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Saturday, October 15, 2016

बुद्ध और युद्ध में अंतर जाने

बुद्ध और युद्ध में अंतर जाने


डॉ विवेक आर्य

मोदी जी ने बुद्ध और युद्ध का वर्णन दशहरे वाले दिन अपने भाषण में किया। सुनने में अच्छा लगा। मगर सत्य भिन्न है। बुद्ध और युद्ध एक दूसरे के पूरक नहीं है। महात्मा बुद्ध अहिंसा के समर्थक थे। अच्छी बात थी। मगर अहिंसा का तात्पर्य भी समझना आवश्यक था। शत्रु को युद्ध में यमलोक भेजना हिंसा नहीं है। एक चिकित्सक द्वारा प्राण-रक्षा के लिए शल्य चिकित्सा करना हिंसा नहीं है। इसलिए पाकिस्तान को प्रति उत्तर देना भी हिंसा नहीं है।

मध्यकाल में हमारे देश में दो विचारधारा प्रचलित हुई। एक बुद्ध मत और दूसरा जैन मत। दोनों ने अहिंसा को भिन्न भिन्न प्रकार से समझने का प्रयास किया। जैन मत ने अति अहिंसा को स्पर्श करने का प्रयास किया। छानकर जल पीना, नंगे पैर चलना, वाहन का प्रयोग न करना, मुख पर पट्टी बांधने से अतिसूक्षम जीवों की रक्षा करना जैन समाज के अनुसार धार्मिक कृत्य समझा गया। जैन शासकों ने इन मान्यताओं को प्रचलित किया। यहाँ तक एक सेठ द्वारा सर की जूं मारने पर उसे दण्डित किया गया। उसे जेल में डाल दिया गया और उसकी संपत्ति जब्त कर मृत जूं की स्मृति में मंदिर का निर्माण किया गया। इस विचार का दूरगामी परिणाम अत्यंत कष्टदायक था। हमारे देश के लोग शत्रु का सामना करने को हिंसा समझने लगे। हमारी रक्षा पंक्ति टूट गई। देश गुलाम बन गया। शत्रु का हनन करना हिंसा का प्रतीक बन गया।

बुद्ध मत में अहिंसा को नया नाम मिला। वह था "निराशावाद" ।महात्मा बुद्ध के काल में शरीर को पीप-विष्ठा-मूत्र का गोला कहा जाने लगा। विश्व को दुःख,असार, त्याग्य, हेय, निस्सार, कष्ठदायी माना जाने लगा और अकर्मयता एवं जगत के त्याग का भाव दृढ़ होने लगा। कालांतर में उपनिषदों और गीता में यही जगत दुखवाद का भाव लाद दिया गया। भारतीयों की इच्छा जगत को स्वर्ग बनाने के स्थान पर त्याग करने की होने लगी। अकर्मयता के साथ निराशावाद घर करने लगी। इससे यह भावना दृढ़ हुई की इस दुखमय संसार में मलेच्छ राज्य करे चाहे कोई और करे हमें तो उसका त्याग ही करना हैं। ऐसे विचार जिस देश में फैले हो वह देश सैकड़ों वर्षों क्या हज़ारों वर्षों तक भी पराधीन रहे तो क्या आश्चर्य की बात हैं।

इन दोनों विचारधाराओं से भिन्न वेद का दृष्टिकोण व्यावहारिक एवं सत्य है।

एक ओर वेदों में शत्रु का नाश करने के लिए सामर्थ्यवान बनने का सन्देश दिया गया है। वहीं दूसरी ओर सभी प्राणियों को मित्र के समान देखने का सन्देश दिया गया है।

 यजुर्वेद 1/18 में स्पष्ट कहा गया कि हे मनुष्य तू  शत्रुओं के नाश में समर्थ बन।

यजुर्वेद 36/18 में  मित्रस्य चक्षुषा समीक्षामहे अर्थात हे मनुष्य तो सभी को मित्र के समान देख।

हिंसा और अहिंसा का ऐसा सुन्दर सन्देश संसार में किसी अन्य विचारधारा में कहीं नहीं मिलता।

 जहाँ तक निराशावाद की बात है। वेद में हमारे शरीर का सुन्दर वर्णन मिलता हैं। अथर्ववेद के 10/2/31 मंत्र में इस शरीर को 8 चक्रों से ...रक्षा करने वाला (यम, नियम से समाधी तक) और 9  द्वार (दो आँख, दो नाक, दो कान, एक मुख, एक मूत्र और एक गुदा) से आवागमन करने वाला कहा गया हैं।  जिसके भीतर सुवर्णमय कोष में अनेक बलों से युक्त तीन प्रकार की गति (ज्ञान, कर्म और उपासना ) करने वाली चेतन आत्मा है। इस जीवात्मा के भीतर और बाहर परमात्मा है और उसी परमात्मा को योगी जन साक्षात करते है। शरीर का यह अलंकारिक वर्णन राज्य विस्तार एवं नगर प्रबंधन का भी सन्देश देता है। शरीर के समान राज्य की भी रक्षा की जाये। वैदिक अध्यात्मवाद जिस प्रकार शरीर को त्यागने का आदेश नहीं देता वैसे ही नगरों को भी त्यागने के स्थान पर उन्हें सुरक्षित एवं स्वर्गसमान बनाने का सन्देश देता है। वेद बुद्धि को दीर्घ जीवन प्राप्त करके सुखपूर्वक रहने की प्रेरणा देते हैं। वेद शरीर को अभ्युदय एवं जगत को अनुष्ठान हेतु मानते थे। वैदिक ऋषि शरीर को ऋषियों का पवित्र आश्रम, देवों का रम्य मंदिर, ब्रह्मा का अपराजित मंदिर मानते थे।


इस प्रकार से अतिवादी या छदम अहिंसा के सन्देश से संसार का कुछ भला नहीं होने वाला। आपको अहिंसा और स्वरक्षा के मध्य के सन्देश को समझना होगा। इसी में सभी का हित हैं।

Sunday, April 17, 2016

बुद्ध बनना: नौटंकी या फैशन

नवबुद्ध बनना: नौटंकी या फैशन

रोहित वेमुला की माँ और भाई ने बुद्ध मत स्वीकार कर लिया। बुद्ध मत स्वीकार करने वाला 99.9 %दलित वर्ग बुद्ध मत को एक फैशन के रूप में स्वीकार करता हैं। उसे महात्मा बुद्ध कि शिक्षाओं और मान्यताओं से कुछ भी लेना देना नहीं होता। उलटे उसका आचरण उससे विपरीत ही रहता हैं। उदहारण के लिए-

1.
मान्यता- महात्मा बुद्ध प्राणी हिंसा के विरुद्ध थे एवं मांसाहार को वर्जित मानते थे।

समीक्षा-  रोहित वेमुला हैदराबाद यूनिवर्सिटी में बीफ फेस्टिवल बनाने वालों में शामिल था। 99.9% नवबौद्ध मांसाहारी है। बुद्ध मत के दो देश के देश दुनिया के सबसे बड़े मांसाहारी हैं। इसे कहते है "नाम बड़े दर्शन छोटे"

2. मान्यता- महात्मा बुद्ध अहिंसा के पूजारी थे। वो किसी भी प्रकार कि वैचारिक हिंसा के विरुद्ध थे।

समीक्षा- किसी भी नवबुद्ध से मिलो। वह झल्लाता हुआ अवसाद से पीड़ित व्यक्ति जैसा दिखेगा। जो सारा दिन ब्राह्मणवाद और मनुवाद के नाम पर सभी का विरोध करता दिखेगा। वह उनका भी विरोध करता दिखेगा जो जातिवाद को नहीं मानते। हर अच्छी बात का विरोध करना उसकी दैनिक दिनचर्या का भाग होगा। महात्मा बुद्ध शारीरिक, मानसिक, वैचारिक सभी प्रकार की हिंसा के विरोधी थे। नवबुद्ध ठीक विपरीत व्यवहार करते हैं।

3. मान्यता- महात्मा बुद्ध संघ अर्थात संगठन की बात करते थे। समाज को संगठित करना उनका उद्देश्य था।

समीक्षा- नवबुद्ध अलगावावादी कश्मीरी नेताओं का समर्थन कर देश और समाज को तोड़ने की नौटंकी करते दीखते हैं।

4. मान्यता- महात्मा बुद्ध धर्म में विश्वास रखते थे।

समीक्षा- नवबुद्ध देश के विरुद्ध षड़यंत्र करने वाले याकूब मेनन जैसे अधर्मी के समर्थन में खड़े होकर अपने आपको ढोंगी सिद्ध करते हैं।

5. मान्यता- महात्मा बुद्ध छल- कपट करने वाले को छल-कपट छोड़ने की शिक्षा देते थे।

समीक्षा- भारत में ईसाई मिशनरी छल-कपट कर निर्धन हिन्दुओं का धर्मान्तरण करती हैं। नवबुद्ध उनका विरोध करने के स्थान पर उनका साथ देते दीखते हैं।

6. मान्यता- महात्मा बुद्ध अत्याचारी व्यक्ति को अत्याचार छोड़ने की प्रेरणा देते थे।

समीक्षा- 1200 वर्षों से भारत भूमि इस्लामिक आक्रमणकारियों के अत्याचार सहती रही। हज़ारों बुद्ध विहार से लेकर नालंदा विश्वविद्यालय इस्लामिक आक्रमणक्रियों ने तहस-नहस कर दिए। नवबौद्ध उसी मानसिकता की पीठ थपथपाते दीखते हैं।

सन्देश- बनना भी है तो महात्मा बुद्ध कि मान्यताओं को जीवन में , व्यवहार में और आचरण में उतारों।

अन्यथा नवबुद्ध बनना तो केवल नौटंकी या फैशन जैसा दीखता हैं।

डॉ विवेक आर्य