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Tuesday, February 21, 2017

विश्वव्यापी श्रीराम कथा

विश्वव्यापी श्रीराम कथा- By मनीषा सिंह
श्रीराम कथाकी व्यापकता को देखकर पाश्चात्य विद्वानोंने रामायण को ई पू ३०० से १०० ई पू की रचना कहकर काल्पनिक घोषित करने का षड्यंत्र रचा , रामायण को बुद्धकी प्रतिक्रिया में उत्पन्न भक्ति महाकाव्य ही माना इतिहास नहीं ।
तथाकथित भारतीय विद्वान् तो पाश्चात्योंसे भी आगे निकले
पाश्चात्योंके इन अनुयायियोंने तो रामायण को मात्र २००० वर्ष (ई की पहली शतीकी रचना ) प्राचीन माना है ।
इतिहासकारोंने श्रीरामसे जुड़े साक्ष्योंकी अनदेखी नहीं की अपितु साक्ष्योंको छिपाने का पूरा प्रयत्न किया है , जो कि एक अक्षम्य अपराध है । भारतमें जहाँ किष्किन्धामें ६४८५ (४४०१ ई पू का ) पुराना गदा प्राप्त हुआ था वहीं गान्धार में ६००० (४००० ई पू ) वर्ष पुरानी सूर्य छापकी स्वर्ण रजत मुद्राएँ । हरयाणा के भिवानी में भी स्वर्ण मुद्राएँ प्राप्त हुईं जिनपर एक तरफ सूर्य और दूसरी तरफ श्रीराम-सीता-लक्ष्मण बने हुए थे । अयोध्यामें ६००० वर्ष पुरानी (४००० ई पू की ) तीन चमकीली धातु के वर्तन प्राप्त हुए ,दो थाली एक कटोरी जिनपर सूर्यकी छाप थी । ७००० वर्ष पुराने (५००० ई पू से पहले के) ताम्बे के धनुष बाण प्राप्त हुए थे । श्रीलंका में अशोक वाटिका से १२ किलोमीटर दूर दमबुल्ला सिगिरिया पर्वत शिखर पर ३५० मीटर की ऊंचाई पर ५ गुफाएं हैं जिनपर प्राप्त हजारों वर्ष प्राचीन भित्तिचित्र रामायण की कथासे सम्बंधित हैं ।
उदयवर्ष (जापान ) से यूरोप ,अफ्रीका से अमेरिका सब जगह रामायण और श्रीरामके चिन्ह प्राप्त हुए हैं जिनका विस्तारसे यहाँ वर्णन भी नही किया जा सकता ।

उत्तरी अफ्रीकाका मिश्रदेश भगवान् श्रीरामके नामसे बसाया गया था । जैसे रघुवंशी होने से भगवान् रघुपति कहलाते हैं वैसे ही अजके पौत्र होने से प्राचीन समय में अजपति कहलाते थे ।इसी अजपति से Egypt शब्द बना है जो पहले Eagypt था ।
राजा दशरथ Egypt के प्राचीन राजा थे इसका उल्लेख Ezypt के इतिहास में मिलता है , वहीं सबसे लोकप्रिय राजा रैमशश भगवान् राम का अपभ्रंश है ।
यूरोप का रोम नगर से सभी परिचित है जो यूरोपकी राजधानी रहा था । २१ अप्रैल ७५३ ई पू (२७६९ वर्ष पहले ) रोम नगर की स्थापना हुई थी । विश्व इतिहास के किसी भी प्राचीन नगर की स्थापना की निश्चित तिथि किसी को आजतक ज्ञात नहीं केवल रोम को छोड़कर , जानते हैं इसका कारण ?
इसका कारण रोम को भगवान् श्रीरामके नामसे चैत्र शुक्ल नवमी (श्रीराम जन्म दिवस पर) २१ अप्रैल को स्थापित किया गया था इसीलिए इस महानगर की तिथि आजतक ज्ञात है सभी को । यही नहीं इस नगर के ठीक विपरीत दिशा में रावण का नगर Ravenna भी स्थापित किया गया था जो आज भी विद्यमान है ।
रावण सीताजी को डरा धमका रहा है साथ में विभीषण जी हैं
यूरोप के प्राचीन विद्वान् एड्वर्ड पोकाँक लिखते हैं -
"Behold the memory of......... Ravan still preserved in the city of Ravenna, and see on the western coast ,its great Rival Rama or Roma "
पोकाँक रचित भूगोल के पृष्ठ १७२ से
इटली से प्राप्त प्राचीन रामायण के चित्र अनेक भ्रांतियों को ध्वस्त कर देते हैं ये चित्र ७०० ई पू (२७०० वर्ष पहले ) के हैं जिनमें रामायण कथा के सभी चित्र तो हैं ही उत्तर काण्ड के लवकुश चरित्र के भी चित्र हैं यहीं नहीं लवकुश के द्वारा श्रीराम के अश्वमेध यज्ञ के घोड़े का पकड़ने की लीला के चित्र भी अंकित हैं वाल्मीकिकृत रामायण के न होकर पद्मपुराणकी लीला के हैं जो ये सिद्ध करते हैं न रामायण २००० पहले रची गयी न उत्तर काण्ड प्रक्षिप्त है और न ही पद्मपुराण ११ वी सदी की रचना ये साक्ष्य सिद्ध कर रहे हैं उत्तर काण्ड सहित रामायण और पद्मपुराण २७०० वर्ष पहले भी इसी रूप में विद्यमान इसकी रचना तो व्यासजी और वाल्मीकिके समय की है है ।
यही नहीं प्राचीन रोम के सन्त और राजा भारतीय परिधान ,कण्ठी और उर्ध्वपुण्ड्र तिलक भी लगाया करते थे जो उनके वैष्णव होने के प्रमाण हैं । बाइबल में भी जिन सन्त का चित्र अंकित था वो भी धोती ,कण्ठी धारण किये और उर्ध्वपुण्ड्र लगाये हुए थे । अब इन पाश्चात्यों और तदानुयायी भारतीय विद्वानोंने किस आधार पर रामायण को बुद्ध की प्रतिक्रया स्वरूप मात्र २००० वर्ष पुरानी रचना कहा है ??? जबकि सहस्रों वर्ष प्राचीन प्रमाण विद्यमान हैं ।
२७०० वर्ष प्राचीन इटली से प्राप्त रामायण के चित्र ।
बाली द्वारा सुग्रीब् की पत्नी का हरण

वन जाते हुए भगवान् श्रीसीता-राम-लक्ष्मणजी
भगवान् श्रीराम का जन्म वैवस्वत मन्वन्तर के २४वे त्रेतायुग के उत्तरार्द्ध में १८१६०१६० वर्ष पूर्व चैत्र शुक्ल नवमी ,कर्क लग्न पुनर्वसु नक्षत्र में हुआ था । श्रीराम ब्रह्मर्षि विश्वामित्र के साथ यज्ञ रक्षा के लिये १५ वे वर्ष में १८१६०१४६ वर्ष पूर्व में गए थे । श्रीराम जानकी विवाह १६वे वर्षमें मार्घशीर्ष शुक्ल पञ्चमी को १८१६०१४५ वर्ष पूर्व में हुआ था ! विवाह के १२ वर्ष बाद वैशाख शुक्ल पञ्चमी पुष्य नक्षत्र में श्रीरामका २७ वर्ष की आयु में १८१६०१३३ वर्ष पूर्व वनवास हुआ था । माघ शुक्ल अष्टमी को रावण माता सीता का १८१६०१२०वर्ष पूर्व हरण किया और माघ शुक्ल दशमी को अशोक वाटिका में ले गया । ६ मास बाद भगवान् श्रीरामकी सुग्रीवकी मित्रता श्रावण मास के शुक्ल पक्ष के प्रारंभ में १८१६०११९ वर्ष पूर्व हुई थी ! तभी बाली का वध और सुग्रीव का राज्याभिषेक हुआ था । ४ मास बाद मार्घशीर्ष शुक्ल प्रतिपदाको समस्त वानर हनुमान् जी अंगदादि के नेतृत्व में सीता अन्वेषण के लिये प्रस्थान किया । दशवे दिन मार्घशीर्ष शुक्ल दशमीको सम्पाती से संवाद और एकादशी के दिन हनुमान् जी महेंद्र पर्वत से कूदकर १०० योजन समुद्र पारकर लङ्का गये ! उसी रात सीताजीके दर्शन हुए । द्वादशीको शिंशपा में हनुमान् जी स्थित रहे । उसी रात्रि को सीता माता से वार्तालाप हुआ । त्रयोदशी को अक्षकुमार का वध किया । चतुर्दशी को इन्द्रजित के ब्रह्मास्त्र से बन्धन और लङ्का दहन हुआ । मार्घशीर्ष कृष्ण सप्तमीको हनुमान् जी वापस श्रीरामसे मिले । अष्टमी उत्तराफाल्गुनी में अभिजित मुहूर्त में लङ्काके लिये श्रीराम प्रस्थान किये । सातवे दिन मार्घशीर्ष की अमावस्या के दिन समुद्रके किनारे सेनानिवेश हुआ । पौषशुक्ल प्रतिपदा से ४ दिन तक समुद्र के प्रति प्रायोपवेशन , दशमी से त्रयोदशी तक सेतुबन्ध , चतुर्दशी को सुवेलारोहण ,पौष मास की पूर्णिमासे पौष कृष्ण द्वितीया तक सैन्यतारण ,तृतीया से दशमी तक मन्त्रणा , पौष शुक्ल द्वादशी को सारण ने सेना की संख्या की ,फिर सारण ने वानरों के सारासार का वर्णन किया । माघ शुक्ल प्रतिपदा को अंगद दूत बनकर रावण के दरवार में गए । माघ शुक्ल द्वितीया से युद्ध प्रारम्भ हुआ । माघ शुक्ल नवमी युद्धके आठवे दिन श्रीराम-लक्ष्मणका नागपाश बन्धन हुआ । दशमी को गरुड़जी द्वारा बन्धन मुक्ति ,दो दिन युद्ध बन्द रहा । द्वादशीको धूम्राक्ष वध ,त्रयोदशी को अकम्पन का हनुमान् द्वारा वध , माघ शुक्ल चतुर्दशी से ३ दिन में प्रहस्त वध हुआ। माघ कृष्ण द्वितीया से चतुर्थी तक श्रीराम से रावण का युद्ध हुआ । पञ्चमी से अष्टमी तक ४ दिनों में कुम्भकर्ण को जगाया गया । नवमी से चतुर्दशी तक ६ दिनों में कुम्भकर्ण वध हुआ । माघ अमावस्या को युद्ध बन्द रहा । फाल्गुन शुक्ल प्रतिपदा से चतुर्थी तक नारान्तक वध ,पञ्चमी से सप्तमी तक ३ दिन में अतिकाय वध , अष्टमी से द्वादशी तक निकुम्भादि वध , ४ दिनों में फाल्गुन कृष्ण प्रतिपदा को मकराक्ष वध ,फाल्गुन कृष्ण द्वितीया इन्द्रजित विजय ,तृतीया को औषधि अनयन ,तदन्तर ५ दिनों तक युद्ध बन्द रहा ।
फाल्गुन कृष्ण त्रयोदशी से ६ दिन में इंद्रजीत का वध , अमावस्या को रावण की युद्ध यात्रा । चैत्र शुक्ल शुक्ल तृतीया से पाँच दिनों में १८१६०११९ वर्ष पूर्व रावण के प्रधानों का वध किया । चैत्र शुक्ल नवमी को भगवान् श्रीरामके ४२ वे जन्म दिवस पर लक्ष्मण शक्ति हुई । दशमी को युद्ध बन्द रहा एकादशी को मातलि का स्वर्ग से आगमन ,तदन्तर १८ दिनों में रावण तक श्रीराम-रावण में घोर युद्ध । चैत्र कृष्ण चतुर्दशी को रावण वध । इस तरह माघ शुक्ल द्वितीया से चैत्र कृष्ण चतुर्दशी तक ८७ दिन युद्ध चला । बीच में १५ दिन युद्ध बन्द रहा । चैत्र अमावस्या को रावण का संस्कार किया । वैशाख शुक्ल द्वितीय को विभीषण का राज्याभिषेक , तृतीया को माता सीता की अग्नि परीक्षा हुई । चतुर्थी को पुष्पकारोहण । वैशाख शुक्ल पञ्चमी १४ वर्ष वनवास पूर्ण हुए ,भरद्वाज ऋषि के आश्रम पर आगमन । वैशाख शुक्ल सप्तमी को श्रीराम का राज्याभिषेक हुआ । ११००० वर्ष ११ मास और ११ दिन तक राज्य करके भगवान् श्रीराम चैत्र कृष्ण तृतीय को १८१४९११८ वर्ष पूर्व में साकेत धाम के चले गए ।
जय श्री राम

Monday, September 5, 2016

Harsh vardhan built Prayagraj / Allahabad fort and Akbar snatched it


हिन्दू राजपूत सम्राट हर्षवर्धन बैस ने बनाया था इलाहाबाद का किला । पूरा सत्य जरूर पढ़ें । share करें ।
मित्रो सम्राट हर्षवर्धन बैस पिता का नाम ‘प्रभाकरवर्धन’ था। हर्षवर्धन बैस का शासनकाल ६०६ से ६४७ ई० तक था | ४१वर्षों के शासन काल में हर्षवर्धन बैस ने अपने साम्राज्य का विस्तार जालंधर, पंजाब, कश्मीर, नेपाल एवं बल्लभीपुर तक कर लिया था। जनरल कनिंघम और बाणभट्ट के अनुसार हर्षवर्धन बैस सूर्यवंशी राजपूत क्षत्रिय थे !
हर्षवर्धन बैस सम्राट की उपाधी ग्रहण किया था लगातार ७३-८५ बार अरबों , तुर्क एवं हूणों को धूल चटानेवाला सबसे पराक्रमी सम्राट साबित हुए थे । भारतवर्ष की सीमारेखा अश्शूर , चीन , तुर्क तक फैल गया था ।
हर्षवर्धन ने अपने शासन काल मे अनेकों किले, सरोवर तथा उद्यानो का निर्माण करवाया था जिसमे से संगम के तट पर स्थापित इलाहाबाद (प्रयाग) का किला एवं रेल्वे स्टेशन के निकट उद्यान (खुशरोबाग) हर्षवर्धन द्वारा ६२५ ई० मे निर्मित करवाया गया था | मुगलो के शासन काल मे जब छल और बल से अकबर ने प्रयाग (इलाहाबाद) तक अपना साम्राज्य विस्तार किया तो सर्वप्रथम उसने प्रयाग का नाम बदलकर अल्लाहबाद कर दिया जिसे अंग्रेज़ो ने अपने शासन काल मे इलाहाबाद कर दिया |
आज भी इलाहाबाद मे प्रयाग रेलवे स्टेशन मौजूद है | अकबरनामा के अनुसार वर्तमान रेलवे स्टेशन के निकट स्थित खुशरोबाग जो अकबर के अय्याश पोते (खुशरो जहांगीर का बेटा) के नाम पर स्थित है वह वास्तव मे राजा हर्षवर्धन का स्थायी समारोह स्थल था | माघ के एक मास के दौरान राजा हर्षवर्धन स्थायी रूप से अपने शासन सत्ता के पदाधिकारियों एवं परिवार के साथ स्थायी रूप से तीर्थराज प्रयाग में संगम तट पर स्थित किले में निवास करते थे |
दैनिक कला प्रदर्शन को देखने के लिए हर रोज रथ यात्रा द्वारा संगम तट स्थित किले से देव उद्यान (खुशरो बाग) तक जाकर वह विभिन्न कलाकारों की कलाओं का आनंद लेते थे और उन्हें पुरस्कृत करते थे | माघ के अंतिम सप्ताह मे विस्तृत यज्ञ कर ब्राह्मणो को अपना सर्वस्व दान करके वापस अपनी राजधानी कन्नौज लौट जाया करते थे | इस कार्यक्रम के दौरान संपूर्ण राज्य में ना तो कोई शादी विवाह होते थे और न ही किसी भी तरह का कोई भवन निर्माण आदि कार्य उत्सव कार्यक्रम के दौरान हुआ करते थे, जो परंपरा समाज में आज भी खरमास में विवाहादि, भवन निर्माण, उत्सव आदि न करने के रुप में प्रचलित है |
राजा हर्षवर्धन के इसी सर्वस्व दान से प्रेरित होकर उनकी प्रजा भी उस उत्सव में ब्राह्मणों को अपने सामर्थ्य के अनुसार दान किया करती थी यही परंपरा आज भी मकर संक्रांति के अवसर पर प्रयागराज तीर्थ के तट पर खिचड़ी दान या सामर्थ्य अनुसार दान करने की चली आ रही है |
इस तरह यह स्पष्ट है कि इलाहाबाद का किला एवम देव उद्यान (खुशरो बाग) का निर्माण अकबर ने नही बल्कि राजा हर्षवर्धन ने किया था|
इलाहाबाद के किले का वस्तु जिसमे अनेक हिन्दू वस्तु के प्रतीक चिह्न उपलब्ध है, अति प्राचीन स्थापित पुराणों मे वर्णित अक्षय वट, देव वृक्ष एवं किले मे स्थापित अनेक देव मंदिर यह सीध करते है की किले का निर्माण किसी हिन्दू राजपूत राजा के द्वारा करवाया गया था |
वन्देमातरम् ।।
Manisha Singh 

Saturday, October 31, 2015

इतिहास के नाम पर झूठ क्यों, wrong history of India

इतिहास के नाम पर झूठ क्यों
क्या आप जानते हैं कि दिल्लीके लालकिले का रहस्य क्या है और इसे किसने बनवाया था ?
दिल्ली का लाल किला शाहजहाँ से भी कई शताब्दी पहले पृथवीराजचौहान द्वारा बनवाया हुआ लाल कोट
अक्सरहमें यह पढाया जाता है कि दिल्ली का लालकिला शाहजहाँ ने बनवाया था | लेकिनयह एकसफ़ेद झूठ है और दिल्ली का लालकिला शाहजहाँ के जन्म से सैकड़ों साल पहले”महाराज अनंगपाल तोमर द्वितीय” द्वारा दिल्ली को बसाने के क्रम में हीबनाया गया था|
महाराज अनंगपाल तोमर और कोई नहीं बल्कि महाभारत के अभिमन्यु के वंशज तथा महाराजपृथ्वीराज चौहान के नाना जी थे| इतिहासके अनुसार लाल किला का असली नाम “लाल कोट” है, जिसे महाराज अनंगपालद्वितीय द्वारा सन 1060 ईस्वी में दिल्ली शहर कोबसाने के क्रम में ही बनवाया गया था जबकि शाहजहाँ का जन्म ही उसके सैकड़ों वर्षबाद 1592 ईस्वी में हुआ है|
दरअसल शाहजहाँ नमक मुसलमान ने इसे बसाया नहीं बल्कि पूरी तरह से नष्टकरने की असफल कोशिश की थी ताकि, वो उसकेद्वारा बनाया साबित हो सके लेकिन सच सामने आ ही जाता है| इसका सबसे बड़ा प्रमाण तोयही है कि तारीखे फिरोजशाही के पृष्ट संख्या 160 (ग्रन्थ ३) में लेखक लिखता हैकि सन 1296 के अंत में जब अलाउद्दीन खिलजी अपनी सेना लेकरदिल्ली आया तो वो कुश्क-ए-लाल ( लाल प्रासाद/ महल ) कि ओर बढ़ा और वहां उसने आरामकिया| सिर्फइतना ही नहीं अकबरनामा और अग्निपुराण दोनों ही जगह इस बात के वर्णन हैं कि महाराजअनंगपाल ने ही एक भव्य और आलिशान दिल्ली का निर्माण करवाया था|
जिसकोशाहजहाँ ने पूरी तरह से नष्ट करने की असफल कोशिश करी थी ताकि वो उसके द्वारा बनायासाबित हो सके..लेकिन सच सामने आ ही जाता है.
* इसके पूरे साक्ष्य प्रथवीराज रासोसे मिलते है .
* शाहजहाँ से 250 वर्ष पहले1398 मे तैमूर लंग ने पुरानीदिल्ली का उल्लेख करा है (जो की शाहजहाँ द्वारा बसाई बताई जाती है)
* सुअर (वराह) के मुह वालेचार नल अभी भीलाल किले के एक खास महल मे लगे है. क्या ये शाहजहाँ के इस्लाम का प्रतीक चिन्ह हैया हमारे हिंदुत्व के प्रमाण??
* किले के एक द्वार पर बाहर हाथी की मूर्ति अंकित हैराजपूत राजा लोग गजो( हाथियों ) के प्रति अपने प्रेम के लिए विख्यात थे ( इस्लाममूर्ति का विरोध करता है)
* दीवाने खास मे केसर कुंडनाम से कुंड बना है जिसके फर्श पर हिंदुओं मे पूज्य कमल पुष्प अंकित है, केसर कुंड हिंदू शब्दावलीहै जो की हमारे राजाओ द्वारा केसर जल से भरे स्नान कुंड के लिए प्रयुक्त होती रहीहै
* मुस्लिमों के प्रिय गुंबद या मीनार का कोई भी अस्तित्वनही है दीवानेखास और दीवाने आम मे.
* दीवानेखास के ही निकट राज की न्याय तुलाअंकित है , अपनी प्रजा मे से 99 % भाग को नीच समझने वाला मुगलकभी भी न्याय तुला की कल्पना भी नही कर सकता, ब्राह्मानोद्वारा उपदेशित राजपूत राजाओ की न्याय तुला चित्र से प्रेरणा लेकर न्याय करनाहमारे इतिहास मे प्रसीध है .
* दीवाने ख़ास और दीवाने आम की मंडप शैलीपूरी तरह से 984 के अंबर के भीतरी महल(आमेर–पुराना जयपुर) से मिलती है जो की राजपूताना शैली मे बना हुवा है .
* लाल किले से कुछ ही गज की दूरी परबने देवालय जिनमे से एक लाल जैन मंदिर और दूसरा गौरीशंकार मंदिर दोनो ही गैरमुस्लिम है जो की शाहजहाँ से कई शताब्दी पहले राजपूत राजाओं ने बनवाए हुए है.
* लाल किले का मुख्या बाजार चाँदनी चौककेवल हिंदुओं से घिरा हुआ है, समस्तपुरानी दिल्ली मे अधिकतर आबादी हिंदुओं की ही है, सनलिष्ट और घूमाओदार शैली के मकान भी हिंदू शैलीके ही है
..क्याशाजहाँ जैसा धर्मांध व्यक्ति अपने किले के आसपास अरबी, फ़ारसी, तुर्क, अफ़गानी के बजे हमहिंदुओं के लिए मकान बनवा कर हमको अपने पास बसाता ???
* एक भी इस्लामी शिलालेख मेलाल किले का वर्णन नही है
*”” गर फ़िरदौस बरुरुए ज़मीं अस्त, हमीं अस्ता, हमीं अस्ता, हमींअस्ता””–अर्थात इस धरती पे अगर कहीं स्वर्ग है तो यही है, यही है, यही है….
इसअनाम शिलालेख को कभी भी किसी भवन का निर्मांकर्ता नही लिखवा सकता ..और ना ही येकिसी के निर्मांकर्ता होने का सबूत देता है
इसकेअलावा अनेकों ऐसे प्रमाण है जोकी इसके लाल कोट होने का प्रमाण देते है, और ऐसेही हिंदू राजाओ के सारे प्रमाण नष्ट करके हिंदुओं का नाम ही इतिहास से हटा दियागया है, अगरहिंदू नाम आता है तो केवल नष्ट होने वाले शिकार के रूप मे……ताकि हम हमेशा हीअहिंसा और शांति का पाठ पढ़ कर इस झूठे इतिहास से प्रेरणा ले सके…
सही है ना ???..लेकिन कबतक अपने धर्म को ख़तम करने वालो कीपूजा करते रहोगे और खुद के सम्मान को बचाने वाले महान हिंदू शासकों के नाम भुलातेरहोगे..
ऐसे ही….??????? –
1. जो जीता वही चंद्रगुप्त ना होकर…जो जीता वही सिकन्दर “कैसे” हो गया… ???
(जबकि ये बात सभी जानते हैं कि…. सिकंदर की सेना ने चन्द्रगुप्त मौर्य के प्रभाव को देखते
हुये ही लड़ने से मना कर दिया था.. बहुत ही बुरी तरह मनोबल टूट गया था…. जिस कारण , सिकंदर ने मित्रता के तौर पर अपने सेनापति सेल्युकशकि बेटी की शादी चन्द्रगुप्त से की थी)
2. महाराणा प्रताप “”महान””” ना होकर………अकबर “””महान””” कैसे हो गया…???(जबकि, अकबर अपने हरम में हजारों लड़कियों को रखैल के तौर पर रखता था…. यहाँ तक कि उसने अपनी बेटियो और बहनोँ की शादी तक पर प्रतिबँध लगा दिया था जबकि.. महाराणा प्रताप ने अकेले दम पर उस अकबर के लाखों की सेना को घुटनों पर ला दिया था)
3. सवाई जय सिंह को “””महान वास्तुप्रिय”””राजा ना कहकर शाहजहाँ को यह उपाधि किस आधार मिली …… ???जबकि साक्ष्य बताते हैं कि जयपुर के हवा महल से लेकर तेजोमहालय {ताजमहल} तक ….महाराजा जय सिंह ने ही बनवाया था)
4. जो स्थान महान मराठा क्षत्रिय वीर शिवाजी को मिलना चाहिये वो………. क्रूर और आतंकी औरंगजेब को क्यों और कैसे मिल गया ..????
5. स्वामी विवेकानंद और आचार्य चाणक्य की जगह… ….गांधी को महात्मा बोलकर हिंदुस्तान पर क्यों थोप दिया गया…??????
6. तेजोमहालय- ताजमहल……… ..लालकोट- लाल किला……….. फतेहपुर सीकरी का देव महल- बुलन्द दरवाजा…….. एवं सुप्रसिद्ध गणितज्ञ वराह मिहिर की मिहिरावली(महरौली) स्थित वेधशाला- कुतुबमीनार….. ……… क्यों और कैसे हो गया….?????
7. यहाँ तक कि….. राष्ट्रीय गान भी…..संस्कृत के वन्दे मातरम की जगह गुलामी का प्रतीक””जन-गण-मन हो गया”” कैसे और क्यों हो गया….??????
8. और तो और…. हमारे अराध्य भगवान् राम..कृष्ण तो इतिहास से कहाँ और कब गायब हो गये……… पता ही नहीं चला……….आखिर कैसे ????
9. यहाँ तक कि…. हमारे अराध्य भगवान राम की जन्मभूमि पावन अयोध्या …. भी कब और
कैसे विवादित बना दी गयी… हमें पता तक नहीं चला….!
कहने का मतलब ये है कि….. हमारे दुश्मन सिर्फ….बाबर , गजनवी , लंगड़ा तैमूरलंग…..ही नहीं हैं…… बल्कि आज के सफेदपोश सेक्यूलर भी हमारे उतने ही बड़े दुश्मन हैं…. जिन्होंने हम हिन्दुओं के अन्दर हीन भाबना का उदय कर सेकुलरता का बीज उत्पन्न किया ।