--राजपूती आन बान शान के प्रतीक अमर सिंह राठौड़---
इन्होंने आगरा के किले में बादशाह शाहजहाँ के साले सलावत खान का भरे दरबार में सर काट लिया था क्योंकि सलावत खान ने उन्हें अपशब्द कहे थे।
अर्जुन गौड़ ने उन्हें धोखे से मार दिया।तब उनके शव को किले से वापस लाने का काम किया वीर बल्लू चम्पावत राठौड़ ने।जिन्होंने आगरा किले से अमर सिंह का शव लेकर किले की ऊँची दिवार से अपना घोडा कुदाया था।
शूरवीर अमर सिंह राठौड़(11 दिसम्बर 1613 - 25 जुलाई 1644 )का संक्षिप्त परिचय---
मारवाड़ जोधपुर के राजा गजसिंह की रानी मनसुखदे सोनगरा की कोख से सम्वत 1670(11 दिसम्बर 1613) को अमर सिंह राठौड़ का जन्म हुआ था।ये बचपन से ही बहुत वीर और स्वतंत्र प्रकृति के थे।इनकी प्रवर्ति से इनके पिता भी इनसे सशंकित हो गए और उन्होंने अमरसिंह की बजाय जसवंत सिंह को जोधपुर का युवराज बना दिया।इससे रुष्ट होकर अमर सिंह राठौड़ अपने स्वामिभक्त साथियों सहित जोधपुर छोडकर चले गए।उनकी वीरता और शौर्य से स्वयम बादशाह भी परिचित थे इसलिए उन्होंने आग्रह कर अमर सिंह राठौड़ को आगरा बुलाया और उन्हें मनसब दिया।
अमर सिंह राठौड़ को नागौर का राव बनाकर पृथक राज्य की मान्यता दे दी गई और उन्हें बडौद,झालान,सांगन आदि परगनों की जागीरे भी दी गई।धीरे धीरे अमर सिंह की कीर्ति पुरे देश में फैलने लगी और उनके पुरुषार्थ रणकौशल और वीरता से बादशाह भी बहुत प्रभावित था।किन्तु शाही दरबार में उनके शत्रुओं की संख्या बढ़ती चली गई।
बादशाह के साले सलावत खान का भरे दरबार में वध----
बादशाह के साले सलावत खान बख्शी का लड़का एक विवाद में अमर सिंह के हाथो मारा गया था इसलिये वो अमर सिंह से बदला लेने की फ़िराक में था।
जोधा केसरीसिंह जो कल्ला रायमलौत के पोते थे वो
शाही सेवा छोड़कर अमर सिंह की सेवा में चले गए और अमर सिंह ने उन्हें नागौर की जिम्मेदारी और एक जागीर दे दी जिससे बादशाह भी अमर सिंह से रुष्ट हो गया।
उसी समय एक तरबूज की बेल के छोटे से मामले में नागौर और बीकानेर राज्य में संघर्ष हो गया जिसमें बादशाह ने बीकानेर का पक्ष लिया और अमरसिंह से यमुना तट पर वनो की हाथियों की चराई का कर भी मांग लिया जिससे तनाव बढ़ गया।इन सब घटनाओ के पीछे उसी सलावत खान बक्शी का हाथ था जो लगातार बादशाह के कान भर रहा था।
अब स्वतंत्र विचारो के स्वाभिमानी यौद्धा अमर सिंह ने बादशाह का मनसब छोड़कर नागौर लौटने का मन बना लिया और बादशाह शाहजहाँ से मिलने का समय मांगा।पर बादशाह के साले सलावत खान ने मुलाकात नही होने दी।
विक्रम संवत 1701 की श्रावण सुदी 2 तिथि
(25जुलाई 1644) में अमरसिंह राठौड़ और सलावत खान में भरे दरबार में वाद विवाद हो गया और सलावत खान ने अमर सिंह को गंवार बोल दिया।इतना सुनते ही अमर सिंह राठौड़ से रहा नही गया और उन्होंने कटार निकालकर सीधे सलावत खान के पेट में घुसा दी जिससे उस दुष्ट के वहीँ प्राण निकल गए।
यह दृश्य देखकर पूरे दरबार में हड़कम्प मच गया और सभी दरबारी भाग खड़े हुए।खुद बादशाह शाहजहाँ और शहजादा दारा भी भागकर ऊपर चढ़ गए और वहीँ से उन्होंने अमर सिंह को घेर लेने का हुक्म सुना दिया।किन्तु अमर सिंह ने अकेले लड़ते हुए कई सैनिको का काम तमाम कर दिया।
फिर अर्जुन गौड़ ने धोखे से अमर सिंह पर वार किया जिससे वो गिर गए और शाही सैनिक उनपर टूट पड़े।इस संघर्ष में अर्जुन गौड़ के साथी जगन्नाथ मेड़तिया भी अमर सिंह के पक्ष में रहे।इस प्रकार अकेला लड़ता हुआ ये वीर यौद्धा वहीँ मारा गया।किले के दरवाजे पर खड़े अमर सिंह के 20 सैनिको को भी जब उनकी मृत्यु की जानकारी मिली तो उन्होंने भी तलवारे निकालकर वहीँ मुगलो से संघर्ष किया और अमर सिंह के शव को प्राप्त करने के लिए सैंकड़ो मुगलो को मारकर खुद वीरगति को प्राप्त हो गए।
बाद में ये जानकारी बल्लू चम्पावत राठौड़ को दी गयी तो उन्होंने वीरतापूर्वक अमर सिंह शव वापस लेकर आए।जिसके बाद उनकी रानियां सती हो गयी।
(बल्लू चम्पावत की वीरता पर अलग से पोस्ट की जाएगी)।
अमर सिंह राठौड़ की जयंती हर साल नागौर में समारोहपूर्वक मनाई जाती है जिसमे वीर बल्लू चम्पावत को भी श्रधान्जली अर्पित की जाती है।
राजपूती आन बान शान स्वाभिमान के प्रतीक
वीर अमर सिंह और बल्लू चम्पावत राठौड़ को शत शत नमन।
संदर्भ--
1-राजपूतो की वंशावली व् इतिहास महागाथा पृष्ठ संख्या 131-135(ठाकुर त्रिलोक सिंह धाकरे)
2-क्षत्रिय राजवंश पृष्ठ संख्या 125
— इन्होंने आगरा के किले में बादशाह शाहजहाँ के साले सलावत खान का भरे दरबार में सर काट लिया था क्योंकि सलावत खान ने उन्हें अपशब्द कहे थे।
अर्जुन गौड़ ने उन्हें धोखे से मार दिया।तब उनके शव को किले से वापस लाने का काम किया वीर बल्लू चम्पावत राठौड़ ने।जिन्होंने आगरा किले से अमर सिंह का शव लेकर किले की ऊँची दिवार से अपना घोडा कुदाया था।
शूरवीर अमर सिंह राठौड़(11 दिसम्बर 1613 - 25 जुलाई 1644 )का संक्षिप्त परिचय---
मारवाड़ जोधपुर के राजा गजसिंह की रानी मनसुखदे सोनगरा की कोख से सम्वत 1670(11 दिसम्बर 1613) को अमर सिंह राठौड़ का जन्म हुआ था।ये बचपन से ही बहुत वीर और स्वतंत्र प्रकृति के थे।इनकी प्रवर्ति से इनके पिता भी इनसे सशंकित हो गए और उन्होंने अमरसिंह की बजाय जसवंत सिंह को जोधपुर का युवराज बना दिया।इससे रुष्ट होकर अमर सिंह राठौड़ अपने स्वामिभक्त साथियों सहित जोधपुर छोडकर चले गए।उनकी वीरता और शौर्य से स्वयम बादशाह भी परिचित थे इसलिए उन्होंने आग्रह कर अमर सिंह राठौड़ को आगरा बुलाया और उन्हें मनसब दिया।

अमर सिंह राठौड़ को नागौर का राव बनाकर पृथक राज्य की मान्यता दे दी गई और उन्हें बडौद,झालान,सांगन आदि परगनों की जागीरे भी दी गई।धीरे धीरे अमर सिंह की कीर्ति पुरे देश में फैलने लगी और उनके पुरुषार्थ रणकौशल और वीरता से बादशाह भी बहुत प्रभावित था।किन्तु शाही दरबार में उनके शत्रुओं की संख्या बढ़ती चली गई।
बादशाह के साले सलावत खान का भरे दरबार में वध----
बादशाह के साले सलावत खान बख्शी का लड़का एक विवाद में अमर सिंह के हाथो मारा गया था इसलिये वो अमर सिंह से बदला लेने की फ़िराक में था।
जोधा केसरीसिंह जो कल्ला रायमलौत के पोते थे वो
शाही सेवा छोड़कर अमर सिंह की सेवा में चले गए और अमर सिंह ने उन्हें नागौर की जिम्मेदारी और एक जागीर दे दी जिससे बादशाह भी अमर सिंह से रुष्ट हो गया।
उसी समय एक तरबूज की बेल के छोटे से मामले में नागौर और बीकानेर राज्य में संघर्ष हो गया जिसमें बादशाह ने बीकानेर का पक्ष लिया और अमरसिंह से यमुना तट पर वनो की हाथियों की चराई का कर भी मांग लिया जिससे तनाव बढ़ गया।इन सब घटनाओ के पीछे उसी सलावत खान बक्शी का हाथ था जो लगातार बादशाह के कान भर रहा था।
अब स्वतंत्र विचारो के स्वाभिमानी यौद्धा अमर सिंह ने बादशाह का मनसब छोड़कर नागौर लौटने का मन बना लिया और बादशाह शाहजहाँ से मिलने का समय मांगा।पर बादशाह के साले सलावत खान ने मुलाकात नही होने दी।
विक्रम संवत 1701 की श्रावण सुदी 2 तिथि
(25जुलाई 1644) में अमरसिंह राठौड़ और सलावत खान में भरे दरबार में वाद विवाद हो गया और सलावत खान ने अमर सिंह को गंवार बोल दिया।इतना सुनते ही अमर सिंह राठौड़ से रहा नही गया और उन्होंने कटार निकालकर सीधे सलावत खान के पेट में घुसा दी जिससे उस दुष्ट के वहीँ प्राण निकल गए।
यह दृश्य देखकर पूरे दरबार में हड़कम्प मच गया और सभी दरबारी भाग खड़े हुए।खुद बादशाह शाहजहाँ और शहजादा दारा भी भागकर ऊपर चढ़ गए और वहीँ से उन्होंने अमर सिंह को घेर लेने का हुक्म सुना दिया।किन्तु अमर सिंह ने अकेले लड़ते हुए कई सैनिको का काम तमाम कर दिया।
फिर अर्जुन गौड़ ने धोखे से अमर सिंह पर वार किया जिससे वो गिर गए और शाही सैनिक उनपर टूट पड़े।इस संघर्ष में अर्जुन गौड़ के साथी जगन्नाथ मेड़तिया भी अमर सिंह के पक्ष में रहे।इस प्रकार अकेला लड़ता हुआ ये वीर यौद्धा वहीँ मारा गया।किले के दरवाजे पर खड़े अमर सिंह के 20 सैनिको को भी जब उनकी मृत्यु की जानकारी मिली तो उन्होंने भी तलवारे निकालकर वहीँ मुगलो से संघर्ष किया और अमर सिंह के शव को प्राप्त करने के लिए सैंकड़ो मुगलो को मारकर खुद वीरगति को प्राप्त हो गए।
बाद में ये जानकारी बल्लू चम्पावत राठौड़ को दी गयी तो उन्होंने वीरतापूर्वक अमर सिंह शव वापस लेकर आए।जिसके बाद उनकी रानियां सती हो गयी।
(बल्लू चम्पावत की वीरता पर अलग से पोस्ट की जाएगी)।
अमर सिंह राठौड़ की जयंती हर साल नागौर में समारोहपूर्वक मनाई जाती है जिसमे वीर बल्लू चम्पावत को भी श्रधान्जली अर्पित की जाती है।
राजपूती आन बान शान स्वाभिमान के प्रतीक
वीर अमर सिंह और बल्लू चम्पावत राठौड़ को शत शत नमन।
संदर्भ--
1-राजपूतो की वंशावली व् इतिहास महागाथा पृष्ठ संख्या 131-135(ठाकुर त्रिलोक सिंह धाकरे)
2-क्षत्रिय राजवंश पृष्ठ संख्या 125