Thursday, May 7, 2015

साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर

===साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर को न्याय कब मिलेगा====
 साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर को बिना सबूतों के हिन्दू आतंकवादी होने के आरोप में 7 वर्ष से जेल में यातनाए दी जा रही हैं।
 -------------------- परिचय-------------
प्रज्ञा सिंह ठाकुर का जन्म मध्य प्रदेश के कछवाहाघर इलाके में ठाकुर चन्द्रपाल सिंह के घर हुआ था,ये राजावत(कुशवाहा,कछवाहा)राजपूत परिवार में जन्मी थी,इनकी आयु लगभग 38 वर्ष है,बाद में इनके अभिभावक सूरत गुजरात आकर बस गये.
आध्यात्मिक जगत की और लगातार आकर्षित होने के कारण इन्होने भौतिक जगत को अलविदा करने का निश्चय कर लिया और दिनांक 30-01-2007 को संन्यासिन हो गयी.सन्यास ग्रहण करने के बाद साध्वी प्रज्ञा ने हिंदुत्व और राष्ट्रवाद की अलख जगानी शुरू कर दी और अपनी ओजस्वी वाणी से शीघ्र ही इनका नाम सारे देश में फ़ैल गया,उस समय कांग्रेस की अध्यक्ष सोनिया गांधी जिनके इशारे पर पूरी केंद्र सरकार घूमती थी और उनके नेतृत्व की यूपीए सरकार लगातार इस्लामिक आतंकवादियों के प्रति नरम रुख अपनाए हुए थी जिसकी साध्वी प्रज्ञा ने जमकर आलोचना की...... शीघ्र ही ये आलोचना मैडम सोनिया तक पहुँच गयी और तभी से साध्वी को सबक सिखाने की रणनीति बनाई जाने लगी.……साध्वी प्रज्ञा को झूठा फसाया गया-------
साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर को मालेगांव बम विस्फोट मामले में सरकार ने तब गिरफ्तार किया था जब सरकार ने नीति के आधार पर यह निर्णय कर लिया था कि आतंकवादी गतिविधियों में कुछ हिन्दुओं की संलिप्तता दिखाना भी जरुरी है।उस बम ब्लास्ट मे उनकी मोटर साईकल वहां पाई गई थी जबकी वो मोटर साईकिल बहुत पहले ही साध्वी जी द्वारा बेची जा चुकी थी और उसकी आर सी तक उस आदमी के नाम ट्रांसफर करवा चुकी थी
अभी तक आतंकवादी गतिविधियों में जितने लोग पकड़े जा रहे थे वे सब मुस्लिम ही थे। सोनिया कांग्रेस की सरकार को उस वक्त लगता था कि यदि आतंकवादी गतिविधियों से किसी तरह कुछ हिन्दुओं को भी पकड़ लिया जाये तो सरकार मुसलमानों के तुष्टीकरण के माध्यम से उनके वोट बैंक का लाभ उठा सकती है। इस नीति के पीछे ऐसा माना जाता है कि मोटे तौर पर दिग्विजय सिंह का दिमाग काम करता था।
विद्यार्थी परिषद से प्रज्ञा ठाकुर के संबंधों को भगवा बताने में दिग्विजय सिंह जैसे लोगों को कितनी देर लगती। अब प्रश्न केवल इतना ही था कि प्रज्ञा ठाकुर को किस अपराध के अन्तर्गत गिरफ्तार किया जाये?
2006 और 2008 में महाराष्ट्र के मालेगांव में बम विस्फोट हुए थे। उनमें शामिल लोग गिरफ्तार भी हो चुके थे। लेकिन जांच एजेंसियों को तो अब सरकार द्वारा कल्पित भगवा आतंकवाद के सिध्दांत को स्थापित करना था, इसलिये कुछ अति उत्साही पुलिस वालों ने प्रज्ञा ठाकुर को भी मालेगांव के बम विस्फोट में ही लपेट दिया और अक्तूबर 2008 में उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया। प्रज्ञा को सामान्य कानूनी सहायता भी न मिल सके इसके लिये उस पर मकोका अधिनियम की विभिन्न धाराएं आरोपित कर दी गई।इस नीच काम में महाराष्ट्र के शरद पवार जैसे नेताओं ने भी अपने विश्वस्त पुलिस अधिकारीयों के माध्यम से सोनिया का भरपूर साथ दिया …

शारीरिक व मानसिक यातनाएं------------
जेल में साध्वी को शारीरिक व मानसिक यातनाएं दी गई। उनकी केवल पिटाई ही नहीं कि गई बल्कि उन पर फब्तियां कसी गई। उन्हें जबरन अंडा और मांसाहारी भोजन खिलाया गया और पीट पीट कर पोर्न फिल्मे देखने को विवश किया गया,बेहोशी की हालत में इनके कपड़े तक बदले गए,जब साध्वी जी की माता बिमार हुई तो उनको साध्वी जी से मिलने तक नही दिया इन सत्ता धारीयो ने क्यो? क्या संविधान मे ये लिखा हुआ है कि जेल मे रहने वालो को उनकी मरणासन माता पिता से नही मिलने दिए जाना चाहिए?
डराने धमकाने का जो सिलसिला चला, उसको तो भला क्या कहा जाये?
इन अत्याचारों से जेल में ही साध्वी प्रज्ञा ठाकुर को कैंसर के रोग ने घेर लिया। प्रज्ञा ठाकुर ने जमानत के लिये एक बार फिर आवेदन दिया। वे बाहर अपना कैंसर का इलाज करवाया चाहती थीं। लेकिन सरकार ने इस बार भी उनकी जमानत का जी जान से विरोध किया। उनकी जमानत नहीं हो सकी। इसे ताज्जुब ही कहना होगा कि जिन राजनैतिक दलों ने जाने-माने आतंकवादी मौलाना मदनी को जेल से छुड़ाने के लिये केरल विधानसभा में बाकायदा एक प्रस्ताव पारित कर अपने पंथ निरपेक्ष होने का राजनैतिक लाभ उठाने का घटिया प्रयास किया वही राजनैतिक दल साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर को फांसी पर लटका देने के लिये दिल्ली के जंतर-मंतर पर धरना प्रदर्शन करते हैं।यहाँ तक कि एक बार कोर्ट को भी कहना पड़ा कि क्या सरकार साध्वी को जिन्दा भी देखना चाहती है या नहीं???????????
सोनिया कांग्रेस का षडयंत्र--------
लेकिन एक दिक्कत अभी भी बाकी थी। एक ही अपराध और एक ही घटना। उसके लिये पुलिस ने दो अलग-अलग केस तैयार कर लिये। एक साथ ही दो अलग-अलग समूहों को दोषी ठहरा दिया। पुलिस की इस हरकत से विस्फोट में संलिप्तता का आरोप भुगत रहे तथाकथित आतंकवादियों को बचाव का एक ठेस रास्ता उपलब्ध हो गया। इन विस्फोटों के लिये पकड़े गये मुस्लिम युवकों ने अदालत में जमानत की अर्जी लगा दी।पुलिस की जांच यह कहती है कि इन विस्फोटों के लिये मुसलमान दोषी हैं तो प्रज्ञा ठाकुर को क्यों पकड़ा हुआ है? लेकिन जेल में बन्द मुसलमानों ने तो यही तर्क दिया कि पुलिस ने स्वयं स्वीकार कर लिया है कि मालेगांव विस्फोट के लिये प्रज्ञा और उनके साथी जिम्मेदार हैं, इसलिये उन्हें कम जमानत पर छोड़ दिया जाय।
लेकिन पुलिस तो जानती थी कि प्रज्ञा ठाकुर की गिरफ्तारी तो मात्र सोनिया कांग्रेस के दिग्विजय सिंह बिग्रेड की राजनीतिक पहल रंग भरने के मात्र के लिए उसका माले गांव के विस्फोट से लेना देना नहीं है। इसलिए पुलिस ने इन मुस्लिम आतंकवादियों की जमानत की अर्जी का डट कर विरोध किया। विधि के जानकार लोगों को तभी ज्ञात हो गया था कि सोनिया कांग्रेस के मुस्लिम तुष्टीकरण के अभियान को पूरा करने के लिये साध्वी प्रज्ञा ठाकुर की बलि चढ़ाई जा रही है।उसका बम विस्फोट से कुछ लेना देना नहीं है।
प्रज्ञा सिंह ठाकुर को बिना किसी अपराध के भी जेल में पड़े हुये लगभग छह साल हो गए हैं। प्रश्न है कि बिना मुकदमा चलाये हुये किसी हिन्दू स्त्री को, केवल इसलिये कि मुसलमान खुश हो जायेंगे, भला कितनी देर जेल में बंद रखा जा सकता है? पुलिस अपनी तोता-बिल्ली की कहानी को और कितना लम्बा खींच सकती है? लेकिन ताज्जुब है अब पुलिस ने जब देखा कि प्रज्ञा सिंह के खिलाफ और किसी भी अपराध में कोई सबूत नहीं मिला तो उसने सुनील जोशी की हत्या के मामले में प्रज्ञा सिंह ठाकुर को जोड़ना शुरू कर दिया।
साध्वी प्रज्ञा ठाकुर को जेल में पड़े हुये छह साल पूरे हो गये हैं। राष्ट्रीय जांच एजेंसी उस पर कोई केस नहीं बना सकी। उसके खिलाफ तमाम हथकंडे इस्तेमाल करने के बावजूद कोई प्रमाण नहीं जुटा सकी। एक स्टेज पर तो राष्ट्रीय जांच एजेंसी को कहना ही पड़ा कि साध्वी के खिलाफ पर्याप्त सबूत न होने के कारण इन पर लगे आरोप निरस्त कर देने चाहिये। यदि सही प्रकार से कहा जाये तो प्रज्ञा ठाकुर का केस अभी प्रारंभ ही नहीं हुआ है। पर सरकार उसकी जमानत की अर्जी का डट कर विरोध करती है।
किस्सा यह है कि जांच एजेंसियों ने उस वक्त सोनिया कांग्रेस को खुश करने के लिये और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को बदनाम करने के लिए प्रज्ञा सिंह ठाकुर को पकड़ लिया और अपनी कारगुजारी दिखाने के लिये उसके इर्द-गिर्द कपोल कल्पित कथाओं का ताना-बाना भी बुन लिया। पुलिस अपने आप को निर्दोष सिध्द करने के लिये अभी भी प्रज्ञा सिंह के इर्द गिर्द झूठ का ताना-बाना बुनती ही जा रही है। कैंसर की मरीज प्रज्ञा ठाकुर क्या दिग्विजय सिंह,मैडम सोनिया के बुने हुये फरेब के इस जाल से निकल पायेगी या उसी में उलझी रह कर दम तोड़ देगी?
इस प्रश्न का उत्तर तो भविष्य ही देगा, लेकिन एक साध्वी के साथ किये इस जुल्म की जिम्मेदारी तो आखिर किसी न किसी को लेनी ही होगी।
मोदी सरकार की उदासीनता----------
जब मोदी सरकार आई तो सबको लगा क़ि चलो अब हिंदुत्ववादी सरकार आई है तो साध्वी जी को न्याय मिलेगा और उन्हें फ़साने वालो को कड़ा दंड मिलेगा,मगर हाय दुर्भाग्य,मोदी जी भी साध्वी को न्याय नही मिल पाया है,
अब जाकर सुप्रीम कोर्ट ने उनकी जमानत याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा है कि साध्वी के खिलाफ कोई भी आरोप सिद्ध नही होता,पर तभी केंद्र सरकार के अधीन एनआईए ने फिर जमानत का विरोध कर दिया,और तब सुप्रीम कोर्ट ने भी इनकी याचिका ख़ारिज कर दी और इन्हे निचली कोर्ट में अपील करने को कहा.……
साध्वी जी कैंसर जैसी बिमारी से जूझ रही है और उन्होने इस कथित हिन्दुवा सरकार को पत्र लिखकर उन पर जेल मे हो रहे अत्याचारो को लिखित मे पीएम तक पहुंचाया कि कैसे जेल मे उनको पुलिस वाले जबरदस्ती उनके मुंह मे मांस ठूसते है और कैसे वो उनके कपडे भी सार्वजनिकता से बदलते है उनको गंदा पानी पीने पर मजबूर करते है जबकी उन्होने कोई अपराध तक भी नही किया?तब भी मोदी सरकार ने उनकी कोई मदद नही की.…

पर ये सच है कि इस देश मे राजपूतो को सिर्फ राजनीती मे एक ट्रंप कार्ड की तरह इस्तेमाल किया जाने लगा है जहां कही भी बदनामी का डर हो वहां राजपूतो को आगे कर दिया जाता है चाहे वो वी.के.सिंह जी का पाकिस्तानी दिवस मे जाना हो या कांधार मे आताकंवादीयो को छोडकर जाने के लिए जसवंंत सिंह जी हो और तो और इस देश की गंदी राजनीती ने हमारी बहन साध्वी प्रज्ञा ठाकुर जी को भी नही बख्शा ,
चुनाव से पहले बीजेपी ने वही अपना हिन्दुत्व का राग गाया और साध्वीप्रज्ञा जी पर जेल मे हो रहे अत्याचारो को बखान करके लोगो की भावनाए ऐसे जगाई जैसे की इनकी सरकार बनते ही दूसरे दिन साध्वी जी को जेल से रिहा करके उचित सम्मान दिया जाएगा मगर अफसोस फिर से सरकार ने धोखा ही दिया जैसे पहले से ही हमारे साथ होता आया है,जब सरकार को पता है कि मालेगांव बम बलास्ट मे साध्वी जी निर्दोष है तो क्यो उनको अभी तक बाहर नही निकाला गया? चलो पहले तो बीजेपी के पास बहाना था कि महाराष्ट्र मे उनकी सरकार नही है पर अब तो वहां इन कथित ठेकेदारो की ही सरकार है तो क्यो ये बाहर नही निकाल रहे ?
इसका कारण ये है कि ये सरकार हमेशा हिन्दुओ की धार्मिक भावनाओ को ढाल बनाकर सत्ता मे आती है पहले इन्होने राम मंदिर का मुद्दा उठाकर हिन्दुओ की वोटो को लूटा और सरकार बनाई क्या इन्होने राम मंदिर बनाया था?
मोदी की एनआईए ने प्रज्ञा ठाकुर की जमानत का विरोध किया और वहीँ बीजेपी अध्यक्ष और अमित शाह को क्लीन चिट देने में देर नही लगाइ.कोर्ट से हर दो महीने बाद संजय दत्त को पैरोल मिल जाती है,सलमान खान को आज  सजा मिल पाई.…
way-for-bail-for-most-of-the-accused-in-2008-malegaon-blasts-case

दुर्गा दस राठौड़-देश का पूर्ण इस्लामीकरण करने की औरंगजेब की साजिश को विफल

Rajputana Soch  राजपूताना सोच और क्षत्रिय इतिहास's photo. देश का पूर्ण इस्लामीकरण करने की औरंगजेब की साजिश को विफल कर हिन्दू धर्म की रक्षा की थी.....उस महान यौद्धा का नाम है वीर दुर्गादास राठौर...
समय - सोहलवीं - सतरवी शताब्दी
चित्र - वीर शिरोमणि दुर्गा दस राठौड़
स्थान - मारवाड़ राज्य
वीर दुर्गादास राठौड का जन्म मारवाड़ में करनोत ठाकुर आसकरण जी के घर सं. 1695 श्रावन शुक्ला चतुर्दसी को हुआ था। आसकरण जी मारवाड़ राज्य की सेना में जोधपुर नरेश महाराजा जसवंत सिंह जी की सेवा में थे ।अपने पिता की भांति बालक दुर्गादास में भी वीरता कूट कूट कर भरी थी,एक बार जोधपुर राज्य की सेना के ऊंटों को चराते हुए राईके (ऊंटों के चरवाहे) आसकरण जी के खेतों में घुस गए, बालक दुर्गादास के विरोध करने पर भी चरवाहों ने कोई ध्यान नहीं दिया तो वीर युवा दुर्गादास का खून खोल उठा और तलवार निकाल कर झट से ऊंट की गर्दन उड़ा दी,इसकी खबर जब महाराज जसवंत सिंह जी के पास पहुंची तो वे उस वीर बालक को देखने के लिए उतावले हो उठे व अपने सेनिकों को दुर्गादास को लेन का हुक्म दिया ।अपने दरबार में महाराज उस वीर बालक की निडरता व निर्भीकता देख अचंभित रह गए,आस्करण जी ने अपने पुत्र को इतना बड़ा अपराध निर्भीकता से स्वीकारते देखा तो वे सकपका गए। परिचय पूछने पर महाराज को मालूम हुवा की यह आस्करण जी का पुत्र है,तो महाराज ने दुर्गादास को अपने पास बुला कर पीठ थपथपाई और इनाम तलवार भेंट कर अपनी सेना में भर्ती कर लिया।
उस समय महाराजा जसवंत सिंह जी दिल्ली के मुग़ल बादशाह औरंगजेब की सेना में प्रधान सेनापति थे,फिर भी औरंगजेब की नियत जोधपुर राज्य के लिए अच्छी नहीं थी और वह हमेशा जोधपुर हड़पने के लिए मौके की तलाश में रहता था ।सं. 1731 में गुजरात में मुग़ल सल्तनत के खिलाफ विद्रोह को दबाने हेतु जसवंत सिंह जी को भेजा गया,इस विद्रोह को दबाने के बाद महाराजा जसवंत सिंह जी काबुल में पठानों के विद्रोह को दबाने हेतु चल दिए और दुर्गादास की सहायता से पठानों का विद्रोह शांत करने के साथ ही वीर गति को प्राप्त हो गए । उस समय उनके कोई पुत्र नहीं था और उनकी दोनों रानियाँ गर्भवती थी,दोनों ने एक एक पुत्र को जनम दिया,एक पुत्र की रास्ते में ही मौत हो गयी और दुसरे पुत्र अजित सिंह को रास्ते का कांटा समझ कर ओरंग्जेब ने अजित सिंह की हत्या की ठान ली,ओरंग्जेब की इस कुनियत को स्वामी भक्त दुर्गादास ने भांप लिया और मुकंदास की सहायता से स्वांग रचाकर अजित सिंह को दिल्ली से निकाल लाये व अजित सिंह की लालन पालन की समुचित व्यवस्था करने के साथ जोधपुर में गदी के लिए होने वाले ओरंग्जेब संचालित षड्यंत्रों के खिलाफ लोहा लेते अपने कर्तव्य पथ पर बदते रहे।
अजित सिंह के बड़े होने के बाद गद्दी पर बैठाने तक वीर दुर्गादास को जोधपुर राज्य की एकता व स्वतंत्रता के लिए दर दर की ठोकरें खानी पड़ी,ओरंग्जेब का बल व लालच दुर्गादास को नहीं डिगा सका जोधपुर की आजादी के लिए दुर्गादास ने कोई पच्चीस सालों तक सघर्ष किया,लेकिन जीवन के अन्तिम दिनों में दुर्गादास को मारवाड़ छोड़ना पड़ा । महाराज अजित सिंह के कुछ लोगों ने दुर्गादास के खिलाफ कान भर दिए थे जिससे महाराज दुर्गादास से अनमने रहने लगे वस्तु स्तिथि को भांप कर दुर्गादास ने मारवाड़ राज्य छोड़ना ही उचित समझा ।और वे मारवाड़ छोड़ कर उज्जेन चले गए वही शिप्रा नदी के किनारे उन्होने अपने जीवन के अन्तिम दिन गुजारे व वहीं उनका स्वर्गवास हुवा ।दुर्गादास हमारी आने वाली पिडियों के लिए वीरता, देशप्रेम, बलिदान व स्वामिभक्ति के प्रेरणा व आदर्श बने रहेंगे ।
१-मायाड ऐडा पुत जाण, जेड़ा दुर्गादास । भार मुंडासा धामियो, बिन थम्ब आकाश ।
२-घर घोड़ों, खग कामनी, हियो हाथ निज मीत सेलां बाटी सेकणी, श्याम धरम रण नीत ।
वीर दुर्गादास का निधन 22 नवम्बर, सन् 1718 में हुवा था इनका अन्तिम संस्कार शिप्रा नदी के तट पर किया गया था ।
"उनको न मुगलों का धन विचलित कर सका और न ही मुग़ल शक्ति उनके दृढ हृदये को पीछे हटा सकी। वह एक वीर था जिसमे राजपूती साहस व मुग़ल मंत्री सी कूटनीति थी "
जिसने इस देश का पूर्ण इस्लामीकरण करने की औरंगजेब की साजिश को विफल कर हिन्दू धर्म की रक्षा की थी.....उस महान यौद्धा का नाम है वीर दुर्गादास राठौर...
इसी वीर दुर्गादास राठौर के बारे में रामा जाट ने कहा था कि "धम्मक धम्मक ढोल बाजे दे दे ठोर नगारां की,, जो आसे के घर दुर्गा नहीं होतो,सुन्नत हो जाती सारां की.......
आज भी मारवाड़ के गाँवों में लोग वीर दुर्गादास को याद करते है कि
“माई ऐहा पूत जण जेहा दुर्गादास, बांध मरुधरा राखियो बिन खंभा आकाश”
हिंदुत्व की रक्षा के लिए उनका स्वयं का कथन
"रुक बल एण हिन्दू धर्म राखियों"
अर्थात हिन्दू धर्म की रक्षा मैंने भाले की नोक से की............
इनके बारे में कहा जाता है कि इन्होने सारी उम्र घोड़े की पीठ पर बैठकर बिता दी।
अपनी कूटनीति से इन्होने ओरंगजेब के पुत्र अकबर को अपनी और मिलाकर,राजपूताने और महाराष्ट्र की सभी हिन्दू शक्तियों को जोडकर ओरंगजेब की रातो की नींद छीन ली थी।और हिंदुत्व की रक्षा की थी।
उनके बारे में इतिहासकार कर्नल जेम्स टॉड ने कहा था कि .....
"उनको न मुगलों का धन विचलित कर सका और न ही मुगलों की शक्ति उनके दृढ निश्चय को पीछे हटा सकी,बल्कि वो ऐसा वीर था जिसमे राजपूती साहस और कूटनीति मिश्रित थी".
ये निर्विवाद सत्य है कि अगर उस दौर में वीर दुर्गादास राठौर,छत्रपति शिवाजी,वीर गोकुल,गुरु गोविन्द सिंह,बंदा सिंह बहादुर जैसे शूरवीर पैदा नहीं होते तो पुरे मध्य एशिया,ईरान की तरह भारत का पूर्ण इस्लामीकरण हो जाता और हिन्दू धर्म का नामोनिशान ही मिट जाता............
28 नवम्बर 1678 को अफगानिस्तान के जमरूद नामक सैनिक ठिकाने पर जोधपुर के महाराजा जसवंतसिंह का निधन हो गया था उनके निधन के समय उनके साथ रह रही दो रानियाँ गर्भवती थी इसलिए वीर शिरोमणि दुर्गादास सहित जोधपुर राज्य के अन्य सरदारों ने इन रानियों को महाराजा के पार्थिव शरीर के साथ सती होने से रोक लिया | और इन गर्भवती रानियों को सैनिक चौकी से लाहौर ले आया गया जहाँ इन दोनों रानियों ने 19 फरवरी 1679 को एक एक पुत्र को जन्म दिया,बड़े राजकुमार नाम अजीतसिंह व छोटे का दलथंभन रखा गया
ये वही वीर दुर्गा दास राठौड़ जो जोधपुर के महाराजा को औरंगज़ेब के चुंगल ले निकल कर लाये थे जब जोधपुर महाराजा अजित सिंह गर्भ में थे उनके पिता की मुर्त्यु हो चुकी थी तब औरंगज़ेब उन्हें अपने संरक्षण में दिल्ली दरबार ले गया था उस वक़्त वीर दुर्गा दास राठौड़ चार सो चुने हुए राजपूत वीरो को लेकर दिल्ली गए और युद्ध में मुगलो को चकमा देकर महाराजा को मारवाड़ ले आये.....
उसी समय बलुन्दा के मोहकमसिंह मेड़तिया की रानी बाघेली भी अपनी नवजात शिशु राजकुमारी के साथ दिल्ली में मौजूद थी वह एक छोटे सैनिक दल से हरिद्वार की यात्रा से आते समय दिल्ली में ठहरी हुई थी | उसने राजकुमार अजीतसिंह को बचाने के लिए राजकुमार को अपनी राजकुमारी से बदल लिया और राजकुमार को राजकुमारी के कपड़ों में छिपाकर खिंची मुकंददास व कुंवर हरीसिंह के साथ दिल्ली से निकालकर बलुन्दा ले आई | यह कार्य इतने गोपनीय तरीके से किया गया कि रानी ,दुर्गादास,ठाकुर मोहकम सिंह,खिंची मुकंदास,कु.हरिसिघ के अलावा किसी को कानों कान भनक तक नहीं लगी यही नहीं रानी ने अपनी दासियों तक को इसकी भनक नहीं लगने दी कि राजकुमारी के वेशभूषा में जोधपुर के राजकुमार अजीतसिंह का लालन पालन हो रहा है |
छ:माह तक रानी राजकुमार को खुद ही अपना दूध पिलाती,नहलाती व कपडे पहनाती ताकि किसी को पता न चले पर एक दिन राजकुमार को कपड़े पहनाते एक दासी ने देख लिया और उसने यह बात दूसरी रानियों को बता दी,अत: अब बलुन्दा का किला राजकुमार की सुरक्षा के लिए उचित न जानकार रानी बाघेली ने मायके जाने का बहाना कर खिंची मुक्न्दास व कु.हरिसिंह की सहायता से राजकुमार को लेकर सिरोही के कालिंद्री गाँव में अपने एक परिचित व निष्टावान जयदेव नामक पुष्करणा ब्रह्मण के घर ले आई व राजकुमार को लालन-पालन के लिए उसे सौंपा जहाँ उसकी (जयदेव)की पत्नी ने अपना दूध पिलाकर जोधपुर के उतराधिकारी राजकुमार को बड़ा किया |
((वीर दुर्गादास राठौड़ के सिक्के और पोस्ट स्टाम्प भारत सरकार पहले ही जारी कर चुकी है ))

महाराजा छत्रसाल ,King Chatrasal

Rajputana Soch  राजपूताना सोच और क्षत्रिय इतिहास's photo.---बुन्देल केसरी,मुग़लो के काल महाराजा छत्रसाल ---
 दिनांक 04 मई 1649 ईस्वी को महाराजा छत्रसाल का जन्म हुआ था।
कम आयु में ही अनाथ हो गए वीर बालक छत्रसाल ने छत्रपति शिवाजी से प्रभावित होकर अपनी छोटी सी सेना बनाई और मुगल बादशाह औरंगजेब से जमकर लोहा लिया और मुग़लो के सबसे ताकतवर काल में उनकी नाक के नीचे एक बड़े भूभाग को जीतकर एक विशाल स्वतंत्र राज्य की स्थापना की।
बुन्देलखंड की भूमि प्राकृतिक सुषमा और शौर्य पराक्रम की भूमि है, जो विंध्याचल पर्वत की पहाड़ियों से घिरी है। चंपतराय जिन्होंने बुन्देलखंड में बुन्देला राज्य की आधार शिला रखी थी, महाराज छत्रसाल ने उस बुन्देला राज्य को ना केवल पुनर्स्थापित किया बल्कि उसका विस्तार कर के उसे समृद्धि प्रदान की।
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====जीवन परिचय====
महाराजा छत्रसाल का जन्म गहरवार (गहड़वाल) वंश की बुंदेला शाखा के राजपूतो में हुआ था,काशी के गहरवार राजा वीरभद्र के पुत्र हेमकरण जिनका दूसरा नाम पंचम सिंह गहरवार भी था,वो विंध्यवासिनी देवी के अनन्य भक्त थे,जिस कारण उन्हें विन्ध्य्वाला भी कहा जाता था,इस कारण राजा हेमकरण के वंशज विन्ध्य्वाला या बुंदेला कहलाए,हेमकर्ण की वंश परंपरा में सन 1501 में ओरछा में रुद्रप्रताप सिंह राज्यारूढ़ हुए, जिनके पुत्रों में ज्येष्ठ भारतीचंद्र 1539 में ओरछा के राजा बने तब बंटवारे में राव उदयजीत सिंह को महेबा (महोबा नहीं) का जागीरदार बनाया गया, इन्ही की वंश परंपरा में चंपतराय महेबा गद्दी पर आसीन हुए।
चम्पतराय बहुत ही वीर व बहादुर थे। उन्होंने मुग़लो के खिलाफ बगावत करी हुई थी और लगातार युद्धों में व्यस्त रहते थे। चम्पतराय के साथ युद्ध क्षेत्र में रानी लालकुँवरि भी साथ ही रहती थीं और अपने पति को उत्साहित करती रहती थीं। छत्रसाल का जन्म दिनांक 04 मई 1649 ईस्वी को पहाड़ी नामक गाँव में हुआ था। गर्भस्थ शिशु छत्रसाल तलवारों की खनक और युद्ध की भयंकर मारकाट के बीच बड़े हुए। यही युद्ध के प्रभाव उनके जीवन पर असर डालते रहे और माता लालकुँवरि की धर्म व संस्कृति से संबंधित कहानियाँ बालक छत्रसाल को बहादुर बनाती रहीं।
छत्रसाल के पिता चंपतराय जब मुग़ल सेना से घिर गये तो उन्होंने अपनी पत्नी 'रानी लाल कुंवरि' के साथ अपनी ही कटार से प्राण त्याग दिये, किंतु मुग़लों के सामने झुकना स्वीकार नहीं किया।
छत्रसाल उस समय चौदह वर्ष की आयु के थे। क्षेत्र में ही उनके पिता के अनेक दुश्मन थे जो उनके खून के प्यासे थे। इनसे बचते हुए और युद्ध की कला सीखते हुए उन्होंने अपना बचपन बिताया। अपने बड़े भाई 'अंगद राय' के साथ वह कुछ दिनों मामा के घर रहे, किंतु उनके मन में सदैव मुग़लों से बदला लेकर पितृ ऋण से मुक्त होने की अभिलाषा थी। बालक छत्रसाल मामा के यहाँ रहता हुआ अस्त्र-शस्त्रों का संचालन और युद्ध कला में पारंगत होता रहा। अपने पिता के वचन को ही पूरा करने के लिए छत्रसाल ने पंवार वंश की कन्या 'देवकुंवरि' से विवाह किया।
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====छत्रपति शिवाजी से सम्पर्क और ओरंगजेब से संघर्ष=====
दस वर्ष की अवस्था तक छत्रसाल कुशल सैनिक बन गए थे। अंगद राय ने जब सैनिक बनकर राजा जयसिंह के यहाँ कार्य करना चाहा तो छोटे भाई छत्रसाल को यह सहन नहीं हुआ। छत्रसाल ने अपनी माता के कुछ गहने बेचकर एक छोटी सा सैनिक दल तैयार करने का विचार किया। छोटी सी पूंजी से उन्होंने 30 घुड़सवार और 347 पैदल सैनिकों का एक दल बनाया और मुग़लों पर आक्रमण करने की तैयारी की। 22 वर्ष की आयु में छत्रसाल युद्ध भूमि में कूद पड़े। छत्रसाल बहुत दूरदर्शी थे। उन्होंने पहले ऐसे लोगों को हटाया जो मुग़लों की मदद कर रहे थे।
सन 1668 ईस्वी में उन्होंने दक्षिण में छत्रपति शिवाजी से भेट की,शिवाजी ने उनका हौसला बढ़ाते हुए उन्हें वापस बुंदेलखंड जाकर मुगलों से अपनी मात्रभूमि स्वतंत्र कराने का निर्देश दिया,
शिवाजी ने छत्रसाल को उनके उद्देश्यों, गुणों और परिस्थितियों का आभास कराते हुए स्वतंत्र राज्य स्थापना की मंत्रणा दी एवं समर्थ गुरु रामदास के आशीषों सहित 'भवानी’ तलवार भेंट की-
करो देस के राज छतारे
हम तुम तें कबहूं नहीं न्यारे।
दौर देस मुग़लन को मारो
दपटि दिली के दल संहारो।
तुम हो महावीर मरदाने
करि हो भूमि भोग हम जाने।
जो इतही तुमको हम राखें
तो सब सुयस हमारे भाषें।
छत्रसाल ने वापिस अपने गृह क्षेत्र आकर मुग़लो के खिलाफ संघर्ष की शुरुआत कर दी। इसमें उनको गुरु प्राणनाथ का बहुत साथ मिला। दक्षिण भारत में जो स्थान समर्थगुरु रामदास का है वही स्थान बुन्देलखंड में 'प्राणनाथ' का रहा है, प्राणनाथ छत्रसाल के मार्ग दर्शक, अध्यात्मिक गुरु और विचारक थे.. जिस प्रकार समर्थ गुरु रामदास के कुशल निर्देशन में छत्रपति शिवाजी ने अपने पौरुष, पराक्रम और चातुर्य से मुग़लों के छक्के छुड़ा दिए थे, ठीक उसी प्रकार गुरु प्राणनाथ के मार्गदर्शन में छत्रसाल ने अपनी वीरता से, चातुर्यपूर्ण रणनीति से और कौशल से विदेशियों को परास्त किया। .
छत्रसाल ने पहला युद्ध अपने माता-पिता के साथ विश्वासघात करने वाले सेहरा के धंधेरों से किया हाशिम खां को मार डाला और सिरोंज एवं तिबरा लूट डाले गये लूट की सारी संपत्ति छत्रसाल ने अपने सैनिकों में बाँटकर पूरे क्षेत्र के लोगों को उनकी सेना में सम्मिलित होने के लिए आकर्षित किया। कुछ ही समय में छत्रसाल की सेना में भारी वृद्धि होने लगी और उन्हेांने धमोनी, मेहर, बाँसा और पवाया आदि जीतकर कब्जे में कर लिए। ग्वालियर-खजाना लूटकर सूबेदार मुनव्वर खां की सेना को पराजित किया, बाद में नरवर भी जीता।
ग्वालियर की लूट से छत्रसाल को सवा करोड़ रुपये प्राप्त हुए पर औरंगजेब इससे छत्रसाल पर टूट-सा पड़ा। उसने सेनपति रुहल्ला खां के नेतृत्व में आठ सवारों सहित तीस हजारी सेना भेजकर गढ़ाकोटा के पास छत्रसाल पर धावा बोल दिया। घमासान युद्ध हुआ पर दणदूल्हा (रुहल्ला खां) न केवल पराजित हुआ वरन भरपूर युद्ध सामग्री छोड़कर जन बचाकर उसे भागना पड़ा।
बार बार युद्ध करने के बाद भी औरंगज़ेब छत्रसाल को पराजित करने में सफल नहीं हो पाया। छत्रसाल को मालूम था कि मुग़ल छलपूर्ण घेराबंदी में सिद्धहस्त है। उनके पिता चंपतराय मुग़लों से धोखा खा चुके थे। छत्रसाल ने मुग़ल सेना से इटावा, खिमलासा, गढ़ाकोटा, धामौनी, रामगढ़, कंजिया, मडियादो, रहली, रानगिरि, शाहगढ़, वांसाकला सहित अनेक स्थानों पर लड़ाई लड़ी और मुग़लों को धूल चटाई। छत्रसाल की शक्ति निरंतर बढ़ती गयी। बन्दी बनाये गये मुग़ल सरदारों से छत्रसाल ने दंड वसूला और उन्हें मुक्त कर दिया। धीरे धीरे बुन्देलखंड से मुग़लों का एकछत्र शासन छत्रसाल ने समाप्त कर दिया।
छत्रसाल के शौर्य और पराक्रम से आहत होकर मुग़ल सरदार तहवर ख़ाँ, अनवर ख़ाँ, सहरूदीन, हमीद बुन्देलखंड से दिल्ली का रुख़ कर चुके थे। बहलोद ख़ाँ छत्रसाल के साथ लड़ाई में मारा गया और मुराद ख़ाँ, दलेह ख़ाँ, सैयद अफगन जैसे सिपहसलार बुन्देला वीरों से पराजित होकर भाग गये थे।
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====राज्याभिषेक और राज्य विस्तार====
छत्रसाल के राष्ट्र प्रेम, वीरता और हिन्दूत्व के कारण छत्रसाल को भारी जन समर्थन प्राप्त था। छत्रसाल ने एक विशाल सेना तैयार कर ली जिसमे क्षेत्र के सभी राजपूत वंशो के योद्धा शामिल थे। इसमें 72 प्रमुख सरदार थे। वसिया के युद्ध के बाद मुग़लों ने भी छत्रसाल को 'राजा' की मान्यता प्रदान कर दी थी। उसके बाद महाराजा छत्रसाल ने 'कालिंजर का क़िला' भी जीता और मांधाता चौबे को क़िलेदार घोषित किया। छत्रसाल ने 1678 में पन्ना में अपनी राजधानी स्थापित की और विक्रम संवत 1744 मे योगीराज प्राणनाथ के निर्देशन में छत्रसाल का राज्याभिषेक किया गया।
छत्रसाल के गुरु प्राणनाथ आजीवन हिन्दू मुस्लिम एकता के संदेश देते रहे। उनके द्वारा दिये गये उपदेश 'कुलजम स्वरूप' में एकत्र किये गये। पन्ना में प्राणनाथ का समाधि स्थल है जो अनुयायियों का तीर्थ स्थल है। प्राणनाथ ने इस अंचल को रत्नगर्भा होने का वरदान दिया था। किंवदन्ती है कि जहाँ तक छत्रसाल के घोड़े की टापों के पदचाप बनी वह धरा धनधान्य, रत्न संपन्न हो गयी। छत्रसाल के विशाल राज्य के विस्तार के बारे में यह पंक्तियाँ गौरव के साथ दोहरायी जाती है-
'इत यमुना उत नर्मदा इत चंबल उत टोस छत्रसाल सों लरन की रही न काहू हौस।'
बुंदेलखंड की शीर्ष उन्नति इन्हीं के काल में हुई। छत्रसाल के समय में बुंदेलखंड की सीमायें अत्यंत व्यापक हो गई। इस प्रदेश में उत्तर प्रदेश के झाँसी, हमीरपुर, जालौन, बाँदा, मध्य प्रदेश के सागर, जबलपुर, नरसिंहपुर, होशंगाबाद, मण्डला, मालवा संघ के शिवपुरी, कटेरा, पिछोर, कोलारस, भिण्ड और मोण्डेर के ज़िले और परगने शामिल थे। छत्रसाल ने लगातार युद्धों और आपस में लूट मार से त्रस्त इस पिछड़े क्षेत्र को एक क्षत्र के निचे लाकर वहॉ शांति स्थापित की जिससे बुंदेलखंड का पहली बार इतना विकास संभव हो सका।
छत्रसाल का राज्य प्रसिद्ध चंदेल महाराजा कीर्तिवर्धन से भी बड़ा था। कई शहर भी इन्होंने ही बसाए जिनमे छतरपुर शामिल है। छत्रसाल तलवार के धनी थे और कुशल शस्त्र संचालक थे। वह शस्त्रों का आदर करते थे। लेकिन साथ ही वह विद्वानों का बहुत सम्मान करते थे और स्वयं भी बहुत विद्वान थे। वह उच्च कोटि के कवि भी थे, जिनकी भक्ति तथा नीति संबंधी कविताएँ ब्रजभाषा में प्राप्त होती हैं। इनके आश्रित दरबारी कवियों में भूषण, लालकवि, हरिकेश, निवाज, ब्रजभूषण आदि मुख्य हैं। भूषण ने आपकी प्रशंसा में जो कविताएँ लिखीं वे 'छत्रसाल दशक' के नाम से प्रसिद्ध हैं। 'छत्रप्रकाश' जैसे चरितकाव्य के प्रणेता गोरेलाल उपनाम 'लाल कवि' आपके ही दरबार में थे। यह ग्रंथ तत्कालीन ऐतिहासिक सूचनाओं से भरा है, साथ ही छत्रसाल की जीवनी के लिए उपयोगी है। उन्होंने कला और संगीत को भी बढ़ावा दिया, बुंदेलखंड में अनेको निर्माण उन्होंने करवाए। छत्रसाल धार्मिक स्वभाव के थे। युद्धभूमि में व शांतिकाल में दैनिक पूजा अर्चना करना छत्रसाल का कार्य रहा।
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====कवि भूषण द्वारा छत्रसाल की प्रशंसा====
कविराज भूषण ने शिवाजी के दरबार में रहते हुए छत्रसाल की वीरता और बहादुरी की प्रशंसा में अनेक कविताएँ लिखीं। 'छत्रसाल दशक' में इस वीर बुंदेले के शौर्य और पराक्रम की गाथा गाई गई है।
छत्रसाल की प्रशंसा करते हुए कवि भूषण दुविधा में पड़ गये और लिखा कि-----
"और राव राजा एक,मन में लायुं अब ,
शिवा को सराहूँ या सराहूँ छत्रसाल को"
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====मुगल सेनापति बंगश का हमला और पेशवा बाजीराव का सहयोग====
महाराज छत्रसाल अपने समय के महान शूरवीर, संगठक, कुशल और प्रतापी राजा थे। छत्रसाल को अपने जीवन की संध्या में भी आक्रमणों से जूझना पडा।सन 1729 में सम्राट मुहम्मद शाह के शासन काल में प्रयाग के सूबेदार बंगस ने छत्रसाल पर आक्रमण किया। उसकी इच्छा एरच, कौच, सेहुड़ा, सोपरी, जालोन पर अधिकार कर लेने की थी। छत्रसाल को मुग़लों से लड़ने में दतिया, सेहुड़ा के राजाओं ने सहयोग नहीं दिया। उनका पुत्र हृदयशाह भी उदासीन होकर अपनी जागीर में बैठा रहा। तब छत्रसाल ने बाजीराव पेशवा को संदेश भेजा -
'जो गति मई गजेन्द्र की सोगति पहुंची आय
बाजी जात बुन्देल की राखो बाजीराव'
बाजीराव सेना सहित सहायता के लिये पहुंचा और उसने बंगस को 30 मार्च 1729 को पराजित कर दिया। बंगस हार कर वापिस लौट गया।
4 अप्रैल 1729 को छत्रसाल ने विजय उत्सव मनाया। इस विजयोत्सव में बाजीराव का अभिनन्दन किया गया और बाजीराव को अपना तीसरा पुत्र स्वीकार कर मदद के बदले अपने राज्य का तीसरा भाग बाजीराव पेशवा को सौंप दिया, जिस पर पेशवा ने अपनी ब्राह्मण जाति के लोगो को सामन्त नियुक्त किया।
प्रथम पुत्र हृदयशाह पन्ना, मऊ, गढ़कोटा, कालिंजर, एरिछ, धामोनी इलाका के जमींदार हो गये जिसकी आमदनी 42 लाख रू. थी।
दूसरे पुत्र जगतराय को जैतपुर, अजयगढ़, चरखारी, नांदा, सरिला, इलाका सौपा गया जिसकी आय 36 लाख थी।
बाजीराव पेशवा को काल्पी, जालौन, गुरसराय, गुना, हटा, सागर, हृदय नगर मिलाकर 33 लाख आय की जागीर सौपी गयी।
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=====निधन====
छत्रसाल ने अपने दोनों पुत्रों ज्येष्ठ जगतराज और कनिष्ठ हिरदेशाह को बराबरी का हिस्सा, जनता को समृद्धि और शांति से राज्य-संचालन हेतु बांटकर अपनी विदा वेला का दायित्व निभाया।
इस वीर बहादुर छत्रसाल का 83 वर्ष की अवस्था में 13 मई 1731 ईस्वी को मृत्यु हो गयी। छत्रसाल के लिए कहावत है -
'छत्ता तेरे राज में,
धक-धक धरती होय।
जित-जित घोड़ा मुख करे,
तित-तित फत्ते होय।'
मध्यकालीन भारत में विदेशी आतताइयों से सतत संघर्ष करने वालों में छत्रपति शिवाजी, महाराणा प्रताप और बुंदेल केसरी छत्रसाल के नाम विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं, परंतु जिन्हें उत्तराधिकार में सत्ता नहीं वरन ‘शत्रु और संघर्ष’ ही विरासत में मिले हों, ऐसे बुंदेल केसरी छत्रसाल ने वस्तुतः अपने पूरे जीवनभर स्वतंत्रता और सृजन के लिए ही सतत संघर्ष किया। शून्य से अपनी यात्रा प्रारंभ कर आकाश-सी ऊंचाई का स्पर्श किया। उन्होंने विस्तृत बुंदेलखंड राज्य की गरिमामय स्थापना ही नहीं की थी, वरन साहित्य सृजन कर जीवंत काव्य भी रचे। छत्रसाल ने अपने 82 वर्ष के जीवन और 44 वर्षीय राज्यकाल में 52 युद्ध किये थे। शौर्य और सृजन की ऐसी उपलब्धि बेमिसाल है-
‘‘इत जमना उत नर्मदा इत चंबल उत टोंस।
छत्रसाल से लरन की रही न काह होंस।’’
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सन्दर्भ----
1-http://hi.bharatdiscovery.org/…/%E0%A4%9B%E0%A4%A4%E0%A5%8D…
2-http://www.bundelkhand.in/…/histo…/Bundeli-Kesari-Chhatrasal
3-देवी सिंह मंडावा कृत राजपूत शाखाओं का इतिहास पृष्ठ संख्या 305-313
4-http://en.wikipedia.org/wiki/Chhatrasal

Operation RAHAT, Evacuation from Yemen

Rajputana Soch  राजपूताना सोच और क्षत्रिय इतिहास's photo.
None of Indian Prestitute media was there in Yemen while BBC reported greatest evacuation done as humanitarian purpose by India under Modi and General Singh.
Operation #Rahat - India's mission to evacuate Global citizens..BBC reports an untold saga of a greatest rescue operation in Yemen after Entebbe Crisis.
Posted by Hinduism DeMystified on Saturday, April 11, 2015

Rajputana Soch  राजपूताना सोच और क्षत्रिय इतिहास's photo. हाल ही में पीएम मोदी जी के निर्देश पर केंद्रीय मंत्री जनरल वीके सिंह जी गोलियों की बौछार के बीच अपनी जान पर खेलकर 350 भारतीयो को यमन से बचाकर वापिस भारत लाए। ये वही वीके सिंह हैँ जिन्हें कुछ दिन पहले पाक दिवस पर पाकिस्तान उच्चायोग में पाकिस्तानी राजदूत के साथ मीटिंग करने पर हमारे भांड मीडिया के साथ ही सोशल मीडिया पर तथाकथित राष्ट्रवादी लोग इस्तीफा मांग रहे थे और वो राजी भी हो गए थे लेकिन जैसे तैसे विवाद को खत्म किया गया। अब उन्ही वीके सिंह को प्...रधानमन्त्री मोदी जी ने यमन में फसे हुए भारतीयो को सुरक्षित निकालने का जिम्मा सौंपा।
जिन हालात में बाकि नेता कड़ी निंदा कर के काम चला लेते हैं उस हालत में जनरल वीके सिंह ने 'we are safe' की गर्जना करते हुए मोर्चा संभाला...जहाँ गोलियां चल रही हैँ, बम फट रहे हैँ...वहां डटे रहे अपने लोगो को बचाने के लिए....सबके हालचाल लिए....सेना के विमान से सबको सकुशल वापस अपने देश लेकर आए।
Rajputana Soch  राजपूताना सोच और क्षत्रिय इतिहास's photo. लेकिन इतना होने पर भी उच्चायोग वाली बात पर विलाप करने वाले किसी चैनल या सोशल मीडिया पर छद्म राष्ट्रवादियो ने इतनी बड़ी उपलब्धि को बिलकुल नजरअंदाज किया। इन लोगो ने इतनी बड़ी उपलब्धि का संज्ञान क्यों नही लिया???
इसकी प्रमुख वजह-----
1-बीजेपी विरोधी मिडिया ने जानबूझकर इसे नजरअंदाज किया और इस उपलब्धि को छुपाने के लिए गिरिराज सिंह के बयान को जानबूझकर तूल दिया।
2- बीजेपी समर्थक मिडिया ज़ी टीवी ,इंडिया टीवी ,ibn- 7 आदि अरुण जेटली के चमचे हैं जो जनरल वी के सिंह के बड़े विरोधी हैं और जनरल साहब का गुणगान हो ये जेटली और सुषमा स्वराज को बर्दाश्त नही है।
Rajputana Soch  राजपूताना सोच और क्षत्रिय इतिहास's photo. 3- मिडिया द्वारा अनदेखी तो समझ में आती है लेकिन उच्चायोग वाली बात पर बिना वजह छाती कूटने और वीके सिंह को कोसने वाले सोशल मिडिया में मौजूद तथाकथित हिंदूवादीयो ने भी इस उपलब्धि को बिलकुल नजरअंदाज किया और उदासीनता दिखाई,क्योंकि उनके भीतर हिंदुत्व के खोल में लिपटी हुई स्वजातीय प्रेम और जातिगत विद्वेष की भावना कूट कूटकर भरी है, ये लोग राजपूतो से इतना जलते हैँ की कभी किसी राजपूत का गुणगान नही कर सकते।
उनके लिए केंद्र सरकार के हर अच्छे काम का श्रेय मोदी /अमित शाह/अरुण जेटली को है और हर गलत निर्णय के लिए बिना वजह राजनाथ सिंह और जनरल वी के सिंह को कोसना इन कथित राष्ट्रवादियो का फैशन बन गया है।
स्वजातीय गौरव की भावना तो सही है पर जातिगत विद्वेष किसलिए????
उच्चायोग वाली बात पर मीडिया से भी पहले छाती कूटना शुरू करने वाले इन सोशल मीडिया के राष्टवादियो ने जिस तरह यमन के बचाव अभियान पर एलेक्ट्रोनिक मीडिया की तरह ही चुप्पी का लबादा ओढ़े रखा उससे पता चलता है कि इनके हित इस राष्टवाद विरोधी मिडिया से कितने मिलते है और उच्चायोग वाले मुद्दे पर इन छद्म राष्टवादियो का विलाप कितना प्रायोजित था।
जनरल साब ने अपने सैन्य अनुभव और सेना में मिले युद्ध सेवा मैडल, अति विशिष्ट सेवा मेडल, परम् विशिष्ट सेवा मेडल को सार्थक कर के दिखा दिया और हमे गर्व है कि हमारा देश जनरल वीके सिंह जी जैसे साहसी और निडर लोगो के हाथो में है। जनरल साब को बहुत बहुत धन्यवाद...हमे आप पर गर्व है...!!

US funds NGO to help christianity in name of AID in NEPAL.

US Government funded Christian Evangelical groups reach Nepal to provide relief
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Hinduism DeMystified's photo. While there isn’t any reasonable data to conclude that conversions are actually on, there is cause for concern and the situation needs to be monitored. We say this because solely based on their internet activity, it is easy to establish that Christian evangelical groups have reached Nepal, and although they aren’t converting people yet, they are actively providing aid and relief.
Samaritan’s Purse, is one such organisation. In it’s Mission Statement it clearly says it is an “evangelical Christian organization providing spiritual and physical aid to hurting people around the world” … “with the purpose of sharing God’s love through His Son, Jesus Christ.”. As per reports on its own site and updates on its Twitter Account, they already have people in Nepal providing relief material, in as many as four districts. As of now, they are only providing help and aid to Nepalis. But along with their stated Mission, their past records show they are active in proselytisation.
In 2012, a UK based organization revealed that Samaritan’s Purse was engaged in a covert operation of influencing children in poor countries, to convert to Christianity by enticing them with gifts and toys under a “Shoebox Gifts” program officially called “Operation Christmas Child”. Along with the gifts, they give a pamphlet which is “a direct attempt at religious conversion of young children, complete with a “sinner’s prayer” of conversion and a pledge card.” Soon, the local church invites these children to “share the Gospel” under a course called “The Greatest Journey”. See the booklet distributed here.
As per their own site :”In the past four years, more than 4.6 million children in 88 countries have enrolled in the discipleship program. More than 2.1 million of them have made decisions for Christ, and 2.2 million have committed to share their faith with family and friends”
And there is more. Samaritan’s Purse is experienced in “helping” people hit by earthquakes. In 2001, there was an earthquake in El Salvador. The victims of this tragedy had then complained that the organization “held half-hour prayer meetings before showing them how to build temporary homes of metal and plastic”. The President of this organization, had unabashedly said:
“When we go into these villages and help people get back into their homes, we hope we’ll be able to plant new churches all over this country,”
It also must be noted that at that point in time, Samaritan’s Purse had received more than $200000 from the US Government, thus making the Government a party to conversions.
In 2005 again, Samaritan’s Purse was once again under scrutiny for using aid as a tool to convert Muslims in Indonesia, which was ravaged in the Tsunami. Once again, they had received donations form the US Government, which went upto $300000 that year.
In 2010, Haiti was struck by an Earthquake, and there again Samaritan’s Purse was quick to reach. Once again, providing medical help and proselytisation crossed paths, with one the medical volunteers and also Director of the organization said “We came to Haiti not just to extend people’s physical lives, but to point the way to eternal life through faith in Jesus Christ” as per their own annual report. If Doctors themselves declare that they have come to convert people, what else is left to say?
This trend of rushing to help people in disaster zones is a regular feature with Samaritan’s Purse, be it the earthquake in Costa Rica, hurricane in Nicaragua, tsunami in Samoa, cyclone in Vanuatu or typhoons in Philippines.
In 2013, after Cyclone Phailin, reached Odisha & West Bengal, and its partners “distributed relief supplies in Jesus’ Name”. Contuniuing with their “Shoebox Gifts” program, in 2014, Samaritan’s Purse distributed such “Gifts” to almost 5 lakh children in India. On their site, they even mention real stories of Indian’s getting converted to Christianity, including those of fatherless children. Watch this video on their initiatives in India, how they target children from slums and “present the gospel” to them via gift boxes. A child named Samir, from West Bengal says:
When I received my shoebox, I was very happy. I learned that Jesus loves me and that he sent me the box. After I got the box I started coming to the church and my parents started coming with me.
The organisations head in India says, via this program “The children who are the harvest, become the harvesters”
Samaritan’s Purse knows how to go about their work. They target people when they are most vulnerable: either in the midst of a natural disaster, or when they are children from economically backward families. It probably is the easiest to get such people in the fold. And that is why, this organization has reached Nepal. As usual, the plan will be to start with providing physical aid, and then slowly moving on to spiritual aid. While there will be no direct proof of conversions for some time, at least until the dust settles, slowly the real agenda will surface.
Nepal is no stranger to Samaritan’s Purse. When there was a drought in the area where Nepal’s Chepang tribe resides, Samaritan’s Purse was working with a Christian partner in Nepal to provide emergency food to the tribe.
We know for sure Samaritan’s Purse has already begun their work in Nepal. But are they alone? Is this the only evangelical organization there? Probably not:
1. A team from Baptist Global Response, a partner of International Mission Board (an evangelizing organization), have left for Nepal
2. A team from Children’s Hunger Fund (whose mission is to deliver hope to suffering children by equipping local churches for gospel-centered mercy ministry) is already in Nepal. (Also supported by US Government)
3. The International Nepal Fellowship (formerly known as Nepal Evangelistic Band ) is already providing relief in Nepal
4. The Salvation Army, “an evangelical part of the universal Christian Church”, already has teams in Nepal, with more coming. (Also supported by US Government)
Given all of the above, and the fact that Nepal legally allowed conversions only in 2008, Nepalis need to be alert and should see to it that if they were to choose to change their religion, it should not be under any sort of force from or moral obligation to these evangelical relief groups.
http://www.opindia.com/…/us-government-funded-christian-ev…/

India is the epitome of Religious tolerance -Country of Buddha.

Khalaf Al Harbi, a prominent thinker and columnist from Saudi Arabia, says India is the most tolerant nation on the earth.
Heaping praises on India in his latest column, he says, "In India, there are more than 100 religions and more than 100 languages. Yet, the people live in peace and harmony. They have all joined hands ...to build a strong nation that can produce everything from a sewing needle to the rocket which is preparing to go to Mars. I must say that I feel a bit jealous because I come from a part of the world which has one religion and one language and yet there is killing everywhere. No matter how the world speaks about tolerance, India remains the oldest and most important school to teach tolerance and peaceful co-existence regardless of the religious, social, political or ethnical differences."
 Read original article.

Sunday, May 3, 2015

The monk who changed Narendra Modi’s life


The monk who changed Narendra Modi’s life
Narendra Modi with Swami Atmasthananda during his last visit to Belur Math in 2013, when he was still Gujarat CM. (TOI file photo by Subhojyoti Kanjilal)
Modi and the swami go back a long way. Modi had a flower in his jacket pocket as prasadam from Monk ,when he took oath as Prime Minister on May 26, 2014.
Before 1966, young Narendra was inspired by Swami Vivekanad and wandered to get training in to spiritual life. In 1966, Young Narendra came and met Swami Atmasthananda who was in  Rajkot in Gujarat to head the city's RKM ashram.Modi ji wanted to become a Monk but he was denied by Ramkrishna Ashram in RAJKOT as well as by  refuge at the ashram.
Swami Atmasthananda, 95 year old head monk of the Ramkrishna Mission at the Belur Math near Kolkata, told him that his place is among people not a aggregation.

The Belur Math near Kolkata. (Getty Images photo) 
After spending some time at the ashram under Atmasthananda's tutelage, Modi told him he wanted to become a monk. But the head monk replied that sanyas (renunciation) was not for him. The Rajkot ashram anyway could not confer monkship and Modi would have to go to the RKM headquarters in Belur to pursue his wish. 

Not many know that Narendra Modi had a "prasadi" flower from Swami Atmasthananda in his jacket pocket when he took oath as Prime Minister on May 26, 2014. (Getty Images photo) 






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