Thursday, September 24, 2015

कश्मीर, 370 तथा स्वर्ग कैसे बना जिहाद का नर्क।HOW KASHMIR BECAME HELL FROM HEAVEN

वर्तमान कश्मीर घाटी एक झील हुआ करती थी जिसे ऋषि कश्यप जो ऋषि मरीचि के पुत्र और भगवन ब्रह्मा के पौत्र थे ने बारामुला के पहाड़ियों का मध्य काट कर सुखाया और स्वर्ग समान स्थान ऋषियों के लिए बनाया।
ऋषिमुनि वहां तप ध्यान करते थे।
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इसी तरह हिन्दू राजा जम्बू जो घूमते घूमते तवी नदी के किनारे पहुचे 14वीं सदी में वहां एक शेर और बकरी साथ में पानी पीते देख बहुत प्रभावित हुए और जम्बू नाम से शहर बसाया जो वर्त्तमान में जम्मू है।
कश्मीर ने कई महान शासकों पराक्रमी शूरवीरों को देखा। 326bc में राजा पुरू ने कश्मीर के रकज अभिरस को सहायता से आक्रांता एलेक्सजेंडर को हैदपस के युद्ध में हराया। महाराज चन्द्रगुप्त, बिन्दुसार, अशोक के समय में ये मौर्या साम्राज्य के अधीन आया और सुसज्जित हुआ। राजा कनिष्क ने 4थी बुद्ध कॉउंसिल कश्मीर में आयोजित करायी।
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इन बातो से लगता है कश्मीर बहुत विकसित और खुशहाल था। पर ये खुशहाली इस्लामी अक्रान्ताओ के आने से ख़त्म सी होने लगी।
11वीं सदी में महमूद ग़ज़नी ने 2 बार कश्मीर पर कब्ज़ा करने की कोशिश की पर असफल रहा। पर ग़ज़नी और उसके दास मालिक अयाज़ के समलैंगिक संबंधो के किस्से कश्मीर की वादियों में मशहूर हुए।
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1339 में शाह मीर आया और इस्लाम फैलना सुरु हुआ। पर खुनी खेल 1389 में सुल्तान सिकंदर के आने से हुआ। हिन्दुओ पर कर लगाया गया। सरे आम तलवार की धार पर धर्मं परिवर्तन किया गया। मंदिरों को तोडा गया। कश्यप ऋषि के स्वर्ग समान कश्मीर नर्क सा होने लगा। भाषा संस्कृत से बदल कर पर्शियन कर दी गयी।
1540 से 1707 तक मुग़लो के अधीन रहा कश्मीर।
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पर 1819 में महाराजा रंजीत सिंह ने अपना राज स्थापित किया। और गऊ हत्या करने वाले को फांसी की सजा का प्रावधान किया। 1846 में गुलाब सिंह फिर उनके पुत्र रणवीर सिंह फिर 1925 में रणवीर सिंह के पौत्र हरी सिंह राजा बने 1947 तक। हरी सिंह के पुत्र कर्ण सिंह वर्तमान में कांग्रेस के सांसद है।
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1947 में भारत में 565 देशी रियासतें थी। अंग्रेज़ो ने भारत की आज़ादी का कानून पास किया जिसमे भारत और पाकिस्तान को डोमिनियन स्टेट का दर्जा दिया और शेष देसी रियासतों को अधिकार दिया गया या भारत में विलय हो जाओ या पाकिस्तान में या फिर खुद का देश बना लो। सरदार पटेल के प्रयासों से अधिकांश रियासतों ने भारत में विलय करने का निर्णय लिया पर हरी सिंह ने कश्मीर को एक अलग ही देश बनाना उचित समझा।
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पाकिस्तान ने इसका फ़ायदा उठाया और 22 अक्टूबर 1947 को कश्मीर पर हमला कर दिया। 24 अक्टूबर तक आधे कश्मीर पर अधिकार कर लिया। हरी सिंह ने भारत से मदद मांगी पर सरदेर पटेल ने कहा कश्मीर एक अलग देश है हम कैसे कर सकते है मदद आप भारत में विलय हो जाओ फिर करेंगे हम आपकी मदद।
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हरी सिंह तैयार हो गए पर उन्होंने कश्मीर के लिए एक विशेष राज्य की मांग रखी जिसे सरकार ने स्वीकार कर लिया। उसी का फल धारा 370। भारतीय सेना ने हरी सिंह की मदद की और पाकिस्तानी आतंकियों को मार भगाया।
370 एक विवाद:-
भारतीय संविधान कश्मीर को एक विशेष राज्य का दर्जा देता है अनुच्छेद्द् 370 द्वारा। जिसके फलस्वरूप भारत की संसद कश्मीर में सिर्फ रक्षा,संचार और विदेश सम्बंधित कानून बना सकती है शेष नहीं।
370 की कुछ विशेषता:-
1- भारत का संविधान एकल नागरिकता प्रदान करता है पर कश्मीरियों के लिए दोहरी नागरिकता।
2- कश्मीर के अलग ही झंडा और गान है। भारत के राष्ट्र झंडे और गान का वह अपमान होता है।
3- कश्मीर में भारत के झंडे और गान का अपमान अपराध नहीं है।
4- सर्वोच्च न्यायालय के आदेश कश्मीर में नहीं चलते।
5- कोई कश्मीरी महिला किसी भारतीय पुरुष से शादी करे तो उस महिला की नागरिकता समाप्त हो जाती है। पर जब कश्मीरी महिला किसी पाकिस्तानी से शादी करे तो उस पाकिस्तानी को भारत की नागरिकता मिल जाती है।
6- ना RTI ना RTE ना CAG ना कोई और भारतीय कानून वहा लागु है।
7- महिलाओं पर शरीयत कानून लागु है।
8- कोई भारतीय वहा जमीन या संपत्ति नहीं खरीद सकता।
9- कश्मीर में हिन्दू अल्पसंख्यक है वहा उसे आरक्षण नहीं।
10- भारत के अन्य राज़्यों में 5 साल में चुनाव होता हैै पर कश्मीर में 6 सालो में।
जम्मू और कश्मीर की जनसंख्या 1.25 करोड़ है। मुस्लिम 67.1% है, हिन्दू 29.07%, सिख 2.1% बाकि अन्य। कश्मीर घाटी में मुस्लिम 97% है, हिन्दू 1%। जम्मू में 66% हिन्दू और 30% मुस्लिम। लद्दाख में 47%मुस्लिम और 46% बैद्ध।
वर्तमान स्तिथि में राज्य का 60% हिस्सा भारत में है। 30% हिस्से पर पाकिस्तान और 10% हिस्से पर चीन ने अवैध कब्ज़ा कर रखा है।
हमारी ये सोच है एक राष्ट्र में 2 प्रकार के कानून, 2 प्रकार के न्याय, 2 प्रकार के झंडे नहीं हो सकते। इसलिए कश्मीर से 370 हटा कर बाकि राज्यो की तरह सामान्य राज्य बनाना चाहिए। कश्मीर में हमारे कितने सैनिको के खून बहे। जवानो के सर कटे हम कब तक चुप रह सकते है। जब हमारे परिवार के किसी का सर कटेगा तब हमें सर कटने की पीड़ा की अनुभूति होगी।
सरकार तुरंत कश्मीर में आपातकाल लगाये और 370 हटाय जानेे के लिए अवयश्यक कदम उठाये। अगर इक्षा शक्ति होती है तो राज्य सभा में बहुमत नहीं है लोक सभा में प्रयाप्त संख्या नहीं है मायने नहीं रखती। तुरंत काम होता है। भारत में कुछ देश द्रोही छुपे हुए है। आम आदमी पार्टी का एक नेता था प्रशांत भूषण जो बोलता था कश्मीर पाकिस्तान को दे दो ऐसी देश द्रोही बयान देने वालो पर देश द्रोह लगा कर फंसी पर लटका देना चाहिए। कश्मीर के लिए लड़ते हुए हमारे सैनिको ने जो जान गवाई हमें उनकी सौगंध कश्मीर हम जिहादियो आतंकियों से मुक्त करा कर रहेंगे।

Bible and Quran are same per Pope-Yes indeed

ईद उल ज़ुहा की प्रथा कैसे शुरू हुई ??? ईसाईयों के भगवान ने अब्राहम से उसके इकलौते बेटे आइज़ैक की बलि चढाने का आदेश दिया। --Bible (Genesis 22:1 -18 ),
अपने पहले बच्चे की बलि चढ़ाओ ---Bible (Exodus 13:2)
चाहें आदमी की बलि चढ़ाओ या जानवर की ,जो नहीं चढ़ाएगा वो बर्बाद हो जायेगा -- Bible (Leviticus 27;28 -29)
बलि दो, उसका खून हवन वेदी में चढ़ाओ और मांस खा जाओ। Bible (Deuteronomy 12:27)
अपनी फसल का पहला फल ,पहली शराब, और पहला बच्चा मुझे चढाने में देर न करो। -- Bible (Exodus 22:29 )
तुम विदेशी मर्द और औरत दास खरीद कर रख सकते हो , और उन्हें वसीयत में अपने बच्चो को हमेशा के लिए दे सकते हो। लेकिन इजराइल के लोगों को दस नहीं बना सकते। Bible (Leviticus 25 ;44-46)
एक आदमी अपनी बेटी को गुलाम की तरह बेच सकता है। खरीदने वाला या उसका बेटा उसके साथ यदि विवाह कर ले तो वो दासी नहीं रहेगी। अगर वो दूसरी शादी कर लेता है तो इस महिला का भोजन कम नहीं करेगा। -Bible (Exodus 21:7-11)


Aditya Agnihotri's photo. दास की कड़ी मार लगायी जा सकती है। Bible (Luke 12;47 -48)
एक बार गॉड / खुदा ने मोसेस को मदीने वालों पर आक्रमण करने का आदेश दिया क्योंकि उन्होंने इसरायली लोगों का धर्म परिवर्तन करने की कोशिश की थी। मोसेस ने मदीने के सारे लोगों को मार दिया 32000 कुआंरी लड़कियों को छोड़ कर। उन्हें अपनी दासी बना कर सेना के साथ आपस में बाँट लिया। 2% गॉड का हिस्सा पुजारी को मिला जिससे उसके हिस्से में 365 लड़कियां आयीं। Bible ( Numbers 28:47 )
तुम अपने भाई को दास बना सकते हो ,बशर्ते वो 50 साल बाद आज़ाद हो जायेगा। ---Bible (Leviticus 25:39)
खुदा / गॉड मोसेस को कहता है कि तुम पर जादू टोना असर नहीं करेगा। ---Bible (Exodus 22 :18 ,19)
दासों , तुम अपने मालिकों से इज़्ज़त और दर से ऐसे पेश आओ जैसे तुम क्राइस्ट की बंदगी कर रहे हो।Bible (Ephesians 6:5)
और वेद क्या कहते हैं शूद्रों के बारे में ----

शूद्रो ब्राह्मणतामेति ब्राह्मणश्चैति शूद्रताम्।
क्षत्रियाज्जातमेवं तु विद्या द्वैश्यात्तथैव च।---- अर्थात श्रेष्ठ -अश्रेष्ठ कर्मो के अनुसार शूद्र ब्राह्मण और ब्राह्मण शूद्र हो जाता है। जो ब्राह्मण ,क्षत्रिय वैश्य और शूद्र के गुणों वाला हो वह उसी वर्ण का हो जाता है।
कुरान और हदीस के बारे में कुछ न ही लिखूं तो उचित रहेगा, क्योंकि मेरी मित्रमंडली में इसके अच्छे अच्छे ज्ञाता बैठे है। हाँ कुरान के विषय में एक बात ज़रूर कहूँगा की इसने मनुष्य बलि का इबादत के नाम पर समर्थन कभी नहीं किया ,वो जो गले कटे जाते हैं वो तो जिहाद का हिस्सा हैं।
उपरोक्त उद्धरण बाइबिल के सबसे परिष्कृत संस्करण जो कि 1977 में प्रकाशित किया गया और, दुनिया भर के ईसाइयत को मानने वाले Protestent, Anglicans, Roman, Catholic, and Eastern Orthodox Churches को मान्य है उसमे से लिए गए हैं। हो सकता है आपके ज़ेहन में यह सवाल आये कि सबसे परिष्कृत का क्या मतलब हुआ ??? जी वर्ष 1611 तक बाइबिल का King James Version दुनिया में चलता था और वो पत्थर की लकीर होता था। 1870 में इसमें से दोष दूर करने की दृष्टि से इसका परिष्कृतकरण शुरू हुआ जिसके बाद 1881-85 में इसका ब्रिटिश संस्करण निकला गया। 1901 में इसको धो मांझ कर अमेरिकन संस्करण निकला गया। 1937, 1946, 1952 में हर बार सुधर करके नए स्टैण्डर्ड संस्करण निकले गए। 1977 में आज तक जो कुछ भी बाइबिल के नाम पर उपलब्ध हुआ उसे इसमें डाल कर दुनिया के सामने रखा गया।

ब्रह्मास्त्र और आग्नेयास्त्र

ब्रह्मास्त्र और आग्नेयास्त्र जैसे पौराणिक अस्त्र कल्पना है या हकीकत???
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इतिहास मौन है परन्तु महाभारत युद्ध में महा संहारक क्षमता वाले अस्त्र शस्त्रों और विमान रथों के साथ एक एटामिक प्रकार के युद्ध का उल्लेख भी मिलता है। महाभारत में उल्लेख है कि मय दानव के विमान रथ का परिवृत 12 क्यूबिट था और उस में चार पहिये लगे थे। देव दानवों के इस युद्ध का वर्णन स्वरूप इतना विशाल है जैसे कि हम आधुनिक अस्त्र शस्त्रों से लैस सैनाओं के मध्य परिकल्पना कर सकते हैं। इस युद्ध के वृतान्त से बहुत महत्व शाली जानकारी प्राप्त होती है। केवल संहारक शस्त्रों का ही प्रयोग नहीं अपितु इन्द्र के वज्र अपने चक्रदार रफलेक्टर के माध्यम से संहारक रूप में प्रगट होता है। उस अस्त्र को जब दाग़ा गया तो एक विशालकाय अग्नि पुंज की तरह उस ने अपने लक्ष्य को निगल लिया था। वह विनाश कितना भयावह था इसका अनुमान महाभारत के निम्न स्पष्ट वर्णन से लगाया जा सकता हैः-
“अत्यन्त शक्तिशाली विमान से एक शक्ति – युक्त अस्त्र प्रक्षेपित किया गया…धुएँ के साथ अत्यन्त चमकदार ज्वाला, जिस की चमक दस हजार सूर्यों के चमक के बराबर थी, का अत्यन्त भव्य स्तम्भ उठा…वह वज्र के समान अज्ञात अस्त्र साक्षात् मृत्यु का भीमकाय दूत था जिसने वृष्ण और अंधक के समस्त वंश को भस्म करके राख बना दिया…उनके शव इस प्रकार से जल गए थे कि पहचानने योग्य नहीं थे. उनके बाल और नाखून अलग होकर गिर गए थे…बिना किसी प्रत्यक्ष कारण के बर्तन टूट गए थे और पक्षी सफेद पड़ चुके थे…कुछ ही घण्टों में समस्त खाद्य पदार्थ संक्रमित होकर विषैले हो गए…उस अग्नि से बचने के लिए योद्धाओं ने स्वयं को अपने अस्त्र-शस्त्रों सहित जलधाराओं में डुबा लिया”
उपरोक्त वर्णन दृश्य रूप में हिरोशिमा और नागासाकी के परमाणु विस्फोट के दृश्य जैसा दृष्टिगत होता है।
एक अन्य वृतान्त में श्री कृष्ण अपने प्रतिदून्दी शल्व का आकाश में पीछा करते हैं। उसी समय आकाश में शल्व का विमान ‘शुभः’ अदृष्य हो जाता है। उस को नष्ट करने के विचार से श्री कृष्ण नें ऐक ऐसा अस्त्र छोडा जो आवाज के माध्यम से शत्रु को खोज कर उसे लक्ष्य कर सकता था। आजकल ऐसे मिस्साईल्स को हीट-सीकिंग और साऊड-सीकरस कहते हैं और आधुनिक सैनाओं द्वारा प्रयोग किये जाते हैं। प्राचीन भारत में परमाणु विस्फोट के अन्य और भी अनेक साक्ष्य मिलते हैं। राजस्थान में जोधपुर से पश्चिम दिशा में लगभग दस मील की दूरी पर तीन वर्गमील का एक ऐसा क्षेत्र है जहाँ पर रेडियोएक्टिव राख की मोटी सतह पाई जाती है, वैज्ञानिकों ने उसके पास एक प्राचीन नगर को खोद निकाला है जिसके समस्त भवन और लगभग पाँच लाख निवासी आज से लगभग 8,000 से 12,000 साल पूर्व किसी विस्फोट के कारण नष्ट हो गए थे।
ब्रह्मास्त्र दिव्यास्त्र परमपिता ब्रम्हा का सबसे मुख्य अस्त्र माना जाता है। एक बार इसके चलने पर विपक्षी प्रतिद्वन्दि के साथ साथ विश्व के बहुत बड़े भाग का विनाश हो जाता है। यदि एक ब्रह्मास्त्र भी शत्रु के खेमें पर छोड़ा जाए तो ना केवल वह उस खेमे को नष्ट करता है बल्कि उस पूरे क्षेत्र में १२ से भी अधिक वर्षों तक अकाल पड़ता है। और यदि दो ब्रह्मास्त्र आपस में टकरा दिए जाएं तब तो मानो प्रलय ही हो जाता है। इससे समस्त पृथ्वी का विनाश हो जाएगा और इस प्रकार एक अन्य भूमण्डल और समस्त जीवधारियों की रचना करनी पड़ेगी। महाभारत के युद्ध में दो ब्रह्मास्त्रों के टकराने की स्थिति तब आई जब ऋषि वेदव्यासजी के आश्रम में अश्वत्थामा और अर्जुन ने अपने-अपने ब्रह्मास्त्र चला दिए। तब वेदव्यासजी ने उस टकराव को टाला और अपने-अपने ब्रह्मास्त्रों को लौटा लेने को कहा। अर्जुन को तो ब्रह्मास्त्र लौटाना आता था, लेकिन अश्वत्थामा ये नहीं जानता था और तब उस ब्रह्मास्त्र के कारण परीक्षित, उत्तरा के गर्भ से मृतप्रायः पैदा हुआ।
रामायण और महाभारत में भी परमाणु बम का प्रमाण संभवत: दुनिया का पहला परमाणु बम छोड़ा था अश्वत्थामा ने। आधुनिक काल में जे. रॉबर्ट ओपनहाइमर ने गीता और महाभारत का गहन अध्ययन किया। उन्होंने महाभारत में बताए गए ब्रह्मास्त्र की संहारक क्षमता पर शोध किया और अपने मिशन को नाम दिया ट्रिनिटी (त्रिदेव)। रॉबर्ट के नेतृत्व में 1939 से 1945 का बीच वैज्ञानिकों
की एक टीम ने यह कार्य किया। 16 जुलाई 1945 को इसका पहला परीक्षण किया गया। शोधकार्य के बाद विदेशी वैज्ञानिक मानते हैं कि वास्तव में महाभारत में परमाणु बम का प्रयोग हुआ था। 42 वर्ष पहले पुणे के डॉक्टर व लेखक पद्माकर विष्णु वर्तक ने अपने शोधकार्य के आधार पर कहा था कि महाभारत के समय जो ब्रह्मास्त्र इस्तेमाल किया गया था वह परमाणु बम के समान ही था। डॉ. वर्तक ने 1969-70 में एक किताब लिखी‘स्वयंभू’। इसमें इसका उल्लेख मिलता है।
प्राचीन भारत में कहीं-कहीं ब्रह्मास्त्र के प्रयोग किए जाने का वर्णन मिलता है। रामायण में भी मेघनाद से युद्ध हेतु लक्ष्मण ने जब ब्रह्मास्त्र का प्रयोग करना चाहा तब श्रीराम ने उन्हें यह कहकर रोक दिया कि अभी इसका प्रयोग उचित नहीं, क्योंकि इससे पूरी लंका साफ हो जाएगी।
ब्रह्मास्त्र एक परमाणु हथियार है जिसे दैवीय हथियार कहा गया है। माना जाता है कि यह अचूक और सबसे भयंकर अस्त्र है। जो व्यक्ति इस अस्त्र को छोड़ता था वह इसे वापस लेने की क्षमता भी रखता था लेकिन अश्वत्थामा को वापस लेने का तरीका नहीं याद था जिसके परिणामस्वरूप लाखों लोग मारे गए थे। रामायण और महाभारतकाल में ये अस्त्र गिने-चुने योद्धाओं के पास था।रामायण काल में जहां यह विभीषण और लक्ष्मण के पास यह अस्त्र था वहीं महाभारतकाल में यह द्रोणाचार्य, अश्वत्थामा, कृष्ण, कुवलाश्व, युधिष्ठिर, कर्ण, प्रद्युम्न और अर्जुन के पास था। अर्जुन ने इसे द्रोण से पाया था। द्रोणाचार्य को इसकी प्राप्ति राम जामदग्नेय से हुई थी। ऐसा भी कहा गया है कि अर्जुन को यह अस्त्र इंद्र ने भेंट किया था।
ब्रह्मास्त्र कई प्रकार के होते थे। छोटे-बड़े और व्यापक रूप से संहारक। इच्छित, रासायनिक, दिव्य तथा मांत्रिक-अस्त्र आदि। माना जाता है कि दो ब्रह्मास्त्रों के आपस में टकराने से प्रलय की स्थिति उत्पन्न हो जाती है। इससे समस्त पृथ्वी के समाप्त होने का भय रहता है। महाभारत में सौप्तिक पर्व के अध्याय 13 से 15 तक ब्रह्मास्त्र के परिणाम दिए गए हैं।
वेद-पुराणों आदि में वर्णन मिलता है जगतपिता भगवान ब्रह्मा ने दैत्यों के नाश हेतु ब्रह्मास्त्र की उत्पति की। ब्रह्मास्त्र का अर्थ होता है ब्रह्म (ईश्वर) का अस्त्र। प्राचीनकाल में शस्त्रों से ज्यादा संहारक होते थे अस्त्र। शस्त्र तो धातुओं से निर्मित होते थे लेकिन अस्त्र को निर्मित करने की विद्या अलग ही थी।
प्रारंभ में ब्रह्मास्त्र देवी और देवताओं के पास ही हुआ करता था। प्रत्येक देवी-देवताओं के पास उनकी विशेषता अनुसार अस्त्र होता था। देवताओं ने सबसे पहले गंधर्वों को इस अस्त्र को प्रदान किया। बाद में यह इंसानों ने हासिल किया। प्रत्येक शस्त्र पर भिन्न-भिन्न देव या देवी का अधिकार होता है और मंत्र, तंत्र और यंत्र के द्वारा उसका संचालन होता है। ब्रह्मास्त्र अचूक अस्त्र है, जो शत्रु का नाश करके ही छोड़ता है। इसका प्रतिकार दूसरे ब्रह्मास्त्र से ही हो सकता है, अन्यथा नहीं।
महर्षि वेदव्यास लिखते हैं कि जहां ब्रह्मास्त्र छोड़ा जाता है वहां 12 वर्षों तक पर्जन्य वृष्टि (जीव-जंतु, पेड़-पौधे आदि की उत्पत्ति) नहीं हो पाती।’ महाभारत में उल्लेख मिलता है कि ब्रह्मास्त्र के कारण गांव में रहने वाली स्त्रियों के गर्भ मारे गए।
गौरतलब है कि हिरोशिमा में रेडिएशन फॉल आउट होने के कारण गर्भ मारे गए थे और उस इलाके में 12 वर्ष तक अकाल रहा।
हमारे प्राचीन ग्रंथों में वर्णित ब्रह्मास्त्र, आग्नेयास्त्र जैसे अस्त्र अवश्य ही परमाणु शक्ति से सम्पन्न थे, किन्तु हम स्वयं ही अपने प्राचीन ग्रंथों में वर्णित विवरणों को मिथक मानते हैं और उनके आख्यान तथा उपाख्यानों को कपोल कल्पना, हमारा ऐसा मानना केवल हमें मिली दूषित शिक्षा का परिणाम है जो कि, अपने धर्मग्रंथों के प्रति आस्था रखने वाले पूर्वाग्रह से युक्त, पाश्चात्य विद्वानों की देन है, पता नहीं हम कभी इस दूषित शिक्षा से मुक्त होकर अपनी शिक्षानीति के अनुरूप शिक्षा प्राप्त कर भी पाएँगे या नहीं।

History of islamic barbarism in India

Sanjay Dwivedy's photo.
1 )महमूद ग़ज़नवी ---वर्ष 997 से 1030 तक 2000000 , बीस लाख सिर्फ बीस लाख लोगों को महमूद ग़ज़नवी ने तो क़त्ल किया था और 750000 सात लाख पचास हज़ार लोगों को गुलाम बना कर भारत से ले गया था 17 बार के आक्रमण के दौरान (997 -1030). ---- जिन्होंने इस्लाम कबूल कर लिया , वे शूद्र बना कर इस्लाम में शामिल कर लिए गए। इनमे ब्राह्मण भी थे क्षत्रिय भी वैश्य भी और शूद्र भी थे ।
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2 ) दिल्ली सल्तनत --1206 से 1210 ---- कुतुबुद्दीन ऐबक --- सिर्फ 20000 गुलाम राजा भीम से लिए थे और 50000 गुलाम कालिंजर के राजा से लिए थे। जो नहीं माना उनकी बस्तियों की बस्तियां उजाड़ दीं। गुलामों की उस समय यह हालत हो गयी कि गरीब से गरीब मुसलमान के पास भी सैंकड़ों हिन्दू गुलाम हुआ करते थे ।
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3) इल्ल्तुत्मिश ---1236-- जो भी मिलता उसे गुलाम बना कर, उस पर इस्लाम थोप देता था।

4) बलबन ----1250-60 --- ने एक राजाज्ञा निकल दी थी , 8 वर्ष से ऊपर का कोई भी आदमी मिले उसे मौत के घाट उत्तर दो। महिलाओं और लड़कियों वो गुलाम बना लिया करता था। उसने भी शहर के शहर खाली कर दिए।
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5) अलाउद्दीन ख़िलजी ---- 1296 -1316 -- अपने सोमनाथ की लूट के दौरान उसने कम उम्र की 20000 हज़ार लड़कियों को दासी बनाया, और अपने शासन में इतने लड़के और लड़कियों को गुलाम बनाया कि गिनती
कलम से लिखी नहीं जा सकती। उसने हज़ारों क़त्ल करे थे और उसके गुलमखाने में 50000 लड़के थे और 70000 गुलाम लगातार उसके लिए इमारतें बनाने का काम करते थे। इस समय का ज़िक्र आमिर खुसरो के लफ़्ज़ों में इस प्रकार है " तुर्क जहाँ चाहे से हिंदुओं को उठा लेते थे और जहाँचाहे बेच देते थे।.
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6) मोहम्मद तुगलक ---1325 -1351 ---इसके समय पर तने कैदी हो गए थे की हज़ारों की संख्या मेंरोज़ कौड़ियों के दाम पर बेचे जाते थे।
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7) फ़िरोज़ शाह तुगलक -- 1351 -1388 -- इसकेपास 180000 गुलाम थे जिसमे से 40000 इसके महल की सुरक्षा में लगे हुए थे। इसी समय "इब्न बतूता " लिखते हैं की क़त्ल करने और गुलाम बनाने की वज़ह से गांव के गांव खाली हो गए थे। गुलाम खरीदने और बेचने के लिए खुरासान ,गज़नी,कंधार,काबुल और समरकंद मुख्य मंडियां
हुआ करती थीं। वहां पर इस्तांबुल,इराक और चीन से से भी गुलाम ल कर बेचे जाते थे।
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8) तैमूर लंग --1398/99 --- इसने दिल्ली पर हमले के दौरान 100000 गुलामों को मौत के घाट उतरने के पश्चात ,2 से ढ़ाई लाख कारीगर गुलाम बना कर समरकंद और मध्य एशिया ले गया।
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9) सैय्यद वंश --1400-1451 -- हिन्दुओं के लिए कुछ नहीं बदला, इसने कटिहार ,मालवा और अलवर को लूटा और जो पकड़ में आया उसे या तो मार दिया या गुलाम बना लिया। .
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10) लोधी वंश-1451--1525 ---- इसके सुल्तान बहलूल ने नीमसार से हिन्दुओं का पूरी तरह से वंशनाश कर दिया और उसके बेटे सिकंदर लोधी ने यही हाल रीवां और ग्वालियर का किया।
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11 ) मुग़ल राज्य --1525 -1707 --- बाबर -- इतिहास में ,क़ुरान की कंठस्थ आयतों ,कत्लेआम और गुलाम बनाने के लिए ही जाना जाता है।
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12 ) अकबर ---1556 -1605 ---- बहुत महान थे यह अकबर महाशय , चित्तोड़ ने जब इनकी सत्ता मानाने से इंकार कर दिया तो इन्होने 30000 काश्तकारों और 8000 राजपूतों को या तो मार दिया या गुलाम बना लिया और, एक दिन भरी दोपहर में 2000 कैदियों का सर कलम किया था। कहते हैं की इन्होने गुलाम प्रथा रोकने की बहुत कोशिश की फिर भी इसके हरम में 5000 महिलाएं थीं। इनके समय में ज्यादातर लड़कों को खासतौर पर बंगाल की तरफ अपहरण किया जाता था और उन्हें हिजड़ा बना दिया जाता था। इनके मुख्य सेनापति अब्दुल्लाह खान उज़्बेग, की अगर मानी जाये तो उसने 500000 पुरुष और गुलाम बना कर मुसलमान बनाया था और उसके हिसाब से क़यामत के दिन तक वह लोग एक करोड़ हो जायेंगे।
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13 ) जहांगीर 1605 --1627 --- इन साहब के हिसाब से इनके और इनके बाप के शासन काल में 5 से 600000 मूर्तिपूजकों का कत्ल किया गया था औरसिर्फ 1619-20 में ही इसने 200000 हिन्दू गुलामों को ईरान में बेचा
था।
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14) शाहजहाँ 1628 --1658 ----इसके राज में इस्लाम बस ही कानून था, या तो मुसलमान बन जाओ या मौत के घाट उत्तर जाओ। आगरा में एक दिन इसने 4000 हिन्दुओं को मौत के घाट उतरा था। जवान लड़कियां इसके हरम भेज दी जाती थीं। इसके हरम में सिर्फ 8000 औरतें थी।
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15) औरंगज़ेब--1658-1707 -- इसके बारे में तो बस इतना ही कहा जा सकता है की ,जब तक सवा मन जनेऊ नहीं तुलवा लेता था पानी नहीं पीता था। बाकि काशी मथुरा और अयोध्या इसी की देन हैं। मथुरा के मंदिर
200 सालों में बने थे इसने अपने 50 साल के शासन में मिट्टी में मिला दिए। गोलकुंडा में 1659 सिर्फ 22000 लड़कों को हिजड़ा बनाया था।
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16)फर्रुख्सियार -- 1713 -1719 ,यही शख्स है जो नेहरू परिवार को कश्मीर से दिल्ली ले कर आया था, और गुरदासपुर में हजारों सिखों को मार और गुलाम बनाया था।
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17) नादिर शाह --1738 भारत आया सिर्फ 200000 लोगों को मौत के घाट उत्तर कर हज़ारों सुन्दर लड़कियों को और बेशुमार दौलत ले कर चला गया।
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18) अहमद शाह अब्दाली --- 1757-1760 -1761 ----पानीपत की लड़ाई में मराठों युद्ध के दौरान हज़ारों लोग मरे ,और एक बार में यह 22000 लोगों को गुलाम बना कर ले गया था।
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19) टीपू सुल्तान ---1750 - 1799 ---- त्रावणकोर के युद्ध में इसने 10,000 हिन्दू और ईसाईयों को मारा था एक मुस्लिम किताब के हिसाब से कुर्ग में रहने वाले 70,000 हिन्दुओं को इसने मुसलमान बनाया था। ऐसा नहीं कि हिंदुओं ने डटकर मुकाबला नहीं किया था, बहुत किया था, उसके बाद ही इस संख्या का निर्धारण इतिहासकारों ने किया जो कि उपरोक्त दी गई पुस्तकों एवं लिंक में दिया गया है ।

गुलाम हिन्दू चाहे मुसलमान बने या नहीं ,उन्हें नीचा दिखाने के लिए इनसे अस्तबलों का , हाथियों को रखने का, सिपाहियों के सेवक होने का और इज़्ज़त करने के लिए साफ सफाई करने के काम दिए जाते थे। जो गुलाम नहीं भी बने उच्च वर्ण के लोग वैसे ही सब कुछ लूटा कर, अपना धर्म न छोड़ने के फेर में जजिया और तमाम तरीके के कर चुकाते चुकाते समाज में वैसे ही नीचे की पायदान शूद्रता पर पहुँच गए। जो आतताइयों से जान बचा कर जंगलों में भाग गए जिन्दा रहने के उन्होंने मांसाहार खाना शुरू कर दिया और जैसी की प्रथा थी ,और अछूत घोषित हो गए।
Now come to the valid reason for Rigidity in Indian Caste System--------
वर्ष 497 AD से 1197 AD तक भारत में एक से बढ़ कर एक विश्व विद्यालय हुआ करते थे, जैसे तक्षिला, नालंदा, जगदाला, ओदन्तपुर। नालंदा विश्वविद्यालय में ही 10000 छात्र ,2000 शिक्षक तथा नौ मंज़िल का पुस्तकालय हुआ करता था, जहाँ विश्व के विभिन्न भागों से पड़ने के लिए विद्यार्थी आते थे। ये सारे के सारे मुग़ल आक्रमण कारियों ने ध्वस्त करके जला दिए। न सिर्फ इन विद्या और ज्ञान के मंदिरों को जलाया गया बल्कि पूजा पाठ पर सार्वजानिक और निजी रूप से भी प्रतिबन्ध लगा दिया गया। इतना तो सबने पढ़ा है, लेकिन उसके बाद यह नहीं सोचा कि अपने धर्म को ज़िंदा रखने के लिए ज्ञान, धर्मशास्त्रों और संस्कारों को मुंह जुबानी पीढ़ी दर पीढ़ी आगे बढ़ाया गया ।
सबसे पहला खतरा जो धर्म पर मंडराया था ,वो था मलेच्छों का हिन्दू धर्म में अतिक्रमण / प्रवेश रोकना। और जिसका जैसा वर्ण था वो उसी को बचाने लग गया। लड़कियां मुगलों के हरम में न जाएँ ,इसलिए लड़की का जन्म अभिशाप लगा ,छोटी उम्र में उनकी शादी इसलिए कर दी जाती थी की अब इसकी सुरक्षा की ज़िम्मेदारी इसका पति संभाले, मुसलमानों की गन्दी निगाह से बचने के लिए पर्दा प्रथा शुरू हो गयी। विवाहित महिलाएं पति के युद्ध में जाते ही दुशमनों के हाथों अपमानित होने से बचने के लिए जौहर करने लगीं ,विधवा स्त्रियों को मालूम था की पति के मरने के बाद उनकी इज़्ज़त बचाने कोई नहीं आएगा इसलिए सती होने लगीं, जिन हिन्दुओं को घर से बेघर कर दिया गया उन्हें भी पेट पालने के लिए ठगी लूटमार का पेशा अख्तिया करना पड़ा। कौन सी विकृति है जो मुसलमानों के अतिक्रमण से पहले इस देश में थी और उनके आने के बाद किसी देश में नहीं है।
हिन्दू धर्म में शूद्र कृत्यों वाले बहरूपिये आवरण ओढ़ कर इसे कुरूप न कर दें इसीलिए वर्णव्यवस्था कट्टर हुई , इसलिए कोई अतिशियोक्ति नहीं कि इस पूरी प्रक्रिया में धर्म रूढ़िवादी हो गया या वर्तमान परिभाषा के हिसाब से उसमे विकृतियाँ आ गयी। मजबूरी थी वर्णों का कछुए की तरह खोल में सिकुड़ना। यहीं से वर्ण व्यवस्था का लचीलापन जो की धर्मसम्मत था ख़त्म हो गया। इसके लिए आज अपने को शूद्र कहने वाले ब्राह्मणो या क्षत्रियों को दोष देकर अपने नए मित्रों को ज़िम्मेदार कभी नहीं हराते हैं .
वैसे जब आप लोग डा. सविता माई(आंबेडकर जी की ब्राह्मण पत्नी) के संस्कारों को ज़बरदस्ती छुपा सकते हैं,जब आप लोग अपने पूर्वजो के बलिदान को याद नहीं रख सकते हैं जिनकी वजह से आप आज भी हिन्दू हैं तो आप आज उन्मुक्त कण्ठ से ब्राह्मणो और क्षत्रिओं को गाली भी दे सकते हैं,जिनके पूर्वजों ने न जाने इस धर्म को ज़िंदा रखने के लिए क्या क्या कष्ट सहे वर्ना आज आप भी अफगानिस्तान , सीरिया और इराक जैसे दिन भोग रहे होते। और आज जिस वर्णव्यवस्था में हम विभाजित हैं उसका श्रेय 1881 एवं 1902 की अंग्रेजों द्वारा कराई गयी जनगणना है जिसमें उन्होंने demographic segmentation को सरल बनाने के लिए हिंदु समाज को इन चार वर्णों में चिपका दिया। वैसे भील, गोंड, सन्थाल और सभी आदिवासियों के पिछड़ेपन के लिए क्या वर्णव्यवस्था जिम्मेदार है?????
कौन ज़िम्मेदार है इस पूरे प्रकरण के लिए अनजाने या भूलवश धर्म में विकृतियाँ लाने वाले पंडित या उन्हें मजबूर करने वाले मुसलमान आक्रांता ?? या आपसे सच्चाई छुपाने वाले इतिहास के लेखक ??
कोई भी ज़िम्मेदार हो पर हिन्दू भाइयो अब तो आपस में लड़ना छोड़ कर भविष्य की तरफ एक सकारात्मक कदम उठाओ। . अगर आज हिन्दू एक होते तो आज कश्मीर घाटी में गिनती के 2984 हिन्दू न बचते और 4.50 लाख कश्मीरी हिंदू 25 साल से अपने ही देश में शरणार्थियों की तरह न रह रहे होते और 16 दिसंबर के निर्भया काण्ड ,मेरठ काण्ड ,हापुड़ काण्ड …………गिनती बेशुमार है, इस देश में न होते। वैसे सबसे मजे की बात यह है कि जिनके पूर्वजों ने ये सब अत्याचार किए, 800 साल तक राज किया, वो तो पाक साफ हो कर अल्पसंख्यकों के नाम पर आरक्षण भी पा गये और कटघरे में खड़े हैं, कौन?........................ जवाब आपके पास है ...

श्री कृष्ण कौन थे? कैसे थे ?? कौन थी राधा??

श्री कृष्ण कौन थे? कैसे थे ?? कौन थी राधा??

श्री कृष्ण भगवान् को राधा के साथ जोड़ना , अश्लीलता भरा वर्णन करना, प्रेम लीला रास लीला दिखाना,16108 गोपियों से शादी करना। शर्म नहीं आती जब देखो तब कृष्ण राधा से जुडी पोस्ट कॉपी पेस्ट कर देते हैं। नकलची बन्दर न कहें तो और क्या कहें??
ये होती है हिंदुओं की भेड़ चाल।
और अगर कोई जाकिर नाइक जैसा मुल्ला इन्हीं की अश्लीलता को उजागर करे प्रश्न उठादे इनके देवी देवताओं पर तो ये हिन्दू चुप ऐसे चुप जैसे जुबान ही कट गयी हो। कोई अन्य बुद्धिजीवी अथवा आर्य पुरुष प्रश्न उठा दे तो उसे मुल्ला मुल्ला कह कर अपने क्रोथ को शांत कर लेंगे परन्तु गलत मान्यताओं को कभी न छोडेंगे।
अरे कृष्ण के साथ राधा का नाम जोड़के आप खुद ही भगवान् श्रीकृष्ण को गाली दे रहे हो। और गर्व महसूस करते हो हिन्दुओ!!!
योगिराज धर्म संस्थापक श्रीकृष्ण के जीवन चरित्र में कहीं भी कलंक नहीं है। वे संदीपनी ऋषि के आश्रम में शिक्षा दीक्षा लिए तो रास लीला रचाने गोपियों और राधा के बीच कब आ गए ?। अपनी बुद्धि खोलो और विचारो।श्री कृष्ण जी वेदों और योग के ज्ञाता थे। उनके जीवन पर कलंक मत लगाओ हिंदुओं। जागो। कब तक सोते रहोगे??।
श्री कृष्ण भगवान् सम्पूर्ण ऐश्वर्य के स्वामी थे, दयालु थे, योगी थे,वेदों के ज्ञाता थे। वेद ज्ञाता न होते तो विश्वप्रसिद्ध "गीता का उपदेश " न देते।
जो श्री कृष्ण जी मात्र एक विवाह रुक्मिणी से किये और विवाह पश्चात् भी 12 वर्षों तक ब्रह्मचर्य का पालन किया । तत्पश्चात प्रद्युम्न नाम का पुत्र रत्न प्राप्त हुआ। ऐसे योगी महापुरुष को रास लीला रचाने वाले ,छलिया चूड़ी बेचने वाला, 16 लाख शादियां करने वाला आदि लांछन लगाते शर्म आनी चाहिए। अपने महापुरुषों को जानो हिंदुओं ! कब तक ऐसी मूर्खता दिखाओगे।
जिस श्री कृष्ण का नाम तुम हिन्दू लोग राधा के साथ जोड़ते हो जान लो राधा क्या थी...
राधा का नाम पुराणों में आता है। सम्पूर्ण महाभारत में केवल कर्ण का पालन करने वाली माँ राधा को छोड़कर इस काल्पनिक राधा का नाम नहीं है, भागवत् पुराण में श्रीकृष्ण की बहुत सी लीलाओं का वर्णन है, पर यह राधा वहाँ भी नहीं है. राधा का वर्णन मुख्य रूप से ब्रह्मवैवर्त पुराण में आया है. यह पुराण वास्तव में कामशास्त्र है, जिसमें श्रीकृष्ण राधा आदि की आड़ में लेखक ने अपनी काम पिपासा को शांत किया है, पर यहाँ भी मुख्य बात यह है कि इस एक ही ग्रंथ में श्रीकृष्ण के राधा के साथ भिन्न-भिन्न सम्बन्ध दर्शाये हैं, जो स्वतः ही राधा को काल्पनिक सिद्ध करते हैं. देखिये- ब्रह्मवैवर्त पुराण ब्रह्मखंड के पाँचवें अध्याय में श्लोक 25,26 के अनुसार राधा को कृष्ण की पुत्री सिद्ध किया है. क्योंकि वह श्रीकृष्ण के वामपार्श्व से उत्पन्न हुई बताया है. ब्रह्मवैवर्त पुराण प्रकृति खण्ड अध्याय 48 के अनुसार राधा कृष्ण की पत्नी (विवाहिता) थी, जिनका विवाह ब्रह्मा ने करवाया. इसी पुराण के प्रकृति खण्ड अध्याय 49 श्लोक 35,36,37,40, 47 के अनुसार राधा श्रीकृष्ण की मामी थी. क्योंकि उसका विवाह कृष्ण की माता यशोदा के भाई रायण के साथ हुआ था. गोलोक में रायण श्रीकृष्ण का अंशभूत गोप था. अतः गोलोक के रिश्ते से राधा श्रीकृष्ण की पुत्रवधु हुई. क्या ऐसे ग्रंथ और ऐसे व्यक्ति को प्रमाण माना जा सकता है? हिन्दी के कवियों ने भी इन्हीं पुराणों को आधार बनाकर भक्ति के नाम पर शृंगारिक रचनाएँ लिखी हैं. ये लोग महाभारत के कृष्ण तक पहुँच ही नहीं पाए. जो पराई स्त्री से तो दूर, अपनी स्त्री से भी बारह साल की तपस्या के बाद केवल संतान प्राप्ति हेतु समागम करता है, जिसके हाथ में मुरली नहीं, अपितु दुष्टों का विनाश करने के लिए सुदर्शन चक्र था, जिसे गीता में योगेश्वर कहा गया है. जिसे दुर्योधन ने भी पूज्यतमों लोके (संसार में सबसे अधिक पूज्य) कहा है, जो आधा पहर रात्रि शेष रहने पर उठकर ईश्वर की उपासना करता था, युद्ध और यात्रा में भी जो निश्चित रूप से संध्या करता था. जिसके गुण, कर्म, स्वभाव और चरित्र को ऋषि दयानन्द ने आप्तपुरुषों के सदृश बताया, बंकिम बाबू ने जिसे सर्वगुणान्ति और सर्वपापरहित आदर्श चरित्र लिखा, जो धर्मात्मा की रक्षा के लिए धर्म और सत्य की परिभाषा भी बदल देता था. ऐसे धर्म-रक्षक व दुष्ट-संहारक कृष्ण के अस्तित्त्व पर लांछन लगाना मूर्खता ही है।वैदिक क्राँति दल का निवेदन व चेतावनी -अब हम अपने महापुरुषो व् बलिदानियों का चरित्र हरण नही होने देँगे।आओ इस जन्माष्टमी पर हम संकल्प लेवें -विद्या की वृद्धि व अविद्या के नाश करने का ,सत्य को ग्रहण व असत्य को छोड़ने व् छुड़वाने का ।।

हिन्दू होने पर इतना गर्व क्यों.

आखिर हिन्दू होने पर इतना गर्व क्यों...!!!
आइये जानते हैं कि सनातन धर्म पृथ्वी पर सर्वश्रेष्ठ क्यों है..??
कुछ लोग हिन्दू संस्कृति की शुरुआत को सिंधु घाटी की सभ्यता से जोड़कर देखते हैं। जो गलत है।
वास्तव में संस्कृत और कई प्राचीन भाषाओं के इतिहास के तथ्यों के अनुसार प्राचीन भारत में सनातन धर्म के इतिहास की शुरुआत ईसा से लगभग 13 हजार पूर्व हुई थी अर्थात आज से 15 हजार वर्ष पूर्व। इस पर विज्ञान ने भी शोध किया और वह भी इसे सच मानता है।
जीवन का विकास भी सर्वप्रथम भारतीय दक्षिण प्रायद्वीप में नर्मदा नदी के तट पर हुआ, जो विश्व की सर्वप्रथम नदी है। यहां पूरे विश्व में डायनासोरों के सबसे प्राचीन अंडे एवं जीवाश्म प्राप्त हुए हैं।
संस्कृत विश्व की सबसे प्राचीन भाषा है तथा समस्त भारतीय भाषाओं की जननी है। ‘संस्कृत’ का शाब्दिक अर्थ है ‘परिपूर्ण भाषा’। संस्कृत से पहले दुनिया छोटी-छोटी, टूटी-फूटी बोलियों में बंटी थी जिनका कोई व्याकरण नहीं था और जिनका कोई भाषा कोष भी नहीं था। भाषा को लिपियों में लिखने का प्रचलन भारत में ही शुरू हुआ। भारत से इसे सुमेरियन, बेबीलोनीयन और यूनानी लोगों ने सीखा।
ब्राह्मी और देवनागरी लिपियों से ही दुनियाभर की अन्य लिपियों का जन्म हुआ। ब्राह्मी लिपि एक प्राचीन लिपि है जिसे देवनागरी लिपि से भी प्राचीन माना जाता है।
हड़प्पा संस्कृति के लोग इस लिपि का इस्तेमाल करते थे, तब संस्कृत भाषा को भी इसी लिपि में लिखा जाता था।
जैन पौराणिक कथाओं में वर्णन है कि सभ्यता को

मानवता तक लाने वाले पहले तीर्थंकर ऋषभदेव की एक बेटी थी जिसका नाम ब्राह्मी था। उसी ने इस लेखन की खोज की।
प्राचीन दुनिया में सिंधु और सरस्वती नदी के किनारे बसी सभ्यता सबसे समृद्ध, सभ्य और बुद्धिमान थी। इसके कई प्रमाण मौजूद हैं। यह वर्तमान में अफगानिस्तान से भारत तक फैली थी।
प्राचीनकाल में जितनी विशाल नदी सिंधु थी उससे कहीं ज्यादा विशाल नदी सरस्वती थी। दुनिया का पहला धर्मग्रंथ सरस्वती नदी के किनारे बैठकर ही लिखा गया था।
पुरातत्त्वविदों के अनुसार यह सभ्यता लगभग 9,000 ईसा पूर्व अस्तित्व में आई थी, 3,000 ईसापूर्व उसने स्वर्ण युग देखा और लगभग 1800 ईसा पूर्व आते-आते किसी भयानक प्राकृतिक आपदा के कारण यह लुप्त हो गया। एक ओर जहां सरस्वती नदी लुप्त हो गई वहीं दूसरी ओर इस क्षेत्र के लोगों ने पश्चिम की ओर पलायन कर दिया।
सैकड़ों हजार वर्ष पूर्व पूरी दुनियाँ के लोग कबीले, समुदाय, घुमंतू वनवासी आदि में रहकर जीवन-यापन करते थे। उनके पास न तो कोई स्पष्ट शासन व्यवस्था थी और न ही कोई सामाजिक व्यवस्था। परिवार, संस्कार और धर्म की समझ तो बिलकुल नहीं थी। ऐसे में केवल भारतीय हिमालयन क्षेत्र में कुछ मुट्ठीभर लोग थे, जो इस संबंध में सोचते थे। उन्होंने ही वेद को सुना और उसे मानव समाज को सुनाया। उल्लेखनीय है कि प्राचीनकाल से ही भारतीय समाज कबीले में नहीं रहा। वह एक वृहत्तर और विशेष समुदाय में ही रहा।
संपूर्ण धरती पर हिन्दू वैदिक धर्म ने ही लोगों को सभ्य बनाने के लिए अलग-अलग क्षेत्रों में धार्मिक विचारधारा की नए-नए रूप में स्थापना की थी? आज दुनियाभर की
धार्मिक संस्कृति और समाज में हिन्दू धर्म की झलक देखी जा सकती है चाहे वह यहूदी धर्म हो, पारसी धर्म हो या ईसाई-इस्लाम धर्म हो।
क्योंकि
ईसा से 2300-2150 वर्ष पूर्व सुमेरिया, 2000-400
वर्ष पूर्व बेबिलोनिया, 2000-250 ईसा पूर्व ईरान,
2000-150 ईसा पूर्व मिस्र (इजिप्ट), 1450-500
ईसा पूर्व असीरिया, 1450-150 ईसा पूर्व ग्रीस
(यूनान), 800-500 ईसा पूर्व रोम की सभ्यताएं
विद्यमान थीं।
परन्तु इन सभी से भी पूर्व अर्थात आज से 5000 वर्ष पहले महाभारत का युद्ध लड़ा गया था।

महाभारत से भी पहले 7300 ईसापूर्व अर्थात आज से 7300+2000=9300 साल पहले रामायण का रचनाकाल प्रमाणित हो चुका है।
अब चूँकि महर्षि वाल्मीकि रचित रामायण में उससे भी पहले लिखी गई मनुस्मृति का उल्लेख आया है तो आइये अब जानते हैं रामायण से भी प्राचीन मनुस्मृति कब लिखी गई.........!!!
किष्किन्धा काण्ड में श्री राम अत्याचारी बाली को घायल कर उन्हें दंड देने के लिए मनुस्मृति के श्लोकों का उल्लेख करते हुए उसे अनुजभार्याभिमर्श का दोषी बताते हुए कहते हैं- मैं तुझे यथोचित दंड कैसे ना देता ?
श्रूयते मनुना गीतौ श्लोकौ चारित्र वत्सलौ ।।
गृहीतौ धर्म कुशलैः तथा तत् चरितम् मयाअ ।।
वाल्मीकि ४-१८-३०
राजभिः धृत दण्डाः च कृत्वा पापानि मानवाः ।
निर्मलाः स्वर्गम् आयान्ति सन्तः सुकृतिनो यथा ।।
वाल्मीकि ४-१८-३१
शसनात् वा अपि मोक्षात् वा स्तेनः पापात् प्रमुच्यते ।
राजा तु अशासन् पापस्य तद् आप्नोति किल्बिषम् ।
वाल्मीकि ४-१८-३२
उपरोक्त श्लोक ३० में मनु का नाम आया है और श्लोक
३१ , ३२ भी मनुस्मृति के ही हैं एवं उपरोक्त सभी श्लोक मनु अध्याय ८ के है ! जिनकी संख्या कुल्लूकभट्ट कि टीकावली में ३१८ व ३१९ है।
अतः यह सिद्ध हुआ कि श्लोकबद्ध मनुस्मृति जो महर्षि वाल्मीकि रचित रामायण में अनेकों स्थान पर आयी है....वो मनुस्मृति रामायणकाल (9300 साल) के भी पहले विधमान थी ।
अब आईये विदेशी प्रमाणों के आधार पर जानते हैं कि रामायण से भी पहले की मनुस्मृति कितनी प्राचीन है..??
सन १९३२ में जापान ने बम विस्फोट द्वारा चीन की ऐतिहासिक दीवार को तोड़ा तो उसमे से एक लोहे का ट्रंक मिला जिसमे चीनी भाषा की प्राचीन पांडुलिपियां भरी थी ।
वे हस्तलेख Sir Augustus Fritz George के हाथ लग गयीं। वो उन्हें लंदन ले गये और ब्रिटिश म्युजियम में रख दिया । उन हस्तलेखों को Prof. Anthony Graeme ने चीनी विद्वानो से पढ़वाया।
चीनी भाषा के उन हस्तलेखों में से एक में लिखा है -
'मनु का धर्मशास्त्र भारत में सर्वाधिक मान्य है जो वैदिक
संस्कृत में लिखा है और दस हजार वर्ष से अधिक पुराना है' तथा इसमें मनु के श्लोकों कि संख्या 630 भी बताई गई है।
यही विवरण मोटवानी कि पुस्तक 'मनु धर्मशास्त्र :
ए सोशियोलॉजिकल एंड हिस्टोरिकल स्टडीज' पेज २३२
पर भी दिया है ।
इसके अतिरिक्त R.P. Pathak कि Education in the Emerging India में भी पेज १४८ पर है।
अब देखें चीन की दीवार के बनने का समय लगभग 220–206 BC है अर्थात लिखने वाले ने कम से कम 220BC से पूर्व ही मनु के बारे में अपने हस्तलेख में लिखा 220+10000 =10220 ईसा पूर्व
यानी आज से कम से कम 12,220 वर्ष पूर्व तक भारत में मनुस्मृति पढ़ने के लिए उपलब्ध थी ।
मनुस्मृति में सैकड़ों स्थानों पर वेदों का उल्लेख आया है। अर्थात वेद मनुस्मृति से भी पहले लिखे गये। अब हिन्दू धर्म के आधार वेदों की प्राचीनता जानते हैं-
वेदों की उत्पत्ति कब हुई ?
वेदों का रचनाकाल इतना प्राचीन है कि इसके बारे में सही-सही किसी को ज्ञात नहीं है। पाश्चात्य विद्वान वेदों के सबसे प्राचीन मिले पांडुलिपियों के हिसाब से वेदों के रचनाकाल के बारे में अनुमान लगाते हैं। जो अत्यंत हास्यास्पद है।
क्योंकि वेद लिखे जाने से पहले हजारों सालों तक पीढ़ी दर पीढ़ी सुनाए जाते थे। इसीलिए वेदों को "श्रुति" भी कहा जाता है। उस काल में भोजपत्रों पर लिखा जाता था अत: यदि उस कालखण्ड में वेदों को हस्तलिखित भी किया गया होगा तब भी आज हजारों साल बाद उन भोजपत्रों का मिलना असम्भव है।
फिर भी वेदों पर सबसे अधिक शोध करने वाले स्वामी दयानंद जी ने अपने ग्रंथों में ईश्वर द्वारा वेदों की उत्पत्ति का विस्तार से वर्णन किया हैं. ऋग्वेद, यजुर्वेद और सामवेद के पुरुष सूक्त (ऋक १०.९०, यजु ३१ , अथर्व १९.६) में सृष्टी उत्पत्ति का वर्णन है कि परम पुरुष परमात्मा ने भूमि उत्पन्न की, चंद्रमा और सूर्य उत्पन्न किये, भूमि पर भांति भांति के अन्न उत्पन्न किये,पशु पक्षी आदि उत्पन्न किये। उन्ही अनंत शक्तिशाली परम पुरुष ने मनुष्यों को उत्पन्न किया और उनके कल्याण के लिए वेदों का उपदेश दिया।
उन्होंने शतपथ ब्राह्मण से एक उद्धरण दिया और बताया-
‘अग्नेर्वा ऋग्वेदो जायते वायोर्यजुर्वेदः सूर्यात्सामवेदः।।
शत.।।
प्रथम सृष्टि की आदि में परमात्मा ने अग्नि, वायु, आदित्य तथा अंगिरा इन तीनों ऋषियों की आत्मा में एक एक वेद का प्रकाश किया।’ (सत्यार्थप्रकाश, सप्तमसमुल्लास, पृष्ठ 135)
इसलिए वेदों की उत्पत्ति का काल मनुष्य जाति की उत्पत्ति के साथ ही माना जाता है।
स्वामी दयानंद की इस मान्यता का समर्थन ऋषि मनु और ऋषि वेदव्यास भी करते हैं।
परमात्मा ने सृष्टी के आरंभ में वेदों के शब्दों से ही सब
वस्तुओं और प्राणियों के नाम और कर्म तथा लौकिक
व्यवस्थाओं की रचना की हैं. (मनुस्मृति १.२१)
स्वयंभू परमात्मा ने सृष्टी के आरंभ में वेद रूप नित्य दिव्यवाणी का प्रकाश किया जिससे मनुष्यों के सब व्यवहार सिद्ध होते हैं (वेद व्यास,महाभारत शांति पर्व २३२/२४)
कुल मिलाकर वेदों, सनातन धर्म एवं सनातनी परम्परा की शुरूआत कब हुई। ये अभी भी एक शोध का विषय है।
इसका मतलब कि हजारों वर्ष ईसा पूर्व भारत में एक पूर्ण विकसित सभ्यता थी। और यहाँ के लोग पढ़ना-लिखना भी जानते थे।
इसके बाद भारतीय संस्कृति का प्रकाश धीरे-धीरे पूरे विश्व में फैलने लगा। तब भारत का ‘धर्म’ ‍दुनियाभर में अलग-अलग नामों से प्रचलित था। अरब और अफ्रीका में जहां सामी, सबाईन, ‍मुशरिक, यजीदी, अश्शूर, तुर्क, हित्ती, कुर्द, पैगन आदि इस धर्म के मानने वाले समाज थे तो रोम, रूस, चीन व यूनान के प्राचीन समाज के लोग सभी किसी न किसी रूप में हिन्दू धर्म का पालन करते थे। फिर ईसाई और बाद में दुनियाँ की कई सभ्यताओं एवं संस्कृतियों को नष्ट करने वाले धर्म इस्लाम ने इन्हें विलुप्त सा कर दिया।
मैक्सिको में ऐसे हजारों प्रमाण मिलते हैं जिनसे यह सिद्ध होता है। जीसस क्राइस्ट्स से बहुत पहले वहां पर हिन्दू धर्म प्रचलित था। अफ्रीका में 6,000 वर्ष पुराना एक शिव मंदिर पाया गया और चीन, इंडोनेशिया, मलेशिया, लाओस, जापान में हजारों वर्ष पुरानी विष्णु, राम और हनुमान की प्रतिमाएं मिलना इस बात का सबूत है कि हिन्दू धर्म संपूर्ण धरती पर था।
उदाहरण के तौर पर एरिक वॉन अपनी बेस्ट सेलर
पुस्तक ‘चैरियट्स ऑफ गॉड्स’ में लिखते हैं -:
‘‘विश्व की सबसे प्राचीन सुमेरियन सभ्यता(2300 B.C.)से भी प्राचीन लगभग 5,000 वर्ष पुराने महाभारत के तत्कालीन कालखंड में उन्नत सामाजिक व्यवस्था, उन्नत शासन प्रणाली, उन्नत भाषा आदि का विस्तारित विवरण एवं उक्त कालखंड के योद्धाओं द्वारा आज के अत्याधुनिक अस्त्र-शस्त्रों के समान ही अनेक शस्त्रों का प्रयोग केवल कल्पना मात्र नहीं हो सकता। वे किसी ऐसे अस्त्र के बारे में कैसे जानते थे जिसे चलाने से 12 साल तक उस धरती पर सूखा पड़ जाता, ऐसा कोई अस्त्र जो इतना शक्तिशाली हो कि वह माताओं के गर्भ में पलने वाले शिशु को भी मार सके? इसका अर्थ है कि ऐसा कुछ न कुछ तो था जिसका ज्ञान आगे नहीं बढ़ाया गयाअथवा लिपिबद्ध नहीं हुआ और गुम हो गया।’‘
प्राचीन भारत बहुत ही समृद्ध और सभ्य देश था, जहां हर तरह के हथियार इस्तेमाल किये जाते थे, तो वहीं
मानव के मनोरंजन के भरपूर साधन भी थे। ऐसा कोई खेल या मनोरंजन का साधन नहीं है जिसका आविष्कार
भारत में न हुआ हो। आज शेष विश्व में जितनी भी संस्कृतियाँ, सामाजिक व्यवस्थाएँ एवं धार्मिक मान्यताएँ प्रचलित हैं; प्राचीन भारतीय ग्रंथों का गहन अध्ययन करने से ये प्रमाणित हो जाता है कि ये सभी भारत में प्रचलित हिन्दू धर्म एवं संस्कृति से पूरी तरह प्रभावित हैं। कई विश्व विख्यात विद्वानों एवं वैज्ञानिक शोधों ने ये प्रमाणित भी किया है।
संस्कृत और अन्य भाषाओं के ग्रंथों में इस बात के कई प्रमाण मिलते हैं कि भारतीय लोग समुद्र में जहाज द्वारा अरब और अन्य देशों की यात्रा करते थे और सनातन धर्म एवं सभ्यता का परिचय कराते थे। वहीं किसी भी ग्रंथ एवं उल्लेखों में अपने धर्म एवं सभ्यता को प्रचारित करने में किसी भी देश या मानव समूहों में किसी भी प्रकार की जबरदस्ती एवं बलप्रयोग का उल्लेख नहीं मिलता। प्राचीन भारतायों का लम्बी यात्राएं कर विश्व के विभिन्न स्थानों पर जाना केवलमात्र शेष विश्व को सभ्यता से परिचय कराना था।
विमानों से यात्रा करने की कई कहानियां भारतीय ग्रंथों में भरी पड़ी हैं जो इतनी अधिक बार उल्लेखित हुई हैं कि इसे असत्य नहीं माना जा सकता। यहीं नहीं, कई ऐसे ऋषि और मुनि भी थे, जो योगबल से अंतरिक्ष में दूसरे ग्रहों पर जाकर पुन: धरती पर लौट आते थे।
वर्तमान समय में भारत की इस प्राचीन तकनीक और
वैभव का खुलासा कोलकाता संस्कृत कॉलेज के संस्कृत प्रोफेसर दिलीप कुमार कांजीलाल ने 1979 में एंशियंट एस्ट्रोनट सोसाइटी (Ancient Astronaut Society) की म्युनिख (जर्मनी) में संपन्न छठी कांग्रेस के दौरान अपने एक शोध पत्र से किया। जिससे विश्व आश्चर्यचकित हो गया था। उन्होंने उड़ सकने वाले प्राचीन भारतीय विमानों के बारे में एक उद्बोधन दिया और पर्चा प्रस्तुत किया।
संगीत और वाद्ययंत्रों का अविष्कार भारत में ही हुआ है। अत्याधुनिक पाश्चात्य वाद्ययंत्र इन्हीं के रूपान्तर हैं। हिन्दू धर्म का नृत्य, कला, योग और संगीत से गहरा नाता रहा है। हिन्दू धर्म मानता है कि ध्वनि और शुद्ध प्रकाश से ही ब्रह्मांड की रचना हुई है। आत्मा इस जगत का कारण है। चारों वेद, स्मृति, पुराण और गीता आदि धार्मिक ग्रंथों में धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष को साधने के हजारों हजार उपाय बताए गए हैं। उन उपायों में से एक है संगीत। संगीत की कोई भाषा नहीं होती। संगीत आत्मा के सबसे ज्यादा नजदीक माना जाता था।
हिन्दुओं के लगभग सभी देवी और देवताओं के पास अपना एक अलग वाद्य यंत्र है। संगीत का सर्वप्रथम ग्रंथ चार वेदों में से एक सामवेद ही है। इसी के आधार पर भरत मुनि ने नाट्यशास्त्र लिखा और बाद में संगीत रत्नाकर, अभिनव राग मंजरी लिखा गया। दुनियाभर के
संगीत के ग्रंथ सामवेद से प्रेरित हैं।
भारतीय ऋषियों ने ऐसी सैकड़ों ध्वनियों को खोजा, जो प्रकृति में पहले से ही विद्यमान है। उन ध्वनियों के आधार पर ही उन्होंने मंत्रों की रचना की, संस्कृत भाषा की रचना की और ध्यान एवं स्वास्थ्य में लाभदायक ध्यान ध्वनियों की रचना की। इसके अलावा उन्होंने ध्वनि विज्ञान को अच्छे से समझकर इसके माध्यम से शास्त्रों की रचना की और प्रकृति को संचालित करने वाली ध्वनियों की खोज भी की। आज का विज्ञान अभी भी संगीत और ध्वनियों के महत्व और प्रभाव की खोज में लगा हुआ है, लेकिन ऋषि-मुनियों से अच्छा कोई भी संगीत के रहस्य और उसके विज्ञान को नहीं जान पाया।
प्राचीन भारती नृत्य शैली से ही दुनियाभर की नृत्य शैलियां विकसित हुई है। भारतीय नृत्य मनोरंजन के लिए नहीं बना था। भारतीय नृत्य ध्यान की एक विधि के समान कार्य करता है। मूलतः यह प्राचीन हिन्दुओं द्वारा निर्मित एक योग क्रिया है।
सामवेद में संगीत के साथ साथ नृत्य का भी उल्लेख मिलता है। हड़प्पा सभ्यता में नृत्य करती हुई लड़की की मूर्ति पाई गई है। भरत मुनि का नाट्य शास्त्र नृत्यकला का सबसे प्रथम व प्रामाणिक ग्रंथ माना जाता है। इसको पंचवेद भी कहा जाता है। यही नहीं सृष्टि के आरम्भिक हिन्दू ग्रंथों और पुराणों में भी शिव और पार्वती के नृत्य का वर्णन मिलता है।
भारत में प्राचीनकाल से ही ज्ञान को अत्यधिक महत्व दिया जाता था। कला, विज्ञान, गणित और ऐसे अनगिनत क्षेत्र हैं जिनमें भारतीय योगदान अनुपम है। आधुनिक युग के ऐसे बहुत से आविष्कार हैं, जो प्राचीन भारतीय शोधों के निष्कर्षों पर आधारित हैं।
प्राचीन भारतीयों ने एक ओर जहां पिरामिडनुमा मंदिर बनाए तो दूसरी ओर स्तूपनुमा मंदिर बनाकर दुनिया को चमत्कृत कर दिया। आज दुनियाभर के धर्म के प्रार्थना स्थल इसी शैली में बनते हैं। तब हिन्दू मंदिरों को देखना सबसे अद्भुत माना जाता था। मौर्य, गुप्त और विजयनगरम साम्राज्य के दौरान बने हिन्दू मंदिरों की स्थापत्य कला को देखकर हर कोई दांतों तले अंगुली दबाए बिना नहीं रह पाता।
अजंता-एलोरा की गुफाएं हों या वहां का विष्णु मंदिर। कोणार्क का सूर्य मंदिर हो या जगन्नाथ मंदिर या कंबोडिया के अंकोरवाट का मंदिर हो या थाईलैंड के मंदिर… उक्त मंदिरों से पता चलता है कि प्राचीन भारत में किस तरह के मंदिर बनते होंगे। समुद्र में डूबी कृष्ण की द्वारिका के अवशेषों की जांच से पता चलता है कि आज से 5,000 वर्ष पहले जब पूरी दुनियाँ जंगलों में नंगी घूमती थी तब भी हिन्दुओं के मंदिर और महल अत्यंत भव्य होते थे और हिन्दू सभ्यता, संस्कृति एवं ज्ञान से परिपूर्ण ।
भारत के प्राचीन ग्रंथों में कहीं पर भी अन्यायपूर्ण युद्धों की प्रशंसा नहीं की गयी है। लोग साधारणता शान्तिपूर्ण जीवन जीने में विश्वास रखते थे। चारों ओर न्याय, वसुधैव कुटुम्बकम, सुख, शान्ति एवं ज्ञान का बोलबाला था।
परन्तु आठवीं सदी में दुनियाँ की कई सभ्यताओं एवं संस्कृतियों को रौंदता, बर्बाद करता इस्लाम आखिर सोने की चिड़िया कहलाने वाले इस भूभाग पर भी आ धमका और इस पूरे क्षेत्र को धार्मिक एवं सांस्कृतिक रूप से तहस-नहस कर डाला। समस्त ज्ञान-विज्ञान एवं उस समय के भव्य मन्दिरों को नष्ट कर दिया गया। तक्षशिला, नालन्दा एवं विक्रमशिला जैसे विश्वविद्यालयों को नष्ट कर जला दिया गया। उल्लेखों के अनुसार उनमें प्राचीन भारतीय ज्ञान-विज्ञान, कला, संस्कृति, दर्शन, खगोलविज्ञान आदि से सम्बन्धित इतनी अधिक संख्या में पुस्तकें थीं जो कई महीनों तक जलती रहीं और विश्व ने मानव-सभ्यता की इस लिपिबद्ध अनमोल धरोहर को सदा के लिए खो दिया।
इसके साथ ही दुनियाँ की सबसे प्राचीन, सभ्य एवं समृद्ध हिन्दू सभ्यता का पराभव काल आरम्भ हुआ जो कालांतर में मुगल लुटेरों से लेकर अंग्रेजों के शासनकाल तक चलता रहा।
आज देश के स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चे वामपंथी इतिहासकारों के द्वारा लिखा गया भारत का नकली इतिहास पढ़ते हैं जिसमें उन्हें बताया जाता है मानों केवल मुगलों के शासन में ही भारत का इतिहास निहित है। उसके पहले का स्वर्णिम काल केवल मनगढ़ंत बातें हैं। आज मैकाले की शिक्षा पद्धति के कारण छात्र अपने ही अतीत से दूर हो गये हैं, एवं अपनी ही संस्कृति का उपहास करते हैं। परन्तु अब झूठ से पर्दा उठने लगा है। अब आशा बँधने लगी है कि भारत अपने खोये गौरव को पुन: प्राप्त करेगा।
वास्तविकता तो यह है कि हमारी अतिप्राचीन एवं अनादि सनातन धर्म से प्रेरित होकर एवं इसी पर मूलाधारित बाद में आने वाली कोई भी अन्य धार्मिक व्यवस्था हमारे आसपास भी नहीं ठहरती। यदि अनुभव, श्रेष्ठता एवं उत्पत्ति काल के सन्दर्भ में देखें तो संसार के अन्य धर्म हमारे सनातन धर्म के पोते, पड़पोते, छड़पोते आदि की भी जगह नहीं ले सकते।
तो हम सब मिलकर इस बात का गर्व क्यों ना करें कि हम उस हिन्दू संस्कृति, उस सनातनी संस्कृति के मानने वाले हैं जिसने जंगलों में नंगी घूमती दुनियाँ को सभ्यता सिखायी, समाजिक व्यवस्था सिखायी, जीने का तरीका सिखाया। और सदियों से अनगिनत अत्याचार सहकर भी हमारे पूर्वजों ने इस महान धर्म को नहीं छोड़ा और हम आज भी उस महान परम्परा का एक हिस्सा बने हुए हैं।
तो गर्व से कहो, हम हिन्दू हैं
जय हिन्द, जय हिन्दू, जय माँ भारती ।

राजपूत अनजाने सच, Some Truth about Rajputs

राजपूत भाइयों कुछ अनभिज्ञ, अनजाने सच जरूर पढ़े व् गर्व से शेयर कर देना।
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1) राजपूतो में पहले सिर के बाल बड़े रखे जाते थे जो गर्दन के नीचे तक होते थे युद्ध में जाते समय बालो के बीच में गर्दन वाली जगह पर लोहे की जाली डाली जाती थी और वहा विषेस प्रकार का चिकना प्रदार्थ लगाया जाता था इससे तलवार से गर्दन पर होने वाले वार से बचा जा सके।
2) युद्ध में धोखे का संदेह होने पर घुसवार अपने घोड़ो से उतर कर जमीनी युद्ध करते थे ।
3) मध्य काल में देवी और देव पूजा होती थी जंग में जाने से पूर्व राजपूत अपनी कुलदेवियो की पूजा अर्चना करते थे जो ही शक्ति का प्रतिक है मेवाड़ के सिसोदिया एकलिंग जी की पूजा करते ।
4) हरावल - राजपूतो की सेना में युद्ध का नेतृत्व करने वाली टुकड़ी को हरावल सेना कहा जाता था जो सबसे आगे रहती थी कई बार इस सम्माननीय स्थान को पाने के लिए राजपूत आपस में ही लड़ बैठते थे इस संदर्भ में उन्टाला दुर्ग वाला चुण्डावत शक्तावत किस्सा प्रसिद्ध है ।
5) किसी बड़े जंग में जाते समय या नय प्रदेश की लालसा में जाते समय राजपूत अपने राज्य का ढोल , झंडा ,राजचिन्ह और कुलदेवी की मूर्ति साथ ले जाते थे।
6) शाका - महिलाओं को अपनी आंखों के आगे जौहर की ज्वाला में कूदते देख पुरूष जौहर कि राख का तिलक कर के सफ़ेद कुर्ते पजमे में और केसरिया फेटा ,केसरिया साफा या खाकी साफा और नारियल कमर कसुम्बा पान कर, केशरिया वस्त्र धारण कर दुश्मन सेना पर आत्मघाती हमला कर इस निश्चय के साथ रणक्षेत्र में उतर पड़ते थे कि तो विजयी होकर लोटेंगे अन्यथा विजय की कामना हृदय में लिए अन्तिम दम तक शौर्यपूर्ण युद्ध करते हुए दुश्मन सेना का ज्यादा से ज्यादा नाश करते हुए रणभूमि में चिरनिंद्रा में शयन करेंगे । पुरुषों का यह आत्मघाती कदम शाका के नाम से विख्यात हुआ ।
7) जौहर : युद्ध के बाद अनिष्ट परिणाम और होने वाले अत्याचारों व व्यभिचारों से बचने और अपनी पवित्रता कायम रखने हेतु अपने सतीत्व के रक्षा के लिए राजपूतनिया अपने शादी के जोड़े वाले वस्त्र को पहन कर अपने पति के पाँव छू कर अंतिम विदा लेती है महिलाएं अपने कुल देवी-देवताओं की पूजा कर,तुलसी के साथ गंगाजल का पानकर जलती चिताओं में प्रवेश क अपने सूरमाओं को निर्भय करती थी कि नारी समाज की पवित्रता अब अग्नि के ताप से तपित होकर कुंदन बन गई है और राजपूतनिया जिंदा अपने इज्जत कि खातिर आग में कूद कर आपने सतीत्व कि रक्षा करती थी । पुरूष इससे चिंता मुक्त हो जाते थे कि युद्ध परिणाम का अनिष्ट अब उनके स्वजनों को ग्रसित नही कर सकेगा । महिलाओं का यह आत्मघाती कृत्य जौहर के नाम से विख्यात हुआ। सबसे ज्यादा जौहर और शाके चित्तोड़ के दुर्ग में हुए ।
8) गर्भवती महिला को जौहर नहीं करवाया जाता था अत:उनको किले पर मौजूद अन्य बच्चों के साथ सुरंगों के रास्ते किसी गुप्त स्थान या फिर किसी दूसरे राज्य में भेज दिया जाता था ।राजपुताने में सबसे ज्यादा जौहर मेवाड़ के इतिहास में दर्ज हैं और इतिहास में लगभग सभी जौहर
इस्लामिक आक्रमणों के दौरान ही हुए हैं जिसमें अकबर और ओरंगजेब के दौरान सबसे ज्यादा हुए हैं ।
9) अंतिम जौहर - पुरे विश्व के इतिहास में अंतिम जौहर अठारवी सदी में भरतपुर के जाट सूरजमल ने मुगल सेनापति के साथ मिलकर कोल के घासेड़ा के राजपूत राजा बहादुर सिंह पर हमला किया था। महाराजा बहादुर सिंह ने जबर्दस्त मुकाबला करते हुए मुगल सेनापति को मार गिराया। पर दुश्मन की संख्या अधिक होने पर किले में मौजूद सभी राजपूतानियो ने जोहर कर अग्नि में जलकर प्राण त्याग दिए उसके बाद राजा और उसके परिवारजनों ने शाका किया। इस घटना का जिकर आप "गुड़गांव जिले के गेजिएटर" में पढ़ सकते है।
10) युद्ध में जाते से पूर्व "चारण/गढ़वी" कवि वीररस सुना कर राजपूतो में जोश पैदा करते और अपना कर्तव्य याद दिलाते कुछ युद्ध जो लम्बे चलते वह चारण भी साथ जाते थे चारण गढ़वी और भाट एक प्रकार के दूत होते थे जो राजपूत राजा के दरबार में बिना किसी रोक टोक आ जा सकते थे चाहे वो दुश्मन राजपूत राजा ही क्यों ना हो 11राजपूताने के ज्यादातर किलो में गुप्त रास्ते बने हुए है आजादी के बाद और सन 1971 के बाद सभी गुप्त रस्ते बंद कर दिए गए है।