Wednesday, July 2, 2014

वीरांगना अवंतिबाई लोधी’

पराक्रमी, धैर्यशील ‘स्वतंत्रता प्रेमी वीरांगना अवंतिबाई लोधी’१. ‘स्वतंत्रता प्रेमी वीरांगना अवंतिबाई लोधीका जन्म एवं बचपन

अवंतिबाई लोधी एक पराक्रमी, धैर्यशील एवं प्रत्युत्पन्नमति स्त्री थीं । मध्यप्रदेशके सिवनी नामक जनपदमें राव जुंझारुसिंहके राजमहलमें १६ अगस्त १८३१ के दिन अवंतिबाईका जन्म हुआ । उनका नाम मोहिनी रखा गया था । बचपनसे ही अश्वसंचालन, खड्गसंचालन, तीरंदाजी (धनुर्विद्या), सैनिक शिक्षण इत्यादि वीरता हेतु आवश्यक सभी विद्याओंमें उन्हें अत्यंत रुचि थी ।

२. शौर्यकी प्रतिमा रानी अवंतिबाईद्वारा राज्यकी धुरी संभालते

हुए अपने साहस, धैर्य एवं समाहितत्व जैसी सुयोग्यताका परिचय कर देना

१७ वें वर्षमें मोहिनीका विवाह रायगढके महाराजा लक्ष्मणसिंहके सुपुत्र कुंवर विक्रमादित्यके साथ हुआ । विवाहके पश्चात उनका नाम अवंति रखा गया । महाराजा लक्ष्मणसिंहकी मृत्युके पश्चात विक्रमादित्य रायगढके राजा बने । विक्रमादित्य ईश्वरभक्त, धार्मिक प्रवृत्तिके एवं वेदपठन करनेवाले थे । आगे अवंतिबाईने अमानसिंह और शेरसिंह नामक दो सुंदर एवं मनमोहक पुत्रोंको जन्म दिया । कुछ वर्षके उपरांत राजा विक्रमादित्य अस्वस्थ रहने लगे और उसीमें उनका मानसिक संतुलन भी बिगड गया । ऐसी परिस्थितिमें शौर्यमूर्ति रानी अवंतिबाईने राज्यकी धुरी संभालते हुए अपने साहस, धैर्य एवं समाहितत्व जैसी सुयोग्यताका परिचय दिया ।

३. प्रतिकूल कालमें भी अपने गुणोंके कारण

रानी अवंतिबाईने सफलता पाकर परिस्थितिको मात किया

१८५१ को अंग्रेज ईस्ट इंडिया कंपनीने राजा विक्रमादित्यसिंहको पागल घोषित कर, वहां अपना एक सेनादल रखकर, रायगढका राज्य अपने अधिकारमें लेनेकी इच्छा प्रदर्शित की । कंपनी सरकारका यह षडयंत्र ध्यानमें आते ही, वैसी स्थितिमें भी रानी अवंतिबाईने निर्भीकतासे, समाहितत्व रखकर अपने शारीरिक एवं मानसिक रुग्णाईत पति एवं अल्पवयीन उत्तराधिकारी पुत्रोंकी सहायता ली । रायगढ शासनकी धुरी सुयोग्य एवं व्यवस्थित रूपसे संभालनेका प्रयास किया और बडी कुशलताके साथ शासनका कार्यभार संभालकर राज्य अधिकारमें लेनेके अंग्रेज शासनके उद्देश्यको झटका दिया । 

४. पतिकी मृत्युके पश्चात भी प्रजाका मन जीतकर

अपना राज्य अधिकसे अधिक विस्तृत करनेवाली कर्तव्यनिष्ठ स्त्री

१८५७ के मईमें राजा विक्रमादित्यकी मृत्यु हुई; किंतु पतिकी मृत्युके पश्चात भी दुःखसे विचलित होनेकी अपेक्षा रानीने धैर्यसे पूरे राज्यमें भ्रमण किया । जनताके सुखदुःखमें सहभागी होकर प्रजाका मन जीतकर उन्होंने रायगढका अपना राज्य अधिकसे अधिक विस्तृत किया । उसके राज्यका क्षेत्रफल ४००० वर्गमीटर इतना था । उसमें मंडला, हिंडोर, सोहागपुर, अमरकंटक इत्यादि जनपद एवं अन्य भूभाग अंतर्भूत थे ।
भविष्यमें नानासाहेब पेशवाके नेतृत्वतले छेडे गए स्वतंत्रता संग्राममें जिस धैर्य एवं चतुराई जैसे गुणोंद्वारा अपना विस्तृत राज्य कंपनी सरकारके हाथोंसे बचाकर एवं संभालकर कैसे रख सकते हैं, इसके विषयमें उनके गुणोंकी स्तुति करते हुए अंग्रेज सेनापति (कप्तान) वाडिंग्टन कहता है, ‘१८५७ के स्वतंत्रता संग्राममें रायगढके राज्यकी सुरक्षा इतनी सुचारु रूपसे रखी थी कि लंबी अवधितक उसके आसपास सेनाका घेरा डालकर भी हमें उसे जीतना असंभव हुआ था ।’ 

५. अपने अनुसार आसपासके जागीरदार एवं

देशी नरेशोंको सजग कर प्रेरित करनेवाली धैर्यवान रानी

रानी अवंतिबाईको यह ज्ञात था कि आज नहीं तो कल यह अंग्रेज सरकार अपने ही समाजके देशद्रोही दगाबाजोंकी सहायता लेकर हमें जीविकाकी खोजमें दरदर भिक्षा मांगनेके लिए विवश करेगी अथवा हमारे प्राण लेकर हमारा राज्य अपने अधिकारमें लेगी । ऐसा नहीं हो, अतएव कार्यरत रहना चाहिए, यह जानकर उन्होंने अपने आसपासकी राजभूमि अधिकारियोंको (जागीरदारोंको), छोटे-मोटे राजाओंको अपने हाथोंसे पत्र एवं कंगन भेजकर स्वतंत्रताके लिए सजग रहनेका संदेश दिया । इसके पीछे यह उद्देश्य था कि स्वतंत्रता चिरंतन रहे, ऐसी जिनकी इच्छा नहीं है, वे हाथोंमें यह कंगन पहनकर अंग्रेज सरकारकी दासता स्वीकार करें                          ६. रानी अवंतिबाईद्वारा समर्थनीय रूपसे क्रांतिका

नेतृत्त्व स्वीकार कर अपने गुणोंके कारण लोकप्रियता प्राप्त करना

नियोजनके अनुसार अंग्रेजोंके विरोधमें स्वतंत्रता संग्राम आरंभ किया गया और वह सफल भी हुआ था; परंतु ‘कुल्हाडीका दस्ता अपने गोतका नाश करता है’ नामक कहावतके अनुसार कुछ शिंदे, होलकर जैसे भारतीय संस्थानोंके अधिपति अंग्रेजोंमें जुड गए, वैसे सफलता प्राप्त करनेवाले इस स्वतंत्रता संग्राममें रुकावट आने लगी । यशके कारण अंग्रेजोंका पल्ला भारी हुआ; किंतु रानी अवंतिबाई हतोत्साहित नहीं हुर्इं । उन्होंने अपने राज्यमेंसे अंग्रेजोंद्वारा नियुक्त ‘कोर्ट ऑफ वार्डस्’के अधिकारियोंको बाहर निकाल दिया और अपने राज्यकी सुरक्षाका उत्तरदायित्व स्वयंके ऊपर लेकर क्रांतिका भी नेतृत्व स्वीकार किया । भारतमाताकी स्वतंत्रताके लिए आसपासके सभी क्षेत्रोंमें रहनेवाली जनताको प्रेरित किया । उन्होंने अपने प्राणोंकी भी चिंता नहीं की । उनकी लोकप्रियता इतनी बढने लगी कि उनकी सुरक्षाके लिए स्वयंके प्राणोंकी आहुति देनेके लिए भी लोग तैयार थे । 

७. अपनी तलवारद्वारा शौर्यकी पराकाष्ठा करनेवाली रानीपर

उनकी ही सेनाके एक धोखेबाजने पीछेसे तलवारका वार कर उन्हें यमपुरी पहुंचाया

उस समय उस क्षेत्रका नेतृत्व जबलपुरकी ५२ वीं पलटनके अधिकारी कैप्टेन वाडिंग्टनके हाथोंमें था । अंग्रेज सेना और स्वतंत्रता प्रिय क्रांतिकारियोंके मध्य मंडला नामक क्षेत्रके पास खैरी गांवके निकट बेधुंद युद्ध आरंभ हुआ । रानी अवंतिबाईकी क्रांतिकारी सेनाके आवेशके सामने अंग्रेज परास्त हुए । वाडिंग्टन २३ नवंबर १८५७ को रणक्षेत्र छोडकर लौट गया; परंतु वह दिवा नरेशकी सहायता एवं प्रचुर सेना लेकर लौट आया । रानीपर उसने आक्रमण किया । घनघोर युद्ध हुआ । शत्रुको परास्त करने हेतु तोपखाना बिखर गया, बंदूकें निस्तेज हो गर्इं और तलवारें दमकने लगी । रानी अवंतिबाई तलवारके साथ वाडिंग्टनपर टूट पडीं; परंतु उनकी ही सेनाके एक धोखेबाजने उनपर पीछेसे तलवारका वार किया । स्वतंत्रता प्राप्तिके लिए स्वकर्तव्य निभाते हुए उन्हें रणांगणमें ही यमपुरी भेजा गया । ऐसेही धोखेबाजोंके कारण इस देशकी स्वतंत्रता मिट्टीमें मिली है, यह बात कभी भी भूलना असंभव है । भारतीय शौर्यसे भरा इतिहास ऐसे ही देशद्रोही धोखेबाजोंके कारण अधूरा रहा, तो देशप्रेमी, स्वतंत्रतावीर, क्रांतिवीर एवं क्रांतिदेवी अवंतिबाई जैसी नारियोंने वह ‘यावश्चंद्र दिवाकरौ’ प्रकाशमान किया ।’
 - श्री वसंत अण्णाजी वैद्य, नागपुर (संदर्भ : मासिक ललना, अगस्त २०१०)

पाइप से बनाया प्रदूषण कम करने वाला यंत्र

10वीं पास सुधीर का कमाल, पाइप से बनाया प्रदूषण कम करने वाला यंत्र..
10वीं पास सुधीर का कमाल, पाइप से बनाया प्रदूषण कम करने वाला यंत्र..

रेवाड़ी - पढ़ाई बेशक 10वीं कक्षा तक ही की, मगर इरादे ऐसे कि उसके आगे बड़े-बड़े इंजीनियर भी मात खा जाएं। भांडौर निवासी सुधीर कुमार ऐसा ही शख्स है, जिसके प्रयोगों ने बड़े-बड़े इंजीनियरों को भी हैरत में डाल दिया है। 

सुधीर ने न तो कोई इंजीनियरिंग की पढ़ाई की है और न ही कहीं से कोई ट्रेनिंग। महज दसवीं पास युवक ने कई तरह के तकनीकी यंत्रों को बनाकर अपनी अलग पहचान कायम की है। बिना किसी विशेषज्ञ की सलाह के उसने एक ऐसा यंत्र तैयार किया है, जिसे बाइक में लगाते ही प्रदूषण की मात्रा कम हो जाती है। बाकायदा प्रदूषण मापने वाली मशीनें भी इस बात का प्रमाण दे चुकी है कि सुधीर द्वारा बनाया गया यंत्र लगाने पर प्रदूषण लेवल में 30 फीसदी तक कमी आ जाती है।

फिलहाल इस यंत्र को प्लास्टिक का बनाया गया है। सुधीर का कहना है कि यदि इसी तकनीक को डेवलप कर यह सिस्टम मेटल का बनाया जाए तो यह और भी कारगर साबित होगा। उसने दावा किया कि इस तकनीक को गाड़ियों, भट्ठे, फैक्ट्रियों के अलावा बिजली प्लांट में भी प्रयोग किया जाए तो एयर पॉल्युशन 60 से 70 फीसदी तक कम किया जा सकता है। इस तरह हम वायु प्रदूषण से धरती की रक्षा कर सकते हैं।

प्लास्टिक के पाइप काटकर बनाया यंत्र

बीते दो सालों से सुधीर प्रदूषण को नियंत्रित करने वाले इस यंत्र को तैयार करने में जुटा हुआ था। उसने घर में बेकार पड़े प्लास्टिक पाइप को काटकर उसमें फिल्टर लगाया। कुछ और तकनीकी काम कर यंत्र को तैयार किया गया। पाइप में लगे फिल्टरों की सहायता से ही वाहन का प्रदूषण नियंत्रित होता है। रेवाड़ी - पढ़ाई बेशक 10वीं कक्षा तक ही की, मगर इरादे ऐसे कि उसके आगे बड़े-बड़े इंजीनियर भी मात खा जाएं। भांडौर निवासी सुधीर कुमार ऐसा ही शख्स है, जिसके प्रयोगों ने बड़े-बड़े इंजीनियरों को भी हैरत में डाल दिया है।
सुधीर ने न तो कोई इंजीनियरिंग की पढ़ाई की है और न ही कहीं से कोई ट्रेनिंग। महज दसवीं पास युवक ने कई तरह के तकनीकी यंत्रों को बनाकर अपनी अलग पहचान कायम की है। बिना किसी विशेषज्ञ की सलाह के उसने एक ऐस...ा यंत्र तैयार किया है, जिसे बाइक में लगाते ही प्रदूषण की मात्रा कम हो जाती है। बाकायदा प्रदूषण मापने वाली मशीनें भी इस बात का प्रमाण दे चुकी है कि सुधीर द्वारा बनाया गया यंत्र लगाने पर प्रदूषण लेवल में 30 फीसदी तक कमी आ जाती है।
फिलहाल इस यंत्र को प्लास्टिक का बनाया गया है। सुधीर का कहना है कि यदि इसी तकनीक को डेवलप कर यह सिस्टम मेटल का बनाया जाए तो यह और भी कारगर साबित होगा। उसने दावा किया कि इस तकनीक को गाड़ियों, भट्ठे, फैक्ट्रियों के अलावा बिजली प्लांट में भी प्रयोग किया जाए तो एयर पॉल्युशन 60 से 70 फीसदी तक कम किया जा सकता है। इस तरह हम वायु प्रदूषण से धरती की रक्षा कर सकते हैं।
प्लास्टिक के पाइप काटकर बनाया यंत्र
बीते दो सालों से सुधीर प्रदूषण को नियंत्रित करने वाले इस यंत्र को तैयार करने में जुटा हुआ था। उसने घर में बेकार पड़े प्लास्टिक पाइप को काटकर उसमें फिल्टर लगाया। कुछ और तकनीकी काम कर यंत्र को तैयार किया गया। पाइप में लगे फिल्टरों की सहायता से ही वाहन का प्रदूषण नियंत्रित होता है।
 

पंचमुखी हनुमान पाकिस्तान में -१७ लाख साल


कराची- पाकिस्तान में है एक ऎसा मंदिर जहां भगवान राम पहुंचे। १७ लाख साल पहले बने इस पंचमुखी हनुमान मंदिर में हर मनोकामना पूर्ण होती है।
पाकिस्तान के सिंध प्रांत के कराची में स्थित इस मंदिर का पुर्ननिर्माण १८८२ में किया गया। मंदिर में पंचमुखी हनुमान की मनमोहक प्रतिमा स्थापित है।

त्रेता युग से है संबंध

बताया जाता है कि हनुमानजी की यह मूर्ति डेढ़ हजार साल पहले प्रकट हुई थी। जहां से मूर्ति प्रकट हुई वहां से मात्र ११ मुट्ठी मिट्टी को हटाया गया और मूर्ति सामने आ गई। हालांकि इस रहस्मयी मूर्ति का संबंध त्रेता युग से है।
मंदिर पुजारी का कहना है कि यहां सिर्फ ११-१२ परिक्रमा लगाने से मनोकामना पूरी हो जाती है। हनुमानजी के अलावा यहां कई हिन्दु देवी-देवताओं की मूर्तियां स्थापित हैं। गौरतलब है कि इस मंदिर के दर्शन भाजपा नेता लाल कृष्ण आडवाणी और जसवंत सिंह भी कर चुके हैं।
स्त्रोत : पत्रिका

पद्मनाभ स्वामी मंदिर को खोला जा सकता है, तो आगरा का ताज महल क्यो नही?

पद्मनाभ स्वामी मंदिर के खजाने को खोला जा सकता है, तो आगरा का ताज महल (तेजो महालय शिव मंदिर) क्यो नही? कई कमरे शहाजहान के समय से बंद है और अभी तक उन्हे खोलने कि इजाजत नही। ये सब जनता से क्यू छुपा रहे है? इस मामले को आगे बढ़ाने के लिए जल्द ही अदालत में केस दर्ज करुंगा! - डॉ. सुब्रमण्यम स्वामी

Subramanian Swamy

#drswamy #swamy #drsubramanianswamy #subramanianswamy

पद्मनाभ स्वामी मंदिर के खजाने को खोला जा सकता है, तो आगरा का ताज महल (तेजो महालय शिव मंदिर) क्यो नही? कई कमरे शहाजहान के समय से बंद है और अभी तक उन्हे खोलने कि ...इजाजत नही। ये सब जनता से क्यू छुपा रहे है? इस मामले को आगे बढ़ाने के लिए जल्द ही अदालत में केस दर्ज करुंगा! - डॉ. सुब्रमण्यम स्वामी

ISIL vow to demolish Kaaba -way to go.

Now the Islamic terrorists vow to demolish Kaaba because of Islamic hatred to Idolatry? So are they against Islam? Probably not, its only that "Charity begins at home" and now the charity is coming home. They are vowing to demolish Kaaba as par Islamic instruction to destroy idolatry, in fact they are true Muslims.
 Click deccanchronicle
By the way, Kaaba must be given to ISIS, they will certainly not destroy it, because Mohammed already destroyed the 359 idols and only one remained that Abu Taleb wanted to save. ISIS will only abolish the idolatry. ISIS will not destroy it, else where will jihadists meet up and congregate

साईं एक साधारण पागल फ़क़ीर

यह बात १८८० के पहले की है जब गांववालों के लिए साईं एक साधारण पागल फ़क़ीर थे,रोज गांववालों से भीख मांगता और मस्जिद में एक दिया और ठण्ड से बचने के लिए लकड़ी जलाने के लिए दुकानदारों से तेल मंगाते थे. यह तेल शहर से बैलगाड़ी में लाके गाँव में बेचा जाता था(पेज न १२२,श्री साईं सत्चरित) लेकिन उस दिन गाँव में तेल नहीं आया तो दुकानदारों ने बाबा को तेल नहीं दिया(पेज न ४२,श्री साईं सत्चरित) बाबा खाली हाथ वापस आ गए.शाम के बाद जब अँधेरा बढ़ने लगा तो बाबा जो बेहतरीन एक बावर्ची भी थे, ने अपने अनुभव का उपयोग करते हुए तेल रखने वाले बर्तन में थोडा सा पानी डालकर बर्तन को जोर से हिलाया और थोड़ी देर बर्तन को रख दिया.जैसा की सबको मालूम है तेल का घनत्व(density) ज्यादा होने से वह पानी के साथ मिलता(mix) नहीं,वह पानी की सतह पर तैरने लगता है.बाबा ने उपरी सतह पर जो तेल जमा हुआ था उसे चिराग(दिया) में उड़ेल लिया ऊपर जमा हुआ तेल चिराग में आ गया, जिससे चिराग जलने लगा.
यह घटना १८८० से पहले की इसलिए है क्यूंकि इसके बाद गांववाले साईं के प्रचार प्रसार में जुट गए थे,और कोई भी किसी चीज के लिए साईं को मन नहीं कर सकता था.सन १८९० से मस्जिद में चिराग जलाने का काम अब्दुल बाबा करते थे, अपने जीवन पर्यन्त वे मस्जिद में और बाद में बाबा की कब्र पर चिराग जलाते रहे. इस घटना में सिर्फ एक ही चिराग जलाया गया था क्यूंकि जैसा आपलोग जानते हैं बाबा १९१० के पहले मस्जिद में किसी भी तरह की हिन्दू गतिविधि का विरोध करते थे यह बात बाबा के प्रसिद्ध भक्त श्री हरी विनायक साठे ने अपने एक inerview में साईं प्रचारक बी.वि.नार्सिम्हास्वमी को बताई थी (पेज न १२२, Devotee’s Experience) ,इसलिए यह अतिश्योक्ति(exaggretion ) हे की बहुत से दिए जलाये.
चमत्कार तो भगवान स्वयं भी नहीं करते क्यूंकि हर घटना प्रकृति के नियमो के अनुसार होती है और यह नियम भगवान के ही बनाये हुए हैं और भगवान अपने बनाये हुए नियमो को स्वयं कैसे तोड़ सकते हैं.जब भगवान प्रकृति नियमों के विरुद्ध नहीं जाते तो साईं जैसों की औकात ही क्या है चमत्कार करने की.
आँखे खोलो साईं भक्तों यह एक बहुत बड़ा षड़यंत्र है पैसे कमाने के लिए.
मित्रों ऐसी जानकारी ज्यादा से ज्यादा शेयर करें,ताकि लोग इस सुचना का लाभ उठा सकें.यह बात १८८० के पहले की है जब गांववालों के लिए साईं एक साधारण पागल फ़क़ीर थे,रोज गांववालों से भीख मांगता और मस्जिद में एक दिया और ठण्ड से बचने के लिए लकड़ी जलाने के... लिए दुकानदारों से तेल मंगाते थे. यह तेल शहर से बैलगाड़ी में लाके गाँव में बेचा जाता था(पेज न १२२,श्री साईं सत्चरित) लेकिन उस दिन गाँव में तेल नहीं आया तो दुकानदारों ने बाबा को तेल नहीं दिया(पेज न ४२,श्री साईं सत्चरित) बाबा खाली हाथ वापस आ गए.शाम के बाद जब अँधेरा बढ़ने लगा तो बाबा जो बेहतरीन एक बावर्ची भी थे, ने अपने अनुभव का उपयोग करते हुए तेल रखने वाले बर्तन में थोडा सा पानी डालकर बर्तन को जोर से हिलाया और थोड़ी देर बर्तन को रख दिया.जैसा की सबको मालूम है तेल का घनत्व(density) ज्यादा होने से वह पानी के साथ मिलता(mix) नहीं,वह पानी की सतह पर तैरने लगता है.बाबा ने उपरी सतह पर जो तेल जमा हुआ था उसे चिराग(दिया) में उड़ेल लिया ऊपर जमा हुआ तेल चिराग में आ गया, जिससे चिराग जलने लगा.
यह घटना १८८० से पहले की इसलिए है क्यूंकि इसके बाद गांववाले साईं के प्रचार प्रसार में जुट गए थे,और कोई भी किसी चीज के लिए साईं को मन नहीं कर सकता था.सन १८९० से मस्जिद में चिराग जलाने का काम अब्दुल बाबा करते थे, अपने जीवन पर्यन्त वे मस्जिद में और बाद में बाबा की कब्र पर चिराग जलाते रहे. इस घटना में सिर्फ एक ही चिराग जलाया गया था क्यूंकि जैसा आपलोग जानते हैं बाबा १९१० के पहले मस्जिद में किसी भी तरह की हिन्दू गतिविधि का विरोध करते थे यह बात बाबा के प्रसिद्ध भक्त श्री हरी विनायक साठे ने अपने एक inerview में साईं प्रचारक बी.वि.नार्सिम्हास्वमी को बताई थी (पेज न १२२, Devotee’s Experience) ,इसलिए यह अतिश्योक्ति(exaggretion ) हे की बहुत से दिए जलाये.
चमत्कार तो भगवान स्वयं भी नहीं करते क्यूंकि हर घटना प्रकृति के नियमो के अनुसार होती है और यह नियम भगवान के ही बनाये हुए हैं और भगवान अपने बनाये हुए नियमो को स्वयं कैसे तोड़ सकते हैं.जब भगवान प्रकृति नियमों के विरुद्ध नहीं जाते तो साईं जैसों की औकात ही क्या है चमत्कार करने की.
आँखे खोलो साईं भक्तों यह एक बहुत बड़ा षड़यंत्र है पैसे कमाने के लिए.
 


Sunday, June 29, 2014

इस्लामी जेहाद -मंदिर और गुरुद्वारा तोड़ मस्जिद क्यों बनाये जाते रहे हैं

हम जैसे हिंदूवादी लोग जब भी इस्लाम या इस्लामी जेहाद के खिलाफ अपनी आवाज उठाते हैं तो.... मुस्लिम तो छोड़िये , हमारे अपने दूषित प्रजाति के हिन्दू (सेक्यूलर) ही.... तुरंत
अपना विधवा प्रलाप प्रारम्भ कर देते हैं.. और, हमें समझाते हैं कि... आखिर मुस्लिमों ने आपका क्या बिगाड़ा है...???????
सिर्फ इतना ही नहीं..... बल्कि, अपने गलत- सही तर्कों के साथ.... हम जैसों को यह भी समझाने का प्रयास करते हैं कि.... और, सभी धर्म एक समान... एवं, सभी के ईश्वर
एक ही है .... तथा , सिर्फ हम सबमे उन्हें अलग-अलग नामों से पुकारा जाता है और...... सिर्फ , हमारे पूजा करने की पद्धति में अंतर है....!
मनहूस सेक्यूलरों और मानवतावादियों की ऐसी ढकोसला भरी बातें..
क्योंकि, यह कोरी बकवास है कि.... सभी धर्म एक समान है...!
मैं ऐसे मानवतावादियों और मनहूस सेक्यूलरों से .... सिर्फ एक मासूम सा सवाल करना चाहता हूँ कि..... अगर भगवान एक हैं,,,,,, तो... मंदिर और गुरुद्वारा तोड़-तोड़ कर ..........वहां मस्जिद क्यों बनाये जाते रहे हैं...??
सारे प्रमाण -
इस्लाम के जिहादियों ने.... अपने प्रमुख मस्जिदों का निर्माण कैसे किया है ..... आप इस साइट पर देख सकते हैं.....
प्रमाण : http://en.wikipedia.org/wiki/Conversion_of_non-Muslim_places_of_worship_into_mosques
कांग्रेस ने हमारी इतिहास के किताबो से इस तरह खिलवाड़ किया है कि ... आज खुद हिंदू भी कहते दिख जाते हैं कि .... कुछेक मंदिरों को ही तोडा गया होगा.... जबकि... अपने स्थापना से ही मंदिरों को तोड़कर मस्जिद बनाने की परंपरा .. इस्लाम में रही है....
प्रमाण : http://en.wikipedia.org/wiki/Negationism_in_India_–_Concealing_the_Record_of_Islam
अयोध्या में बाबरी मस्जिद बनाने का वादा करने वाला महा सेक्यूलर केजरीवाल इस बात पर आज क्यो खामोश हैं...??
मुसलमानों और तुर्क लुटेरों ने हम हिंदुओ पर 1146 साल तक राज किया है...... और, इस दौरान मुसलमानों ने करोडो मासूम हिंदुओ का कत्लेआम किया, करोडो हिंदुओ का धर्मपरिवर्तन कर उन्हें मुसलमान बनाया,,, तथा, हजारों हिंदू-जैन-बौद्ध मंदिरों कों मस्जिदों में तबदील कर दिया !
और.... आज भी सिर्फ भारत में ही करीब 2000 हिंदू - बौद्ध मंदिरों की जगह आज भी मस्जिदे खड़ी है !
प्रमाण : http://en.wikipedia.org/wiki/Hindu_Temples_-_What_Happened_to_Them
प्रमाण : http://ajitvadakayil.blogspot.in/2011/07/unquantified-holocaust-and-genocide.html
जिनमे से कुछ प्रमुख एवं प्रसिद्ध मंदिरों के विवरण कुछ इस प्रकार है......
1. बनारस के काशी विश्वनाथ शिव मंदिर की मूल जगह पर आज भी ज्ञानवापी मस्जिद खड़ी है ।
प्रमाण : http://en.wikipedia.org/wiki/Kashi_Vishwanath_Temple
प्रमाण : http://khabar.ibnlive.in.com/latestnews/news/-181291.html?ref=hindi.in.com
2. अयोध्या के राम मंदिर की जगह इस्लामी मुग़ल सम्राट बाबर ने बनायीं थी बाबरी मस्जिद ।
प्रमाण : http://en.wikipedia.org/wiki/Babri_Mosque
प्रमाण : http://www.rediff.com/news/2003/aug/25ayo1.htm
3. भोजशाला के सरस्वती मंदिर कों अलाउद्दीन खिलजी ने कमाल मौला मस्जिद में तबदील किया ।
प्रमाण : http://en.wikipedia.org/wiki/Bhoj_Shala
4. मथुरा के कृष्ण मंदिर कों महमूद गज़नवी ने तोडा, औरंगजेब की बनायीं मस्जिद पड़ोस में आज भी है ।
प्रमाण : http://en.wikipedia.org/wiki/Mathura_temple
प्रमाण : http://www.thenational.ae/news/world/south-asia/hindus-in-india-claim-two-more-mosques
http://back2godhead.com/vrndavana-land-of-no-return-part-2/
5. गुजरात के सोमनाथ मंदिर कों मोहम्मद घोरी ने ध्वस्त किया, औरंगजेब ने वहा मस्जिद बनायीं ।
प्रमाण : http://en.wikipedia.org/wiki/Somnath
6. इंडोनेशिया की मेनारा कुदुस मस्जिद हिंदू बौद्ध मंदिर की जगह बनायीं गयी है ।
प्रमाण : http://en.wikipedia.org/wiki/Menara_Kudus_Mosque
http://tinyurl.com/m69yn47
याद रखें कि..... इसी नपुंसकता और सेक्युलरिजम के कारण...........
ई.711 से 1857 तक........ यानी, लगभग 1146 साल ....... हिन्दुओं ने मुसलमानों की गुलामी की है....! और, बाद में ब्रिटिशो गुलामी करने पर विवश हो गए....!
ऐसे लोग शायद एक बात भूल रहे हैं कि..... जो समाज इतिहास से कोई सीख नहीं लेता है ..... वो खुद इतिहास बन जाता है....!
इसीलिए... मर्जी है आपकी..... क्योंकि... देश और धर्म है आपका .....!
जय महाकाल...!!!