Tuesday, December 23, 2014

रानी कत्युरी की कहानी

कुमायूं (उतराखण्ड) के कत्युरी राजवंश की वीर राजमाता वीरांगना जिया रानी(मौला देवी पुंडीर)-
मित्रों इतिहास में कुछ ऐसे अनछुए व्यक्तित्व होते हैं जिनके बारे में ज्यादा लोग नहीं जानते मगर एक क्षेत्र विशेष में उनकी बड़ी मान्यता होती है और वे लोकदेवता के रूप में पूजे जाते हैं,
आज हम आपको एक ऐसी ही वीरांगना से परिचित कराएँगे जिनकी कुलदेवी के रूप में आज तक उतराखंड में पूजा की जाती है.
उस वीरांगना का नाम है राजमाता जिया रानी(मौला देवी पुंडीर) जिन्हें कुमायूं की रानी लक्ष्मीबाई कहा जाता है ----------------

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जिया रानी(मौला देवी पुंडीर) jiya rani pundir-------
जिया रानी का बचपन का नाम मौला देवी था,वो हरिद्वार(मायापुर) के राजा अमरदेव पुंडीर की पुत्री थी,ईस्वी 1192 में देश में तुर्कों का शासन स्थापित हो गया था,मगर उसके बाद भी किसी तरह दो शताब्दी तक हरिद्वार में पुंडीर राज्य बना रहा,मगर तुर्कों के हमले लगातार जारी रहे और न सिर्फ हरिद्वार बल्कि गढ़वाल और कुमायूं में भी तुर्कों के हमले होने लगे,ऐसे ही एक हमले में कुमायूं (पिथौरागढ़) के कत्युरी राजा प्रीतम देव ने हरिद्वार के राजा अमरदेव पुंडीर की सहायता के लिए अपने भतीजे ब्रह्मदेव को सेना के साथ सहायता के लिए भेजा,ज्सिके बाद राजा अमरदेव पुंडीर ने अपनी पुत्री मौला देवी का विवाह कुमायूं के कत्युरी राजवंश के राजा प्रीतमदेव उर्फ़ पृथ्वीपाल से कर दिया,मौला देवी प्रीतमपाल की दूसरी रानी थी,उनके धामदेव,दुला,ब्रह्मदेव पुत्र हुए जिनमे ब्रह्मदेव को कुछ लोग प्रीतम देव की पहली पत्नी से मानते हैं,मौला देवी को राजमाता का दर्जा मिला और उस क्षेत्र में माता को जिया कहा जाता था इस लिए उनका नाम जिया रानी पड़ गया,कुछ समय बाद जिया रानी की प्रीतम देव से अनबन हो गयी और वो अपने पुत्र के साथ गोलाघाट चली
 गयी जहां उन्होंने एक खूबसूरत रानी बाग़ बनवाया,यहाँ जिया रानी 12 साल तक रही.........
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तैमुर का हमला-------------
ईस्वी 1398 में मध्य एशिया के हमलावर तैमुर ने भारत पर हमला किया और दिल्ली मेरठ को रौंदता हुआ वो हरिद्वार पहुंचा जहाँ उस समय वत्सराजदेव पुंडीर(vatsraj deo pundir) शासन कर रहे थे,उन्होंने वीरता से तैमुर का सामना किया मगर शत्रु सेना की विशाल संख्या के आगे उन्हें हार का सामना करना पड़ा,पुरे हरिद्वार में भयानक नरसंहार हुआ,जबरन धर्मपरिवर्तन हुआ और राजपरिवार को भी उतराखण्ड के नकौट क्षेत्र में शरण लेनी पड़ी वहां उनके वंशज आज भी रहते हैं और मखलोगा पुंडीर के नाम से जाने जाते हैं,
तैमूर ने एक टुकड़ी आगे पहाड़ी राज्यों पर भी हमला करने भेजी,जब ये सूचना जिया रानी को मिली तो उन्होंने इसका सामना करने के लिए कुमायूं के राजपूतो की एक बड़ी सेना का गठन किया,तैमूर की सेना और जिया रानी के बीच रानीबाग़ क्षेत्र में युद्ध हुआ जिसमे मुस्लिम सेना की हार हुई,इस विजय के बाद जिया रानी के सैनिक कुछ निश्चिन्त हो गये,पर वहां दूसरी अतिरिक्त मुस्लिम सेना आ पहुंची जिससे जिया रानी की सेना की हार हुई,और सतीत्व की रक्षा के लिए एक गुफा में जाकर छिप गयी,
जब प्रीतम देव को इस हमले की सूचना मिली तो वो स्वयं सेना लेकर आये और मुस्लिम हमलावरों को मार भगाया,इसके बाद में वो जिया रानी को पिथौरागढ़ ले आये,प्रीतमदेव की मृत्यु के बाद मौला देवी ने बेटे धामदेव के संरक्षक के रूप में शासन भी किया था।वो स्वयं शासन के निर्णय लेती थी। माना जाता है कि राजमाता होने के चलते उसे जियारानी भी कहा जाता है। मां के लिए जिया शब्द का प्रयोग किया जाता था। रानीबाग में जियारानी की गुफा नाम से आज भी प्रचलित है। कत्यूरी वंशज प्रतिवर्ष उनकी स्मृति में यहां पहुंचते हैं।

यहाँ जिया रानी की गुफा के बारे में एक और किवदंती प्रचलित है---------------
"कहते हैं कत्यूरी राजा पृथवीपाल उर्फ़ प्रीतम देव की पत्नी रानी जिया यहाँ चित्रेश्वर महादेव के दर्शन करने आई थी। वह बहुत सुन्दर थी। जैसे ही रानी नहाने के लिए गौला नदी में पहुँची, वैसे ही मुस्लिम सेना ने घेरा डाल दिया। रानी जिया शिव भक्त और सती महिला थी।उसने अपने ईष्ट का स्मरण किया और गौला नदी के पत्थरों में ही समा गई। मुस्लिम सेना ने उन्हें बहुत ढूँढ़ा परन्तु वे कहीं नहीं मिली। कहते हैं, उन्होंने अपने आपको अपने घाघरे में छिपा लिया था। वे उस घाघरे के आकार में ही शिला बन गई थीं। गौला नदी के किनारे आज भी एक ऐसी शिला है, जिसका आकार कुमाऊँनी घाघरे के समान हैं। उस शिला पर रंग-विरंगे पत्थर ऐसे लगते हैं - मानो किसी ने रंगीन घाघरा बिछा दिया हो। वह रंगीन शिला जिया रानी के स्मृति चिन्ह माना जाता है। रानी जिया को यह स्थान बहुत प्यारा था। यहीं उसने अपना बाग लगाया था और यहीं उसने अपने जीवन की आखिरी सांस भी ली थी। वह सदा के लिए चली गई परन्तु उसने अपने सतीत्व की रक्षा की। तब से उस रानी की याद में यह स्थान रानीबाग के नाम से विख्यात है।कुमाऊं के प्रवेश द्वार काठगोदाम स्थित रानीबाग में जियारानी की गुफा का ऐतिहासिक महत्व है"""
कुमायूं के राजपूत आज भी वीरांगना जिया रानी पर बहुत गर्व करते हैं,
उनकी याद में दूर-दूर बसे उनके वंशज (कत्यूरी) प्रतिवर्ष यहां आते हैं। पूजा-अर्चना करते हैं। कड़ाके की ठंड में भी पूरी रात भक्तिमय रहता है।
महान वीरांगना सतीत्व की प्रतीक पुंडीर वंश की बेटी और कत्युरी वंश की राजमाता जिया रानी को शत शत नमन.....
जय राजपूताना..................

Monday, December 22, 2014

ओशो ध्यान केंद्र-REASON BEHIND ITS UNSUCCESSFUL MISSION - IT IS AGAINST HINDU DHARM- KNOWLEDGE IS NOT ENOUGH.

इस पोस्ट के साथ सलंग्न चित्र ओशो ध्यान शिविर का हैं जिसमें स्त्री-पुरुष नंग्न हो ध्यान कर रहे हैं। जोर जोर से चिल्लाना, नाचना, कूदना, हँसना, नाचना, गाना, जानवरों जैसी हरकतें करना इसे ध्यान कहना मूर्खता हैं।
धर्मानुसार जीवन अर्पण करने में संयम विज्ञान का अपना महत्व हैं। मनुष्यों को भोग का नशेड़ी बनाने का जो यह अभियान ओशो ध्यान के नाम से चलाया जा रहा हैं उसने अनेक घरों को बर्बाद कर दिया हैं। अनेक नौजवानों को बर्बाद कर दिया हैं।
वेदों में सदाचार, पाप से बचने, चरित्र निर्माण, ब्रहमचर्य आदि पर बहुत बल दिया गया हैं जैसे-
यजुर्वेद ४/२८ – हे ज्ञान स्वरुप प्रभु मुझे दुश्चरित्र या पाप के आचरण से सर्वथा दूर करो तथा मुझे पूर्ण सदाचार में स्थिर करो।
ऋग्वेद ८/४८/५-६ – वे मुझे चरित्र से भ्रष्ट न होने दे।
यजुर्वेद ३/४५- ग्राम, वन, सभा और वैयक्तिक इन्द्रिय व्यवहार में हमने जो पाप किया हैं उसको हम अपने से अब सर्वथा दूर कर देते हैं।
यजुर्वेद २०/१५-१६- दिन, रात्रि, जागृत और स्वपन में हमारे अपराध और दुष्ट व्यसन से हमारे अध्यापक, आप्त विद्वान, धार्मिक उपदेशक और परमात्मा हमें बचाए।
ऋग्वेद १०/५/६- ऋषियों ने सात अमर्यादाएं बनाई हैं। उनमे से जो एक को भी प्राप्त होता हैं, वह पापी हैं। चोरी, व्यभिचार, श्रेष्ठ जनों की हत्या, भ्रूण हत्या, सुरापान, दुष्ट कर्म को बार बार करना और पाप करने के बाद छिपाने के लिए झूठ बोलना।
अथर्ववेद ६/४५/१- हे मेरे मन के पाप! मुझसे बुरी बातें क्यों करते हो? दूर हटों. मैं तुझे नहीं चाहता।
अथर्ववेद ११/५/१०- ब्रहमचर्य और तप से राजा राष्ट्र की विशेष रक्षा कर सकता हैं।
अथर्ववेद११/५/१९- देवताओं (श्रेष्ठ पुरुषों) ने ब्रहमचर्य और तप से मृत्यु (दुःख) का नष्ट कर दिया हैं।
ऋग्वेद ७/२१/५- दुराचारी व्यक्ति कभी भी प्रभु को प्राप्त नहीं कर सकता।

इस प्रकार अनेक वेद मन्त्रों में संयम और सदाचार का उपदेश हैं।

सृष्टि के आदि से लेकर अंत तो सत्य सदा एक रहता हैं। इसलिए वेदाधारित सदाचार के सार्वभौमिक एवं सर्वकालिक नियमों की अनदेखी करना अज्ञानता का बोधक हैं।
डॉ विवेक आर्य

Saturday, December 20, 2014

संयुक्त राष्ट्र ने लश्कर आतंकी हाफिज को कहा 'साहिब' /uno says sahib to Hafiz Syed, a terrorist

UNO is saying sahib to Terrorist , that masterminded 9/266 attack in India and it is enough for India to grill and get that stupid guy out from UN.


भारतीय सरकार के एक सूत्र ने इसे 'बेतुका' हरकत बताया है. 'संयुक्त राष्ट्र की सैंक्शन कमिटी 26/11 मुंबई हमले में 166 लोगों को मारने वाले आतंकवादी के प्रति आदर भाव रखता है. यह इस चिट्ठी से साफ हो गया.'
यह चिट्ठी उस दौरान लिखी गई है जब हाफिज सईद ने भारत में आतंकवादी हमले की धमकी दी है. लश्कर से अपना नाम बदलकर जमात-उद-दावा के बाद अब यह आतंकी संगठन फलाह-ए-इंसानियत फाउंडेशन के नाम से ऑपरेट कर रहा है. संयुक्त राष्ट्र ने तीनों पर बैन लगा रखा है.
संयुक्त राष्ट्र दुनियाभर में बढ़ रहे आतंकवाद को रोकने में नाकाम रहा है. इसके अलावा आतंकवादियों पर लगाम कसने के लिए कोई कारगर तरीका भी नहीं अपनाया गया. इन सब के बीच एक आतंकी को 'साहिब' कहना लापरवाह रवैये की एक बानगी है.

 

CULT OF SO CALLED RELIGIONS ARE MOHAMMAD'S ARMY

95Indian subcontinent including Pakistan, Afghanistan, Bangladesh was once the most scientifically advanced subcontinent on earth since the fount of civilization back in 3500 BC until 1200 AD. In any field of science ( Mathematics, Metallurgy, Medicine, Astronomy , Philosophy, Logic etc) you find India was ALWAYS a step ahead of the rest of the civilized world. Students and professors from all across the globe came to study and be part of the world famous universities. It all changed starting with the destruction of the great Universities like Nalanda, Taxila, Vikramshila , Sarnath etc by the barbaric Muslim invaders who not only looted the wealth but destroyed EDUCATION(Biggest Crime ever) in Indian subcontinent making it a Third World Nation as Education took a backtrack. This along with the huge translation of Sanskrit texts into Latin helped Europe overtake India by 1600 AD, culminating with the transmission of Calculus by the Jesuit missionaries. After Issac Newton got his hands on this grand instrument, Europe gained ascendancy. IT IS A FACT THAT WHERE EVER ISLAM GOES IT BRINGS DEATH & DESTRUCTION. QURAN IS THE F1LTHY TERROR MANUAL
Why blame Mehdi or ISIS or Taliban or 10000 Islamic terror school & colleges ? Ban the Terror book QURAN first which is used by Islamists to brainwash innocent minds into terrorism. BAN THE TERROR MANUAL QURAN ! No person uses Bible or Talmund or Gita to commit terrorism in Today's civilized world. Quran terror manual brainwashes muslims to kill others all over the world so easily by explaining them satanic verses of Devil Muhammad (Curse Be Upon Him)!!!!

ANCIENT SCIENCE OF HINDUISM

Photo: हमारे विद्यालयों में इन विषयों की पढाई क्यों नहीं होती----
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(1.) विश्व का पहले लेखन कार्य का प्रमाण 5500 वर्ष पूर्व हडप्पा संस्कृति के अन्तर्गत मिलता है। (Science Reporter, June 1999)

(2.) संस्कृत दुनिया की सबसे पहली भाषा है तथा यह सभी यूरोपियन भाषाओं की जननी है। संस्कृत ही कम्प्यूटर सॉप्टवेयर हेतु सर्वाधिक उपयुक्त भाषा है।(Forbes Magazine, July 1987)

(3.) विश्व का पहला विश्वविद्यालय तक्षशिला के रूप में 700 ई. पू. भारत में कार्यरत था। जहाँ पर दुनिया भर के 10,500 विद्यार्थी 60 विषयों का अध्ययन करते थे।

(4.) बारूद की खोज 8000 ई. पू. सर्वप्रथम भारत में हुई थी।

(5.) वनस्पतिशास्त्र की उत्पत्ति सर्वप्रथम भारत में हुई, जिसका प्रमाण वेदों में सुनियोजित रूप से वर्गीकृत विभिन्न वनस्पतियों से मिलता है।

(6.) दुनिया की सबसे पहली सुनियोजित आवासीय सभ्यता हडप्पा और मोहन जोदडो के रूप में 2500 ई. पू. भारत में स्थापित हुई।

(7.) सूर्य से पृथिवी पर पहुँचने वाले प्रकाश की गणना भास्कराचार्य ने सर्वप्रथम भारत में की।

(8.) यूरोपीय गणितज्ञों से पूर्व ही छठी शताब्दी में बौधायन ने पाई के मान की गणना की थी जो कि पाइथागोरस प्रमेय के रूप में जाना जाता है।

(9.) 5000 ई. पू. ही भारतीयों को 10 अंक तक गणना करने का ज्ञान प्राप्त था, जबकि आज भी 10 (टेरा ) तक ही गणना की जाती है।

शेष भाग अगले अंक में....................

वैदिक संस्कृत
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लौकिक संस्कृत
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ज्ञानोदय
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हमारे विद्यालयों में इन विषयों की पढाई क्यों नहीं होती----
(1.) विश्व का पहले लेखन कार्य का प्रमाण 5500 वर्ष पूर्व हडप्पा संस्कृति के अन्तर्गत मिलता है। (Science Reporter, June 1999)

(2.) संस्कृत दुनिया की सबसे पहली भाषा है तथा यह सभी यूरोपियन भाषाओं की जननी है। संस्कृत ही कम्प्यूटर सॉप्टवेयर हेतु सर्वाधिक उपयुक्त भाषा है।(Forbes Magazine, July 1987)

(3.) विश्व का पहला विश्वविद्यालय तक्षशिला के रूप में 700 ई. पू. भारत में कार्यरत था। जहाँ पर दुनिया भर के 10,500 विद्यार्थी 60 विषयों का अध्ययन करते थे।

(4.) बारूद की खोज 8000 ई. पू. सर्वप्रथम भारत में हुई थी।

(5.) वनस्पतिशास्त्र की उत्पत्ति सर्वप्रथम भारत में हुई, जिसका प्रमाण वेदों में सुनियोजित रूप से वर्गीकृत विभिन्न वनस्पतियों से मिलता है।

(6.) दुनिया की सबसे पहली सुनियोजित आवासीय सभ्यता हडप्पा और मोहन जोदडो के रूप में 2500 ई. पू. भारत में स्थापित हुई।

(7.) सूर्य से पृथिवी पर पहुँचने वाले प्रकाश की गणना भास्कराचार्य ने सर्वप्रथम भारत में की।

(8.) यूरोपीय गणितज्ञों से पूर्व ही छठी शताब्दी में बौधायन ने पाई के मान की गणना की थी जो कि पाइथागोरस प्रमेय के रूप में जाना जाता है।

(9.) 5000 ई. पू. ही भारतीयों को 10 अंक तक गणना करने का ज्ञान प्राप्त था, जबकि आज भी 10 (टेरा ) तक ही गणना की जाती है।


भास्कराचार्य, BHASKARACHARYA

Photo: !!!---: विश्व के महान् वैज्ञानिक :---!!!
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भास्कराचार्य
****************

भास्कराचार्य का जन्म शक संवत् 1036 तदनुसार विक्रम संवत् 1171 अर्थात् 1114 ई. सन् में विज्जडवीड ग्राम में हुआ था। इस गाँव के विषय में भ्रान्तियाँ हैं। कुछ लोग इसे कर्णाटक के बीजापुर में मानते हैं तो कुछ लोग महाराष्ट्र के जलगाँव में।

इनके पिता का नाम महेश्वर था। इनके पिता ही इनके गुरु थे। भास्कराचार्य उज्जैन के गुरुकुल में खगोलशास्त्री थे। गणित और खगोलशास्त्र पर इनके तीन ग्रन्थ प्रसिद्ध हैं। 

 सिद्धान्त शिरोमणिः---यह खगोलशास्त्र का मानक ग्रन्थ है। इसके चार भाग हैं---
(1.) लीलावती, (2.) बीजगणितम्, (3.) ग्रहगणितम्, (4.) गोलाध्याय।

ये चार अलग-अलग पुस्तक भी है। इनका अनुवाद अधिकतर भाषाओं में हो चुका है। 

इनकी लोकप्रियता इस बात से प्रतिपादित है कि इन पर 4000 से अधिक टीकाएँ की जा चुकी हैं। लीलावती और बीजगणितम् को कई विश्वविद्यालों में पाठ्यक्रम के रूप में पढाया भी जाता है।

लीलावतीः---इसमें कुल नौ अध्याय हैं और 261 श्लोक हैं। इन अध्यायों के नाम हैं---(1.) दशमान स्थान संज्ञा, (2.) पूर्णांक और अपूर्णांक संख्या सम्बन्धी अष्टपरिकर्म, (3.) त्रैराशिक, (4.) पंचराशिक, सप्तराशिक इत्यादि, (5.) श्रेणी व्यवहार, (6.) क्षेत्रमान, (7.) छाया व्यवहार, (8.) अंकपाश, (9.) कुट्टक व्यवहार।

बीजगणितः---इसमें 13 अध्याय और 213 श्लोक हैं। इन अध्यायों के नाम इस प्रकार हैंः---(1.) मंगलाचरण, (2.) धन एवं ऋण संखायाओं पर बीजीय क्रियाएँ, (3.) शून्य सम्बन्धित क्रियाएँ, (4.) अनेकषड्विधि, (5.) करणी, (6.) कुट्टक, (7.) वर्गप्रकृति, (8.) चक्रवाल, (9.) एकवर्ग समीकरण, (10.) मध्यमाहरण, (11.) अनेकवर्ग समीकरण, (12.) अनेकवर्ग मध्यमाहरण, (13.) भावित।

अन्य दो ग्रन्थों में गोले तथा गोलीय त्रिकोणमिति, ग्रहणगणित, पंचांगगणित आदि विषय समाहित है।

योगदानः---
--------------
(1.) दशगुणोत्तर संख्याएँः----एक, दश, शत, सहस्र, अयुत, लक्ष, प्रयुत, कोटि, अर्बुद, अब्ज, खर्व, निखर्व, महापद्म, शंकु, जलधि। परवर्ती गणितज्ञों ने इन नामों को यथावत् कायम रखा है।

(2.) धनात्मक संख्या को शून्य से विभाजित करने पर प्राप्त होने वाली राशि का खहर नाम दिया है। ख से शून्य का बोध होता है। अतः खहर का अर्थ हुआ जिसके हर में शून्य हो। इस प्रकार यह खहर नाम देने वाले वे प्रथम गणितज्ञ थे।

(3.) लीलावती का अंकपाश प्रकरण क्रमचय और संचय से सम्बन्धित है। इस प्रकरण का अन्तिम प्रश्न डीमाइवर (Demoivre--1730) के इसी प्रकार के प्रश्नों के समान है।

(4.) बीजगणित--गणित के कुछ समीकरणों को हल करने के लिए फर्मा ने गणितज्ञों के सामने प्रस्तुत किया था। जिसे 75 वर्षों के बाद आयलर और लॉगराज्ज ने 1732 में खोज निकाला था। भारतवर्ष में भास्कराचार्य ने इस पर फर्मा से लगभग 500 वर्ष पूर्व खोज कर ली थी। 

(5.) ज्यामितः--यूक्लिज द्वारा दी गई पायथागोरस प्रमेय की उपपत्ति से भास्कराचार्य द्वारा दी गई उपपत्ति बहुत सरल है।

ध्यातव्य है कि वर्तमान में पायथागोरस के नाम से जाना जाने वाला प्रमेय वस्तुतः बौधायन का प्रमेय है, जो लगभग 500 वर्ष पूर्व का है।

इसके अतिरिक्त गणित की और भी कई खोजें भास्कराचार्य ने की है। चन्द्रमा स्वयं प्रकाशित नहीं है, अपितु वह सूर्य के प्रकाश से चमकता है। यह बात सर्वप्रथम भास्कराचार्य ने ही बतलाई थी।

सिद्धान्त शिरोमणि में यन्त्राध्याय है, जिसमें आकाश से निरीक्षण करने हेतु 9 यन्त्रों का वर्णन हैः--(1.) गोल यन्त्र, (2.) नाडी वलय (सूर्य घडी), (4.) शंकु, (5.) घटिका यन्त्र, (6.) चक्र, (7.) चाप, (8.) तूर्य, (9.) फलक यन्त्र।

गणित और खगोलशास्त्र पर इनका योगदान अतुलनीय है। 

इनका देहावसान 1179 ई. में हुआ। 

इनके नाम से भारत सरकार ने 7 जून 1979 को भास्कर-1, तथा 20 नवम्बर, 1981 को भास्कर-2 नाम से उपग्रह छोडे।

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!!!---: विश्व के महान् वैज्ञानिक 

भास्कराचार्य
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भास्कराचार्य का जन्म शक संवत् 1036 तदनुसार विक्रम संवत् 1171 अर्थात् 1114 ई. सन् में विज्जडवीड ग्राम में हुआ था। इस गाँव के विषय में भ्रान्तियाँ हैं। कुछ लोग इसे कर्णाटक के बीजापुर में मानते हैं तो कुछ लोग महाराष्ट्र के जलगाँव में।

इनके पिता का नाम महेश्वर था। इनके पिता ही इनके गुरु थे। भास्कराचार्य उज्जैन के गुरुकुल में खगोलशास्त्री थे। गणित और खगोलशास्त्र पर इनके तीन ग्रन्थ प्रसिद्ध हैं।

सिद्धान्त शिरोमणिः---यह खगोलशास्त्र का मानक ग्रन्थ है। इसके चार भाग हैं---
(1.) लीलावती, (2.) बीजगणितम्, (3.) ग्रहगणितम्, (4.) गोलाध्याय।

ये चार अलग-अलग पुस्तक भी है। इनका अनुवाद अधिकतर भाषाओं में हो चुका है।

इनकी लोकप्रियता इस बात से प्रतिपादित है कि इन पर 4000 से अधिक टीकाएँ की जा चुकी हैं। लीलावती और बीजगणितम् को कई विश्वविद्यालों में पाठ्यक्रम के रूप में पढाया भी जाता है।

लीलावतीः---इसमें कुल नौ अध्याय हैं और 261 श्लोक हैं। इन अध्यायों के नाम हैं---(1.) दशमान स्थान संज्ञा, (2.) पूर्णांक और अपूर्णांक संख्या सम्बन्धी अष्टपरिकर्म, (3.) त्रैराशिक, (4.) पंचराशिक, सप्तराशिक इत्यादि, (5.) श्रेणी व्यवहार, (6.) क्षेत्रमान, (7.) छाया व्यवहार, (8.) अंकपाश, (9.) कुट्टक व्यवहार।

बीजगणितः---इसमें 13 अध्याय और 213 श्लोक हैं। इन अध्यायों के नाम इस प्रकार हैंः---(1.) मंगलाचरण, (2.) धन एवं ऋण संखायाओं पर बीजीय क्रियाएँ, (3.) शून्य सम्बन्धित क्रियाएँ, (4.) अनेकषड्विधि, (5.) करणी, (6.) कुट्टक, (7.) वर्गप्रकृति, (8.) चक्रवाल, (9.) एकवर्ग समीकरण, (10.) मध्यमाहरण, (11.) अनेकवर्ग समीकरण, (12.) अनेकवर्ग मध्यमाहरण, (13.) भावित।



अन्य दो ग्रन्थों में गोले तथा गोलीय त्रिकोणमिति, ग्रहणगणित, पंचांगगणित आदि विषय समाहित है।

योगदानः---
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(1.) दशगुणोत्तर संख्याएँः----एक, दश, शत, सहस्र, अयुत, लक्ष, प्रयुत, कोटि, अर्बुद, अब्ज, खर्व, निखर्व, महापद्म, शंकु, जलधि। परवर्ती गणितज्ञों ने इन नामों को यथावत् कायम रखा है।

(2.) धनात्मक संख्या को शून्य से विभाजित करने पर प्राप्त होने वाली राशि का खहर नाम दिया है। ख से शून्य का बोध होता है। अतः खहर का अर्थ हुआ जिसके हर में शून्य हो। इस प्रकार यह खहर नाम देने वाले वे प्रथम गणितज्ञ थे।

(3.) लीलावती का अंकपाश प्रकरण क्रमचय और संचय से सम्बन्धित है। इस प्रकरण का अन्तिम प्रश्न डीमाइवर (Demoivre--1730) के इसी प्रकार के प्रश्नों के समान है।

(4.) बीजगणित--गणित के कुछ समीकरणों को हल करने के लिए फर्मा ने गणितज्ञों के सामने प्रस्तुत किया था। जिसे 75 वर्षों के बाद आयलर और लॉगराज्ज ने 1732 में खोज निकाला था। भारतवर्ष में भास्कराचार्य ने इस पर फर्मा से लगभग 500 वर्ष पूर्व खोज कर ली थी।

(5.) ज्यामितः--यूक्लिज द्वारा दी गई पायथागोरस प्रमेय की उपपत्ति से भास्कराचार्य द्वारा दी गई उपपत्ति बहुत सरल है।

ध्यातव्य है कि वर्तमान में पायथागोरस के नाम से जाना जाने वाला प्रमेय वस्तुतः बौधायन का प्रमेय है, जो लगभग 500 वर्ष पूर्व का है।

इसके अतिरिक्त गणित की और भी कई खोजें भास्कराचार्य ने की है। चन्द्रमा स्वयं प्रकाशित नहीं है, अपितु वह सूर्य के प्रकाश से चमकता है। यह बात सर्वप्रथम भास्कराचार्य ने ही बतलाई थी।



सिद्धान्त शिरोमणि में यन्त्राध्याय है, जिसमें आकाश से निरीक्षण करने हेतु 9 यन्त्रों का वर्णन हैः--(1.) गोल यन्त्र, (2.) नाडी वलय (सूर्य घडी), (4.) शंकु, (5.) घटिका यन्त्र, (6.) चक्र, (7.) चाप, (8.) तूर्य, (9.) फलक यन्त्र।

गणित और खगोलशास्त्र पर इनका योगदान अतुलनीय है।

इनका देहावसान 1179 ई. में हुआ।

इनके नाम से भारत सरकार ने 7 जून 1979 को भास्कर-1, तथा 20 नवम्बर, 1981 को भास्कर-2 नाम से उपग्रह छोडे।

काश्मीर के लोग भारत में रहना चाहते हैंः ,PAKISTAN OCCUPIED KASHMIR ANT TO BE WITH INDIA

Photo: काश्मीर के लोग भारत में रहना चाहते हैंः----
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मुस्लिम संगठन अंजुमन मिन्हाज ए रसूल के अध्यक्ष ने रविवार को कहा कि अगर पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर के लोगों को अवसर दिया जाए तो वे भारत में शामिल होना पसंद करेंगे। यह संगठन शांति एवं सांप्रदायिक सौहार्द के लिए काम करता है।

अंजुमन मिन्हाज ए रसूल के अध्यक्ष मौलाना सैयद अतहर देहलवी ने यहां संवाददाताओं से कहा, ‘पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर में अगर जनमत संग्रह होता है तो 99 फीसदी से ज्यादा लोग भारत का हिस्सा बनने के लिए वोट देंगे।’ जम्मू-कश्मीर के बाढ़ प्रभावित इलाकों के पांच दिवसीय दौरे पर जम्मू आए देहलवी ने कहा कि कश्मीर के अलगाववादियों का आधार खत्म हो गया है और घाटी के लोग सुशासन एवं विकास की बात कर रहे हैं।

देहलवी ने कहा, ‘कश्मीर में अलगाववादियों का आधार खत्म हो गया है और घाटी के लोग सुशासन, विकास और शिक्षा जैसे मुद्दों पर बात कर रहे हैं। उन्हें इस बात से फर्क नहीं पड़ता कि मुट्ठी भर लोग क्या कहते हैं।’ देहलवी ने कहा कि कश्मीर दौरे के समय उन्होंने पाया कि बाढ़ प्रभावित लोगों ने सेना द्वारा चलाए गए राहत एवं बचाव कार्यों की भूरि-भूरि प्रशंसा की।

उन्होंने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की भी जम्मू-कश्मीर एवं देश में ‘लोक समर्थक’ नीतियों के लिए प्रशंसा की।

उन्होंने कहा कि उनका संगठन अंजुमन-ए-रसूल ही एकमात्र इस्लामी संगठन है जिसने अल..कायदा एवं अन्य आतंकवादी समूहों के खिलाफ आवाज उठाई। देहलवी ने कहा, ‘जब कश्मीरी पंडितों को जबरन कश्मीर से बाहर किया गया तो हमने जेद्दा में ओआईसी में आपत्ति जताई और हमने ही ओसामा बिन लादेन की निंदा की और अब हम इस्लामिक स्टेट की कड़ी निंदा करते हैं।’काश्मीर के लोग भारत में रहना चाहते हैंः----
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मुस्लिम संगठन अंजुमन मिन्हाज ए रसूल के अध्यक्ष ने रविवार को कहा कि अगर पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर के लोगों को अवसर दिया जाए तो वे भारत में शामिल होना पसंद करेंगे। यह संगठन शांति एवं सांप्रदायिक सौहार्द के लिए काम करता है।

अंजुमन मिन्हाज ए रसूल के अध्यक्ष मौलाना सैयद अतहर देहलवी ने यहां संवाददाताओं से कहा, ‘पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर में अगर जनमत संग्रह होता है तो 99 फीसदी से ज्यादा लोग भारत का हिस्सा बनने के लिए वोट देंगे।’ जम्मू-कश्मीर के बाढ़ प्रभावित इलाकों के पांच दिवसीय दौरे पर जम्मू आए देहलवी ने कहा कि कश्मीर के अलगाववादियों का आधार खत्म हो गया है और घाटी के लोग सुशासन एवं विकास की बात कर रहे हैं।

देहलवी ने कहा, ‘कश्मीर में अलगाववादियों का आधार खत्म हो गया है और घाटी के लोग सुशासन, विकास और शिक्षा जैसे मुद्दों पर बात कर रहे हैं। उन्हें इस बात से फर्क नहीं पड़ता कि मुट्ठी भर लोग क्या कहते हैं।’ देहलवी ने कहा कि कश्मीर दौरे के समय उन्होंने पाया कि बाढ़ प्रभावित लोगों ने सेना द्वारा चलाए गए राहत एवं बचाव कार्यों की भूरि-भूरि प्रशंसा की।

उन्होंने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की भी जम्मू-कश्मीर एवं देश में ‘लोक समर्थक’ नीतियों के लिए प्रशंसा की।

उन्होंने कहा कि उनका संगठन अंजुमन-ए-रसूल ही एकमात्र इस्लामी संगठन है जिसने अल..कायदा एवं अन्य आतंकवादी समूहों के खिलाफ आवाज उठाई। देहलवी ने कहा, ‘जब कश्मीरी पंडितों को जबरन कश्मीर से बाहर किया गया तो हमने जेद्दा में ओआईसी में आपत्ति जताई और हमने ही ओसामा बिन लादेन की निंदा की और अब हम इस्लामिक स्टेट की कड़ी निंदा करते हैं।’