Monday, September 5, 2016

Dharm, Dharm nirpeksha,sarva dharm sambhav

संसार में कोई भी नीच से नीच मनुष्य भी धर्म-निरपेक्ष हो ही नहीं सकता, क्योंकि कोई भी मनुष्य मानवीय गुणों से हीं नहीं है l

धर्म यानी धारण करने योग्य मानवीय गुण जिसके मुख्य लक्ष्ण होते हैं …
1. धैर्य
2. क्षमा
3. मन पर काबू
4. चोरी न करना
5. मन व् शरीर की पवित्रता
6. इन्द्रियों पर नियन्त्रण रखना
7. बुद्धि को स्वाध्याय सत्संग से बढ़ाना
8. विद्वान होना व् ज्ञान को स्वाध्याय सत्संग से बढ़ाना
9. सत्य बोलना
10. क्रोध न करना
11. अहिंसा पर कायरता नहीं
12. परोपकार
13. मोक्ष प्राप्त करने हेतु सत कर्म करना
14. मानवता यानी चरित्रवान होना
15. दया

बहन, भाई, पिता, पुत्री, माँ, बेटा एक कमरे में सोये हैं, वे कुकर्म नही करते, इसके पीछे कौन है जो कुकर्म से रोक रहा है ?

पडोसी के घर में कोई नहीं है और आप उसके घर में चोरी नहीं करते, कौन है जो आपको रोक रहा है ? इस कुकर्म से …
उत्तर है ..धर्म

इन लक्षणों के बिना क्या किसी को इंसान या मानव मनुष्य कह सकते हैं ?
जिससे इन गुणों की अपेक्षा न की जा सके उसे धर्म निरपेक्ष कह सकते हैं … पशुओं में भी इनमे से कुछ गुण होते हैं l
धर्म निरपेक्ष तो पशु से गिरे हुए को कहते हैं l अगर कोई नेता आपको पागल बनाये की धर्म-निरपेक्ष का अर्थ सर्व धर्म सामान होता है तो फिर धर्म निरपेक्ष न कह कर सर्व धर्म समभाव ही कहना चाहिए l

धर्म निरपेक्ष तो सबसे बड़ी गाली है शायद सबसे भयंकर गाली है,
सारे नेता, जज, सरकारी अधिकारी, MP – MLA – Mayor आदि सब धर्म निरपेक्ष होने ही शोथ लेते हैं तथा चुनाव का नामांकन पात्र भरते हैं l
यह असहनीय है ,,, इसकी चर्चा करें .. प्रचार करें तथा यथासम्भव विरोध करें l
देश के प्रति कर्तव्य निभाएं … भारत भूमि पुन्य भूमि है, ऋषि भूमि है, देव भूमि है … वेद (ज्ञान) भूमि है … यह कदापि धर्म निरपेक्ष देश नहीं है l

भारत माता को धर्म निरपेक्ष घोषित करने का पाप अज्ञानी कांग्रेस ने किया था और आज सभी कर रहे हैं l

धर्म – निरपेक्ष का अर्थ होता है धर्म विरुद्ध, धर्म – विहीन यानी मानवताहीन अर्थात जिससे धर्म की अपेक्षा न की जा सके … जो धर्म के प्रति निरपेक्ष हो l

और अब बात करते हैं सर्व धर्म समान की …

सब धातुओं के गहने सामान नहीं होते. सोने की कीमत अलग होती है और अलुमिनियम, चांदी, पीतल लोहे आदि की कीमत अलग होती है l
सब सरकारी नौकर सामान नहीं होते … चपरासी, क्लर्क, कलेक्टर और मंत्रियों को अलग अलग श्रेणी के नौकर माने जाते हैं l सब राजनितिक पार्टियां सामान हैं … ऐसा कोई कहे तो .. राजनेता नाराज हो जायेंगे l अपनी पार्टी को श्रेष्ठ और अन्य पार्टियों को कनिष्ठ बताते हैं …. पर धर्म के विषय में सब धर्म सामान कहने में उनको लज्जा नही आती l
वास्तव में जैसे विज्ञान के जगत में किसी एक वैज्ञानिक की बात तब तक सच्ची नहीं मानी जाती जब तक की उसे सम्पूर्ण विश्व के वैज्ञानिक तर्क-संगत और प्रायोगिक स्टार पर सच्ची नहीं मानते l ऐसे ही धर्म के विषय पर भी किसी एक व्यक्ति के कहने से उसकी बात सच्ची नहीं मान सकते l क्योंकि उसमे अपने धर्म के प्रति राग और अन्य धर्मो के प्रति द्वेष होने की सम्भावना है l सनातन धर्म के सिवा अन्य धर्म अपने धर्म को ही सच्चा मानते हैं, दुसरे धर्मो की निंदा करते हैं l केवल सनातन धर्म ही अन्य धर्मों के प्रति उदारता और सहिष्णुता का भाव सिखाता है l इसका अर्थ यह कदापि नहीं हो सकता की सब धर्म समान हैं l

गंगा का जल और ये तालाबों, कुएं या नाली का पानी समान कैसे हो सकता है l
यदि समस्त विश्व के सभी धर्मो को मानने वाले सभी धर्मों का अध्ययन करके तटस्थ अभिप्राय बताने वाले विद्वानों ने किसी धर्म को तर्क संगत और श्रेष्ठ घोषित किया हो तो उसकी महानता को सबको स्वीकार करना पड़ेगा l सम्पूर्ण विश्व में यदि किसी धर्म को ऐसी व्यापक प्रशस्ति प्राप्त हुई है तो वह है … सनातन धर्म l
जितनी व्यापक प्रशस्ति सनातन धर्म को मिली है उतनी ही व्यापक आलोचना ईसाईयत और इस्लाम की अंतर्राष्ट्रीय विद्वानों और फिलास्फिस्तों ने की है ….

सनातन धर्म की महिमा और सच्चाई को भारत के संत और महापुरुष तो सदियों से सैद्धांतिक और प्रायोगिक प्रमाणों के द्वारा प्रकट करते आये हैं, फिर भी पाश्चात्य विद्वानों से प्रमाणित होने पर ही किसी की बात को स्वीकार करने वाले पाश्चात्य बोद्धिकों के गुलाम ऐसे भारतीय बुद्धिजीवी लोग इस लेख को पढ़कर भी सनातन धर्म की श्रेष्ठता को स्वीअक्र करेंगे तो हमे प्रसन्नता होगी और यदि वो सनातन धर्म के महान ग्रन्थों का अध्ययन करेंगे तो उनको इसकी श्रेष्ठता के अनेक सैद्धांतिक प्रमाण मिलेंगे और किसी अनुभवी पुरुष के मार्गदर्शन में साधना करेंगे तो उनको इसके सत्य के प्रायोगिक प्रमाण भी मिलेंगे l आशा है सनातन धर्मावलम्बी इस लेख को पढने के बाद स्वयम को सनातन धर्मी कहलाने पर गर्व का अनुभव करेंगे l निम्नलिखित विश्व-प्रसिद्ध विद्वानों के वचन सर्व-धर्म सामान कहने वालों के मूंह पर करारे तमाचे मारते हैं और सनातन धर्म की महत्ता प्रतिपादित करते हैं … जैसे चपरासी, सचिव, कलेक्टर आदि सब अधिकारी समान नहीं होते .. गंगा यमुना गोदावरी कावेरी आदि नदियों का जल .. और कुएं तथा नाली का जल सामान नहीं होता ऐसे ही सब धर्म समान नहीं होते …. सबके प्रति स्नेह सदभाव रखना भारत वर्ष की विशेषता है लेकिन सर्व-धर्म सामान का भाषण करने वाले भोले भले भारत वासियों के दिलो दिमाग में तुष्टिकरण की कूटनीतिक शिक्षा-निति के और विदेशी गुलामी के संस्कार भरते हैं l

सर्वधर्म सामान कह कर अपनी ही संस्कृति का गला घोंटने के अपराध से उन सज्जनों को ये लेख बचाएगा आप स्वयं पढ़ें और औरों तक यह पहुँचाने की पावन सेवा करें l
Manisha Singh 

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