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Friday, July 4, 2014

अमरनाथ की कहानी


हजारों सालों से यहां चंद्रमा के घटने-बढ़ने के साथ-साथ घटता-बढ़ता है शिवलिंग
अमरनाथ की कहानी

 देशभर में शिवजी के कई तीर्थ स्थान हैं और उनमें से सर्वाधिक महत्वपूर्ण तीर्थ है अमरनाथ गुफा। शिवजी के इस तीर्थ का इतिहास हजारों साल पुराना है। यहां स्थित शिवलिंग पर लगातार बर्फ की बूंदें टपकती रहती हैं, जिससे करीब दस फीट ऊंचा शिवलिंग निर्मित होता है। इस शिवलिंग की ऊंचाई चंद्रमा के घटने-बढ़ने के साथ-साथ घटती-बढ़ती रहती है। पूर्णिमा के दिन शिवलिंग अपने पूरे आकार में होता है, जबकि अमावस्या के दिन शिवलिंग का आकार छोटा हो जाता है। 
अमरनाथ गुफा श्रीनगर से करीब 145 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। यह गुफा 150 फीट ऊंची और करीब 90 फीट लंबी है। इस तीर्थ का सर्वाधिक महत्व इसलिए है, क्योंकि इसी स्थान भगवान शिव ने पार्वती को अमरत्व का रहस्य बताया था।
अमरनाथ गुफा हिमालय पर्वत पर करीब 4000 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। यहां चारों ओर बर्फीली पहाड़ियां दिखाई देती हैं। इस गुफा में शिवलिंग स्थित है जो कि बर्फ से निर्मित होता है। यह शिवलिंग पूरी तरह प्राकृतिक रूप से निश्चित समय के लिए ही बनता है। इस गुफा में एक आश्चर्य की बात यह है कि यहां की बर्फ एकदम कच्ची होती है और हाथ में लेते ही भुर-भुरा जाती है। जबकि, शिवलिंग की बर्फ एकदम ठोस होती है।

शास्त्रों के अनुसार इसी गुफा में भगवान शिव ने माता पार्वती को अमरत्व का रहस्य बताया था। माता पार्वती के साथ ही इस रहस्य को शुक (कबूतर) ने भी सुन लिया था। यह शुक बाद में शुकदेव ऋषि के रूप में अमर हो गए। गुफा में आज भी कई श्रद्धालुओं को कबूतरों का एक जोड़ा दिखाई देता है, जिन्हें अमर पक्षी माना जाता है। 
भगवान शिव जब पार्वती को अमर कथा सुनाने ले जा रहे थे, तो उन्होंने छोटे-छोटे अनंत नागों को अनंतनाग में छोड़ा, माथे के चंदन को चंदनबाड़ी में उतारा, अन्य पिस्सुओं को पिस्सू टॉप पर और गले के शेषनाग को शेषनाग नामक स्थल पर छोड़ा था। ये सभी स्थान अभी भी अमरनाथ यात्रा के दौरान रास्ते में दिखाई देते हैं।
गुफा का इतिहास
 
इस गुफा का इतिहास हजारों साल पुराना है। अमरनाथ गुफा की खोज सबसे पहले किसने की, इस संबंध में कोई स्पष्ट जानकारी उपलब्ध नहीं है। लेकिन ऐसी मान्यता प्रचलित है कि बहुत समय पहले इस क्षेत्र में एक चरवाहे को कोई संत दिखाई दिए गए थे। संत ने चरवाहे को कोयले से भरी हुई एक पोटली दी थी। जब चरवाहा अपने घर पहुंचा तब पोटली के अंदर का कोयला सोना बन गया था।
 
यह चमत्कार देखकर चरवाहा आश्चर्यचकित हो गया और संत को खोजने के लिए पुन: उसी स्थान पर पहुंच गया। संत को खोजते-खोजते उस चरवाहे को अमरनाथ की गुफा दिखाई दी। जब वहां के लोगों ने इस चमत्कार के विषय में सुना तो अमरनाथ गुफा को दैवीय स्थान माना जाने लगा और यहां पूजन शुरू हो गया।
कब होते हैं अमरनाथ के दर्शन

अमरनाथ गुफा में शिवलिंग के साथ ही श्रीगणेश, पार्वती और भैरव के हिमखंड भी निर्मित होते हैं। हर वर्ष आषाढ़ पूर्णिमा से रक्षाबंधन और सावन के पूरे माह यहां श्रद्धालु बाबा अमरनाथ के दर्शन के लिए पहुंचते हैं। मई से अगस्त के बीच अमरनाथ गुफा में शिवलिंग के दर्शन किए जा सकते हैं।

हर साल श्रावण माह के दौरान अमरनाथ यात्रा आयोजित की जाती है। जिसमें देशभर से लाखों शिव भक्त पहुंचते हैं। सिर्फ इसी समय बाबा अमरनाथ के दर्शन किए जा सकते हैं, शेष समय यहां का वातावरण हमारे लिए प्रतिकूल रहता है। यहां अक्सर बर्फ गिरती रहती है और इस क्षेत्र का तापमान माइनस 5 डिग्री तक पहुंच जाता है।

अमरनाथ गुफा का पूरा क्षेत्र बहुत सुंदर और मनमोहक नजर आता है। यहां बड़ी-बड़ी पहाडिय़ां बर्फ से ढंकी रहती हैं, हिमालय की वनस्पतियों के नजारे और झीलें आंखों को सुखद अहसास देते हैं।
अमरनाथ जाने के लिए हैं दो रास्ते
 
बाबा अमरनाथ यात्रा पर जाने के लिए दो रास्ते हैं। एक पहलगाम होकर जाता है और दूसरा सोनमर्ग बलटाल से जाता है। यानी देशभर के किसी भी क्षेत्र से पहले पहलगाम या बलटाल पहुंचना होता है। इसके बाद की यात्रा पैदल की जाती है।
 
पहलगाम से अमरनाथ जाने का रास्ता सरल और सुविधाजनक समझा जाता है। बलटाल से अमरनाथ गुफा की दूरी 14 किलोमीटर है, लेकिन यह मार्ग पार करना मुश्किलभरा होता है। इसी वजह से अधिकतर यात्री पहलगाम के रास्ते अमरनाथ जाते हैं।


हजारों सालों से यहां चंद्रमा के घटने-बढ़ने के साथ-साथ घटता-बढ़ता है शिवलिंग
हजारों सालों से यहां चंद्रमा के घटने-बढ़ने के साथ-साथ घटता-बढ़ता है शिवलिंग
हजारों सालों से यहां चंद्रमा के घटने-बढ़ने के साथ-साथ घटता-बढ़ता है शिवलिंग
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