Monday, April 18, 2016

महाराणा राजसिंह

महाराणा राजसिंह-- मुगलों को मात पर मात देते रहे----------------!



महाराणा राजसिंह हिन्दू कुल गौरव हिन्दू धर्म रक्षक थे दक्षिण क्षत्रपति शिवाजी तो उत्तर मे महाराणा राजसिंह थे, इनका जन्म 24 सितंबर 1629 मे महाराणा जगत सिंह माता महारानी मेडतड़ी जी थी, मात्र 23 वर्ष की आयु 1652-53 ईसवी मे उनका राज्यारोहण हुआ वे धर्माभिमानी थे जब औरंगजेब ने कट्टरता की सीमा पार कर हिन्दू मंदिरों को तोड़वाने लगा बलात जज़िया कर लगाने लगा उस समय महाराणा ने मथुरा भगवान श्रीनाथजी की रक्षा कैसे हो पूरे भारतवर्ष मे औरंगजेब की भय के कारण कोई जगह नहीं दे रहा था महाराणा ने अपने राज्य मे श्रीनाथ द्वारा मंदिर बनवाया और औरंगजेब की चुनौती स्वीकार की, आज भी नाथद्वारा दर्शन हेतु सम्पूर्ण विश्व का हिन्दू जाता है, कहते हैं महाराणा राजसिंह महाराणा जैसे ही थे वे महाराणा प्रताप जैसे संगठक भी और योद्धा भी जिन्होने बार-बार मुगल सत्ता को पराजित कर महाराणा सांगा, महाराणा प्रताप द्वारा निर्मित हिंदुत्व पथ को आगे--- ।
''हल्दी घाटी के युद्ध के पश्चात अकबर की हिम्मत नहीं पड़ी की वह मेवाण पर आक्रमण कर सके, अकबर के बाद जहाँगीर दिल्ली के सिंहासन पर बैठा चार साल बाद उसने मेवाण पर हमला किया आक्रमण का समाचार मिलने के पश्चात भी राणा महल मे मस्त पड़ा रहा अंत मे रालमबरा के सरदार ने महलो मे प्रबेश कर महाराणा को बाहर निकाला और युद्ध क्षेत्र मे ले गया इस लड़ाई मे सरदार कहण सिंह ने मुस्लिम सेना को पराजित कर दिया, एक वर्ष पश्चात विशाल सेना लेकर अपने सेनापति के नेतृत्व मे मेवाण पर आक्रमण किया महाराणा ने उसे पराजित कर अपने राज्य मिला लिया बार-बार पराजय के पश्चात राणा अमरसिंह ने चित्तौण को जीत लिया और अपने राज्य मे मिला लिया इससे हिन्दू समाज को कितनी खुशी हुई होगी हम इसकी कल्पना कर सकते हैं, महाराणा अमरसिंह ने जहाँगीर को सत्रह बार पराजित किया''।
शाहजहाँ के अंत समय मे दिल्ली मे सत्ता संघर्ष के समय महाराणा राजसिंह ने औरंगजेब की कोई सहायता नहीं की जबकि औरंगजेब ने महाराणा से सहायता मांगी थी, उसी समय महाराणा ने रामपुरा क्षेत्र को अपने अधिकार मे ले लिया, औरंगजेब मुगल सुल्तान बन गया परंतु राजसिंह के कृत्य पर ध्यान नहीं दिया, जयपुर के राजा जयसिंह और जोधपुर के राजा जसवंत सिंह के देहावसान होने के पश्चात औरंगजेब निश्चिंत होकर हिंदुओं पर जज़िया कर लगा दिया महाराणा राजसिंह ने इसका बिरोध किया, औरंगजेब जोधपुर पर हमला के दौरान रूपगढ़ की राजकुमारी जजल कुमारी का डोला उठवाने हेतु पाँच हज़ार की लस्कर लेकर भेजा उस राजकुमारी ने बुद्धिमत्ता पूर्वक महाराणा को याद किया, महाराणा ने एक बड़ी फौज लेकार उस राजकुमारी की रक्षा की औरंगजेब की सारी फौज मारी गयी, जोधपुर के अल्प बयस्क राजा अजीत सिंह को औरंगजेब गिरफ्तार करना चाहा महाराणा ने उसकी रक्षा की वहाँ भी उसे मुहकी खानी पड़ी, औरंगजेब ने हिंदुओं पर जज़िया लगाया महाराणा ने एक कडा पत्र औरंगजेब को लिखा पत्र की भाषा और तथ्य वह पचा नहीं सका तिलमिला गया, इन सब से औरंगजेब चिढ़कर काबुल, बंगाल इत्यादि स्थानो से अपनी सारी फौज वापस मगाली और मुगल साम्राज्य की सारी शक्ति लगाकर मेवाण पर आक्रमण किया औरंगजेब चित्तौण, मदलगढ़, मंदसौर आदि दुर्गो को जीतता हुआ आगे बढ़ता चला गया किसी ने उसका बिरोध नहीं किया और विजय के आनंद मे उत्सव मानता हुआ राजस्थान के दक्षिणी -पश्चिमी पहाड़ियों तक पहुच गया वहाँ महाराणा राजासिंह उसके प्रतिरोध हेतु प्रस्तुत था।
शाहजादा अकबर 50000 की सेना लेकर उदयपुर जा पहुचा किसी ने उसे भी नहीं रोका वह निश्चिंत होकर बैठ गया तो महाराणा राजसिंह ने अचानक आक्रमण करके उसके सारे सैनिको को तलवार के घाट उतार दिया और अकबर को बंदी बना लिया शांति -संधि के पश्चात उसे छोड़ा गया, मुगल सेना के दूसरे भाग मे दिलवर खाँ सेनापति के नेतृत्व मे मारवाड़ की ओर से मेवाण पर हमला किया इसको राणा के सरदारों विक्रम सिंह सोलंकी और गोपीनाथ राठौर ने पराजित कर दिया, उनका सारा साजो सामान, हथियार और गोला, बारूद छीन कर वापस भगा दिया, उधर राणा राजसिंह ने औरंगजेब पर आक्रमण कर दिया वह दिवारी के पास छावनी लगाए बैठा था, अचानक आक्रमण कर औरंगजेब को भी महाराणा ने पराजित कर दिया, उसे भी अपना सारा गोला, बारूद, हथियार शस्त्र, अस्त्र छोडकर भागना पड़ा, बाद मे महाराणा ने चित्तौड़ पर आक्रमण कर मुगल सेना को भगा दिया और क्षेत्र जो औरंगजेब ने जीता था उसे भी जीतकर पुनः अधिकार कर लिया, राजकुमार भीम सिंह विजय की ध्वजा को लहराता हुआ सूरत तक पहुच गया इसी प्रकार मालवा को विजय करता हुआ नर्मदा और बेतवा तक चला गया मांडव, उज्जैन और चँदेरी तक भगवा झण्डा मेवाण ने फ़ाहराया। सूरत से हट कर राजकुमार भीम सिंह ने साहजादा अकबर और सेनापति तहवर खाँ को कई जगहों पराजित किया, शाहजादा अकबर औरंगजेब से नाराज होकर क्षत्रपति संभाजी की शरण मे चला गया, अंत मे औरंगजेब हार मानकर महाराणा से शांति -संधि कर वापस दिली चला गया।
यह समय ऐसा था जब महाराणा राजसिंह ने पूरे राजपूताना को संगठित कर (मुगल) (कहते हैं कि राणा राजसिंह जयपुर राज़ा के यहाँ भोजन किया उसको लेकार मेवाण मे उन्हे बिरोध झेलना पड़ा) इस्लामिक सत्ता को पराजित किया, इस्लामिक सत्ता को बार-बार पराजित होना पड़ा और भारत वर्ष मे उसके पराजय का युग यहीं से प्रारम्भ हुआ, महाराणा राजसिंह 1652 से 1680 ईसवी तक शासन किया उस समय मेवाण की शासन ब्यवस्था को चुस्त दुरुस्त किया अपनी सीमा को सुरक्षित रखने हेतु किलों का निर्माण कराया, एक लाख की नियमित सेना रखने का अभ्यास किया जो रथ, हाथी के अतिरिक्त थी उन्होने बाप्पा रावल और महाराणा प्रताप की परंपरा को कायम रखी

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