Friday, September 18, 2015

Truth of Caba, islam, mecca-Shivlinga in Mecca

मक्‍का मे विराजित प्रसिद्ध मक्‍केश्‍वर महादेव शिवलिंग
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सम्‍पूर्ण विश्‍व क्‍या भारत के लोग ही यह कटु सत्‍य स्‍वीकार नही कर सकते कि इस्लाम ने हिन्दू की आस्‍था माने जाने वाले असंख्‍य मंदिर तोड़े है और उनके स्‍थान पर उसी मंदिर के अवशेष से मस्जितों को निर्माण करवाया। 

इस्‍लामिक विध्‍वंशक गतिविधियां इतनी प्रंचडता के साथ की जाती थी कि तक्षशिला विश्वविद्यालय और सोमनाथ मंदिर विध्‍वंश किये गये। इस्लाम नीव इस आधार पर रखी गई कि दूसरों के धर्म का अनादर करों और उनको नेस्‍तानाबूत और पवित्र स्थलों को खंडित कर वहाँ मस्जित और मकबरे का निर्माण किया किया जाए। इस काम बाधा डालने वाले जो लोग भी सामने आये उन लोगो को मौत के घाट उतार दिया जाये। भले ही वे लोग मुस्लिमो को परेशान न करते हो। मुहम्‍मद साहब और मुसलमानों के हमले से मक्‍का और मदीना के आस पास का पूरा इतिहास बदल दिया गया। इस्लाम एक तलवार पे बना धर्म था है और रहेगा और इसका अंत भी उस से ही होगा।

मुसलमाने के पैगम्‍बर मुहम्‍मद एक ऐसे विध्‍वंसक गिरोह का नेतृत्‍व करते थे जो धन और वासना के पुजारी थे। मुहम्‍मद ने मदीना से मक्का के शांतिप्रिय मुर्तिपूजकों पर हमला किया और जबरजस्‍त नरसंंहार किया। मक्‍का का म‍दीना के अपना अगल अस्तितव था किन्‍तु मुहम्‍मद साहब के हमले के बाद मक्‍का मदीना को एक साथ जोड़कर देखा जाने लगा। जबकि मक्‍का के लोग जो कि शिव के उपासक माने जाते है।

मुहम्‍मद की टोली ने मक्‍का में स्‍थापित कर वहां पे स्थापित की हुई 360 में से 359 मूर्तियाँ नष्ट कर दी और सिर्फ काला पत्थर सुरक्षित रखा जिसको आज भी मुस्‍लिमों द्वारा पूजा जाता है। उसके अलावा अल-उज्जा, अल-लात और मनात नाम की तीन देवियों के मंदिरों को नष्ट करने का आदेश भी महम्मद ने दिया और आज उन मंदिरों का नामो निशान नहीं है (हिशम इब्न अल-कलबी, 25-26)। इतिहास में यह किसी हिन्दू मंदिर पर सबसे पहला इस्लामिक आतंकवादी हमला था।उस काले पत्थर की तरफ आज भी मुस्लिम श्रद्धालु अपना शीश जुकाते है। किसी हिंदू पूजा के दौरान बिना सिला हुआ वस्त्र या धोती पहनते हैं, उसी तरह हज के दौरान भी बिना सिला हुआ सफेद सूती कपड़ा ही पहना जाता है।

मक्का मदीना का सच
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मुसलमानों के सबसे बड़े तीर्थ मक्का मक्केश्वर महादेव का मंदिर था। वहां काले पत्थर का विशाल शिवलिंग था जो खंडित अवस्था में अब भी वहां है। हज के समय संगे अस्वद (संग अर्थात पत्थर, अस्वद अर्थात अश्वेत यानी काला) कहकर मुसलमान उसे ही पूजते और चूमते हैं। इस सम्‍बन्‍ध में प्रख्‍यात प्रसिद्ध इतिहासकार स्व0 पी.एन.ओक ने अपनी पुस्तक ‘वैदिक विश्व राष्ट्र का इतिहास’ में समझाया है कि मक्का और उस इलाके में इस्लाम के आने से पहले से मूर्ति पूजा होती थी। हिंदू देवी-देवताओं के मंदिर थे, गहन रिसर्च के बाद उन्होंने यह भी दावा किया कि काबा में भगवान शिव का ज्योतिर्लिंग है।

पैगंबर मोहम्मद ने हमला कर मक्का की मूर्तियां तोड़ी थीं। यूनान और भारत में बहुतायत में मूर्ति पूजा की जाती रही है, पूर्व में इन दोनों ही देशों की सभ्यताओं का दूरस्थ इलाकों पर प्रभाव था। ऐसे में दोनों ही इलाकों के कुछ विद्वान काबा में मूर्ति पूजा होने का तर्क देते हैं। हज करने वाले लोग काबा के पूर्वी कोने पर जड़े हुए एक काले पत्थर के दर्शन को पवित्र मानते हैं जो कि हिन्‍दूओं का पवित्र शिवलिंग है। वास्‍तव में इस्लाम से पहले मिडिल-ईस्ट में पीगन जनजाति रहती थी और वह हिंदू रीति-रिवाज को ही मानती थी।

एक प्रसिद्ध मान्‍यता के अनुसर है कि काबा में “पवित्र गंगा” है। जिसका निर्माण वेज्ञानिक रावण ने किया था, रावड़ शिव भक्त था वह शिव के साथ गंगा और चन्द्रमा के महात्‍म को समझता था और यह जानता था कि कि क‍भी शिव को गंगा से अलग नही किया जा सकता। जहाँ भी शिव होंगे, पवित्र गंगा की अवधारणा निश्चित ही मौजूद होती है। काबा के पास भी एक पवित्र झरना पाया जाता है, इसका पानी भी पवित्र माना जाता है। इस्लामिक काल से पहले भी इसे पवित्र (आबे ज़म-ज़म) ही माना जाता था।

रावण की तपस्‍या से प्रसन्‍न होकर भगवान शिव ने रावड़ को एक शिवलिंग प्रदान किया जिसें लंका में स्‍थापित करने का कहा और बाद जब रावड़ आकाश मार्ग से लंका की ओर जाता है पर रास्ते में कुछ ऐसे हालत बनते हैं की रावण को शिवलिंग धरती पर रखना पड़ता है। वह दुबारा शिवलिंग को उठाने की कोशिश करता है पर खूब प्रयत्न करने पर भी लिंग उस स्थान से हिलता नहीं। वेंकटेश पण्डित के अनुसर यह स्थान वर्तमान में सऊदी अरब के मक्का नामक स्थान पर स्थित है।

सऊदी अरब के पास ही यमन नामक राज्य भी है जहाँ श्री कृष्ण ने कालयवन नामक राक्षस का विनाश किया था। जिसका जिक्र श्रीमदभगवत पुराण में भी आता है।

पहले राजा भोज ने मक्का में जाकर वहां स्थित प्रसिद्ध शिव लिंग मक्केश्वर महादेव का पूजन किया था, इसका वर्णन भविष्य-पुराण में निम्न प्रकार है :-
"नृपश्चैवमहादेवं मरुस्थल निवासिनं !
गंगाजलैश्च संस्नाप्य पंचगव्य समन्विते :
चंद्नादीभीराम्भ्यचर्य तुष्टाव मनसा हरम !
इतिश्रुत्वा स्वयं देव: शब्दमाह नृपाय तं!
गन्तव्यम भोज राजेन महाकालेश्वर स्थले !!

बाबर नरसंहारक,babar was terrorist

बाबर नरसंहारक, लुटेरा,बलात्कारी,शराबी और नशेड़ी था.भारत का युद्ध अपराधी है.
प्रमाण इस दरिन्दे की लिखी जीवनी बाबरनामा सेदिए जा रहे हैं. इसके और अधिक कारनामे जानने के लिए पूरी पुस्तक पढ़ लें.
पृष्ठ २३२- वह लिखता है कि उसकी सेना ने निरपराध अफगानों के सिर काट लिए जो उसके साथ शान्ति की बात करने आ रहे थे. इन कटे हुए सिरों से इसने मीनार बनवाई. ऐसा ही कुछ इसने हंगू में किया जहाँ २००अफगानियों के सिर काट कर खम्बे बनाए गए.
पृष्ठ ३७०- क्योंकि बाजौड़ में रहने वाले लोग दीन(इस्लाम) को नहीं मानते थे इसलिए वहां ३०००लोगों का क़त्ल कर दिया गया और उनके बीवी बच्चों को गुलाम बना लिया गया.
पृष्ठ ३७१- गुलामों में से कुछों के सिर काटकर काबुल और बल्ख भेजे गए ताकि फतह की सूचना दी जा सके.
पृष्ठ ३७१- कटे हुए सिरों के खम्बे बनाए गए ताकि जीत का जश्न मनाया जा सके.
पृष्ठ ३७१- मुहर्रम की एक रात को जश्न मनाने के लिए शराब की एक महफ़िल जमाई गयी जिसमें हमने पूरी रात पी. (पूरे बाबरनामा में जगह जगहऐसी शराब की महफ़िलों का वर्णन है.ध्यान रहे कि शराब इस्लाम में हराम है.)
पृष्ठ ३७३- बाबर ने एक बार ऐसा नशा किया कि नमाज पढने भी न जा सका. आगे लिखता हैकि यदि ऐसा नशा वह आज करता तो उसे पहले से आधा नशा भी नहीं होता.
पृष्ठ ३७४- बाबर ने अपने हरम की बहुत सी महिलाओं से बहुत से बच्चे उत्पन्न किये.उसकी पहली बेगम ने उससे वादा किया कि वह उसके हर बच्चे को अपनाएगी चाहे वे किसी भी बेगम से हुए हों,ऐसा इसलिए क्योंकि उसके पैदा किये कुछ बच्चे चल बसे थे. यह तो जाहिर ही है कि इसके हरम बनाम मुर्गीखाने में इसकी हवस मिटाने के लिएकुछ हजार औरतें तो होंगी ही जैसे कि इसके पोते स्वनामधन्य अकबर के हरम में पांच हजार औरतें थीं जो इसकी ३६(छत्तीस) पत्नियों से अलग थीं. यह बात अलग है कि इसका हरम अधिक तर समय सूना ही रहता होगा क्योंकि इसको स्त्रियों से अधिक पुरुष और बच्चे पसंद थे ! और बाबरी नाम के बच्चे में तो इसके प्राण ही बसे थे.
पृष्ठ ३८५-३८८- अपने बेटे हुमायूं के पैदा होने पर बाबर बहुत खुश हुआ था, इतना कि इसका जश्न मनाने के लिए अपने दोस्तों के साथ नाव में गया जहां पूरी रात इसने शराब पी और नशीली चीजें खाकर अलग से नशा किया. फिर जब नशा इनके सिरों में चढ़ गया तो आपस में लड़ाई हुई और महफ़िल बिखर गयी.इसी तरह एक और शराब की महफ़िल में इसने बहुत उल्टी की और सुबह तक सब कुछ भूल गया.
पृष्ठ ५२७- एक और महफ़िल एक मीनारों और गुम्बद वाली इमारत में हुई थी जो आगरा में है. (ध्यान रहे यह इमारत ताजमहल ही है जिसे अधिकाँश सेकुलर इतिहासकार शाहजहाँ की बनायी बताते हैं, क्योंकि आगरा में इस प्रकार की कोई और इमारत न पहले थी और न आज है! शाहजहाँ से चार पीढी पहले जिस महल में उसके दादा ने गुलछर्रे उड़ाए थे उसे वह खुद कैसे बनवा सकता है?)
बाबरनामा का लगभग हर एक पन्ना इस दरिन्दे के कातिल होने, लुटेरा होने, और दुराचारी होने का सबूत है.यहाँ यह याद रखना चाहिए कि जिस तरह बाबर यह सब लिखता है, उससे यह पता चलता है कि उसे इन सब बातों का गर्व है, इस बात का पता उन्हें चल जाएगा जो इसके बाबरनामा को पढेंगे. आश्चर्य इस बात का है कि जिन बातों पर इसे गर्व था यदि वे ही इतनी भयानक हैं तो जो आदतें इसकी कमजोरी रही होंगी, जिन्हें इसने लिखा ही नहीं, वे कैसी क़यामत ढहाने वाली होंगी?सारांश
१.यदि एक आदमी समलैंगिक होकर भी मुसलमान हो सकता है, बच्चों के साथ दुराचार करके भी मुसलमान हो सकता है, चार से ज्यादा शादियाँ करके भी मुसलमान हो सकता है, शराब पीकर नमाज न पढ़कर भी मुसलमान हो सकता है, चरस, गांजा,अफीम खाकर भी मुसलमान हो सकता है, हजारों लोगों के सिर काटकर उनसे मीनार बनाकर भी मुसलमान हो सकता है, लूट और बलात्कार करके भी मुसलमान हो सकता है तो फिर वह कौन है जो मुसलमान नहीं हो सकता? क्या इस्लाम इस सब की इजाजत देता है? यदि नहीं तो आज तक किसी मौलवी मुल्ला ने इस विषय पर एक शब्द भी क्यों नहीं कहा?
२. केवल यही नहीं, जो यह सब करके अपने या अपने पुरुष आशिक के नाम की मस्जिद बनवा दे, ऐसी जगह को मस्जिद कहना हराम नहीं है क्या? क्या किसी बलात्कारी सम लैंगिक शराबी व्यभिचारी के पुरुष आशिक के नाम की मस्जिद में अता की गयी नमाज अल्लाह को क़ुबूल होगी? यदि हाँ तो अल्लाह ने इन सबको हराम क्यों बताया? यदि नहीं तो अधिकतर मुसलमान और मौलवी इस जगह को मस्जिद कहकर दंगा फसाद क्यों कर रहे हैं? क्या इसका टूटना इस्लाम पर लगे कलंक को मिटाने जैसा नहीं था? क्या यह काम खुद मुसलमानों को नहीं करना चाहिए था?
३. जब इस दरिन्दे बाबर ने खुद क़ुबूल किया है कि इसने हजारों के सिर कटवाए और कुफ्र को मिटाया तो फिर आजकल के जाकिर नाइक जैसे आतंकी मुल्ला यह क्यों कहते हैं कि इस्लाम तलवार के बल पर भारत में नहीं फैला? जब खुद अकबर (जिसको इतिहासकारों द्वारा हिन्दुओं का रक्षक कहा गया है और जान ए हिन्दुस्तान नाम से पुकारा गया है) जैसा नेकदिल (?) भी हजारों हिन्दुओं के सिरों को काटकर उनके खम्बे बनाने में प्रसिद्ध था तो फिर यह कैसे माना जाए कि इस्लामतलवार से नहीं फैला? क्या ये लक्षण शान्ति से धर्म फैलाने के हैं? फिर इस्लाम का मतलब ‘शान्ति’ कैसे हुआ?
४.भारत,पाकिस्तान, अफगानिस्तान, बंगलादेश में रहने वाले सब मुसलमानों के पूर्वज हिन्दू ही थे, जो हजारों सालों से यहाँ रहते आ रहे थे. जब बाबर जैसे और इससे भी अधिक दरिंदों ने आकर यहाँ मारकाट बलात्कार और तबाही मचाई,सिरों को काटकर मीनारें लहरायीं तो दहशत के इस वातावरण में बहुत से हिन्दुओं ने अपना धर्म बदल लिया और उन्हीं लाचार पूर्वजों की संतानें आज मुसलमान होकर अपने असली धर्म के खिलाफ आग उगल रही हैं.
जिन मुसलमानों के बाबरी मस्जिद(?) विध्ध्वंस पर आंसू नहीं थम रहे, जो बार बार यही कसम खा रहे हैं कि बाबरी मस्जिद ही बनेगी, जो बाबर को अपना पूर्वज मान बैठे हैं, ज़रा एक बार खुद से सवाल तो करें- क्या मेरे पूर्वज अरब, तुर्क या मंगोल से आये थे? क्या मेरे पूर्वज इस भारत भूमि की पैदावार नहीं थे? कटे हुए सिरों की मीनारें देखकर भय से धर्म परिवर्तन करने वाले पूर्वजों के वंशज आज कौन हैं, कहाँ हैं, क्या कभी सोचा है? क्या यह विचार कभी मन में नहीं आता कि इतने कत्लेआम और बलात्कार होने पर विवश माता पिताओं के वे लाल आज कहाँ हैं कि जिन्हें अपना धर्म, माता, पिता सब खोने पड़े? क्या भारत, पाकिस्तान, अफगानिस्तान, बंगलादेश में रहने वाले ७०-८० करोड़ मुसलमान सीधे अरबों, तुर्कों के वंशज हैं? कभी यह नहीं सोचा कि इतने मुसलमान तो अरब, तुर्क, ईरान, ईराक में मिला कर भी नहीं हैं जो इस्लाम के फैलाने में कारण बने? क्या तुम्हारे पूर्वज राम को नहीं मानते थे? क्या बलपूर्वक अत्याचार के कारण तुम्हारे पूर्वजों का धर्म बदलने से तुम्हारा पूर्वज राम की बजाय बाबर हो जाएगा? अगर नहीं तो आज अपने असली पूर्वज राम को गाली और अपने पूर्वजों के कातिल और बलात्कारी बाबर का गुणगान क्यों?
५.अयोध्या की तरह काशी, मथुरा और हजारों ऐसी ही जगहें जिन्हें मस्जिद कह कर इस्लाम का मजाक उड़ाया जाता है, जो बाबर की तरह ही इसके पूर्वजों और वंशजों की हवस की निशानियाँ हैं, इनको मुसलमान खुद क्यों मस्जिद मानने से इनकार नहीं करते?
६.यदि बाबरी ढांचा टूटना गलत था तो राम मंदिर टूटना गलत क्यों नहीं था? यदि राम मंदिर की बात पुरानी हो गयी है तो ढांचा टूटने की बात भी तो कोई नयी नहीं! तो फिर उस पर हायतौबा क्यों?
अंत में हम कहेंगे कि जिस तरह भारत में रहने वाले हिन्दू मुसलमानों के पूर्वजों पर अत्याचार और बलात्कार करने वाले वहशी दरिन्दे बाबर के नाम का ढांचा आज नहीं है उसी तरह बाकी सब ढांचे जो तथाकथित इस्लामी राज्य के दौरान मंदिरों को तोड़कर बनवाये गए थे, जो सब हिन्दू मुसलमानों के पूर्वजों के अपमान के प्रतीक हैं, उनको अविलम्ब मिट्टी में मिला दिया जाए और इसकी पहल हमारे खून के भाई मुसलमान ही करें जिनके साथ हमारा हजारों लाखों सालों का रक्त सम्बन्ध है. इस देश में रहने वाले किसी आदमी की, चाहे वह हिन्दू हो या मुसलमान, धमनियों में दरिन्दे जानवर बाबर या अकबर का खून नहीं किन्तु राम, कृष्ण, महाराणा प्रताप और शिवाजी का खून है. और इस एक खून की शपथ लेकर सबको यह प्रण करना है कि अब हमारे पूर्वजों पर लगा कोई कलंक भी देश में नहीं रह पायेगा. क्या दृश्य होगा कि हिन्दू और मुसलमान एक साथ अपने एक पूर्वजों पर लगे कलंकों को गिराएंगे और उस जगह अपने पूर्वजों की यादगार के साथ साथ उनके असली धर्म वेद की पाठशाला बनायेंगे जहां राम और कृष्ण जैसे धर्मयोद्धा तैयार होंगे कि फिर कोई बाबर आकर इस भूमि के पुत्रों को उनके माता पिता, दोस्तों और धर्म से अलग न कर सके! और तब तक के लिए, आओ हम सब हिन्दू और मुस्लिम भाई मिलकर हर साल पूरे उत्साह के साथ ६ दिसंबर के पावन पर्व को ‘शौर्य दिवस’ और ‘गौरव दिवस’ के रूप में मनाएं. हाँ, मथुरा और वाराणसी में ऐसे ही वहशी दरिन्दे ‘औरंगजेब’ के बनाये ढांचें – जो इस्लाम के पावन नाम पर बदतर कलंक है - उनको मिटाने का सौभाग्य हमारे मुस्लिम भाइयों को ही मिले.

Sunday, September 13, 2015

जागो हिन्दुस्तानी Beware of Vatican conversion-Worse than Islam.

💥प्रश्न - साधू-संतो के पास करोड़ो की संपत्ति है । साधू-संतो को इतनी संपत्ति की क्या जरुरत है? साधू को तो अपरिग्रही होना चाहिए ?

​​💥उत्तर : रोमन केथोलिक चर्च का एक छोटा राज्य है जिसे वेटिकन बोलते है । अपने धर्म के प्रचार के लिए वे हर साल​ 171,600,000,000
डॉलर खर्च करते है । तो उनके पास कुल कितनी संपत्ति होगी?

💥वेटिकन के किसी भी व्यक्ति को पता नहीं है कि उनके कितने व्यापार चलते है ।
💥रोम शहर में 33% इलेक्टोनिक, प्लास्टिक, एर लाइन, केमिकल और इंजीनियरिंग बिजनेस वेटिकन के हाथ में है ।
💥दुनिया में सबसे बड़े shares​ वेटिकन के पास है ।
💥इटालियन बैंकिंग में उनकी बड़ी संपत्ति है और अमेरिका एवं स्विस बेंको में उनकी बड़ी भारी deposits है ।
💥ज्यादा जानकारी के लिए पुस्तक पढाना जिसका नाम है VATICAN EMPIRE

💥उनकी संपत्ति के आगे आपके भारत के साधुओं के करोड रुपये कोई मायना नहीं रखते ।

💥वे लोग खर्च करते है विश्व में धर्मान्तरण करके लोगों को अपनी संस्कृति, और धर्म से भ्रष्ट करने में 🚩और भारत के संत खर्च करते है लोगों को शान्ति देने में, उनकी स्वास्थ्य सेवाओं में, आदिवासियों और गरीबों की सेवा में, प्राकृतिक आपदा के समय पीडितों की सेवा में और अन्य लोकसेवा के कार्यों में ।

💥http://goo.gl/Pc1fhn
✨- डॉ.प्रेमजी
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मुस्लिम सिख ईसाई आपस मे सब भाई भाई--इससे बड़ी मूर्खता क्या होगी ?, Muslim terrorism started by Mohammed.

"हिंदू मुस्लिम सिख ईसाई आपस मे सब भाई भाई" नारा किसने दिया था ? यह नारा ही हिंदू और सिख मे फूट कराने वाला है क्योंकि हिंदू परिवार का बड़ा बेटा ही धर्म की रक्षा के लिए सिख बनता था | कृपया इस पर गंभीरता से सोच कर अपने विचार प्रकट करे |

ये तो समझ आता है के हिंदू, मुस्लिम, ईसाई पर सिखों को तुमने कहाँ से अलग बना दिया ? सिखों को हमारी गलती ने अलग बनाया मित्रों | सिख वह सिख जिस धर्म को गुरु गोविन्द सिंह जी ने शुरू किया उन्होंने कहा था "सकल विश्व में खालसा पंथ गाजे, जगे धर्म हिंदू सकल भंड भाजे" गुरु गोविन्द सिंह ने राम कि वंदना की है, गुरु गोविन्द सिंह ने चंडी चरित्र लिखा है, काली की उपासना की है, रामायण गुरुमुखी में लिखी |

आज गुरु ग्रन्थ साहिब उठाकर पढ़ो, पन्ने पन्ने पर राम अंकित है | उस पंथ को किसने अलग बना दिया | भूल गए वो इतिहास पंजाब में नारे गूजे है "मुस्लिम सिख भाई-भाई, हिंदू कौम कहाँ से आई" | तब हमारे दिमाग के अंदर ये बात क्यों नहीं आई की किसने गुरु तेग बहादुर की गर्दन कटवाई ? दिल्ली का शीशगंज गुरुद्वारा वहाँ हम जाते है शीश झुकाते है, उसका नाम शीशगंज क्यों है ? क्योंकि वहाँ बैठकर गुरु तेग बहादुर कि गर्दन कटी | जब औरंगजेब ने कहा था तुम इस्लाम स्वीकार करोगे तो तुम्हे छोड़ दिया जायेगा | लेकिन गुरु तेग बहादुर ने शीश दिया पर धर्म न त्यागा |

याद करे इतिहास अंगददेव तवे पर भून दिए गए, हमारे गुरु आरो से चीर दिए गए | आज मतिदास चौक बना हुआ है, आज लोग झगड रहे है मतिदास सिख था या हिंदू | अरे कोई भी था हिंदू था, गुरु का शिष्य था | वो गुरु जी राम की वंदना करते थे | उस मतिदास को आरे से चीर दिया गया | हमारा रक्तरंजित इतिहास है |

गुरुपुत्र जिन्हें सरहिंद में औरंगजेब ने खड़ा किया और कहा मुस्लिम धर्म स्वीकार करो | लेकिन नन्हे नन्हे उन बच्चो ने कहा हमे गुरु ग्रन्थ प्यारा है, हमे राम प्यारे है, हमे कृष्ण प्यारे है, यह भारत भूमि प्यारी है, हमे अपना हिंदू धर्म प्यारा है, वो बालक दीवारों में चुन दिए गए |

उन सिखों को आज इन नारों ने अलग बना दिया | अंग्रेजो में लार्ड मैकाले हुआ था, जिसने षड़यंत्र के तहत सिख धर्म स्वीकार किया और गलत तरीके से सिखों का इतिहास लिखा और बना दिया सिख हिंदू तो अलग अलग है | मुस्लिम सिख भाई भाई तो बताओ गुरु तेग बहादुर की गर्दन किसने कटवाई | गुरु पुत्रो के लिए दिवार किसने चिन्वायी | फिर भी नारा लगते है तो इससे बड़ी मूर्खता क्या होगी ?

Thursday, September 10, 2015

आचार्य चाणक्य...कौटिल्य

आचार्य चाणक्य...कौटिल्य..

माना जाता है कि चाणक्य ने ईसा से 370 वर्ष पूर्व ऋषि चणक के पुत्र के रूप में जन्म लिया था। वही उनके आरंभिक काल के गुरु थे। कुछ इतिहासकार मानते हैं कि चणक केवल उनके गुरु थे। चणक के ही शिष्य होने के नाते उनका नाम 'चाणक्य' पड़ा। उस समय का कोई प्रामाणिक इतिहास उपलब्ध नहीं है। इतिहासकारों ने प्राप्त सूचनाओं के आधार पर अपनी-अपनी धारणाएं बनाई। परंतु यह सर्वसम्मत है कि चाणक्य की आरंभिक शिक्षा गुरु चणक द्वारा ही दी गई। संस्कृत ज्ञान तथा वेद-पुराण आदि धार्मिक ग्रंथों का अध्ययन चाणक्य ने उन्हीं के निर्देशन में किया। चाणक्य मेधावी छात्र थे। गुरु उनकी शिक्षा ग्रहण करने की तीव्र क्षमता से अत्यंत प्रसन्न थे। तत्कालीन समय में सभी सूचनाएं व विधाएं धर्मग्रंथों के माध्यम से ही प्राप्त होती थीं। अत: धार्मिक पुस्तकों का अध्ययन शिक्षा प्राप्त का एकमात्र साधन था। चाणक्य ने किशोरावस्था में ही उन ग्रंथों का सारा ज्ञान ग्रहण कर लिया था।]

इन्होंने 'अर्थशास्त्र' नामक एक ग्रन्थ की रचना की, जो तत्कालीन राजनीति, अर्थनीति, इतिहास, आचरण शास्त्र, धर्म आदि पर भली भाँति प्रकाश डालता है। 'अर्थशास्त्र' मौर्य काल के समाज का दर्पण है, जिसमें समाज के स्वरूप को सर्वागं देखा जा सकता है। अर्थशास्त्र से धार्मिक जीवन पर भी काफ़ी प्रकाश पड़ता है। उस समय बहुत से देवताओं तथा देवियों की पूजा होती थी। न केवल बड़े देवता-देवी अपितु यक्ष, गन्धर्व, पर्वत, नदी, वृक्ष, अग्नि, पक्षी, सर्प, गाय आदि की भी पूजा होती थी। महामारी, पशुरोग, भूत, अग्नि, बाढ़, सूखा, अकाल आदि से बचने के लिए भी बहुत से धार्मिक कृत्य किये जाते थे। अनेक उत्सव, जादू टोने आदि का भी प्रचार था।

अर्थशास्त्र राजनीति का उत्कृट ग्रन्थ है, जिसने परवर्ती राजधर्म को प्रभावित किया। चाणक्य ने अर्थशास्त्र में वार्ता (अर्थशास्त्र) तथा दण्डनीति (राज्यशासन) के साथ आन्वीक्षिकी (तर्कशास्त्र) तथा त्रयी (वैदिक ग्रन्थों) पर भी काफ़ी बल दिया है। अर्थशास्त्र के अनुसार यह राज्य का धर्म है कि वह देखे कि प्रजा वर्णाश्रम धर्म का 'उचित पालन करती है कि नहीं।

: कौटिल्य ने ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्यों के लिए ब्रह्मचर्य, गृहस्थ, वानप्रस्थ तथा सन्न्यास आश्रमों का विधान किया है। किन्तु जब तक किसी व्यक्ति के ऊपर घरेलू दायित्व है, तब तक उसे वानप्रस्थ या सन्न्यास आश्रम में नहीं जाना चाहिए, ऐसा उनका मत है। इसी प्रकार जो स्त्रियां सन्तान पैदा कर सकती हैं, उन्हें सन्न्यास ग्रहण करने का उपदेश देना कौटिल्य की दृष्टि में अनुचित है। इससे स्पष्ट है कि कौटिल्य ने गृहस्थ आश्रम सुदृढ़ करने का अथक परिश्रम किया है।

चाणक्य (अनुमानतः ईसापूर्व ३७५ - ईसापूर्व २२५) चन्द्रगुप्त मौर्य के महामंत्री थे। वे 'कौटिल्य' नाम से भी विख्यात हैं। उन्होने नंदवंश का नाश करके चन्द्रगुप्त मौर्य को राजा बनाया। उनके द्वारा रचित अर्थशास्त्र राजनीति, अर्थनीति, कृषि, समाजनीति आदि का महान ग्रंन्थ है। अर्थशास्त्र मौर्यकालीन भारतीय समाज का दर्पण माना जाता है।

मुद्राराक्षस के अनुसार इनका असली नाम 'विष्णुगुप्त' था। विष्णुपुराण, भागवत आदि पुराणों तथा कथासरित्सागर आदि संस्कृत ग्रंथों में तो चाणक्य का नाम आया ही है, बौद्ध ग्रंथो में भी इसकी कथा बराबर मिलती है। बुद्धघोष की बनाई हुई विनयपिटक की टीका तथा महानाम स्थविर रचित महावंश की टीका में चाणक्य का वृत्तांत दिया हुआ है। चाणक्य तक्षशिला (एक नगर जो रावलापिंडी के पास था) के निवासी थे। इनके जीवन की घटनाओं का विशेष संबंध मौर्य चंद्रगुप्त की राज्यप्राप्ति से है। ये उस समय के एक प्रसिद्ध विद्वान थे, इसमें कोई संदेह नहीं। कहते हैं कि चाणक्य राजसी ठाट-बाट से दूर एक छोटी सी कुटिया में रहते थे।

लौकिक मामलों में राजा की शक्ति को सर्वोपरि मानता है, परन्तु कर्त्तव्यों के मामलों में वह स्वयं धर्म में बँधा है। वह धर्म का व्याख्याता नहीं, बल्कि रक्षक है। कौटिल्य ने राज्य को अपने आप में साध्य मानते हुए सामाजिक जीवन में उसे सर्वोच्च स्थान दिया है। राज्य का हित सर्वोपरि है जिसके लिए कई बार वह नैतिकता के सिद्धांतो को भी परे रख देता है।

कौटिल्य के अनुसार राज्य का उद्देश्य केवल शान्ति-व्यवस्था तथा सुरक्षा स्थापित करना नहीं, वरन् व्यक्ति के सर्वोच्च विकास में योगदान देना है।
यथार्थवादी होने के नाते कौटिल्य ने राज्य के व्यवहारिक पक्ष पर अधिक ध्यान केन्द्रित किया है। कौटिल्य का राज्य यद्यपि सर्वाधिकारी है, किन्तु वह जनहित के प्रति उदासीन नहीं है।
Meenu Ahuja

हिन्दू धर्म

आइये सच्चाई जाने।
हिन्दू धर्म :-1280 धर्म ग्रन्थ, 10000 से ज्यादा जातियां, एक लाख से ज्यादा उपजातियां, हज़ारों ऋषि मुनि, सेकड़ों भाषाएँ। फिर भी सब सभी मंदिरों में जाते हैं शांति, सहन शीलता से रहते है।
उपरोक्त तथ्य को हिन्दू धर्म की भव्यता के रूप में प्रचारित किया जाता है ।
आइये इसका विश्लेषण करे।
भिन्न भिन्न मतों भगवानो और पूजा पद्धतियों में बंटा हिन्दू समाज सिर्फ सभी मंदिरो में ही नहीं जाता बल्कि विदेशी धर्मो के स्थलो पर माथा टिका आता है , मोमबत्तियां जला आता है।
यह समाज तो अपने ही पूर्वजो के हत्यारो की कब्रो पर मजारो पर चादर चढ़ा आता है। जिस दिन मुसलमान हज़ारो गाय काट कर ईद मनाते है । यह भोला सा हिन्दू उन्हें इसकी भी बधाई दे आता है।
और एक दूसरे की धार्मिक मान्यताओं का सम्मान करने की विचारधारा को भव्यता का नाम दिया जाता है ।
ये भव्यता है या मूर्खता विचार करते है
हिन्दू एक दूसरे की धार्मिक भावना का सम्मान सिर्फ दो कारण से करता है ।
पहला: ना अपने धर्म का सत्य ज्ञान और ना दूसरे धर्म का सत्य ज्ञान । इसलिए लालच व मूर्खता वश हर एक के आगे झोली फैला कर खड़ा हो जाता है। कभी कभी तो ऐसे ऐसे मंदिरो के देवी देवताओं की भी पूजा करता है जहाँ पशुबलि होती है। सिर्फ इस सोच में की कही ये देवता नाराज़ ना हो जाए। इस अज्ञानता में यह मिटटी को ,कांच को ,प्लास्टिक को ,गोबर को , पत्थर को भगवान् मान कर पूजता है । इसकी अज्ञानता व लालच यही खत्म नहीं होता यह अपने मनोकामना की सिद्धि के लिए विवेक व पुरषार्थ का त्याग कर नशेड़ी भांग ,सुल्फा वाले बाबा को भी पूजने लगता है की कोई भी छूट ना जाए।
दूसरा कारण है भय । हिन्दू समाज ने 1000 साल की गुलामी भोगी है और अनेको कष्ट सहे है । यह भयभीत है कष्टो से दुखो से गुलामी से और इस भय के कारण सभी से नम्र बनकर रहता है । अत्याचारियो ओर आक्रांताओं को भी इस भय ने अतिथि बना दिया। संसार की सबसे वीर कहे जाने वाली हिन्दू जाति ने भी मुल्लो को अपना जमाई स्वीकार कर लिया ।
कब तक अपनी मूर्खता अज्ञानता कायरता और डर को अपनी भव्यता का नाम दोगे।
याद रखना ये भिन्न भिन्न जातीयाँ पूजा पद्धतियाँ अनेको भगवान् हमारी कमजोरी का सूचक है । हमारे विघटन का सूचक है।
आयो एक बने संघठित बने।
श्री राम व श्री कृष्ण की तरह आर्य बने । एक ईश्वर एक धर्म और एक ही पूजा पद्धति अपनाये जो श्री राम की थी जो बजरंग बली हनुमान की थी ।
आयो वेदों की शरण में आयो । जो श्रष्टी के आरंभ में ईश्वर प्रदत्त आज्ञाएं है । जाती व भिन्नता मुक्त आर्यो का समाज बनाये।
 
भारत की एक प्रमुख विशेषता उसकी अटूट चिन्तन-परम्परा है। भारत के मनीषियों ने बहिर्मुखी जीवन के प्रलोभनो एवं आकर्षणों से मन को हटाकर, अन्तर्मुखी प्रवृत्ति को प्रश्रय देकर तथा तत्व-जिज्ञासा से प्रेरित होकर,जीवन के चरम लक्ष्य पर गहन चिन्त्न किया। जीवन,जगत् और आत्मा के रहस्यों की खोज में उन्होने अनेक दर्शन-पद्धतियों का सृजन किया। 'दर्शन' का अर्थ 'देखना' है , न कि मात्र अनुमान पर आधारित विचार करना। इसी कारण भारत में दर्शन धर्म एवं जनजीवन का अंग बन गया, जब कि अन्य देशों में वह वाग्विलास के रुप में कुछ चिन्तकों तक ही सीमित रहा। वास्तव में , सत्य का अन्वेषण करना धर्म का प्रमुख लक्षण है। भारत की समस्त वैदिक एवं अवैदिक दर्शन-पद्धतियों के मूलसूत्र परस्पर जुडे हुए हैं और सबका लक्ष्य परम तत्व की खोज तथा जीवन में दु:ख का निराकरण एवं स्थायी सुख-शान्ति की स्थापना करना रहा है। बाह्य रुप में विभिन्न होते हुए भी उनमें लच्स क एकता स्पष्ट है। सभी अन्त:करण की पवित्रता को त्तवान्वेषण के लिए महत्वूपर्ण मानते हैं। संसार के प्राचीनतम ज्ञान-ग्रंथ वेद हैं तथा उपनिषद् उनके वैचारिक शिखर हैं।१ वैदिक ऋषियों ने धर्म(सत्य) का साक्षात्कार (अनुभव) किया, 'साक्षात्कृत- धर्माणो ऋषयो बभूवु:' ऋषियों ने मंत्रो के अन्तर्निहित सत्य् का दर्शन् (स्पष्ट अनुभव) किया। ऋषयो मत्रद्रष्टार:। वास्तव में उपनिषद् ऋषियों के अनुभव-जन्य् उदगारों के भण्डार हैं , जिन्हें मंत्रों के रुप में प्रतिष्ठित किया गया है और वे मात्र विचार अथवा मत नहीं हैं। उपनिषद वेदो के ज्ञानभाग हैं तथा उनमें कर्मकाण्ड की उपेक्षा की गयी है। यद्यपि वेदों मे अन्तिम सत्य को एक ही घोषित किया गया, उसको अनेक नाम दे दिये गये। उपनिषदों ने उसे 'ब्रह्म' (बड़ा) नाम दे दिया। वेदों ने जिन प्रश्नों के उत्तर नहीं दिए, उपनिषदों ने उनके भी उत्तर १. उपनिषदों के महत्व एवं विषयवस्तु की पर्याप्त् चर्चा हम 'ईशावास्य-दिव्यामृत' के 'प्रवेश' में कर चुके हैं तथा यहां उसकी पुनरावृत्थ्त् करना अनावश्यक है। सुधी पाठकों से हमारा अनुरोध है कि वे पृष्ठभूमि के रुप में उसे ध्यानपूर्वक् अवश्य पढ लें।(हमारी योजना के अन्तर्गत प्रमुख उपनिषदों की सरल टीकाओं के अतिरिक्त'अष्टावक्रगीतारसामृत'का प्रणयन तथा 'सूक्ष्म जगत् में प्रवेश : मन के उस ओर' इत्यादि की रचना करना भी है।) स्वामी विवेकानन्छ एवं श्री अरविन्द की रचनाएं उपनिषदों को समझने के लिए अत्यन्त उपयोगी हैं। डॉ० राधाकृष्णन की रचनाएं भी भारतीय दर्शन को समझने में अत्यन्त सहायक हैं। दे दिए। उपनिषद परमात्मा, जीवात्मा सृष्टि आदि विषयों का निरुपण करते हैं , किन्तु एक अद्वितीय ब्रह्म को अन्तिम सत्ता के रुप में प्रतिपादित करते हैं। यह एक आश्चर्य है कि सभी उपनिषद् भिन्न-भिन्न प्रकार से एक ही ब्रह्म का निर्वचन करते हैं तथा उपनिषदों में एक स्पष्ट तारतम्य है। ब्रह्म का साक्षात्कार ही जीवन का परम लक्ष्य है। प्रज्ञान ब्रह्म है,१ मैं ब्रह्म हूँ,२ वही तू है,३ यह आत्मा ब्रह्म है,४ ये चार महावाक्य हैं। सब कुछ ब्रह्म ही है।५ ब्रह्म सत्य है, ज्ञान है, अनन्त है।६ उपनिषदों के रचना-काल तथा उनकी संख्या का निर्णय करना कठिन है। प्रमुख उपनिषद् ग्यारह कहे गए हैं - ईश, केन, कठ, प्रश्न, मुण्डक्, माण्डूक्य्,ऐतरेय, तैत्तिरीय, श्वेताश्वतर, बृहदारण्यक तथा छान्दोग्य।शक्कराचार्य ने इन सब पर भाष्य लिखें है , यद्यपि कुछ विद्वानों ने श्वेताश्वतर उपनिषद के भाष्य को शक्कराचार्य-प्रणीत नहीं माना है। कौषीतकी तथा नृसिंहतापिनी उपनिषदों को सम्मिलित करने पर प्रमुख उपनिषदो की संख्या तेरह हो जाती है। अगणित वेद-शाखाएं,ब्राह्मण-ग्रन्थ,आरण्यक और उपनिषद विलुप्त हो चुके हैं। हमें ऋग्वेद के दस,कृष्ण यजुर्वेद के बत्तीस, सामवेद के सोलह, अथर्ववेद के इकतीस उपनिषद उपलब्ध हैं। वेदों पर आधारित ब्राह्मण-ग्रन्थों में यज्ञों की चर्चा है तथा उनसे सम्बद्ध आरण्यक हैं , जो अरण्यों (वनों) में उपदिष्ट हुए। प्राय: ब्राह्मण-ग्रन्थों एवं आरण्यकों के सूक्ष्म चिन्त्नपूर्ण अंश उपनिषद हैं। ब्राह्मण-ग्रन्थों और आरण्यकों को प्रधानत: कर्मकाण्ड क्हा जाता है तथा उपनिषद ज्ञानकाण्ड हैं। उपनिषद वैदिक-वाड्मय का नवनीत हैं। उपनिषदों मे प्रतिपादित ब्रह्म एक और अद्वितीय है। वह द्वैतरहित है। वह नित्य् और शाश्वत है, अचल है। ब्रह्म ही विश्व की एक मात्र सत्ता है। उपनिषदों में 'आत्मा' परमात्मा अथवा ब्रह्म का पर्यायवाची है। ब्रह्म निर्विशेष अथवा निर्गुण है। उसे निषेध द्वारा निर्गुण रुप में वर्णित किया जाता है- नेति नेति (यह भी नहीं, यह भी नहीं)। ब्रह्म बर्णन सेपरे है। 'स एष नेति नेति आत्मा' (बृहद० उप०, ४.४.२२) १. प्रज्ञानं ब्रह्म (ऐतरेय उप०, ३.१.३) अहं ब्रह्मस्मि ( बृहद० उप०, १.४.१० )३. तत्वमसि (छान्दोग्य उप०, ६ ४. अयमात्मा ब्रह्म (माण्डूक्य उप०, २) ५. सर्वं खल्विदं ब्रह्म (छान्दोग्य उप०, ३.१४.१ ) सत्यं ज्ञानं अनन्तं ब्रह्म (तैत्तिरीय उप०, २.१ ) वेद पर आधारित छह दर्शनशास्त्र सोपानात्म्क् हैं। मीमांसा में ईश्वर की प्रतिष्ठा नहीं हैं, यद्यपि वह वेद पर ही आधारित है। सांख्य,योग, न्याय और वैशेषिक स्वतंत्र हैं।वेदान्त छह शास्त्रों के सापान मे सर्वोपरि है। उपनिषद ही वेदान्त् अर्थात वेद का प्रतिपाद्य अन्तिम ज्ञान-भाग हैं। उपनिषदों में वेदान्त्-दर्शन सन्निहित है , अतएव दोनों पर्याय्वाची हो गए हैं। वेदान्त् का अर्थ है-वेदों का अन्त ,ध्येय, अर्थात प्रतिपाद्य अथवा सारतत्त्व। मनुष्य में अपने भीतर गहरे प्रवेश एवं सूक्ष्म अनुभवों द्वारा विश्व के समस्त रहस्यों का उद्घाटन करने की सामर्थ्य है।१ परब्रह्म परमात्मा की प्रच्छन्न शक्ति माया है। वेदान्त के अनुसार मायारहित ब्रह्म निर्गुण अथवा विशुद्ध ब्रह्म है तथा मायासहित (अथवा मायोपाधिविशिष्ट) ब्रह्म ही सगुण ब्रह्म, अपरब्रह्म अथवा ईश्वर है, जो सृष्टि की रचना करता है , कर्मफल देता है और भक्तों का उपास्य है। वह अन्तर्यामी है। वास्तव में दोनों परब्रह्म और अपरब्रह्म तत्तवत: एक ही है। प्राणियों के देह मे रहनेवाला जीवात्मा भी वास्तव में माया से मुक्त होने पर आत्मा ही है। ब्रह्म सत्य है अर्थात नित्य, शाश्वत तत्त्व है और जगत् मिथ्या अर्थात स्वप्नवत् असत् एवं नश्वर है तथा जीवात्मा अपने शुद्ध रुप में आत्मा ही है। ब्रह्म सत्यं जगन्मिथ्या जीवों ब्रह्मैव नापर:। संसार की व्यावहारिक सत्ता है, किन्तु तत्त्व-विचार से एक ब्रह्म की ही वास्तविक सत्ता अर्थात पारमार्थिक सत्ता है। ब्रह्म ही एक मात्र सत्य अर्थात शाश्वत तत्व है।
Meenu Ahuja

Wednesday, September 9, 2015

श्री गुरु गोविन्द सिंह जी

परम् वीर श्रद्धेय श्री गुरु गोविन्द सिंह जी..🙏

गुरु गोबिन्द सिंह (जन्म: २२ दिसम्बर १६६६, मृत्यु: ७ अक्टूबर १७०८) सिखों के दसवें गुरु थे। उनका जन्म बिहार के पटना शहर में हुआ था। उनके पिता गुरू तेग बहादुर की मृत्यु के उपरान्त ११ नवम्बर सन १६७५ को वे गुरू बने। वह एक महान योद्धा, कवि, भक्त एवं आध्यात्मिक नेता थे। उन्होने सन १६९९ में बैसाखी के दिन उन्होने खालसा पन्थ की स्थापना की जो सिखों के इतिहास की सबसे महत्वपूर्ण घटना मानी जाती है।

उन्होने मुगलों या उनके सहयोगियों (जैसे, शिवालिक पहाडियों के राजा) के साथ १४ युद्ध लड़े। धर्म के लिए समस्त परिवार का बलिदान उन्होंने किया जिसके लिए उन्हें 'सरबंसदानी' भी कहा जाता है। इसके अतिरिक्त जनसाधारण में वे कलगीधर, दशमेश, बाजांवाले आदि कई नाम,उपनाम व उपाधियों से भी जाने जाते हैं।

गुरु गोविंद सिंह जहां विश्व की बलिदानी परम्परा में अद्वितीय थे, वहीं वे स्वयं एक महान लेखक, मौलिक चिंतक तथा कई भाषाओं के ज्ञाता भी थे। उन्होंने स्वयं कई ग्रंथों की रचना की। वे विद्वानों के संरक्षक थे। उनके दरबार में ५२ कवियों तथा लेखकों की उपस्थिति रहती थी, इसीलिए उन्हें 'संत सिपाही' भी कहा जाता था। वे भक्ति तथा शक्ति के अद्वितीय संगम थे।

1695 में, दिलावर खान (लाहौर का मुगल मुख्य) ने अपने बेटे हुसैन खान को आनंदपुर साहिब पर हमला करने के लिए भेजा । मुगल सेना हार गई और हुसैन खान मारा गया। हुसैन की मृत्यु के बाद, दिलावर खान ने अपने आदमियों जुझार हाडा और चंदेल राय को शिवालिक भेज दिया। हालांकि, वे जसवाल के गज सिंह से हार गए थे। पहाड़ी क्षेत्र में इस तरह के घटनाक्रम मुगल सम्राट औरंगज़ेब लिए चिंता का कारण बन गए और उसने क्षेत्र में मुगल अधिकार बहाल करने के लिए सेना को अपने बेटे के साथ भेजा।

एक ही बाण से औरंगजेब पराजित
खालसा पंथ की स्थापना के बाद औरंगजेब ने पंजाब के सूबेदार वजीर खां को आदेश दिया कि सिखों को मारकर गोविन्द सिंह को कैद कर लिया जाये। गोविंद सिंह ने अपने मुट्ठी भर सिख जांबाजों के साथ मुगल सेना से डटकर मुकाबला किया और मुगलों को पीछे हटने पर मजबूर कर दिया।

तभी गोविंद सिंह ने कहा 'चिड़िया संग बाज लड़ाऊं, तहां गोबिंद सिंह नाम कहाऊं'। गोविंद सिंह ने मुगलों की सेना को चिड़िया कहा और सिखों को बाज के रूप में संबोधित किया। औरंगजेब इससे आग-बबूला हो गया। औरंगजेब के क्रोध को शांत करने के लिए मुगलों के सेनापति पाइंदा खां ने कहा कि 'मै गोविन्द सिंह से अकेला लडूंगा'। हमारी हार जीत से ही फैसला माना जाये।

पाइंदा खां का निशान अचूक था इसलिए औरंगजेब इस बात पर राजी हो गया। सिखों और मुगलों की सेना आमने-समाने डट गयी। गुरु गोविन्द सिंह ने पाइंदा खां से कहा कि चूंकि चुनौती तुम्हारी ओर से है, इसलिए पहला वार तुम करो। पाइंदा खां ने कहा, “ठीक है। तुमने मौत को न्योता दिया है। मेरा पहला वार ही आखिरी वार होगा।” फिर उसने धनुष पर बाण चढ़ाकर छोड़ा। गोविन्द सिंह ने पाइंदा खां का बाण बीच में ही काट दिया। अब बारी गोविन्द सिंह की थी। उन्होंने एक तीर छोड़ा और पाइंदा खां का सिर धड़ से अलग हो गया। सिख जीत गए, मुगलों को हार स्वीकार करनी पड़ी।Meenu Ahuja