Friday, May 22, 2015

मोतीलाल नेहरू, नेहरू परिवार,इंदिरा गांधी-खानदानी लुटेरे

http://saralnigam.blogspot.in/2011/12/blog-post_16.html पर खानदानी लुटेरे शीर्षक से एक पोस्ट डाली गई, जिसमें भारत के प्रथम प्रधानमंत्री स्व. जवाहर लाल नेहरु के व्यक्तिगत सचिव रहे जॉन मथाई की आत्मकथा को उद्दृत करते हुए नेहरू परिवार की वन्शाबली दी गई उनके शब्दों को यथावत लिखने में तो मुझे थोड़ी हिचक है, फिर भी कुछ शब्द परिवर्तन कर लिखती हूँ मकान न. 77, मीरगंज इलाहावाद में रहने वाली जद्दन बाई का सारा खर्चा स्व. मोतीलाल नेहरू उठाते थे लेख के अनुसार जद्दन बाई की माँ दलीपा बाई से मोतीलाल जी के सम्बन्ध थे जद्दन बाई दुनिया की पहली महिला संगीतकार व गायिका थीं, जिन्होंने फिल्मों में संगीत दिया जद्दन बाई के तीन विवाह हुए पहला निकाह नरोत्तमदास खत्री से हुआ, जिन्होंने विवाह के बाद मुस्लिम धर्म स्वीकार कर लिया, उन्हें लोग बच्ची बाबू कह कर बुलाते थे दूसरा निकाह उस्ताद मीर खान से हुआ जिनसे फिल्म अभिनेता अनवर हुसैन पैदा हुए तीसरा निकाह डॉ. उत्तमचंद मोहनचंद से हुआ, जो मुस्लिम बनने के बाद अब्दुल रशीद हो गया और बाद में आर्यसमाज के स्वामी श्रद्धानंद जी की ह्त्या का गुनहगार बना इस शादी से तीन बच्चे हुए सबसे बड़ी बेटी का नाम फातिमा रखा गया जो बाद में फिल्म अभिनेत्री नर्गिस बनी और उनका विवाह फिल्म अभिनेता सुनील दत्त से हुआ
स्व. मोतीलाल नेहरू की बैध पत्नी श्रीमती स्वरुप कुमारी बख्शी से दो संतानें थीं पहली श्रीमती कृष्णा w/o जयसुखलाल हाथी (पूर्व राज्यपाल) दूसरी श्रीमती विजय लक्ष्मी पंडित w/o श्री आर एस पंडित (पूर्व राजदूत रूस) मोतीलाल नेहरू का दूसरा विवाह कश्मीरी महिला रहमान बाई उर्फ़ थुस्सू से हुआ, जिनसे जवाहरलाल पैदा हुए लेख की अन्य बातों का मैं उल्लेख नहीं करती जिनमें मोतीलाल जी की रंगीनियत झलकती है किन्तु लेख में स्व. इंदिरा गांधी को लेकर कहा गया है कि उनके मुहम्मद यूनुस से सम्बन्ध थे


मुहम्मद यूनुस के उल्लेख से मुझे याद आया कि ये वही हैं जिनके बेटे आदिल शहरयार को अमरीकी जेल से छुड़वाने के बदले कथित रूप से स्व.राजीव गांधी ने भोपाल गैस काण्ड के मुख्य अभियुक्त वारेन एंडरसन को भारत से जाने दिया इतना ही नहीं तो आज के ही नया इंडिया समाचार पत्र के अनुसार तो भारत सरकार ने इस भीषण काण्ड के बाद अमरीकी अदालत में युनियन कार्बाईड के खिलाफ 33 बिलियन डॉलर का मुक़दमा ठोका था किन्तु अमरीका में मुआवजे संबंधी कड़े कानूनों को देखते हुए वह मुक़दमा बाद में भारत में चला, जिसकी लीपा पोती आज तक चल रही है
आखिर एक परिवार के राजतंत्र का कितना खामियाजा यह देश भोगता ? शायद इसीलिए सत्ता परिवर्तन हुआ किन्तु अटल जी की सदस्य्ता का जो लाभ इंदिरा जी ने उठाया, बैसा ही इतिहास दुबारा न दोहराया जाए तो अच्छा होगा वारेन एंडरसन मुद्दे पर श्वेत पत्र आना चाहिए वह देश के बाहर कैसे गया ? मुक़दमा अमरीका की अदालत में क्यों नहीं चला ? भारत के रेल मंत्री और बाद में बित्त मंत्री रहे जॉन मथाई की पुस्तक प्रिमिनेंसेस ऑफ़ नेहरू एज पर से प्रतिबन्ध हटाया जाना चाहिए |
इंदिरा जी के विवाह की दास्तान -
आनन्द भवन का असली नाम था इशरत मंजिल और उसके मालिक थे मुबारक अली मोतीलाल नेहरू पहले इन्हीं मुबारक अली के यहाँ काम करते थे। सभी जानते हैं की राजीव गाँधी के नाना का नाम था जवाहरलाल नेहरू लेकिन प्रत्येक व्यक्ति के नाना के साथ ही दादा भी तो होते हैं। फिर राजीव गाँधी के दादाजी का नाम क्या था? किसी को मालूम नहीं, क्योंकि राजीव गाँधी के दादा थे नवाब खान। एक मुस्लिम व्यापारी जो आनन्द भवन में सामान सप्लाई करता था और जिसका मूल निवास था जूनागढ गुजरात में। नवाब खान ने एक पारसी महिला से शादी की और उसे मुस्लिम बनाया। फिरोज इसी महिला की सन्तान थे और उनकी माँ का उपनाम था घांदी (गाँधी नहीं) घांदी नाम पारसियों में अक्सर पाया जाता था। विवाह से पहले फिरोज गाँधी ना होकर फिरोज खान थे और कमला नेहरू के विरोध का असली कारण भी यही था।
हमें बताया जाता है कि फिरोज गाँधी पहले पारसी थे यह मात्र एक भ्रम पैदा किया गया है। इन्दिरा गाँधी अकेलेपन और अवसाद का शिकार थीं। शांति निकेतन में पढ़ते वक्त ही रविन्द्रनाथ टैगोर ने उन्हें अनुचित व्यवहार के लिये निकाल बाहर किया था। अब आप खुद ही सोचिये एक तन्हा जवान लडक़ी जिसके पिता राजनीति में पूरी तरह से व्यस्त और माँ लगभग मृत्यु शैया पर पड़ी हुई हों थोड़ी सी सहानुभूति मात्र से क्यों ना पिघलेगी?
इंदिरा गांधी या मैमूना बेगम: इसी बात का फायदा फिरोज खान ने उठाया और इन्दिरा को बहला-फुसलाकर उसका धर्म परिवर्तन करवाकर लन्दन की एक मस्जिद में उससे शादी रचा ली। नाम रखा मैमूना बेगम। नेहरू को पता चला तो वे बहुत लाल-पीले हुए लेकिन अब क्या किया जा सकता था। जब यह खबर मोहनदास करमचन्द गाँधी को मिली तो उन्होंने नेहरू को बुलाकर समझाया। राजनैतिक छवि की खातिर फिरोज को मनाया कि वह अपना नाम गाँधी रख ले, यह एक आसान काम था कि एक शपथ पत्र के जरिये बजाय धर्म बदलने के सिर्फ नाम बदला जाये तो फिरोज खान घांदी बन गये फिरोज गाँधी। विडम्बना यह है कि सत्य-सत्य का जाप करने वाले और सत्य के साथ मेरे प्रयोग नामक आत्मकथा लिखने वाले गाँधी ने इस बात का उल्लेख आज तक नहीं नहीं किया।
खैर, उन दोनों फिरोज और इन्दिरा को भारत बुलाकर जनता के सामने दिखावे के लिये एक बार पुन: वैदिक रीति से उनका विवाह करवाया गया ताकि उनके खानदान की ऊँची नाक का भ्रम बना रहे। इस बारे में नेहरू के सेकेरेटरी एम.ओ. मथाई अपनी पुस्तक प्रेमेनिसेन्सेस ऑफ नेहरू एज (पृष्ठ 94 पैरा 2 (अब भारत में प्रतिबंधित है किताब) में लिखते हैं कि पता नहीं क्यों नेहरू ने सन 1942 में एक अन्तर्जातीय और अन्तर्धार्मिक विवाह को वैदिक रीतिरिवाजों से किये जाने को अनुमति दी जबकि उस समय यह अवैधानिक था का कानूनी रूप से उसे सिविल मैरिज होना चाहिये था । यह तो एक स्थापित तथ्य है कि राजीव गाँधी के जन्म के कुछ समय बाद इन्दिरा और फि रोज अलग हो गये थे हालाँकि तलाक नहीं हुआ था। फिरोज गाँधी अक्सर नेहरू परिवार को पैसे माँगते हुए परेशान किया करते थे और नेहरू की राजनैतिक गतिविधियों में हस्तक्षेप तक करने लगे थे। तंग आकर नेहरू ने फिरोज के तीन मूर्ति भवन मे आने-जाने पर प्रतिबन्ध लगा दिया था। मथाई लिखते हैं फिरोज की मृत्यु से नेहरू और इन्दिरा को बड़ी राहत मिली थी। 1960 में फिरोज गाँधी की मृत्यु भी रहस्यमय हालात में हुई थी जबकी वह दूसरी शादी रचाने की योजना बना चुके थे। बुरे कामो पर इन्दिरा ने हमेशा परदा डाला और उसे अपनी मनमानी करने कि छूट दी।

सरदार के “बारह बज गए” मुहावरे के पीछे का सच

 
सरदार के “बारह बज गए” मुहावरे के पीछे का सच।
एक सरदार पर जोक बनाना औए सुनाना कितना आसान होता है न । सर में पंगडी और बगल में कृपाण रखने वाले सरदार भी अक्सर आपके जोक्स और मजाक को भी नजरअंदाज करते हुए खुश रहते हैं.फिर भी आप उनसे बगैर पूँछे “सरदार जी के बारह बज गए” कहते हुए मजे लेते रहते हैं ।
ज्यादातर लोगों को लगता है की सरदार के चिल्ड नेचर और भाव-भंगिमाओं के कारण ही इस फ्रेज का लोग इस्तेमाल करते हैं ।
आज हम आपको बताते हैं की इस जुमले की पीछे की हकीकत क्या है,और निश्चित ही इसे पढ़कर इसका प्रयोग करने वालों को शर्मिंदगी जरूर महसूस होगी । आप ये समझ पायेंगे कि एक सरदार क्या होता है?
1) सत्रहवीं शताब्दी में जब देश में मुगलों का अत्याचार चरम पर था,बहुसंख्यक हिन्दुओं को धर्म-परिवर्तन के लिए अमानवीय यातनाएं दी जाती थीं,औरंगजेब के काल में ये स्थिति और बदतर हो गयी ।
2) मुग़ल सैनिक,धर्मान्तरण के लिए हिन्दू महिलाओं की आबरू को निशाना बनाते थे । अंततः दुर्दांत क़त्ल-ए-आम और बलात्कार से परेशान हो कश्मीरी पंडितों ने आनंदपुर में सिखों के नवमे गुरु तेग बहादुर से मदद की गुहार लगाई.
3) गुरु तेग बहादुर ने बादशाह ‘औरंगजेब’ के दरबार में अपने आपको प्रस्तुत किया और चुनौती दी कि यदि मुग़ल सैनिक उन्हें स्वयं इस्लाम कबूल करवाने में कामयाब रहे तो अन्य हिन्दू सहर्ष ही इस्लाम अपना लेंगे ।
4) औरंगजेब बेहद क्रूर था,परन्तु अपनी कौल का पक्का व्यक्ति था,गुरु जी उसके स्वभाव से परिचित थे । गुरूजी के प्रस्ताव पर उसने सहर्ष स्वीकृति दे दी । गुरु तेग बहादुर और उनके कई शिष्य मरते दम तक अत्याचार सहते हुए शहीद हो गए,पर इस्लाम स्वीकार नहीं किया । इस तरह अपने प्राणों की बलि देकर उन्होंने बांकी हिन्दुओं के हिंदुत्व को बचा लिया ।
5) इसी कारण उन्हें “हिन्द की चादर” से भी जाना जाता है,उनके देहावसान के बाद,उनके सुयोग्य बेटे गुरु गोविन्द सिंह जी ने हिंदुत्व की रक्षा के लिए आर्मी का निर्माण किया,जो कालांतर में ‘सिख’ के नाम से जाने गए ।
6) 1739 में जब इरानी आक्रांता नादिर शाह ने दिल्ली पर हमला करते हुए,हिन्दुस्तान की बहुमूल्य संपदा को लूटना शुरू कर दिया । इन हवसी आक्रमणकारियों ने करीब 2200 भारतीय महिलाओं को बंधक बना लिया.
7) सरदार जस्सा सिंह जो की सिख आर्मी के कमांडर-इन-चीफ थे,ने इन लुटेरों पर हमला करने की योजना बनायी । परन्तु उनकी सेना दुश्मन की तुलना में बहुत छोटी थी इसलिए उन्होंने आधी रात को बारह बजे हमला करने का निर्णय लिया ।
8) महज कुछ सैकड़ों की संख्या में सरदारों ने,कई हजार लुटेरों के दांत खट्टे करते हुए महिलाओं को आजाद करा दिया । सरदारों के शौर्य और वीरता से लुटेरों की नींद और चैन हराम हो गया.
9) यह क्रम नादिर शाह के बाद उसके सेनापति अहमद शाह अब्दाली के काल में भी जारी रहा । अब्दालियों और ईरानियों ने अब्दाल मार्केट में,हिन्दू औरतों को बेंचना शुरू कर दिया.सिखों ने अपनी मिडनाईट(12 बजे) में ही हमला करने की स्ट्रैटिजी जारी रखी और एक बार फिर दुश्मनों की आँखों में धुल झोंकते हुए महिलाओं को बचा लिया ।
10) सफलता पूर्वक लड़कियों और औरतों के सम्मान की रक्षा करते हुए,सिखों ने दुश्मनों और लुटेरों से अपनी इज्जत की हिफाजत की । रात 12 बजे के समय में हमला करते समय लुटेरे कहते थे “सरदारों के बारह बज गए”सरदार और सिख राष्ट्र की अमूल्य धरोहर हैं। सरदार के केश और कृपाण उसे अतुलित धैर्य और साहस से परिपूरित करते हैं ।
सरदार और सिख राष्ट्र की अमूल्य धरोहर हैं, सरदार के केश और कृपाण उसे अतुलित धैर्य और साहस से परिपूरित करते हैं । सिख एक महान कौम है,जिसने मध्यकाल में गुलामी की काली रात में सनातन और हिन्दुस्तान को स्वयं के प्राणों की बलि देकर बचाए रखा । गुरु गोविन्द सिंह जी की प्रसिद्द उक्ति है
सवा लाख से एक लडाऊं,तब मै गुरु गोविंद सिंह कहलाऊं
ऐसी वीरता,साहस और ईमानदारी के पर्याय सरदारों को “12 बज गए” कह कर चिढाना/हँसना बेहद शर्मनाक है । उन विदेशी लुटेरों से रक्षित स्त्रियों के वंशजों द्वारा ‘लुटेरों की ही टिप्पणी’ को दोहराना अनजाने में ही सही पर,किसी देशद्रोह से कम नहीं है।
सरदारों के “12 बज गए” एक ऐसा मुहावरा है जो की उन लुटेरों के ‘गीदड़पाने’ और हमारी वीरता का पर्याय है,इसे लाफिंग मैटर के रूप में नहीं बल्कि गर्व के रूप में कहिये।

नेताजी पर रहस्य‬

नेता जी सुभाषचंद्र बॉस की पर हम लोगो ने काफी कुछ पढ़ा है| बचपन मे पढ़ी इतिहास की किताबों मे नेता जी की कहानी को हम से हमेशा से दूर रखा गया था और कही उन के विषय मे कुछ लिखा हुआ था भी तो उस मे झूठ ही लिखा गया था|
नेता जी पर कुछ टॉप सीक्रेट फ़ाइल सार्वजनिक होने के बाद कहानी कुछ इस तरह हो गयी है कि कॉंग्रेस के भजन कीर्तन से क्रांति नही आ सकती और न इस से देश आज़ाद होगा इसलिए इस को समझते हुए नेता जी कॉंग्रेस से अलग हो गए थे और देश के युवाओ को " तुम मुझे खून दो मैं तुम को आज़ादी दूंगा" का नारा दे कर नेता जी अंग्रेज़ो से युद्ध की तैयारी करने लगे थे, जिस के बाद नेता जी को अंग्रेज़ो ने उन के घर मे नज़रबंद कर दिये था| परंतु देश के लिए अपना सब कुछ समर्पित करने वाले नेता जी ने भेष बदल कर बंगाल से अफगानिस्तान के काबुल शहर मे रूस के दूतावास की मदद अफगानिस्तान छोड़ कर दिये थे| जिस के बाद नेता जी जर्मनी और जापान गए| जहां उन्होने हिटलर से मुलाक़ात की और उस से भारत के अंग्रेज़ो पर हमला करने की बात की और उस से हथियार और सेना मांगी| फिर बाद मे नेता जी ने रासबिहारी बोस जी की मदद से अंग्रेज़ो के लिए लड़ रहे भारतीय सैनिको मे देश के प्रति देशप्रेम जागा कर और आत्मसम्मान जागा कर "आजाद हिन्द फौज" बनाई|
जिस के बाद आजाद हिन्द फौज ने अँग्रेजी सेना पर हमला कर दिया था| जिस समय आजाद हिन्द फौज वर्मा के जगलों मे अँग्रेजी- भारतीय सेना से जंग कर रही थी उस समय कॉंग्रेस देश के लोगो का ध्यान नेता जी से हटा कर देश के युवको का जोश बर्बाद करने का काम कर रही थी|
आज़ाद हिन्द फौज उस समय कई मुसबितों का सामना कर रही थी -
1 - उस के पास राशन और हथियारो की कमी थी
2 - उस समय देश मे कभी भी बारिश नही होती थी परंतु जिस समय फौज ने अँग्रेजी सेना पर हमला की उस समय आजाद हिन्द फौज जंगल मे थी और उस समय बेमौसम बारिश होनी शुरू हो गयी जिस के कारण फौज बीमार होने लगी
3 - उस ही समय बंगाल मे अकाल पड़ रहा था
नेता जी एक रंगून मे एक सभा की जिस मे नेता जी की बात सुन कर लोगो ने नेता जी को अपने पैसे राशन लड़के आदि सब कुछ दे दिया | नेता जी के कुछ जासूस अंग्रेज़ो की छावनी मे जाते थे जहां से वह हथियार चुरा के भी लाते थे| उन के जासूसो पर अभी एक Documentary The EPIC Channel चैनल ने अपने सिरियल अद्रश्य मे दिखाया था| नेता जी के पास लोगो के दिये हुए पैसे थे, औरतों के जेवर-गहने यहाँ तक की मंगलसूत्र तक दान मे आए थे| आज़ाद हिन्द फौज के खजाने फौज के लिए काफी पैसे भी आए थे|
उस के बाद फौज ने एक लड़कियों की बटालियन भी बनाई जिस की कैप्टन डॉक्टर लक्ष्मी शहगल को बनाया गया था| फौज के काम की जानकारी आम जनता तक कॉंग्रेस नही आने दे रही थी और न ही अंग्रेस क्यूकि उन को डर था कि अगर आज़ाद हिन्द फौज के काम के विषय मे आम जनता को पता चल गया तो देश के लोग कॉंग्रेस के भजन कीर्तन को छोड़ कर फौज के साथ मिल कर अंग्रेज़ो को मर भागा देंगे| और कॉंग्रेस की ड्रामेबाजी लोग छोड़ देंगे क्यूकि वह सिर्फ देश के लोगो का समय बर्बाद कर रही थी|
आज़ाद हिन्द फौज ने भारत के कई हिस्से को अंग्रेज़ो से आज़ाद करवा दिया था| लेकिन तभी अमरीका ने हिरोशिमा और नागासाकी पर परमाणु बम डाल दिये थे जिस के बाद जापान सेना ने आजाद हिन्द फौज की मदद करने से मना कर दिया|
जिस के बाद नेता जी ने अपनी सभी फौज को डिस्मिस कर दिया था| फौज के जवान को अंग्रेज़ो ने पकड़ लिया था| इस की खबर मिलते ही अलग-अलग देशो मे अंग्रेज़ो के लिए लड़ने वाले भारतीय सैनिक देश मे वापस आ गए थे और वह इंतज़ार कर रहे थे कि अब फौज के साथ क्या होगा ? अंग्रेज़ो को डर था कि अगर हम ने फौज के जवानो को फांसी दे दी तो हमारी फौज के भारतीय सैनिक और विदेशो से आए सैनिक और देश की जनता बगावत कर सकती है इसलिए उस ने किसी भी जवान को फांसी नही दी|
तभी खबर आई कि नेता जी का हवाईजहाज दुर्घटनाग्रस्त हो गया है जिस पर नेता जी के भाई ने बोला था कि ऐसा हो ही नही सकता उन को रूस की आर्मी ने पकड़ा दिया है और बाद मे नेहरू के कहने पर उन को जहर दे कर मर दिया गया
अब इस बात की पुष्टि इसलिए भी होती है कि हाल ही मे आई रिपोर्ट के अनुसार नेता जी की जासूसी आज़ादी के बाद तक नेहरू ने कारवाई थी और अभी फिर एक रिपोर्ट आई है कि आज़ाद हिन्द फौज के खजाने को भी नेहरू ने लूटने दिया था
मैं सिर्फ इतना कहना चाहती हूँ कि हमारे बच्चे अपनी किताबों मे अब सच पढे, हमारी तरह झूठ नही जय हिन्द
वंदे मातरम
यह एक अत्यंत महत्वपूर्ण पोस्ट है इसे पढ़ने के बाद नेताजी पर कोई रहस्य आपके मन में नही रह जायेगा इसको शेयर अवश्य कर दे जिससे आपके सहयोग से इसे अधिक से अधिक लोग पढ़ सके निवेदन हैं आप से...
Source -
- http://swarajyamag.com/…/vilifying-netaji-to-shield-pandit…/
- http://www.business-standard.com/…/the-inheritors-115042400…
- http://epaper.panchjanya.com/epaper.aspx…
- http://www.dailyo.in/…/subhas-chandra-bos…/story/1/3443.html
- http://www.dailyo.in/…/subhas-chandra-bos…/story/1/3443.html
- http://timesofindia.indiatimes.com/…/articlesh…/46952078.cms
- http://timesofindia.indiatimes.com/…/articlesh…/46964624.cms
- http://timesofindia.indiatimes.com/…/articlesh…/46964624.cms
- http://www.bbc.co.uk/…/multimedia/2015/04/150417_sc_bose_vi…
- http://timesofindia.indiatimes.com/…/articlesh…/46963385.cms
- http://www.dailypioneer.com/…/declassify-netaji-files-and-d…
- http://www.mumbaimirror.com/…/Not-…/articleshow/46973567.cms
- http://www.mumbaimirror.com/…/Not-…/articleshow/46973567.cms
- http://swarajyamag.com/politi…/ib-spied-on-ina-veterans-too/
http://www.bbc.co.uk/…/150418_subhash_chandra_bose_controve…
- http://blogs.timesofindia.indiatimes.com/…/of-netaji-nehru…/
- http://www.newsx.com/opin…/truth-about-bose-must-be-revealed
- http://www.sunday-guardian.com/…/pressure-was-put-on-netaji…
http://www.telegraphindia.com/115…/…/nation/story_14871.jsp…
- http://www.gandhiashramsevagram.org/…/gandhi-letter-to-ever…
- http://blogs.timesofindia.indiatimes.com/…/mystery-lives-o…/

महाराणा प्रताप

महाराणा प्रताप जी, जिन के विषय मे हम लोग बचपन से सुनते और पढ़ते आ रहे है आज सुबह से कई देशी और विदेशी विश्वविधालयों की Digital पुस्तकालयों से महाराणा प्रताप जी के विषय पर कई किताबे पढ़ने के बाद हम को कुछ अच्छी किताब मिली है जिस मे आप को उन के विषय मे कुछ नयी जानकारी मिलेगी उन किताबों को यहाँ पोस्ट कर रही हूँ लेकिन आपको उससे पहले एक एक सच्ची ऐतहासिक घटना बताती हु जिससे आप स्वय समझ जायेगे की हमारा सही इतिहास को जानना कितना आवश्यक हैं –
इस देश के कांग्रेसी और वामपंथी इतिहासकारों से अच्‍छे तो विदेशी इतिहासकार कर्नल जेम्‍स टाड हैं, जिनके कारण हमें मेवाड़ का वास्‍तविक इतिहास का पता चलता है। अकबर ने 10 वर्ष लगाकर मेवाड़ के जिन क्षेत्रों को विजित किया था, महाराणा प्रताप ने अपने पुत्र अमर सिंह के साथ मिलकर केवल एक वर्ष में न केवल उन क्षेत्रों को जीत लिया, बल्कि उससे कहीं अधिक क्षेत्र अपने राज्‍य में मिला लिया, जो उन्‍हें राज्‍यारोहण के वक्‍त मिला था।
जेम्‍स टाड लिखते हैं, ''एक बेहद कम समय के अभियान में महाराणा ने सारा मेवाड़ पुन: प्राप्‍त कर लिया, सिवाय चित्‍तौड़, अजमेर और मांडलगढ़ को छोड़कर। अकबर के सेनापति मानसिंह ने राणा प्रताप को चेतावनी दी थी कि तुम्‍हें 'संकट के दिन काटने पड़ेंगे'। महाराणा ने संकट के दिन काटे और जब वह वापस लौटे तो प्रतिउत्‍तर में और भी उत्‍साह से मानसिंह के ही राज्‍य आंबेर पर हमला कर दिया और उसकी मुख्‍य व्‍यापारिक मंडी मालपुरा को लूट लिया।''
'मेवाड़ के महाराणा और शहंशाह अकबर' पुस्‍तक के लेखक राजेंद्र शंकर भटट ने लिखा है, ''हल्‍दीघाटी के बाद प्रताप ने चांवड को मेवाड़ की नयी राजधानी बनायी और यहां बैठकर अपने सैनिक व शासन व्‍यवस्‍था को सुदृढ किया। प्रताप का पहला कर्त्‍तव्‍य मुगलों से अपने राज्‍य को मुक्‍त कराना था, लेकिन यह इतनी जल्‍दी नहीं हो सकता था। उन्‍होंने साल-डेढ साल तक जन-धन, आवश्‍यक साधन व संगठन का प्रबंध किया और मुगल साम्राज्‍य पर चढ़ाई कर दिया। अपने पुत्र अमर सिंह के नेतृत्‍व में उसने दो सेनाएं संगठित कीं और दोनों दिशाओं से मुगलों के अधिकृत क्षेत्र पर आक्रमण कर दिया। शाही थाने और चौकियां एक एक कर मेवाड़ी सैनिकों के कब्‍जे में तेजी से आते गए। अमरसिंह तो इतनी तीव्रता से बढ रहा था कि एक दिन में पांच मुगल थाने उसने जीत लिए। एक वर्ष के भीतर लगभग 36 थाने खाली करा लिए गए, मेवाड़ की राजधानियां उदयपुर तथा गोगूंदा, हल्‍दीघाटी का संरक्षण करने वाला मोही और दिवेर के पास की सीमा पर पडने वाला भदारिया आदि सब फिर से प्रताप के कब्‍जे में आ गए। उत्‍तर पूर्व में जहाजपुरा परगना तक की जगह और चितौड से पूर्व का पहाडी क्षेत्र भी मुगलों से खाली करवा लिया गया। सिर्फ चितौड तथा मांडलगढ और उनको अजमेर से जोडने वाला मार्ग ही मुगलों के हाथ में बचा, अन्‍यथा सारा मेवाड फिर से स्‍वतंत्र हो गया।''
वह लिखते हैं, ''जो सफलता अकबर ने इतना समय और साधन लगाकर प्राप्‍त की थी, जिस पर उसने अपनी और अपने प्रमुख सेनानियों की प्रतिष्‍ठा दाव पर लगा दी थी, उसे सिर्फ एक वर्ष में समाप्‍त कर प्रताप ने मित्र-शत्रु सबको आश्‍चर्य में डाल दिया।''
यहां यह जानने योग्‍य भी है कि अकबर ने जब चित्‍तौड को जीता था तब प्रताप के पिता महाराणा उदयसिंह मेवाड़ के राणा थे, न कि प्रताप। इस तरह से प्रताप ने अपने राज्‍यारोहण में प्राप्‍त भूमि से अधिक भूमि जीतकर अकबर को परास्‍त किया। प्रताप की इसी वीरता के कारण राजप्रशस्ति में 'रावल के समान पराक्रमी' कहा गया है।
मुझे आश्‍चर्य होता है कि अपनी मातृभूमि को मुगलों से बचा ले जाने वाला, अफगानिस्‍तान तक राज्‍य करने वाले अकबर को बुरी तरह से परास्‍त करने वाला महाराणा प्रताप आजादी के बाद कांग्रेसियों और वामपंथियों की लिखी पुस्‍तक में 'महान' और 'द ग्रेट' क्‍यों नहीं कहे गए। महाराणा प्रताप जैसों के वास्‍तविक इतिहास को दबाकर कांग्रेसी व वामपंथी इतिहासकारों ने यह तो दर्शा ही दिया है कि उन्‍होंने भारत का नहीं, बल्कि केवल शासकों का इतिहास लिखा है।
अगर आप महाराणा प्रताप जी का सही इतिहास पढ़ना चाहते हैं तो आप को किताब खरीदने की जरूरत नही है बस यही से download कर लो किताबो के नाम और लिंक -
1 – किताब का नाम - प्रताप चरितारत संक्षित चरित और विचारो का निदर्शन (हिन्दी)
लेखक – पंडित नंदकुमार देव शर्मा
Download और पढ़ने के लिए लिंक - https://archive.org/…/MaharanaPratapa-OnkaraNathaVajapeyii1…
2- किताब का नाम – वीर शिरोमणि महाराणा प्रताप (हिन्दी)
लेखक – रायबहादुर गौरीशंकर
Download और पढ़ने के लिए लिंक - https://archive.org/…/ViraShiromaniMaharanaPratapaSinha-Gsh…
3 – किताब का नाम – महाराणा प्रताप ऐतिहासिक नाटक (हिन्दी)
लेखक – श्री राधा कृष्णदास
Download और पढ़ने के लिए लिंक - https://archive.org/…/MaharanaPratapSingh-RadhaKrisnaDas192…
4- किताब का नाम – Maharana Pratap (English)
लेखक –Shri Ram Sharma
Download और पढ़ने के लिए लिंक - https://archive.org/…/…/MaharanaPratap-Eng-SriRamSharma1930…
5- किताब का नाम – Hindu Superiority (English)
लेखक – Har Bilas Sadar
Download और पढ़ने के लिए लिंक - http://vedickranti.in/download.php…
6 – किताब का नाम – वीरप्रतापनाटकम (संस्कृत)
लेखक – मथुरा प्रसाद दीक्षित
Download और पढ़ने के लिए लिंक - https://archive.org/…/VeerpratapaNatakam-Sanskrit-MpDikshit…
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आतंकवादी संगठन -जानवर मानवता जाति पर अत्याचार

आतंकवादी संगठन चाहे वो "ISIS" हो
आतंकवादी संगठन चाहे वो"अल-कायदा" हो
आतंकवादी संगठन चाहे वो "लश्कर-ए-तैयबा/पास्बां-ए-अहले हदीस" हो
आतंकवादी संगठन चाहे वो "जैश-ए-मोहम्मद/तहरीक-ए-फुरकान" हो
आतंकवादी संगठन चाहे वो "हरकत-उल-मुजाहिद्दीन/हरकत-उल-अंसार/हरकत-उल-जिहाद-ए-इस्लामी
दीनदार अंजुमन" हो
आतंकवादी संगठन चाहे वो "अल शबाब" हो
आतंकवादी संगठन चाहे वो "बोको हराम" आदि हो
या
आतंकवादी संगठन चाहे वो "बब्बर खालसा इंटरनेशनल" हो
आतंकवादी संगठन चाहे वो "खालिस्तान कमांडो फोर्स" हो
आतंकवादी संगठन चाहे वो "खालिस्तान जिन्दाबाद फोर्स" हो
आतंकवादी संगठन चाहे वो "यूनाइटेड लिबरेशन फ्रंट ऑफ आसाम (यू उल एफ ए)" हो
आतंकवादी संगठन चाहे वो "पीपुल्स लिबरेशन आर्मी ( पी एल ए)" हो
आतंकवादी संगठन चाहे वो "यूनाइटेड नेशनल लिबरेशन फ्रंट" (यू एन एल एफ) हो
आतंकवादी संगठन चाहे वो "पीपुल्स रिवोल्यूशनरी पार्टी ऑफ कांगलेपाक' (पी आर ई पी ए के) हो
आतंकवादी संगठन चाहे वो "कांगलेपाक कम्यूनिस्ट पार्टी' ( के सी पी) हो
आतंकवादी संगठन चाहे वो "कांगलेई याओल काम्बा लुप" ( के आई के एल) हो
आतंकवादी संगठन चाहे वो "मणिपुर पीपुल्स लिबरेशन फ्रंट' ( एम पी एल एफ) हो
आतंकवादी संगठन चाहे वो "ऑल त्रिपुरा टाइगर फोर्स' हो
आतंकवादी संगठन चाहे वो "नेशनल लिबरेशन फ्रंट ऑफ त्रिपुरा" हो
आतंकवादी संगठन चाहे वो " लिबरेशन टाइगर्स ऑफ तमिल ईलम" हो
आतंकवादी संगठन चाहे वो "अखिल भारतीय नेपाली एकता समाज" ( ए बी एन ई एस) हो
आतंकवादी संगठन चाहे वो "गारो नेशनल लिबरेशन आर्मी (जी एन एल ए) " आदि हो

यह सब एक ही जाति के जानवर हैं जो मानवता जाति पर अत्याचार करना अपना कर्तव्य समझते है और इन जैसे सभी आतंकी संगठननो की एक ही विचार धारा होती है वो है के हम जो कर रहें हैं वही सत्य है हम जैसा करते है वो सही करते हैं

राजीव गांधी: स्वीडिश कंपनी के दलाल थे-विकिलीक्स

राजीव गांधी: विकिलीक्स स्वीडिश कंपनी के दलाल थे....
विकिलीक्स ने खुलासा किया है कि राजीव गांधी प्रधानमंत्री बनने से पहले इंडियन एयरलाइंस के पायलट की नौकरी के दौरान स्वीडिश कंपनी साब-स्कॉनिया के लिए दलाली करते थे। कंपनी 70 के दशक में भारत को फाइटर प्लेन विजेन बेचने की कोशिश कर रही थी। हर रक्षा सौदे में गांधी परिवार का नाम ही सामने क्यों आता है। उन्होंने कहा कि इस मामले में गांधी परिवार को जवाब देना चाहिए और तब के दस्तावेज सार्वजनिक होने चाहिए।
विकिलीक्स ने यह खुलासा हेनरी किसिंजर केबल्स के हवाले से किया है। हेनरी किसिंजर अमेरिका के सुरक्षा सलाहकार रह चुके हैं। 'द हिन्दू' में छपी खबर के मुताबिक, हालांकि स्वीडिश कंपनी के साथ सौदा नहीं हो पाया था और ब्रिटिश जगुआर ने बाजी मार ली थी। विकिलीक्स केबल्स के मुताबिक, आपतकाल के दौरान जॉर्ज फर्नांडिस ने अंडरग्राउंड रहते हुए अमेरिकी खुफिया एजेंसी सीआईए से आर्थिक मदद भी मांगी थी।
राजीव गांधी 1980 तक राजनीति से दूर रहे थे। संजय गांधी के निधन के बाद इंदिरा गांधी उन्हें बतौर मिस्टर क्लीन राजनीति में लेकर आईं। हालांकि बतौर प्रधानमंत्री पहले कार्यकाल में ही वह एक दूसरी स्वीडिश कंपनी से बोफोर्स तोपों की खरीद के लिए हुए सौदे में घूसखोरी के आरोपों से घिर गए और इसकी वजह से 1989 के आम चुनावों में उनकी पार्टी को हार का सामना भी करना पड़ा।
सन् 1974 से 1976 के दौरान के जारी 41 केबल्स के मुताबिक, स्वीडिश कंपनी को इस बात का अंदाजा था कि फाइटर एयरक्राफ्ट्स की खरीद के बारे में अंतिम फैसला लेने में गांधी परिवार की भूमिका होगी। फ्रांसीसी एयरक्राफ्ट कंपनी दसो को भी इसका अनुमान था। उसकी ओर से मिराज फाइटर एयरक्राफ्ट के लिए तत्कालीन वायुसेना अध्यक्ष ओपी मेहरा के दामाद दलाली करने की कोशिश कर रहे थे। केबल में मेहरा के दलाल का नाम नहीं लिया गया है।
1975 में दिल्ली स्थित स्वीडिश दूतावास के एक राजनयिक की ओर से दी गई जानकारी के मुताबिक, 'इंदिरा गांधी ने ब्रिटेन के खिलाफ अपने पूर्वाग्रहों की वजह से जगुआर न खरीदने का फैसला कर लिया है। अब मिराज और विजेन के बीच फैसला होना है। मिसेज गांधी के बड़े बेटे बतौर पायलट एविएशन इंडस्ट्री से जुड़े हैं और पहली बार उनका नाम बतौर उद्यमी सुना जा रहा है। अंतिम फैसले को परिवार प्रभावित करेगा। हालांकि, राजीव गांधी एक ट्रांसपोर्ट पायलट हैं और उनके पास फाइटर प्लेन के मूल्यांकन की योग्यता नहीं है, लेकिन उनके पास एक 'दूसरी योग्यता' है।'
दूसरे केबल में स्वीडिश राजनयिक के हवाले से कहा गया है, 'इस डील में इंदिरा गांधी की अति सक्रियता की वजह से स्वीडन चिढ़ा हुआ था।' इसके मुताबिक, उन्होंने फाइटर प्लेन की खरीद की प्रक्रिया से एयरफोर्स को दूर रखा था। रजनयिक के मुताबिक, 40 से 50 लाख डॉलर प्रति प्लेन के हिसाब से 50 विजेन के लिए बातचीत चल रही थी। स्वीडन को भरोसा था कि भारत सोवियत संघ से और युद्धक विमान न खरीदने का फैसला कर चुका था।
6 अगस्त 1976 के एक दूसरे केबल से पता चलता है कि भारत को फाइटर प्लेन बेचने की कोशिश में जुटे स्वीडन को अमेरिकी दबाव में अपने कदम पीछे खींचने पड़े थे। अमेरिका ने साब-स्कॉनिया को भारत को विजेन निर्यात करने और देश में बनाने का लाइसेंस देने की अनुमति नहीं दी थी।
अमेरिका की ओर से कहा गया था, 'गंभीरता से विचार करने के बाद हम इस निष्कर्ष पर पहुंचे हैं कि विजेन के किसी भी ऐसे संस्करण को भारत को निर्यात करने की अनुमति नहीं दे सकते हैं, जिसमें अमेरिकी कल-पुर्जे लगे हों।' अमेरिका ने कहा था कि वह अमेरिकी डिजाइन और तकनीक से लैस इस विमान के भारत में उत्पादन का विरोध करेगा।

नोआखाली कत्लेआम

नोआखाली का जब भी ज़िक्र होगा, वहाँ हुए नरसंहार की यादों से कोई आँख चुरा नहीं सकता। १० अक्टूबर १९४६, लक्ष्मी पूजा का पावन दिन, लेकिन नोआखाली के बदनसीब हिन्दू बंगालियों पर वो दिन कहर ही बन कर टूट पड़ा था। इलाका मुसलामानों का था। मुस्लिम लीग का पूरा वर्चस्व था । ६ सितम्बर को ग़ुलाम सरवर हुसैनी ने, मुस्लिम लीग ज्वाइन किया था और ७ सितम्बर को ही उसने शाहपुर बाज़ार में, मुसलामानों को हिन्दुओं का क़त्लेआम करने का आह्वान किया। उसका यह अनुदेश था कि हर मुसलमान हथियार उठाएगा और हिन्दुओं को किसी भी हाल में नहीं बक्शेगा। १२ अक्टूबर का दिन मुक़र्रर किया गया था, इस वहशत को अंजाम देने के लिए । अफ़सोस यह है कि इस योजना की पूरी ख़बर प्रशासन को भी थी। १० अक्टूबर को ही जिला मजिस्ट्रेट एन. जी. रे, जिन्हें १२ अक्टूबर को जाना था, उन्होंने दो दिन पहले ही जिला छोड़ दिया था और अपनी जान बचा ली थी।
१०.१०.१९४६ नोआखाली -- दंगे के बाद वो पूरा इलाका लाशों से पटा हुआ था।
एक सप्ताह तक बे रोक-टोक हुए इस नरसंहार में 50000 से ज्यादा हिन्दू मारे गए थे।
सैकड़ों महिलाओं के साथ बलात्कार किया गया और हजारों हिंदू पुरुषों और महिलाओं के
जबरन इस्लाम क़बूल करवाया गया था।
लगभग 50,000 से 75,000 हिन्दुओं को कोमिला, चांदपुर, अगरतला और अन्य स्थानों के अस्थायी राहत शिविरों में आश्रय दिया गया।
रिपोर्ट्स बताती है कि इसके अलावा, मुस्लिम गुंडों की सख्त निगरानी में लगभग 50,000 हिन्दू इन प्रभावित क्षेत्रों में असहाय बने पड़े रहे थे।
कुछ क्षेत्रों से गाँव से बाहर जाने के लिए, हिंदुओं को मुस्लिम नेताओं से परमिट प्राप्त करना पड़ा था।
जबरन धर्म परिवर्तित हुए हिंदुओं को लिखित घोषणा पत्र पर हस्ताक्षर करना पड़ा,
कि उन्होंने स्वयं अपनी मर्ज़ी से इस्लाम क़बूला है।
बहुतों को अपने घर में रहने की आज्ञा नहीं थी, वो तब ही अपने घर में जा सकते थे जब
कोई सरकारी मुलाज़िम निरीक्षण के लिए आता था।
हिन्दुओं को मुस्लिम लीग को जज़िया टैक्स भी देने के लिए मज़बूर किया गया।
जिसने सिर्फ अपनी हवस के लिये पाकिस्तान
विभाजन स्वीकार कर लिया।
कहता था - मेरी लाश पर पाकिस्तान बनेगा और खुद ही बनवा गया।
टर्की में “कमाल अतातुर्क” के द्वारा “लोकतंत्र की स्थापना” के खिलाफ “गांधी” ने भारत में “खिलाफत आन्दोलन” किया। जिस के कारण “बंगाल के नोआखाली” का ये कत्लेआम हुआ।
जिस आधुनिक “धर्मनिरपेक्षता” की आज दुहाई दी जाती है, उसे “कमाल अतातुर्क” ने जब इस “धर्मनिरपेक्षता” टर्की में लागू किया तो “गांधी” ने उसका विरोध किया और उन्होंने मुसलमानों से इसके के लिए “खिलाफत” की मांग की।
खिलाफत मतलब, दुनिया भर के मुसलमानों का “एक खलीफा” अर्थात “एक नेता” हो और वह उनके “निर्देश” पर ही चलें, सिर्फ “खलीफा” के “आदेश” को माने अपने देश के “कानून या संविधान” के हिसाब को नही।
मुसलमानों में “चार खलीफा” हो चुके हैं। कमाल अतातुर्क ने इसी खिलाफत को समाप्त कर मुसलमानों को “आधुनिक लोकतंत्र और धर्मनिरपेक्षता” से जोड़ने की शुरुआत की, लेकिन गांधी ने उसका विरोध कर भारतीय में “प्रतिक्रियावाद और कठमुल्लापन” को बढ़ावा दिया।
गांधी ने “दारुल हरब अर्थात गैर इस्लाामकि देश को दारूल इस्ला्म” अर्थात “इस्लाेम शासित देश” बनाने का “बीज भारतीय मुसलमानों के दिमाग में बो दिया” और गांधी के रहते-रहते भारत से अलग इस्लाम के नाम पर पाकिस्ता़न का निर्माण भी हो गया।
१९४६ में जब देश मुस्लिम लीग के 'डायरेक्ट एक्शन' के कारण दंगो की चपेट में था और बंगाल में ख़ास तौर पर वहा के तत्कालीन मुख्यमंत्री सुहरावर्दी की अगुवाई में कत्लेआम , बलात्कार , लूट पाट और धर्मांतरण हो रहा था तब गांधी जी नौखाली में , जहाँ सबसे ज्यादा हिन्दू वर्ग बर्बरता का शिकार हुआ था , वहाँ गाँधी ४ महीने रहे थे।
नौखाली पहली बड़ी घटना थी जहाँ दंगे और लूट पाट का उद्देश्य वहां से हिन्दुओ का पूर्ण सफाया था. ४ महीने गांधी वहां पड़े रहे , लेकिन एक भी हिन्दू दोबारा वहां नही बस पाया।
उस वक्ता कांग्रेस का अध्यक्ष जे.बी कृपलानी थे, जो गांधी जी को सही स्थिति की जानकारी देने के लिए अपनी पत्नी सुचेता कृपलानी के साथ नोआखाली गए थे।
जे.बी कृपलानी ने अपने संस्म‍रण में लिखा है, '' वहां हमने सुना कि एक हिंदू लड़की आरती सूर की जबरदस्ती मुस्लिम लड़के से शादी करा दी गई थी। वह पंचघडि़यां गांव की थी।
सुचेता ने उसका नाम नोट किया और चौमुहानी लौटने पर मजिस्ट्रेट को इसकी जानकारी दी।
मजिस्ट्रेट मुझसे कहा कि इस तरह की शादियां लड़की की मर्जी से हो रही हैं।
इतना सुनना था कि सुचेता क्रोध से फट पड़ी और मजिस्ट्रेट को चुनौती दी। मजिस्ट्रेट ने निरुत्तहर होने के बाद अगले दिन उस लड़की को छुड़वाया और मां-बाप को वापस कराया। उसके बाद उस लड़की को कलकत्ता भेज दिया गया ताकि वह सुरक्षित रहे।''
जे.बी लिखते हैं, '' संगठित और हथियार बंद झुड निकलते थे और हिंदू घरों को घेर लेते थे। पहले ही झटके में जो जमींदार परिवार थे, उन पर कहर ढाया गयाा दंगाईयों ने हर जगह एक ही तरीका अपनाया। मौलाना और मौलवी झुंड के साथ चलते थे। जहां भीड़ का काम खत्मे हुआ वहां मौलाना और मौलवी हिंदुओं को धर्मांतरित करते थे। कुछ गांवों में कुरान के कल्माम और आयतें सिखाने के लिए क्लास चलाए जाते थे।"
"दत्तामपाड़ा में हमने पाया कि धर्मांतरित लोगों को गो मांस खाने के लिए मजबूर किया जाता था।''
(साभार संदर्भ: शाश्वकत विद्रोही राजनेता: आचार्य जे.बी.कृपलानी- लेखक: रामबहादुर राय)
सब कुछ इतिहास के दस्तावेजो में मौजूद है।
{1}-- देश बंटवारे से पहले नोआखाली में हिंदुओं के नरसंहार, बलात धर्मांतरण, बलात हिंदु महिलाओं से विवाह, उनके बलात्कार की घटनाओं को लेकर तत्कालीन कांग्रेस अधक्ष जे.बी कृपलानी द्वारा महात्मा गांधी को लिखे गए पत्र की कॉपी मौजूद है।
{2}-- संघ की पहली राजनैतिक पार्टी 'जनसंघ' के संस्थापक श्यामा प्रसाद मुखर्जी का कोलकाता विधानसभा का वह ऐतिहासिक भाषण मौजूद है।
जिसमें हिंदुओं को सामूहिक रूप से मुसलमान बनाए जाने का जिक्र है।
{3}-- महात्माे गांधी के साथ नोआखाली गए विदेशी पत्रकार की पूरी पुस्ततक मौजूद है।
जिसमें पूरे के पूरे हिंदू गांव को बलात धर्मांतरित कर मुस्लिम बनाने का जिक्र है।
प्रत्यक्षदर्शियों के अनुसार लगभग ५०००० हजार हिन्दू मारे गए, भगाए गए, लुटे गए, बलात्कार और जबरन धर्मांतरण के शिकार हुए... गांधी, एक को भी देंगे से पहले की हालात में नही लौटा पाये. गांधी जी और उनके गांधीवादिता की सबसे बड़ी हार थी। वहां से लौटे हुए गांधी हारे हुए गांधी थे जो अपनी लूटी पिटी गांधीवादिता की अस्थिया समेट के लाये थे।
यह गांधी की सबसे बड़ी विफलता {सफलता} थी। इस “खिलाफत आन्दोलन के कारण” बंगाल में और पुरे देश में हिंसा हुई। “अहिंसा की नीति” {झूठी} पर चलने वाले गांधी के सामने ही 5 लाख से अधिक हिंदू-मुसलमान एक दूसरे का कत्लेआम करते चले गए और “गांधी की अहिंसा” उनके सामने ही दम तोड़ती और झूठी नजर आई।
इसी मानसिकता से देश टूटा और यही मानसिकता आज मौजूदा समय में “इस्लामिक स्टेट” ईराक सीरिया और टर्की में खून खराबा और कत्लेआम कर रही है। आज उन्होंने “अबू बकर” को अपना “खलीफा” घोषित कर रखा है।
जो एक हिजड़ा था और इसे पता नही किसने
राष्ट्रपिता की उपाधि दे दी।
मक्कार और झूठे लोगों, मेरी बातों पर संदेह हो तो जे.बी का संस्मरण बाजार से खरीद लाओ, उसमें गांधी जी को लिखी गई चिटठी मौजूद है, जिसमें स्पष्टा लिखा है कि संगठित तरीके से हिंदु आबादी को धर्मांतरित कर मुसलमान बनाया गया।
सरोजिनी नायडू ने खुद कहा था कि "मोहनदास करमचन्द गांधी को गरीब दिखने के लिए बहुत खर्चा करना पड़ता था।इसके लिए गांधी थर्ड क्लास के डिब्बे में चलते थे। और अपनी बकरी को भी साथ रखते थे। और उनके समर्थक गुंडागर्दी करके जबरदस्ती पूरा डिब्बा खाली करवा देते थे।
लेकिन दुनिया के सामने ये कहते थे कि लोगो ने इज्जत देने के लिये डिब्बा खाली कर दिया"..
"गिरिजा कुमार" द्वारा लिखित "महात्‍मा गांधी और उनकी महिला मित्र" पुस्‍तक को पढने पर लगता है कि वह नोआखाली में भी महिलाओं के साथ "नग्‍न सोने" का अपना ब्रहमचर्य प्रयोग जारी किए हुए थे।
यहां तक कि अपने चाचा की पौत्री मनु गांधी को वहां उसके पिता को पत्र भेजकर विशेष रूप से बुलवाया गया और उन्‍हें दूसरे गांव में रहने के लिए भेज दिया ताकि गांधी निर्वस्‍त्र मनु गांधी के साथ सो सकें।
"सरदार पटेल" गांधी के इस कृत्‍य से इतने क्रोधित हुए कि उन्‍होने खुल्‍लमखुल्‍ला कह दिया कि स्त्रियों के साथ निर्वसन सोकर बापू अधर्म कर रहे हैं।
पटेल के गुस्‍से के बाद बापू इसकी स्‍वीकृति लेने के लिए बिनोवा भावे, घनश्‍याम दास बिड़ला, किशोरलाल आदि को इसके पक्ष में तर्क देने लगे, -- लेकिन कोई भी -- इतनी मारकाट के बीच पौत्री के साथ उनके नग्‍न सोने का समर्थन नहीं कर रहा था।
सार्वजनिक रूप से पटेल द्वारा लांछन लगाने को गांधी कभी नहीं भूल पाए।
माना जाता है कि 1946 में जब पूरी कांग्रेस ने सरदार पटेल को आगामी प्रधानमंत्री बनाने के लिए समर्थन किया तो गांधी ने नेहरू का नाम आगे बढ़ा कर पटेल से अपने नोआखाली के अपमान का बदला लिया।
जिसने भगत सिंह को फांसी दिए जाने का विरोध नही किया,
इसने अपनी पूरी जिन्दगी में - क्रांतिकारियों का एक भी केस नही लड़ा,
जब की ये खुद वकील भी था।
जो बोटी खाते हैं उन्हें बोटी देने वाले के खिलाफ बोलने की अनुमति नहीं होती ,,
विदेशी पैसे पर पलने वाले एक NGO शुरू करने वाला,
बंगाल में 50000 लोग मारे गए थे ,,
क्या एक बार भी ये गाँधी अंग्रेजों के खिलाफ बोला या आवाज़ उठाई ??
जिसके इशारे पर नेहरु द्वारा आज़ाद को मरवा दिया गया।
जिसने पाकिस्तान को 65 करोड़ दिलवाने के लिए आमरण अनशन किया।
जिसने हमारे हिन्दू भाइयो में फूट डालने के लिए हरिजन जैसे शब्द का निर्माण किया।
और तो और -- इस गांधी ने मुलमानो की भाषा भी अपना ली थी जो की इस के सावर्जनिक बयानों में है :---
ये "भगवान राम" के लिये "बादशाह राम" और "सीता माता" के लिए "बेगम सीता" जैसे उर्दू शब्दों का प्रयोग होने लगा था, परन्तु इस महात्मा में इतना साहस न था कि "मिस्टर जिन्ना" को "महाशय जिन्ना" कहकर पुकारे और "मौलाना आज़ाद" को "पण्डित आज़ाद" कहे। इस गांधी ने जितने भी अनुभव प्राप्त किये वे हिन्दुओ की बलि देकर ही किए।
जिसने "सिर्फ और सिर्फ" मुल्लो की भलाई का ही सोचा और हम उसके गीता द्वारा कहे अधूरे श्लोक को पढ़कर नपुंसक बनते जा रहे है।
-- अंहिंसा परमो धर्मः --
-- जब खुद में लड़ने का दम नहीं था --
तो गीता का श्लोक को आधा करके लोगो को नपुंसक बना दिया "अहिंसा परमों धर्मं:
पूर्ण श्लोक क्यों नहीं बताया लोगो को ? ?
"अहिंसा परमों धर्मं: धर्मं हिंसा तथैव च:"
अर्थात यदि अहिंसा परम धर्म है तो धर्म के लिए हिंसा अर्थात
(कानून के अनुसार हिंसा ) भी परम धर्म है I
अहिंसा मनुष्य के लिए परम धर्म है,
और धर्म कि रक्षा के लिए हिंसा करना हिंसा करना उससे भी श्रेस्ठ है !!!
जब जब धर्म (सत्य) पर संकट आये तब तब तुम शस्त्र उठाना I
अगर हमने श्लोक को "पूरा नही किया" और "पूरा नही पढ़ा" तो --
अपने ही घर में अल्पसंख्यक होकर रह जाओगे..।
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अहिंसा परमो धर्मः
धर्म हिसां तथैव च:
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धर्म की रक्षा के लिये हिंसा आवश्यक है।
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नोआखाली कत्लेआम के बारे में आप इन दो लिंकों पर भी पढ़ सकते हैI
{1}-- http://life.time.com/…/vultures-of-calcutta-the-gruesome-…/…
{2}-- http://www.massviolence.org/The-Calcutta-Riots-of-1946