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Saturday, October 31, 2015

BABAR AND BABRI MASJI- TRUTH

खुद बाबर के लिखे बाबरनामा से यह
पता चलता है कि राम मंदिर तोड़कर उसके नाम पर
बनाया गया ढांचा असल में मस्जिद
ही नहीं था! ऐसा इसलिए क्योंकि बाबर
खुद मुसलमान ही नहीं था! क्योंकि-
बाबर एक समलैंगिक
(homosexual),
नशेड़ी,
शराबी, और बाल
उत्पीड़क (child
molester) था
बाबरनामा के विभिन्न पृष्ठों से लिए गए निम्नलिखित अंश पढ़िए
१. पृष्ठ १२०-१२१ पर बाबर लिखता है कि वह
अपनी पत्नी में अधिक
रूचि नहीं लेता था बल्कि वह
तो बाबरी नाम के एक लड़के
का दीवाना था. वह लिखता है कि उसने
कभी किसी को इतना प्यार
नहीं किया कि जितना दीवानापन उसे उस
लड़के के लिए था. यहाँ तक कि वह उस लड़के पर
शायरी भी करता था. उदाहरण के लिए-
“मुझ सा दर्दीला, जुनूनी और बेइज्जत
आशिक और कोई नहीं है. और मेरे आशिक
जैसा बेदर्द और तड़पाने वाला भी कोई और
नहीं है.”
२. बाबर लिखता है कि जब बाबरी उसके
‘करीब’ आता था तो बाबर इतना रोमांचित
हो जाता था कि उसके मुंह से शब्द
भी नहीं निकलते थे. इश्क के नशे
और उत्तेजना में वह बाबरी को उसके प्यार के लिए
धन्यवाद देने को भी मुंह नहीं खोल
पता था.
३. एक बार बाबर अपने दोस्तों के साथ एक गली से
गुजर रहा था तो अचानक उसका सामना बाबरी से
हो गया! बाबर इससे इतना उत्तेजित हो गया कि बोलना बंद
हो गया, यहाँ तक कि बाबरी के चेहरे पर नजर
डालना भी नामुमकिन हो गया. वह लिखता है- “मैं
अपने आशिक को देखकर शर्म से डूब जाता हूँ. मेरे
दोस्तों की नजर मुझ पर
टिकी होती है और
मेरी किसी और पर.” स्पष्ट है
की ये सब साथी मिलकर क्या गुल खिलाते
थे!
४. बाबर लिखता है कि बाबरी के जूनून और चाह में
वह बिना कुछ देखे पागलों की तरह नंगे सिर और
नागे पाँव इधर उधर घूमता रहता था.
५. वह लिखता है- “मैं उत्तेजना और रोमांच से पागल
हो जाता था. मुझे नहीं पता था कि आशिकों को यह
सब सहना होता है. ना मैं तुमसे दूर जा सकता हूँ और न
उत्तेजना की वजह से तुम्हारे पास ठहर
सकता हूँ. ओ मेरे आशिक (पुरुष)! तुमने मुझे बिलकुल पागल
बना दिया है”.
इन तथ्यों से पता चलता है कि बाबर और उसके
साथी समलैंगिक और बाल उत्पीड़क थे.
अब यदि इस्लामी शरियत की बात करें
तो समलैंगिकों के लिए मौत की सजा
ही मुक़र्रर की जाती है.
बहुत से इस्लामी देशों में यह सजा आज
भी दी जाती है. बाबर
को भी यही सजा मिलनी चाहिए
थी. दूसरी बात यह है कि उसके नाम
पर बनाए ढाँचे का नाम “बाबरी मस्जिद”
था जो कि उसके पुरुष आशिक “बाबरी” के नाम पर था!
हम पूछते हैं कि क्या अल्लाह के इबादत के लिए कोई
ऐसी जगह क़ुबूल
की जा सकती है कि जिसका नाम
ही समलैंगिकता के प्रतीक बाबर के
पुरुष आशिक “बाबरी” के नाम पर रखा गया हो?
इससे भी बढ़कर एक
आदमी द्वारा जो कि मुसलमान
ही नहीं हो, समलैंगिक और बच्चों से
कुकर्म करने वाला हो , उसके नाम पर मस्जिद
किसी भी मुसलमान को कैसे क़ुबूल
हो सकती है?
यह सिद्ध हो गया है कि बाबरी मस्जिद कोई
इबादतघर नहीं लेकिन समलैंगिकता और बाल
उत्पीडन का प्रतीक जरूर
थी. और इस तरह यह अल्लाह, मुहम्मद,
इस्लाम आदि के नाम पर कलंक थी कि जिसको खुद
मुसलमानों द्वारा ही नेस्तोनाबूत कर दिया जाना चाहिए
था. खैर वे यह नहीं कर सके पर जिसने यह
काम किया है उनको बधाई और धन्यवाद तो जरूर देना चाहिए था.
यह बहुत शर्म की बात है कि पशुतुल्य और
समलैंगिकता के महादोष से ग्रसित आदमी के बनाए
ढाँचे को, जो कि भारत की हार का प्रतीक
था, यहाँ के इतिहासकारों, मुसलमानों, और सेकुलरवादियों ने
किसी अमूल्य धरोहर की तरह
संजो कर रखना चाहा.
यह ऐसी ही बात है कि जैसे मुंबई में
छत्रपति शिवाजी टर्मिनल्स स्टेशन पर नपुंसक और
कायर आतंकवादी अजमल कसब द्वारा निर्दोष
लोगों को मौत के घाट उतारने के उपलक्ष्य में उस स्थान का नाम
“कसब भूमि” रखकर उसे भी धरोहर बना दिया जाये!
बाबर नरसंहारक, लुटेरा,
बलात्कारी,
शराबी और
नशेड़ी था
यहाँ पर इस विषय में कुछ ही प्रमाण इस दरिन्दे
की लिखी जीवनी बाबरनामा से
दिए जा रहे हैं. इसके और अधिक कारनामे जानने के लिए
पूरी पुस्तक पढ़ लें.
पृष्ठ २३२- वह लिखता है कि उसकी सेना ने
निरपराध अफगानों के सिर काट लिए जो उसके साथ
शान्ति की बात करने आ रहे थे. इन कटे हुए
सिरों से इसने मीनार बनवाई.
ऐसा ही कुछ इसने हंगू में किया जहाँ २००
अफगानियों के सिर काट कर खम्बे बनाए गए.
पृष्ठ ३७०- क्योंकि बाजौड़ में रहने वाले लोग दीन
(इस्लाम) को नहीं मानते थे इसलिए वहां ३०००
लोगों का क़त्ल कर दिया गया और उनके
बीवी बच्चों को गुलाम बना लिया गया.
पृष्ठ ३७१- गुलामों में से कुछों के सिर काटकर काबुल और बल्ख
भेजे गए ताकि फतह
की सूचना दी जा सके.
पृष्ठ ३७१- कटे हुए सिरों के खम्बे बनाए गए
ताकि जीत का जश्न मनाया जा सके.
पृष्ठ ३७१- मुहर्रम की एक रात को जश्न मनाने
के लिए शराब की एक महफ़िल जमाई
गयी जिसमें हमने पूरी रात
पी. (पूरे बाबरनामा में जगह जगह
ऐसी शराब की महफ़िलों का वर्णन है.
ध्यान रहे कि शराब इस्लाम में हराम है.)
पृष्ठ ३७३- बाबर ने एक बार ऐसा नशा किया कि नमाज पढने
भी न जा सका. आगे लिखता है
कि यदि ऐसा नशा वह आज करता तो उसे पहले से
आधा नशा भी नहीं होता.
पृष्ठ ३७४- बाबर ने अपने हरम की बहुत
सी महिलाओं से बहुत से बच्चे उत्पन्न किये.
उसकी पहली बेगम ने उससे
वादा किया कि वह उसके हर बच्चे
को अपनाएगी चाहे वे
किसी भी बेगम से हुए हों,
ऐसा इसलिए क्योंकि उसके पैदा किये कुछ बच्चे चल बसे थे. यह
तो जाहिर ही है कि इसके हरम बनाम
मुर्गीखाने में इसकी हवस मिटाने के लिए
कुछ हजार औरतें तो होंगी ही जैसे
कि इसके पोते स्वनामधन्य अकबर के हरम में पांच हजार
औरतें थीं जो इसकी ३६
(छत्तीस) पत्नियों से अलग थीं. यह
बात अलग है कि इसका हरम अधिकतर समय
सूना ही रहता होगा क्योंकि इसको स्त्रियों से अधिक
पुरुष और बच्चे पसंद थे ! और बाबरी नाम के बच्चे
में तो इसके प्राण ही बसे थे.
पृष्ठ ३८५-३८८- अपने बेटे हुमायूं के पैदा होने पर बाबर
बहुत खुश हुआ था, इतना कि इसका जश्न मनाने के लिए
अपने दोस्तों के साथ नाव में गया जहां पूरी रात इसने
शराब पी और
नशीली चीजें खाकर अलग
से नशा किया. फिर जब नशा इनके सिरों में चढ़ गया तो आपस में
लड़ाई हुई और महफ़िल बिखर गयी.
इसी तरह एक और शराब
की महफ़िल में इसने बहुत
उल्टी की और सुबह तक सब कुछ
भूल गया.
पृष्ठ ५२७- एक और महफ़िल एक मीनारों और
गुम्बद वाली इमारत में हुई
थी जो आगरा में है. (ध्यान रहे यह इमारत
ताजमहल ही है जिसे अधिकाँश सेकुलर
इतिहासकार शाहजहाँ की बनायी बताते
हैं, क्योंकि आगरा में इस प्रकार की कोई और इमारत
न पहले थी और न आज है! शाहजहाँ से चार
पीढी पहले जिस महल में उसके
दादा ने गुलछर्रे उड़ाए थे उसे वह खुद कैसे बनवा सकता है?)
बाबरनामा का लगभग हर एक पन्ना इस दरिन्दे के कातिल होने,
लुटेरा होने, और दुराचारी होने का सबूत है.
यहाँ यह याद रखना चाहिए कि जिस तरह बाबर यह सब
लिखता है, उससे यह पता चलता है कि उसे इन सब
बातों का गर्व है, इस बात का पता उन्हें चल जाएगा जो इसके
बाबरनामा को पढेंगे. आश्चर्य इस बात का है कि जिन बातों पर इसे
गर्व था यदि वे ही इतनी भयानक हैं
तो जो आदतें
इसकी कमजोरी रही होंगी,
जिन्हें इसने लिखा ही नहीं, वे
कैसी क़यामत ढहाने
वाली होंगी?
सारांश
१. यदि एक आदमी समलैंगिक होकर
भी मुसलमान हो सकता है, बच्चों के साथ दुराचार
करके भी मुसलमान हो सकता है, चार से
ज्यादा शादियाँ करके भी मुसलमान हो सकता है,
शराब पीकर नमाज न पढ़कर
भी मुसलमान हो सकता है, चरस, गांजा,
अफीम खाकर भी मुसलमान
हो सकता है, हजारों लोगों के सिर काटकर उनसे
मीनार बनाकर भी मुसलमान
हो सकता है, लूट और बलात्कार करके
भी मुसलमान हो सकता है तो फिर वह कौन है
जो मुसलमान नहीं हो सकता? क्या इस्लाम इस सब
की इजाजत देता है?
यदि नहीं तो आज तक
किसी मौलवी मुल्ला ने इस विषय पर
एक शब्द भी क्यों नहीं कहा?
२. केवल यही नहीं, जो यह सब
करके अपने या अपने पुरुष आशिक के नाम
की मस्जिद बनवा दे, ऐसी जगह
को मस्जिद कहना हराम नहीं है क्या?
क्या किसी बलात्कारी समलैंगिक
शराबी व्यभिचारी के पुरुष आशिक के नाम
की मस्जिद में
अता की गयी नमाज अल्लाह को क़ुबूल
होगी? यदि हाँ तो अल्लाह ने इन सबको हराम
क्यों बताया? यदि नहीं तो अधिकतर मुसलमान और
मौलवी इस जगह को मस्जिद कहकर दंगा फसाद
क्यों कर रहे हैं? क्या इसका टूटना इस्लाम पर लगे कलंक
को मिटाने जैसा नहीं था? क्या यह काम खुद
मुसलमानों को नहीं करना चाहिए था?
३. जब इस दरिन्दे बाबर ने खुद क़ुबूल किया है कि इसने
हजारों के सिर कटवाए और कुफ्र को मिटाया तो फिर आजकल के
जाकिर नाइक जैसे आतंकी मुल्ला यह क्यों कहते
हैं कि इस्लाम तलवार के बल पर भारत में
नहीं फैला? जब खुद अकबर
(जिसको इतिहासकारों द्वारा हिन्दुओं का रक्षक कहा गया है
और जान ए हिन्दुस्तान नाम से पुकारा गया है) जैसा नेकदिल (?)
भी हजारों हिन्दुओं के सिरों को काटकर उनके खम्बे
बनाने में प्रसिद्ध था तो फिर यह कैसे माना जाए कि इस्लाम
तलवार से नहीं फैला? क्या ये लक्षण शान्ति से
धर्म फैलाने के हैं? फिर इस्लाम का मतलब ‘शान्ति’ कैसे
हुआ?
४. भारत, पाकिस्तान, अफगानिस्तान, बंगलादेश में रहने वाले सब
मुसलमानों के पूर्वज हिन्दू ही थे
जो हजारों सालों से यहाँ रहते आ रहे थे. जब बाबर जैसे और
इससे भी अधिक दरिंदों ने आकर यहाँ मारकाट
बलात्कार और तबाही मचाई, सिरों को काटकर
मीनारें लहरायीं तो दहशत के इस
वातावरण में बहुत से हिन्दुओं ने अपना धर्म बदल लिया और
उन्हीं लाचार पूर्वजों की संतानें आज
मुसलमान होकर अपने असली धर्म के खिलाफ
आग उगल रही हैं. जिन मुसलमानों के
बाबरी मस्जिद (?) विध्ध्वंस पर आंसू
नहीं थम रहे, जो बार बार यही कसम
खा रहे हैं कि बाबरी मस्जिद
ही बनेगी, जो बाबर को अपना पूर्वज
मान बैठे हैं, ज़रा एक बार खुद से सवाल तो करें- क्या मेरे
पूर्वज अरब, तुर्क या मंगोल से आये थे? क्या मेरे पूर्वज इस
भारत भूमि की पैदावार नहीं थे? कटे
हुए सिरों की मीनारें देखकर भय से
धर्म परिवर्तन करने वाले पूर्वजों के वंशज आज कौन हैं,
कहाँ हैं, क्या कभी सोचा है? क्या यह विचार
कभी मन में नहीं आता कि इतने कत्ले
आम और बलात्कार होने पर विवश माता पिताओं के वे लाल आज
कहाँ हैं कि जिन्हें अपना धर्म, माता, पिता सब खोने पड़े?
क्या भारत, पाकिस्तान, अफगानिस्तान, बंगलादेश में रहने वाले
७०-८० करोड़ मुसलमान सीधे अरबों, तुर्कों के वंशज
हैं? कभी यह नहीं सोचा कि इतने
मुसलमान तो अरब, तुर्क, ईरान, ईराक में मिला कर
भी नहीं हैं जो इस्लाम के फैलाने में
कारण बने? क्या तुम्हारे पूर्वज राम को नहीं मानते
थे? क्या बलपूर्वक अत्याचार के कारण तुम्हारे पूर्वजों का धर्म
बदलने से तुम्हारा पूर्वज राम की बजाय बाबर
हो जाएगा? अगर नहीं तो आज अपने
असली पूर्वज राम को गाली और अपने
पूर्वजों के कातिल और बलात्कारी बाबर का गुणगान
क्यों?
५. अयोध्या की तरह काशी, मथुरा और
हजारों ऐसी ही जगहें जिन्हें
मस्जिद कह कर इस्लाम का मजाक उड़ाया जाता है, जो बाबर
की तरह ही इसके पूर्वजों और
वंशजों की हवस की निशानियाँ हैं,
इनको मुसलमान खुद क्यों मस्जिद मानने से इनकार
नहीं करते?
६. यदि बाबरी ढांचा टूटना गलत था तो राम मंदिर
टूटना गलत क्यों नहीं था? यदि राम मंदिर
की बात पुरानी हो गयी है
तो ढांचा टूटने की बात भी तो कोई
नयी नहीं! तो फिर उस पर
हायतौबा क्यों?
अंत में हम कहेंगे कि जिस तरह भारत में रहने वाले हिन्दू
मुसलमानों के पूर्वजों पर अत्याचार और बलात्कार करने वाले
वहशी दरिन्दे बाबर के नाम का ढांचा आज
नहीं है उसी तरह बाकी
सब ढांचे जो तथाकथित इस्लामी राज्य के दौरान
मंदिरों को तोड़कर बनवाये गए थे, जो सब हिन्दू मुसलमानों के
पूर्वजों के अपमान के प्रतीक हैं, उनको अविलम्ब
मिट्टी में मिला दिया जाए और
इसकी पहल हमारे खून के भाई मुसलमान
ही करें जिनके साथ
हमारा हजारों लाखों सालों का रक्त सम्बन्ध है. इस देश में
रहने वाले
किसी आदमी की, चाहे
वह हिन्दू हो या मुसलमान, धमनियों में दरिन्दे जानवर बाबर
या अकबर का खून नहीं किन्तु राम, कृष्ण,
महाराणा प्रताप और शिवाजी का खून है. और इस
एक खून की शपथ लेकर सबको यह प्रण
करना है कि अब हमारे पूर्वजों पर लगा कोई कलंक
भी देश में नहीं रह पायेगा.
क्या दृश्य होगा कि हिन्दू और मुसलमान एक साथ अपने एक
पूर्वजों पर लगे कलंकों को गिराएंगे और उस जगह अपने
पूर्वजों की यादगार के साथ साथ उनके
असली धर्म वेद की पाठशाला बनायेंगे
जहां राम और कृष्ण जैसे धर्मयोद्धा तैयार होंगे कि फिर कोई
बाबर आकर इस भूमि के पुत्रों को उनके माता पिता, दोस्तों और
धर्म से अलग न कर सके!
और तब तक के लिए, आओ हम सब हिन्दू और मुस्लिम भाई
मिलकर हर साल पूरे उत्साह के साथ ६ दिसंबर के पावन पर्व
को ‘शौर्य दिवस’ और ‘गौरव दिवस’ के रूप में मनाएं. हाँ,
मथुरा और वाराणसी में ऐसे
ही वहशी दरिन्दे ‘औरंगजेब’ के
बनाये ढांचें – जो इस्लाम के पावन नाम पर बदतर कलंक है –
उनको मिटाने का सौभाग्य हमारे मुस्लिम
भाइयों को ही मिले.
६ दिसंबर १९९२ के दिन हिन्दू-मुस्लिम एकता के सबसे बड़े
प्रतीक की स्थापना करने वाले
सभी भाई-बहनों को हम सब हिन्दू और
मुसलमानों का कोटि-कोटि नमन.

Sunday, December 14, 2014

बाबर एक ""गे"" ( होमोसेक्सुअल अथवा समलैंगिक )था....???

क्या आप जानते हैं कि... बाबर एक ""गे"" ( होमोसेक्सुअल अथवा समलैंगिक )था....???हालाँकि यह बात सुनने में थोड़ी अजीब लगती है....
परन्तु यही सत्य है....
और.... यह बात सुनका तो आप चकरा ही जायेंगे कि..... बाबरी मस्जिद को बाबर के नाम पर नहीं बनाया गया ..... बल्कि, हो ना हो .... उसके
कैम्प बाजार वाले लौंडे .... "बाबरी"... के नाम पर बनाया गया होगा.... जिसका कि बाबर दीवाना था...! हालाँकि बाबर की शादी ... 17 साल की उम्र में
ही ( मार्च 1500 में ) आयशा नामक स्त्री सेहो गयी थी..... लेकिन, एक "गे" होने के कारण ....बाबर को अपनी पत्नी मेंजरा भी दिलचस्पी नहीं थी....!
बाबर खुद अपने बाबरनामा में लिखता है कि...."" मैं आयशा के पास 10 , 15 या 20 दिनों में एकबार जाता था.... और, आयशा के प्रति मेरा प्यार
इतना कम हो गया था कि.... मेरी माँ खानम मुझेइसके लिए डांटा करती थी..... और, 20 -40दिनों में एक बार उसके पास भेजती थी..!
इसी समय कैम्प बाजार में बाबरी नामक एकलड़का था... और, हमारे नामों में समरूपता थी..!मुझे अपनी पत्नी से नहीं बल्कि, उस लड़के से
मुहब्बत थी.... और मैं उस लड़के को चाहनेलगा था... यहाँ तक कि... उसके लिए पागलहो गया था....! "" ( तारीख-ए शानी 125 -26 )
अब आपको ऐसा लग सकता है कि..... बाबर ......उस बाबरी से अपने भाई अथवा पुत्र की तरहकरता होगा.... इसीलिए उसने लिखा है....
लेकिन..... आगे पढने पर..... आपका पूरा भ्रमउसी तरह ख़त्म हो जाएगा .... जिस तरह आजअयोध्या से बाबरी मस्जिद ख़त्म हो चूका है....!
बाबर आगे लिखता है कि.... इसके पहले तो मुझेकिसी से इतना प्यार था ही नहीं.... और,ना कभी ऐसा अवसर आया था जब, मैंने इतने प्रीत
भरे शब्द किसी से बोले या कहे हों....!उस बाबरी नामक लौंडे के प्यार में पागल होकरबाबर..... उसके बारे में फारसी में कुछतुकबन्दियाँ लिखता है...... जिसका हिंदी कुछ इसप्रकार है...

""मेरे सामान कोई भी प्रेमी जो इतना न दुखी था,
ना आसक्त , ना ही असम्मानित ....और, मेरी मौत
ना इतनी दयाहीन ना ही तुझ जैसा हेय""
बाबरी नामक लौंडे के प्यार में बाबर का ये हाल
था कि.....
वो कहता है.... एक बार मैं अपने नौकरों के साथ
एक पतली गली से जा रहा था.... उसी समय ""
बाबरी "" मेरे सामने आ गया..... और, उसे देख कर
मैं शरमा गया ...और, उससे ना तो मैं एक शब्द बोल
पाया ... ना ही, उससे आँखें ही मिला पाया....!
बड़ी हड़बड़ी और शर्मिंदगी के साथ मैं मुहम्मद के
गीत गुनगुनाते आगे बढ़ गया कि....
मैं अपने महबूब को देख कर शरमा जाता हूँ.... मेरे
साथी मुझे, और मैं तुझे देखता हूँ....!
भावारितेक और यौनाधिक्य के कारण... मैं उस
बाबरी की याद में नंगे सर, नंगे पैर... बाग़ , बगीचों ..
सडकों और महलों में ....... बिना किसी मित्र
या परिवार की और देखे ही घूमा करता हूँ...!
मैं उसकी याद और पागलपन में खुद
को अथवा लोगों को उचित सम्मान नहीं दे
पाता हूँ....ऐसा विक्षिप्त हो गया हूँ मैं....!
( तारीख-ए शानी 125 -26 )
इसी तरह..... बाबर नामक वो लौंडेबाज लुटेरा ....बाबरी नामक लौंडे के प्यार में पागल होकरढेरों अनप-शनाप लिखता जाता है....!
इसीलिए..... बाबरी नामक उस लौंडे के प्यार मेंपागल...... बाबर से ये आशा करना भी बेवकूफी हैकि..... उसने ........ अयोध्या में मंदिर तोड़कर
अपने नाम पर....... बाबरी मस्जिदबनवाया होगा......बल्कि.... इसकी जगह ...... निश्चय ही वो..... अपनेप्रेमी लौंडे "" बाबरी "" के नाम पर ही उस मस्जिदका नाम रखा होगा......!लेकिन.... हमेशा की.... तरह बाबरी नाम देखतेही ....... इतिहासकारों ने बिना सोचे समझे .....
उसे बाबर के नाम के साथ जोड़ दिया......जबकि, वो मस्जिद ""बाबर"" के नाम परनहीं.......... बल्कि, उसके ""गे साथी"" .......
बाबरी के नाम बनाया गया था........जिसका कि बाबर दीवाना था....!हद तो ये है कि..... मुस्लिम भी बिना जाने-समझे ........ एक समलैंगिक के नाम पर बनाये गएमस्जिद पर गर्व करते हैं..... और, उसके टूटने परशोक मनाते हैं..... !क्या कोई मुस्लिम यह बता सकता है कि..... एक
समलैंगिक के नाम पर अतिक्रमण करबनाया गया मस्जिद ........मुस्लिमों को इतना प्रिय क्यों है...??????कहीं ऐसा तो नहीं कि...... मुस्लिम ......
बाबरी मस्जिद के बहाने ...... बाबर और उससमलैंगिक बाबरी ........ के रिश्ते की याद में एकमस्जिद बनाकर .

Sunday, December 7, 2014

AYODHYA - ARE YOU AFRAID OF TRUTH -BABAR DESTRUCTED SRI RAMA TEMPLE -EVIDENCE

Are we afraid of the trurth?
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1) As early as 1975, temple pillars were found in archaeological excavation at Babri site. They carried not only typical Hindu motifs and mouldings, but also figures of Hindu deities.
However, as soon as it was reported, all facilities were withdrawn and despite repeated requests the project was kept shut for 10-12 years
2) In July 1992, eight eminent archaeologists examined the findings which included religious sculptures and a statue of Vishnu, Shiva Parvati and numerous vaishnav deities.
3) The archaeologists also reported evidence of a large 10th century structure similar to a Hindu temple having pre-existed the Babri Masjid.
4) The findings also suggest that a Northern Black Polished Ware (NBPW) culture existed at the mosque site between 1000 BC and 300 BC.
These findings are corroborated by evidence provided by Canadian geophysicist Claude Robillard (who performed a search with a ground-penetrating radar.)
Thus, the excavations gave ample traces that there was a mammoth pre-existing structure beneath the three-domed Babri structure. It suggests a picture of a vast compound housing a sole distinguished and greatly celebrated structure used for divine purposes. Nothing has been found to prove the existence of residential habitation there.
However, the findings have been kept so hush hush that barely anyone in the country knows about them. Babri mosque is one of the many symbols of oppression of native Indian population in hands of the foreign invaders. It's a reminder of a grim genocide of Hindus in the name of Jihad. No country in this world preserves such symbols of shame as we have.
When the masses wanted it taken down, the governments went against the people and put barriers around the structure. In 1990, Kar Sevaks (volunteers for the cause) were shot down by thousands by then Mulayam government (justice continues to evade the victims till date while Mulayam and his ilk roam free).

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Ref.
1) B.B. Lal (Manthan,10/1990) and S.P. Gupta (Indian Express, 2 December 1990), and annexure 28 to the VHP document Evidence for the Ram Janmabhoomi Mandir.
2) Narain, Harsh. 1993. The Ayodhya Temple Mosque Dispute
3) 2003 ASI Report
4) http://www.rediff.com/news/2003/mar/10josy.htm
5) http://www.hinduonnet.com/thehindu/thscrip/print.pl…&
6) http://www.rediff.com/news/2003/aug/25ayo1.htm