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Friday, May 22, 2015

राजीव गांधी: स्वीडिश कंपनी के दलाल थे-विकिलीक्स

राजीव गांधी: विकिलीक्स स्वीडिश कंपनी के दलाल थे....
विकिलीक्स ने खुलासा किया है कि राजीव गांधी प्रधानमंत्री बनने से पहले इंडियन एयरलाइंस के पायलट की नौकरी के दौरान स्वीडिश कंपनी साब-स्कॉनिया के लिए दलाली करते थे। कंपनी 70 के दशक में भारत को फाइटर प्लेन विजेन बेचने की कोशिश कर रही थी। हर रक्षा सौदे में गांधी परिवार का नाम ही सामने क्यों आता है। उन्होंने कहा कि इस मामले में गांधी परिवार को जवाब देना चाहिए और तब के दस्तावेज सार्वजनिक होने चाहिए।
विकिलीक्स ने यह खुलासा हेनरी किसिंजर केबल्स के हवाले से किया है। हेनरी किसिंजर अमेरिका के सुरक्षा सलाहकार रह चुके हैं। 'द हिन्दू' में छपी खबर के मुताबिक, हालांकि स्वीडिश कंपनी के साथ सौदा नहीं हो पाया था और ब्रिटिश जगुआर ने बाजी मार ली थी। विकिलीक्स केबल्स के मुताबिक, आपतकाल के दौरान जॉर्ज फर्नांडिस ने अंडरग्राउंड रहते हुए अमेरिकी खुफिया एजेंसी सीआईए से आर्थिक मदद भी मांगी थी।
राजीव गांधी 1980 तक राजनीति से दूर रहे थे। संजय गांधी के निधन के बाद इंदिरा गांधी उन्हें बतौर मिस्टर क्लीन राजनीति में लेकर आईं। हालांकि बतौर प्रधानमंत्री पहले कार्यकाल में ही वह एक दूसरी स्वीडिश कंपनी से बोफोर्स तोपों की खरीद के लिए हुए सौदे में घूसखोरी के आरोपों से घिर गए और इसकी वजह से 1989 के आम चुनावों में उनकी पार्टी को हार का सामना भी करना पड़ा।
सन् 1974 से 1976 के दौरान के जारी 41 केबल्स के मुताबिक, स्वीडिश कंपनी को इस बात का अंदाजा था कि फाइटर एयरक्राफ्ट्स की खरीद के बारे में अंतिम फैसला लेने में गांधी परिवार की भूमिका होगी। फ्रांसीसी एयरक्राफ्ट कंपनी दसो को भी इसका अनुमान था। उसकी ओर से मिराज फाइटर एयरक्राफ्ट के लिए तत्कालीन वायुसेना अध्यक्ष ओपी मेहरा के दामाद दलाली करने की कोशिश कर रहे थे। केबल में मेहरा के दलाल का नाम नहीं लिया गया है।
1975 में दिल्ली स्थित स्वीडिश दूतावास के एक राजनयिक की ओर से दी गई जानकारी के मुताबिक, 'इंदिरा गांधी ने ब्रिटेन के खिलाफ अपने पूर्वाग्रहों की वजह से जगुआर न खरीदने का फैसला कर लिया है। अब मिराज और विजेन के बीच फैसला होना है। मिसेज गांधी के बड़े बेटे बतौर पायलट एविएशन इंडस्ट्री से जुड़े हैं और पहली बार उनका नाम बतौर उद्यमी सुना जा रहा है। अंतिम फैसले को परिवार प्रभावित करेगा। हालांकि, राजीव गांधी एक ट्रांसपोर्ट पायलट हैं और उनके पास फाइटर प्लेन के मूल्यांकन की योग्यता नहीं है, लेकिन उनके पास एक 'दूसरी योग्यता' है।'
दूसरे केबल में स्वीडिश राजनयिक के हवाले से कहा गया है, 'इस डील में इंदिरा गांधी की अति सक्रियता की वजह से स्वीडन चिढ़ा हुआ था।' इसके मुताबिक, उन्होंने फाइटर प्लेन की खरीद की प्रक्रिया से एयरफोर्स को दूर रखा था। रजनयिक के मुताबिक, 40 से 50 लाख डॉलर प्रति प्लेन के हिसाब से 50 विजेन के लिए बातचीत चल रही थी। स्वीडन को भरोसा था कि भारत सोवियत संघ से और युद्धक विमान न खरीदने का फैसला कर चुका था।
6 अगस्त 1976 के एक दूसरे केबल से पता चलता है कि भारत को फाइटर प्लेन बेचने की कोशिश में जुटे स्वीडन को अमेरिकी दबाव में अपने कदम पीछे खींचने पड़े थे। अमेरिका ने साब-स्कॉनिया को भारत को विजेन निर्यात करने और देश में बनाने का लाइसेंस देने की अनुमति नहीं दी थी।
अमेरिका की ओर से कहा गया था, 'गंभीरता से विचार करने के बाद हम इस निष्कर्ष पर पहुंचे हैं कि विजेन के किसी भी ऐसे संस्करण को भारत को निर्यात करने की अनुमति नहीं दे सकते हैं, जिसमें अमेरिकी कल-पुर्जे लगे हों।' अमेरिका ने कहा था कि वह अमेरिकी डिजाइन और तकनीक से लैस इस विमान के भारत में उत्पादन का विरोध करेगा।