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Friday, October 30, 2015

महाराणा प्रताप

81 किलो का भाला और 72 किलो का कवच पहनकर लड़े थे महाराणा प्रताप

81 किलो का भाला और 72 किलो का कवच पहनकर लड़े थे महाराणा प्रताप
सीकर. राजस्थान की भूमि सदा से ही महापुरुषों और वीरों की भूमि रही है। यह धरती हमेशा से ही अपने वीर सपूतों पर गर्व करती रही है। ‘योद्धा राजस्थान के’ सीरीज के तहत बता रहा है इस महान योद्धा महाराणा प्रताप के बारे में… 1576 में हल्दीघाटी में महाराणा प्रताप और अकबर के बीच ऐसा युद्ध हुआ, जो पूरी दुनिया के लिए आज भी एक मिसाल है। महाराणा प्रताप ने शक्तिशाली मुगल बादशाह अकबर की 85000 सैनिकों वाले विशाल सेना के सामने अपने 20000 सैनिक और थोड़े-से संसाधनों के बल पर स्वतंत्रता के लिए वर्षों संघर्ष किया। 30 वर्षों के लगातार प्रयास के बावजूद अकबर महाराणा प्रताप को बंदी न बना सका।
हल्दीघाटी का युद्ध याद अकबर को जब आ जाता था ,
कहते है अकबर महलों में, सोते-सोते जग जाता था!
प्रताप की वीरता के सामने अकबर भी रोया
प्रताप की वीरता ऐसी थी कि उनके दुश्मन भी उनके युद्ध-कौशल के कायल थे। माना जाता है कि इस योद्धा की मृत्यु पर अकबर की आंखें भी नम हो गई थीं। उदारता ऐसी कि दूसरों की पकड़ी गई बेगमों को सम्मानपूर्वक उनके पास वापस भेज दिया था। इस योद्धा ने साधन सीमित होने पर भी दुश्मन के सामने सिर नहीं झुकाया और जंगल के कंद-मूल खाकर लड़ते रहे।
26 फीट का नाला एक छलांग में लांघ गया था प्रताप का चेतक
कहते हैं कि जब कोई अच्छाई के लिए लड़ता है तो पूरी कायनात उसे जीत दिलाने में लग जाती है। ये बात हम इसलिए कह रहे हैं, क्योंकि उनका घोड़ा चेतक भी उन्हें जीत दिलाने के लिए अंतिम समय तक लड़ता रहा। चेतक की ताकत का पता इस बात से लगाया जा सकता था कि उसके मुंह के आगे हाथी कि सूंड लगाई जाती थी। जब मुगल सेना महाराणा प्रताप के पीछे लगे थी, तब चेतक प्रताप को अपनी पीठ पर लिए 26 फीट के उस नाले को लांघ गया, जिसे मुगल पार न कर सके।
208 किलो का वजन लेकर लड़ते थे प्रताप
महाराणा प्रताप का भाला 81 किलो वजन का था और उनके छाती का कवच 72 किलो का था। उनके भाला, कवच, ढाल और साथ में दो तलवारों का वजन मिलाकर 208 किलो था। महाराणा प्रताप का वजन 110 किलो… और लम्बाई 7 फीट 5 इंच थी। यह बात अचंभित करने वाली है कि इतना वजन लेकर प्रताप रणभूमि में लड़ते थे।
आगे की स्लाइड्स में जानें, क्यों महाराणा प्रताप को एक राजा होने के बावजूद जंगल-जंगल भटकना पड़ा और साथ ही जानें उनके संघर्ष की पूरी कहानी…10वें स्लाइड में पढ़ें दुश्मन होने के बावजूद अकबर उनकी मृत्यु पर क्यों रोया था…
राज्य की आन के लिया एक प्रण
राजस्थान के कुंभलगढ़ में प्रताप का जन्म महाराणा उदयसिंह एवं माता रानी जीवंत कंवर के घर हुआ था। उन दिनों दिल्ली में सम्राट अकबर का राज्य था जो भारत के सभी राजा-महाराजाओं को अपने अधीन कर मुगल साम्राज्य का ध्वज फहराना चाहता था। मेवाड़ की भूमि को मुगल आधिपत्य से बचाने हेतु महाराणा प्रताप ने प्रतिज्ञा की थी कि जब तक मेवाड़ आजाद नहीं होगा, मैं महलों को छोड़ जंगलों में निवास करूंगा, स्वादिष्ट भोजन को त्याग कंदमूल फलों से ही पेट भरूंगा किंतु अकबर का आधिपत्य कभी स्वीकार नहीं करुंगा।
हल्दीघाटी में अकबर के सेना के दांत खट्टे कर दिए थे
राजस्थान के कई परिवार अकबर की शक्ति के आगे घुटने टेक चुके थे, किन्तु महाराणा प्रताप ने आजीवन संघर्ष किया और अकबर के सामने आत्मसर्मपण नहीं किया। लंबे संघर्ष के बाद भी अपने से कई गुना शक्तिशाली अकबर की अधीनता स्वीकार नहीं की। 1576 में हल्दीघाटी में महाराणा प्रताप और अकबर के बीच ऐसा युद्ध हुआ जो पूरे विश्व के लिए आज भी एक मिसाल है। इस युद्ध में प्रताप ने अभूतपूर्व वीरता और मेवाड़ी साहस के चलते मुगल सेना के दांत खट्टे कर दिए और अकबर के सैकड़ों सैनिकों को मौत के घाट उतार दिया गया। मरने से पहले महाराणा ने खोया हुआ 85 % मेवाड़ फिर से जीत लिया था।
30 वर्ष के लगातार प्रयास के बाद भी अकबर बंदी न बना सका
महाराणा प्रताप का हल्दीघाटी के युद्ध के बाद का समय पहाड़ों और जंगलोंं में व्यतीत हुआ। अपनी पर्वतीय युद्ध नीति के द्वारा उन्होंने अकबर को कई बार मात दी। यद्यपि जंगलों और पहाड़ों में रहते हुए महाराणा प्रताप को अनेक प्रकार के कष्टों का सामना करना पङा, किंंतु उन्होंने अपने आदर्शों को नहीं छोड़ा। महाराणा प्रताप के मजबूत इरादों ने अकबर के सेनानायकों के सभी प्रयासों को नाकाम बना दिया। उनके धैर्य और साहस का ही असर था कि 30 वर्ष के लगातार प्रयास के बावजूद अकबर महाराणा प्रताप को बंदी न बना सका।
प्रजा के प्रहरी थे प्रताप
महाराणा प्रताप के पिता उदयसिंह को अपने छोटे बेटे जगमल से लगाव था। इस कारण मृत्यु के समय उदयसिंह ने उन्हीं को राजगद्दी दे दी। उदयसिंह का यह कार्य नीति के खिलाफ हुआ, क्योंकि राजगद्दी के हकदार महाराणा प्रताप थे। वे जगमल से बड़े थे। यह जहर फैलता गया। प्रजा प्रताप को ज्यादा मानती थी। प्रतापसिंह का दिल लुभा लेनेवाला, अपने को प्यारी प्रजा का सेवक समझना, देश और धर्म के नाम पर अपने सर्वस्व का त्याग जैसे अनेक सद्गुणों वाला था। जगमल को गद्दी मिलने पर सभी लोगों को निराशा हुई, लेकिन प्रताप के चेहरे पर शिकन भी न पड़ी।
भाई के एक आदेश के कारण प्रताप ने छोड़ी गद्दी
राज्य का शासन भार जगमल के हाथ में आते ही उसे सत्ता का घमंड हो गया। वह बेहद डरपोक और भोग-विलासी राजा था। प्रजा पर उसके द्वारा किए जा रहे अत्याचार देखकर प्रताप से न रहा गया। एक दिन वे जगमल के पास गये और समझाते हुए कहा कि क्या अत्याचार करके अपनी प्रजा को संतुष्ट करोगे? तुम्हें अपना स्वभाव बदलना चाहिए। समय बड़ा नाजुक है। अगर तुम नहीं सुधरे तो तुम्हारा और तुम्हारे राज्य का भविष्य खतरे में पड़ सकता है। उसने इसे अपनी राजसी शान के खिलाफ अपमान समझा। कड़ककर उसने कहा, ‘‘तुम मेरे बड़े भाई हो सही, परन्तु स्मरण रहे कि तुम्हें मुझे उपदेश देने का कोई अधिकार नहीं है। यहां का राजा होने के नाते मैं ये आदेश देता हूं कि तुम आज ही मेरे राज्य की सीमा से बाहर हो जाने का प्रबंध करो।’’
प्रताप के घोड़े (चेतक) ने बचाई उनकी जान
प्रताप चुपचाप वहां से चल दिये। प्रताप अपने अश्वागार में गये और घोड़े की जीन कसने की आज्ञा दी। महाराणा प्रताप के पास उनका सबसे प्रिय घोड़ा ‘चेतक’ था। हल्दी घाटी के युद्ध में बिना किसी सहायक के प्रताप अपने पराक्रमी चेतक पर सवार हो पहाड़ की ओर चल पड़ा। उसके पीछे दो मुग़ल सैनिक लगे हुए थे, परन्तु चेतक ने प्रताप को बचा लिया। राणा का घोडा चेतक महाराणा को 26 फीट का दरिया पार करने के बाद वीर गति को प्राप्त हुआ। उसकी एक टांग टूटने के बाद भी वो दरिया पर कर गया। परन्तु मुग़ल उसे पार न कर पाये। जहा वो घायल हुआ वहां आज खोड़ी इमली नाम का पेड़ है जहां मरा वहां मंदिर का निर्माण किया गया है।चेतक की बहादुरी की गाथाएं आज भी लोग सुनाते हैं।
8
घास-पात खाकर किया गुजारा
जंगल में घूमते-घूमते महाराणा प्रताप ने काफी दुख झेले, लेकिन पितृभक्ति की चाह में उन्होंने उफ तक नहीं किया। पैसे के अभाव में सेना के टूटते हुए मनोबल को पुनर्जीवित करने के लिए दानवीर भामाशाह ने अपना पूरा खजाना समर्पित कर दिया। तो भी महाराणा प्रताप ने कहा कि सैन्य आवश्यकताओं के अलावा मुझे आपके खजाने की एक पाई भी नहीं चाहिए। अकबर के अनुसार महाराणा प्रताप के पास साधन सीमित होने के बाद भी वो झुके नही, डरे नही। घास-पात की रोटियों में गुजर-बसर कर पत्नी व बच्चे को विकराल परिस्थितियों में अपने साथ रखते हुए भी उन्होंने कभी धैर्य नहीं खोया। कितने ही स्वतंत्रता सेनानी अपने प्रेरणा स्रोत महाराणा का अनुसरण कर स्वतंत्रता संग्राम की बलिवेदी पर हंसते-हंसते चढ़ गये।
उदारता ऐसी की दूसरों की पकड़ी गई बेगमों को सम्मान पूर्वक वापस भेजा
हल्दीघाटी के युद्ध में उन्होंने अकबर की सेना का डटकर मुकाबला ही नहीं किया बल्कि उसके सैनिकों के छक्के छुड़ा दिए थे। इतना ही नहीं महाराणा प्रताप ने भीलों की शक्ति को पहचान कर छापामार युद्ध पद्धति से अनेक बार मुगल सेना को कठिनाइयों में डाला था। महाराणा प्रताप अपने राज्य के लिए अंतिम सांस तक लड़े। अपने शौर्य, उदारता तथा अच्छे गुणों से जनसमुदाय में प्रिय थे। महाराणा प्रताप सच्चे क्षत्रिय योद्धा थे। उन्‍होंने अमरसिंह द्वारा पकड़ी गई बेगमों को सम्मान पूर्वक वापस भिजवाकर अपनी विशाल ह्रदय का परिचय दिया।
उनकी मृत्यु पर अकबर भी हुआ दुखी
अपने सीमित साधनों से ही अकबर जैसी शक्ति से दीर्घ काल तक टक्कर लेने वाले वीर महाराणा प्रताप की मृत्यु पर अकबर भी दुखी हुआ था। अकबर की उच्च महत्वाकांक्षा, शासन निपुणता और असीम साधन जैसी भावनाएं भी महाराणा प्रताप की वीरता और साहस को परास्त न कर सकी। आखिरकार शिकार के दौरान लगी चोटों की वजह से महारणा प्रताप 29 जनवरी 1597 को चावंड में वीरगति को प्राप्त कर गए।

Friday, May 22, 2015

महाराणा प्रताप

महाराणा प्रताप जी, जिन के विषय मे हम लोग बचपन से सुनते और पढ़ते आ रहे है आज सुबह से कई देशी और विदेशी विश्वविधालयों की Digital पुस्तकालयों से महाराणा प्रताप जी के विषय पर कई किताबे पढ़ने के बाद हम को कुछ अच्छी किताब मिली है जिस मे आप को उन के विषय मे कुछ नयी जानकारी मिलेगी उन किताबों को यहाँ पोस्ट कर रही हूँ लेकिन आपको उससे पहले एक एक सच्ची ऐतहासिक घटना बताती हु जिससे आप स्वय समझ जायेगे की हमारा सही इतिहास को जानना कितना आवश्यक हैं –
इस देश के कांग्रेसी और वामपंथी इतिहासकारों से अच्‍छे तो विदेशी इतिहासकार कर्नल जेम्‍स टाड हैं, जिनके कारण हमें मेवाड़ का वास्‍तविक इतिहास का पता चलता है। अकबर ने 10 वर्ष लगाकर मेवाड़ के जिन क्षेत्रों को विजित किया था, महाराणा प्रताप ने अपने पुत्र अमर सिंह के साथ मिलकर केवल एक वर्ष में न केवल उन क्षेत्रों को जीत लिया, बल्कि उससे कहीं अधिक क्षेत्र अपने राज्‍य में मिला लिया, जो उन्‍हें राज्‍यारोहण के वक्‍त मिला था।
जेम्‍स टाड लिखते हैं, ''एक बेहद कम समय के अभियान में महाराणा ने सारा मेवाड़ पुन: प्राप्‍त कर लिया, सिवाय चित्‍तौड़, अजमेर और मांडलगढ़ को छोड़कर। अकबर के सेनापति मानसिंह ने राणा प्रताप को चेतावनी दी थी कि तुम्‍हें 'संकट के दिन काटने पड़ेंगे'। महाराणा ने संकट के दिन काटे और जब वह वापस लौटे तो प्रतिउत्‍तर में और भी उत्‍साह से मानसिंह के ही राज्‍य आंबेर पर हमला कर दिया और उसकी मुख्‍य व्‍यापारिक मंडी मालपुरा को लूट लिया।''
'मेवाड़ के महाराणा और शहंशाह अकबर' पुस्‍तक के लेखक राजेंद्र शंकर भटट ने लिखा है, ''हल्‍दीघाटी के बाद प्रताप ने चांवड को मेवाड़ की नयी राजधानी बनायी और यहां बैठकर अपने सैनिक व शासन व्‍यवस्‍था को सुदृढ किया। प्रताप का पहला कर्त्‍तव्‍य मुगलों से अपने राज्‍य को मुक्‍त कराना था, लेकिन यह इतनी जल्‍दी नहीं हो सकता था। उन्‍होंने साल-डेढ साल तक जन-धन, आवश्‍यक साधन व संगठन का प्रबंध किया और मुगल साम्राज्‍य पर चढ़ाई कर दिया। अपने पुत्र अमर सिंह के नेतृत्‍व में उसने दो सेनाएं संगठित कीं और दोनों दिशाओं से मुगलों के अधिकृत क्षेत्र पर आक्रमण कर दिया। शाही थाने और चौकियां एक एक कर मेवाड़ी सैनिकों के कब्‍जे में तेजी से आते गए। अमरसिंह तो इतनी तीव्रता से बढ रहा था कि एक दिन में पांच मुगल थाने उसने जीत लिए। एक वर्ष के भीतर लगभग 36 थाने खाली करा लिए गए, मेवाड़ की राजधानियां उदयपुर तथा गोगूंदा, हल्‍दीघाटी का संरक्षण करने वाला मोही और दिवेर के पास की सीमा पर पडने वाला भदारिया आदि सब फिर से प्रताप के कब्‍जे में आ गए। उत्‍तर पूर्व में जहाजपुरा परगना तक की जगह और चितौड से पूर्व का पहाडी क्षेत्र भी मुगलों से खाली करवा लिया गया। सिर्फ चितौड तथा मांडलगढ और उनको अजमेर से जोडने वाला मार्ग ही मुगलों के हाथ में बचा, अन्‍यथा सारा मेवाड फिर से स्‍वतंत्र हो गया।''
वह लिखते हैं, ''जो सफलता अकबर ने इतना समय और साधन लगाकर प्राप्‍त की थी, जिस पर उसने अपनी और अपने प्रमुख सेनानियों की प्रतिष्‍ठा दाव पर लगा दी थी, उसे सिर्फ एक वर्ष में समाप्‍त कर प्रताप ने मित्र-शत्रु सबको आश्‍चर्य में डाल दिया।''
यहां यह जानने योग्‍य भी है कि अकबर ने जब चित्‍तौड को जीता था तब प्रताप के पिता महाराणा उदयसिंह मेवाड़ के राणा थे, न कि प्रताप। इस तरह से प्रताप ने अपने राज्‍यारोहण में प्राप्‍त भूमि से अधिक भूमि जीतकर अकबर को परास्‍त किया। प्रताप की इसी वीरता के कारण राजप्रशस्ति में 'रावल के समान पराक्रमी' कहा गया है।
मुझे आश्‍चर्य होता है कि अपनी मातृभूमि को मुगलों से बचा ले जाने वाला, अफगानिस्‍तान तक राज्‍य करने वाले अकबर को बुरी तरह से परास्‍त करने वाला महाराणा प्रताप आजादी के बाद कांग्रेसियों और वामपंथियों की लिखी पुस्‍तक में 'महान' और 'द ग्रेट' क्‍यों नहीं कहे गए। महाराणा प्रताप जैसों के वास्‍तविक इतिहास को दबाकर कांग्रेसी व वामपंथी इतिहासकारों ने यह तो दर्शा ही दिया है कि उन्‍होंने भारत का नहीं, बल्कि केवल शासकों का इतिहास लिखा है।
अगर आप महाराणा प्रताप जी का सही इतिहास पढ़ना चाहते हैं तो आप को किताब खरीदने की जरूरत नही है बस यही से download कर लो किताबो के नाम और लिंक -
1 – किताब का नाम - प्रताप चरितारत संक्षित चरित और विचारो का निदर्शन (हिन्दी)
लेखक – पंडित नंदकुमार देव शर्मा
Download और पढ़ने के लिए लिंक - https://archive.org/…/MaharanaPratapa-OnkaraNathaVajapeyii1…
2- किताब का नाम – वीर शिरोमणि महाराणा प्रताप (हिन्दी)
लेखक – रायबहादुर गौरीशंकर
Download और पढ़ने के लिए लिंक - https://archive.org/…/ViraShiromaniMaharanaPratapaSinha-Gsh…
3 – किताब का नाम – महाराणा प्रताप ऐतिहासिक नाटक (हिन्दी)
लेखक – श्री राधा कृष्णदास
Download और पढ़ने के लिए लिंक - https://archive.org/…/MaharanaPratapSingh-RadhaKrisnaDas192…
4- किताब का नाम – Maharana Pratap (English)
लेखक –Shri Ram Sharma
Download और पढ़ने के लिए लिंक - https://archive.org/…/…/MaharanaPratap-Eng-SriRamSharma1930…
5- किताब का नाम – Hindu Superiority (English)
लेखक – Har Bilas Sadar
Download और पढ़ने के लिए लिंक - http://vedickranti.in/download.php…
6 – किताब का नाम – वीरप्रतापनाटकम (संस्कृत)
लेखक – मथुरा प्रसाद दीक्षित
Download और पढ़ने के लिए लिंक - https://archive.org/…/VeerpratapaNatakam-Sanskrit-MpDikshit…
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Friday, December 5, 2014

महाराणा प्रताप /MAHARANA PRATAP

"महाराणा प्रताप जी के भाले का वजन 80 किलो था और कवच का वजन 80 किलो था और कवच भाला,कवच,ढाल,और हाथ मे तलवार का वजन मिलाये तो 207 किलो"

*आज भी महा राणा प्रताप जी कि तलवार कवच आदि सामान उदयपुर राज घराने के संग्रालय में सुरक्षित है
*अकबर ने कहा था कि अगर राणा प्रताप मेरे सामने झुकते है तो आदा हिंदुस्तान के वारिस वो होंगे पर बादशाहट अकबर कि रहेगी
*हल्दी घाटीकी लड़ाई में मेवाड़ से 20000 सैनिलथे और अकबर कि और से 85000 सैनिक

*राणाप्रताप जी के घोड़े चेतक का मंदिर भी बना जो आज हल्दी घटी में सुरक्षित है
*महाराणा ने जब महलो का त्याग किया तब उनके साथ लुहार जाति के हजारो लोगो ने भी घर छोड़ा और दिन रात राणा कि फोज के लिए तलवारे बनायीं इसी समाज को आज गुजरात मध्यप्रदेश और राजस्थान में गड़लिया लोहार कहा जाता है नमन है ऐसे लोगो को

हल्दी घाटी के युद्ध के 300 साल बाद भी वह जमीनो में तलवारे पायी गयी। … आखिरी बार तलवारों का जखीरा 1985 हल्दी घाटी के में मिला
*महाराणा प्रताप अस्त्र शत्र कि शिक्सा जैमल मेड़तिया ने दी थी जो 8000 राजपूतो को लेकर 60000 से लड़े थे। …. उस युद्ध में 48000 मारे गए थे जिनमे 8000 राजपूत और 40000 मुग़ल थे|

#जय _महाराणा_प्रताप"महाराणा प्रताप जी के भाले का वजन 80 किलो था और कवच का वजन 80 किलो था और कवच भाला,कवच,ढाल,और हाथ मे तलवार का वजन मिलाये तो 207 किलो"
*आज भी महा राणा प्रताप जी कि तलवार कवच आदि सामान उदयपुर राज घराने के संग्रालय में सुरक्षित है
*अकबर ने कहा था कि अगर राणा प्रताप मेरे सामने झुकते है तो आदा हिंदुस्तान के वारिस वो होंगे पर बादशाहट अकबर कि रहेगी
*हल्दी घाटीकी लड़ाई में मेवाड़ से 20000 सैनिलथे और अकबर कि और से 85000 सैनिक
...
*राणाप्रताप जी के घोड़े चेतक का मंदिर भी बना जो आज हल्दी घटी में सुरक्षित है
*महाराणा ने जब महलो का त्याग किया तब उनके साथ लुहार जाति के हजारो लोगो ने भी घर छोड़ा और दिन रात राणा कि फोज के लिए तलवारे बनायीं इसी समाज को आज गुजरात मध्यप्रदेश और राजस्थान में गड़लिया लोहार कहा जाता है नमन है ऐसे लोगो को
हल्दी घाटी के युद्ध के 300 साल बाद भी वह जमीनो में तलवारे पायी गयी। … आखिरी बार तलवारों का जखीरा 1985 हल्दी घाटी के में मिला
*महाराणा प्रताप अस्त्र शत्र कि शिक्सा जैमल मेड़तिया ने दी थी जो 8000 राजपूतो को लेकर 60000 से लड़े थे। …. उस युद्ध में 48000 मारे गए थे जिनमे 8000 राजपूत और 40000 मुग़ल थे|
 

Wednesday, September 24, 2014

हिन्दू देश ,महाराणा प्रताप ,

Photo: कितने बलिदानों की वजह से आज भी यह देश हिन्दू है , इन बलिदानों को कभी ना भूलें 
1. चित्तौड़ के जयमाल मेड़तिया ने एक ही झटके में हाथी का सिर काट
डाला था । 2. करौली के जादोन राजा अपने सिंहासन पर बैठते वक़्त अपने दोनो हाथ
जिन्दा शेरों पर रखते थे । 3. जोधपुर के जसवंत सिंह के 12 साल के पुत्र पृथ्वी सिंह ने हाथोँसे
औरंगजेब के खूंखार भूखे जंगली शेर का जबड़ा फाड़ डाला था । 4. राणा सांगा के शरीर पर युद्धोंके छोटे-बड़े 80 घाव थे। युद्धों में घायल
होने के कारण उनके एक हाथ नहीं था, एक पैर नही था, एक आँख नहीं थी।
उन्होंने अपने जीवन-काल में 100 से भी अधिक युद्ध लड़े थे । 5. एक राजपूत वीर जुंझार जो मुगलों से लड़ते वक्त शीश कटने के बाद
भी घंटे तक लड़ते रहे आज उनका सिर बाड़मेर में है, जहाँ छोटा मंदिर हैं और
धड़ पाकिस्तान में है। 6. रायमलोत कल्ला का धड़, शीश कटने के बाद लड़ता-लड़ता घोड़े पर
पत्नी रानी के पास पहुंच गया था तब रानी ने गंगाजल के छींटे डाले तब धड़
शांत हुआ। 7. चित्तौड़ में अकबर से हुए युद्ध में जयमाल राठौड़ पैर जख्मी होने
की वजह से कल्ला जी के कंधे पर बैठ कर युद्ध लड़े थे। ये देखकर
सभी युद्ध-रत साथियों को चतुर्भुज भगवान की याद आ गयी थी, जंग में
दोनों के सर काटने के बाद भी धड़ लड़ते रहे और राजपूतों की फौज ने
दुश्मन को मार गिराया। अंत में अकबर ने उनकी वीरता से प्रभावित हो कर
जयमाल और कल्ला जी की मूर्तियाँ आगरा के किले में लगवायी थी। 8. राजस्थान पाली में आउवा के ठाकुर खुशाल सिंह 1877 में अजमेर
जा कर अंग्रेज अफसर का सर काट कर ले आये थे और उसका सर अपने
किले के बाहर लटकाया था, तब से आज दिन तक उनकी याद में
मेला लगता है।
9. महाराणा प्रताप के भाले का वजन सवा मन (लगभग 50 किलो ) था,
कवच का वजन 80 किलो था। कवच, भाला, ढाल और हाथ में तलवार का वजन मिलाये तो लगभग 200 किलो था। उन्होंने तलवार के एक ही वार
से बख्तावर खलजी को टोपे, कवच, घोड़े सहित एक ही झटके में काट
दिया था। 10. सलूम्बर के नवविवाहित रावत रतन सिंह चुण्डावत जी ने युद्ध जाते
समय मोह-वश अपनी पत्नी हाड़ा रानी की कोई निशानी मांगी तो रानी ने
सोचा ठाकुर युद्ध में मेरे मोह के कारण नही लड़ेंगे तब रानी ने निशानी के
तौर पर अपना सर काट के दे दिया था। अपनी पत्नी का कटा शीश गले में
लटका कर मुग़ल सेना के साथ भयंकर युद्ध किया और वीरता पूर्वक लड़ते
हुए अपनी मातृ भूमि के लिए शहीद हो गये थे। 11. हल्दी घाटी की लड़ाई में मेवाड़ से 20000 सैनिक थे और अकबर
की ओर से 85000 सैनिक थे। फिर भी अकबर की मुगल सेना पर राजपूत
भारी पड़े थे। धन्य थे वो हिन्दुस्तान के वीर
और 21वीं सदी के महान साहसी शेर सिंह राना जी के साहसिक कार्य
तो आप जानते ही हैं। हमें अपने हिंदू और आर्य होने पर गर्व है ॥॥ जय श्री राम ॥॥कितने बलिदानों की वजह से आज भी यह देश हिन्दू है , इन बलिदानों को कभी ना भूलें
1. चित्तौड़ के जयमाल मेड़तिया ने एक ही झटके में हाथी का सिर काट
डाला था । 2. करौली के जादोन राजा अपने सिंहासन पर बैठते वक़्त अपने दोनो हाथ
जिन्दा शेरों पर रखते थ...े । 3. जोधपुर के जसवंत सिंह के 12 साल के पुत्र पृथ्वी सिंह ने हाथोँसे
औरंगजेब के खूंखार भूखे जंगली शेर का जबड़ा फाड़ डाला था । 4. राणा सांगा के शरीर पर युद्धोंके छोटे-बड़े 80 घाव थे। युद्धों में घायल
होने के कारण उनके एक हाथ नहीं था, एक पैर नही था, एक आँख नहीं थी।
उन्होंने अपने जीवन-काल में 100 से भी अधिक युद्ध लड़े थे । 5. एक राजपूत वीर जुंझार जो मुगलों से लड़ते वक्त शीश कटने के बाद
भी घंटे तक लड़ते रहे आज उनका सिर बाड़मेर में है, जहाँ छोटा मंदिर हैं और
धड़ पाकिस्तान में है। 6. रायमलोत कल्ला का धड़, शीश कटने के बाद लड़ता-लड़ता घोड़े पर
पत्नी रानी के पास पहुंच गया था तब रानी ने गंगाजल के छींटे डाले तब धड़
शांत हुआ। 7. चित्तौड़ में अकबर से हुए युद्ध में जयमाल राठौड़ पैर जख्मी होने
की वजह से कल्ला जी के कंधे पर बैठ कर युद्ध लड़े थे। ये देखकर
सभी युद्ध-रत साथियों को चतुर्भुज भगवान की याद आ गयी थी, जंग में
दोनों के सर काटने के बाद भी धड़ लड़ते रहे और राजपूतों की फौज ने
दुश्मन को मार गिराया। अंत में अकबर ने उनकी वीरता से प्रभावित हो कर
जयमाल और कल्ला जी की मूर्तियाँ आगरा के किले में लगवायी थी। 8. राजस्थान पाली में आउवा के ठाकुर खुशाल सिंह 1877 में अजमेर
जा कर अंग्रेज अफसर का सर काट कर ले आये थे और उसका सर अपने
किले के बाहर लटकाया था, तब से आज दिन तक उनकी याद में
मेला लगता है।

 9. महाराणा प्रताप के भाले का वजन सवा मन (लगभग 50 किलो ) था,
कवच का वजन 80 किलो था। कवच, भाला, ढाल और हाथ में तलवार का वजन मिलाये तो लगभग 200 किलो था। उन्होंने तलवार के एक ही वार
से बख्तावर खलजी को टोपे, कवच, घोड़े सहित एक ही झटके में काट
दिया था। 10. सलूम्बर के नवविवाहित रावत रतन सिंह चुण्डावत जी ने युद्ध जाते
समय मोह-वश अपनी पत्नी हाड़ा रानी की कोई निशानी मांगी तो रानी ने
सोचा ठाकुर युद्ध में मेरे मोह के कारण नही लड़ेंगे तब रानी ने निशानी के
तौर पर अपना सर काट के दे दिया था। अपनी पत्नी का कटा शीश गले में
लटका कर मुग़ल सेना के साथ भयंकर युद्ध किया और वीरता पूर्वक लड़ते
हुए अपनी मातृ भूमि के लिए शहीद हो गये थे। 11. हल्दी घाटी की लड़ाई में मेवाड़ से 20000 सैनिक थे और अकबर
की ओर से 85000 सैनिक थे। फिर भी अकबर की मुगल सेना पर राजपूत
भारी पड़े थे। धन्य थे वो हिन्दुस्तान के वीर
और 21वीं सदी के महान साहसी शेर सिंह राना जी के साहसिक कार्य
तो आप जानते ही हैं। हमें अपने हिंदू और आर्य होने पर गर्व है ॥॥ जय श्री राम ॥॥