न मनाने
के लिए शराब की एक महफ़िल जमाई
गयी जिसमें हमने पूरी रात
पी. (पूरे बाबरनामा में जगह जगह
ऐसी शराब की महफ़िलों का वर्णन है.
ध्यान रहे कि शराब इस्लाम में हराम है.)
पृष्ठ ३७३- बाबर ने एक बार ऐसा नशा किया कि नमाज पढने
भी न जा सका. आगे लिखता है
कि यदि ऐसा नशा वह आज करता तो उसे पहले से
आधा नशा भी नहीं होता.
पृष्ठ ३७४- बाबर ने अपने हरम की बहुत
सी महिलाओं से बहुत से बच्चे उत्पन्न किये.
उसकी पहली बेगम ने उससे
वादा किया कि वह उसके हर बच्चे
को अपनाएगी चाहे वे
किसी भी बेगम से हुए हों,
ऐसा इसलिए क्योंकि उसके पैदा किये कुछ बच्चे चल बसे थे. यह
तो जाहिर ही है कि इसके हरम बनाम
मुर्गीखाने में इसकी हवस मिटाने के लिए
कुछ हजार औरतें तो होंगी ही जैसे
कि इसके पोते स्वनामधन्य अकबर के हरम में पांच हजार
औरतें थीं जो इसकी ३६
(छत्तीस) पत्नियों से अलग थीं. यह
बात अलग है कि इसका हरम अधिकतर समय
सूना ही रहता होगा क्योंकि इसको स्त्रियों से अधिक
पुरुष और बच्चे पसंद थे ! और बाबरी नाम के बच्चे
में तो इसके प्राण ही बसे थे.
पृष्ठ ३८५-३८८- अपने बेटे हुमायूं के पैदा होने पर बाबर
बहुत खुश हुआ था, इतना कि इसका जश्न मनाने के लिए
अपने दोस्तों के साथ नाव में गया जहां पूरी रात इसने
शराब पी और
नशीली चीजें खाकर अलग
से नशा किया. फिर जब नशा इनके सिरों में चढ़ गया तो आपस में
लड़ाई हुई और महफ़िल बिखर गयी.
इसी तरह एक और शराब
की महफ़िल में इसने बहुत
उल्टी की और सुबह तक सब कुछ
भूल गया.
पृष्ठ ५२७- एक और महफ़िल एक मीनारों और
गुम्बद वाली इमारत में हुई
थी जो आगरा में है. (ध्यान रहे यह इमारत
ताजमहल ही है जिसे अधिकाँश सेकुलर
इतिहासकार शाहजहाँ की बनायी बताते
हैं, क्योंकि आगरा में इस प्रकार की कोई और इमारत
न पहले थी और न आज है! शाहजहाँ से चार
पीढी पहले जिस महल में उसके
दादा ने गुलछर्रे उड़ाए थे उसे वह खुद कैसे बनवा सकता है?)
बाबरनामा का लगभग हर एक पन्ना इस दरिन्दे के कातिल होने,
लुटेरा होने, और दुराचारी होने का सबूत है.
यहाँ यह याद रखना चाहिए कि जिस तरह बाबर यह सब
लिखता है, उससे यह पता चलता है कि उसे इन सब
बातों का गर्व है, इस बात का पता उन्हें चल जाएगा जो इसके
बाबरनामा को पढेंगे. आश्चर्य इस बात का है कि जिन बातों पर इसे
गर्व था यदि वे ही इतनी भयानक हैं
तो जो आदतें
इसकी कमजोरी रही होंगी,
जिन्हें इसने लिखा ही नहीं, वे
कैसी क़यामत ढहाने
वाली होंगी?
सारांश
१. यदि एक आदमी समलैंगिक होकर
भी मुसलमान हो सकता है, बच्चों के साथ दुराचार
करके भी मुसलमान हो सकता है, चार से
ज्यादा शादियाँ करके भी मुसलमान हो सकता है,
शराब पीकर नमाज न पढ़कर
भी मुसलमान हो सकता है, चरस, गांजा,
अफीम खाकर भी मुसलमान
हो सकता है, हजारों लोगों के सिर काटकर उनसे
मीनार बनाकर भी मुसलमान
हो सकता है, लूट और बलात्कार करके
भी मुसलमान हो सकता है तो फिर वह कौन है
जो मुसलमान नहीं हो सकता? क्या इस्लाम इस सब
की इजाजत देता है?
यदि नहीं तो आज तक
किसी मौलवी मुल्ला ने इस विषय पर
एक शब्द भी क्यों नहीं कहा?
२. केवल यही नहीं, जो यह सब
करके अपने या अपने पुरुष आशिक के नाम
की मस्जिद बनवा दे, ऐसी जगह
को मस्जिद कहना हराम नहीं है क्या?
क्या किसी बलात्कारी समलैंगिक
शराबी व्यभिचारी के पुरुष आशिक के नाम
की मस्जिद में
अता की गयी नमाज अल्लाह को क़ुबूल
होगी? यदि हाँ तो अल्लाह ने इन सबको हराम
क्यों बताया? यदि नहीं तो अधिकतर मुसलमान और
मौलवी इस जगह को मस्जिद कहकर दंगा फसाद
क्यों कर रहे हैं? क्या इसका टूटना इस्लाम पर लगे कलंक
को मिटाने जैसा नहीं था? क्या यह काम खुद
मुसलमानों को नहीं करना चाहिए था?
३. जब इस दरिन्दे बाबर ने खुद क़ुबूल किया है कि इसने
हजारों के सिर कटवाए और कुफ्र को मिटाया तो फिर आजकल के
जाकिर नाइक जैसे आतंकी मुल्ला यह क्यों कहते
हैं कि इस्लाम तलवार के बल पर भारत में
नहीं फैला? जब खुद अकबर
(जिसको इतिहासकारों द्वारा हिन्दुओं का रक्षक कहा गया है
और जान ए हिन्दुस्तान नाम से पुकारा गया है) जैसा नेकदिल (?)
भी हजारों हिन्दुओं के सिरों को काटकर उनके खम्बे
बनाने में प्रसिद्ध था तो फिर यह कैसे माना जाए कि इस्लाम
तलवार से नहीं फैला? क्या ये लक्षण शान्ति से
धर्म फैलाने के हैं? फिर इस्लाम का मतलब ‘शान्ति’ कैसे
हुआ?
४. भारत, पाकिस्तान, अफगानिस्तान, बंगलादेश में रहने वाले सब
मुसलमानों के पूर्वज हिन्दू ही थे
जो हजारों सालों से यहाँ रहते आ रहे थे. जब बाबर जैसे और
इससे भी अधिक दरिंदों ने आकर यहाँ मारकाट
बलात्कार और तबाही मचाई, सिरों को काटकर
मीनारें लहरायीं तो दहशत के इस
वातावरण में बहुत से हिन्दुओं ने अपना धर्म बदल लिया और
उन्हीं लाचार पूर्वजों की संतानें आज
मुसलमान होकर अपने असली धर्म के खिलाफ
आग उगल रही हैं. जिन मुसलमानों के
बाबरी मस्जिद (?) विध्ध्वंस पर आंसू
नहीं थम रहे, जो बार बार यही कसम
खा रहे हैं कि बाबरी मस्जिद
ही बनेगी, जो बाबर को अपना पूर्वज
मान बैठे हैं, ज़रा एक बार खुद से सवाल तो करें- क्या मेरे
पूर्वज अरब, तुर्क या मंगोल से आये थे? क्या मेरे पूर्वज इस
भारत भूमि की पैदावार नहीं थे? कटे
हुए सिरों की मीनारें देखकर भय से
धर्म परिवर्तन करने वाले पूर्वजों के वंशज आज कौन हैं,
कहाँ हैं, क्या कभी सोचा है? क्या यह विचार
कभी मन में नहीं आता कि इतने कत्ले
आम और बलात्कार होने पर विवश माता पिताओं के वे लाल आज
कहाँ हैं कि जिन्हें अपना धर्म, माता, पिता सब खोने पड़े?
क्या भारत, पाकिस्तान, अफगानिस्तान, बंगलादेश में रहने वाले
७०-८० करोड़ मुसलमान सीधे अरबों, तुर्कों के वंशज
हैं? कभी यह नहीं सोचा कि इतने
मुसलमान तो अरब, तुर्क, ईरान, ईराक में मिला कर
भी नहीं हैं जो इस्लाम के फैलाने में
कारण बने? क्या तुम्हारे पूर्वज राम को नहीं मानते
थे? क्या बलपूर्वक अत्याचार के कारण तुम्हारे पूर्वजों का धर्म
बदलने से तुम्हारा पूर्वज राम की बजाय बाबर
हो जाएगा? अगर नहीं तो आज अपने
असली पूर्वज राम को गाली और अपने
पूर्वजों के कातिल और बलात्कारी बाबर का गुणगान
क्यों?
५. अयोध्या की तरह काशी, मथुरा और
हजारों ऐसी ही जगहें जिन्हें
मस्जिद कह कर इस्लाम का मजाक उड़ाया जाता है, जो बाबर
की तरह ही इसके पूर्वजों और
वंशजों की हवस की निशानियाँ हैं,
इनको मुसलमान खुद क्यों मस्जिद मानने से इनकार
नहीं करते?
६. यदि बाबरी ढांचा टूटना गलत था तो राम मंदिर
टूटना गलत क्यों नहीं था? यदि राम मंदिर
की बात पुरानी हो गयी है
तो ढांचा टूटने की बात भी तो कोई
नयी नहीं! तो फिर उस पर
हायतौबा क्यों?
अंत में हम कहेंगे कि जिस तरह भारत में रहने वाले हिन्दू
मुसलमानों के पूर्वजों पर अत्याचार और बलात्कार करने वाले
वहशी दरिन्दे बाबर के नाम का ढांचा आज
नहीं है उसी तरह बाकी
सब ढांचे जो तथाकथित इस्लामी राज्य के दौरान
मंदिरों को तोड़कर बनवाये गए थे, जो सब हिन्दू मुसलमानों के
पूर्वजों के अपमान के प्रतीक हैं, उनको अविलम्ब
मिट्टी में मिला दिया जाए और
इसकी पहल हमारे खून के भाई मुसलमान
ही करें जिनके साथ
हमारा हजारों लाखों सालों का रक्त सम्बन्ध है. इस देश में
रहने वाले
किसी आदमी की, चाहे
वह हिन्दू हो या मुसलमान, धमनियों में दरिन्दे जानवर बाबर
या अकबर का खून नहीं किन्तु राम, कृष्ण,
महाराणा प्रताप और शिवाजी का खून है. और इस
एक खून की शपथ लेकर सबको यह प्रण
करना है कि अब हमारे पूर्वजों पर लगा कोई कलंक
भी देश में नहीं रह पायेगा.
क्या दृश्य होगा कि हिन्दू और मुसलमान एक साथ अपने एक
पूर्वजों पर लगे कलंकों को गिराएंगे और उस जगह अपने
पूर्वजों की यादगार के साथ साथ उनके
असली धर्म वेद की पाठशाला बनायेंगे
जहां राम और कृष्ण जैसे धर्मयोद्धा तैयार होंगे कि फिर कोई
बाबर आकर इस भूमि के पुत्रों को उनके माता पिता, दोस्तों और
धर्म से अलग न कर सके!
और तब तक के लिए, आओ हम सब हिन्दू और मुस्लिम भाई
मिलकर हर साल पूरे उत्साह के साथ ६ दिसंबर के पावन पर्व
को ‘शौर्य दिवस’ और ‘गौरव दिवस’ के रूप में मनाएं. हाँ,
मथुरा और वाराणसी में ऐसे
ही वहशी दरिन्दे ‘औरंगजेब’ के
बनाये ढांचें – जो इस्लाम के पावन नाम पर बदतर कलंक है –
उनको मिटाने का सौभाग्य हमारे मुस्लिम
भाइयों को ही मिले.
६ दिसंबर १९९२ के दिन हिन्दू-मुस्लिम एकता के सबसे बड़े
प्रतीक की स्थापना करने वाले
सभी भाई-बहनों को हम सब हिन्दू और
मुसलमानों का कोटि-कोटि नमन.

इतिहास की अनकही कहानिया(The untold story of history)-HOW AKBAR DIED

इतिहास की अनकही कहानिया(The untold story of history)

मित्रो इतिहास मे कई वीरो की गाथाए है जो खो गई है ओर कई वीरो की वीरता के कार्यो का श्रेय किसी दूसरे को दिया गया लेकिन यहा यह लेख कोई वीर या वीरता की गाथा को नही है बल्कि एक महान प्रेम कहानी को सम्प्रित है|
भारत देश मे हीर रांझा,सलीम अनारकली,शाहजहा मुमताज कई प्रेमियो की कहानिया प्रसिध्द है तो कई इतिहास मे दबी पडी है|
इनमे से एक महान प्रेम कहानी है शहजादा सलीम(जहागीर) ओर मेहरू की
मेहरू का पूरा नाम मेहरून्निया था ओर वो एक विवाहित महिला थी जिसकी एक कन्या भी थी लेकिन शहजादा सलीम इस शादी शुदा औरत से दिलो जान से मुहब्बत करता था| इतना प्रेम करता था कि उसके अपने पिता अकबर से भी मतभेद हो गया था क्युकि अकबर ने सलीम से मेहरू का निकाह नही किया था बल्कि उसका निकाह शेर अफगान से कर दिया था इसलिए सलीम चाहता था कि किसी तरह अकबर को गद्दी से उतार कर खुद बादशाह बन मेहरू से निकाह कर लू|
लेकिन अकबर प्यार मे विश्वास नही करता था उसका मानना था कि सुन्दर स्त्रिया भोगने के लिए होती है गले बाधने के लिए नही|
सन १६०४ ईस्वी मे अकबर आगरा मे इतना बीमार पड गया था कि उसे दस्त ओर पेट मे ऐंठन होने लगी थी उसका समय निकट आ गया था| उसे किसी को अपनी गद्दी ओर राजपाठ का उत्तराधिकारी घोषित करना था,अकबर के सलीम से मतभेद तो थे लेकिन फिर भी उसकी इच्छा थी कि सलीम ही मुगल सल्तन्त का बादशाह बने|लेकिन मानसिह का सलीम से इतना मतभेद हो गया था कि मानसिह सलीम को जान से मार देता लेकिन उसकी बहन को उसने सलीम के प्राणदान का वचन दिया था ,मानसिंह चाहता था कि सलीम का भाई खुसरो बादशाह बने इस तरह सलीम के बादशाह बनने मे सबसे बडा काटा मानसिह ही था | अकबर की चाह थी कि सलीम ही बादशाह बने लेकिन मानसिह रूकावट है इसलिए अकबर ने मानसिह को जान से मारने की योजना सोचने लगा| उसने उस वेद्य को बुलाया जो उसका उपचार कर रहा था उसने हकीम से कहा कि ऐसी जहर की गोली बनायी जाए जो धीरे धीरे असर करे ओर उसकी कोई काट न हो ओर आदमी धीरे धीरे मर जाए | हकीम ने ऐसा ही एक गोली बनाई फिर अकबर ने दो 
रसगुल्ले बनवाए ओर उनमे एक रसगुल्ले मे वो जहर की गोली रखवा दी ओर दोनो रसगुल्लो पर अलग अलग वक्र चढा दिए ताकि पहचान हो कौनसे मे जहर की गोली है | फिर अकबर ने मानसिह को बुलाया ओर उससे रसगुल्ला खाने को कहा लेकिन पता नही कैसे अकबर ने गलती से जहर वाला रसगुल्ला खुद खा लिया| धीरे धीरे अकबर की तबीयत बिगडने लगी ओर रात्रि मे उसे अपना दम घुटती महसूस होने लगा हकीम ने उसे कई दवाईया दी लेकिन किसी का कोई असर नही हुआ अकबर का समय निकट था|
अकबर ने किसी तरह सलीम को अपने पास बुलाया ओर उसे बादशाह घोषित किया ओर अपनी कटार सलीम के पीठ पर बंधवा दी|
लेकिन सलीम को अपने बादशाह बनने से खुशी नही थी क्युकि उसकी मूल इच्छा तो ईरानी विवाहित औरत एक कन्या की मा मेहरू मे अटकी थी|
बादशाह बनने के बाद सलीम ने शेर अफगान को दूर किसी मिशन पर भेज दिया ओर सलीम गुप्त रूप से मेहरू से भेट करने गया ओर मेहरू को निकाह का प्रस्ताव भी दिया यहा तक की उसे शहजादी बनने का लालच भी दिया लेकिन मेहरू ने इंकार कर दिया उस दिन जहागीर बहुत क्रोधित हुआ ओर उसने इतनी मदिरा पी ओर नशे मे बडबडाने लगा | इस तरह सलीम ने कई बार मेहरू को मनाने की कोशिश की लेकिन हर बार वो असफल रहा लेकिन वो मेहरू से इतना प्रेम करता था कि उसने कभी जबरदस्ती नही कि नही तो मुगल खानदान मे तो जो सुन्दर युवती दिखती उसे लौंडी भी बना लिया जाता था लेकिन सलीम ने मेहरू को लौंडी नही बनाया|
लेकिन सलीम था तो पागल आशिक उसने शेर अफगान का धोखे से आगरा मे कत्ल कर दिया ओर मेहरू को निकाह का सन्देश भेजा लेकिन फिर मेहरू ने अस्वीकार कर दिया| इसी तरह बार बार असफल होने के बाद अन्त मे सन१६११ मे मेहरु ने उसे निकाह करने की स्वीकृति दी ओर इस प्रकार ४२ वर्ष की आयु मे जब जहागीर खुद दादा बन चुका था तब उसने अपनी प्रेमिका मेहरू से निकाह किया|
इस प्रकार उस प्रेम कहानी का अन्त हुआ| जिसमे पुत्र को पिता के प्रति विद्रोह करना पडा,किसी सुहागीन को विधवा बनना पडा,ओर एक प्रेमी को अपनी प्रेमिका के लिए वर्षो प्रतिज्ञा करनी पडी|
यही मेहरू आगे चल कर इतिहास मे नूरजहा ,नूरमहल के नाम से प्रसिध्द हुई|
ऐसे महान आशिक को हमारा सलाम है|
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अकबर की असलियत के कुछ नमूने, Truth about Akbar

अकबर की असलियत के कुछ नमूने
1.रुकैय्या बेगम ,जो अकबर के फूफा बैरम खान की विधवा थी 2.सलीमाँ बेगम जो अकबर की चचेरी बहिन थी .
2-अकबर की पत्नियां और रखेल ====हकीकत यह है कि अकबर के सभी पूर्वज बाबर, हुमायूं, से लेकर तैमूर तक सब भारत में लूट, बलात्कार, धर्म परिवर्तन, मंदिर विध्वंस, आदि कामों में लगे रहे. वे कभी एक भारतीय नहीं थे और इसी तरह अकबर भी नहीं था. और इस पर भी हमारी हिंदू जाति अकबर को हिन्दुस्तान की शान समझती रही! अकबर एक कट्टर सुन्नी मुसलमान था ,इसने अपने नाम में मुहम्मद शब्द जोड़ लिया था. जिस से इसका पूरा नाम “जलालुद्दीन मुहम्मद अकबर ” हो गया .और जैसे मुहम्मद साहब ने कई पत्नियाँ और रखैलें रखी थीं.लेकिन अकबर ने मुहम्मद साहब से कई गुना अधिक औरतें और रखेलें रख ली थीं ,जिन्हें लौंडियाँ कहा जाता है .मुसलमानअकबर की सिर्फ तीन औरतें बताते हैं,
3. लोग जोधा बाई को अकबर की तीसरी पत्नी बताते हैं .इसका असली नाम हीरा कुंवरी या रुक्मावती था,यह आम्बेर के राज भारमल की बड़ी बेटी थी.लोग इसी को जोधा कहते हैं .जोधा अकबर से आयु में बड़ी थी .और राजा मानसिंह की बहिन लगती थी ,जिसे अकबर ने अपने नवरत्नों में शामिल कर लिया था जोधा और अकबर की शादी जयपुर के पास साम्भर नाम की जगह 20 जनवरी सन 1562 को हुई थी .वास्तव में राजा भारमल ने जोधा की डोली भेजी थी . जिसके बदले अकबर ने उसे मनसबदरी दी थी .लेकिन वास्तविकता कुछ और है ,अबुल फज़ल ने अकबर के हरम को इस तरह वर्णित किया है- “अकबर के हरम में पांच हजार औरतें थीं और हर एक का अपना अलग घर था.” ये पांच हजार औरतें उसकी 36 पत्नियों से अलग थीं.आइन ए अकबरी में अबुल फजल ने लिखा है- “शहंशाह के महल के पास ही एक शराबखाना बनाया गया था. वहाँ इतनी वेश्याएं इकट्ठी हो गयीं कि उनकी गिनती करनी भी मुश्किल हो गयी. दरबारी नर्तकियों को अपने घर ले जाते थे. अगर कोई दरबारी किसी नयी लड़की को घर ले जाना चाहे तो उसको अकबर से आज्ञा लेनी पड़ती थी. कई बार जवान लोगों में लड़ाई झगडा भी हो जाता था. एक बार अकबर ने खुद कुछ वेश्याओं को बुलाया और उनसे पूछा कि उनसे सबसे पहले भोग किसने किया”.आइन ए अकबरी में अबुल फजल ने लिखा है- “शहंशाह के महल के पास ही एक शराबखाना बनाया गया था. वहाँ इतनी वेश्याएं इकट्ठी हो गयीं कि उनकी गिनती करनी भी मुश्किल हो गयी. दरबारी नर्तकियों को अपने घर ले जाते थे.
अगर कोई दरबारी किसी नयी लड़की को घर ले जाना चाहे तो उसको अकबर से आज्ञा लेनी पड़ती थी. कई बार जवान लोगों में लड़ाई झगडा भी हो जाता था. एक बार अकबर ने खुद कुछ वेश्याओं को बुलाया और उनसे पूछा कि उनसे सबसे पहले भोग किसने किया”.
रणथंभोर की संधि में अकबर महान की पहली शर्त यह थी कि राजपूत अपनी स्त्रियों की डोलियों को अकबर के शाही हरम के लिए रवाना कर दें यदि वे अपने सिपाही वापस चाहते हैं.ग्रीमन के अनुसार अकबर अपनी रखैलों को अपने दरबारियों में बाँट देता था. औरतों को एक वस्तु की तरह बांटना और खरीदना अकबर की की नीति थी .विन्सेंट स्मिथ जैसे अकबर प्रेमी को भी यह बात माननी पड़ी कि चित्तौड़ पर हमले के पीछे केवल उसकी सब कुछ जीतने की हवस ही काम कर रही थी. वहीँ दूसरी तरफ महाराणा प्रताप अपने देश के लिए लड़ रहे थे और कोशिश की कि राजपूतों की इज्जत उनकी स्त्रियां मुगलों के हरम में न जा सकें~~~~~~~~~~~~~~~~~
3-अकबर की कुरूपता ==========इतिहास की किताबों और मुग़ल काल की पेंटिंग में अकबर को एक स्वस्थ और रौबदार चहरे वाला सुन्दर व्यक्ति चित्रित किया जाता ,लेकिन,“अकबर एक औसत दर्जे की लम्बाई का था. उसके बाएं पैर में लंगड़ापन था. उसका सिर अपने दायें कंधे की तरफ झुका रहता था. उसकी नाक छोटी थी जिसकी हड्डी बाहर को निकली हुई थी. उसके नाक के नथुने ऐसे दीखते थे जैसे वो गुस्से में हो. आधे मटर के दाने के बराबर एक मस्सा उसके होंठ और नथुनों को मिलाता था. वह गहरे रंग का था”~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
4-अकबर की धर्म निरपेक्षता=======आजकल बच्चों को इतिहास की किताबों में पढाया जाता है ,कि अकबर सभी धर्मों का आदर करता था . और यहाँ तक कि उसने जोधा बाई को भी एक मंदिर भी बनवा दिया था ,जिसने वह हिन्दू रीती के अनुसार पूजा ,आरती और कृष्ण की भक्ति किया करती थी ,यही” मुगले आजम ” पिक्चर में भी दिखाया था .जो के.आसिफ ने बनायीं थी . लेकिन वास्तविकता यह है कि जोधा से शादी के कुछ समय बाद अकबर ने जोधा को मुसलमान बना दिया था . और उसका इस्लामी नाम “,मरियम उज्जमानी ( ﻣﺮﻳﻢ ﺍﺯﻣﺎﻧﻲ) रख दिया था .और 6 फरवरी सन 1562को इसलामी तरीके से निकाह पढ़ लिया था .और इसीलिए जब जोधा मर गयी तो उसका हिन्दू रीती से दाह संस्कार नहीं किया गया,बल्कि एक मुस्लिम की तरह दफना दिया गया.आज भी जोधा की कबर अकबर की कबर जो सिकन्दरा में है उस से से कुछ किलोमीटर बनी है ,देखी जा सकती है .यही नहीं अकबर ने अपनी अय्याशी के लिए इस्लाम का भी दुरुपयोग किया था ,चूँकि सुन्नी फिरके के अनुसार एक मुस्लिम एक साथ चार से अधिक औरतें नहीं रखता . और जब अकबर उस से अधिक औरतें रखने लगा तो ,काजी ने उसे टोक दिया .इस से नाराज होकर अकबर ने उस सुन्नी काजी को हटा कर शिया काजी को रख लिया , क्योंकि शिया फिरके में असीमित अस्थायी शादियों की इजाजत है , ऐसी शदियों को ” मुतअ ” कहा जाता है .आज भीमुसलमान अपने फायदे के लिए कुरान की व्याख्या किया करते हैं~~~~~~~~~~~~~~~~~
4-बादशाह की रहमदिलीमुसलमान अकबर को न्यायी दयालु नरमदिल बताते हैं ,लेकिन यह भी झूठ है ,क्योंकि,जब 6 नवम्बर 1556को 14साल की आयु में अकबर महान पानीपत की लड़ाई में भाग ले रहा था. हिंदू राजा हेमू की सेना मुग़ल सेना को खदेड़ रही थी कि अचानक हेमू को आँख में तीर लगा और वह बेहोश हो गया. उसे मरा सोचकर उसकी सेना में भगदड़ मच गयी. तब हेमू को बेहोशी की हालत में अकबर महानके सामने लाया गया और इसने बहादुरी से हेमू का सिर काट लिया और तब इसे गाजी के खिताब से नवाजा गया. इसके तुरंत बाद जब अकबर महान की सेना दिल्ली आई तो कटे हुए काफिरों के सिरों से मीनार बनायी गयी जो जीत के जश्न का प्रतीक है और यह तरीका अकबर महान के पूर्वजों से ही चला आ रहा है.हेमू के बूढ़े पिता को भी अकबर महान ने कटवा डाला. और औरतों को उनकी सही जगह अर्थात शाही हरम में भिजवा दिया गयाचित्तौड़ पर कब्ज़ा करने के बाद अकबर महान ने तीस हजार नागरिकों का क़त्ल करवाया.2सितम्बर 1573के दिन अहमदाबाद में उसने2000दुश्मनों के सिर काटकर अब तक की सबसे ऊंची सिरों की मीनार बनायी. वैसे इसके पहले सबसे ऊंची मीनार बनाने का सौभाग्य भी अकबर महान के दादा बाबर का हीथा. अर्थात कीर्तिमान घर के घर में ही रहा!अकबरनामा के अनुसार जब बंगाल का दाउद खान हारा, तो कटे सिरों के आठ मीनार बनाए गए थे. यह फिर से एक नया कीर्तिमान था. जब दाउद खान ने मरते समय पानी माँगा तो उसे जूतों में पानी पीने को दिया गया.अकबर ने मुजफ्फर शाह को हाथी से कुचलवाया. हमजबान की जबान ही कटवा डाली. मसूद हुसैन मिर्ज़ा की आँखें सीकर बंद कर दी गयीं. उसके 300साथी उसके सामने लाये गए और उनके चेहरे पर गधों, भेड़ों औरकुत्तों की खालें डाल कर काट डाला गया. विन्सेंट स्मिथ ने यह लिखा है कि अकबर महान फांसी देना, सिर कटवाना, शरीर के अंगकटवाना, आदि सजाएं भी देते थे.
अकबर महान और उसके नवरत्न
४६. अकबर के चाटुकारों ने राजा विक्रमादित्य के दरबार की कहानियों के आधार पर उसके दरबार और नौ रत्नों की कहानी घड़ी है. असलियत यह है कि अकबर अपने सब दरबारियों को मूर्ख समझता था. उसने कहा था कि वह अल्लाह का शुक्रगुजार है कि इसको योग्य दरबारी नहीं मिले वरना लोग सोचते कि अकबर का राज उसके दरबारी चलाते हैं वह खुद नहीं.
४७. प्रसिद्ध नवरत्न टोडरमल अकबर की लूट का हिसाब करता था. इसका काम था जजिया न देने वालों की औरतों को हरम का रास्ता दिखाना.
४८. एक और नवरत्न अबुल फजल अकबर का अव्वल दर्जे का चाटुकार था. बाद में जहाँगीर ने इसे मार डाला.
४९. फैजी नामक रत्न असल में एक साधारण सा कवि था जिसकी कलम अपने शहंशाह को प्रसन्न करने के लिए ही चलती थी. कुछ इतिहासकार कहते हैं कि वह अपने समय का भारत का सबसे बड़ा कवि था. आश्चर्य इस बात का है कि यह सर्वश्रेष्ठ कवि एक अनपढ़ और जाहिल शहंशाह की प्रशंसा का पात्र था! यह ऐसी ही बात है जैसे कोई अरब का मनुष्य किसी संस्कृत के कवि के भाषा सौंदर्य का गुणगान करता हो!
५०. बुद्धिमान बीरबल शर्मनाक तरीके से एक लड़ाई में मारा गया. बीरबल अकबर के किस्से असल में मन बहलाव की बातें हैं जिनका वास्तविकता से कोई सम्बन्ध नहीं. ध्यान रहे कि ऐसी कहानियाँ दक्षिण भारत में तेनालीराम के नाम से भी प्रचलित हैं.
५१. अगले रत्न शाह मंसूर दूसरे रत्न अबुल फजल के हाथों सबसे बड़े रत्न अकबर के आदेश पर मार डाले गए!
५२. मान सिंह जो देश में पैदा हुआ सबसे नीच गद्दार था, ने अपनी बहन जहांगीर को दी. और बाद में इसी जहांगीर ने मान सिंह की पोती को भी अपने हरम में खींच लिया. यही मानसिंह अकबर के आदेश पर जहर देकर मार डाला गया और इसके पिता भगवान दास ने आत्महत्या कर ली.
५३. इन नवरत्नों को अपनी बीवियां, लडकियां, बहनें तो अकबर की खिदमत में भेजनी पड़ती ही थीं ताकि बादशाह सलामत उनको भी सलामत रखें. और साथ ही अकबर महान के पैरों पर डाला गया पानी भी इनको पीना पड़ता था जैसा कि ऊपर बताया गया है.
५४. रत्न टोडरमल अकबर का वफादार था तो भी उसकी पूजा की मूर्तियां अकबर ने तुडवा दीं. इससे टोडरमल को दुःख हुआ और इसने इस्तीफ़ा दे दिया और वाराणसी चला गया.
अकबर और उसके गुलाम
५५. अकबर ने एक ईसाई पुजारी को एक रूसी गुलाम का पूरा परिवार भेंट में दिया. इससे पता चलता है किअकबर गुलाम रखता था और उन्हें वस्तु की तरह भेंट में दिया और लिया करता था.
५६. कंधार में एक बार अकबर ने बहुत से लोगों को गुलाम बनाया क्योंकि उन्होंने १५८१-८२ में इसकी किसी नीति का विरोध किया था. बाद में इन गुलामों को मंडी में बेच कर घोड़े खरीदे गए.
५७. जब शाही दस्ते शहर से बाहर जाते थे तो अकबर के हरम की औरतें जानवरों की तरह सोने के पिंजरों में बंद कर दी जाती थीं.
५८. वैसे भी इस्लाम के नियमों के अनुसार युद्ध में पकडे गए लोग और उनके बीवी बच्चे गुलाम समझे जाते हैं जिनको अपनी हवस मिटाने के लिए भी प्रयोग किया जा सकता है. अल्लाह ने कुरान में यह व्यवस्था दे रखी है.
५९. अकबर बहुत नए तरीकों से गुलाम बनाता था. उसके आदमी किसी भी घोड़े के सिर पर एक फूल रख देते थे. फिर बादशाह की आज्ञा से उस घोड़े के मालिक के सामने दो विकल्प रखे जाते थे, या तो वह अपने घोड़े को भूल जाये, या अकबर की वित्तीय गुलामी क़ुबूल करे.
कुछ और तथ्य
६०. जब अकबर मरा था तो उसके पास दो करोड़ से ज्यादा अशर्फियाँ केवल आगरे के किले में थीं. इसी तरह के और खजाने छह और जगह पर भी थे. इसके बावजूद भी उसने १५९५-१५९९ की भयानक भुखमरी के समय एक सिक्का भी देश की सहायता में खर्च नहीं किया.
६१. अकबर ने प्रयागराज (जिसे बाद में इसी धर्म निरपेक्ष महात्मा ने इलाहबाद नाम दिया था) में गंगा के तटों पर रहने वाली सारी आबादी का क़त्ल करवा दिया और सब इमारतें गिरा दीं क्योंकि जब उसने इस शहर को जीता तो लोग उसके इस्तकबाल करने की जगह घरों में छिप गए. यही कारण है कि प्रयागराज के तटों पर कोई पुरानी इमारत नहीं है.
६२. एक बहुत बड़ा झूठ यह है कि फतेहपुर सीकरी अकबर ने बनवाया था. इसका कोई विश्वसनीय प्रमाण नहीं है. बाकी दरिंदे लुटेरों की तरह इसने भी पहले सीकरी पर आक्रमण किया और फिर प्रचारित कर दिया कि यह मेरा है. इसी तरह इसके पोते और इसी की तरह दरिंदे शाहजहाँ ने यह ढोल पिटवाया था कि ताज महल इसने बनवाया है वह भी अपनी चौथी पत्नी की याद में जो इसके और अपने सत्रहवें बच्चे को पैदा करने के समय चल बसी थी!
तो ये कुछ उदाहरण थे अकबर “महान” के जीवन से ताकि आपको पता चले कि हमारे नपुंसक इतिहासकारों की नजरों में महान बनना क्यों हर किसी के बस की बात नहीं. क्या इतिहासकार और क्या फिल्मकार और क्या कलाकार, सब एक से एक मक्कार, देशद्रोही, कुल कलंक, नपुंसक हैं जिन्हें फिल्म बनाते हुए अकबर तो दीखता है पर महाराणा प्रताप कहीं नहीं दीखता. अब देखिये कि अकबर पर बनी फिल्मों में इस शराबी, नशाखोर, बलात्कारी, और लाखों हिंदुओं के हत्यारे अकबर के बारे में क्या दिखाया गया है और क्या छुपाया. बैरम खान की पत्नी, जो इसकी माता के सामान थी, से इसकी शादी का जिक्र किसी ने नहीं किया. इस जानवर को इस तरह पेश किया गया है कि जैसे फरिश्ता! जोधाबाई से इसकी शादी की कहानी दिखा दी पर यह नहीं बताया कि जोधा असल में जहांगीर की पत्नी थी और शायद दोनों उसका उपभोग कर रहे थे. दिखाया यह गया कि इसने हिंदू लड़की से शादी करके उसका धर्म नहीं बदला, यहाँ तक कि उसके लिए उसके महल में मंदिर बनवाया! असलियत यह है कि बरसों पुराने वफादार टोडरमल की पूजा की मूर्ति भी जिस अकबर से सहन न हो सकी और उसे झट तोड़ दिया, ऐसे अकबर ने लाचार लड़की के लिए मंदिर बनवाया, यह दिखाना धूर्तता की पराकाष्ठा है. पूरी की पूरी कहानियाँ जैसे मुगलों ने हिन्दुस्तान को अपना घर समझा और इसे प्यार दिया, हेमू का सिर काटने से अकबर का इनकार, देश की शान्ति और सलामती के लिए जोधा से शादी, उसका धर्म परिवर्तन न करना, हिंदू रीति से शादी में आग के चारों तरफ फेरे लेना, राज महल में जोधा का कृष्ण मंदिर और अकबर का उसके साथ पूजा में खड़े होकर तिलक लगवाना, अकबर को हिंदुओं को जबरन इस्लाम क़ुबूल करवाने का विरोधी बताना, हिंदुओं पर से कर हटाना, उसके राज्य में हिंदुओं को भी उसका प्रशंसक बताना, आदि ऐसी हैं जो असलियत से कोसों दूर हैं जैसा कि अब आपको पता चल गयी होंगी. “हिन्दुस्तान मेरी जान तू जान ए हिन्दोस्तां” जैसे गाने अकबर जैसे बलात्कारी, और हत्यारे के लिए लिखने वालों और उन्हें दिखाने वालों को उसी के सामान झूठा और दरिंदा समझा जाना चाहिए.
चित्तौड़ में तीस हजार लोगों का कत्लेआम करने वाला, हिंदू स्त्रियों को एक के बाद एक अपनी पत्नी या रखैल बनने पर विवश करने वाला, नगरों और गाँवों में जाकर नरसंहार कराकर लोगों के कटे सिरों से मीनार बनाने वाला, जिस देश के इतिहास में महान, सम्राट, “शान ए हिन्दोस्तां” लिखा जाए और उसे देश का निर्माता कहा जाए कि भारत को एक छत्र के नीचे उसने खड़ा कर दिया, उस देश का विनाश ही होना चाहिए. वहीं दूसरी तरफ जो ऐसे दरिंदे, नपुंसक के विरुद्ध धर्म और देश की रक्षा करता हुआ अपने से कई गुना अधिक सेनाओं से लड़ा, जंगल जंगल मारा मारा फिरता रहा, अपना राज्य छोड़ा, सब साथियों को छोड़ा, पत्तल पर घास की रोटी खाकर भी जिसने वैदिक धर्म की अग्नि को तुर्की आंधी से कभी बुझने नहीं दिया, वह महाराणा प्रताप इन इतिहासकारों और फिल्मकारों की दृष्टि में “जान ए हिन्दुस्तान” तो दूर “जान ए राजस्थान” भी नहीं था! उसे सदा अपने राज्य मेवाड़ की सत्ता के लिए लड़ने वाला एक लड़ाका ही बताया गया जिसके लिए इतिहास की किताबों में चार पंक्तियाँ ही पर्याप्त हैं. ऐसी मानसिकता और विचारधारा, जिसने हमें अपने असली गौरवशाली इतिहास को आज तक नहीं पढ़ने दिया, हमारे कातिलों और लुटेरों को महापुरुष बताया और शिवाजी और राणा प्रताप जैसे धर्म रक्षकों को लुटेरा और स्वार्थी बताया, को आज अपने पैरों तले रौंदना है. संकल्प कीजिये कि अब आपके घर में अकबर की जगह राणा प्रताप की चर्चा होगी. क्योंकि इतना सब पता होने पर यदि अब भी कोई अकबर के गीत गाना चाहता है तो उस देशद्रोही और धर्मद्रोही को कम से कम इस देश में रहने का अधिकार नहीं होना चाहिए.
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इतिहास के नाम पर झूठ क्यों, wrong history of India

इतिहास के नाम पर झूठ क्यों
क्या आप जानते हैं कि दिल्लीके लालकिले का रहस्य क्या है और इसे किसने बनवाया था ?
दिल्ली का लाल किला शाहजहाँ से भी कई शताब्दी पहले पृथवीराजचौहान द्वारा बनवाया हुआ लाल कोट
अक्सरहमें यह पढाया जाता है कि दिल्ली का लालकिला शाहजहाँ ने बनवाया था | लेकिनयह एकसफ़ेद झूठ है और दिल्ली का लालकिला शाहजहाँ के जन्म से सैकड़ों साल पहले”महाराज अनंगपाल तोमर द्वितीय” द्वारा दिल्ली को बसाने के क्रम में हीबनाया गया था|
महाराज अनंगपाल तोमर और कोई नहीं बल्कि महाभारत के अभिमन्यु के वंशज तथा महाराजपृथ्वीराज चौहान के नाना जी थे| इतिहासके अनुसार लाल किला का असली नाम “लाल कोट” है, जिसे महाराज अनंगपालद्वितीय द्वारा सन 1060 ईस्वी में दिल्ली शहर कोबसाने के क्रम में ही बनवाया गया था जबकि शाहजहाँ का जन्म ही उसके सैकड़ों वर्षबाद 1592 ईस्वी में हुआ है|
दरअसल शाहजहाँ नमक मुसलमान ने इसे बसाया नहीं बल्कि पूरी तरह से नष्टकरने की असफल कोशिश की थी ताकि, वो उसकेद्वारा बनाया साबित हो सके लेकिन सच सामने आ ही जाता है| इसका सबसे बड़ा प्रमाण तोयही है कि तारीखे फिरोजशाही के पृष्ट संख्या 160 (ग्रन्थ ३) में लेखक लिखता हैकि सन 1296 के अंत में जब अलाउद्दीन खिलजी अपनी सेना लेकरदिल्ली आया तो वो कुश्क-ए-लाल ( लाल प्रासाद/ महल ) कि ओर बढ़ा और वहां उसने आरामकिया| सिर्फइतना ही नहीं अकबरनामा और अग्निपुराण दोनों ही जगह इस बात के वर्णन हैं कि महाराजअनंगपाल ने ही एक भव्य और आलिशान दिल्ली का निर्माण करवाया था|
जिसकोशाहजहाँ ने पूरी तरह से नष्ट करने की असफल कोशिश करी थी ताकि वो उसके द्वारा बनायासाबित हो सके..लेकिन सच सामने आ ही जाता है.
* इसके पूरे साक्ष्य प्रथवीराज रासोसे मिलते है .
* शाहजहाँ से 250 वर्ष पहले1398 मे तैमूर लंग ने पुरानीदिल्ली का उल्लेख करा है (जो की शाहजहाँ द्वारा बसाई बताई जाती है)
* सुअर (वराह) के मुह वालेचार नल अभी भीलाल किले के एक खास महल मे लगे है. क्या ये शाहजहाँ के इस्लाम का प्रतीक चिन्ह हैया हमारे हिंदुत्व के प्रमाण??
* किले के एक द्वार पर बाहर हाथी की मूर्ति अंकित हैराजपूत राजा लोग गजो( हाथियों ) के प्रति अपने प्रेम के लिए विख्यात थे ( इस्लाममूर्ति का विरोध करता है)
* दीवाने खास मे केसर कुंडनाम से कुंड बना है जिसके फर्श पर हिंदुओं मे पूज्य कमल पुष्प अंकित है, केसर कुंड हिंदू शब्दावलीहै जो की हमारे राजाओ द्वारा केसर जल से भरे स्नान कुंड के लिए प्रयुक्त होती रहीहै
* मुस्लिमों के प्रिय गुंबद या मीनार का कोई भी अस्तित्वनही है दीवानेखास और दीवाने आम मे.
* दीवानेखास के ही निकट राज की न्याय तुलाअंकित है , अपनी प्रजा मे से 99 % भाग को नीच समझने वाला मुगलकभी भी न्याय तुला की कल्पना भी नही कर सकता, ब्राह्मानोद्वारा उपदेशित राजपूत राजाओ की न्याय तुला चित्र से प्रेरणा लेकर न्याय करनाहमारे इतिहास मे प्रसीध है .
* दीवाने ख़ास और दीवाने आम की मंडप शैलीपूरी तरह से 984 के अंबर के भीतरी महल(आमेर–पुराना जयपुर) से मिलती है जो की राजपूताना शैली मे बना हुवा है .
* लाल किले से कुछ ही गज की दूरी परबने देवालय जिनमे से एक लाल जैन मंदिर और दूसरा गौरीशंकार मंदिर दोनो ही गैरमुस्लिम है जो की शाहजहाँ से कई शताब्दी पहले राजपूत राजाओं ने बनवाए हुए है.
* लाल किले का मुख्या बाजार चाँदनी चौककेवल हिंदुओं से घिरा हुआ है, समस्तपुरानी दिल्ली मे अधिकतर आबादी हिंदुओं की ही है, सनलिष्ट और घूमाओदार शैली के मकान भी हिंदू शैलीके ही है
..क्याशाजहाँ जैसा धर्मांध व्यक्ति अपने किले के आसपास अरबी, फ़ारसी, तुर्क, अफ़गानी के बजे हमहिंदुओं के लिए मकान बनवा कर हमको अपने पास बसाता ???
* एक भी इस्लामी शिलालेख मेलाल किले का वर्णन नही है
*”” गर फ़िरदौस बरुरुए ज़मीं अस्त, हमीं अस्ता, हमीं अस्ता, हमींअस्ता””–अर्थात इस धरती पे अगर कहीं स्वर्ग है तो यही है, यही है, यही है….
इसअनाम शिलालेख को कभी भी किसी भवन का निर्मांकर्ता नही लिखवा सकता ..और ना ही येकिसी के निर्मांकर्ता होने का सबूत देता है
इसकेअलावा अनेकों ऐसे प्रमाण है जोकी इसके लाल कोट होने का प्रमाण देते है, और ऐसेही हिंदू राजाओ के सारे प्रमाण नष्ट करके हिंदुओं का नाम ही इतिहास से हटा दियागया है, अगरहिंदू नाम आता है तो केवल नष्ट होने वाले शिकार के रूप मे……ताकि हम हमेशा हीअहिंसा और शांति का पाठ पढ़ कर इस झूठे इतिहास से प्रेरणा ले सके…
सही है ना ???..लेकिन कबतक अपने धर्म को ख़तम करने वालो कीपूजा करते रहोगे और खुद के सम्मान को बचाने वाले महान हिंदू शासकों के नाम भुलातेरहोगे..
ऐसे ही….??????? –
1. जो जीता वही चंद्रगुप्त ना होकर…जो जीता वही सिकन्दर “कैसे” हो गया… ???
(जबकि ये बात सभी जानते हैं कि…. सिकंदर की सेना ने चन्द्रगुप्त मौर्य के प्रभाव को देखते
हुये ही लड़ने से मना कर दिया था.. बहुत ही बुरी तरह मनोबल टूट गया था…. जिस कारण , सिकंदर ने मित्रता के तौर पर अपने सेनापति सेल्युकशकि बेटी की शादी चन्द्रगुप्त से की थी)
2. महाराणा प्रताप “”महान””” ना होकर………अकबर “””महान””” कैसे हो गया…???(जबकि, अकबर अपने हरम में हजारों लड़कियों को रखैल के तौर पर रखता था…. यहाँ तक कि उसने अपनी बेटियो और बहनोँ की शादी तक पर प्रतिबँध लगा दिया था जबकि.. महाराणा प्रताप ने अकेले दम पर उस अकबर के लाखों की सेना को घुटनों पर ला दिया था)
3. सवाई जय सिंह को “””महान वास्तुप्रिय”””राजा ना कहकर शाहजहाँ को यह उपाधि किस आधार मिली …… ???जबकि साक्ष्य बताते हैं कि जयपुर के हवा महल से लेकर तेजोमहालय {ताजमहल} तक ….महाराजा जय सिंह ने ही बनवाया था)
4. जो स्थान महान मराठा क्षत्रिय वीर शिवाजी को मिलना चाहिये वो………. क्रूर और आतंकी औरंगजेब को क्यों और कैसे मिल गया ..????
5. स्वामी विवेकानंद और आचार्य चाणक्य की जगह… ….गांधी को महात्मा बोलकर हिंदुस्तान पर क्यों थोप दिया गया…??????
6. तेजोमहालय- ताजमहल……… ..लालकोट- लाल किला……….. फतेहपुर सीकरी का देव महल- बुलन्द दरवाजा…….. एवं सुप्रसिद्ध गणितज्ञ वराह मिहिर की मिहिरावली(महरौली) स्थित वेधशाला- कुतुबमीनार….. ……… क्यों और कैसे हो गया….?????
7. यहाँ तक कि….. राष्ट्रीय गान भी…..संस्कृत के वन्दे मातरम की जगह गुलामी का प्रतीक””जन-गण-मन हो गया”” कैसे और क्यों हो गया….??????
8. और तो और…. हमारे अराध्य भगवान् राम..कृष्ण तो इतिहास से कहाँ और कब गायब हो गये……… पता ही नहीं चला……….आखिर कैसे ????
9. यहाँ तक कि…. हमारे अराध्य भगवान राम की जन्मभूमि पावन अयोध्या …. भी कब और
कैसे विवादित बना दी गयी… हमें पता तक नहीं चला….!
कहने का मतलब ये है कि….. हमारे दुश्मन सिर्फ….बाबर , गजनवी , लंगड़ा तैमूरलंग…..ही नहीं हैं…… बल्कि आज के सफेदपोश सेक्यूलर भी हमारे उतने ही बड़े दुश्मन हैं…. जिन्होंने हम हिन्दुओं के अन्दर हीन भाबना का उदय कर सेकुलरता का बीज उत्पन्न किया ।

Sardar patel and Republic of India

स्वतंत्र होने के बाद भारत 565 देशी रियासतों (प्रिंसली स्टेट्स, ब्रिटिश भारतीय साम्राज्य का हिस्सा) में बंटा हुआ था. सरदार पटेल (1875-1950) तब उपप्रधानमंत्री के साथ देश के गृहमंत्री थे। जूनागढ, हैदराबाद और जम्मू-काश्मीर को छोडक़र 562 रियासतों ने स्वेच्छा से भारतीय परिसंघ में शामिल होने की स्वीकृति दी थी।
दरअसल, माउण्टबैटन ने जो प्रस्ताव भारत की आजादी को लेकर जवाहरलाल नेहरू के सामने रखा था उसमें ये प्रावधान था कि भारत के 565 रजवाड़े भारत या पाकिस्तान में किसी एक में विलय को चुनेंगे और वे चाहें तो दोनों के साथ न जाकर अपने को स्वतंत्र भी रख सकेंगे ।
इन 565 रजवाड़ों जिनमें से अधिकांश देशी रियासत थे, में से भारत के हिस्से में आए रजवाड़ों ने एक-एक करके विलय-पत्र पर हस्ताक्षर कर दिए यूँ कह सकते हैं कि सरदार वल्लभभाई पटेल तथा वीपी मेनन (1893-1965) ने हस्ताक्षर करवा लिए।
रामपुर और पालनपुर के मुस्लिम नवाब ऐसे शासक थे जिन्होंने बिना देरी किये और बिना किसी संकोच के भारतीय संघ में मिलने की घोषणा कर दी। जबकि मंगरोल के शासक ने कुछ हिचकिचाहट के साथ अपना अस्तित्व भारतीय संघ के साथ विलीन कर दिया। टोंक रियासत के नवाब को भी जूनागढ़ के नवाब ने भड़काने का प्रयास किया। मुस्लिम लीगी नेता भी उसे पाकिस्तान के साथ विलय करने के लिए प्रोत्साहित कर रहे थे। पर उसे भी सरदार पटेल ने उधर जाने से रोक लिया।
बचे रह गए थे, हैदराबाद, जूनागढ़, जम्मू-काश्मीर और भोपाल । इनमें से भोपाल का विलय सबसे अंत में भारत में हुआ। भारत संघ में शामिल होने वाली अंतिम रियासत भोपाल इसलिए थी क्योंकि पटेल और मेनन को पता था कि भोपाल को अंतत: मिलना ही होगा। जूनागढ़ पाकिस्तान में मिलने की घोषणा कर चुका था तो जम्मू-काश्मीर स्वतंत्र बने रहने की.
आजादी के बाद पाकिस्तान सेना ने हमला कर दिया और इसके जवाब में जब भारतीय सेना ने आक्रमण किया तो पूरे कश्मीर को जीतने से पहले ही भारत सरकार ने युद्ध विराम की घोषणा कर दी। उस समय जम्मू-कश्मीर भारत का हिस्सा नहीं था. ऐसे में जम्मू-कश्मीर के पास दो विकल्प थे या तो वह भारत में शामिल हो जाए या फिर पाकिस्तान का हिस्सा बने. जम्मू-कश्मीर की जनता अधिकतर मुस्लिम थी जो पाक में शामिल होना चाहती थी लेकिन वहां के महाराजाधिराज हरि सिंह (1925-1961) का हिंदू होने के नाते भारत की ओर झुकाव था, किन्तु निर्णय लेने से हिचक रहे थे. हरि सिंह ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के तत्कालीन सरसंघचालक श्री माधवराव सदाशिवराव गोलवलकर (श्री गुरुजी) को इस विषय पर परामर्श के लिए आनन-फानन में कश्मीर बुलाया. श्री गुरुजी ने महाराजा को कश्मीर में भारत में विलय कर लेने की सलाह दी, जिसके बाद हरि सिंह ने भारत में विलय करने का ऐलान किया और २६ अक्टूबर, १९४७ को ‘इंस्ट्रमेंट ऑफ एक्सेशन’ नाम के इस ऐतिहासिक दस्तावेज पर हस्ताक्षर किए :
“Whereas the Indian Independence Act, 1947, provides that as from the fifteenth day of August, 1947, there shall be set up an independent Dominion known as INDIA, and that the Government of India Act, 1935, shall, with such omission, additions, adaptations and modifications as the Governor-General may by order specify, be applicable to the Dominion of India,
And whereas the Government of India Act, 1935, as so adapted, by the Governor General provides that an Indian State may accede to the Dominion of India by an Instrument of Accession executed by the Ruler thereof :
Now, therefore, I Shriman Inder Mahander Rajrajeshwar Maharajadhiraj Shri Hari Singhji Jammu and Kashmir Naresh Tatha Tibbet adi Deshadhipathi, Ruler of Jammu and Kashmir State, in the exercise of my Sovereignty in and over my said State do hereby execute this my Instrument of Accession; and
1. I hereby declare that I accede to the Dominion of India with the intent that the Governor-General of India, the Dominion Legislature, the Federal Court and any other Dominion authority established for the purposes of the Dominion shall, by virtue of this my Instrument of Accession but subject always to the terms thereof, and for the purposes only of the Dominion, exercise in relation to the State of Jammu and Kashmir (hereinafter refrred to as “this State”) such functions as may be vested in them by or under the Government of India Act, 1935, as in force in the Dominion of India, on the 15th Day of August 1947, (which Act as so in force is hereafter referred to as “the Act”).
2. I hereby assume the obligation of ensuring that due effect is given to provisions of the Act within this State so far as they are applicable therein by virtue of this my Instrument of Accession.
3. I accept the matters specified in the scheduled hereto as the matters with respect to which the Dominion Legislature may make laws for this State.
4. I hereby declare that I accede to the Dominion of India on the assurance that if an agreement is made between the Governor-General and the Ruler of this State whereby any functions in relation to the administration in this State of any law of the Dominion Legislature shall be exercised by the Ruler of this State, then any such agreement shall be deemed to form part of this Instrument and shall be construed and have effect accordingly.
5. The terms of this my Instrument of Accession shall not be varied by any amendment of the Act or the Indian Independence Act, 1947, unless such amendment is accepted by me by Instrument supplementary to this Instrument.
6. Nothing in this Instrument shall empower the Dominion Legislature to make any law for this State authorising the compulsory acquisition of land for any purpose, but I hereby undertake that should the Dominion for the purpose of a Dominion law which applies in this State deem it necessary to acquire any land, I will at their request acquire the land at their expense, or, if the land belongs to me transfer it to them on such terms as may be agreed or, in default of agreement, determined by an arbitrator to be appointed by the Chief justice of India.
7. Nothing in this Instrument shall be deemed to commit in any way to acceptance of any future constitution of India or to fetter my discretion to enter into arrangement with the Government of India under any such future constitution.
8. Nothing in this Instrument affects the continuance of my Sovereignty in and over this State, or, save as provided by or under this Instrument, the exercise of any powers, authority and rights now enjoyed by me as Ruler of this State or the validity of any law at present in force in this State.
9. I hereby declare that I execute this Instrument on behalf of this State and that any reference in this Instrument to me or to the Ruler of the State is to be construed as including a reference to my heirs and successors.
Given under my hand this 26th day of October, nineteen hundred and forty-seven.
Hari Singh,
Maharajadhiraj of Jammu and Kashmir State.
Acceptance of Accession by the Governor-General of India
I do hereby accept this Instrument of Accession.
Dated this twenty-seventh day of October, nineteen hundred and forty-seven.
Mountbatten of Burma,
Governor-General of India.
दिनांक २६ अक्टूबर, १९४७ को इस दस्तावेज पर हस्ताक्षर होते ही सम्पूर्ण जम्मू-कश्मीर राज्य उसी क्षण से भारत का अभिन्न अंग हो गया और अब इसपर किसी संदेह या विवाद की कोई गुंजाईश ही नहीं है कि जम्मू-कश्मीर किसका अंग है. इससे सिद्ध है कि कांग्रेस सरकार की नाकामी की वजह से जम्मू-कश्मीर पर पाकिस्तान और चीन ने जबरन अधिकार कर रखा है और भारत की स्वाभिमान की रक्षा के लिए नरेंद्र मोदी की सरकार को अब यह क्षेत्र उनसे वापस लेना चाहिए.