Saturday, December 20, 2014

OLDEST UNIVERSITY FOUND- NOT NALANDA OR TAKSHSHILA- तेल्हारा विश्वविद्यालय

Photo: प्राचीन तेल्हारा विश्वविद्यालय
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दुनिया की प्राचीन यूनिवर्सिटी अब तक नालंदा यूनिवर्सिटी को माना जाता है। लेकिन हाल ही में बिहार के नालंदा जिले में की गई खुदाई में तेल्हारा विश्वविद्यालय के अवशेष मिले हैं । विशेषज्ञों के मुताबिक, अवशेष के आधार पर कहा जा सकता है कि तेल्हारा विश्वविद्यालय नालंदा और विक्रमशिला विश्वविद्यालय से भी प्राचीन है।

बिहार के कला, संस्कृति एवं युवा मामले सचिव आनंद कुमार ने कहा कि खुदाई से प्राप्त प्रमुख निष्कर्षों के आधार पर इस बात की पुष्टि की जा सकती है कि तेल्हारा विश्वविद्यालय नालंदा और विक्रमशिला विश्वविद्यालय से भी पुराना है । किशोर ने कहा, "पुरातत्वविदों की एक टीम को नालंदा जिले में चार बौद्ध मठों के प्रमाण मिले हैं जो कि टेराकोटा से बने हैं और उन पर पाली भाषा में लिखा है-'श्री प्रथमशिवपुर महाविहारियाय बिक्षु संघ' यह विश्वविद्यालय के मूल नाम का संकेत देते हैं । आमतौर पर इसे तेल्हारा विश्वविद्यालय कहा जाता है ।'

किशोर ने कहा कि चीनी यात्री ह्वेन सांग ने सातवीं शताब्दी में तेल्हारा का दौरा किया था और उन्होंने अपने लेख में इसका जिक्र 'तेलेत्का' के रूप में किया है। पुरातत्वविदों ने उस ईंट की खोज की है जिसे इस प्राचीन विश्वविद्यालय के नींव के रूप में उपयोग किया गया था । उन्होंने कहा, "ईंट का परिमाप 42गुना, 32गुना, 6 सेंटीमीटर है, जिससे पहली शताब्दी के कुषाण काल के प्रभाव का खुलासा होता है. इस बात के पुख्ता प्रमाण हैं कि चौथी शताब्दी के नालंदा और छठी शताब्दी के विक्रमशिला विश्वविद्यालय से तेल्हारा विश्वविद्यालय प्राचीन है ।'

उन्होंने कहा कि यहां 100 साक्ष्य मिले हैं. उल्लेखनीय है कि तेल्हारा में 2009 में तत्कालीन मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के निर्देश पर खुदाई का कार्य प्रारंभ किया गया था ।

ज्ञानोदयप्राचीन तेल्हारा विश्वविद्यालय
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दुनिया की प्राचीन यूनिवर्सिटी अब तक नालंदा यूनिवर्सिटी को माना जाता है। लेकिन हाल ही में बिहार के नालंदा जिले में की गई खुदाई में तेल्हारा विश्वविद्यालय के अवशेष मिले हैं । विशेषज्ञों के मुताबिक, अवशेष के आधार पर कहा जा सकता है कि तेल्हारा विश्वविद्यालय नालंदा और विक्रमशिला विश्वविद्यालय से भी प्राचीन है।

बिहार के कला, संस्कृति एवं युवा मामले सचिव आनंद कुमार ने कहा कि खुदाई से प्राप्त प्रमुख निष्कर्षों के आधार पर इस बात की पुष्टि की जा सकती है कि तेल्हारा विश्वविद्यालय नालंदा और विक्रमशिला विश्वविद्यालय से भी पुराना है । किशोर ने कहा, "पुरातत्वविदों की एक टीम को नालंदा जिले में चार बौद्ध मठों के प्रमाण मिले हैं जो कि टेराकोटा से बने हैं और उन पर पाली भाषा में लिखा है-'श्री प्रथमशिवपुर महाविहारियाय बिक्षु संघ' यह विश्वविद्यालय के मूल नाम का संकेत देते हैं । आमतौर पर इसे तेल्हारा विश्वविद्यालय कहा जाता है ।'

किशोर ने कहा कि चीनी यात्री ह्वेन सांग ने सातवीं शताब्दी में तेल्हारा का दौरा किया था और उन्होंने अपने लेख में इसका जिक्र 'तेलेत्का' के रूप में किया है। पुरातत्वविदों ने उस ईंट की खोज की है जिसे इस प्राचीन विश्वविद्यालय के नींव के रूप में उपयोग किया गया था । उन्होंने कहा, "ईंट का परिमाप 42गुना, 32गुना, 6 सेंटीमीटर है, जिससे पहली शताब्दी के कुषाण काल के प्रभाव का खुलासा होता है. इस बात के पुख्ता प्रमाण हैं कि चौथी शताब्दी के नालंदा और छठी शताब्दी के विक्रमशिला विश्वविद्यालय से तेल्हारा विश्वविद्यालय प्राचीन है ।'

उन्होंने कहा कि यहां 100 साक्ष्य मिले हैं. उल्लेखनीय है कि तेल्हारा में 2009 में तत्कालीन मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के निर्देश पर खुदाई का कार्य प्रारंभ किया गया था ।

Friday, December 19, 2014

ॐ, OHM, OM

Photo: ॐ शब्द का नाद ----
नासा ने वोएजर के नाम से अपना एक मिशन अंतरिक्ष में रवाना किया था जिसका एक उद्देश्य उसके पूरे सफ़र के दौरान सुनाई देने वाली ब्रह्मांडीय आवाजों को रिकॉर्ड करके उनका विश्लेषण करना भी था.
वोयेज़र यान से प्राप्त हुई साउंड रिकॉर्डिंग्स को तीन वर्षों तक अध्ययन करने के बाद नासा ने ब्रह्माण्ड में व्याप्त रहस्यमयी आवाजों का विश्लेषण प्रस्तुत किया.
हम लोग केवल 20 to 20,000 हर्ट्ज़ की ध्वनि को ही सुनने की क्षमता रखते है.
इस फ्रीक्वेंसी से कही ऊपर की ब्राह्मांड में व्याप्त ध्वनि को डिकोड करने पर नासा को जो ध्वनि सुनाई दी, वो थी .....
ॐ
नासा द्वारा इसे The Sound of Sun अर्थात सूर्य की आवाज़ का नाम दिया गया है, और अब वो इस बात का रहस्य जानने को व्याकुल हैं कि आखिर हिन्दू धर्म में ॐ के शब्द का प्रादुर्भाव कहाँ से हुआ .. ??
वो भी ईसा के जन्म से भी हज़ारों वर्ष पहले !
ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐॐ शब्द का नाद ----
नासा ने वोएजर के नाम से अपना एक मिशन अंतरिक्ष में रवाना किया था जिसका एक उद्देश्य उसके पूरे सफ़र के दौरान सुनाई देने वाली ब्रह्मांडीय आवाजों को रिकॉर्ड करके उनका विश्लेषण करना भी था.
वोयेज़र यान से प्राप्त हुई साउंड रिकॉर्डिंग्स को तीन वर्षों तक अध्ययन करने के बाद नासा ने ब्रह्माण्ड में व्याप्त रहस्यमयी आवाजों का विश्लेषण प्रस्तुत किया.
हम लोग केवल 20 to 20,000 हर्ट्ज़ की ध्वनि को ही सुनने की क्षमता रखते है.
इस फ्रीक्वेंसी से कही ऊपर की ब्राह्मांड में व्याप्त ध्वनि को डिकोड करने पर नासा को जो ध्वनि सुनाई दी, वो थी .....

नासा द्वारा इसे The Sound of Sun अर्थात सूर्य की आवाज़ का नाम दिया गया है, और अब वो इस बात का रहस्य जानने को व्याकुल हैं कि आखिर हिन्दू धर्म में ॐ के शब्द का प्रादुर्भाव कहाँ से हुआ .. ??
वो भी ईसा के जन्म से भी हज़ारों वर्ष पहले !
ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ

INDIA WAS RULED BY MUSLIM FAMILY OF FIROZ,INDIRA KHAN FOR 60 YEARS. STUPID HINDUS SINCE >2000 YEARS

Jab They Met: Feroze and Indira Gandhi

Feroze and Indira Khan 


Thursday, December 18, 2014

COMBODIA

कम्बोडिया का संस्थापक
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चीनी पुस्तक "लिआं शु" (Leang Shu) मेंं लिखा है कि ईसा के बाद की प्रथम शताब्दी में कौण्डिन्य नाम का एक ब्राह्मण भारत से कम्बोडिया आया।

कम्बोडिया "कम्बोज" का अपभ्रंश है और इसे चीनी में "फुनान" (Funan) कहते हैं। वह द्रोण के पुत्र अश्वत्थामा से भेंट लाया था। चीनी पुस्तक में लिखा है कि उसे आकाशवाणी हुई थी कि तुम फुनान (कम्बोडिया) जाओ।

डॉक्टर बी. आर. चटर्जी "Indian Contribution to World Thought And Culture" में लिखते हैं कि कौण्डिन्य ने कम्बोज आकर वहाँ की रानी को शास्त्रार्थ में पराजित करके उससे विवाह कर लिया और फुनान में अपने वंश की नींव डाली।

फुनान का अर्थ है---पहाडी। संस्कृत में पहाड के लिए "शैल" शब्द का भी प्रयोग होता है। इसीलिए कम्बोज के इतिहास की परम्परा में कम्बोज के कौण्डिन्य के वंशज राजाओं को "शैलेन्द्र-वंश" कहा जाता है।

उक्त चीनी पुस्तक में लिखा है कि कौण्ड़िन्य को देश की सम्पूर्ण जनता ने बडे उत्साह से देश का राजा स्वीकार किया और उसने देशी की पहले से चली आ रही सारी राज्य-व्यवस्था तथा शासन-प्रणाली को बदलकर नया रूप दिया।

कौण्डिन्य-वंश के राजा की सूचीः---
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(1.) कम्बु स्वायंभुव,
(2.) श्रुतवर्मन्,
(3.) श्रेष्ठवर्मन्,
(4.) कौण्डिन्य,
(5.) रुद्रवर्मन् प्रथम,
(6.) भववर्मन्,
(7.) महेन्द्रवर्मन्,
(8.) ईशानवर्मन्, प्रथम,
(9.) जयवर्मन्, प्रथम,
(10.) जयवर्मन् द्वितीय,
(11.) जयवर्मन् तृतीय,
(12.) रुद्रवर्मन् द्वितीय,
(13.) पृथिवीन्द्र वर्मन्,
(14.) इन्द्रवर्मन्,
(15.) यशोवर्मन्,
(16.) ईशान वर्मन् द्वितीय,
(17.) हर्षवर्मन् प्रथम,
(18.) जयवर्मन् चतुर्थ,
(19.) हर्षवर्मन्, द्वितीय,
(20.) राजेन्द्र वर्मन्,
(21.) जयवर्मन् पंचम,
(22.) उदयादित्य वर्मन् प्रथम,
(23.) जयवीर वर्मन्,
(24.) उदयादित्य वर्मन् द्वितीय,
(25.) हर्षवर्मन् तृतीय,
(26.) उदयार्क वर्मन्,
(27.) जयवर्मन् षष्ठ,
(28.) धरणीन्द्र वर्मन् प्रथम,
(29.) सूर्य वर्मन्,
(30.) धरणीन्द्र वर्मन् द्वितीय,
(31.) जयवर्मन् सप्तम,

HOLOGRAM OF SRI YANTRA

Photo: !!!---: श्रुति-सूक्ति :---!!!
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"यं रक्षन्ति प्रचेतसो वरुणो मित्रो अर्यमा।
न किः स दभ्यते जनः।।"
(सामवेदः--185)

ऋषिः--कण्वः।
देवताः--इन्द्रः।
छन्दः---गायत्री।

अन्वयः----(हे इन्द्र) यं प्रचेतसः वरुणः मित्रः अर्यमा रक्षन्ति स जनः न किः दभ्यते।।

शब्दार्थः---(हे इन्द्र) परमात्मन् अथवा राजन् ! (यम्) जिस मनुष्य की (प्रचेतसः) महाज्ञानी (वरुणः) वरणीय (मित्रः) सुहृद् (अर्यमा) न्यायकारी (रक्षन्ति) रक्षा करते हैं, (सः) वह (जनः) मनुष्य (न किः) नहीं (दभ्यते) मारा जाता है।।

व्याख्याः---इन मन्त्र में एक व्यक्ति की सफलता का रहस्य बताते हुए कहा है कि वह मनुष्य जिसके वरुण, मित्र और अर्यमा रक्षक हैं, कभी मारा नहीं जा सकता, अर्थात् आन्तरिक और बाह्य शत्रु उसे असफल नहीं कर सकते, दबा नहीं सकते। दूसरे शब्दों में भाव यह हुआ कि मनुष्य को अपना आचरण ऐसा बनाना चाहिए कि संसार के वरणीय श्रेष्ठ पुरुष उसके उदात्त चरित्र से प्रभावित होकर उसकी रक्षा करें। प्रेमी और मित्र भी सन्मार्ग में चलने की प्रेरणा करके रक्षा ही करने वाले हों। न्यायप्रिय न्यायाधीश भी मर्यादा-पालन करने वाले ऐसे व्यक्ति के रक्षक बनें।

मन्त्र में समाज के उत्तम कोटि के मनुष्यों के चार विशेषण दिए हैं---

(1.) प्रचेतसः---व्यापक ज्ञान के आधार पर विवेकपूर्वक आचरण करने वाले को प्रचेतस् कहते हैं। इस कोटि के उदात्त पुरुषों को किसी के विशेष गुण ही अपनी ओर आकृष्ट कर सकते हैं।

(2.) वरुणः--गुणों के आधार पर व्यक्तियों का वरण करने वाले। ऐसे व्यक्तियों  के सम्मुख गुणों की ही मुख्यता होती है। सांसारिक रिश्ते-नाते उनके समक्ष तुच्छ और नगण्य होते हैं।

(3.) मित्रः---जिसका स्नेह प्रत्येक प्रकार से त्राण करने वाला होता है। ऐसे महापुरुष सम्पर्क में आने वालों को बुराई से बचाते हैं, शुभ कर्मों में प्रेरित करते हैं। उनकी छिपाने योग्य बातों पर पर्दा डालते हैं। उनके सद्गुणों की समाज में प्रशंसा करते हैं। संकट आने पर उसके प्रतिकारों में प्राणपण से साहाय्य करते हैं और आवश्यकता होने पर तो सब-कुछ दे देते हैं। जिसको संसार में ऐसे कृपालु मित्र मिल जायें, उसका कोई काम अधूरा नहीं रहता।

(4.) अर्यमाः---मन्त्र में अन्तिम विशेषण है---अर्यमा। जो महात्मा निष्पक्ष होकर श्रमानुसार फल देते हैं, वे अर्यमा शब्द के वाचक हैं।

वैदिक संस्कृत
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लौकिक संस्कृत
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लेफ्टिनेंट जनरल सगत सिंह राठौर the unsung hero of indo pak bangladesh war in 1971

Photo: जय हिन्द,जय राजपूताना -------------
कृपया पूरा पढ़े,अपने विचार रखें और ज्यादा से ज्यादा शेयर करें 

लेफ्टिनेंट जनरल सगत सिंह राठौर the unsung hero of indo pak bangladesh war in 1971
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मित्रों आज ही दिन 16 दिसम्बर 1971 को भारतीय सेना ने पाकिस्तान पर जबर्दस्त विजय हासिल की थी.ढाका में पाकिस्तान सेना के 93000 सैनिको ने भारतीय सेना के समक्ष हथियार डाल कर आत्मसमर्पण कर दिया था,जिससे एक नए देश बांग्लादेश का उदय हुआ था,इस विजय के नायक थे लेफ्टिनेंट जनरल सगत सिंह राठौर,जिन्होंने इस युद्ध में भारतीय सेना के अभियान का नेत्रत्व किया था,सगत सिंह राठौर भारतीय सेना के सबसे कामयाब सेनानायक रहे हैं,उन्हें जो भी लक्ष्य दिया गया इन्होने उससे बढकर परिणाम दिए.वे हमेशा आगे बढकर नेत्रत्व करते थे और अपने सैनिको का हौसला बढ़ाते थे.
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जीवन परिचय--------------
सगत सिंह जी का जन्म 14 जुलाई 1919 को बीकानेर में ठाकुर बृजपाल सिंह राठौर के यहाँ हुआ था,सगत सिंह बचपन से देशप्रेमी थे और सेना में जाना उनका सपना था,स्कूली शिक्षा प्राप्त करते हुए ही उन्होंने इंडियन मिलेट्री एकेडमी ज्वाइन कर ली और उसके बाद बीकानेर स्टेट फ़ोर्स ज्वाइन कर ली,दुसरे विश्व युद्ध में इन्होने मेसोपोटामिया,सीरिया,फिलिस्तीन के युद्धों में अपना जौहर दिखाया,
सन 1947 में देश आजाद होने के बाद उन्होंने भारतीय सेना ज्वाइन करने का निर्णय लिया और सन 1949 में उन्हें भारतीय सेना में कमीशंड ऑफिसर के रूप में 3 गोरखा राइफल्स में नियुक्ति मिल गई,
1955 में सगत सिंह को लेफ्टिनेंट कर्नल के रूप में 2/3 गोरखा राइफल्स की कमान दी गई,गोरखा राइफल्स में इससे पहले सिर्फ ब्रिटिश ऑफिसर्स ही तैनात होते थे और ब्रिटिश यह मानते थे कि गोरखा सैनिकं भारतीय सेनानायक का नेत्रत्व स्वीकार नहीं करेंगे,किन्तु यह आशंका निर्मूल सिद्ध हुई और गोरखा सैनिको का सगत सिंह राठौर ने बखूबी नेत्रत्व किया,
इसके बाद इन्हें 3/3 गोरखा राइफल्स का भी नेत्रत्व दिया गया,
वर्ष 1961 में इन्हें ब्रिगेडियर के रूप में प्रमोशन देते हुए पैराशूट ब्रिगेड की कमांड दी गई,
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गोवा मुक्ति अभियान में सगत सिंह राठौर की भूमिका------

उपनिवेशिक काल से गोवा पर पुर्तगालियों का शासन रहा था,आजादी के बाद भारतीय सरकार ने पुर्तगाल से गोवा मुक्त करने को कहा पर पुर्तगाल सरकार ने साफ़ मना कर दिया,और वहां आन्दोलन कर रहे भारतीय गोवा मुक्ति क्रांतिकारियों का उत्पीडन शुरू कर दिया,तंग आकर भारत सरकार ने गोवा में पुर्तगालियों के विरुद्ध सैन्य कार्यवाही का निर्णय लिया,
50 पैराशूट ब्रिगेड ने सगत सिंह के नेत्रत्व में इसमें बड़ी भूमिका निभाई,सगत सिंह ने इस अभियान का की रणनीति बनाकर इस पर अमल करने के लिए वरिष्ठ सैन्य अधिकारीयों को तैयार कर लिया,
भारतीय सेना ने चारो ओर से, जल थल एवं वायु सेना की उस समय की आधुनिकतम तैयारियों के दिसम्बर 17-18 साथ की रात में ऑपरेशन विजय के अंतर्गत सैनिक कार्यवाही शुरू कर दी ऑपरेशन विजय 40 घंटे का था .. भारतीय सेना के इस 40 घंटे के युद्ध ने गोवा पर 450 साल से चले आ रहे पुर्तगाली शासन का अंत किया और गोवा भारतीय गणतंत्र का एक अंग बना,
यधपि इस युद्ध का परिनाम सबको अपेक्षित था,मगर भारतीय सेना की तेजी ने सभी को चौका दिया और इस सफल रणनीति का श्रेय सगत सिंह राठौर को जाता है,
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चीन के विरुद्ध संघर्ष--------

वर्ष 1965 में सगत सिंह को मेजर जनरल के रूप में नियुक्ति देकर 17 माउंटेन डिविजन की कमांड देकर चीन की चुनौती का सामना करने के लिए सिक्किम में तैनात किया गया,वहां चीन ने नाथू ला में लाउड स्पीकर लगाकर भारतीय सेना को चेतावनी दी मगर सगत सिंह ने अविचलित होकर अपना काम जारी रखा,उन्होंने चीनी सैनिको को उन्ही की भाषा में जवाब दिया और सीमा निर्धारण कर तार बाड का काम जारी रखा जिसे रोकने की चीन ने पूरी कोशिस की.यहाँ चीन और भारतीय सैनिको में संघर्ष हुआ जिसमे भारत के 265 और चीन के 300 से ज्यादा सैनिक हताहत हुए,चीन ने हमले का आरोप भारत पर लगाया,
सगत सिंह द्वारा नाथू ला को ख़ाली न करने का निर्णय आज भी देश के काम आ रहा है और नाथू ला आज भी भारत के कब्जे में है,अन्यथा चीन इस पर कब्ज़ा कर लेता,
वर्ष 1967 में सगत सिंह को जनरल सैम मानेकशा ने मिजोरम में अलगाववादियों से निपटने की जिम्मेदारी दी जिसे उन्होंने बखूबी निभाया,
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बांग्लादेश मुक्ति युद्ध में सगत सिंह राठौर की भूमिका----

वर्ष 1970 में सगत सिंह राठौर को लेफ्टिनेंट जनरल के पद पर प्रोन्नति दी गई और 4 corps के कमांडर के रूप में तेजपुर में नियुक्ति दी गई,यह नियुक्ति भी सैम मानेकशा के कारण दी गई क्योंकि सैम सगत सिंह की काबिलियत को बखूबी पहचानते थे,लेफ्टिनेंट जनरल सगत सिंह के नेत्रत्व में 4 corps ने 1971 के बांग्लादेश मुक्ति युद्ध में जबर्दस्त भूमिका निभाई,

उस समय ईस्ट पाकिस्तान(बांग्लादेश) में आजादी का आन्दोलन चल रहा था और पाकिस्तान सेना वहां जबर्दस्त नरसंहार कर रही थी जिससे लाखो बंगलादेशी शरणार्थी भारत आ रहे थे जिनसे भारत पर बड़ा संकट आ रहा था,बार बार संयुक्त राष्ट्र में गुहार लगाने और पाकिस्तान को समझाने के बाद भी जब पाकिस्तान बाज नहीं आया तो भारत ने पूरी तैय्यारी के साथ ईस्ट पाकिस्तान में सैन्य कार्यवाही कर बांग्लादेश को आजाद कराने का निर्णय लिया.

इस युद्ध में एक से बढकर एक वीरता के कार्य भारतीय सेना ने किये,इस युद्ध में जिस कमांडर ने नेत्रत्व की मिसाल कायम करते हुए आगे बढ़कर सेना का नेत्रत्व किया उनमे सर्वोत्तम रहे सगत सिंह राठौर.
बांग्लादेश मुक्ति अभियान में लेफ्टिनेंट जनरल जगजीत सिंह अरोड़ा के नेत्रत्व में सगत सिंह राठौर,टी एन रैना,m l थापा,जे एस गिल ने बेहतरीन रणनीति से पाकिस्तान सेना के छक्के छुड़ा दिए,
कई गहरी नदियों को पार करते हुए भारतीय सेना एक के बाद एक शहर जीतती चली गयी,पर निर्णायक रहा भारतीय सेना का विशाल मेघना नदी पार करने का सगत सिंह का निर्णय,
जिसमे युद्ध इतिहास में पहली बार किसी मैदानी सेना ने वायु ब्रिगेड की मदद से कोई विशाल नदी पार करने का कारनामा हुआ,यह बहुत ही दुस्साहसी निर्णय था,अगर यह प्लान असफल हो जाता तो इसकी गाज सगत सिंह पर ही गिरती,
और कहा भी जाता है कि कमजोर दिल वाले कमांडर युद्ध नही जीत सकते ,इसके लिए रिस्क लेना पड़ता है,

"every military operation is a gamble,and stakes are invariably high.sagat was one of them who played for a jackpot,and won"

जब दिल्ली में प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी,रक्षा मंत्री बाबु जगजीवन राम,रक्षा सचिव बी बी लाल ने यह सुना कि सगत सिंह राठौर ने मेघना नदी पार कर ली है तो किसी को अपने कानो पर विश्वास नहीं हुआ,और जब विश्वास हुआ तो सब ख़ुशी से झूम उठे.

इसके बाद ही पाकिस्तानी सेना के हौसले टूट गए और यहाँ तक टूट गए कि जब भारतीय सेना ने ढाका को घेर लिया तो वहां 93000 पाकिस्तान सेना थी और भारतीय सनिको की संख्या मात्र तीन हजार थी ,
मगर आज ही के दिन 16 दिसम्बर 1971 को पाकिस्तान के जनरल नियाजी ने 93000 सैनिको के साथ भारतीय लेफ्टिनेंट जनरल जगजीत सिंह अरोड़ा के समक्ष आत्मसमर्पण कर दिया,और बांग्लादेश आजाद हो गया,
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बांग्लादेश मुक्ति युद्ध में सबसे महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले और सबसे कामयाब कमांडर सगत सिंह राठौर को बांग्लादेश सरकार ने भी मान्यता दी और उन्हें सम्मान दिया गया,
भारत सरकार ने उन्हें पदमभूषण पुरूस्कार दिया जो सिविलियन को दिया जाता है,
यहाँ बहुत आश्चर्यजनक बात ये हुई कि किसी अनजानी वजह से उन्हें गैलेंट्री अवार्ड नही दिया गया जो सैन्य अभियानों को दिया जाता है,इसी को भांपते हुए राजनितिक नेत्रत्व ने उन्हें सिविलियन अवार्ड दिया,
कितना दुर्भाग्य की बात है कि उनसे कम सफल सैन्य अधिकारी पुरुस्कृत हुए और इस युद्ध की सफलता के हीरो बन गए.
तभी एक सैन्य अधिकारी जो खुद इस अभियान में शामिल थे उन्होंने लिखा है कि

"it was ironical that the most successful corp commander in the 1971 war had to be content with a civilian award,while several others,whose performance was much below par were decorated for gallantry,and became war heroes"

अगर सगत सिंह कुछ सदी पहले यूरोप या अमेरिका में पैदा हुए होते और इसी प्रकार बड़े युद्ध उन्हें लड़ने पड़ते तो उनकी गिनती विश्व में आज तक के सर्वोत्तम सेनानायको में होती,पर दुर्भाग्य से भारत में उन्हें वह सम्मान नहीं मिला जो उनके जैसी प्रतिभा,महान सेनानायक,और देश के प्रति उनके योगदान को देखकर दिया जाना चाहिए था,
सगत सिंह आगे बढकर अपने सैनिको का नेत्रत्व करते थे और उनके सैनिक उनके लिए जान देने को तैयार रहते थे,

26 सितम्बर 2001 को इस महान नायक का देहांत हो गया,उनकी सेवाएँ और योगदान अतुलनीय है,
राजपूत सदैव देश के लिए निस्वार्थ भाव से जान देता आया है और देता रहेगा,मगर एक सवाल आप अब से-------------
सगत सिंह राठौर के साथ हुए इस अन्याय का दोषी कौन है?
क्या उस समय के राजनितिक नेत्रत्व ने उनके साथ जो अन्याय किया,उसका कारण सगत सिंह राठौर का जन्म से राजपूत होना ही था?????????????????
जवाब आपको देना है,
जय हिन्द,जय राजपूताना......
16 दिसम्बर 1971 को भारतीय सेना ने पाकिस्तान पर जबर्दस्त विजय हासिल की थी.ढाका में पाकिस्तान सेना के 93000 सैनिको ने भारतीय सेना के समक्ष हथियार डाल कर आत्मसमर्पण कर दिया था,जिससे एक नए देश बांग्लादेश का उदय हुआ था,इस विजय के नायक थे लेफ्टिनेंट जनरल सगत सिंह राठौर,जिन्होंने इस युद्ध में भारतीय सेना के अभियान का नेत्रत्व किया था,सगत सिंह राठौर भारतीय सेना के सबसे कामयाब सेनानायक रहे हैं,उन्हें जो भी लक्ष्य दिया गया इन्होने उससे बढकर परिणाम दिए.वे हमेशा आगे बढकर नेत्रत्व करते थे और अपने सैनिको का हौसला बढ़ाते .======================================
जीवन परिचय--------------
सगत सिंह जी का जन्म 14 जुलाई 1919 को बीकानेर में ठाकुर बृजपाल सिंह राठौर के यहाँ हुआ था,सगत सिंह बचपन से देशप्रेमी थे और सेना में जाना उनका सपना था,स्कूली शिक्षा प्राप्त करते हुए ही उन्होंने इंडियन मिलेट्री एकेडमी ज्वाइन कर ली और उसके बाद बीकानेर स्टेट फ़ोर्स ज्वाइन कर ली,दुसरे विश्व युद्ध में इन्होने मेसोपोटामिया,सीरिया,फिलिस्तीन के युद्धों में अपना जौहर दिखाया,
सन 1947 में देश आजाद होने के बाद उन्होंने भारतीय सेना ज्वाइन करने का निर्णय लिया और सन 1949 में उन्हें भारतीय सेना में कमीशंड ऑफिसर के रूप में 3 गोरखा राइफल्स में नियुक्ति मिल गई,
1955 में सगत सिंह को लेफ्टिनेंट कर्नल के रूप में 2/3 गोरखा राइफल्स की कमान दी गई,गोरखा राइफल्स में इससे पहले सिर्फ ब्रिटिश ऑफिसर्स ही तैनात होते थे और ब्रिटिश यह मानते थे कि गोरखा सैनिकं भारतीय सेनानायक का नेत्रत्व स्वीकार नहीं करेंगे,किन्तु यह आशंका निर्मूल सिद्ध हुई और गोरखा सैनिको का सगत सिंह राठौर ने बखूबी नेत्रत्व किया,
इसके बाद इन्हें 3/3 गोरखा राइफल्स का भी नेत्रत्व दिया गया,
वर्ष 1961 में इन्हें ब्रिगेडियर के रूप में प्रमोशन देते हुए पैराशूट ब्रिगेड की कमांड दी गई,
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गोवा मुक्ति अभियान में सगत सिंह राठौर की भूमिका------

उपनिवेशिक काल से गोवा पर पुर्तगालियों का शासन रहा था,आजादी के बाद भारतीय सरकार ने पुर्तगाल से गोवा मुक्त करने को कहा पर पुर्तगाल सरकार ने साफ़ मना कर दिया,और वहां आन्दोलन कर रहे भारतीय गोवा मुक्ति क्रांतिकारियों का उत्पीडन शुरू कर दिया,तंग आकर भारत सरकार ने गोवा में पुर्तगालियों के विरुद्ध सैन्य कार्यवाही का निर्णय लिया,
50 पैराशूट ब्रिगेड ने सगत सिंह के नेत्रत्व में इसमें बड़ी भूमिका निभाई,सगत सिंह ने इस अभियान का की रणनीति बनाकर इस पर अमल करने के लिए वरिष्ठ सैन्य अधिकारीयों को तैयार कर लिया,
भारतीय सेना ने चारो ओर से, जल थल एवं वायु सेना की उस समय की आधुनिकतम तैयारियों के दिसम्बर 17-18 साथ की रात में ऑपरेशन विजय के अंतर्गत सैनिक कार्यवाही शुरू कर दी ऑपरेशन विजय 40 घंटे का था .. भारतीय सेना के इस 40 घंटे के युद्ध ने गोवा पर 450 साल से चले आ रहे पुर्तगाली शासन का अंत किया और गोवा भारतीय गणतंत्र का एक अंग बना,
यधपि इस युद्ध का परिनाम सबको अपेक्षित था,मगर भारतीय सेना की तेजी ने सभी को चौका दिया और इस सफल रणनीति का श्रेय सगत सिंह राठौर को जाता है,
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चीन के विरुद्ध संघर्ष--------

वर्ष 1965 में सगत सिंह को मेजर जनरल के रूप में नियुक्ति देकर 17 माउंटेन डिविजन की कमांड देकर चीन की चुनौती का सामना करने के लिए सिक्किम में तैनात किया गया,वहां चीन ने नाथू ला में लाउड स्पीकर लगाकर भारतीय सेना को चेतावनी दी मगर सगत सिंह ने अविचलित होकर अपना काम जारी रखा,उन्होंने चीनी सैनिको को उन्ही की भाषा में जवाब दिया और सीमा निर्धारण कर तार बाड का काम जारी रखा जिसे रोकने की चीन ने पूरी कोशिस की.यहाँ चीन और भारतीय सैनिको में संघर्ष हुआ जिसमे भारत के 265 और चीन के 300 से ज्यादा सैनिक हताहत हुए,चीन ने हमले का आरोप भारत पर लगाया,
सगत सिंह द्वारा नाथू ला को ख़ाली न करने का निर्णय आज भी देश के काम आ रहा है और नाथू ला आज भी भारत के कब्जे में है,अन्यथा चीन इस पर कब्ज़ा कर लेता,
वर्ष 1967 में सगत सिंह को जनरल सैम मानेकशा ने मिजोरम में अलगाववादियों से निपटने की जिम्मेदारी दी जिसे उन्होंने बखूबी निभाया,
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बांग्लादेश मुक्ति युद्ध में सगत सिंह राठौर की भूमिका----

वर्ष 1970 में सगत सिंह राठौर को लेफ्टिनेंट जनरल के पद पर प्रोन्नति दी गई और 4 corps के कमांडर के रूप में तेजपुर में नियुक्ति दी गई,यह नियुक्ति भी सैम मानेकशा के कारण दी गई क्योंकि सैम सगत सिंह की काबिलियत को बखूबी पहचानते थे,लेफ्टिनेंट जनरल सगत सिंह के नेत्रत्व में 4 corps ने 1971 के बांग्लादेश मुक्ति युद्ध में जबर्दस्त भूमिका निभाई,

उस समय ईस्ट पाकिस्तान(बांग्लादेश) में आजादी का आन्दोलन चल रहा था और पाकिस्तान सेना वहां जबर्दस्त नरसंहार कर रही थी जिससे लाखो बंगलादेशी शरणार्थी भारत आ रहे थे जिनसे भारत पर बड़ा संकट आ रहा था,बार बार संयुक्त राष्ट्र में गुहार लगाने और पाकिस्तान को समझाने के बाद भी जब पाकिस्तान बाज नहीं आया तो भारत ने पूरी तैय्यारी के साथ ईस्ट पाकिस्तान में सैन्य कार्यवाही कर बांग्लादेश को आजाद कराने का निर्णय लिया.

इस युद्ध में एक से बढकर एक वीरता के कार्य भारतीय सेना ने किये,इस युद्ध में जिस कमांडर ने नेत्रत्व की मिसाल कायम करते हुए आगे बढ़कर सेना का नेत्रत्व किया उनमे सर्वोत्तम रहे सगत सिंह राठौर.
बांग्लादेश मुक्ति अभियान में लेफ्टिनेंट जनरल जगजीत सिंह अरोड़ा के नेत्रत्व में सगत सिंह राठौर,टी एन रैना,m l थापा,जे एस गिल ने बेहतरीन रणनीति से पाकिस्तान सेना के छक्के छुड़ा दिए,
कई गहरी नदियों को पार करते हुए भारतीय सेना एक के बाद एक शहर जीतती चली गयी,पर निर्णायक रहा भारतीय सेना का विशाल मेघना नदी पार करने का सगत सिंह का निर्णय,
जिसमे युद्ध इतिहास में पहली बार किसी मैदानी सेना ने वायु ब्रिगेड की मदद से कोई विशाल नदी पार करने का कारनामा हुआ,यह बहुत ही दुस्साहसी निर्णय था,अगर यह प्लान असफल हो जाता तो इसकी गाज सगत सिंह पर ही गिरती,
और कहा भी जाता है कि कमजोर दिल वाले कमांडर युद्ध नही जीत सकते ,इसके लिए रिस्क लेना पड़ता है,

"every military operation is a gamble,and stakes are invariably high.sagat was one of them who played for a jackpot,and won"

जब दिल्ली में प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी,रक्षा मंत्री बाबु जगजीवन राम,रक्षा सचिव बी बी लाल ने यह सुना कि सगत सिंह राठौर ने मेघना नदी पार कर ली है तो किसी को अपने कानो पर विश्वास नहीं हुआ,और जब विश्वास हुआ तो सब ख़ुशी से झूम उठे.

इसके बाद ही पाकिस्तानी सेना के हौसले टूट गए और यहाँ तक टूट गए कि जब भारतीय सेना ने ढाका को घेर लिया तो वहां 93000 पाकिस्तान सेना थी और भारतीय सनिको की संख्या मात्र तीन हजार थी ,
मगर आज ही के दिन 16 दिसम्बर 1971 को पाकिस्तान के जनरल नियाजी ने 93000 सैनिको के साथ भारतीय लेफ्टिनेंट जनरल जगजीत सिंह अरोड़ा के समक्ष आत्मसमर्पण कर दिया,और बांग्लादेश आजाद हो गया,
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बांग्लादेश मुक्ति युद्ध में सबसे महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले और सबसे कामयाब कमांडर सगत सिंह राठौर को बांग्लादेश सरकार ने भी मान्यता दी और उन्हें सम्मान दिया गया,
भारत सरकार ने उन्हें पदमभूषण पुरूस्कार दिया जो सिविलियन को दिया जाता है,
यहाँ बहुत आश्चर्यजनक बात ये हुई कि किसी अनजानी वजह से उन्हें गैलेंट्री अवार्ड नही दिया गया जो सैन्य अभियानों को दिया जाता है,इसी को भांपते हुए राजनितिक नेत्रत्व ने उन्हें सिविलियन अवार्ड दिया,
कितना दुर्भाग्य की बात है कि उनसे कम सफल सैन्य अधिकारी पुरुस्कृत हुए और इस युद्ध की सफलता के हीरो बन गए.
तभी एक सैन्य अधिकारी जो खुद इस अभियान में शामिल थे उन्होंने लिखा है कि

"it was ironical that the most successful corp commander in the 1971 war had to be content with a civilian award,while several others,whose performance was much below par were decorated for gallantry,and became war heroes"


अगर सगत सिंह कुछ सदी पहले यूरोप या अमेरिका में पैदा हुए होते और इसी प्रकार बड़े युद्ध उन्हें लड़ने पड़ते तो उनकी गिनती विश्व में आज तक के सर्वोत्तम सेनानायको में होती,पर दुर्भाग्य से भारत में उन्हें वह सम्मान नहीं मिला जो उनके जैसी प्रतिभा,महान सेनानायक,और देश के प्रति उनके योगदान को देखकर दिया जाना चाहिए था,
सगत सिंह आगे बढकर अपने सैनिको का नेत्रत्व करते थे और उनके सैनिक उनके लिए जान देने को तैयार रहते थे,

26 सितम्बर 2001 को इस महान नायक का देहांत हो गया,उनकी सेवाएँ और योगदान अतुलनीय है,
राजपूत सदैव देश के लिए निस्वार्थ भाव से जान देता आया है और देता रहेगा,मगर एक सवाल आप अब से-------------
सगत सिंह राठौर के साथ हुए इस अन्याय का दोषी कौन है?
क्या उस समय के राजनितिक नेत्रत्व ने उनके साथ जो अन्याय किया,उसका कारण सगत सिंह राठौर का जन्म से राजपूत होना ही था?????????????????
जवाब आपको देना है,
जय हिन्द,जय राजपूताना......

Wednesday, December 17, 2014

GITA

Photo: • Bhagawadgeeta •

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