Sunday, July 24, 2016

सोलंकी राजवंश (चालुक्य वंश)

११४२ से ११७२ तक राज्य करने वाले विश्वेश्वर कुमारपाल सोलंकी ने मध्य एशिया तक विजय प्राप्त की थी और भारत के शक्तिशाली सम्राट बने ।
कुमारपाल सोलंकी जयसिंह सिद्धराज के उत्तराधिकारी बने । कुमारपाल रजा रामपाल के पुत्र थे । यह राजवंश चालुक्य वंशी राजाओं की सोलंकी जाती से सम्बन्ध रखते थे तथा इनके राज्य की राजधानी राष्ट्रकूटा (गुजरात) के अंहिलवाडा (आधुनिक कलइ सिद्धपुर पाटन) में थी । कुमारपाल सोलंकी पाटन की गद्दी पर आसीन हुआ। विरावल के प्रसिद्ध सोमनाथ मंदिर का जीर्णोद्धार किये थे । कुमारपाल सोलंकी ने जिन मंदिरों का निर्माण किया उनमे गुजरात का तरंगा मंदिर , भगवन शांतिनाथ का मंदिर तथा श्री तलज मंदिर प्रसिद्ध हैं । राजा कुमारपाल बहुत शक्तिशाली निकला,उसने बग़दादी के खलीफाओं को एवं अरबों , तुर्क के सुल्तान किलिज् अर्सलन द्वितीय को धूल चटा दिया था।

कुछ युद्धों का वर्णन मिला हैं कुमारपाल चरित से जिसकी मैं यहाँ वर्णन करुँगी जो भारतीय इतिहास में जिनका उल्लेख कहीं नहीं मिलता हैं , हमारे भारतीय संस्कृति और भगवा के रक्षको को इतिहास के पन्नों से गायब कर दिया गया। मेरी कोशिस हैं आनेवाली पीढ़ी अपने आपको ग़ुलाम न समझे । और हमारे महान राजाओ की तरह देश धर्म की रक्षक बने।
कुमारपाल सोलंकी के साथ प्रथम युद्ध-:
बग़दादी खलीफा अल-मुक्ताफि सन ११४३ भारत के पश्चिमी प्रांत को रौंध ने का सपना देख कर आक्रमण किया भारत के विश्वेश्वर महाराज कुमारपाल सोलंकी भारत के पश्चिमी प्रान्त के रक्षा कवच बने खड़े थे उन्होंने बगदादी खलीफाओं के लूटेरी सेना को गाजर मूली की तरह काट दिया बगदादी खलीफा दोबारा आँख उठाने की भी हिम्मत नहीं जुटा पाया था । बगदादी खलीफा को बंदी बनानेवाला पहले राजपूत योद्धा थे इतिहास के । सम्राट कुमारपाल ने बगदादी का जिह्वा काट दिया था , ऐसा करने की वजह यह थी जिससे यातनाएँ याद रहे और दोबारा भारत पर आक्रमण करने के बारे में दोबारा सोच भी न सके।
दूसरा युद्ध राष्ट्रकूटा में:
अल-मुस्तांजिद ११६१ में हमला किया यह चेंगिज खान , तैमूर लंग से भी भयंकर क्रुर था जिस भी राज्य में जाता था उस रजा के रानियों को अपने हरम में ले कर रखना और उनसे वैश्यावृत्ति करवाते थे अल-मुस्तांजिद राष्ट्रकूटा पर आक्रमण किया जो अभी की गुजरात हैं राजपूत सोलंकी , चालुक्य के समय राष्ट्रकूटा कहा जाता था अल-मुस्तांजिद की सैन्यबल लाखों की संख्या से अधिक थी कुमारपाल सोलंकी राष्ट्रकूटा के जननायक और हिन्दुओं के रक्षक और खलीफाओं के काल बन थे अल-मुस्तांजिद के लाखों की सेना विश्वेस्वर सोलंकी के सैन्यबल और रणनीति के सामने धराशायी होगया बगदादिओं ने अपनी जान बचाकर भागना उचित समझा। अल-मुस्तांजिद को कैद कर लिया गया उनकी रिहाई के लिए हर्जाने के तौर पर ५लाख दीनार वसूला गया।
तीसरा युद्ध-:
हस्सन-अल-मुस्तादि ११७२ अब्बासिद् ख़लीफ़ा थे जिन्होंने अपना साम्राज्य विस्तार काइरो तक किया था दिग्विजय सम्राट कुमारपाल सोलंकी ने लगातार तीसरी बार खलीफा को हराया और उनकी आधा राज्य मांग लिया काइरो में आज भी कुमारपाल सोलंकी की जारी किया हुआ मुद्रा काइरो प्राचीन मुद्रा लेख में मिलता हैं (Cairo Ancient Coin Inscription) में मिलता हैं जिससे अनुमान लगा सकते हैं दिग्विजय महाराज कुमारपाल सोलंकी ने काइरो तक अपना साम्राज्य विस्तार किया था।
हस्सन-अल-मुस्तादि , ईबन-अल-मुस्तांजिद यह मुहम्मद की पीढ़ियां हैं जो अब्बासिद् साम्राज्य के खलीफ़ा बने थे इन्होंने बेबीलोनिया , अर्मेनिआ और यूरोप के अधिकतर राज्य को इस्लाम की परचम को अपने तलवार के बल पर फैलाया था भारत विजय का सपना सपना रह गया था , सम्राट कुमारपाल सोलंकी सनातन धर्म रक्षक बन कर खलीफाओं को खदेड़ता रहा भारत की पावन भूमि पर मलेच्छ अधर्मियों का परचम लहराने का दुःसाहस नहीं किये कुमारपाल सोलंकी की सीमा सुरक्षा नीति की वजह से कुमारपाल सोलंकी के मृत्यु के बाद भी कई दशक तक सोलंकी वंश शासित राज्य की सीमा सुरक्षित रहे थे।
संदर्भ-: कुमारपाल चरित
Manisha Singh

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