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Tuesday, October 20, 2015

हल्दी घाटी का युद्ध 1576 ई.

महाराणा प्रताप"हल्दी घाटी का युद्ध 1576 ई.
हल्दीघाटी का युद्ध
* मैग्जीन दुर्ग -
इस दुर्ग को अकबर ने 1571-72 ई. में अजमेर में बनवाया था | इसे अकबर का किला व अकबर का दौलत खाना भी कहते हैं | अकबर ने हल्दीघाटी युद्ध की रणनीति इसी दुर्ग में बनाई थी |
* अब्दुल कादिर बंदायूनी -
हल्दीघाटी में मुगलों की तरफ से लड़ने वाला प्रसिद्ध इतिहासकार | बंदायूनी ने इस युद्ध का वर्णन बिना पक्षपात के किया है | युद्ध से पहले एक दिन बंदायूनी अकबर के कक्ष में गया और अकबर से कहा "शहंशाह, मैं जंग के बाद राजपूतों के खून से अपनी दाढ़ी रंगना चाहता हूँ , अगर आपकी इजाजत हो तो"
बंदायूनी लिखता है "शहंशाह ने मुझे इजाजत के साथ-साथ खुशी से 56 अशर्फियाँ भी दीं"
बंदायूनी ने इस युद्ध को "गोगुन्दा का युद्ध" कहा
* अबुल फजल ने इस युद्ध को "खमनौर का युद्ध" कहा
* कर्नल जेम्स टॉड ने इस युद्ध को "मेवाड़ की थर्मोपल्ली" कहा
* चारण कवि रामा सांदू -
मेवाड़ की तरफ से कई चारण कवि/इतिहासकार ने भी भाग लिया, पर रामा सांदू ही जीवित रह सके
(कुछ इतिहासकार रामा सांदू के भी युद्ध में वीरगति पाने का उल्लेख करते हैं, जो कि सही नहीं है, क्योंकि रामा सांदू ने हल्दीघाटी युद्ध का कुछ वर्णन किया है)
* मुगलों के सेनापति -
अकबर ने मुगल फौज का सेनापति चुनने में 15 दिन लगा दिये
मानसिंह को मुगल फौज का सेनापति चुना गया
मुगल सल्तनत के इतिहास में पहली बार किसी राजपूत को सेनापति बनाया गया
इससे अकबर के कुछ मुस्लिम सिपहसालार (नकीब खान आदि) ने मानसिंह के नेतृत्व में जाने से मना कर दिया
* मानसिंह -
मानसिंह आमेर के भगवानदास का गोद लिया हुआ पुत्र था | अकबर ने मानसिंह को "फर्जन्द" व "राजा" की उपाधि दी | मानसिंह अकबर के नवरत्नों में से एक था |
हालांकि मानसिंह ने पहली बार सेना का नेतृत्व इसी युद्ध में किया, लेकिन उसकी नेतृत्व क्षमता की बात की जाए, तो एक युद्ध, जो कि हल्दीघाटी के बाद लड़ा गया, उसमें मानसिंह ने 3000 की फौज के साथ 22000 अफगानों को पराजित किया
दूसरा सेनापति आसफ खान को चुना गया, पर निर्णय लेने की ज्यादा शक्तियां मानसिंह के पास थीं
* आसफ खान -
गोंडवाना की रानी दुर्गावती को आसफ खान ने ही पराजित किया था, उसके बाद चित्तौड़ के तीसरे विध्वंस में भी आसफ खान ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी
आसफ खान ने अप्रत्यक्ष रुप से इस युद्ध को "जेहाद" की संज्ञा दी
* मानसिंह 5000 की फौज (मुगल + कछवाहों) के साथ 3 अप्रैल, 1576 ई. को अजमेर से रवाना हुआ और मांडलगढ़ पहुंचा
{कर्नल जेम्स टॉड के अनुसार 80000 की फौज सलीम के नेतृत्व में आई}
{युद्ध में भाग लेने वाले मेवाड़ के चारण कवि रामा सांदू ने 80000 मुगलों के आने का कोई जिक्र नहीं किया}
{अकबरनामा के अनुसार मुगल फौज 5000 थी}
{युद्ध में भाग लेने वाले अब्दुल कादिर बंदायूनी के अनुसार भी मुगल फौज 5000 थी}
{हल्दीघाटी म्यूजियम में भी 5000 मुगलों के आने की ही जानकारी मिलती है}
{नैणसी के अनुसार मुगल 40000 थे}
{मेवाड़ के कविराज श्यामलदास ने अपनी तरफ से कोई संख्या नहीं बताई है}
* मांडलगढ़ में मानसिंह 2 माह (मध्य अप्रैल से मध्य जून) तक रुका
इन्हीं 2 महिनों में हुई कुछ घटनाएँ इस तरह हैं -
* महाराणा प्रताप ने सीधे मांडलगढ़ पर हमला करने की योजना बनाई, पर सामन्तों ने उन्हें एेसा करने से रोका
अबुल फजल इस घटना को कुछ इस तरह लिखता है "मानसिंह बादशाही फौज के साथ मांडलगढ़ पहुंचा | राणा ने गुरुर में आकर बादशाही लश्कर का ख्याल न करके मानसिंह को अपना मातहत जमींदार समझते हुए मांडलगढ़ पर हमला करने का इरादा किया, पर उसके खैरख्वाहों ने उसे एेसा करने से रोका"
* महाराणा प्रताप ने गोगुन्दा व उसके आसपास की जमीन उजाड़ दी, फसलें खत्म कर दीं, नागरिकों को कुम्भलगढ़ व दूसरे स्थानों पर भेजकर जगह खाली करवाई, ताकि मुगल फौज को रसद वगैरह ना मिल सके व मेवाड़ के नागरिक मुगलों के अत्याचारों से बच सकें
* मानसिंह अपने कुछ सैनिकों के साथ मेवाड़ के जंगलों में शिकार के लिए निकला
एक भील गुप्तचर ने महाराणा प्रताप को इस बात की सूचना दी
महाराणा प्रताप के पास मानसिंह को पराजित करने का सुनहरा अवसर था, पर
महाराणा प्रताप ने कहा कि हम मानसिंह को धोखे से नहीं हराना चाहते