Tuesday, January 13, 2015

#CHARLIEHEBDO OF INDIA. PARIS LIKE TERRORISM HAPPENNING IN INDIA SINCE 700 YEARS

Read this book that was regarding satanic prophet that was written in  ""Download RangeelaRasul" in Hindi  back 200 years ago by an Indian Writer, and ultimately his publisher was murdered by ISLAMIC knife.
अंग्रेजी राज के काल में मुसलमानों ने अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का फायदा उठाते हुए सबसे पहले 1845 ई में हिन्दू धर्म की आलोचना करते हुए रद्दे हनूद (हिन्दू मत का खंडन) नामक किताब लिखी जिसका प्रतिउत्तर चौबे बद्रीदास ने रद्दे मुसलमान (मुस्लिम मत का खंडन) नामक पुस्तक लिख कर दिया। इसके बाद अब्दुल्लाह नामक व्यक्ति ने 1856 ई में हिन्दू देवी देवी-देवताओं की कठोर आलोचना और निंदा करते हुए तोहफतुल-हिन्द (भारत की सौगात) के नाम से उर्दू में प्रकाशित की। पंडित लेखराम जी के अनुसार इस पुस्तक से अनेक अज्ञानी हिन्दू मुसलमान बने। ऐसी विकट स्थिति में मुरादाबाद निवासी मुंशी इन्द्रमणि हिन्दू धर्म की रक्षा के लिए तोहफतुल-इस्लाम (इस्लाम का उपहार) के नाम से फारसी में दिया। सैय्यद महमूद हुसैन ने इसके खंडन में खिलअत-अल-हनूद नामक पुस्तक छापी। उसके प्रतिउत्तर में मुंशी जी ने पादाशे इस्लाम नामक पुस्तक 1866 में छापी।इसके तीन वर्ष पश्चात मुंशी जी ने एक मुसलमान द्वारा लिखी पुस्तक असूले दीने हिन्दू (हिन्दू धर्म के सिद्धांत) नामक पुस्तक का उत्तर देने के लिए असूले दीने अहमद (इस्लाम के सिद्धांत) के नाम से लिखी।






इस पर मुसलमानों ने अत्यंत अश्लील पुस्तक 'तेगे फकीर बर गर्दने शरीर' (दुष्ट व्यक्तियों की गर्दन पर फकीर की तलवार) और हदिया उल असलाम नामक पुस्तक छापी। इसके जवाब में मुंशी जी ने हमलये हिन्द(1863), समसामे हिन्द और सौलते हिन्द (1868) नामक तीन पुस्तकें मेरठ से छपवायीं।






इसके स्वरुप मुसलमानों में तीव्र प्रतिक्रिया हुई और एक मुस्लिम पत्र जामे जमशीद ने 16 मई 1881 के अंक में मुंशी जी के विरुद्ध मुसलमानों को उतेजित किया जिसके कारण सरकार ने मुंशी जी के खिलाफ़ वारंट निकाल दिया एवं कचहरी में मुकदमा चलाया गया। यद्यपि मुंशी जी द्वारा वकीलों द्वारा पूछे गए सभी प्रश्नों का सप्रमाण उत्तर दिया गया मगर फिर भी निचली अदालत ने 500 रुपये जुर्माना किया एवं उनकी पुस्तकों को फड़वा दिया। मुंशी जी ने उपरतली अदालत में अपील की। तत्कालीन आर्य समाचार मेरठ, आर्यदर्पण शाहजहाँपुर आदि में लेख लिखे। भारत सरकार, गवर्नर जनरल शिमला आदि को आवेदनपत्र भेजे। गवर्नर ने मुक़दमे की कार्यवाही शिमला मंगवाई मगर मामला विचाराधीन है कहकर जुर्माने की रकम को घटाकर 100 रुपये कर दिया गया और मुसलमानों द्वारा हिन्दुओं के विरुद्ध लिखी गई पुस्तकों को नजरअंदाज कर दिया गया। मामला हाई कोर्ट में गया मगर जुर्माना बहाल रखा गया। अंत में तीव्र आंदोलन होने पर मुंशी जी का जुर्माना भी क्षमा कर दिया गया। स्वामी दयानंद ने आर्यसमाज के पत्रों के माध्यम से मुंशी जी की धन से सहायता करने की अपील भी निकाली थी। मुंशी जी ने मेला चाँदपुर शास्त्रार्थ में स्वामी जी के साथ आर्यसमाज के पक्ष को प्रस्तुत किया था और आर्यसमाज मुरादाबाद के प्रधान पद पर भी रहे थे। स्वामी दयानंद पर इस मुक़दमे के कारण अंग्रेज सरकार की न्यायप्रियता एवं पक्षपात रहित सोच पर अनेक संशय उत्पन्न हो गए। सही पक्ष होते हुए भी मुंशी जी को तंग किया गया, उनकी पुस्तकें नष्ट की गई एवं मुसलमानों की पुस्तकों पर कोई कार्यवाही नहीं की गई। स्वामी जी शांत बैठने वालो में से नहीं थे। अपने लंदन में पढ़ रहे अपने शिष्य पंडित श्याम जी कृष्ण जी को लंदन की पार्लियामेंट में इस मामले को उठाने की सलाह अपने पत्र व्यवहार में दी जिससे की अंग्रेज सरकार द्वारा भारत में सामान्य जनता के विरुद्ध कैसा व्यवहार होता है इससे लंदन निवासी परिचित हो सके। अंग्रेजों द्वारा पक्षपात करने के कारण स्वामी दयानंद का चिंतन निश्चित रूप से स्वदेशी राजा एवं स्वतंत्रता की ओर पहले से अधिक प्रेरित होना कोई अतिश्योक्ति नहीं है।


अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के पक्षधर स्वामी दयानंद ने सत्यार्थ प्रकाश की रचना कर चिर काल से सो रही मानव जाति को जगाया। सत्यार्थ प्रकाश आरम्भ के दस समुल्लासों की बजाय अंत के चार समुल्लासों के कारण अधिक चर्चा में रहा है। सत्यार्थ प्रकाश के विपक्ष में इतना अधिक साहित्य लिखा गया कि एक वृहद पुस्तकालय ही बन जाये। इसका मूल कारण स्वामी जी के उद्देश्य को ठीक प्रकार से समझना नहीं था। स्वामी जी का उद्देश्य किसी की भावना को आहत करना नहीं अपितु सत्य का मंडन एवं असत्य का खंडन था और मनुष्य के जीवन का उद्देश्य भी यही है। स्वामी जी का कहना था कि मत-मतान्तर के आपसी मतभेद के चलते धर्म का ह्रास हुआ है एवं मानव जाति की व्यापक हानि हुई है और जब तक यह मतभेद नहीं छूटेगा तब तक आनंद नहीं होगा। पंडित गंगाप्रसाद उपाध्याय जी के अनुसार सत्यार्थ प्रकाश के माध्यम से स्वामी दयानंद ने रूढ़िवादी एवं असत्य मान्यताओं पर जो कुठाराघात किया वह सैद्धांतिक, पक्षपात रहित एवं तर्कसंगत था जबकि उससे पहले लिखी गई पुस्तकों में प्राय: भद्दी गलियां एवं अश्लील भाषा की भरमार अधिक होती थी। स्वामी जी सामाजिक चेतना के पक्षधर थे।

स्वामी दयानंद के पश्चात पंडित लेखराम द्वारा अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अंतर्गत आर्यमर्यादा का पालन करते हुए वैदिक धर्म के विरुद्ध प्रकाशित हो रही पुस्तकों का प्रतिउत्तर दिया। पंडित जी द्वारा रचित रिसाला जिहाद के विरुद्ध मुसलमानों ने 1892 में कोर्ट में केस किया था जिसकी पैरवी लाला लाजपत राय जी द्वारा बखूबी की गई थी। अनंतत जीत आर्यसमाज की हुई थी। अहमदिया जमात के मिर्जा गुलाम अहमद ने बरहीन अहमदिया नामक पुस्तक चंदा मांग कर छपवाई. पंडित जी ने उसका उत्तर तकजीब ए बरहीन अहमदिया लिखकर दिया। मिर्जा ने सुरमाये चश्मे आर्या (आर्यों की आंख का सुरमा) लिखा जिसका पंडित जी ने उत्तर नुस्खाये खब्ते अहमदिया (अहमदी खब्त का ईलाज) लिख कर दिया। अंत में धोखे से पंडित जी को पेट में छुरा मारकर क़त्ल कर दिया गया। अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के लिए पंडित लेखराम जी का अमर बलिदान हुआ।

सन १९२३ में मुसलमानों की ओर से दो पुस्तकें "१९ वीं सदी का महर्षि" और “कृष्ण,तेरी गीता जलानी पड़ेगी ” प्रकाशित हुई थी। पहली पुस्तक में आर्यसमाज के संस्थापक स्वामी दयानंद का सत्यार्थ प्रकाश के १४ सम्मुलास में कुरान की समीक्षा से खीज कर उनके विरुद्ध आपतिजनक एवं घिनोना चित्रण प्रकाशित किया था जबकि दूसरी पुस्तक में श्री कृष्ण जी महाराज के पवित्र चरित्र पर कीचड़ उछाला गया था। उस दौर में विधर्मियों की ऐसी शरारतें चलती ही रहती थी पर धर्म प्रेमी सज्जन उनका प्रतिकार उन्ही के तरीके से करते थे। महाशय राजपाल ने स्वामी दयानंद और श्री कृष्ण जी महाराज के अपमान का प्रति उत्तर १९२४ में "रंगीला रसूल" के नाम से पुस्तक छाप कर दिया, जिसमे मुहम्मद साहिब की जीवनी व्यंग्यात्मक शैली में प्रस्तुत की गयी थी। यह पुस्तक उर्दू में थी और इसमें सभी घटनाएँ इतिहास सम्मत और प्रमाणिक थी। पुस्तक में लेखक के नाम के स्थान पर “दूध का दूध और पानी का पानी "छपा था। वास्तव में इस पुस्तक के लेखक पंडित चमूपति जी थे जो की आर्यसमाज के श्रेष्ठ विद्वान् थे। वे महाशय राजपाल के अभिन्न मित्र थे। मुसलमानों के ओर से संभावित प्रतिक्रिया के कारण चमूपति जी इस पुस्तक में अपना नाम नहीं देना चाहते थे। इसलिए उन्होंने महाशय राजपाल से वचन ले लिया की चाहे कुछ भी हो जाये,कितनी भी विकट स्थिति क्यूँ न आ जाये वे किसी को भी पुस्तक के लेखक का नाम नहीं बतायेगे। महाशय राजपाल ने अपने वचन की रक्षा अपने प्राणों की बलि देकर की पर पंडित चमूपति सरीखे विद्वान् पर आंच तक न आने दी। १९२४ में छपी रंगीला रसूल बिकती रही पर किसी ने उसके विरुद्ध शोर न मचाया फिर महात्मा गाँधी ने अपनी मुस्लिमपरस्त निति में इस पुस्तक के विरुद्ध एक लेख लिखा। इस पर कट्टरवादी मुसलमानों ने महाशय राजपाल के विरुद्ध आन्दोलन छेड़ दिया। सरकार ने उनके विरुद्ध १५३ए धारा के अधीन अभियोग चला दिया। अभियोग चार वर्ष तक चला। राजपाल जी को छोटे न्यायालय ने डेढ़ वर्ष का कारावास तथा १००० रूपये का दंड सुनाया गया। इस फैसले के विरुद्ध अपील करने पर सजा एक वर्ष तक कम कर दी गई। इसके बाद मामला हाई कोर्ट में गया। कँवर दिलीप सिंह की अदालत ने महाशय राजपाल को दोषमुक्त करार दे दिया। मुसलमान इस निर्णय से भड़क उठे। खुदाबख्स नामक एक पहलवान मुसलमान ने महाशय जी पर हमला कर दिया जब वे अपनी दुकान पर बैठे थे पर संयोग से आर्य सन्यासी स्वतंत्रानंद जी महाराज एवं स्वामी वेदानन्द जी महाराज वह उपस्थित थे। उन्होंने घातक को ऐसा कसकर दबोचा की वह छुट न सका। उसे पकड़ कर पुलिस के हवाले कर दिया गया, उसे सात साल की सजा हुई। रविवार ८ अक्टूबर १९२७ को स्वामी सत्यानन्द जी महाराज को महाशय राजपाल समझ कर अब्दुल अज़ीज़ नमक एक मतान्ध मुसलमान ने एक हाथ में चाकू ,एक हाथ में उस्तरा लेकर हमला कर दिया। स्वामी जी घायल कर वह भागना ही चाह रहा था की पड़ोस के दूकानदार महाशय नानकचंद जी कपूर ने उसे पकड़ने का प्रयास किया। इस प्रयास में वे भी घायल हो गए तो उनके छोटे भाई लाला चूनीलाल जी जी उसकी ओर लपके। उन्हें भी घायल करते हुए हत्यारा भाग निकला पर उसे चौक अनारकली, लाहौर पर पकड़ लिया गया। उसे चोदह वर्ष की सजा हुई ओर तदन्तर तीन वर्ष के लिए शांति की गारंटी का दंड सुनाया गया। स्वामी सत्यानन्द जी के घाव ठीक होने में करीब डेढ़ महीना लगा। ६ अप्रैल १९२९ को महाशय राजपाल अपनी दुकान पर आराम कर रहे थे। तभी इल्मदीन नामक एक मतान्ध मुसलमान ने महाशय जी की छाती में छुरा घोप दिया जिससे महाशय जी का तत्काल प्राणांत हो गया। हत्यारा अपने जान बचाने के लिए भागा ओर महाशय सीताराम जी के लकड़ी के टाल में घुस गया। महाशय जी के सुपुत्र विद्यारतन जी ने उसे कस कर पकड़ लिया। पुलिस हत्यारे को पकड़ कर ले गई और बाद में मुसलमानों द्वारा पूरा जोर लगाने पर भी इल्मदीन को फाँसी की सजा हुई। अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता में यह निराला बलिदान था।

लाहौर में आर्यसमाज के पुस्तक विक्रेता वीर परमानन्द जी को जेठ की दोपहरी में उस समय मार दिया गया जब वह उर्दू सत्यार्थ प्रकाश की प्रतियोँ को लेने अपनी दुकान पर गए थे। मुसलमानों के लिए सत्यार्थ प्रकाश के १४ वे समुल्लास में कुरान की समीक्षा के उद्देश्य को मजहबी आक्रोश में हिंसा का रास्ता अपनाना दुर्भाग्यपूर्ण फैसला था।
अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की रक्षा की पंक्ति में वीर नाथूराम जी का बलिदान स्मरणीय है। वीर नाथूराम का जन्म 1 अप्रैल 1904 को हैदराबाद सिंध प्रान्त में हुआ था। पंजाब में उठे आर्य समाज के क्रांतिकारी आन्दोलन से आप प्रभावित होकर 1927 में आप आर्यसमाज में सदस्य बनकर कार्य करने लगे। उन दिनों इस्लाम और ईसाइयत को मानने वाले हिन्दुओं को अधिक से अधिक धर्म परिवर्तन कर अपने मत में सम्मिलित करने की फिराक में रहते थे। 1931 मेंअहमदिया (मिर्जाई) मत की अंजूमन ने सिंध में कुछ विज्ञापन निकल कर हिन्दू धर्म और हिन्दू वीरों पर गलत आक्षेप करने शुरू कर दिए। जिसे पढ़कर आर्यवीर नाथूराम से रहा न गया और उन्होंने ईसाईयों द्वारा लिखी गयी पुस्तक ‘तारीखे इस्लाम’ का उर्दू से सिन्धी में अनुवाद कर उसे प्रकाशित किया और एक ट्रैक लिखा जिसमे मुसलमान मौलवियों से इस्लाम के विषय में शंका पूछी गई थी। ये दोनों साहित्य नाथूराम जी ने निशुल्क वितरित की थी । इससे मुसलमानों में खलबली मच गई। उन्होंने भिन्न भिन्न स्थानों में उनके विरुद्ध आन्दोलन शुरू कर दिया। इन हलचलों और विरोध का परिणाम हुआ की सरकार ने नाथूराम जी पर अभियोग आरंभ कर दिया। नाथूराम जी ने कोर्ट में यह सिद्ध किया की प्रथम तो ये पुस्तक मात्र अनुवाद है इसके अलावा इसमें जो तर्क दिए गए है वे सब इस्लाम की पुस्तकों में दिए गए प्रमाणों से सिद्ध होते है। जज ने उनकी दलीलों को अस्वीकार करते हुए उन्हें 1000 रूपये दंड और कारावास की सजा सुनाई। इस पक्षपात पूर्ण निर्णय से सारे सिंध में तीखी प्रतिक्रिया हुई। इस निर्णय के विरुद्ध चीफ़ कोर्ट में अपील करी गई। 20 सितम्बर 1934 को कोर्ट में जज के सामने नाथूराम जी ने अपनी दलीले पेश करी। अब जज को अपना फैसला देना था। तभी एक चीख से पूरी अदालत की शांति भंग हो गई। अब्दुल कय्यूम नामक मतान्ध मुस्लमान ने नाथूराम जी पर चाकू से वार कर उन्हें घायल कर दिया जिससे वे शहिद हो गए। चीफ जज ने वीर नाथूराम के मृत देह को सलाम किया। बड़ी धूम धाम से वीर नाथूराम की अर्थी निकली। हजारो की संख्या में हिन्दुओ ने वीर नाथूराम को विदाई दी। अब्दुल कय्यूम को पकड़ लिया गया। उसे बचाने की पूरजोर कोशिश की गयी मगर उसे फांसी की सजा हुई।


आर्यसमाज के इतिहास में अनेक इस प्रकार की घटनाओं का उद्देश्य अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की रक्षा करना था मगर पाठकों को मन में एक शंका बार बार उठ रही होगी कि मकबूल फ़िदा हुसैन द्वारा हिन्दू देवी देवताओं की नग्न पेंटिंग के विरुद्ध जो प्रतिक्रिया हुई थी , 300 रामायण के नाम से रामानुजम द्वारा रचित निबंध जिसे दिल्ली के विश्वविद्यालय में पढ़ाने पर प्रतिक्रिया हुई थी, सीता सिंग्स थे ब्लूज (sita sings the blues) नामक रामायण पर आधारित तथ्यों से विपरीत जो फ़िल्म बनी थी, आमिर खान द्वारा अभिनीत pk जैसी फिल्में भी तो अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता है। फिर तो इनका विरोध करना मूर्खता है।

इस शंका का उत्तर अत्यंत स्पष्ट है। वह है इन सभी कार्यों को करने का उद्देश्य क्या है। किसी भी गलत तथ्य को गलत कहना सत्यता है जबकि किसी भी सही तथ्य को गलत कहना असत्यता है। आज जो ढोंग अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के नाम पर हो रहा है वह इसी श्रेणी में आता है। हिंदी देवी देवताओं की नग्न पेंटिंग के माध्यम से हुसैन कौन सा समाज सुधार कर रहे थे? रामानुजम की पुस्तक में लिखे एक तथ्य को पढ़िये। उसमें लिखा हे लक्ष्मण की सीता माता पर टेढ़ी दृष्टि थी जबकि वाल्मीकि रामायण कहती है लक्ष्मण जी ने कभी सीता माता का मुख नहीं देखा था। उन्होंने केवल उनके चरण देखे थे जिन्हें वे प्रतिदिन सम्मान देने के लिए छूते थे। रामायण पर आधारित फ़िल्म में रामायण में वर्णित मर्यादा, पिता-पुत्र, भाई-भाई में परस्पर प्रेम के स्थान पर प्रक्षिप्त रामायण के भागों को दिखाना कहां तक उचित है? pk फ़िल्म आस्था और श्रद्धा पर प्रश्न तो करती है मगर भटके हुओं को रास्ता दिखाने में असफल हो जाती है। जब आमिर खान यह कहता हैं कि मुझे ईश्वर के विषय में नहीं मालूम तब यह स्पष्ट हो जाता है कि फिल्म बनाने वाले को इसका उद्देश्य नहीं मालूम। इस प्रकार से यह फिल्म जिज्ञासु प्रवृति के व्यक्ति को असंतुष्ट कर नास्तिक बनने की प्रेरणा देती है और केवल धन कमाने का धंधा मात्र दीखता है।


अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता अत्यंत आवश्यक है मगर यह कार्य तभी संभव है जब इसे पक्षपात रहित विद्वान करे। पक्षपाती लोग अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता अन्यों के प्रति दुर्भावना के लिए जब जब करते है तब तब संसार का अहित होता है और होता रहेगा। पक्षपात रहित लोग समाज के कल्याण के लिए उद्घोष करते है तभी उन्हें समाज सुधारक की श्रेणी में गिना जाता है। आज देश को तोड़ने वाली शक्तियाँ, हिन्दू समाज में सामाजिक दूरियाँ पैदा कर उसे असंगठित करने के लिए अभिव्यक्ति के नाम पर उलटे सीधे प्रपंच कर समाज का अहित कर रही है। अभिव्यक्ति पर अंकुश होना दकियानूसी सोच है मगर अभिव्यक्ति का अनियंत्रित होना मीठे जहर के समान है। सदाचारी, पुरुषार्थी, धर्मात्मा मनुष्यों के हाथों में समाज का मार्गदर्शन होना चाहिए जिससे कि धर्मविरोधी, नास्तिक, भोग-विलासी, देशद्रोही ताकतों को अवसर न मिले। अंत में उन सभी महान आत्माओं को श्रद्धांजलि जिन्होंने समाज सुधार के लक्ष्य से अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के लिए अपने जीवन की आहुति दी।



डॉ विवेक आर्य
सम्पूर्ण विश्व में पेरिस में हुए हमले में शार्लि अब्दो पत्रिका के 10 कार्टूनिस्टों की हत्या की कड़े शब्दों में आलोचना की गई है एवं इसे अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर हमला बताया गया। निश्चित रूप से आतंकवादियों की हिंसक प्रतिक्रिया निंदनीय है। भारत का "सेक्युलर" मीडिया अपनी चिरपरिचित मनोवृति में आतंकी हिंसा को pk फिल्म के विरुद्ध हुई प्रतिक्रिया से तुलना करने में अपनी बड़ाई समझ रहा है। परन्तु अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के मूलभूत उद्देश्य से प्राय: सभी सेकुलरवादी अनभिज्ञ है। इस लेख का उद्देश्य अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के उद्देश्य को भारतीय इतिहास की सहायता से समझना है।

Monday, January 12, 2015

AAP ,KEJRIWAL is controlled by Ford foundation and CIA

http://shankhanad.blogspot.com/2014/05/aapkejriwal-is-traitor-and-liar.html

China Considering ban on BURQUA,HIJAB

With what went and going on all over world, China and Russia knows  how to deal with extremists because their gove is real govet when it comes to forcing law and taking decisions without VOTE BANK POLITICS. What Europe is going through is what India has gone through and going on for last 800 years  when Islamist came to terrorise EDUCATED INDIAN ELITES who had mastery not only on science but also on spirituality via Buddha. But Buddha went to far extreme  so monks stopped using arms training etc which was against PIOS GITA BOOK OF HINDUS. As per Gita Book, no one needs to search for so called GOD anywhere. Just do your work, designed far and Karma will give you bad or good effect. Kill terrorists as God Krishna did.  Buddha and later Gandhi was part of islamization in India. Europe must learn from China now otherwise it will become ISLAMIST country. India seems gatehering momentum after Modi is in power 8 months ago.Before Modi, India was almost dead from action as all leaders were playing VOTE politics and filling their bank balance in name of terrorism -both islamic and christian conversion propoganda. Christian must stop conversion game in India otherwise they will be treated as Islamist are now in India.
Chinese authorities have banned women in the capital city of Xinjiang—an autonomous western region where Muslims account for almost half of the population—from wearing burqas in public, according to a brief article on a government-run website, Tianshan News. Local legislators for Urumqi proposed the ban in December, and now the regional legislature has approved it.
It’s not clear when the ban will go into effect. State media said only that it will be implemented after being modified to meet comments proposed in a meeting over the weekend.
Ever since a group of Uighur Muslims went on a killing spree in a train station in Kunming last March, Chinese officials have ratcheted up restrictions on a group they see as potential extremists. Xinjiang officials later banned students and civil servants from fasting for Ramadan, and authorities in the Xinjiang city of Karamy barred anyone wearing burqas, niqabs, hijabs or simply “large beards” from taking public buses.
The state-run news agency Xinhua justified the burqa ban by pointing out that burqas are also banned in France (perhaps not the best example to use, given the recent extremist attack on French magazine Charlie Hebdo). The Xinhua report in English said, “Burqas are not traditional dress for Uighur women… The regulation is seen as an effort to curb growing extremism that forced Uighur women to abandon their colorful traditional dress and wear black burqas.”
 QZ.COM

Sunday, January 11, 2015

M K(C)GANDHI WAS KILLED BECAUSE HE WANTED SHARIA LAW IN INDIA

मुसलमान गांधीजी को बहुत बहुत पसंद करते हैं...क्यों..?
1. "अगर मुसलमान लोग हम हिन्दुओं को मारना चाहें...तो हमें मौत को वीरता से गले लगाना चाहिए..." ... यानि हिन्दुओं को अश्त्र नहीं उठाना चाहिए...अपनी रक्षा के लिए कुछ नहीं करना चाहिए...चुप चाप मर जाना चाहिए...अब पता लगा नेहरु ने गांधीजी को क्यों राष्ट्र पिता घोषित किया....ताकि hindu पिताजी की बात मान कर चुप चाप मरता रहे...और भारत एक दिन मुस्लिम देश बन जाये....!!!!!!!!!!!!!1
2. मुसलामन लाख हिन्दुओं को बर्बाद करना चाहे...फिर भी हिन्दुओं को उनके लिए अपने दिलों में गुस्सा नहीं पालना चाहिए....
3. अगर मुसलमान लोग हम हिन्दुओं को मारने के बाद अपना शाशन कायम करें तो हम अपना अपना जीवन बलिदान देने के बाद एक नयी दुनिया में जायेंगे..
�My principal object in coming to Hindustan� has been to accomplish two things. The first was to war with the infidels, the enemies of the Mohammadan religion; and by this religious warfare to acquire some claim to reward in the life to come. The other was� that the army of Islam might gain something by plundering the wealth and valuables of the infidels: plunder in war is as lawful as their mothers� milk to Musalmans who war for their faith.�
Amir Timur
While studying the legacy of Muslim rule in India, it has to be constantly borne in mind that the objectives of all Muslim invaders and rulers were the same as those mentioned above. Timur or Tamerlane himself defines them candidly and bluntly while others do so through their chroniclers.
Read more -http://voiceofdharma.org/books/tlmr/ch3.htm

..http://www.danielpipes.org/

Saturday, January 10, 2015

ISLAMIC SHARIA LAW IN PARTS OF PARIS AND EUROPE

Hundreds of 'No-Go Zones' Across France Are Off-Limits to Non-Muslims-(Fox news)

France has many areas that are governed by Islamic Sharia law and police and law administration does not work there. And Charlie Hebdo attack was a precursor and a beginning to much serious incursion and terrorism all over Europe.Europe will burn from now on until they deal these radicals with full force and Britain and France,Denmark etc all European countries needs to ban Sharia law or NO GO ZONES all together. USA will be next target also. 
This isn’t the end of two terrorist attacks. It is the beginning of a war.
Freedom of speech is one of the weight-bearing pillars of democracy, and if we become reluctant to express our opinions in fear of angering Islamists, democracy will stagger. We simply cannot allow fundamentalists to threaten us to silence.


Friday morning a second group of Islamist extremists stormed a kosher market in Paris. They  executed women and children. The terrorists will ultimately die, too, but probably not before they kill innocent civilians. 
There are large neighborhoods in the Paris suburbs called No-Go Zones, where non-Muslims dare not enter. There are similar areas in cities throughout Europe. They are microstates within states, governed by Shariah law, where young people go to madrassas instead of public schools.
They are recruited over the Internet, or in their neighborhoods, or at their mosques, and they are offered all-expenses-paid trips to the Middle East to fight a holy war. They travel freely across Europe and into Turkey, and then they cross, undetected, over the porous border into Syria or Iraq. ISIS trains them, gives them battlefield experience and sends them back across the border to retrace their steps home. They are returning citizens who know how to use sophisticated weapons, make car bombs, recruit terrorist cells and plan attacks. There are over 1,000 French citizens who have gone to fight for ISIS, over 1,000 Brits and hundreds of Germans, Belgians and Dutch.
They shout “Allahu Akbar, The Prophet is Avenged.” We’re still calling it “workplace violence,” “senseless killings” or “man-caused disasters.” Our leaders insist these are criminal acts, not acts of war.
It is a war we can win, but only if we in the West wise up now. Call it what it is: Islamist extremists who believe they are justified to fight and kill in the name of their religion.
The Muhammed cartoons proved this years ago, and it was the reason why the Danish newspaper Jyllands-Posten chose to publish them. Before the case of the Muhammed cartoons, Kåre Bluitgen was not able to find an illustrator willing to draw cartoons for his book about the prophet Muhammed, as many feared for their safety. 
A fear that is not unjustified, as we have witnessed this week. We saw this when the world’s Islamists went crazy over the cartoons, and we saw it when the Dutch filmmaker, Theo van Gogh, was murdered because his film criticized Islam’s treatment of women. With this week’s tragedy, at least 12 people are dead because Charlie Hebdo stood up for the values of free speech.

When Charlie Hebdo published satirical cartoons mocking the prophet Muhammed in September 2012, the White House officially questioned the judgment of the satirical magazine. Today it is clear that this kind of criticism is a terrible mistake.

You have to get dirty, you have to exterminate this scum that is plaguing the entire planet.
When and if clinton become next US president, you will see a real war to happen, Jewish state should find friends in Russia, India now as USA could ditch them.
Main reason for islamist to become terrorist is Q book-
 WHY ISLAMIST CAN NOT BE PEACEFUL
quran-109-verses-of-terrorism
1000-scientific-errors-in-quran






VIMANA- IN AFGANISTAN -DOCUMENTARY


Friday, January 9, 2015

सम्राट विक्रम ने रोम के शासक जुलियस सीजर(juliyas seejar) को भी हराकर उसे बंदी बनाकर उज्जेन की सड़कों पर घुमाया था

सम्राट विक्रम ने रोम के शासक जुलियस सीजर(juliyas seejar) को भी हराकर उसे बंदी बनाकर उज्जेन की सड़कों पर घुमाया था
सम्राट विक्रम ने रोम के शासक जुलियस सीजर को भी हराकर उसे बंदी बनाकर उज्जेन की सड़कों पर घुमाया था.
टिपण्णी यह है कि ———————-
कालिदास-ज्योतिर्विदाभरण-अध्याय२२-ग्रन्थाध्यायनिरूपणम्-
श्लोकैश्चतुर्दशशतै सजिनैर्मयैव ज्योतिर्विदाभरणकाव्यविधा नमेतत् ॥ᅠ२२.६ᅠ॥
विक्रमार्कवर्णनम्-वर्षे श्रुतिस्मृतिविचारविवेकरम्ये श्रीभारते खधृतिसम्मितदेशपीठे।
मत्तोऽधुना कृतिरियं सति मालवेन्द्रे श्रीविक्रमार्कनृपराजवरे समासीत् ॥ᅠ२२.७ᅠ॥
नृपसभायां पण्डितवर्गा-शङ्कु सुवाग्वररुचिर्मणिरङ्गुदत्तो जिष्णुस्त्रिलोचनहरो घटखर्पराख्य।
अन्येऽपि सन्ति कवयोऽमरसिंहपूर्वा यस्यैव विक्रमनृपस्य सभासदोऽमो ॥ᅠ२२.८ᅠ॥
सत्यो वराहमिहिर श्रुतसेननामा श्रीबादरायणमणित्थकुमारसिंहा।
श्रविक्रमार्कंनृपसंसदि सन्ति चैते श्रीकालतन्त्रकवयस्त्वपरे मदाद्या ॥ᅠ२२.९ᅠ॥
नवरत्नानि-धन्वन्तरि क्षपणकामरसिंहशङ्कुर्वेतालभट्टघटखर्परकालिदासा।
ख्यातो वराहमिहिरो नृपते सभायां रत्नानि वै वररुचिर्नव विक्रमस्य ॥ᅠ२२.१०ᅠ॥
यो रुक्मदेशाधिपतिं शकेश्वरं जित्वा गृहीत्वोज्जयिनीं महाहवे।
आनीय सम्भ्राम्य मुमोच यत्त्वहो स विक्रमार्कः समसह्यविक्रमः ॥ २२.१७ ॥
तस्मिन् सदाविक्रममेदिनीशे विराजमाने समवन्तिकायाम्।
सर्वप्रजामङ्गलसौख्यसम्पद् बभूव सर्वत्र च वेदकर्म ॥ २२.१८ ॥
शङ्क्वादिपण्डितवराः कवयस्त्वनेके ज्योतिर्विदः सभमवंश्च वराहपूर्वाः।
श्रीविक्रमार्कनृपसंसदि मान्यबुद्घिस्तत्राप्यहं नृपसखा किल कालिदासः ॥ २२.१९ ॥
काव्यत्रयं सुमतिकृद्रघुवंशपूर्वं पूर्वं ततो ननु कियच्छ्रुतिकर्मवादः।
ज्योतिर्विदाभरणकालविधानशास्त्रं श्रीकालिदासकवितो हि ततो बभूव ॥ २२.२० ॥
वर्षैः सिन्धुरदर्शनाम्बरगुणै(३०६८)र्याते कलौ सम्मिते, मासे माधवसंज्ञिके च विहितो ग्रन्थक्रियोपक्रमः।
नानाकालविधानशास्त्रगदितज्ञानं विलोक्यादरा-दूर्जे ग्रन्थसमाप्तिरत्र विहिता ज्योतिर्विदां प्रीतये ॥ २२.२१ ॥
ज्योतिर्विदाभरण की रचना ३०६८ कलि वर्ष (विक्रम संवत् २४) या ईसा पूर्व ३३ में हुयी। विक्रम सम्वत् के प्रभाव से उसके १० पूर्ण वर्ष के पौष मास से जुलिअस सीजर द्वारा कैलेण्डर आरम्भ हुआ, यद्यपि उसे ७ दिन पूर्व आरम्भ करने का आदेश था। विक्रमादित्य ने रोम के इस शककर्त्ता को बन्दी बनाकर उज्जैन में भी घुमाया था (७८ इसा पूर्व में) तथा बाद में छोड़ दिया।। इसे रोमन लेखकों ने बहुत घुमा फिराकर जलदस्युओं द्वारा अपहरण बताया है तथा उसमें भी सीजर का गौरव दिखाया है कि वह अपना अपहरण मूल्य बढ़ाना चाहता था। इसी प्रकार सिकन्दर की पोरस (पुरु वंशी राजा) द्वारा पराजय को भी ग्रीक लेखकों ने उसकी जीत बताकर उसे क्षमादान के रूप में दिखाया है।

http://en.wikipedia.org/wiki/Julius_Caesar
Gaius Julius Caesar (13 July 100 BC – 15 March 44 BC) — In 78 BC, — On the way across the Aegean Sea, Caesar was kidnapped by pirates and held prisoner. He maintained an attitude of superiority throughout his captivity. When the pirates thought to demand a ransom of twenty talents of silver, he insisted they ask for fifty. After the ransom was paid, Caesar raised a fleet, pursued and captured the pirates, and imprisoned them. He had them crucified on his own authority.
Quoted from History of the Calendar, by M.N. Saha and N. C. Lahiri (part C of the Report of The Calendar Reforms Committee under Prof. M. N. Saha with Sri N.C. Lahiri as secretary in November 1952-Published by Council of Scientific & Industrial Research, Rafi Marg, New Delhi-110001, 1955, Second Edition 1992.
Page, 168-last para-“Caesar wanted to start the new year on the 25th December, the winter solstice day. But people resisted that choice because a new moon was due on January 1, 45 BC. And some people considered that the new moon was lucky. Caesar had to go along with them in their desire to start the new reckoning on a traditional lunar landmark.”
ज्योतिर्विदाभरण की कहानी ठीक होने के कई अन्य प्रमाण हैं-सिकन्दर के बाद सेल्युकस्, एण्टिओकस् आदि ने मध्य एसिआ में अपना प्रभाव बढ़ाने की बहुत कोशिश की, पर सीजर के बन्दी होने के बाद रोमन लोग भारत ही नहीं, इरान, इराक तथा अरब देशों का भी नाम लेने का साहस नहीं किये। केवल सीरिया तथा मिस्र का ही उल्लेख कर संतुष्ट हो गये। यहां तक कि सीरिया से पूर्व के किसी राजा के नाम का उल्लेख भी नहीं है। बाइबिल में लिखा है कि उनके जन्म के समय मगध के २ ज्योतिषी गये थे जिन्होंने ईसा के महापुरुष होने की भविष्यवाणी की थी। सीजर के राज्य में भी विक्रमादित्य के ज्योतिषियों की बात प्रामाणिक मानी गयी।