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Saturday, October 15, 2016

A terrorist Ghazi Saiyyad Salar Masud is worshipped by Stupid Hindus

एक मुस्लिम हमलावर सुल्तान सैयद सालार मसूद गाज़ी जिसने भारत पर सन 1031 में विशाल सेना के साथ हमला किया 
ये जिहादी स्वयं ग़ज़नी का रिश्तेदार था, वही ग़ज़नी जिसने सोमनाथ मंदिर पर 16 बार हमला किया कत्लेआम किया बलात्कार किया मंदिर को तोडा एक मुस्लिम हमलावर सुल्तान सैयद सालार मसूद गाज़ी जिसने भारत पर सन 1031 में विशाल सेना के साथ हमला किया


ये जिहादी स्वयं ग़ज़नी का रिश्तेदार था, वही ग़ज़नी जिसने सोमनाथ मंदिर पर 16 बार हमला किया कत्लेआम किया बलात्कार किया मंदिर को तोडा एक मुस्लिम हमलावर सुल्तान सैयद सालार मसूद गाज़ी जिसने भारत पर सन 1031 में विशाल सेना के साथ हमला किया
ये जिहादी स्वयं ग़ज़नी का रिश्तेदार था, वही ग़ज़नी जिसने सोमनाथ मंदिर पर 16 बार हमला किया कत्लेआम किया बलात्कार किया मंदिर को तोडा 

ग़ज़नी तो भारत में बार बार लूट, हत्या, बलात्कार के बाद वापस चला जाता था पर उसी का रिश्तेदार सैयद सालार मसूद गाज़ी
ने भारत पर हमला किया और उसका मकसद था की भारत को पूरी तरह इस्लामिक राष्ट्र बना देगा जैसे पर्शिया/ ईरान को बन दिया गया 

सैयद सालार मसूद अपनी सेना को लेकर “हिन्दुकुश” पर्वतमाला को पार करके पाकिस्तान (आज के) के पंजाब में पहुँचा, जहाँ उसे पहले हिन्दू राजा आनन्द पाल शाही का सामना करना पड़ा, जिसका उसने आसानी से सफ़ाया कर दिया। मसूद के बढ़ते कदमों को रोकने के लिये सियालकोट के राजा अर्जन सिंह ने भी आनन्द पाल की मदद की लेकिन इतनी विशाल सेना के आगे वे बेबस रहे। मसूद धीरे-धीरे आगे बढ़ते-बढ़ते राजपूताना और मालवा प्रांत में पहुँचा, जहाँ राजा महिपाल तोमर से उसका मुकाबला हुआ, और उसे भी मसूद ने अपनी सैनिक ताकत से हराया। 

एक तरह से यह भारत के विरुद्ध पहला जेहाद कहा जा सकता है, जहाँ कोई मुगल आक्रांता सिर्फ़ लूटने की नीयत से नहीं बल्कि बसने, राज्य करने और इस्लाम को फ़ैलाने का उद्देश्य लेकर आया था। पंजाब से लेकर उत्तरप्रदेश के गांगेय इलाके को रौंदते, लूटते, हत्यायें-बलात्कार करते सैयद सालार मसूद अयोध्या के नज़दीक स्थित बहराइच पहुँचा, जहाँ उसका इरादा एक सेना की छावनी और राजधानी बनाने का था। इस दौरान इस्लाम के प्रति उसकी सेवाओं को देखते हुए उसे “गाज़ी बाबा” की उपाधि दी गई

इस्लामी खतरे को देखते हुए पहली बार भारत के उत्तरी इलाके के हिन्दू राजाओं ने एक विशाल गठबन्धन बनाया, जिसमें 17 राजा सेना सहित शामिल हुए और उनकी संगठित संख्या सैयद सालार मसूद की विशाल सेना से भी ज्यादा हो गई। जैसी कि हिन्दुओ की परम्परा रही है, सभी राजाओं के इस गठबन्धन ने सालार मसूद के पास संदेश भिजवाया कि यह पवित्र धरती हमारी है और वह अपनी सेना के साथ चुपचाप भारत छोड़कर निकल जाये अथवा उसे एक भयानक युद्ध झेलना पड़ेगा। 

गाज़ी मसूद का जवाब भी वही आया जो कि अपेक्षित था, उसने कहा कि “इस धरती की सारी ज़मीन खुदा की है, और वह जहाँ चाहे वहाँ रह सकता है… यह उसका धार्मिक कर्तव्य है कि वह सभी को इस्लाम का अनुयायी बनाये और जो खुदा को नहीं मानते उन्हें काफ़िर माना जाये…”। उसके बाद ऐतिहासिक बहराइच का युद्ध हुआ, जिसमें संगठित हिन्दुओं की सेना ने सैयद मसूद की सेना को धूल चटा दी। इस भयानक युद्ध के बारे में इस्लामी विद्वान शेख अब्दुर रहमान चिश्ती की पुस्तक मीर-उल-मसूरी में विस्तार से वर्णन किया गया है। उन्होंने लिखा है कि मसूद सन् 1033 में बहराइच पहुँचा, तब तक हिन्दू राजा संगठित होना शुरु हो चुके थे। यह भीषण रक्तपात वाला युद्ध मई-जून 1033 में लड़ा गया। युद्ध इतना भीषण था कि सैयद सालार मसूद के किसी भी सैनिक को जीवित नहीं जाने दिया गया, 

यहाँ तक कि युद्ध बंदियों को भी मार डाला गया… मसूद का समूचे भारत को इस्लामी रंग में रंगने का सपना अधूरा ही रह गया।बहराइच का यह युद्ध 14 जून 1033 को समाप्त हुआ।
बहराइच के नज़दीक इसी मुगल आक्रांता सैयद सालार मसूद (तथाकथित गाज़ी बाबा) की कब्र बनी। जब फ़िरोज़शाह तुगलक का शासन समूचे इलाके में पुनर्स्थापित हुआ तब वह बहराइच आया और मसूद के बारे में जानकारी पाकर प्रभावित हुआ और उसने उसकी कब्र को एक विशाल दरगाह और गुम्बज का रूप देकर सैयद सालार मसूद को “एक धर्मात्मा” के रूप में प्रचारित करना शुरु किया, एक ऐसा इस्लामी धर्मात्मा जो भारत में इस्लाम का प्रचार करने आया था। 

मुगल काल में धीरे-धीरे यह किंवदंती का रूप लेता गया और कालान्तर में सभी लोगों ने इस “गाज़ी बाबा” को “पहुँचा हुआ पीर” मान लिया तथा उसकी दरगाह पर प्रतिवर्ष एक “उर्स” का आयोजन होने लगा, जो कि आज भी जारी है।

आज अंधभक्ति और मूर्खता और महामूर्खता में अनपढ़ता में हिन्दू उसी जिहादी के मजार पर जाकर स्वास्थ्य लाभ और अन्य स्वार्थो की पूर्ती के लिए सर झुकाते है 
क्या इन हिन्दुओ को मुर्ख कहना गलत है जिसने हिन्दुओ के कत्लेआम, बलात्कार, मंदिरों को तोड़ने के अलावा कुछ नहीं किया आज उसकी भक्ति में हिन्दू किसी गधे की तरह सर झुकाने जाता है 

इतिहासकार और वामपंथी हैवानो ने हिन्दुओ को कोई जानकारी ही नहीं दी, ये पूरी जानकारी आप हिन्दुओ तक पहुचाइए 
दैनिक भारत ऐसी कई और जानकारियां आपतक देता रहेगा, दैनिक भारत का जन्म ही इंडिया को भारत(हिन्दू राष्ट्र) बनाने के लिए हुआ है

Wednesday, August 17, 2016

Dalit Hindu and Muslim- Congress and BSP playing game to divide Hindus, दलित मुस्लिम एकता का सच

दलित मुस्लिम एकता का सच

 डॉ विवेक आर्य

गुजरात में ऊना की घटना के बाद से विदेशी फंडिंग की मदद से दलितों के उत्थान के नाम पर रैलियां कर बरगलाया जा रहा है। इन रैलियों में दलितों के साथ साथ मुसलमान भी बढ़ चढ़कर भाग ले रहे है।  ऐसा दिखाने का प्रयास किया जा रहा है कि मुसलमान दलितों के हमदर्द है। सत्य यह है कि यह सब वोट बैंक की राजनीती है। दलितों और मुसलमानों के समीकरण को बनाने का प्रयास है जिससे न केवल देश को अस्थिर किया जा सके। अपितु हिंदुओं कि एकता का भी ह्रास हो जाये। देश में दलित करीब 20 फीसदी है और मुस्लमान 15 फीसदी। दोनों मिलकर 35 फीसदी के लगभग। रणनीतिकार ने सोचा है कि दोनों मिलकर एक मुश्त वोट करेंगे तो जीत सुनिश्चित है। क्योंकि सभी जानते है कि बाकि हिन्दू समाज तो ब्राह्मण, क्षत्रिय, बनिया, यादव आदि में विभाजित है। गौरतलब बात यह है कि दलितों को भड़काने वालों के लिए  डॉ अम्बेडकर के इस्लाम के विषय में विचार भी कोई मायने नहीं रखते। डॉ अम्बेडकर ने इस्लाम स्वीकार करने का प्रलोभन देने वाले हैदराबाद के निज़ाम का प्रस्ताव न केवल ख़ारिज कर दिया अपितु 1947 में उन्होंने पाकिस्तान में रहने वाले सभी दलित हिंदुओं को भारत आने का सन्देश दिया। डॉ अम्बेडकर 1200 वर्षों से मुस्लिम हमलावरों द्वारा किये गए अत्याचारों से परिचित थे। वो जानते थे कि इस्लाम स्वीकार करना कहीं से भी जातिवाद की समस्या का समाधान नहीं है। क्योंकि इस्लामिक फिरके तो आपस में ही एक दूसरे कि गर्दन काटते फिरते है। वह जानते थे कि इस्लाम स्वीकार करने  में दलितों का हित नहीं अहित है।

अपने लेखन में इस्लाम के विषय में डॉ अम्बेडकर लिखते है-

मुस्लिम भ्रातृभाव केवल मुसलमानों के लिए-”इस्लाम एक बंद निकाय की तरह है, जो मुसलमानों और गैर-मुसलमानों के बीच जो भेद यह करता है, वह बिल्कुल मूर्त और स्पष्ट है। इस्लाम का भ्रातृभाव मानवता का भ्रातृत्व नहीं है, मुसलमानों का मुसलमानों से ही भ्रातृभाव मानवता का भ्रातृत्व नहीं है, मुसलमानों का मुसलमानों से ही भ्रातृत्व है। यह बंधुत्व है, परन्तु इसका लाभ अपने ही निकाय के लोगों तक सीमित है और जो इस निकाय से बाहर हैं, उनके लिए इसमें सिर्फ घृणा ओर शत्रुता ही है। इस्लाम का दूसरा अवगुण यह है कि यह सामाजिक स्वशासन की एक पद्धति है और स्थानीय स्वशासन से मेल नहीं खाता, क्योंकि मुसलमानों की निष्ठा, जिस देश में वे रहते हैं, उसके प्रति नहीं होती, बल्कि वह उस धार्मिक विश्वास पर निर्भर करती है, जिसका कि वे एक हिस्सा है। एक मुसलमान के लिए इसके विपरीत या उल्टे सोचना अत्यन्त दुष्कर है। जहाँ कहीं इस्लाम का शासन हैं, वहीं उसका अपना विश्वास है। दूसरे शब्दों में, इस्लाम एक सच्चे मुसलमानों को भारत को अपनी मातृभूमि और हिन्दुओं को अपना निकट सम्बन्धी मानने की इज़ाजत नहीं देता। सम्भवतः यही वजह थी कि मौलाना मुहम्मद अली जैसे एक महान भारतीय, परन्तु सच्चे मुसलमान ने, अपने, शरीर को हिन्दुस्तान की बजाए येरूसलम में दफनाया जाना अधिक पसंद किया।” (बाबा साहेब डॉ. अम्बेडकर सम्पूर्ण वाड्‌मय, खंड १५-‘पाकिस्तान और भारत के विभाजन, २०००)

-कुछ घटनाओं का विवरण  जिसमें मुसलमान जमीनी स्तर पर दलितों पर अत्याचार करने में लगे हुए है।

1. मुज्जफरनगर के दंगों में मुसलमानों के आक्रोश के कारण दलितों को अपने घर छोड़कर अपनी जान बचाने के लिए भागना पड़ा। तब न उन्हें बचाने मायावती आयी न दलित-मुस्लिम एकता का समर्थन करने वाला कोई दोगला आया। link http://indianexpress.com/article/cities/lucknow/muzaffarnagar-two-years-after-riots-fir-against-12-for-attacking-dalit-family/

2. नवम्बर 13, 2014 शामली के सोनाटा गांव में हैंडपंप से पानी भरने को लेकर दलितों और मुसलमानों के मध्य दंगा हुआ। मुसलमान दलितों को हैंडपंप से पानी भरने से रोक रहे थे। link   http://indiatoday.intoday.in/story/communal-violence-uttar-pradesh-dalit-muslim-clash-sonata-village-matkota-area/1/400498.html

3. मार्च 8, 2016 को वेल्लोर तमिल नाडु में दलितों को तालाब में नहाने पर मुसलमानों ने लड़ाई दंगा किया। link  http://www.thenewsminute.com/article/vellore-tense-trivial-argument-blows-muslim-dalits-clash-39980

4.  फरवरी 24, 2016 को रविदास जयंती के अवसर पर संत रविदास की झाँकी निकालते हुए दलितों पर मुसलमानों ने पत्थर बाजी करी।  जिससे दंगा भड़क गया। link http://www.hindupost.in/news/another-riot-in-up-between-muslims-and-hindu-dalits/

5. दिसम्बर 3, 2015 को मुज्जफरनगर के कताका गांव में मुसलमानों ने दलितों को पीटा। link http://indianexpress.com/article/india/india-news-india/7-hurt-in-clash-between-dalit-muslim-groups/

ऐसे अनेक उदहारण हमें वर्तमान में मुसलमानों द्वारा दलितों पर हो रहे अत्याचार के मिल सकते है। इसलिए दलित-मुस्लिम एकता केवल एक छलावा है। दलितों को डॉ अम्बेडकर कि बात की अनदेखी कर किसी के बहकावें में आकर अपना अहित नहीं करना चाहिए।

 (संदर्भ चित्र .......बांग्लादेश में दलित हिन्दूओं पर अत्याचार)