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Tuesday, February 21, 2017

विश्वव्यापी श्रीराम कथा

विश्वव्यापी श्रीराम कथा- By मनीषा सिंह
श्रीराम कथाकी व्यापकता को देखकर पाश्चात्य विद्वानोंने रामायण को ई पू ३०० से १०० ई पू की रचना कहकर काल्पनिक घोषित करने का षड्यंत्र रचा , रामायण को बुद्धकी प्रतिक्रिया में उत्पन्न भक्ति महाकाव्य ही माना इतिहास नहीं ।
तथाकथित भारतीय विद्वान् तो पाश्चात्योंसे भी आगे निकले
पाश्चात्योंके इन अनुयायियोंने तो रामायण को मात्र २००० वर्ष (ई की पहली शतीकी रचना ) प्राचीन माना है ।
इतिहासकारोंने श्रीरामसे जुड़े साक्ष्योंकी अनदेखी नहीं की अपितु साक्ष्योंको छिपाने का पूरा प्रयत्न किया है , जो कि एक अक्षम्य अपराध है । भारतमें जहाँ किष्किन्धामें ६४८५ (४४०१ ई पू का ) पुराना गदा प्राप्त हुआ था वहीं गान्धार में ६००० (४००० ई पू ) वर्ष पुरानी सूर्य छापकी स्वर्ण रजत मुद्राएँ । हरयाणा के भिवानी में भी स्वर्ण मुद्राएँ प्राप्त हुईं जिनपर एक तरफ सूर्य और दूसरी तरफ श्रीराम-सीता-लक्ष्मण बने हुए थे । अयोध्यामें ६००० वर्ष पुरानी (४००० ई पू की ) तीन चमकीली धातु के वर्तन प्राप्त हुए ,दो थाली एक कटोरी जिनपर सूर्यकी छाप थी । ७००० वर्ष पुराने (५००० ई पू से पहले के) ताम्बे के धनुष बाण प्राप्त हुए थे । श्रीलंका में अशोक वाटिका से १२ किलोमीटर दूर दमबुल्ला सिगिरिया पर्वत शिखर पर ३५० मीटर की ऊंचाई पर ५ गुफाएं हैं जिनपर प्राप्त हजारों वर्ष प्राचीन भित्तिचित्र रामायण की कथासे सम्बंधित हैं ।
उदयवर्ष (जापान ) से यूरोप ,अफ्रीका से अमेरिका सब जगह रामायण और श्रीरामके चिन्ह प्राप्त हुए हैं जिनका विस्तारसे यहाँ वर्णन भी नही किया जा सकता ।

उत्तरी अफ्रीकाका मिश्रदेश भगवान् श्रीरामके नामसे बसाया गया था । जैसे रघुवंशी होने से भगवान् रघुपति कहलाते हैं वैसे ही अजके पौत्र होने से प्राचीन समय में अजपति कहलाते थे ।इसी अजपति से Egypt शब्द बना है जो पहले Eagypt था ।
राजा दशरथ Egypt के प्राचीन राजा थे इसका उल्लेख Ezypt के इतिहास में मिलता है , वहीं सबसे लोकप्रिय राजा रैमशश भगवान् राम का अपभ्रंश है ।
यूरोप का रोम नगर से सभी परिचित है जो यूरोपकी राजधानी रहा था । २१ अप्रैल ७५३ ई पू (२७६९ वर्ष पहले ) रोम नगर की स्थापना हुई थी । विश्व इतिहास के किसी भी प्राचीन नगर की स्थापना की निश्चित तिथि किसी को आजतक ज्ञात नहीं केवल रोम को छोड़कर , जानते हैं इसका कारण ?
इसका कारण रोम को भगवान् श्रीरामके नामसे चैत्र शुक्ल नवमी (श्रीराम जन्म दिवस पर) २१ अप्रैल को स्थापित किया गया था इसीलिए इस महानगर की तिथि आजतक ज्ञात है सभी को । यही नहीं इस नगर के ठीक विपरीत दिशा में रावण का नगर Ravenna भी स्थापित किया गया था जो आज भी विद्यमान है ।
रावण सीताजी को डरा धमका रहा है साथ में विभीषण जी हैं
यूरोप के प्राचीन विद्वान् एड्वर्ड पोकाँक लिखते हैं -
"Behold the memory of......... Ravan still preserved in the city of Ravenna, and see on the western coast ,its great Rival Rama or Roma "
पोकाँक रचित भूगोल के पृष्ठ १७२ से
इटली से प्राप्त प्राचीन रामायण के चित्र अनेक भ्रांतियों को ध्वस्त कर देते हैं ये चित्र ७०० ई पू (२७०० वर्ष पहले ) के हैं जिनमें रामायण कथा के सभी चित्र तो हैं ही उत्तर काण्ड के लवकुश चरित्र के भी चित्र हैं यहीं नहीं लवकुश के द्वारा श्रीराम के अश्वमेध यज्ञ के घोड़े का पकड़ने की लीला के चित्र भी अंकित हैं वाल्मीकिकृत रामायण के न होकर पद्मपुराणकी लीला के हैं जो ये सिद्ध करते हैं न रामायण २००० पहले रची गयी न उत्तर काण्ड प्रक्षिप्त है और न ही पद्मपुराण ११ वी सदी की रचना ये साक्ष्य सिद्ध कर रहे हैं उत्तर काण्ड सहित रामायण और पद्मपुराण २७०० वर्ष पहले भी इसी रूप में विद्यमान इसकी रचना तो व्यासजी और वाल्मीकिके समय की है है ।
यही नहीं प्राचीन रोम के सन्त और राजा भारतीय परिधान ,कण्ठी और उर्ध्वपुण्ड्र तिलक भी लगाया करते थे जो उनके वैष्णव होने के प्रमाण हैं । बाइबल में भी जिन सन्त का चित्र अंकित था वो भी धोती ,कण्ठी धारण किये और उर्ध्वपुण्ड्र लगाये हुए थे । अब इन पाश्चात्यों और तदानुयायी भारतीय विद्वानोंने किस आधार पर रामायण को बुद्ध की प्रतिक्रया स्वरूप मात्र २००० वर्ष पुरानी रचना कहा है ??? जबकि सहस्रों वर्ष प्राचीन प्रमाण विद्यमान हैं ।
२७०० वर्ष प्राचीन इटली से प्राप्त रामायण के चित्र ।
बाली द्वारा सुग्रीब् की पत्नी का हरण

वन जाते हुए भगवान् श्रीसीता-राम-लक्ष्मणजी
भगवान् श्रीराम का जन्म वैवस्वत मन्वन्तर के २४वे त्रेतायुग के उत्तरार्द्ध में १८१६०१६० वर्ष पूर्व चैत्र शुक्ल नवमी ,कर्क लग्न पुनर्वसु नक्षत्र में हुआ था । श्रीराम ब्रह्मर्षि विश्वामित्र के साथ यज्ञ रक्षा के लिये १५ वे वर्ष में १८१६०१४६ वर्ष पूर्व में गए थे । श्रीराम जानकी विवाह १६वे वर्षमें मार्घशीर्ष शुक्ल पञ्चमी को १८१६०१४५ वर्ष पूर्व में हुआ था ! विवाह के १२ वर्ष बाद वैशाख शुक्ल पञ्चमी पुष्य नक्षत्र में श्रीरामका २७ वर्ष की आयु में १८१६०१३३ वर्ष पूर्व वनवास हुआ था । माघ शुक्ल अष्टमी को रावण माता सीता का १८१६०१२०वर्ष पूर्व हरण किया और माघ शुक्ल दशमी को अशोक वाटिका में ले गया । ६ मास बाद भगवान् श्रीरामकी सुग्रीवकी मित्रता श्रावण मास के शुक्ल पक्ष के प्रारंभ में १८१६०११९ वर्ष पूर्व हुई थी ! तभी बाली का वध और सुग्रीव का राज्याभिषेक हुआ था । ४ मास बाद मार्घशीर्ष शुक्ल प्रतिपदाको समस्त वानर हनुमान् जी अंगदादि के नेतृत्व में सीता अन्वेषण के लिये प्रस्थान किया । दशवे दिन मार्घशीर्ष शुक्ल दशमीको सम्पाती से संवाद और एकादशी के दिन हनुमान् जी महेंद्र पर्वत से कूदकर १०० योजन समुद्र पारकर लङ्का गये ! उसी रात सीताजीके दर्शन हुए । द्वादशीको शिंशपा में हनुमान् जी स्थित रहे । उसी रात्रि को सीता माता से वार्तालाप हुआ । त्रयोदशी को अक्षकुमार का वध किया । चतुर्दशी को इन्द्रजित के ब्रह्मास्त्र से बन्धन और लङ्का दहन हुआ । मार्घशीर्ष कृष्ण सप्तमीको हनुमान् जी वापस श्रीरामसे मिले । अष्टमी उत्तराफाल्गुनी में अभिजित मुहूर्त में लङ्काके लिये श्रीराम प्रस्थान किये । सातवे दिन मार्घशीर्ष की अमावस्या के दिन समुद्रके किनारे सेनानिवेश हुआ । पौषशुक्ल प्रतिपदा से ४ दिन तक समुद्र के प्रति प्रायोपवेशन , दशमी से त्रयोदशी तक सेतुबन्ध , चतुर्दशी को सुवेलारोहण ,पौष मास की पूर्णिमासे पौष कृष्ण द्वितीया तक सैन्यतारण ,तृतीया से दशमी तक मन्त्रणा , पौष शुक्ल द्वादशी को सारण ने सेना की संख्या की ,फिर सारण ने वानरों के सारासार का वर्णन किया । माघ शुक्ल प्रतिपदा को अंगद दूत बनकर रावण के दरवार में गए । माघ शुक्ल द्वितीया से युद्ध प्रारम्भ हुआ । माघ शुक्ल नवमी युद्धके आठवे दिन श्रीराम-लक्ष्मणका नागपाश बन्धन हुआ । दशमी को गरुड़जी द्वारा बन्धन मुक्ति ,दो दिन युद्ध बन्द रहा । द्वादशीको धूम्राक्ष वध ,त्रयोदशी को अकम्पन का हनुमान् द्वारा वध , माघ शुक्ल चतुर्दशी से ३ दिन में प्रहस्त वध हुआ। माघ कृष्ण द्वितीया से चतुर्थी तक श्रीराम से रावण का युद्ध हुआ । पञ्चमी से अष्टमी तक ४ दिनों में कुम्भकर्ण को जगाया गया । नवमी से चतुर्दशी तक ६ दिनों में कुम्भकर्ण वध हुआ । माघ अमावस्या को युद्ध बन्द रहा । फाल्गुन शुक्ल प्रतिपदा से चतुर्थी तक नारान्तक वध ,पञ्चमी से सप्तमी तक ३ दिन में अतिकाय वध , अष्टमी से द्वादशी तक निकुम्भादि वध , ४ दिनों में फाल्गुन कृष्ण प्रतिपदा को मकराक्ष वध ,फाल्गुन कृष्ण द्वितीया इन्द्रजित विजय ,तृतीया को औषधि अनयन ,तदन्तर ५ दिनों तक युद्ध बन्द रहा ।
फाल्गुन कृष्ण त्रयोदशी से ६ दिन में इंद्रजीत का वध , अमावस्या को रावण की युद्ध यात्रा । चैत्र शुक्ल शुक्ल तृतीया से पाँच दिनों में १८१६०११९ वर्ष पूर्व रावण के प्रधानों का वध किया । चैत्र शुक्ल नवमी को भगवान् श्रीरामके ४२ वे जन्म दिवस पर लक्ष्मण शक्ति हुई । दशमी को युद्ध बन्द रहा एकादशी को मातलि का स्वर्ग से आगमन ,तदन्तर १८ दिनों में रावण तक श्रीराम-रावण में घोर युद्ध । चैत्र कृष्ण चतुर्दशी को रावण वध । इस तरह माघ शुक्ल द्वितीया से चैत्र कृष्ण चतुर्दशी तक ८७ दिन युद्ध चला । बीच में १५ दिन युद्ध बन्द रहा । चैत्र अमावस्या को रावण का संस्कार किया । वैशाख शुक्ल द्वितीय को विभीषण का राज्याभिषेक , तृतीया को माता सीता की अग्नि परीक्षा हुई । चतुर्थी को पुष्पकारोहण । वैशाख शुक्ल पञ्चमी १४ वर्ष वनवास पूर्ण हुए ,भरद्वाज ऋषि के आश्रम पर आगमन । वैशाख शुक्ल सप्तमी को श्रीराम का राज्याभिषेक हुआ । ११००० वर्ष ११ मास और ११ दिन तक राज्य करके भगवान् श्रीराम चैत्र कृष्ण तृतीय को १८१४९११८ वर्ष पूर्व में साकेत धाम के चले गए ।
जय श्री राम

Wednesday, June 1, 2016

कैसे हनुमान ने भगवान् श्रीराम को दुसरा विवाह करने से बचाया था

भगवान् श्रीराम को “मर्यादा पुरुषोतम” भी कहा जाता हैं.

श्री राम को मर्यादा पुरुषोतम की संज्ञा इसलिए दी गयी क्योकि उन्होंने हर क्षेत्र में चाहे वह व्यक्तिगत हो या सामाजिक कभी भी अपनी मर्यादाओं का उलघंन नहीं किया. अपनी इन्ही सीमाओं को ध्यान में रख कर भगवान् श्रीराम ने समाज में सिर्फ उदाहरण प्रस्तुत करने के लिए अपनी पत्नी सीता का भी त्याग किया था जिन्हें वह रावण से युद्ध कर के सुरक्षित मुक्त करा कर लंका से अयोध्या वापस लाये थे.

लेकिन लंका में उसी युद्ध के बीच एक ऐसा समय भी आ गया था, जब भगवान् राम जिन्हें हम मर्यादा पुरुषोतम कहते हैं को अपने प्राणों की रक्षा करने के लिए दुसरा विवाह करने की स्थिति में ला खड़ा किया था.

लेकिन हर बार की तरह इस परिस्थिति से भी श्रीराम को उनके परम भक्त और सेवक हनुमान ने बाहर निकाल लिया था

जब भगवान् राम और रावण के बीच युद्ध चल रहा था तो युद्ध रावण के हाथ से निकलने लगा था. अपनी हार को करीब देख कर रावण ने अपने दो भाई अहिरावण और महिरावण को आदेश दिया कि वह राम-लक्ष्मण दोनों का अपहरण कर के उनकी हत्या कर दे. अपने बड़े भाई रावण का आदेश मान कर अहिरावण और महिरावण ने श्रीराम और लक्ष्मण को मूर्छित कर अपनी गुफा ले आये और उनकी हत्या की तैयारी करने लगे तभी अपने स्वामी श्रीराम को मुसीबत में देख कर हनुमान ने अहिरावण और महिरावण की गुफा में जाकर उन्हें मुक्त कराया.

भगवान् हनुमान जब गुफा में पहुचे तो सबसे पहले उन्हें अपने पसीने की बूंद से जन्मे अपने पुत्र मकरध्वज से युद्ध कर उसे हराना पड़ा था फिर गुफा में प्रवेश कर पाए थे और अपने पिता से हारने के बाद मकरध्वज ने पुरे युद्ध में श्रीराम का साथ दिया था. अहिरावण और महिरावण गुफा में राम और लक्षमण की बलि देने वाले थे तभी हनुमान उस गुफा में प्रवेश कर उनकी सभी सेना का ख़त्म कर चुके थे लेकिन रावण के इन दोनों भाइयों की मृत्यु नहीं हुई थी.

युद्ध के समय उस गुफा में एक नाग कन्या ने हनुमान को अहिरावण-महिरावण के वध का राज़ बताया कि इस गुफा में जो पांचों दिशाओं में दीये रखे हैं, अगर वह एक साथ बुझायें जाये तो रावण के इन भाईयों की मृत्यु संभव हो सकती. नागकन्या द्वारा बताये गए इस रहस्य के बाद हनुमान जी ने अपना पञ्चमुखी अवतार धारण किया और अहिरावण-महिरावण का वध कर के श्री राम और लक्ष्मण को मुक्त कराया था.

मुक्त होने बाद जिस नागकन्या ने हनुमान जी की मदद की थी वह श्रीराम को देख कर उन पर मोहित हो गयी उनसे विवाह करने की अभिलाषा के साथ श्री राम की ओर वरमाला लेकर आगे बढ़ने लगी, तभी हनुमान अपने स्वामी की रक्षा के लिए एक भंवरें का रूप धारण कर उस नागकन्या को काट लिए जिससे भगवान् राम पर दूसरे विवाह करने का पाप नहीं लग पाया.

चित्रसेना नाम की उस नागकन्या की अपने प्रति भक्ति देखकर भगवान् राम ने उसे द्वापरयुग में अपने कृष्ण अवतार के साथ सत्यभामा नाम की पत्नी बनने का वरदान दिया.

Tuesday, April 7, 2015

श्रीलंका के इन लोगों से हर 41 साल बाद मिलते हैं हनुमान जी!

विभिन्न आध्यात्मिक ग्रंथों में कहा गया है कि हनुमानजी अजर-अमर हैं। उनका नाम सप्त चिरंजीवियों में भी शामिल है। दुनिया में ऐसे कई स्थान बताए जाते हैं जिनका संबंध हनुमानजी से है।

ऐसी ही एक जगह श्रीलंका में है, जिसके बारे में लोगों का कहना है कि यहां हर 41 साल बाद हनुमानजी आते हैं। वे कुछ दिन वहां रहते हैं और पुनः चले जाते हैं। इसके बाद लोगों को अगले 41 साल तक उनका इंतजार करना होता है।
इन लोगों को मातंग आदिवासी कहा जाता है। इन आदिवासियों के मुताबिक हनुमानजी से उनकी मुलाकात 27 मई 2014 में हो चुकी है। अब अगली मुलाकात 2055 में होगी। गौरतलब है कि हनुमानजी का जन्म जिन ऋषि के आश्रम में हुआ था, उनका नाम भी मातंग था।

आज मातंग आदिवासी श्रीलंका के पिदुरु पहाड़ के जंगलों में रहते हैं और प्रायः बाहरी समाज से दूर रहना पसंद करते हैं।
कहा जाता है कि मातंग आदिवासियों से हनुमानजी का रिश्ता बहुत प्राचीन है। वे रामायण काल से ही इन लोगों से मुलाकात करते रहे हैं। उनके मुताबिक, हनुमानजी ने उन्हें वचन दिया था कि वे हर 41 साल बाद उनसे मिलने आएंगे।

जब हनुमानजी आते हैं तो उनके कबीले के मुखिया बाबा मातंग संपूर्ण विवरण एक पुस्तिका में लिखते हैं जिसे हनु पुस्तिका कहा जाता है।
कहा जाता है कि जब धरती पर श्रीराम अपनी लीला का समापन कर स्वधाम चले गए, तब हनुमानजी अयोध्या से जंगलों में लौट आए। यहां आकर वे तपस्या में लीन हो गए। वे श्रीलंका के जंगलों में भी आए थे। यहां मातंग आदिवासियों ने उनकी सेवा की थी। इससे खुश होकर हनुमानजी ने उन्हें वचन दिया कि वे हर 41 साल बाद उनसे मिलने आएंगे।


इन आदिवासियों का मानना है कि तब से हनुमानजी अपना वायदा लगातार निभाते आ रहे हैं। वे लोग प्रकृति के निकट रहते हैं और हनुमानजी की पूजा करते हैं। उनका मानना है कि हनुमानजी के दर्शन के लिए हृदय का शुद्ध होना बहुत जरूरी है।

बिना शुद्ध हृदय के उनके दर्शन नहीं हो सकते। उनकी दृढ़ मान्यता है कि हनुमानजी श्रीराम की तपस्या में लीन रहते हैं और जगत के कल्याण के लिए भी तत्पर रहते हैं।






 

Tuesday, January 27, 2015

Obama's lucky charm is God Hanuman ji.


जन्म से क्रिश्चियन बराक ओबामा हिंदू भगवान हनुमानजी में बेहद आस्था रखते हैं और कोई भी संकट आने पर हनुमानजी को याद करते हैं। इसके पीछे ओबामा के बचपन में घटी एक बेहद दिलचस्प कहानी है। जीवन के बुरे समय में घटी इस घटना ने ओबामा के मन में हनुमानजी के लिए आस्था पैदा कर दी। - उल्लेखनीय है वर्ष 2008 में जब बराक ओबामा पहली बार अमरीकी राष्ट्रपति पद के लिए चुनाव लड़ रहे थे, उनके शुभचिंतकों ने उन्हें हनुमान की ही मूर्ति उपहार में देने का निश्चय किया। उनका मानना था कि ऎसा करना ओबामा के लिए भाग्यशाली रहेगा और वह अमरीकी राष्ट्रपति बनने में सफल रहेंगे। इस मूर्ति को पहले भारत में हिंदू पुजारियों द्वारा मंत्रोच्चार कर प्राण प्रतिष्ठित किया गया। मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा के बाद इसे ओबामा की प्रतिनिधि सोवाज-मार को सौंपा गया जिन्होंने इसे व्यक्तिगत रूप से ओबामा को दिया। उनके शुभचिंतकों के अनुसार इस मूर्ति ने उन्हें राष्ट्रपति पद का चुनाव जीतने में मदद की थी। 
US President Barack Obama blessed by Lord Hanuman, keeps hanuman idol in pocketबराक ओबामा की जेब में हमेशा हनुमानजी की एक छोटी सी मूर्ति रहती है। इस मूर्ति के चार हाथ हैं जिनमें उन्होंने विभिन्न आयुध पकड़े हुए हैं। हनुमान जी इस मूर्ति में युद्ध के लिए उद्धत दिखाई दे रहे हैं। माना जाता है कि वीरभाव वाली ऎसी मूर्ति रखने से कोई भी अनिष्ट या नकारात्मक शक्तियां आपके पास फटक नहीं सकती। सोमवार को बराक ओबामा ने अपनी जेब में रखी हुई हनुमान जी की मूर्ति लालकृष्ण आडवाणी की बेटी प्रतिभा आडवाणी को दिखाई। बराक ओबामा जब मात्र 5 वर्ष के थे उनकी माता ने दूसरी शादी की थी। जब वह अपने सौतेले पिता के साथ उनके घर जा रहे थे तब उन्होंने ओबामा को हनुमानजी की मूर्ति दिखाई और उनकी वीरता की कहानियां सुनाई। बचपन में सुनी इस कहानी से वह अत्यन्त प्रभावित हो गए।
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US President Barack Obama blessed by Lord Hanuman, keeps hanuman idol in pocket







MAN KI BAAT WITH BARAK AND MODI TOGETHER-
http://khabar.ibnlive.in.com/videos/135305


ओबामा के ये 10 डॉयलॉग सुनकर गर्व करेंगे कि आप भारतीय हैं