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Friday, December 23, 2016

Hindus are forcely converted to muslims and Govertment do not protect? Human rights organization?

In Pakistan, Hindus are forcibly converted, young girls are raped, kept , without interference by government and human rights and all news channel are silent.

A Pakistani girl is snatched away, payment for a family debt

In this photo taken on Thursday, Dec. 1, 2016, Pakistani Hindu Jeevti sits in her husband's house in Pyaro Lundh, Pakistan. The night Jeevti disappeared, her family slept outside to escape Pakistan's brutal summer heat; in the morning she was gone, snatched by a wealthy landlord to whom her parents owed $1,000 dollars. She is one of the estimated 1,000 Christian and Hindu girls taken from their homes every year in Pakistan for supposed repayments of debt, most of them ending up married off to older men and forcibly converted to Islam. (AP Photo/B.K. Bangash)
It's a familiar story here in southern Pakistan: Small loans balloon into impossible debts, bills multiply, payments are never deducted.
In this world, women like Ameri and her young daughter are treated as property: taken as payment for a debt, to settle disputes, or as revenge if a landowner wants to punish his worker. Sometimes parents, burdened by an unforgiving debt, even offer their daughters as payment.
The women are like trophies to the men. They choose the prettiest and the young and pliable. Sometimes they take them as second wives to look after their homes. Sometimes they use them as prostitutes to earn money. Sometimes they take them simply because they can.
And like everything else in her life, as a Hindu in a Muslim country, as a woman who is among the poorest of the poor, she knows she will be powerless to stop it from happening.
"I went to the police and to the court. But no one is listening to us," Ameri says. She says the land manager made her daughter convert to Islam and took the girl as his second wife. "They told us, 'Your daughter has committed to Islam and you can't get her back.'"
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Ameri works as a day laborer cutting sugar cane and feed for animals in Pakistan's southern Sindh province, a region dominated by powerful landowners whose holdings stretch for hundreds of acres.
Like Ameri, they're often indebted to the owner of the land on which they work, kept as virtual slaves until they pay back their debt, which almost never happens.
More than 2 million Pakistanis live as "modern slaves," according to the 2016 Global Slavery Index, which ranks Pakistan in the top three offending countries that still enslave people, some as farm workers, others at brick kilns or as household staff. Sometimes the workers are beaten or chained to keep them from fleeing.
"They have no rights, and their women and girls are the most vulnerable," says Ghulam Hayder whose Green Rural Development Organization works to free Pakistan's bonded laborers.
Employers sexually assault the women and girls, marry them, force them to convert, and rarely will the police intervene, he says. He recalls a case in which a husband accused a landowner of sexually assaulting his wife. The landowner held him for three days, beat him and released him with a warning to tell no one.
An estimated 1,000 young Christian and Hindu girls, most of them underage and impoverished, are taken from their homes each year, converted to Islam and married, said a report by the South Asia Partnership organization.
"They always take the pretty ones," Hayder says.
"So many girls, immature girls below the age of 18 years, mostly have been kidnapped," says Ramesh Kumar Vankwani of the Pakistan Hindu Council.
He says families are routinely threatened, and without police protection, they abandon their daughters.
Ameri, the mother, says she has been threatened by both the police and the man who took her daughter. She has gone to five different courts to get her daughter back, and failed each time. But she hasn't given up hope.
This is how muslim converted non muslims  and take advantage of being illiterate by thumb impression so court can be silent.



Saturday, October 31, 2015

मजार पर जाना हिन्दुओ की सबसे बड़ी बेवकूफी====मूर्खता का प्रमाण विश्व में कही देखने को मिल सकता है

कब्र और मजार पर जाना हिन्दुओ की सबसे बड़ी बेवकूफी:
मित्रो आज गली गली हम मजारो ,कब्रों को देखते हैं …
अक्सर मेने देखा है कुछ धर्म निरपेक्ष सेक्युलर जात के लोग अपने मंदिरो में जाने में शर्म महसूस होती है और पीर फकीरो कि मज़ारो पर ऐसे माथा टेकते है जैसे कि वही उनका असली बाप है क्या…. … ?
अरे मुर्ख हिन्दुओ जिन मज़ारो और मय्यतों पर जा कर तुम लोग कुत्तो कि तरह दुम हिलाते हो उसके बारे जान तो लो आखिर वो है
अब में उन हिन्दुओ से पूछता हु जो कुत्ते कि तरह वहाँ मन्नत मांगने पहुच जाते है
दुनिया जानती है कि हिंदुस्तान हिन्दुओ का स्थान रहा है जहा मुल्लो ने आक्रमण किया और हमारे पूर्वज उन मलेक्षों से लड़ते लड़ते शहीद हो गये जब युद्द हुआ तो उसमे हमारे पूर्वजो ने मलेक्षों को भी अल्लाह को प्यारा कर दिया अब देखो आज कि पीड़ी इन हिन्दुओ कि मूर्खता जो अपने वीर पूर्वजो को पूजने कि वजह अपने दुसमन कि कब्र पर जा कर मन्नत मांग रहे है . हमारे उन वीर पूर्वजो का अपमान नहीं हैं जिन्होंने अपने धर्म की रक्षा करते हुए ख़ुशी-ख़ुशी अपने प्राणों को बलि वेदी पर समर्पित कर दियें थे………?
क्या इससे बड़ा मूर्खता का प्रमाण विश्व में कही देखने को मिल सकता है
……..?
अधिकतर हिन्दू अजमेर में जो मुल्ले कि कब्र बनी है उसके बारे में नही जानते होंगे कुछ मुर्ख लोग उससे संत बोलते है
परन्तु मित्रोँ, ऐतिहासिक तथ्योँ के अनुसार देश के अधिकांश तथाकथित सूफी सन्त इस्लाम के जोशीले प्रचारक थे।
हिन्दुओँ के धर्मान्तरण एवं उनके उपासना स्थलोँ को नष्ट करनेँ मेँ उन्होनेँ जोर शोर से भाग लिया था। अगर हम अजमेर के बहुचर्चित ‘सूफी’ ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती कि बात करे तो ‘सिरत अल् कुतुब’ के अनुसार उसने सात लाख हिन्दुओँ को मुसलमान बनाया था। ‘मजलिस सूफिया’ नामक ग्रन्थ के अनुसार जब वह मक्का मेँ हज करने के लिए गया था,तो उसे यह निर्देश दिया गया था कि वह हिन्दुस्तान जाये और वहाँ पर कुफ्र के अन्धकार को
दूर करके इस्लाम का प्रचार करे।
‘मराकत इसरार’ नामक एक ग्रन्थ के अनुसार उसने तीसरी शादी एक हिन्दू लड़की का जबरन् धर्मान्तरण करके की थी। यह बेबस महिता एक राजा की पुत्री थी,जो कि युद्ध मेँ चिश्ती मियाँ के हाथ लगी थी। उसने इसका नाम उम्मत अल्लाह रखा, जिससे एक पुत्री बीबी हाफिज जमाल पैदा हुई. जिसका मजार इसकी दरगाह मेँ मौजूद है।
‘तारीख-ए-औलिया’ के अनुसार ख्वाजा ने अजमेर के तत्कालीन शासक पृथ्वीराज को उनके गुरू अजीतपाल जोगी के माध्यम से मुसलमान बनने की दावत दी थी, जिसे उन्होनेँ ठुकरा दिया था।
इस पर ख्वाजा ने तैश मेँ आकर मुस्लिम शासक मुहम्मद गोरी को भारत पर हमला करने के लिए उकसाया था।
हमारे प्रश्न- मित्रो, मैँ पूछना चाहता हूँ कि यदि चिश्ती वास्तव मेँ सन्त था और सभी धर्मो को एक समान मानता था, तो उसे सात लाख हिन्दुओँ को मुसलमान बनाने की क्या जरूरत थी?
क्या यह मानवता है कि युद्ध मेँ पराजित एक किशोरी का बलात् धर्मान्तरण कर निकाह किया जाये?
यदि वह सर्व धर्म की एकता मेँ विश्वास रखता था, तो फिर उसने मोहम्मद गोरी को भारत पर हमला करने और हिन्दू मन्दिरोँ को ध्वस्त करने लिए क्योँ प्रेरित किया था…..?
क्या हिन्दुओ के ब्रह्मा, विष्णु .. महेश समेत ३३ करोड़ देवी देवता शक्तिहीन हो चुकें हैं ….जो उन्हें मुसलमानों की कब्रों पर सर पटकने के लिए जाना आवश्यक हैं………??? ?
जब गीता में भगवान् श्री कृष्ण ने खुले रूप में कहा है कि… कर्म करने से ही सफलता प्राप्त होती हैं तो मजारों में दुआ मांगने से क्या””गधे का अंडा””हासिल होगा………?? ????
क्या आज तक किसी मुस्लिम देश में वीर शिवाजी, महाराणा प्रताप, हरी सिंह नलवा आदि वीरो स्मृति में कोई स्मारक आदि बनाकर उन्हें पूजा जाता हैं …….जो हमारे ही देश पर आक्रमण करने वालो की कब्र पर हम हिन्दू शीश झुकाते हैं………??? ??
हिन्दू जाति कौन सी ऐसी अध्यात्मिक प्रगति …….. मुसलमानों की कब्रों की पूजा कर प्राप्त कर रहीं हैं ………. जो हमारे वेदों- उपनिषदों में नहीं कही गई हैं…?
कब्र पूजा को हिन्दू-मुस्लिम एकता की मिसाल और सेकुलरता की निशानी बताने वाले लोग………… अमरनाथ…. तिरुपति … या महाकालेश्वर मंदिर में मुस्लिमों को पूजा कर हिन्दू-मुस्लिम एकता की मिसाल कायम करने को क्यों नहीं बोलते हैं….???????
जो मन्नत के फेर में किसी को भी पूजते है उनके लिए भगवान् कृष्ण कहते है, ” जो पुरुष शास्त्र विधि को त्याग कर अपनी इच्छा से मनमाना आचरण करता है, वह न सिद्धि को प्राप्त होता है, न परमगति को और न सुख को ही ”
आपको शर्म आनी चाहिए आप अपने पुर्वजो का अपमान करते हो जिन्होंने हमारे पूर्वजों को मारा काटा उनकी कब्र पर आप मन्नत मांगते हो इससे बड़ी शर्म की बात क्या होगी कुछ तो शर्म करो मजार और दरगाह पर जाने वालो …
आशा हैं कि…… मुस्लिमों के कब्र को अपना अराध्य मान कर पूजा करने वाले बुद्धिजीवी प्राणी….. मुझे उपरोक्त प्रश्नों का उत्तर दे कर मेरे ज्ञान में भी प्रकाश संचारित करेंगे…! अगर…… आपको भी लगता है कि…. उपरोक्त प्रश्न उचित हैं और सेकुलरों को पकड़-पकड़ कर इन प्रश्नों के उत्तर पूछे जाने चाहिए ……. अगर आप आर्य राजा राम और कृष्ण की संतान तथा गौरवशाली हिन्दू धर्म का हिस्सा हैं तो तत्काल इस मुर्खता पूर्ण अंधविश्वास को छोड़ दे और अन्य हिन्दुओ को भी इस बारे में बता कर उनका अंध विश्वास दूर करें …!

Thursday, October 29, 2015

औरंगजेब,के हिन्दुओं पर अत्याचार----- इंडियन मुस्लिम व्हू आर दे

औरंगजेब क्रूर शासक था कितना कत्लेआम किया था ये लोगो को शायद पता नहीं । औरंगज़ेब ने मंदिर भी तुड़वाये, जबरन धर्मांतरण भी करवाया , हिन्दू औरतों से क्या-क्या नहीं किया गया । आज जो ISIS कर रहा है उससे भी ज्यादा खतरनाक था औरेंजेब।
औरंगजेब (१६५८-१७०७)
——————————
इस बादशाह के हिन्दुओं पर अत्याचारों पर एक अलग ही पुस्तक लिखी जा सकती है। नमूने के तौर पर उसके कुछ कारनामों का संक्षिप्त विवरण निम्नलिखित हैं :
अनेक लोग, जो मुसलमान बनने को तैयार नहीं हुए, नौकरी से निकाल दिये गये। नामदेव को इस्लाम ग्रहण करने पर ४०० का कमाण्डर बना दिया गया और अमरोहे के राजा किशनदास के पोते द्गिावसिंह को इस्लाम स्वीकार करने पर इम्तियाज गढ़ का मुशरिफ बना दिया गया। ‘समाचार पत्रों में नेकराम के धर्मान्तरण का जो राजा बना दिया गया और दिलावर का, जो १०००० का कमाण्डर बना दिया गया का वर्णन है।(१७) के.एस. लाल अपनी पुस्तक ‘इंडियन मुस्लिम व्हू आर दे’ में अनेकों उदाहरण देकर सिद्ध करते हैं कि इस प्रकार के लोभ के कारण और जिजिया कर से बचने के लिये बड़ी संखया में हिन्दुओं का धर्मान्तरण हुआ।
हिन्दू गृहस्थों और रजवाड़ों की लड़कियाँ, किस प्रकार दिन में उठाकर गुलाम रखैल बना ली जाती थी, उसका एक उदाहरण मनुक्की की आँखों देखा अनुभव है। वह नाचने वाली लड़कियों की एक लम्बी सूची देता है जैसे – हीरा बाई, सुन्दर बाई, नैन ज्योति बाई, चंचल बाई, अफसरा बाई, खुशहाल बाई, केसा बाई, गुलाल, चम्पा, चमेली, एलौनी, मधुमति, कोयल, मेंहदी, मोती, किशमिश, पिस्ता, इत्यादि। वह कहता है कि ये सभी नाम हिन्दू हैं और साधारणतया वे हिन्दू हैं जिनको बचपन में विद्रोही हिन्दू राजाओं के घरानों में से बलात उठा लिया गया था। नाम हिन्दू जरूर है, अब पर वे सब मुसलमान हैं।(९७क)
मराठों के जंजीरा के दुर्ग को जीतने के बाद सिद्‌दी याकूब ने उसके अंदर की सेना को सुरक्षा का वचन दिया था। ७०० व्यक्ति जब बाहर आ गये तो उसने सब पुरुषों को कत्ल कर दिया। परन्तु स्त्रियों और बच्चों को गुलाम बनाकर उनके मुसलमान बनने पर मजबूर किया।(९७ख)
औरंगजेब के गद्‌दी पर आते ही लोभ और बल प्रयोग द्वारा धर्मान्तरण ने भीषण रूप धारण किया। अप्रैल १६६७ में चार हिन्दू कानूनगो बरखास्त किये गये। मुसलमान हो जाने पर वापिस ले लिये गये। औरंगजेब कीघोषित नीति थी ‘कानूनगो बशर्ते इस्लाम’ अर्थात्‌ मुसलमान बनने पर कानूनगोई।(९९)
पंजाब से बंगाल तक, अनेक मुस्लिम परिवारों में ऐसे नियुक्ति पत्र अब भी विद्यमान हैं जिनसे यह नीति स्पष्ट सिद्ध होती है। नियुक्तियों और पदोन्नतियों दोनों के द्वारा इस्लाम स्वीकार करने का प्रलोभन दिया जाता था।(१००)
सन्‌ १६४८ ई. में जब वह शहजादा था, गुजरात में सीताराम जौहरी द्वारा बनवाया गया चिन्तामणि मंदिर उसने तुड़वाया। उसके स्थान पर ‘कुव्वतुल इस्लाम’ मस्जिद बनवाई गई और वहाँ एक गार्य कुर्बान की गई। (१०१)
सन्‌ १६४८ ई. में मीर जुमला को कूच बिहार भेजा गया। उसने वहाँ के तमाम मंदिरों को तोड़कर उनके स्थान पर मस्जिदें बना दी।(१०२)
सन्‌ १६६६ ई. में कृष्ण जन्मभूमि मंदिर मथुरा में दारा द्वारा लगाई गई पत्थर की जाली हटाने का आदेश दिया-‘इस्लाम में मंदिर को देखना भी पाप है और इस दारा ने मंदिर में जाली लगवाई?'(१०३)
सन्‌ १६६९ ई. में ठट्‌टा, मुल्तान और बनारस में पाठशालाएँ और मंदिर तोड़ने के आदेश दिये। काशी में विद्गवनाथ का मंदिर तोड़ा गया और उसके स्थान पर मस्जिद का निर्माण किया गया।(१०४)
सन्‌ १६७० ई. में कृष्णजन्मभूमि मंदिर, मथुरा, तोड़ा गया। उस पर मस्जिद बनाई गई। मूर्तियाँ जहाँनारा मस्जिद, आगरा, की सीढ़ियों पर बिछा दी गई।(१०५)
सोरों में रामचंद्र जी का मंदिर, गोंडा में देवी पाटन का मंदिर, उज्जैन के समस्त मंदिर, मेदनीपुर बंगाल के समस्त मंदिर, तोड़े गये।(१०६)
सन्‌ १६७२ ई. में हजारों सतनामी कत्ल कर दिये गये। गुरु तेग बहादुर का काद्गमीर के ब्राहम्णों के बलात्‌ धर्म परिवर्तन का विरोध करने के कारण वध करवाया गया।(१०७)
सन्‌ १६७९ ई. में हिन्दुओं पर जिजिया कर फिर लगा दिया गया जो अकबर ने माफ़ कर दिया था। दिल्ली में जिजिया के विरोध में प्रार्थना करने वालों को हाथी से कुचलवाया गया। खंडेला में मंदिर तुड़वाये गये।(१०८)
जोधपुर से मंदिरों की टूटी मूर्तियों से भरी कई गाड़ियाँ दिल्ली लाई गईं और उनको मस्जिदों की सीढ़ियों पर बिछाने के आदेश दिये गये।(१०९)
सन्‌ १६८० ई. में ‘उदयपुर के मंदिरों को नष्ट किया गया। १७२ मंदिरों को तोड़ने की सूचना दरबार में आई। ६२ मंदिर चित्तौड़ में तोड़े गये। ६६ मंदिर अम्बेर में तोड़े गये। सोमेद्गवर का मंदिर मेवाड़ में तोड़ा गया। सतारा में खांडेराव का मंदिर तुड़वायागया।'(११०)
सन्‌ १६९० ई. में एलौरा, त्रयम्वकेद्गवर, नरसिंहपुर एवं पंढारपुर के मंदिर तुड़वाये गये।(१११)
सन्‌ १६९८ ई. में बीजापुर के मंदिर ध्वस्त किये गये। उन पर मस्जिदें बनाई गई।(११२)
प्रो. मौहम्मद हबीब के अनुसार १३३० ई. में मंगोलों ने आक्रमण किया। पूरी कशमीर घाटी में उन्होंने आग लगाने बलात्कार और कत्ल करने जैसे कार्य किये। राजा और ब्राहम्ण (द्गिाक्षक) तो भाग गये। परन्तु साधारण नागरिक, जो रह गये, दूसरा कोई विकल्प न देखकर धीरे-धीरे मुसलमान हो गये।(११३)
इस प्रकार युद्ध से कैदी प्राप्त होते थे। कैदी गुलाम और फिर मुसलमान बना लिये जाते थे। नये मुसलमान दूसरे हिन्दुओं की लूट, बलात्कार और बलात्‌ धर्मान्तरण में उत्साहपूर्वक लग जाते थे क्योंकि वह अपने समाज द्वारा घृणित समझे जाने लगते थे।
मुस्लिम इतिहासकारों द्वारा दी गई उपरोक्त घटनाओं के विवरण को पढ़कर जिनके अनेक बार वे प्रत्यक्ष दद्गर्ाी थे, किसी भी मनुष्य का मन अपने अभागे हिन्दू पूर्वजों के प्रति द्रवित होकर करुणा से भर जाना स्वाभाविक है।
यह संसार का अद्‌भुत आद्गचर्य ही है कि इस्लाम के जिस आतंक से पूरा मध्य पूर्व और मध्य एद्गिाया कुछ दशाब्दियों में ही मुसलमान हो गया वह १००० वर्द्गा तक पूरा बल लगाकर भारत की आबादी के केवल १/५ भाग ही धर्म परिवर्तन कर सका।
इन बलात्‌ धर्म परिवर्तित लोगों में कुछ ऐसे भी थे जो अपनी संतानों के नाम एक लिखित अथवा अलिखित पैगाम छोड़ गये-‘हमने स्वेच्छा से अपने धर्म का त्याग नहीं किया है। यदि कभी ऐसा समय आवे जब तुम फिर अपने धर्म में वापिस जा सको तो देर मत लगाना। हमारे ऊपर किये गये अत्याचारों को भी भुलाना मत।’
बताया जाता है कि जम्मू में तो एक ऐसा परिवार है जिसके पास ताम्र पत्र पर खुदा यह पैगाम आज भी सुरक्षित है। किन्तु हिन्दू समाज उन लाखों उत्पीड़ित लोगों की आत्माओं की आकांक्षाओं को पूरा करने में असमर्थ रहा है। काद्गमीर के ब्रहाम्णों जैसे अनेक दृद्गटांत है जहाँ हिन्दूओं ने उन पूर्वकाल के बलात्‌ धर्मान्तरित बंधुओं के वंशजों को लेने के प्रद्गन पर आत्म हत्या करने की भी धमकी दे डाली और उनकी वापसी असंभव बना दी और हमारे इस धर्मनिरपेक्ष शासन को तो देखो जो मुस्लिम द्यशासकों के इन कुकृत्यों को छिपाना और झुठलाना एक राष्ट्रीय कर्तव्य समझता है।
राजस्थान, पंजाब, हरियाणा और उत्तर प्रदेश में विद्गनोई संप्रदाय के अनेक परिवार रहते हैं। इस सम्प्रदाय के लोगों की धार्मिक प्रतिबद्धता है कि हरे वृक्ष न काटे जाये और किसी भी जीवधारी का वध न किया जाये।
राजस्थान में इस प्रकार की अनेक घटनाएँ हैं, जब एक-एक वृक्ष को काटने से बचाने के लिये पूरा परिवार बलिदान हो गया।सऊदी अरब के कुछ विद्गिाद्गट आगुन्तकों को ग्रेट बस्टर्ड नामक पक्षी का राजस्थान में द्गिाकार करने की जब भारत सरकार द्वारा अनुमति दी गई तो इन विद्गनोइयों के तीव्र विरोध के कारण यह प्रोग्राम रद्‌द हो गया था। वह विद्गनोई सम्प्रदाय के प्रवर्तक संत जाम्भी जी की समाधि पर बनी छतरी पर मुस्लिम काल में लोधी मुस्लिम सुल्तानों द्वारा अधिकार कर लिया गया था। अकबर जैसे उदार बादशाह से जब फरियाद की गई तो उसने भी इन पाँच शर्तों पर यह छतरी विद्गनोई सम्प्रदाय को वापिस की-
१. मुर्दा गाड़ो,
२. चोटी न रखो,
३. जनेऊ धारण न करो,
४. दाढ़ी रखो,
५. विद्गणु के नाम लेते समय विस्मिल्लाह बोलो।
विद्गनोइयों ने मजबूरी की दशा में यह सब स्वीकार कर लिया। धीरे-धीरे जैसा कि अकबर को अभिद्गट था, विद्गनोई दो तीन सौ वर्ष में मुसलमान अधिक, हिन्दू कम दिखाई देने लगे। हिन्दुओं के लिये वह अछूत हो गये। परन्तु उन्होंने अपनी मजबूरी को भुलाया नहीं। आर्य समाज के जन्म के तुरंत बाद ही उन्होंने उसे अपना लिया। बिजनौर जनपद के मौहम्मदपुर देवमल ग्राम के द्गोख परिवार और नगीना के विद्गनोई सराय के विद्गनोई इसके उदाहरणहैं।
from www.harshad30.wordpress.com

Tuesday, October 13, 2015

क्या अकबर महान था?




क्या अकबर महान था?

भारत में प्रचलित इतिहास के लेखक मुग़ल सल्तनत के सभी शासकों के मध्य अकबर को विशिष्ट स्थान देते हुए अकबर "महान" के नाम से सम्बोधित करते हैं। किसी भी हस्ती को "महान" बताने के लिए उसका जीवन, उसका आचरण महान लोगों के जैसा होना चाहिए। अकबर के जीवन के एक आध पहलु जैसे दीन-ए-इलाही मत चलाना, हिन्दुओं से कर आदि हटाना को ये लेखक बढ़ा चढ़ाकर बताने में कोई कसर नहीं छोड़ते मगर अकबर के जीवन के अनेक ऐसे पहलु है जिनसे भारतीय जनमानस का परिचय नहीं हैं। इस लेख के माध्यम से हम अकबर के महान होने की समीक्षा करेंगे।

व्यक्तिगत जीवन में महान अकबर

  कई इतिहासकार अकबर को सबसे सुन्दर आदमी घोषित करते हैं । विन्सेंट स्मिथ इस सुंदरता का वर्णन यूँ करते हैं-

“अकबर एक औसत दर्जे की लम्बाई का था । उसके बाएं पैर में लंगड़ापन था । उसका सिर अपने दायें कंधे की तरफ झुका रहता था। उसकी नाक छोटी थी जिसकी हड्डी बाहर को निकली हुई थी। उसके नाक के नथुने ऐसे दीखते थे जैसे वो गुस्से में हो। आधे मटर के दाने के बराबर एक मस्सा उसके होंठ और नथुनों को मिलाता था। वह गहरे रंग का था।”

अबुल फज़ल ने अकबर के हरम को इस तरह वर्णित किया है- “अकबर के हरम में पांच हजार औरतें थी और हर एक का अपना अलग घर था।” ये पांच हजार औरतें उसकी 36 पत्नियों से अलग थी।

बाबर शराब का शौक़ीन था, इतना कि अधिकतर समय धुत रहता था। [बाबरनामा] हुमायूं अफीम का शौक़ीन था और इस वजह से बहुत लाचार भी हो गया था। अकबर ने ये दोनों आदतें अपने पिता और दादा से विरासत में ली थी।

नेक दिल अकबर ग़ाजी का आगाज़


6 नवम्बर 1556 को 14 साल की आयु में अकबर ने पानीपत की लड़ाई में भाग लिया था। हिंदू राजा हेमू की सेना मुग़ल सेना को खदेड़ रही थी कि अचानक हेमू को आँख में तीर लगा और वह बेहोश हो गया। उसे मरा सोचकर उसकी सेना में भगदड़ मच गयी। तब हेमू को बेहोशी की हालत में अकबर के सामने लाया गया और इसने बहादुरी से बेहोश हेमू का सिर काट लिया। एक गैर मुस्लिम को मौत के घाट उतारने के कारण अकबर को गाजी के खिताब से नवाजा गया। हेमू के सिर को काबुल भिजा दिया गया एवं उसके धड़ को दिल्ली के दरवाजे से लटका दिया गया। जिससे नए बादशाह की रहमदिली सब को पता चल सके। अकबर की सेना दिल्ली में मारकाट कर अपने पूर्वजों की विरासत का पालन करते हुए काफिरों के सिरों से मीनार बनाकर जीत का जश्न बनाया गया। अकबर ने हेमू के बूढ़े पिता को भी कटवा डाला और औरतों को शाही हरम में भिजवा दिया। अपने आपको गाज़ी सिद्ध कर अकबर ने अपनी “महानता” का परिचय दिया था[i]

अकबर और बैरम खान 

हुमायूँ की बहन की बेटी सलीमा जो अकबर की रिश्ते में बहन थी का निकाह अकबर के पालनहार और हुमायूँ के विश्वस्त बैरम खान के साथ हुआ था। इसी बैरम खान ने अकबर को युद्ध पर युद्ध जीतकर भारत का शासक बनाया था। एक बार बैरम खान से अकबर किसी कारण से रुष्ट हो गया। अकबर ने अपने पिता तुल्य बैरम खान को देश निकाला दे दिया। निर्वासित जीवन में बैरम खान की हत्या हो गई। पाठक इस हत्या के कारण पर विचार कर सकते है। अकबर यहाँ तक भी नहीं रुका। उसने बैरम खान की विधवा, हुमायूँ की बहन और बाबर की पोती सलीमा के साथ निकाह कर अपनी “महानता” को सिद्ध किया[ii]

स्त्रियों के संग व्यवहार

बुंदेलखंड की रानी दुर्गावती की छोटी सी रियासत थी। न्यायप्रिय रानी के राज्य में प्रजा सुखी थी। अकबर की टेढ़ी नज़र से रानी की छोटी सी रियासत भी बच न सकी। अकबर अपनी बड़ी से फौज लेकर रानी के राज्य पर चढ़ आया। रानी के अनेक सैनिक अकबर की फौज देखकर उसका साथ छोड़ भाग खड़े हुए। पर फिर हिम्मत न हारी। युद्ध क्षेत्र में लड़ते हुए रानी तीर लगने से घायल हो गई। घायल रानी ने अपवित्र होने से अच्छा वीरगति को प्राप्त होना स्वीकार किया। अपने हृदय में खंजर मारकर रानी ने अपनी जीवन लीला समाप्त कर ली। अकबर का रानी की रियासत पर अधिकार तो हो गया। मगर रानी की वीरता और साहस से उसके कठोर हृदय नहीं पिघला। अपने से कहीं कमजोर पर अत्याचार कर अकबर ने अपनी “महानता” को सिद्ध किया था[iii]

न्यायकारी अकबर

थानेश्वर में दो संप्रदायों कुरु और पुरी के बीच पूजा की जगह को लेकर विवाद चल रहा था। दोनों ने अकबर के समक्ष विवाद सुलझाने का निवेदन किया। अकबर ने आदेश दिया कि दोनों आपस में लड़ें और जीतने वाला जगह पर कब्ज़ा कर ले। उन मूर्ख आत्मघाती लोगों ने आपस में ही अस्त्र शस्त्रों से लड़ाई शुरू कर दी। जब पुरी पक्ष जीतने लगा तो अकबर ने अपने सैनिकों को कुरु पक्ष की तरफ से लड़ने का आदेश दिया। और अंत में इसने दोनों तरफ के लोगों को ही अपने सैनिकों से मरवा डाला। फिर अकबर महान जोर से हंसा। अकबर के जीवनी लेखक के अनुसार अकबर ने इस संघर्ष में खूब आनंद लिया। इतिहासकार विन्सेंट स्मिथ अकबर के इस कुकृत्य की आलोचना करते हुए उसकी इस “महानता” की भर्तसना करते है[iv]

चित्तौड़गढ़ का कत्लेआम

अकबर ने इतिहास के सबसे बड़े कत्लेआम में से एक चित्तौड़गढ़ का कत्लेआम अपने हाथों से अंजाम दिया था। चित्तोड़ के किले में 8000 वीर राजपूत योद्धा के साथ 40000 सहायक रुके हुए थे। लगातार संघर्ष के पश्चात भी अकबर को सफलता नहीं मिली। एक दिन अकबर ने किले की दीवार का निरिक्षण करते हुए एक प्रभावशाली पुरुष को देखा। अपनी बन्दुक का निशाना लगाकर अकबर ने गोली चला दी। वह वीर योद्धा जयमल थे। अकबर की गोली लगने से उनकी अकाल मृत्यु हो गई। राजपूतों ने केसरिया बाना पहना। चित्तोड़ की किले से धुँए की लपटे दूर दूर तक उठने लगी। यह वीर क्षत्राणीयों के जौहर की लपटे थी। अकबर के जीवनी लेखक अबुल फ़ज़ल के अनुसार करीब 300 राजपूत औरतों ने आग में कूद कर अपने सतीत्व की रक्षा करी थी। राजपूतों की रक्षा पंक्ति को तोड़ पाने में असफल रहने पर अकबर ने पागल हाथी राजपूतों को कुचलने के लिए छोड़ दिए। तब कहीं वीर राजपूत झुंके थे। राजपूत सेना के संहार के पश्चात भी अकबर का दिल नहीं भरा और उसने अपनी दरियादिली का प्रदर्शन करते हुए किले के सहायकों के कत्लेआम का हुकुम दे दिया। इतिहासकार उस दिन मरने वालों की संख्या 30,000 लिखते हैं। बचे हुए लोगों को बंदी बना लिया गया। कत्लेआम के पश्चात वीर राजपूतों के शरीर से उतारे गए जनेऊ का भार 74 मन निकला था। इस कत्लेआम से अकबर ने अपने आपको “महान” सिद्ध किया था[v]

शराब का शौक़ीन अकबर

सूरत की एक घटना का अबुल फजल ने अपने लेखों में वर्णन किया हैं। एक रात अकबर ने जम कर शराब पी। शराब के नशे में उसे शरारत सूझी और उसने दो राजपूतों को विपरीत दिशा से भाग कर वापिस आएंगे और मध्य में हथियार लेकर खड़े हुए व्यक्ति को स्पर्श करेंगे। जब अकबर की बारी आई तो नशे में वह एक तलवार को अपने शरीर में घोंपने ही वाला था तभी अपनी स्वामी भक्ति का प्रदर्शन करते हुए राजा मान सिंह ने अपने पैर से तलवार को लात मार कर सरका दिया। अन्यथा बाबर के कुल के दीपक का वही अस्त हो गया होता। नशे में धूत अकबर ने इसे बदतमीजी समझ मान सिंह पर हमला बोल दिया और उसकी गर्दन पकड़ ली। मान सिंह के उस दिन प्राण निकल गए होते अगर मुजफ्फर ने अकबर की ऊँगली को मरोड़ कर उसे चोटिल न कर दिया होता। हालांकि कुछ दिनों में अकबर की ऊँगली पर लगी चोट ठीक हो गई। मजे अपने पूर्वजों की मर्यादा का पालन करते हुए "महान" अकबर ने यह सिद्ध कर दिया की वह तब तक पीता था जब तक उससे न संभला जाता था[vi]

खूंखार अकबर


एक युद्ध से अकबर ने लौटकर हुसैन कुली खान द्वारा लाये गए युद्ध बंधकों को सजा सुनाई। मसूद हुसैन मिर्जा जिसकी आँखेँ सील दी गई थी की आँखें खोलने का आदेश देकर अकबर साक्षात पिशाच के समान बंधकों पर टूट पड़ा। उन्हें घोड़े,गधे और कुत्तों की खाल में लपेट कर घुमाना, उन पर मरते तक अत्याचार करना, हाथियों से कुचलवाना आदि अकबर के प्रिय दंड थे। निस्संदेह उसके इन विभित्स अत्याचारों में कहीं न कहीं उसके तातार पूर्वजों का खूंखार लहू बोलता था। जो उससे निश्चित रूप "महान" सिद्ध करता था[vii]

अय्याश महान अकबर

अकबर घोर विलासी, अय्याश बादशाह था। वह सुन्दर हिन्दू युवतियों को अपनी यौनेच्छा का शिकार बनाने की जुगत में रहता था। वह एक "मीना बाजार" लगवाता था। उस बाजार में केवल महिलाओं का प्रवेश हो सकता था और केवल महिलाएं ही समान बेचती थी। अकबर छिप कर मीणा बाज़ार में आने वाली हिन्दू युवतियों पर निगाह रखता था। जिसे पसन्द करता था उसे बुलावा भेजता था। डिंगल काव्य सुकवि बीकानेर के क्षत्रिय पृथ्वीराज उन दिनों दिल्ली में रहते थे। उनकी नवविवाहिता पत्नी किरण देवी परम धार्मिक, हिन्दुत्वाभिमानी, पत्नीव्रता नारी थी। वह सौन्दर्य की साकार प्रतिमा थी। उसने अकबर के मीना बाजार के बारे में तरह-तरह की बातें सुनीं। एक दिन वह वीरांगना कटार छिपाकर मीना बाजार जा पहुंची। धूर्त अकबर पास ही में एक परदे के पीछे बैठा हुआ आने-जाने वाली युवतियों को देख रहा था। अकबर की निगाह जैसे ही किरण देवी के सौन्दर्य पर पड़ी वह पागल हो उठा। अपनी सेविका को संकेत कर बोला "किसी भी तरह इस मृगनयनी को लेकर मेरे पास आओ मुंह मांगा इनाम मिलेगा।" किरण देवी बाजार की एक आभूषण की दुकान पर खड़ी कुछ कंगन देख रही थी। अकबर की सेविका वहां पहुंची। धीरे से बोली-"इस दुकान पर साधारण कंगन हैं। चलो, मैं आपको अच्छे कंगन दिखाऊंगी।" किरण देवी उसके पीछे-पीछे चल दी। उसे एक कमरे में ले गई।

पहले से छुपा अकबर उस कमरे में आ पहुंचा। पलक झपकते ही किरण देवी सब कुछ समझ गई। बोली "ओह मैं आज दिल्ली के बादशाह के सामने खड़ी हूं।" अकबर ने मीठी मीठी बातें कर जैसे ही हिन्दू ललना का हाथ पकड़ना चाहा कि उसने सिंहनी का रूप धारण कर, उसकी टांग में ऐसी लात मारी कि वह जमीन पर आ पड़ा। किरण देवी ने अकबर की छाती पर अपना पैर रखा और कटार हाथ में लेकर दहाड़ पड़ी-"कामी आज मैं तुझे हिन्दू ललनाओं की आबरू लूटने का मजा चखाये देती हूं। तेरा पेट फाड़कर रक्तपान करूंगी।"

धूर्त अकबर पसीने से तरबतर हो उठा। हाथ जोड़कर बोला, "मुझे माफ करो, रानी। मैं भविष्य में कभी ऐसा अक्षम्य अपराध नहीं करूंगा।"

किरण देवी बोली-"बादशाह अकबर, यह ध्यान रखना कि हिन्दू नारी का सतीत्व खेलने की नहीं उसके सामने सिर झुकाने की बात है।"

अकबर किरण देवी के चरणों में पड़ा थर-थर कांप रहा था। उसने किरण देवी से अपने प्राणों की भीख मांगी और मीना बाजार को सदा के लिए बंद करना स्वीकार किया। इस प्रकार से मीना बाजार के नाटक पर सदा सदा के लिए पटाक्षेप पड़ गया था। भारत के शहंशाह अकबर हिन्दू ललना के पांव तले रुदते हुए अपनी महानता को सिद्ध कर रहा था[viii]

एक कवि ने उस स्थिति का चित्र इन शब्दों में खींचा है

सिंहनी-सी झपट, दपट चढ़ी छाती पर,

मानो शठ दानव पर दुर्गा तेजधारी है।

गर्जकर बोली दुष्ट! मीना के बाजार में मिस,

छीना अबलाओं का सतीत्व दुराचारी है।

अकबर! आज राजपूतानी से पाला पड़ा,

पाजी चालबाजी सब भूलती तिहारी है।

करले खुदा को याद भेजती यमालय को,

देख! यह प्यासी तेरे खून की कटारी है।

ऐसे महान दादा के महान पोते स्वनामधन्य अकबर “महान” के जीवन के कुछ दृश्य आपके सामने रखे। इस काम में हम किसी हिन्दुवादी इतिहासकार के प्रमाण देते तो हम पर दोषारोपण लगता कि आप अकबर “महान” से चिढ़ते हैं। हमने प्रमाण रूप में अबुल फज़ल (अकबर का खास दरबारी) की आइन ए अकबरी और अकबरनामा के आधार पर अकबर के जीवन पर सबसे ज्यादा प्रामाणिक इतिहासकार विन्सेंट स्मिथ की अंग्रेजी की किताब “अकबर- द ग्रेट मुग़ल” से सभी प्रमाण लिए हैं। यहाँ याद रहे कि ये दोनों लेखक सदा यह प्रयास करते रहे कि इन्होने अकबर की प्रशंसा में अनेक अतिश्योक्ति पूर्ण बातें लिखी और अकबर की बहुत सी कमियां छुपाई। मगर अकबर के "महान" कर्मों का प्रताप ही कुछ ऐसा था कि सच्चाई सौ परदे फाड़ कर उसी तरह सामने आ जाती है जैसे कि अँधेरे को चीर कर उजाला आ जाता हैं।

अब भी अगर कोई अकबर को महान कहना चाहेगा तो उसे संतुष्ट करने के लिए महान की परिभाषा को ही बदलना पड़ेगा।


[i] Akbar the Great Mogul- Vincent Smith page No 38-40


[ii] Ibid p.40


[iii] Ibid p.71


[iv] Ibid p.78,79


[v] Ibid p.89-91


[vi] Ibid p.89-91


[vii] Ibid p.116


[viii] Glimpses of glory by Santosh Shailja, Chap. Meena Bazar p.122-124

Thursday, October 8, 2015

Why Bangladesh turned Islamic state-Kalapahad ,भारतीय इतिहास की भयंकर भूले

भारतीय इतिहास की भयंकर भूले

काला पहाड़

बांग्लादेश। यह नाम स्मरण होते ही भारत के पूर्व में एक बड़े भूखंड का नाम स्मरण हो उठता है। जो कभी हमारे देश का ही भाग था। जहाँ कभी बंकिम के ओजस्वी आनंद मठ, कभी टैगोर की हृद्यम्य कवितायेँ, कभी अरविन्द का दर्शन, कभी वीर सुभाष की क्रांति ज्वलित होती थी। आज बंगाल प्रदेश एक मुस्लिम राष्ट्र के नाम से प्रसिद्द है। जहाँ हिन्दुओं की दशा दूसरे दर्जें के नागरिकों के समान हैं। क्या बंगाल के हालात पूर्व से ऐसे थे? बिलकुल नहीं। अखंड भारतवर्ष की इस धरती पर पहले हिन्दू सभ्यता विराजमान थी। कुछ ऐतिहासिक भूलों ने इस प्रदेश को हमसे सदा के लिए दूर कर दिया। एक ऐसी ही भूल का नाम कालापहाड़ है। बंगाल के इतिहास में काला पहाड़ का नाम एक अत्याचारी के नाम से स्मरण किया जाता है। काला पहाड़ का असली नाम कालाचंद राय था। कालाचंद राय एक बंगाली ब्राहण युवक था। पूर्वी बंगाल के उस वक्‍त के मुस्लिम शासक की बेटी को उससे प्‍यार हो गया। बादशाह की बेटी ने उससे शादी की इच्‍छा जाहिर की। वह उससे इस कदर प्‍यार करती थी। वह उसने इस्‍लाम छोड़कर हिंदू विधि से उससे शादी करने के लिए तैयार हो गई। ब्राहमणों को जब पता चला कि कालाचंद राय एक मुस्लिम राजकुमारी से शादी कर उसे हिंदू बनाना चाहता है। तो ब्राहमण समाज ने कालाचंद का विरोध किया। उन्होंने उस मुस्लिम युवती के हिंदू धर्म में आने का न केवल विरोध किया, बल्कि कालाचंद राय को भी जाति बहिष्‍कार की धमकी दी। कालाचंद राय को अपमानित किया गया। अपने अपमान से क्षुब्ध होकर कालाचंद गुस्‍से से आग बबुला हो गया और उसने इस्‍लाम स्‍वीकारते हुए उस युवती से निकाह कर उसके पिता के सिंहासन का उत्‍तराधिकारी हो गया। अपने अपमान का बदला लेते हुए राजा बनने से पूर्व ही उसने तलवार के बल पर ब्राहमणाों को मुसलमान बनाना शुरू किया। उसका एक ही नारा था मुसलमान बनो या मरो। पूरे पूर्वी बंगाल में उसने इतना कत्‍लेआम मचाया कि लोग तलवार के डर से मुसलमान होते चले गए। इतिहास में इसका जिक्र है कि पूरे पूर्वी बंगाल को इस अकेले व्‍यक्ति ने तलवार के बल पर इस्‍लाम में धर्मांतरित कर दिया। यह केवल उन मूर्ख, जातिवादी, अहंकारी व हठधर्मी ब्राहमणों को सबक सिखाने के उददेश्‍य से किया गया था। उसकी निर्दयता के कारण इतिहास उसे काला पहाड़ के नाम से जानती है। अगर अपनी संकीर्ण सोच से ऊपर उठकर कुछ हठधर्मी ब्राह्मणों ने कालाचंद राय का अपमान न किया होता तो आज बंगाल का इतिहास कुछ ओर ही होता[i]



कश्मीर का इस्लामीकरण



कश्मीर: शैव संस्कृति के ध्वजावाहक एवं प्राचीन काल से ऋषि कश्यप की धरती कश्मीर आज मुस्लिम बहुल विवादित प्रान्त के रूप में जाना जाता हैं। 1947 के बाद से धरती पर जन्नत सी शांति के लिए प्रसिद्द यह प्रान्त आज कभी शांत नहीं रहा। इसका मुख्य कारण पिछले 700 वर्षों में घटित कुछ घटनाएँ हैं जिनका परिणाम कश्मीर का इस्लामीकरण होना हैं। कश्मीर में सबसे पहले इस्लाम स्वीकार करने वाला राजा रिंचन था। 1301 ई. में कश्मीर के राजसिंहासन पर सहदेव नामक शासक विराजमान हुआ। कश्मीर में बाहरी तत्वों ने जिस प्रकार अस्त व्यस्तता फैला रखी थी, उसे सहदेव रोकने में पूर्णत: असफल रहा। इसी समय कश्मीर में लद्दाख का राजकुमार रिंचन आया, वह अपने पैत्रक राज्य से विद्रोही होकर यहां आया था। यह संयोग की बात थी कि इसी समय यहां एक मुस्लिम सरदार शाहमीर स्वात (तुर्किस्तान) से आया था। कश्मीर के राजा सहदेव ने बिना विचार किये और बिना उनकी सत्यनिष्ठा की परीक्षा लिए इन दोनों विदेशियों को प्रशासन में महत्वपूर्ण दायित्व सौंप दिये। यह सहदेव की अदूरदर्शिता थी, जिसके परिणाम आगे चलकर उसी के लिए घातक सिद्घ हुए। तातार सेनापति डुलचू ने 70,000 शक्तिशाली सैनिकों सहित कश्मीर पर आक्रमण कर दिया। अपने राज्य को क्रूर आक्रामक की दया पर छोडक़र सहदेव किश्तवाड़ की ओर भाग गया। डुलचू ने हत्याकांड का आदेश दे दिया। हजारों लोग मार डाले गये।कितनी भयानक परिस्थितियों में राजा ने जनता को छोड़ दिया था, यह इस उद्घरण से स्पष्ट हो गया। राजा की अकर्मण्यता और प्रमाद के कारण हजारों लाखों की संख्या में हिंदू लोगों को अपने जीवन से हाथ धोना पड़ गया। जनता की स्थिति दयनीय थी। राजतरंगिणी में उल्लेख है-‘जब हुलचू वहां से चला गया, तो गिरफ्तारी से बचे कश्मीरी लोग अपने गुप्त स्थानों से इस प्रकार बाहर निकले, जैसे चूहे अपने बिलों से बाहर आते हैं। जब राक्षस डुलचू द्वारा फैलाई गयी हिंसा रूकी तो पुत्र को पिता न मिला और पिता को पुत्र से वंचित होना पड़ा, भाई भाई से न मिल पाया। कश्मीर सृष्टि से पहले वाला क्षेत्र बन गया। एक ऐसा विस्तृत क्षेत्र जहां घास ही घास थी और खाद्य सामग्री न थी।[ii]



इस अराजकता का सहदेव के मंत्री रामचंद्र ने लाभ उठाया और वह शासक बन बैठा। परंतु रिंचन भी इस अवसर का लाभ उठाने से नही चूका। जिस स्वामी ने उसे शरण दी थी उसके राज्य को हड़पने का दानव उसके हृदय में भी उभर आया और भारी उत्पात मचाने लगा। रिंचन जब अपने घर से ही बागी होकर आया था, तो उससे दूसरे के घर शांत बैठे रहने की अपेक्षा भला कैसे की जा सकती थी? उसके मस्तिष्क में विद्रोह का परंपरागत कीटाणु उभर आया, उसने रामचंद्र के विरुद्ध विद्रोह कर दिया। रामचंद्र ने जब देखा कि रिंचन के हृदय में पाप हिलोरें मार रहा है, और उसके कारण अब उसके स्वयं के जीवन को भी संकट है तो वह राजधानी छोडक़र लोहर के दुर्ग में जा छिपा। रिंचन को पता था कि शत्रु को जीवित छोडऩा कितना घातक सिद्ध हो सकता है? इसलिए उसने बड़ी सावधानी से काम किया और अपने कुछ सैनिकों को गुप्त वेश में रामचंद्र को ढूंढने के लिए भेजा। जब रामचंद्र मिल गया तो उसने रामचंद्र से कहलवाया कि रिंचन समझौता चाहता है। वात्र्तालाप आरंभ हुआ तो छल करते हुए रिंचन ने रामचंद्र की हत्या करा दी। इस प्रकार कश्मीर पर रिंचन का अधिकार हो गया। यह घटना 1320 की है। उसने रामचंद्र की पुत्री कोटा रानी से विवाह कर लिया था। इस प्रकार वह कश्मीर का राजा बनकर अपना राज्य कार्य चलाने लगा। कहते है कि अपने पिता के हत्यारे से विवाह करने के पीछे कोटा रानी का मुख्य उद्देश्य उसके विचार परिवर्तन कर कश्मीर की रक्षा करना था। धीरे धीरे रिंचन उदास रहने लगा। उसे लगा कि उसने जो किया वह ठीक नहीं था। उसके कश्मीर के शैवों के सबसे बड़े धर्मगुरु देवास्वामी के समक्ष हिन्दू बनने का आग्रह किया। देवास्वामी ने इतिहास की सबसे भयंकर भूल करी और बुद्ध मत से सम्बंधित रिंचन को हिन्दू समाज का अंग बनाने से मना कर दिया[iii]। रिंचन के लिए पंडितों ने जो परिस्थितियां उत्पन्न की थी वे बहुत ही अपमानजनक थी। जिससे उसे असीम वेदना और संताप ने घेर लिया। देवास्वामी की अदूरदर्शिता ने मुस्लिम मंत्री शमशीर को मौका दे दिया। उसने रिंचन को सलाह दी की अगले दिन प्रात: आपको जो भी धर्मगुरु मिले। आप उसका मत स्वीकार कर लेना। अगले दिन रिंचन जैसे ही सैर को निकला, उसे मुस्लिम सूफी बुलबुल शाह अजान देते मिला। रिंचन को अंतत: अपनी दुविधा का समाधान मिल गया। उससे इस्लाम में दीक्षित होने का आग्रह करने लगा। बुलबुलशाह ने गर्म लोहा देखकर तुरंत चोट मारी और एक घायल पक्षी को सहला कर अपने यहां आश्रय दे दिया। रिंचन ने भी बुलबुल शाह का हृदय से स्वागत किया। इस घटना के पश्चात कश्मीर का इस्लामीकरण आरम्भ हुआ जो लगातार 500 वर्षों तक अत्याचार, हत्या, धर्मान्तरण आदि के रूप में सामने आया।



यह अपच का रोग यही नहीं रुका। कालांतर में महाराज ;गुलाब सिंह के पुत्र महाराज रणबीर सिंह गद्दी पर बैठे। रणबीर सिंह द्वारा धर्मार्थ ट्रस्ट की स्थापना कर हिन्दू संस्कृति को प्रोत्साहन दिया। राजा के विचारों से प्रभावित होकर राजौरी पुंछ के राजपूत मुसलमान और कश्मीर के कुछ मुसलमान राजा के समक्ष आवदेन करने आये कि उन्हें मूल हिन्दू धर्म में फिर से स्वीकार कर लिया जाये। राजा ने अपने पंडितों से उन्हें वापिस मिलाने के लिया पूछा तो उन्होंने स्पष्ट मना कर दिया। एक पंडित तो राजा के विरोध में यह कहकर झेलम में कूद गया की राजा ने अगर उसकी बात नहीं मानी तो वह आत्मदाह कर लेगा। राजा को ब्रह्महत्या का दोष लगेगा। राजा को मज़बूरी वश अपने निर्णय को वापिस लेना पड़ा। जिन संकीर्ण सोच वाले पंडितों ने रिंचन को स्वीकार न करके कश्मीर को 500 वर्षों तक इस्लामिक शासकों के पैरों तले रुंदवाया था। उन्हीं ने बाकि बचे हिन्दू कश्मीरियों को रुंदवाने के लिए छोड़ दिया। इसका परिणाम आज तक कश्मीरी पंडित भुगत रहे हैं[iv]

पाकिस्तान के जनक जिन्ना और इक़बाल 



पाकिस्तान। यह नाम सुनते ही 1947 के भयानक नरसंहार और भारत होना स्मरण हो उठता हैं। महाराज राम के पुत्र लव द्वारा बसाई गई लाहौर से लेकर सिख गुरुओं की कर्मभूमि आज पाकिस्तान के नाम से एक अलग मुस्लिम राष्ट्र के रूप में जानी जाती हैं। जो कभी हमारे अखंड भारत देश का भाग थी। पाकिस्तान के जनक जिन्ना का नाम कौन नहीं जानता। जिन्ना को अलग पाकिस्तान बनाने का पाठ पढ़ाने वाला अगर कोई था तो वो थासर मुहम्मद इक़बाल। मुहम्मद इक़बाल के दादा कश्मीरी हिन्दू थे। उनका नाम था तेज बहादुर सप्रु। उस समय कश्मीर पर अफगान गवर्नर अज़ीम खान का राज था। तेज बहादुर सप्रु खान के यहाँ पर राजस्व विभाग में कार्य करते थे। उन पर घोटाले का आरोप लगा। उनके समक्ष दो विकल्प रखे गए। पहला था मृत्युदंड का विकल्प दूसरा था इस्लाम स्वीकार करने का विकल्प। उन्होंने धर्म परिवर्तन कर इस्लाम ग्रहण कर लिया। और अपने नाम बदल कर स्यालकोट आकर रहने लगे[v]। इसी निर्वासित परिवार में मुहम्मद इक़बाल का जन्म हुआ था। कालांतर में यही इक़बाल पाकिस्तान के जनक जिन्ना का मार्गदर्शक बना।

मुहम्मद अली जिन्ना गुजरात के खोजा राजपूत परिवार में हुआ था। कहते हैं उनके पूर्वजों को इस्लामिक शासन काल में पीर सदरुद्दीन ने इस्लाम में दीक्षित किया था। इस्लाम स्वीकार करने पर भी खोजा मुसलमानों का चोटी, जनेऊ आदि से प्रेम दूर नहीं हुआ था। इस्लामिक शासन गुजर जाने पर खोजा मुसलमानों की द्वारा भारतीय संस्कृति को स्वीकार करने की उनकी वर्षों पुरानी इच्छा फिर से जाग उठी। उन्होंने उस काल में भारत की आध्यात्मिक राजधानी बनारस के पंडितों से शुद्ध होने की आज्ञा मांगी। हिन्दुओं का पुराना अपच रोग फिर से जाग उठा। उन्होंने खोजा मुसलमानों की मांग को अस्वीकार कर दिया। इस निर्णय से हताश होकर जिन्ना के पूर्वजों ने बचे हुए हिन्दू अवशेषों को सदा के लिए तिलांजलि दे दी। एवं उनका मन सदा के लिए हिन्दुओं के प्रति द्वेष और घृणा से भर गया। इसी विषाक्त माहौल में उनके परिवार में जिन्ना का जन्म हुआ। जो स्वाभाविक रूप से ऐसे माहौल की पैदाइश होने के कारण पाकिस्तान का जनक बना[vi]। अगर हिन्दू पंडितों ने शुद्ध कर अपने से अलग हुए भाइयों को मिला लिया होता तो आज देश की क्या तस्वीर होती। पाठक स्वयं अंदाजा लगा सकते है।

अगर सम्पूर्ण भारतीय इतिहास में ऐसी ऐसी अनेक भूलों को जाना जायेगा तो मन व्यथित होकर खून के आँसू रोने लगेगा। संसार के मागर्दर्शक, प्राचीन ऋषियों की यह महान भारत भूमि आज किन हालातों में हैं, यह किसी से छुपा नहीं हैं। क्या हिन्दुओं का अपच रोग इन हालातों का उत्तरदायी नहीं हैं? आज भी जात-पात, क्षेत्र- भाषा, ऊंच-नीच, गरीब-अमीर, छोटा-बड़ा आदि के आधार पर विभाजित हिन्दू समाज क्या अपने बिछुड़े भाइयों को वापिस मिलाने की पाचक क्षमता रखता हैं? यह एक भीष्म प्रश्न है? क्यूंकि देश की सम्पूर्ण समस्यायों का हल इसी अपच रोग के निवारण में हैं।

एक मुहावरा की "बोये पेड़ बबुल के आम की चाहत क्यों" भारत भूमि पर सटीक रूप से लागु होती हैं।





सन्दर्भ


[i] भट्टाचार्य, सच्चिदानन्द भारतीय इतिहास कोश, द्वितीय संस्करण-1989 (हिन्दी), भारत डिस्कवरी पुस्तकालय: उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान, 91

संस्‍कृति के चार अध्‍याय: रामधारी सिंह दिनकर

पाकिस्‍तान का आदि और अंत: बलराज मधोक


[ii] राजतरंगिणी,जोनाराज पृष्ठ 152-155


[iii] राजतरंगिणी, जोनराजा पृष्ठ 20-21


[iv] व्यथित कश्मीर; नरेंदर सहगल पृष्ठ 59


[v] R.K. Parimu, the author of History of Muslim Rule in Kashmir, and Ram Nath Kak, writing in his autobiography, Autumn Leaves


[vi] युगद्रष्टा भगत सिंह और उनके मृत्युंजय पुरखे- वीरेंदर संधु। वीरेंदर संधु अमर बलिदानी भगत सिंह जी की भतीजी है

Wednesday, October 7, 2015

टीपू सुल्तान -सत्य और असत्य ,Tipu Sultan was a islamic terrorist


टीपू सुल्तान मतान्ध एवं अत्याचारी शासक था। अकबर और औरंगज़ेब के विषय में अलग से लेख लिखा जायेगा। इस लेख का मूल उद्देश्य किसी भी मुस्लिम शासक के प्रति द्वेष भावना का प्रदर्शन करना नहीं अपितु जो जैसा है उसे वैसा बताना हैं।
भ्रान्ति नं 1. टीपु सुल्तान के राज्य में हिन्दुओं को सरकारी नौकरी में भरपूर मौका मिलता था। उदहारण के रूप में टीपू के प्रधानमंत्री का नाम पूर्णया था और वह एक ब्राह्मण था।

निवारण- टीपू सुल्तान की नौकरी में मुसलमानों को प्राथमिकता दी जाती थी। यहाँ तक कि अयोग्य होने पर भी मुसलमान होने के कारण बड़ी से बड़ी नौकरी पर एक मुसलमान को बैठाया जाता था। इससे प्रजा की दशा ओर अधिक शोचनीय हो गई। टीपू सुल्तान के मंत्रियों में केवल पुर्णिया एकमात्र हिन्दू था। मुसलमानों को गृह कर, संपत्ति कर से छूट थी। जो हिन्दू मुसलमान बन जाता था। उसे भी यह छूट प्राप्त हो जाती थी[ii]। टीपू सुल्तान की मृत्यु के पश्चात अंग्रेजों द्वारा नियुक्त किये गए मैसूर के भू राजस्व विभाग के अधिकारी मक्लॉयड भी लिखते है कि टीपू सुल्तान के राज्य में सभी अधिकारीयों के केवल मुस्लिम नाम हैं जैसे शेख अली, शेर खान, मुहम्मद सैय्यद, मीर हुसैन,सैयद पीर आदि[iii]।

भ्रान्ति नं 2- टीपू सुल्तान अनेक मंदिरों को वार्षिक अनुदान दिया करता था।

निवारण- विलियम लोगन[iv] एवं लेविस राइस[v] के अनुसार टीपू सुल्तान के पूरे राज्य में उसकी मृत्यु के समय केवल दो मंदिरों में दैनिक पूजा होती थी। उनके अनुसार टीपू सुल्तान ने दक्षिण भारत में 800 मंदिरों का विध्वंश किया था[vi]।

टीपू द्वारा मन्दिरों का विध्वंस-
दी मैसूर गज़टियर बताता है कि "टीपू ने दक्षिण भारत में आठ सौ से अधिक मन्दिर नष्ट किये थे।”

के.पी. पद्‌मानाभ मैनन[viii] और श्रीधरन मैनन[ix] द्वारा लिखित पुस्तकों में उन भग्न, नष्ट किये गये, मन्दिरों में से कुछ का वर्णन करते हैं-

“चिन्गम महीना 952 मलयालम ऐरा तदुनसार अगस्त 1786 में टीपू की फौज ने प्रसिद्ध पेरुमनम मन्दिर की मूर्तियों का ध्वंस किया और त्रिचूर ओर करवन्नूर नदी के मध्य के सभी मन्दिरों का ध्वंस कर दिया। इरिनेजालाकुडा और थिरुवांचीकुलम मन्दिरों को भी टीपू की सेना द्वारा खण्डित किया गया और नष्ट किया गया।” अन्य प्रसिद्ध मन्दिरों में से कुछ, जिन्हें लूटा गया, और नष्ट किया गया, था, वे थे- त्रिप्रंगोट, थ्रिचैम्बरम्‌, थिरुमवाया, थिरवन्नूर, कालीकट थाली, हेमम्बिका मन्दिरपालघाट का जैन मन्दिर, माम्मियूर, परम्बाताली, पेम्मायान्दु, थिरवनजीकुलम, त्रिचूर का बडक्खुमन्नाथन मन्दिर, बैलूर शिवा मन्दिर आदि।”

“टीपू की व्यक्तिगत डायरी के अनुसार चिराकुल राजा ने टीपू सेना द्वारा स्थानीय मन्दिरों को विनाश से बचाने के लिए, टीपू सुल्तान को चार लाख रुपये का सोना चाँदी देने का प्रस्ताव रखा था। किन्तु टीपू ने उत्तर दिया था, ”यदि सारी दुनिया भी मुझे दे दी जाए तो भी मैं हिन्दू मन्दिरों को ध्वंस करने से नहीं रुकूँगा [x]”


भ्रान्ति नं 3. टीपू सुल्तान के श्रंगेरी मठ के जगद्गुरू शंकराचार्य से अति घनिष्ठ मैत्री सम्बन्ध थे। दोनों के मध्य पत्र व्यवहार मिलता है।

निवारण- जहाँ तक श्रृंगेरी मठ से सम्बन्ध हैं डॉ ऍम गंगाधरन[xi] लिखते है की टीपू सुल्तान भूत प्रेत आदि में विश्वास रखता था। उसने श्रृंगेरी मठ के आचार्यों को धार्मिक अनुष्ठान करने के लिए दान भेजा जिससे उसकी सेना पर भूत- प्रेत आदि का कूप्रभाव न पड़े।

भ्रान्ति नं 4. टीपु सुल्तान प्रतिदिन नाश्ता करने के पहले रंगनाथ जी के मंदिर में जाता था जो श्रीरंगापटनम के क़िले में था।

निवारण- पि.सी.न राजा[xii] में लिखते हैं की श्री रंगनाथ स्वामी मंदिर के पुजारियों द्वारा टीपू सुल्तान के लिए एक भविष्यवाणी करी थी। जिसके अनुसार अगर टीपू सुल्तान मंदिर में एक विशेष धार्मिक अनुष्ठान करवाता था जिससे उसे दक्षिण भारत का सुलतान बनने से कोई रोक नहीं सकता। अंग्रेजों से एक बार युद्ध में विजय प्राप्त होने का श्रेय टीपू ने ज्योतिषों की उस सलाह को दिया था। जिसके कारण उसे युद्ध में विजय प्राप्त हुई, इसी कारण से टीपू ने उन ज्योतिषियों को और मंदिर को ईनाम रुपी सहयोग देकर सम्मानित किया था। श्रृंगेरी मठ और श्री रंगनाथ स्वामी मंदिर का नाम लेकर टीपू को उदारवादी सिद्ध करना अपने आपको धोखा देने के समान हैं।

भ्रान्ति 5. टीपू सुल्तान ने कभी हिन्दुओं को प्रताड़ित नहीं किया। कभी हिन्दुओं पर अत्याचार नहीं किया।

निवारण- टीपू सुल्तान के पत्र और तलवार पर अंकित शब्दों को पढ़कर टीपू सुल्तान का असली चेहरा सामने आ जाता हैं।

टीपू के पत्र

टीपू द्वारा लिखित कुछ पत्रों, संदेशों, और सूचनाओं, के कुछ अंश निम्नांकित हैं। विखयात इतिहासज्ञ, सरदार पाणिक्कर, ने लन्दन के इण्डिया ऑफिस लाइब्रेरी से इन सन्देशों, सूचनाओं व पत्रों के मूलों को खोजा था।

(1) अब्दुल खादर को लिखित पत्र 22 मार्च 1788

“बारह हजार से अधिक, हिन्दुओं को इ्रस्लाम से सम्मानित किया गया (धर्मान्तरित किया गया)। इनमें अनेकों नम्बूदिरी थे। इस उपलब्धि का हिन्दुओं के मध्य व्यापक प्रचार किया जाए। स्थानीय हिन्दुओं को आपके पास लाया जाए, और उन्हें इस्लाम में धर्मान्तरित किया जाए। किसी भी नम्बूदिरी को छोड़ा न जाए[xiii]।”


(2) कालीकट के अपने सेना नायक को लिखित पत्र दिनांक 14 दिसम्बर 1788

“मैं तुम्हारे पास मीर हुसैन अली के साथ अपने दो अनुयायी भेज रहा हूँ। उनके साथ तुम सभी हिन्दुओं को बन्दी बना लेना और वध कर देना…”। मेरे आदेश हैं कि बीस वर्ष से कम उम्र वालों को काराग्रह में रख लेना और शेष में से पाँच हजार का पेड़ पर लटकाकार वध कर देना।[xiv]”

(3) बदरुज़ समाँ खान को लिखित पत्र (दिनांक 19 जनवरी 1790)

“क्या तुम्हें ज्ञात नहीं है निकट समय में मैंने मलाबार में एक बड़ी विजय प्राप्त की है चार लाख से अधिक हिन्दुओं को मूसलमान बना लिया गया था। मेरा अब अति शीघ्र ही उस पानी रमन नायर की ओर अग्रसर होने का निश्चय हैं यह विचार कर कि कालान्तर में वह और उसकी प्रजा इस्लाम में धर्मान्तरित कर लिए जाएँगे, मैंने श्री रंगापटनम वापस जाने का विचार त्याग दिया है।[xv]”

टीपू ने हिन्दुओं के प्रति यातना के लिए मलाबार के विभिन्न क्षेत्रों के अपने सेना नायकों को अनेकों पत्र लिखे थे।

“जिले के प्रत्येक हिन्दू का इस्लाम में आदर (धर्मान्तरण) किया जाना चाहिए; उन्हें उनके छिपने के स्थान में खोजा जाना चाहिए; उनके इस्लाम में सर्वव्यापी धर्मान्तरण के लिए सभी मार्ग व युक्तियाँ- सत्य और असत्य, कपट और बल-सभी का प्रयोग किया जाना चाहिए।[xvi]”
मैसूर के तृतीय युद्ध (1792) के पूर्व से लेकर निरन्तर 1798 तक अफगानिस्तान के शासक, अहमदशाह अब्दाली के प्रपौत्र, जमनशाह, के साथ टीपू ने पत्र व्यवहार स्थापित कर लिया था। कबीर कौसर द्वारा लिखित, ‘हिस्ट्री ऑफ टीपू सुल्तान’ (पृ’ 141-147) में इस पत्र व्यवहार का अनुवाद हुआ है। उस पत्र व्यवहार के कुछ अंश नीचे दिये गये हैं।

टीपू के ज़मन शाह के लिए पत्र

(1) “महामहिम आपको सूचित किया गया होगा कि, मेरी महान अभिलाषा का उद्देश्य जिहाद (धर्म युद्ध) है। इस युक्ति का इस भूमि पर परिणाम यह है कि अल्लाह, इस भूमि के मध्य, मुहम्मदीय उपनिवेश के चिह्न की रक्षा करता रहता है, ‘नोआ के आर्क’ की भाँति रक्षा करता है और त्यागे हुए अविश्वासियों की बढ़ी हुई भुजाओं को काटता रहता है।”

(2) “टीपू से जमनशाह को, पत्र दिनांक शहबान का सातवाँ 1211 हिजरी (तदनुसार 5 फरवरी 1789) ”….इन परिस्थितियों में जो, पूर्व से लेकर पश्चित तक, सूर्य के स्वर्ग के केन्द्र में होने के कारण, सभी को ज्ञात हैं। मैं विचार करता हूँ कि अल्लाह और उसके पैगम्बर के आदेशों से एक मत हो हमें अपने धर्म के शत्रुओं के विरुद्ध धर्म युद्ध क्रियान्वित करने के लिए, संगठित हो जाना चाहिए। इस क्षेत्र के पन्थ के अनुयाई, शुक्रवार के दिन एक निश्चित किये हुए स्थान पर सदैव एकत्र होकर इन शब्दों में प्रार्थना करते हैं। ”हे अल्लाह! उन लोगों को, जिन्होंने पन्थ का मार्ग रोक रखा है, कत्ल कर दो। उनके पापों को लिए, उनके निश्चित दण्ड द्वारा, उनके शिरों को दण्ड दो।”

मेरा पूरा विश्वास है कि सर्वशक्तिमान अल्लाह अपने प्रियजनों के हित के लिए उनकी प्रार्थनाएं स्वीकार कर लेगा और पवित्र उद्‌देश्य की गुणवत्ता के कारण हमारे सामूहिक प्रयासों को उस उद्‌देश्य के लिए फलीभूत कर देगा। और इन शब्दों के, ”तेरी (अल्लाह की) सेनायें ही विजयी होगी”, तेरे प्रभाव से हम विजयी और सफल होंगे।

टीपू द्वारा हिन्दुओं पर किया गए अत्याचार उसकी निष्पक्ष होने की भली प्रकार से पोल खोलते हैं।

1. डॉ गंगाधरन जी ब्रिटिश कमीशन कि रिपोर्ट के आधार पर लिखते है की ज़मोरियन राजा के परिवार के सदस्यों को और अनेक नायर हिन्दुओं को टीपू द्वारा जबरदस्ती सुन्नत कर मुसलमान बना दिया गया था और गौ मांस खाने के लिए मजबूर भी किया गया था।
2. ब्रिटिश कमीशन रिपोर्ट के आधार पर टीपू सुल्तान के मालाबार हमलों 1783-1791 के समय करीब 30,000 हिन्दू नम्बूदरी मालाबार में अपनी सारी धनदौलत और घर-बार छोड़कर त्रावनकोर राज्य में आकर बस गए थे।

3. इलान्कुलम कुंजन पिल्लई लिखते है की टीपू सुल्तान के मालाबार आक्रमण के समय कोझीकोड में 7000 ब्राह्मणों के घर थे जिसमे से 2000 को टीपू ने नष्ट कर दिया था और टीपू के अत्याचार से लोग अपने अपने घरों को छोड़ कर जंगलों में भाग गए थे। टीपू ने औरतों और बच्चों तक को नहीं बक्शा था। जबरन धर्म परिवर्तन के कारण मापला मुसलमानों की संख्या में अत्यंत वृद्धि हुई जबकि हिन्दू जनसंख्या न्यून हो गई[xvii]।

4. राजा वर्मा केरल में संस्कृत साहित्य का इतिहास में मंदिरों के टूटने का अत्यंत वीभत्स विवरण करते हुए लिखते हैं की हिन्दू देवी देवताओं की मूर्तियों को तोड़कर व पशुओं के सर काटकर मंदिरों को अपवित्र किया जाता था[xviii]।
5. बिदुर, उत्तर कर्नाटक का शासक अयाज़ खान था जो पूर्व में कामरान नाम्बियार था, उसे हैदर अली ने इस्लाम में दीक्षित कर मुसलमान बनाया था। टीपू सुल्तान अयाज़ खान को शुरू से पसंद नहीं करता था इसलिए उसने अयाज़ पर हमला करने का मन बना लिया। जब अयाज़ खान को इसका पता चला तो वह बम्बई भाग गया. टीपू बिद्नुर आया और वहाँ की सारी जनता को इस्लाम कबूल करने पर मजबूर कर दिया था। जो न बदले उन पर भयानक अत्याचार किये गए थे। कुर्ग पर टीपू साक्षात् राक्षस बन कर टूटा था। वह करीब 10,000 हिन्दुओं को इस्लाम में जबरदस्ती परिवर्तित किया गया। कुर्ग के करीब 1000 हिन्दुओं को पकड़ कर श्री रंगपटनम के किले में बंद कर दिया गया जिन पर इस्लाम कबूल करने के लिए अत्याचार किया गया बाद में अंग्रेजों ने जब टीपू को मार डाला तब जाकर वे जेल से छुटे और फिर से हिन्दू बन गए। कुर्ग राज परिवार की एक कन्या को टीपू ने जबरन मुसलमान बना कर निकाह तक कर लिया था[xix]।
6. मुस्लिम इतिहासकार पि. स. सैयद मुहम्मद केरला मुस्लिम चरित्रम में लिखते हैं की टीपू का केरल पर आक्रमण हमें भारत पर आक्रमण करने वाले चंगेज़ खान और तिमूर लंग की याद दिलाता हैं।

इस लेख में टीपू के अत्याचारों का अत्यंत संक्षेप में विवरण दिया गया हैं।

भ्रान्ति 6. टीपू सुल्तान देश भक्त था। उसने अपने राज्य की रक्षा के लिए अपने प्राण देकर वीरगति प्राप्त की थी।

निवारण- सर्वप्रथम तो टीपू सुल्तान के पिता हैदर अली ने सर्वप्रथम तो मैसूर के वाडियार राजा को हटाकर अपनी सत्ता ग्रहण करी थी। इसलिए मैसूर को टीपू सुल्तान का राज्य कहना गलत है। दूसरे टीपू का सपना दक्षिण का औरंगज़ेब बनने का था। टीपू पादशाह बनना चाहता था। उसका स्वपन देशवासियों के लिए एक उन्नत देश का निर्माण करने नहीं अपितु दक्षिण भारत को दारुल इस्लाम में बदलना था। मालाबार जैसे सुन्दर प्रदेश का टीपू ने जिस प्रकार विनाश किया। उसे पढ़ कर कोई भी निष्पक्ष व्यक्ति कह सकता है वह एक देशभक्त नहीं अपितु एक दुर्दांत, मतान्ध,कट्टर अत्याचारी का लक्षण हैं।


सन्दर्भ सूची

[i] इतिहास के साथ यह अन्याय: प्रो बी एन पाण्डेय

[ii]MH Gopal in Tipu Sultan's Mysore: An Economic History

[iii] Tipu Sultan X-Rayed: Dr. I M Muthanna

[iv] William Logan Malabar Manual

[v] Lewis Rice Mysore Gazetteer

[vi] Colonel RD Palsokar confirms it in his writings.

[vii] Hindu Temples: What happened to them (Volumes 1 and 2), Sitaram Goel

·Indian Muslims: Who are they, K.S. Lal
·Nationalism and Distortions of Indian history, Dr. N.S. Rajaram
·Negationism in India - Concealing the Record of Islam, Dr. Koenraad Elst
·Perversion of India's Political Parlance, Sitaram Goel

[viii] हिस्ट्री ऑफ कोचीन

[ix] हिस्ट्री ऑफ केरल

[x] फ्रीडम स्ट्रगिल इन केरल:सरदार के.एम. पाणिक्कर

[xi] डॉ ऍम गंगाधरन मातृभूमि साप्ताहिक जनवरी 14-20,1990

[xii] केसरी वार्षिक 1964

[xiii] भाषा पोशनी-मलयालम जर्नल, अगस्त 1923

[xiv] उसी पुस्तक में

[xv] उसी पुस्तक में

[xvi] हिस्टौरीकल स्कैचैज ऑफ दी साउथ ऑफ इण्डिया इन एन अटेम्पट टूट्रेस दी हिस्ट्री ऑफ मैसूर- मार्क विल्क्स, खण्ड 2 पृष्ठ 120

[xvii] Elamkulam Kunjan Pillai wrote in the Mathrubhoomi Weekly of December 25, 1955

[xviii] Vatakkankoor Raja Raja Varma in his famous literary work, History of Sanskrit Literature in Kerala

[xix] पि.सी.न राजा केसरी वार्षिक 1964

Friday, October 2, 2015

भारतीय मुसल्मानों के हिन्दु पूर्वज मुसलमान कैसे बने?



भारतीय मुसल्मानों के हिन्दु पूर्वज मुसलमान कैसे बने?

इस तथ्य को सभी स्वीकार करते हैं कि लगभग 99 प्रतिशत भारतीय मुसलमानों के पूर्वज हिन्दू थे। वह स्वधर्म को छोड़ कर कैसे मुसलमान हो गये?अधिकांश हिन्दू मानते हैं कि उनको तलवार की नोक पर मुसलमान बनाया गया अर्थात्‌ वे स्वेच्छा से मुसलमान नहीं बने। मुसलमान इसका प्रतिवाद करते हैं। उनका कहना है कि इस्लाम का तो अर्थ ही शांति का धर्म है। बलात धर्म परिवर्तन की अनुमति नहीं है। यदि किसी ने ऐसा किया अथवा करता है तो यह इस्लाम की आत्मा के विरुद्ध निंदनीय कृत्य है। अधिकांश हिन्दू मुसलमान इस कारण बने कि उन्हें अपने दम घुटाऊ धर्म की तुलना में समानता का सन्देश देने वाला इस्लाम उत्तम लगा।

इस लेख में हम इस्लमिक आक्रान्ताओं के अत्याचारों को सप्रमाण देकर यह सिद्ध करेंगे की भारतीय मुसलमानों के पूर्वज हिन्दू थे एवं उनके पूर्वजों पर इस्लामिक आक्रान्ताओं ने अनेक अत्याचार कर उन्हें जबरन धर्म परिवर्तन के लिए विवश किया था। अनेक मुसलमान भाइयों का यह कहना हैं कि भारतीय इतिहास मूलत: अंग्रेजों द्वारा रचित हैं। इसलिए निष्पक्ष नहीं है। यह असत्य है। क्यूंकि अधिकांश मुस्लिम इतिहासकार आक्रमणकारियों अथवा सुल्तानों के वेतन भोगी थे। उन्होंने अपने आका की अच्छाइयों को बढ़ा-चढ़ाकर लिखना एवं बुराइयों को छुपाकर उन्होंने अपनी स्वामी भक्ति का भरपूर परिचय दिया हैं। तथापि इस शंका के निवारण के लिए हम अधिकाधिक मुस्लिम इतिहासकारों के आधार पर रचित अंग्रेज लेखक ईलियट एंड डाउसन द्वारा संगृहीत एवं प्रामाणिक समझी जाने वाली पुस्तकों का इस लेख में प्रयोग करेंगे।

भारत पर 7वीं शताब्दी में मुहम्मद बिन क़ासिम से लेकर 18वीं शताब्दी में अहमद शाह अब्दाली तक करीब 1200 वर्षों में अनेक आक्रमणकारियों ने हिन्दुओं पर अनगिनत अत्याचार किये। धार्मिक, राजनैतिक एवं सामाजिक रूप से असंगठित होते हुए भी हिन्दू समाज ने मतान्ध अत्याचारियों का भरपूर प्रतिकार किया। सिंध के राजा दाहिर और उनके बलिदानी परिवार से लेकर वीर मराठा पानीपत के मैदान तक अब्दाली से टकराते रहे। आक्रमणकारियों का मार्ग कभी भी निष्कंटक नहीं रहा अन्यथा सम्पूर्ण भारत कभी का दारुल इस्लाम (इस्लामिक भूमि) बन गया होता। आरम्भ के आक्रमणकारी यहाँ आते, मारकाट -लूटपाट करते और वापिस चले जाते। बाद की शताब्दियों में उन्होंने न केवल भारत को अपना घर बना लिया अपितु राजसत्ता भी ग्रहण कर ली। इस लेख में हम कुछ आक्रमणकारियों जैसे मौहम्मद बिन कासिम,महमूद गजनवी, मौहम्मद गौरी और तैमूर के अत्याचारों की चर्चा करेंगे।



मौहम्मद बिन कासिम

भारत पर आक्रमण कर सिंध प्रान्त में अधिकार प्रथम बार मुहम्मद बिन कासिम को मिला था।उसके अत्याचारों से सिंध की धरती लहूलुहान हो उठी थी। कासिम से उसके अत्याचारों का बदला राजा दाहिर की दोनों पुत्रियों ने कूटनीति से लिया था।

1. प्रारंभिक विजय के पश्चात कासिम ने ईराक के गवर्नर हज्जाज को अपने पत्र में लिखा-'दाहिर का भतीजा, उसके योद्धा और मुख्य मुख्य अधिकारी कत्ल कर दिये गये हैं। हिन्दुओं को इस्लाम में दीक्षित कर लिया गया है, अन्यथा कत्ल कर दिया गया है। मूर्ति-मंदिरों के स्थान पर मस्जिदें खड़ी कर दी गई हैं। अजान दी जाती है। [i]

2. वहीँ मुस्लिम इतिहासकार आगे लिखता है- 'मौहम्मद बिन कासिम ने रिवाड़ी का दुर्ग विजय कर लिया। वह वहाँ दो-तीन दिन ठहरा। दुर्ग में मौजूद 6000 हिन्दू योद्धा वध कर दिये गये, उनकी पत्नियाँ, बच्चे, नौकर-चाकर सब कैद कर लिये (दास बना लिये गये)। यह संख्या लगभग 30 हजार थी। इनमें दाहिर की भानजी समेत 30 अधिकारियों की पुत्रियाँ भी थी[ii]



महमूद गजनवी

मुहम्मद गजनी का नाम भारत के अंतिम हिन्दू सम्राट पृथ्वी राज चौहान को युद्ध में हराने और बंदी बनाकर अफगानिस्तान लेकर जाने के लिए प्रसिद्द है। गजनी मजहबी उन्माद एवं मतान्धता का जीता जागता प्रतीक था।

1. भारत पर आक्रमण प्रारंभ करने से पहले इस 20 वर्षीय सुल्तान ने यह धार्मिक शपथ ली कि वह प्रति वर्ष भारत पर आक्रमण करता रहेगा, जब तक कि वह देश मूर्ति और बहुदेवता पूजा से मुक्त होकर इस्लाम स्वीकार न कर ले। अल उतबी इस सुल्तान की भारत विजय के विषय में लिखता है-'अपने सैनिकों को शस्त्रास्त्र बाँट कर अल्लाह से मार्ग दर्शन और शक्ति की आस लगाये सुल्तान ने भारत की ओर प्रस्थान किया। पुरुषपुर (पेशावर) पहुँचकर उसने उस नगर के बाहर अपने डेरे गाड़ दिये[iii]

2. मुसलमानों को अल्लाह के शत्रु काफिरों से बदला लेते दोपहर हो गयी। इसमें 15000 काफिर मारे गये और पृथ्वी पर दरी की भाँति बिछ गये जहाँ वह जंगली पशुओं और पक्षियों का भोजन बन गये। जयपाल के गले से जो हार मिला उसका मूल्य 2 लाख दीनार था। उसके दूसरे रिद्गतेदारों और युद्ध में मारे गये लोगों की तलाशी से 4 लाख दीनार का धन मिला। इसके अतिरिक्त अल्लाह ने अपने मित्रों को 5 लाख सुन्दर गुलाम स्त्रियाँ और पुरुष भी बखशो[iv]

3. कहा जाता है कि पेशावर के पास वाये-हिन्द पर आक्रमण के समय महमूद ने महाराज जयपाल और उसके 15 मुख्य सरदारों और रिश्तेदारों को गिरफ्तार कर लिया था। सुखपाल की भाँति इनमें से कुछ मृत्यु के भय से मुसलमान हो गये। भेरा में, सिवाय उनके, जिन्होंने इस्लाम स्वीकार कर लिया, सभी निवासी कत्ल कर दिये गये। स्पष्ट है कि इस प्रकार धर्म परिवर्तन करने वालों की संखया काफी रही होगी[v]

4. मुल्तान में बड़ी संख्या में लोग मुसलमान हो गये। जब महमूद ने नवासा शाह पर (सुखपाल का धर्मान्तरण के बाद का नाम) आक्रमण किया तो उतवी के अनुसार महमूद द्वारा धर्मान्तरण का अभूतपूर्व प्रदर्शन हुआ[vi]। काश्मीर घाटी में भी बहुत से काफिरों को मुसलमान बनाया गया और उस देश में इस्लाम फैलाकर वह गजनी लौट गया[vii]

5. उतबी के अनुसार जहाँ भी महमूद जाता था, वहीं वह निवासियों को इस्लाम स्वीकार करने पर मजबूर करता था। इस बलात्‌ धर्म परिवर्तन अथवा मृत्यु का चारों ओर इतना आतंक व्याप्त हो गया था कि अनेक शासक बिना युद्ध किये ही उसके आने का समाचार सुनकर भाग खड़े होते थे। भीमपाल द्वारा चाँद राय को भागने की सलाह देने का यही कारण था कि कहीं राय महमूद के हाथ पड़कर बलात्‌ मुसलमान न बना लिया जाये जैसा कि भीमपाल के चाचा और दूसरे रिश्तेदारों के साथ हुआ था[viii]

6. 1023 ई. में किरात, नूर, लौहकोट और लाहौर पर हुए चौदहवें आक्रमण के समय किरात के शासक ने इस्लाम स्वीकार कर लिया और उसकी देखा-देखी दूसरे बहुत से लोग मुसलमान हो गये। निजामुद्‌दीन के अनुसार देश के इस भाग में इस्लाम शांतिपूर्वक भी फैल रहा था, और बलपूर्वक भी`[ix]। सुल्तान महमूद कुरान का विद्वान था और उसकी उत्तम परिभाषा कर लेता था। इसलिये यह कहना कि उसका कोई कार्य इस्लाम विरुद्ध था, झूठा है।

7. हिन्दुओं ने इस पराजय को राष्ट्रीय चुनौती के रूप में लिया। अगले आक्रमण के समय जयपाल के पुत्र आनंद पाल ने उज्जैन, ग्वालियर, कन्नौज, दिल्ली और अजमेर के राजाओं की सहायता से एक बड़ी सेना लेकर महमूद का सामना किया। फरिश्ता लिखता है कि 30,000 खोकर राजपूतों ने जो नंगे पैरों और नंगे सिर लड़ते थे, सुल्तान की सेना में घुस कर थोड़े से समय में ही तीन-चार हजार मुसलमानों को काट कर रख दिया। सुल्तान युद्ध बंद कर वापिस जाने की सोच ही रहा था कि आनंद पाल का हाथी अपने ऊपर नेपथा के अग्नि गोले के गिरने से भाग खड़ा हुआ। हिन्दू सेना भी उसके पीछे भाग खड़ी हुई[x]

8. सराय (नारदीन) का विध्वंस- सुल्तान ने (कुछ समय ठहरकर) फिर हिन्द पर आक्रमण करने का इरादा किया। अपनी घुड़सवार सेना को लेकर वह हिन्द के मध्य तक पहुँच गया। वहाँ उसने ऐसे-ऐसे शासकों को पराजित किया जिन्होंने आज तक किसी अन्य व्यक्ति के आदेशों का पालन करना नहीं सीखा था। सुल्तान ने उनकी मूर्तियाँ तोड़ डाली और उन दुष्टों को तलवार के घाट उतार दिया। उसने इन शासकों के नेता से युद्ध कर उन्हें पराजित किया। अल्लाह के मित्रों ने प्रत्येक पहाड़ी और वादी को काफिरों के खून से रंग दिया और अल्लाह ने उनको घोड़े, हाथियों और बड़ी भारी संपत्ति मिली[xi]

9. नंदना की विजय के पश्चात् सुल्तान लूट का भारी सामान ढ़ोती अपनी सेना के पीछे-पीछे चलता हुआ, वापिस लौटा। गुलाम तो इतने थे कि गजनी की गुलाम-मंडी में उनके भाव बहुत गिर गये। अपने (भारत) देश में अति प्रतिष्ठा प्राप्त लोग साधारण दुकानदारों के गुलाम होकर पतित हो गये। किन्तु यह तो अल्लाह की महानता है कि जो अपने महजब को प्रतिष्ठित करता है और मूति-पूजा को अपमानित करता है[xii]

10. थानेसर में कत्ले आम- थानेसर का शासक मूर्ति-पूजा में घोर विश्वास करता था और अल्लाह (इस्लाम) को स्वीकार करने को किसी प्रकार भी तैयार नहीं था। सुल्तान ने (उसके राज्य से) मूर्ति पूजा को समाप्त करने के लिये अपने बहादुर सैनिकों के साथ कूच किया। काफिरों के खून से, नदी लाल हो गई और उसका पानी पीने योग्य नहीं रहा। यदि सूर्य न डूब गया होता तो और अधिक शत्रु मारे जाते। अल्लाह की कृपा से विजय प्राप्त हुई जिसने इस्लाम को सदैव-सदैव के लिये सभी दूसरे मत-मतान्तरों से श्रेष्ठ स्थापित किया है, भले ही मूर्ति पूजक उसके विरुद्ध कितना ही विद्रोह क्यों न करें। सुल्तान, इतना लूट का माल लेकर लौटा जिसका कि हिसाब लगाना असंभव है। स्तुति अल्लाह की जो सारे जगत का रक्षक है कि वह इस्लाम और मुसलमानों को इतना सम्मान बख्शता है[xiii]

11. अस्नी पर आक्रमण- जब चन्देल को सुल्तान के आक्रमण का समाचार मिला तो डर के मारे उसके प्राण सूख गये। उसके सामने साक्षात मृत्यु मुँह बाये खड़ी थी। सिवाय भागने के उसके पास दूसरा विकल्प नहीं था। सुल्तान ने आदेश दिया कि उसके पाँच दुर्गों की बुनियाद तक खोद डाली जाये। वहाँ के निवासियों को उनके मल्बे में दबा दिया अथवा गुलाम बना लिया गया।चन्देल के भाग जाने के कारण सुल्तान ने निराश होकर अपनी सेना को चान्द राय पर आक्रमण करने का आदेश दिया जो हिन्द के महान शासकों में से एक है और सरसावा दुर्ग में निवास करता है[xiv]

12. सरसावा (सहारनपुर) में भयानक रक्तपात- सुल्तान ने अपने अत्यंत धार्मिक सैनिकों को इकट्‌ठा किया और द्गात्रु पर तुरन्त आक्रमण करने के आदेश दिये। फलस्वरूप बड़ी संख्या में हिन्दू मारे गये अथवा बंदी बना लिये गये। मुसलमानों ने लूट की ओर कोई ध्यान नहीं दिया जब तक कि कत्ल करते-करते उनका मन नहीं भर गया। उसके बाद ही उन्होंने मुर्दों की तलाशी लेनी प्रारंभ की जो तीन दिन तक चली। लूट में सोना, चाँदी, माणिक, सच्चे मोती, जो हाथ आये जिनका मूल्य लगभग तीस लाख दिरहम रहा होगा। गुलामों की संखया का अनुमान इस बात से लगाया जा सकता है कि प्रत्येक को 2 से लेकर 10 दिरहम तक में बेचा गया। द्गोष को गजनी ले जाया गया। दूर-दूर के देशों से व्यापारी उनको खरीदने आये। मवाराउन-नहर ईराक, खुरासान आदि मुस्लिम देश इन गुलामों से पट गये। गोरे, काले, अमीर, गरीब दासता की समान जंजीरों में बँधकर एक हो गये[xv]

13. सोमनाथ का पतन- अल-काजवीनी के अनुसार 'जब महमूद सोमनाथ के विध्वंस के इरादे से भारत गया तो उसका विचार यही था कि (इतने बड़े उपसाय देवता के टूटने पर) हिन्दू (मूर्ति पूजा के विश्वास को त्यागकर) मुसलमान हो जायेंगे[xvi]।दिसम्बर 1025 में सोमनाथ का पतना हुआ। हिन्दुओं ने महमूद से कहा कि वह जितना धन लेना चाहे ले ले, परन्तु मूर्ति को न तोड़े। महमूद ने कहा कि वह इतिहास में मूर्ति-भंजक के नाम से विखयात होना चाहता है, मूर्ति व्यापारी के नाम से नहीं। महमूद का यह ऐतिहासिक उत्तर ही यह सिद्ध करने के लिये पर्याप्त है कि सोमनाथ के मंदिर को विध्वंस करने का उद्‌देश्य धार्मिक था, लोभ नहीं।मूर्ति तोड़ दी गई। दो करोड़ दिरहम की लूट हाथ लगी, पचास हजार हिन्दू कत्ल कर दिये गये[xvii]। लूट में मिले हीरे, जवाहरातों, सच्चे मोतियों की, जिनमें कुछ अनार के बराबर थे, गजनी में प्रदर्शनी लगाई गई जिसको देखकर वहाँ के नागरिकों और दूसरे देशों के राजदूतों की आँखें फैल गई[xviii]

मौहम्मद गौरी

मुहम्मद गौरी नाम नाम गुजरात के सोमनाथ के भव्य मंदिर के विध्वंश के कारण सबसे अधिक कुख्यात है। गौरी ने इस्लामिक जोश के चलते लाखों हिन्दुओं के लहू से अपनी तलवार को रंगा था।

1. मुस्लिम सेना ने पूर्ण विजय प्राप्त की। एक लाख नीच हिन्दू नरक सिधार गये (कत्ल कर दिये गये)। इस विजय के पश्चात्‌ इस्लामी सेना अजमेर की ओर बढ़ी-वहाँ इतना लूट का माल मिला कि लगता था कि पहाड़ों और समुद्रों ने अपने गुप्त खजानें खोल दिये हों। सुल्तान जब अजमेर में ठहरा तो उसने वहाँ के मूर्ति-मंदिरों की बुनियादों तक को खुदावा डाला और उनके स्थान पर मस्जिदें और मदरसें बना दिये, जहाँ इस्लाम और शरियत की शिक्षा दी जा सके[xix]

2. फरिश्ता के अनुसार मौहम्मद गौरी द्वारा 4 लाख 'खोकर' और 'तिराहिया' हिन्दुओं को इस्लाम ग्रहण कराया गया[xx]

3. इब्ल-अल-असीर के द्वारा बनारस के हिन्दुओं का भयानक कत्ले आम हुआ। बच्चों और स्त्रियों को छोड़कर और कोई नहीं बक्शा गया[xxi]।स्पष्ट है कि सब स्त्री और बच्चे गुलाम और मुसलमान बना लिये गये।



तैमूर लंग

तैमूर लंग अपने समय का सबसे अत्याचारी हमलावर था। उसके कारण गांव के गांव लाशों के ढेर में तब्दील हो गए थे।लाशों को जलाने वाला तक बचा नहीं था।

1. 1399 ई. में तैमूर का भारत पर भयानक आक्रमण हुआ। अपनी जीवनी 'तुजुके तैमुरी' में वह कुरान की इस आयत से ही प्रारंभ करता है 'ऐ पैगम्बर काफिरों और विश्वास न लाने वालों से युद्ध करो और उन पर सखती बरतो।' वह आगे भारत पर अपने आक्रमण का कारण बताते हुए लिखता है। 'हिन्दुस्तान पर आक्रमण करने का मेरा ध्येय काफिर हिन्दुओं के विरुद्ध धार्मिक युद्ध करना है (जिससे) इस्लाम की सेना को भी हिन्दुओं की दौलत और मूल्यवान वस्तुएँ मिल जायें[xxii]

2. कश्मीर की सीमा पर कटोर नामी दुर्ग पर आक्रमण हुआ। उसने तमाम पुरुषों को कत्ल और स्त्रियों और बच्चों को कैद करने का आदेश दिया। फिर उन हठी काफिरों के सिरों के मीनार खड़े करने के आदेश दिये। फिर भटनेर के दुर्ग पर घेरा डाला गया। वहाँ के राजपूतों ने कुछ युद्ध के बाद हार मान ली और उन्हें क्षमादान दे दिया गया। किन्तु उनके असवाधान होते ही उन पर आक्रमण कर दिया गया। तैमूर अपनी जीवनी में लिखता है कि 'थोड़े ही समय में दुर्ग के तमाम लोग तलवार के घाट उतार दिये गये। घंटे भर में दस हजार लोगों के सिर काटे गये। इस्लाम की तलवार ने काफिरों के रक्त में स्नान किया। उनके सरोसामान, खजाने और अनाज को भी, जो वर्षों से दुर्ग में इकट्‌ठा किया गया था, मेरे सिपाहियों ने लूट लिया। मकानों में आग लगा कर राख कर दिया। इमारतों और दुर्ग को भूमिसात कर दिया गया[xxiii]

3. दूसरा नगर सरसुती था जिस पर आक्रमण हुआ। 'सभी काफिर हिन्दू कत्ल कर दिये गये। उनके स्त्री और बच्चे और संपत्ति हमारी हो गई। तैमूर ने जब जाटों के प्रदेश में प्रवेश किया। उसने अपनी सेना को आदेश दिया कि 'जो भी मिल जाये, कत्ल कर दिया जाये।' और फिर सेना के सामने जो भी ग्राम या नगर आया, उसे लूटा गया।पुरुषों को कत्ल कर दिया गया और कुछ लोगों, स्त्रियों और बच्चों को बंदी बना लिया गया[xxiv]।'

4. दिल्ली के पास लोनी हिन्दू नगर था। किन्तु कुछ मुसलमान भी बंदियों में थे। तैमूर ने आदेश दिया कि मुसलमानों को छोड़कर शेष सभी हिन्दू बंदी इस्लाम की तलवार के घाट उतार दिये जायें। इस समय तक उसके पास हिन्दू बंदियों की संखया एक लाख हो गयी थी। जब यमुना पार कर दिल्ली पर आक्रमण की तैयारी हो रही थी उसके साथ के अमीरों ने उससे कहा कि इन बंदियों को कैम्प में नहीं छोड़ा जा सकता और इन इस्लाम के शत्रुओं को स्वतंत्र कर देना भी युद्ध के नियमों के विरुद्ध होगा। तैमूर लिखता है- 'इसलिये उन लोगों को सिवाय तलवार का भोजन बनाने के कोई मार्ग नहीं था। मैंने कैम्प में घोषणा करवा दी कि तमाम बंदी कत्ल कर दिये जायें और इस आदेश के पालन में जो भी लापरवाही करे उसे भी कत्ल कर दिया जाये और उसकी सम्पत्ति सूचना देने वाले को दे दी जाये। जब इस्लाम के गाजियों (काफिरों का कत्ल करने वालों को आदर सूचक नाम) को यह आदेश मिला तो उन्होंने तलवारें सूत लीं और अपने बंदियों को कत्ल कर दिया। उस दिन एक लाख अपवित्र मूर्ति-पूजक काफिर कत्ल कर दिये गये[xxv]

इसी प्रकार के कत्लेआम, धर्मांतरण का विवरण कुतुबुद्दीन ऐबक, इल्लतुमिश, ख़िलजी,तुगलक से लेकर तमाम मुग़लों तक का मिलता हैं। अकबर और औरंगज़ेब के जीवन के विषय में चर्चा हम अलग से करेंगे। भारत के मुसलमान आक्रमणकारियों बाबर, मौहम्मद बिन-कासिम, गौरी, गजनवी इत्यादि लुटेरों को और औरंगजेब जैसे साम्प्रदायिक बादशाह को गौरव प्रदान करते हैं और उनके द्वारा मंदिरों को तोड़कर बनाई गई मस्जिदों व दरगाहों को इस्लाम की काफिरों पर विजय और हिन्दू अपमान के स्मृति चिन्ह बनाये रखना चाहते हैं। संसार में ऐसा शायद ही कहीं देखने को मिलेगा जब एक कौम अपने पूर्वजों पर अत्याचार करने वालों को महान सम्मान देते हो और अपने पूर्वजों के अराध्य हिन्दू देवी देवताओं, भारतीय संस्कृति एवं विचारधारा के प्रति उसके मन में कोई आकर्षण न हो।



(नोट- इस लेख को लिखने में "भारतीय मुसल्मानों के हिन्दु पूरवज (मुसलमान कैसे बने)" नामक पुस्तक लेखक पुरुषोत्तम, प्रकाशक कर्ता हिन्दू राइटर फोरम, राजौरी गार्डन, दिल्ली का प्रयोग किया गया है।)

डॉ विवेक आर्य






[i] इलियटएंड डाउसन खंड-1 पृ.164


[ii] इलियटएंड डाउसन खंड-1 पृ.164


[iii] इलियटएंड डाउसन खंड-1 पृ 24-25


[iv] उपरोक्त पृ. 26


[v] के. एस. लाल : इंडियन मुस्लिम : व्हू आर दे, पृ. 6


[vi] अनेक स्थानों पर महमूद द्वारा धर्मान्तरण के लिये देखे-उतबी की पुस्तक 'किताबें यामिनी' का अनुवाद जेम्स रेनाल्ड्‌स द्वारा पृ. 451-463


[vii] जकरिया अल काजवीनी, के. एस. लाल, उपरोक्त पृ. 7


[viii] ईलियट एंड डाउसन, खंड-2, पृ.40 / के. एस. लाल, पूर्वोद्धत पृ. 7-8


[ix] के. एस. लाल, पूर्वोद्धत पृ. 7


[x] प्रो. एस. आर. द्गार्मा, द क्रीसेन्ट इन इंडिया, पृ. 43


[xi] ईलियट एंड डाउसन, खण्ड-2, पृ. 36


[xii] उपरोक्त, पृ.39


[xiii] उपरोक्त, पृ. 40-41


[xiv] उपरोक्त, पृ. 47


[xv] उपरोक्त, पृ. 49-50


[xvi] के. एस. लाल : इंडियन मुस्लिम व्यू आर दे, पृ. 7


[xvii] प्रो. एस. आर. शर्मा, द क्रीसेन्ट इन इंडिया, पृ. 47


[xviii] ईलियट एंड डाउसन, खण्ड-2, पृ. 35


[xix] उपरोक्त पृ. 215


[xx] के. एस. लाल : इंडियन मुस्लिम व्यू आर दे, पृ. 11


[xxi] उपरोक्त पृ.23


[xxii] सीताराम गोयल द्वारा 'स्टोरी ऑफ इस्लामिक इम्पीरियलिज्म इन इंडिया में उद्धत, पृ. 48


[xxiii]उपरोक्त


[xxiv] उपरोक्त, पृ.49-50


[xxv] सीताराम गोयल द्वारा 'स्टोरी ऑफ इस्लामिक इम्पीरियलिज्म इन इंडिया में उद्धत, पृ. 48

Wikileaks- Saudi Arab is STATE sponsoring terrorism Still best friend of USA

Truth coming. Saudi and Qatar and Pakistan are best friends of USA and they support terrorism, so indirectly USA supports terrorism what Iran and RUSSIA say for long time. USA'S tax money is supporting terrorists. It is not Obama. It is all presidents. Bush has business relationship with Bin laden group of companies which still operates in SAUDI.  OPEN EYE ALL USA people before it its finally closed by these terrorists.
Saudi Arabian Crown Prince Mohammed bin Nayef
Saudi Arabia is the world’s largest source of funds for Islamist militant groups such as the Afghan Taliban and Lashkar-e-Taiba – but the Saudi government is reluctant to stem the flow of money, according to Hillary Clinton.
“More needs to be done since Saudi Arabia remains a critical financial support base for al-Qaida, the Taliban, LeT and other terrorist groups,” says a secret December 2009 paper signed by the US secretary of state. Her memo urged US diplomats to redouble their efforts to stop Gulf money reaching extremists in Pakistan and Afghanistan.
“Donors in Saudi Arabia constitute the most significant source of funding to Sunni terrorist groups worldwide,” she said.
Three other Arab countries are listed as sources of militant money: Qatar, Kuwait and the United Arab Emirates.
The cables highlight an often ignored factor in the Pakistani and Afghan conflicts: that the violence is partly bankrolled by rich, conservative donors across the Arabian Sea whose governments do little to stop them.
The problem is particularly acute in Saudi Arabia, where militants soliciting funds slip into the country disguised as holy pilgrims, set up front companies to launder funds and receive money from government-sanctioned charities.
Meanwhile officials with the LeT’s charity wing, Jamaat-ud-Dawa, travelled to Saudi Arabia seeking donations for new schools at vastly inflated costs – then siphoned off the excess money to fund militant operations.
Militants seeking donations often come during the hajj pilgrimage – “a major security loophole since pilgrims often travel with large amounts of cash and the Saudis cannot refuse them entry into Saudi Arabia”. Even a small donation can go far: LeT operates on a budget of just $5.25m (£3.25m) a year, according to American estimates.
Saudi officials are often painted as reluctant partners. Clinton complained of the “ongoing challenge to persuade Saudi officials to treat terrorist funds emanating from Saudi Arabia as a strategic priority”.
Washington is critical of the Saudi refusal to ban three charities classified as terrorist entities in the US. “Intelligence suggests that these groups continue to send money overseas and, at times, fund extremism overseas,” she said.
There has been some progress. This year US officials reported that al-Qaida’s fundraising ability had “deteriorated substantially” since a government crackdown. As a result Bin Laden’s group was “in its weakest state since 9/11” in Saudi Arabia.
Any criticisms are generally offered in private. The cables show that when it comes to powerful oil-rich allies US diplomats save their concerns for closed-door talks, in stark contrast to the often pointed criticism meted out to allies inPakistan and Afghanistan.
Instead, officials at the Riyadh embassy worry about protecting Saudi oilfields from al-Qaida attacks.
The other major headache for the US in the Gulf region is the United Arab Emirates. The Afghan Taliban and their militant partners the Haqqani network earn “significant funds” through UAE-based businesses, according to one report. The Taliban extort money from the large Pashtun community in the UAE, which is home to 1 million Pakistanis and 150,000 Afghans. They also fundraise by kidnapping Pashtun businessmen based in Dubai or their relatives.
“Some Afghan businessmen in the UAE have resorted to purchasing tickets on the day of travel to limit the chance of being kidnapped themselves upon arrival in either Afghanistan or Pakistan,” the report says.
Last January US intelligence sources said two senior Taliban fundraisers hadregularly travelled to the UAE, where the Taliban and Haqqani networkslaundered money through local front companies.
One report singled out a Kabul-based “Haqqani facilitator”, Haji Khalil Zadran, as a key figure. But, Clinton complained, it was hard to be sure: the UAE’s weak financial regulation and porous borders left US investigators with “limited information” on the identity of Taliban and LeT facilitators.
The lack of border controls was “exploited by Taliban couriers and Afghan drug lords camouflaged among traders, businessmen and migrant workers”, she said.
In an effort to stem the flow of funds American and UAE officials are increasinglyco-operating to catch the “cash couriers” – smugglers who fly giant sums of money into Pakistan and Afghanistan.
In common with its neighbours Kuwait is described as a “source of funds and a key transit point” for al-Qaida and other militant groups. While the government has acted against attacks on its own soil, it is “less inclined to take action against Kuwait-based financiers and facilitators plotting attacks outside of Kuwait”.
Kuwait has refused to ban the Revival of Islamic Heritage Society, a charity the US designated a terrorist entity in June 2008 for providing aid to al-Qaida and affiliated groups, including LeT.
There is little information about militant fundraising in the fourth Gulf country singled out, Qatar, other than to say its “overall level of CT co-operation with the US is considered the worst in the region”.
The funding quagmire extends to Pakistan itself, where the US cables detail sharp criticism of the government’s ambivalence towards funding of militant groups that enjoy covert military support.
The cables show how before the Mumbai attacks in 2008, Pakistani and Chinese diplomats manoeuvred hard to block UN sanctions against Jamaat-ud-Dawa.
But in August 2009, nine months after sanctions were finally imposed, US diplomats wrote: “We continue to see reporting indicating that JUD is still operating in multiple locations in Pakistan and that the group continues to openly raise funds”. JUD denies it is the charity wing of LeT.